बेंगलुरु/वाशिंगटन , आठ सितम्बर। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख के. सिवन ने रविवार को कहा कि चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम’ के चंद्रमा की सतह पर होने का पता चला है और लैंडर ने निश्चित ही ‘हार्ड लैंडिंग’ की है।
इसी के साथ सिवन ने स्वीकार कर लिया कि नियोजित ‘सॉफ्ट लैंडिंग” सफल नहीं रही।
सिवन ने ‘ कहा, ‘‘जी हां, हमें लैंडर ‘विक्रम’ के चंद्रमा की सतह पर होने का पता चला है। यह जरूर ही हार्ड लैंडिंग रही होगी।”
उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर में लगे कैमरों ने लैंडर विक्रम की मौजूदगी का पता लगाया और रोवर ‘प्रज्ञान’ उसके भीतर ही मौजूद है।
‘हार्ड लैंडिंग’ की वजह से उसे नुकसान पहुंचने के सवाल पर सिवन ने कहा, ‘‘हमें इस बारे में अभी कुछ नहीं पता।’’
उन्होंने कहा कि ‘विक्रम’ मॉड्यूल से संपर्क स्थापित करने के प्रयास जारी हैं।
गौरलतब है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का अभियान शनिवार को अपनी तय योजना के मुताबिक पूरा नहीं हो पाया था और चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की दूरी पर उसका संपर्क जमीनी स्टेशन से टूट गया था।
चंद्रमा पर खोज के लिए देश के दूसरे मिशन का सबसे जटिल चरण माने जाने के दौरान लैंडर चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के बिलकुल करीब था जब इससे संपर्क टूट गया।
लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूटने के बाद इसरो के एक अधिकारी ने कहा था कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पूरी तरह सुरक्षित और सही है।
इधर अधिकारी की ओर से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने कहा है कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने चांद की सतह पर उस स्थान का पता लगा लिया है जहां उसके लैंडर विक्रम ने लैंड किया है।
इसरो के अधिकारियों ने बताया कि विक्रम से संपर्क टूटने तक ऑर्बिटर तथा लैंडर से मिले डाटा की लगातार निगरानी के बाद उसके लैंड करने के स्थान का पता लगाया जा सका है। इसरो इस बात का पता लगायेगा कि विक्रम लैंडर ने ‘हार्ड लैंडिंग’ की है अथवा चांद की सतह से टकराया है ।
उन्होंने बताया कि इसका पता विक्रम लैंडर का इसरो से सम्पर्क टूटने से पहले अंतिम क्षण तक उसके द्वारा भेजे गये डाटा का अध्ययन करके ही लगाया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि ऑर्बिटर द्वारा रविवार को ली गयी तस्वीरों को देखने के बाद संभावना जतायी जा रही है कि विक्रम लैंडर ने या तो ने ‘हार्ड लैंडिंग’ की होगी अथवा चांद की सतह से टकरा गया । इन तस्वीरों का विश्लेषण किया जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार चंद्रयान में उच्च तकनीक (हाइएस्ट रेजलूशन) कैमरा (0.3 एम) लगा हुआ है, जो स्पष्ट तस्वीरें भेजेगा और इसराे लगातार उनका निरीक्षण करेगा।
इसराे के अध्यक्ष के. शिवन ने भी कहा है कि संगठन विक्रम लैंडर का इसरो से सम्पर्क टूटने से पहले अंतिम समय तक ली गयी थर्मल इमेजेज का आज से अध्ययन करेगा।
उल्लेखनीय है कि इसरो ने 22 जुलाई को चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण किया। चंद्रयान-2 के तीन हिस्से थे, आर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान। लैंडर विक्रम रोवर प्रज्ञान के साथ सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला था लेकिन अंतिम समय में इसरो का उससे सम्पर्क टूट गया।
नासा ने की सराहना-
उधर वाशिंगटन से खबर है कि, चंद्रयान 2 मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सराहनीय प्रयास का नासा भी कायल हो गया है और उसने कहा कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ‘विक्रम’ की सॉफ्ट लैंडिंग कराने की भारत की कोशिश ने उसे ‘‘प्रेरित’’ किया है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि वह भारतीय एजेंसी के साथ सौर प्रणाली पर अन्वेषण करना चाहती है।
चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग का इसरो का अभियान शनिवार को अपनी तय योजना के मुताबिक पूरा नहीं हो सका। लैंडर का अंतिम क्षणों में जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया। इसरो के अधिकारियों के मुताबिक चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पूरी तरह सुरक्षित और सही है।
नासा ने शनिवार को ‘ट्वीट’ किया, ‘‘अंतरिक्ष जटिल है। हम चंद्रयान 2 मिशन के तहत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की इसरो की कोशिश की सराहना करते हैं। आपने अपनी यात्रा से हमें प्रेरित किया है और हम हमारी सौर प्रणाली पर मिलकर खोज करने के भविष्य के अवसरों को लेकर उत्साहित हैं।’’
दक्षिण एवं मध्य एशिया के लिए अमेरिका के कार्यवाहक सहायक मंत्री एलिस जी वेल्स ने ट्वीट किया, ‘‘हम चंद्रयान 2 के संबंध में इसरो के बेहतरीन प्रयास के लिए उसे बधाई देते हैं। यह मिशन भारत के लिए एक बड़ा कदम है और वैज्ञानिक खोज को आगे बढ़ाने के लिए मूल्यवान आंकड़े मुहैया कराता रहेगा। हमें कोई शक नहीं है कि भारत अंतरिक्ष संबंधी अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करेगा।’’
पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री जेरी लेनिंगर ने शनिवार को कहा कि चंद्रयान-2 मिशन के तहत विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने की भारत की ‘‘साहसिक कोशिश’’ से मिला अनुभव भविष्य के मिशन में सहायक होगा।
लिनेंगर ने कहा, ‘‘ हमें इससे हताश नहीं होना चाहिए। भारत कुछ ऐसा करने की कोशिश कर रहा है जो बहुत ही कठिन है। लैंडर से संपर्क टूटने से पहले सब कुछ योजना के तहत था।’’
अमेरिका के समाचार पत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने कहा, ‘‘भारत पहली कोशिश में भले ही लैंडिंग नहीं कर पाया हो, लेकिन उसकी कोशिश दिखाती है कि उसका इंजीनियरिंग कौशल और अंतरिक्ष के क्षेत्र में दशकों के विकास उसकी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं।’’
‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने ‘चांद पर उतरने की भारत की पहली कोशिश असफल होती प्रतीत होती है’ शीर्षक के तहत कहा, ‘‘इस झटके के बावजूद सोशल मीडिया पर अंतरिक्ष एजेंसी और उसके वैज्ञानिकों का व्यापक समर्थन किया गया।… इस घटना से भारत की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को झटका लग सकता है, लेकिन यह इसकी युवा जनसंख्या की आकांक्षाओं का प्रतिबिम्ब है।’’
रिपोर्ट ने कहा, ‘‘भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक सफलता उसका किफायती होना रहा है। चंद्रयान 2 पर 14 करोड़ 10 लाख डॉलर की लागत लगी जो कि अपोलो चंद्र मिशन पर हुए अमेरिका के खर्च का छोटा सा हिस्सा है।’’
नासा के मुताबिक चंद्रमा की सतह पर उतरने से संबंधित केवल आधे चंद्र मिशनों को ही पिछले छह दशकों में सफलता मिली है।
एजेंसी की तरफ से चंद्रमा के संबंध में जुटाए गए डेटा के मुताबिक 1958 से कुल 109 चंद्रमा मिशन संचालित किए गए, जिसमें 61 सफल रहे।
करीब 46 मिशन चंद्रमा की सतह पर उतरने से जुड़े हुए थे जिनमें रोवर की ‘लैंडिंग’ और ‘सैंपल रिटर्न’ भी शामिल थे। इनमें से 21 सफल रहे जबकि दो को आंशिक रूप से सफलता मिली।
सैंपल रिटर्न उन मिशनों को कहा जाता है जिनमें नमूनों को एकत्रित करना और धरती पर वापस भेजना शामिल है। पहला सफल सैंपल रिटर्न मिशन अमेरिका का ‘अपोलो 12’ था जो नवंबर 1969 में शुरू किया गया था।
वर्ष 1958 से 1979 तक केवल अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ ने ही चंद्र मिशन शुरू किए। इन 21 वर्षों में दोनों देशों ने 90 अभियान शुरू किए। इसके बाद जपान, यूरोपीय संघ, चीन, भारत और इस्राइल ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा।
रूस द्वारा जनवरी 1966 में शुरू किए गए लूना 9 मिशन ने पहली बार चंद्रमा की सतह को छुआ और इसके साथ ही पहली बार चंद्रमा की सतह से तस्वीर मिलीं।
अपोलो 11 अभियान एक ऐतिहासिक मिशन था जिसके जरिए इंसान के पहले कदम चांद पर पड़े। तीन सदस्यों वाले इस अभियान दल की अगुवाई नील आर्मस्ट्रांग ने की।
2000 से 2019 तक 10 मिशन शुरू किए गए जिनमें से पांच चीन, तीन अमेरिका और एक-एक भारत और इजराइल ने भेजे।
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