नयी दिल्ली, 27 जून । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को जम्मू-कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों के 14 नेताओं के साथ बैठक कर ‘‘दिल्ली और दिल की दूरी’’ को मिटाने की बात कही तथा परिसीमन की प्रक्रिया के बाद विधानसभा चुनाव कराने को प्राथमिकता बताया।
पेश हैं इस संबंध में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार द्वारा कश्मीर पर बातचीत के लिए गठित समिति में वार्ताकार रहे एम एम अंसारी से पांच सवाल और उनके जवाब’ :
सवाल : जम्मू कश्मीर से जुड़े मुद्दों पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जवाब : प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों मुख्यत: गुपकार गठबंधन (पीएजीडी) को चर्चा के लिए बुलाया था ताकि यह संदेश दिया जा सके कि सब कुछ ठीक है और आने वाले समय में जम्मू कश्मीर के लोगों की शिकायतों का निपटारा किया जाएगा। लेकिन, यह देखना महत्वपूर्ण है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और गुपकार गठबंधन विचारधारा के स्तर पर एक-दूसरे के विरोधी हैं। प्रधानमंत्री ने गुपकार गठबंधन के उन दलों के नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया, जिन्हें केंद्र मे सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं द्वारा पूर्व में भ्रष्ट और देश विरोधी कहा गया था।
सवाल : विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किए जाने के करीब दो वर्ष बाद हुई इस बैठक से क्या आपको आने वाले दिनों में कोई परिणाम निकलने की उम्मीद है?
जवाब : इस बैठक को लेकर पहले से न तो कोई एजेंडा तय किया गया था और न ही इसमें पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर कोई सहमति बनी। कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर भी इसमें कोई निर्णय नहीं हुआ। इस बैठक के परिणाम सिर्फ ‘‘अच्छे दिन आने की उम्मीद’’ भर हैं क्योंकि विशेष दर्जा एवं राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग एवं पाबंदियां हटाने जैसे मुद्दों का समाधान निकाले बिना लोगों को मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जा सकता।
सवाल : जम्मू कश्मीर के मामले से निपटने को लेकर सरकार की नीतियों को आप कैसे देखते हैं?
जवाब : जम्मू कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान इसका अंतरराष्ट्रीयकरण हुआ है जिसके दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं। ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि जम्मू कश्मीर के विभिन्न दलों के नेताओं के साथ यह बैठक अमेरिका के दबाव और संयुक्त अरब अमीरात की मध्यस्थता की जरूरतों के अनुरूप है। इससे जम्मू कश्मीर के मुद्दे और जटिल हो सकते हैं।
सवाल : आप कश्मीर मुद्दे पर क्षेत्र के पक्षों से बातचीत के लिए गठित वार्ताकारों की समिति के सदस्य रहे हैं, ऐसे में जम्मू कश्मीर को लेकर अब तक की नीतियों को आप कैसे देखते हैं?
जवाब : आजादी के बाद से ही जम्मू कश्मीर के राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि कश्मीर को लेकर एक ऐसी सतत एवं सुविचारित नीति की कमी रही है, जो इस क्षेत्र में टिकाऊ शांति एवं विकास सुनिश्चित करे एवं निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों की लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा दे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ के सूत्र के आधार पर गंभीर प्रयास किए थे और स्थिति पाकिस्तान के साथ शांति समझौते के करीब भी पहुंच गई थी। इसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान इस रास्ते को आगे बढ़ाते हुए अतिरिक्त कदम उठाए गए तथा लोगों से संवाद की दिशा में पहल की गई। हालांकि, पूर्व में जम्मू कश्मीर के लोगों को दिए गए राजनीतिक, आर्थिक लाभ एक झटके में ले लिए गए। क्षेत्र के लोग शांति एवं लोकतांत्रिक अधिकारों को बहाल किए जाने का इंतजार कर रहे हैं।
सवाल : जम्मू कश्मीर के संबंध में आगे का रास्ता क्या है?
जवाब : सिर्फ इस बैठक से बड़ी उम्मीदें लगाना बेमानी होगा। पिछले कुछ समय से जम्मू कश्मीर और दिल्ली के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी हुई थी, इस सिलसिले में एक रास्ता खुला है। सरकार को चाहिए कि शुरुआती कदम उठाते हुए तत्काल लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करे, राज्य का दर्जा वापस करे और चुनाव कराए।