मुंबई 25 मार्च । भारी आर्थिक संकट से जूझ रही विमानन कंपनी जेट एयरवेज के प्रवर्तक एवं अध्यक्ष नरेश गोयल, उनकी पत्नी अनिता गोयल और एतिहाद एयरवेज के एक प्रतिनिधि ने कंपनी के निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया है और अब इस विमानन कंपनी को बचाने के लिए ऋणदाता 1,500 करोड़ रुपये लगायेंगे।
कंपनी के निदेशक मंडल की सोमवार को हुयी बैठक में ये निर्णय लिये गये। इसके साथ ही श्री गोयल कंपनी के अध्यक्ष पद से भी हट जायेंगे। श्री गोयल और उनकी पत्नी के साथ ही एतिहाद एयरवेज के केविन नाइट ने निदेशक मंडल से इस्तीफा दिया है। इसके साथ ही निदेशक मंडल ने ऋणदाताओं की योजना को अनुमाेदित करते हुये उनके दो सदस्यों को निदेशक मंडल में शामिल करने को भी अनुमोदित कर दिया।
भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में घरेलू ऋणदाताओं ने रिजॉल्यूशन प्लान बनाने की बात कही थी। इसके तहत ऋणदाताओं को एक रुपये अंकित मूल्य की दर पर 11.4 करोड़ शेयर जारी किये जायेंगे। इसके तहत श्री गोयल की नियंत्रक 51 प्रतिशत हिस्सेदारी कम होकर 25.5 प्रतिशत और एतिहाद एयरवेज की हिस्सेदारी की आधी होकर 12 प्रतिशत पर आ जायेगी। इस तरह से कंपनी में ऋणदाताओं को नियंत्रक 50.5 प्रतिशत हिस्सेदारी दी जायेगी।
ऋणदाताओं के निर्देश पर कंपनी की अंतरिम प्रबंधन समिति का गठन किया ताकि कंपनी की दैनिक संचालन और नकदी प्रवाह का प्रबंधन एवं निगरानी की जा सके। ऋणदाता तत्काल जेट एयरवेज में 1,500 करोड़ रुपये की पूंजी लगायेंगे ताकि उसका परिचालन सामान्य हो सके।
दिवाला तथा ॠणशोधन प्रक्रिया अपनाने से बेहतर परिणाम आएंगे:
नकदी संकट से जूझ रही विमानन कंपनी जेट एयरवेज को लेकर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सोमवार को कहा कि इस मामले में दिवाला एवं ऋणशोधन प्रक्रिया अपनाने से बेहतर परिणाम कंपनी और कर्जदाताओं के बीच बातचीत से सामने आ सकते हैं।
कॉरपोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि कर्जदाता और कर्जदार बातचीत कर रहे हैं। यह सबसे अच्छी प्रक्रिया है।’’
श्रीनिवास इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या जेट एयरवेज दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता के लिये एक अनुकूल मामला है।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि कर्जदाताओं और कर्जदारों के बीच बातचीत से बेहतर परिणाम सामने आते हैं तो यह दिवाला एवं ऋणशोधन की प्रक्रिया में जाने से बेहतर होगा, लेकिन यदि दिवाला एवं ऋणशोधन प्रक्रिया ही एकमात्र रास्ता बचा हो तो बैंकों को कदम उठाना होगा।’’
श्रीनिवास ने आईबीसी को अंतिम उपाय बताते हुए कहा कि यदि कंपनी के भीतर फिर से स्थिति ठीक करने की क्षमता शेष हो तो कंपनी और कर्जदाताओं दोनों के लिये यही बेहतर है कि वे मामले का समाधान निकालने की कोशिश करें।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि कर्जदाताओं और शेयरधारकों के बीच कोई करार नहीं है तब आपको आईबीसी सहित अन्य विकल्पों पर गौर करना होगा।’
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