नयी दिल्ली, 28 जून । लोकसभा ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवघि छह माह बढ़ाने वाले सांविधिक संकल्प को शुक्रवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया।
जम्मू कश्मीर में पिछले वर्ष जून से राज्यपाल तथा राष्ट्रपति शासन लागू है। राज्य विधानसभा के लिए पिछला चुनाव नवंबर-दिसंबर 2014 में हुआ था जिसमें किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और राज्य में पहली बार भारतीय जनता पार्टी तथा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन पिछले वर्ष 20 जून को राज्य सरकार अल्पमत में आ गयी और वहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। बाद में खरीद फरोख्त की खबरों के बीच राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी थी।
राज्य में 20 दिसंबर 2018 को संविधान की धारा 356 का प्रयोग करके राष्ट्रपति शासन लगाया गया था जिसे गत तीन जनवरी को संसद की मंजूरी मिली। राष्ट्रपति शासन की यह अवधि तीन जुलाई को पूरी हो रही है और इस संकल्प के पारित होने के बाद अब इसे छह माह के लिए और बढ़ाया जाएगा।
लोकसभा में शुक्रवार को जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने संबंधी संकल्प पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राज्य में पिछले एक साल में राज्यपाल शासन एवं राष्ट्रपति शासन के दौरान पहली बार आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनायी गयी है। इसी का परिणाम है कि राज्य में हिंसा की स्थिति पर रोक लगी है और वहां चार हजार पंच और सरपंचों के पदों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव हुए हैं और लोगों को उनके अधिकार मिले हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य में शांति का माहौल है और वहां कभी भी विधान सभा चुनाव कराए जा सकते हैं। इस बारे में फैसला सरकार को नहीं बल्कि चुनाव आयोग को लेना है। सरकार राज्य में चुनाव कराने के लिए तैयार है। धारा 356 के दुरुपयोग संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि भाजपा राजनीतिक लाभ के लिए इस धारा का इस्तेमाल कभी नहीं करती है। उन्होंने कहा कि देश में अब तक 132 बार इस अधिकार का इस्तेमाल हुआ है जिसमें कांग्रेस ने 93 बार इसका प्रयोग किया है।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर में छह महीने के लिये राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने का आग्रह करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह भाजपा सरकार की ‘‘सर्वोच्च प्राथमिकता’’ है और इसमें सरकार जरा भी लीपापोती नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार वहां शांति, कानून का शासन तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने को लेकर कटिबद्ध हैं ।
लोकसभा में शाह दो प्रस्ताव लेकर आए जिसमें से एक वहां राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने और दूसरा जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है उसमें भी संशोधन करके कुछ और क्षेत्रों को जोड़ने का प्रावधान शामिल है ।
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने दोनों प्रस्तावों को एक साथ पेश करने का विरोध किया । इस पर शाह ने कहा कि उन्हें अलग अलग प्रस्ताव पेश करने में कोई परेशानी नहीं है, वह केवल समय बचाना चाहते हैं । इसके बाद दोनों प्रस्ताव एक साथ पेश किये गए ।
शाह ने पहले जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव रखते हुए कहा, ‘‘ जम्मू कश्मीर में अभी विधानसभा अस्तित्व में नहीं है इसलिए मैं विधेयक लेकर आया हूं कि छह माह के लिए राष्ट्रपति शासन को बढ़ाया जाए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ चुनाव आयोग ने जम्मू कश्मीर प्रशासन, केंद्र सरकार और सभी राजनीतिक दलों से बात करके निर्णय लिया है कि इस साल के अंत में ही वहां चुनाव कराना संभव हो सकेगा । ’’
उन्होंने कहा कि कुछ समय पहने रमजान और आने वाले दिनों में अमरनाथ यात्रा का विषय भी है। इसके साथ वहां की 10 प्रतिशत आबादी वाले गुर्जर एवं बकरवाल समुदाय के लोग पहाड़ पर चले जाते हैं और अक्तूबर में ही वे वापस आते हैं । ऐसे में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाना जरूरी है ।
गृह मंत्री ने कहा कि पिछले एक साल के अंदर जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद को जड़ों से उखाड़ फेंकने के लिए इस सरकार ने बहुत से कार्य किये हैं ।
उन्होंने कहा, ‘‘ जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह भाजपा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है इसमें सरकार जरा भी लीपापोती नहीं करेगी। वहां शांति, कानून का शासन तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने को लेकर (सरकार) कटिबद्ध हैं । ’’
अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में कई सालों से पंचायत के चुनाव नहीं कराये जाते थे, लेकिन हमारी सरकार ने पिछले एक साल में वहां चार हजार से अधिक पंचायतों में चुनाव कराए और 40 हजार से अधिक पंच सरपंच आज लोगों की सेवा कर रहे हैं ।
उन्होंने कहा कि पहले कई बार जम्मू कश्मीर में हमने रक्त रंजित चुनाव देखे हैं। सबको इस पर मलाल होता था। इस बार 40 हजार पदों के लिए चुनाव हुआ पर एक भी व्यक्ति की जान नहीं गई। संसद के चुनाव में भी हिंसा नहीं हुई है।
शाह ने कहा कि ये दर्शाता है कि जम्मू कश्मीर में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बेहतर है ।
उन्होंने कहा कि पहली बार जम्मू कश्मीर की जनता ये महसूस कर रही है कि जम्मू और लद्दाख भी राज्य का हिस्सा है। वर्षों से लंबित मसले देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने पिछले एक साल में निपटा दिए ।
गृह मंत्री ने कहा कि दूसरे प्रस्ताव में जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है उसमें थोड़ा संशोधन कर कुछ नए क्षेत्रों को जोड़ने का प्रस्ताव लेकर आया हूं ।
शाह ने कहा कि जिसके तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे क्षेत्रों के लोगों के लिए जो आरक्षण है उसी के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय सीमा में रहने वालों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए ।
इस दौरान आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने एक मार्च 2019 को प्रख्यापित जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन अध्यादेश 2019 का निरानुमोदन करने का सांविधिक संकल्प प्रस्तुत किया।
मनीष तिवारी ने कहा कि यह अच्छा होता कि जम्मू कश्मीर में एक चुनी हुई सरकार होती क्योंकि ऐसी सरकार का लोगों का समर्थन होता है। ऐसे में अगर आतंकवाद एवं अन्य विषयों पर समाधान के लिए मजबूती से पहल करनी होती है तब एक चुनी हुई सरकार का होना जरूरी है।
जम्मू कश्मीर से जुड़े आरक्षण संबंधी विधेयक पर तिवारी ने कहा कि उन्हें विधेयक की भावना पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन यह जम्मू कश्मीर विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का विषय है ।
शाह ने निचले सदन में जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक 2019 चर्चा एवं पारित होने के लिये पेश किया । इससे अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्तियों के समान आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
इस विधेयक के माध्यम से जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में और संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है ।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 और उसके अधीन बनाए गए नियम के तहत आरक्षण का फायदा अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्तियों को उपलब्ध नहीं था ।
इसमें कहा गया है कि सीमापार से लगातार तनाव के कारण अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्ति सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से पीड़ित होते हैं । यह स्थिति इन निवासियों को अन्य सुरक्षित स्थान पर प्रस्थान करने के लिये प्राय: विवश करती है जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति और शैक्षिक स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्तियों को अधिनियम की परिधि में लाने की और उन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्तियों के समान बनाने की सतत मांग थी । ऐसे में अधिनियम में संशोधन आवश्यक हो गया था ।
जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक 2019 जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन अध्यादेश 2019 को प्रतिस्थापित करने के लिये है, जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्तियों को उनके समग्र सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक विकास के दीर्घकाल से लंबित मांग को पूरा करेगा ।
इसके माध्यम से अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों को वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे हुए क्षेत्रों में निवास कर रहे व्यक्तियों को उपलब्ध आरक्षण का लाभ उठाने में समर्थ बनाया जा सकेगा ।
attacknews.in