नयी दिल्ली, चार दिसंबर । आईएनएक्स मीडिया धन शोधन मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम को बुधवार को राहत प्रदान करते हुये उच्चतम न्यायालय ने उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय के इस दावे को स्वीकार नहीं किया कि वह साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं क्योंकि इस समय न तो वह राजनीतिक ताकत हैं और न ही सरकार में किसी पद पर आसीन हैं।
शीर्ष अदालत ने 74 वर्षीय कांग्रेस के इस वरिष्ठ नेता को जमानत पर रिहा करते हुये आदेश दिया कि वह इस मामले में अपने या अन्य सह-आरोपी के संबंध में कोई प्रेस इंटरव्यू या सार्वजनिक बयान नहीं देंगे।
न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने पूर्व वित्त मंत्री को जमानत देने से इंकार करने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त कर दिया। पीठ ने कहा कि चिदंबरम को दो लाख रुपये का निजी मुचलका और इतनी ही राशि की दो जमानतें पेश करने पर रिहा किया जाये।
प्रवर्तन निदेशालय ने न्यायालय में दलील दी थी कि धन शोधन के मामले में एक गवाह चिदंबरम का सामना करने के लिये तैयार नहीं है क्योंकि दोनों एक ही राज्य के हैं।
निदेशालय की इस दलील के बारे में न्यायालय ने कहा कि इसके लिये चिदंबरम को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जबकि ऐसी सामग्री सामने नहीं है जिससे यह संकेत मिलता हो कि उन्होंने या उनकी ओर से किसी ने गवाह को ‘रोका या धमकी दी’’ थी।
पीठ ने चिदंबरम को निर्देश दिया कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा इस मामले में आगे की आगे जांच के सिलसिले में बुलाये जाने पर वह पूछताछ के लिये उपलब्ध रहेंगे। पीठ ने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री ‘‘साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और न ही गवाहों को धमकाने या प्रभावित करने’’ का प्रयास करेंगे। न्यायालय ने निचली अदालत के स्पष्ट आदेश के बगैर उन्हें देश से बाहर नहीं जाने का भी निर्देश दिया है।
चिदंबरम द्वारा साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ किये जाने की संभावना से इंकार नहीं किये जाने संबंधी प्रवर्तन निदेशालय की दलील के बारे में पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा स्थिति में अपीलकर्ता न तो राजनीतिक ताकत है और न ही सरकार में किसी पद पर है जिससे वह हस्तक्षेप करने की स्थिति में हो। इस स्थिति में पहली नजर में इस तरह के आरोप स्वीकार नहीं किये जा सकते।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि आर्थिक अपराध गंभीर किस्म के होते हैं लेकिन जमानत संबंधी बुनियादी न्याय शास्त्र वही है कि आरोपी को जमानत देना नियम है और इससे इंकार अपवाद है ।
पीठ ने अपने 37 पेज के फैसले में कहा कि अदालत को जमानत याचिका पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखना जरूरी है लेकिन अपराध की गंभीरता का आकलन तो प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर अदालत करेगी।
न्यायालय ने कहा कि अदालत द्वारा अपने फैसले के चुनिन्दा पैराग्राफ में अपना निष्कर्ष दर्ज करने के तरीके को वह अस्वीकार करता है। इन पैराग्राफ में की गयी टिप्पणियां कथित अपराध के संबंध में उनके नतीजे के स्वरूप को दर्शाती हैं।
जमानत याचिका पर विचार के दौरान जांच एजेन्सी द्वारा सीलबंद लिफाफे में पेश दस्तावेजों के अवलोकन के बारे में पीठ ने कहा कि वह पहले ही यह व्यवस्था दे चुकी है कि यह जांच की कार्यवाही सही दिशा में चलने के बारे में आश्वस्त होने के लिये अदालत पर निर्भर करेगा कि वह ऐसे दस्तावेजों का अवलोकन करे या नहीं।
न्यायालय ने कहा कि शुरू में वह सीलबंद लिफाफे में पेश दस्तावेजों के अवलोकन के पक्ष में नहीं थी लेकिन चूंकि उच्च न्यायालय ने इनका अवलोकन किया था, इसलिए शीर्ष अदालत के लिये इन पर गौर करना जरूरी हो गया था।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा सीलबंद लिफाफे में पेश सामग्री के आधार पर अपना निष्कर्ष निकालना न्यायोचित नहीं था।
पीठ ने कहा कि रिकार्ड में मौजूद बयान और एकत्र की गयी सामग्री का संज्ञान लिया भी जाये तो अपीलकर्ता (चिदंबरम) की भूमिका को निचली अदालत में ही साबित करना होगा और यदि दोषी पाये गये तो अपीलकर्ता को सजा भुगतनी होगी।
न्यायालय ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि एक सह-आरोपी को उच्च न्यायालय ने जमानत दे रखी है जबकि अन्य आरोपी गिरफ्तारी से संरक्षण का लाभ उठा रहे हैं।
चिदंबरम को पहली बार आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई ने 21 अगस्त को गिरफ्तार किया था। इस मामले में उन्हें शीर्ष अदालत ने 22 अक्टूबर को जमानत दे दी थी।
इसी दौरान 16 अक्टूबर को प्रवर्तन निदेशालय ने आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले से मिली रकम से संबंधित धन शोधन के मामले में चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया था।