नयी दिल्ली, 20 मार्च । विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज बताया कि इराक में तीन साल पहले अपहृत किए गए सभी 39 भारतीय मारे जा चुके हैं और उनके शव मिल गए हैं।
सुषमा ने राज्यसभा में आज अपनी ओर से दिए एक बयान में बताया कि अभी यह पता नहीं चल पाया गया है कि ये भारतीय कब मारे गए। उन्होंने बताया कि पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के रहने वाले इन भारतीयों के शव इराक में मोसुल शहर के उत्तर पश्चिम में स्थित बदूश गांव से मिले हैं।
विदेश मंत्री ने बताया कि बदूश में एक सामूहिक कब्र से खोद कर निकाले गए इन शवों की डीएनए जांच की गई जिसके बाद इन भारतीयों की पहचान हो सकी। उन्होंने बताया कि एक विशेष विमान के जरिये इन शवों को भारत लाया जाएगा और इनके परिजनों को सौंप दिया जाएगा।
उच्च सदन की बैठक शुरू होने के बाद अपनी ओर से दिए गए एक बयान में सुषमा ने बताया ‘‘मैंने पिछली बार इन भारतीयों के बारे में सदन में चर्चा होने पर कहा था कि जब तक ठोस सबूत नहीं मिलेगा, मैं किसी को भी मृत घोषित नहीं करूंगी। आज मैं उसी प्रतिबद्धता को पूरी कर रही हूं। मैंने कहा था कि सबूत मिलने पर ही हम इसे बंद करेंगे। जब हम इन 39 भारतीयों के पार्थिव अवशेषों को उनके परिजनों के सुपुर्द करेंगे तब यह खोज बंद होगी।’’
करीब तीन साल पहले 40 भारतीय कामगारों के एक समूह को मोसुल में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने बंधक बना लिया था। बंधक बनाए गए लोगों में कुछ बांग्लादेशी भी थे। भारतीयों में से, हरजीत मसीह नामक एक व्यक्ति किसी तरह बच कर निकल गया। उसने दावा किया था कि उसने अन्य भारतीयों को आईएसआईएस के लड़ाकों के हाथों मरते देखा है। लेकिन सरकार ने उसका यह दावा खारिज कर दिया था।
सुषमा ने आज कहा कि पंजाब के गुरदासपुर का रहने वाला हरजीत मसीह सच नहीं बोल रहा था। उन्होंने बताया कि हरजीत खुद को बांग्लादेश का मुस्लिम बता कर आईएसआईएस से बच कर निकल गया था।
विदेश मंत्री ने बताया कि इन भारतीयों को तब अपहृत किया गया था जब मोसुल पर आईएसआईएस ने कब्जा किया था। उन्होंने बताया कि अपहृत भारतीयों को पहले मोसुल में एक कपड़ा फैक्ट्री में रखा गया। हरजीत के भागने के बाद इन भारतीयों को बदूश गांव में ले जा कर बंधक रखा गया।
उन्होंने बताया कि इन 39 भारतीयों को बदूश गांव ले जाए जाने के बारे में विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह को उसी कपड़ा फैक्ट्री से पता चला जहां पहले भारतीयों को रखा गया था। बदूश में कुछ स्थानीय लोगों ने एक सामूहिक कब्र के बारे में बताया। ‘‘डीप पेनिट्रेशन रडार’’ की मदद से पता लगाया गया कि कब्र में शव हैं। इराकी अधिकारियों की मदद से शवों को खोद कर निकाला गया। जो सबूत मिले, उनमें लंबे बाल, कड़ा, पहचान पत्र और वह जूते शामिल हैं जो इराक में नहीं बने थे।
विदेश मंत्री ने बताया कि इन शवों को डीएनए जांच के लिए बगदाद भेजा गया। उन्होंने कहा कि बगदाद में मार्टायर्स फाउंडेशन से इन शवों की डीएनए जांच करने का अनुरोध किया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार को कल बताया गया कि जांच में 38 भारतीयों का डीएनए मैच हो गया जबकि 39वें शव का डीएनए उसके करीबी रिश्तेदारों के डीएनए से 70 फीसदी मैच हो गया है।
उन्होंने बताया कि विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह इन शवों को वापस भारत लाने के लिए इराक जाएंगे।
सुषमा ने बताया कि वह पहले भी कहती रही हैं कि सबूत न मिलने तक वह अपहृत भारतीयों को मृत घोषित नहीं करेंगी। उन्होंने कहा ‘‘अब सबूत मिल गए हैं। बहुत दुख के साथ मैं सदन को यह सूचना दे रही हूं कि इराक में अपहृत 39 भारतीय मारे गए।’’
उन्होंने बताया कि जब मोसुल पर आईएसआईएस ने कब्जा किया था तब ज्यादातर इराकी शहर से चले गए लेकिन भारतीय और बांग्लादेशी कामगार वहीं रहे।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बताया कि एक कैटरर से पता चला कि आईएसआईएस ने इन भारतीयों को दोपहर का खाना खा कर लौटते समय पकड़़ा और पहले इन लोगों को कपड़ा फैक्ट्री में रखा गया। वहां से बांग्लादेशी कामगारों को अलग कर उन्हें अरबिल शहर भेज दिया गया।
विदेश मंत्री के अनुसार, कैटरर ने बताया कि उसे एक व्यक्ति ने खुद को अली बताते हुए फोन कर कहा कि वह बांग्लादेशी है और उसे आईएसआईएस के आदेशानुसार, बांग्लादेश भेजा जाना चाहिए। सुषमा ने बताया कि हरजीत मसीह ने उन्हें अरबिल से फोन किया था लेकिन उसने यह नहीं बताया कि वह वहां कैसे पहुंचा। ‘‘वह कैटरर द्वारा लाई गई वैन में खुद को बांग्लादेश का मुस्लिम नागरिक अली बता कर बच निकला।’’
सुषमा ने आगे बताया ‘‘अगले दिन गिनती होने पर एक भारतीय कम मिला तो आईएसआईएस ने सभी अपहृत भारतीयों को बदूश भेज दिया।’’
उन्होंने बताया कि मोसुल से आईएसआईएस के सफाये के बाद विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह लापता भारतीयों की खोज में वहां गए। कपड़ा फैक्ट्री और कैटरर से सुराग मिलने के बाद सिंह इराक में भारतीय राजदूत तथा एक इराकी अधिकारी के साथ बदूश की जेल में गए।
लापता भारतीयों की खोज के अथक प्रयासों के लिए विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह की सराहना करते हुए सुषमा ने कहा कि बदूश में तीनों को खोज के दौरान एक छोटे से मकान में जमीन पर सोना पड़ा था।
उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों से सामूहिक कब्र का पता चला जहां से शव खोद कर निकाले गए और मार्टायर्स फाउंडेशन से इनकी प्राथमिकता के आधार पर डीएनए जांच करने का अनुरोध किया गया।
सुषमा ने बताया ‘‘लापता भारतीय पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार और हिमाचल प्रदेश के थे। इन राज्यों की सरकारों के सहयोग से, लापता भारतीयों के परिजनों के डीएनए के नमूने बगदाद भेजे गए। पहले शव का डीएनए मैच कर गया। यह शव संदीप नामक व्यक्ति का था। कल पुष्टि हो गई कि 38 शवों का डीएनए मिल गया। 39 वें शव का डीएनए 70 फीसदी मैच हुआ है। इस व्यक्ति के माता पिता नहीं हैं और उसके रिश्तेदारों के डीएनए का नमूना जांच के लिए भेजा गया था।
सुषमा ने कहा ‘‘सबूत जुटाना बहुत ही मुश्किल था। एक निर्मम आतंकी संगठन आईएसआईएस और सामूहिक कब्रें….। शवों का ढेर था। इनमें से अपने लोगों के शवों का पता लगाना, उन्हें जांच के लिए बगदाद भेजना आसान नहीं था।’’
विदेश मंत्री ने शवों का पता लगाने के लिए डीप पेनिट्रेशन रडार मुहैया कराने, शवों को खोद कर निकालने और डीएनए जांच के लिए उन्हें बगदाद भेजने में सहयोग के लिए इराकी प्राधिकारियों का भी शुक्रिया अदा किया।
उन्होंने बताया कि विदेश राज्य मंत्री सिंह विशेष विमान से पार्थिव अवशेषों को भारत लाने के लिए इराक जाएंगे। इन शवों को पहले पंजाब लाया जाएगा। मारे गए भारतीयों में से 31 पंजाब के और चार हिमाचल प्रदेश के थे। पंजाब, हिमाचल प्रदेश के बाद विमान पटना और फिर कोलकाता जाएगा।
विदेश मंत्री के बयान के बाद सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि यह अत्यंत दुखद खबर है।
सदन में मौजूद सदस्यों ने कुछ पल मौन रह कर मृतकों को श्रद्धांजलि दी।
विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पिछले साल सरकार ने हमें आश्वासन दिया था कि लापता भारतीय जीवित हैं।
करीब तीन साल पहले आईएसआईएस ने जब भारतीय कामगारों को बंधक बनाया था उस समय वह लोग मोसुल से बाहर निकलने की तैयारी में थे। मोसुल को आईएसआईएस के कब्जे से मुक्त कराने की घोषणा के बाद वी के सिंह को इराक भेजा गया था।
पिछले साल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लापता भारतीयों के परिजनों को बताया था कि खुफिया सूत्रों के हवाले से एक इराकी अधिकारी ने वी के सिंह को बताया कि भारतीयों को एक निर्माणाधीन अस्पताल में काम करने रखा गया और फिर एक फार्म में भेजा गया। इसके बाद उन्हें बदूश में एक जेल में रखा गया।attacknews.in