इंदौर 15 नवम्बर। “प्राचीन इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के कारण इस शहर का नाम इंदुर रखा गया था। लेकिन अंग्रेजों के गलत उच्चारण के कारण शहर का नाम इंदोर पड़ गया जो बाद में बदलकर इंदौर हो गया।” इंदौर पूर्व होलकर शासकों की राजधानी रहा है और रियासत काल के कई ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी इस शहर को “इंदूर” ही बताया गया है।
आज माँ अहिल्या की नगरी *इंदौर* का नाम *इंदूर* करने के लिए इंदौ नगर निगम परिषद की बैठक मे उक्त प्रस्ताव सुधीर जी देड़गे ने रखा एवं समर्थन दीपिका कमलेश नाचन ने किया उसके पश्चात पूरे सदन ने उक्त प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित किया साथ ही कांग्रेस पार्षद दल ने भी अपना समर्थन दिया ।attacknews
महापौर मालिनी गौड़ व सभापति अजयसिंह नरुका एवं सभी जनप्रतिनिधियों ने इंदौर का नाम *इंदूर* करने के *प्रस्ताव* पर अपना *समर्थन* दिया।
इंदौर शहर का नाम इंदूर करने के लिए मंगलवार को नगर निगम परिषद ने मुहर लगा दी थी। नाम बदलने संबंधी प्रस्ताव एमआईसी सदस्य सुधीर देडग़े ने रखा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के पार्षदों ने इस पर सहमति जताई।
एमआईसी सदस्य देडग़े ने कहा, भीमाबाई होलकर के शासनकाल में अंग्रेजों और होलकर रियासत में हुई संधि के बाद इंदौर में अंग्रेजों को रहने के लिए रेसीडेंसी बनाने की इजाजत दी गई थी। उस समय अंग्रेजों को इंदूर बोलने में दिक्कत होती थी, इसलिए वे इंडोर कहते थे, जो बाद में अपभ्रंश होकर इंदौर हो गया।
देडग़े ने बंबई को मुंबई, मद्रास को चैन्नई, बेंगलौर को बेंगलूरू, महू को आंबेडकर नगर करने के उदाहरण भी रखे। पार्षद दीपिका नाचन ने उनके इस प्रस्ताव का समर्थन किया। सभापति अजयसिंह नरूका ने देडग़े और पार्षद नाचन को इसके समर्थन में पुराने दस्तावेज देने के लिए कहा, जिस पर दोनों ने हामी दी।
होलकरों ने देश के अनेक हिस्सों में विकास के कार्य किए और वे जहां भी गए उनके शिलालेखों पर इंदौर को इंदूर के नाम से सम्मान दिया गया। होलकरों ने इंदौर में लंबे समय तक शासन किया और उन्होंने देशभर में इंदौर को पहचान दिलाई। होलकरों के शासन के समय ही अंग्रेज आ चुके थे और उन्होंने इंदूर को इंदौर कर दिया। इसके बाद से इसे इंदौर के रूप में ही जाना जाने लगा और देशभर में इसकी पहचान इंदौर के रूप में बन गई।