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भय्यू महाराज

भय्यू महाराज की मौत के यह थी वजह;जानिये उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की पूरी जानकारी Attack News

इंदौर 12 जून। इंदौर के रहने वाले और मशहूर संत भय्यू महाराज ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली इंदौर के बॉम्बे हॉस्पिटल ने उनकी मौत की पुष्टि की.

खबर के अनुसार भय्यू महाराज की मौत की वजह पारिवारिक कलह को बताया जा रहा है.

बता दें, भय्यू महाराज ने इंदौर में अपने आश्रम में ही खुद को गोली मारकर आत्महत्या की .

सूत्रों के अनुसार मौत की वजह हाल ही में हुई उनकी शादी को बताया जा रहा है.

बता दें भय्यू महाराज ने हाल ही में दूसरी शादी की थी. इसी शादी को उनकी मौत की वजह बताया जा रहा है.

गौरतलब है कि 49 साल कि उम्र में संत भय्यू महाराज ने अप्रैल 2017 में दूसरी शादी है. ग्वालियर की डॉ. आयुषी के साथ उन्होंने फेरे लिए थे .

भय्यू महाराज की पहली पत्नी माधवी का डेढ़ साल पहले (नवंबर 2015 में) निधन हो गया था. पहली शादी से उनकी एक बेटी कुहू है, जो पुणे में रहकर पढ़ाई कर रही है. भय्यू महाराज कुछ समय पूर्व सार्वजनिक जीवन से संन्यास की घोषणा कर चुके हैं.

भय्यूजी महाराज उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब इन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने में अहम रोल निभाया था.

भय्यू महाराज का जीवन परिचय बेहद दिलचस्प है. इनका वास्तविक नाम उदय सिंह शेखावत है, लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इन्हें लोग भय्यू महाराज के नाम से जानते हैं. भय्यू महाराज एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु थे जो गृहस्थ जीवन जीते थे. हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया था, जिसे इन्होंने लेने से इनकार कर दिया था.

भय्यू महाराज का देश के दिग्गज राजनेताओं से संपर्क है. हालांकि वह शुजालपुर के जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं.

भय्यू जी महाराज तब चर्चा में आए थे जब 2011 में अन्ना हजारे के अनशन को खत्म करवाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें अपना दूत बनाकर भेजा था. इसी के बाद ही अन्ना ने उनके हाथ से जूस पीकर अनशन तोड़ा था

उनका मुख्य आश्रम इंदौर स्थित बापट चौराहे पर है। सदगुरु दत्त धार्मिक ट्रस्ट उनके देख-रेख में में संचालित हो रहा था। भय्यू महाराज की पैठ संघ समेत बीजेपी में भी मानी जाती थी। उनके आश्रम में अक्सर राजनीतिक और फिल्मी हस्तियां देखी जाती थी ।

जमींदार परिवार से नाता

भय्यूजी महाराज का असली नाम उदय सिंह देशमुख था. 29 अप्रैल 1968 में मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर में जमींदार परिवार में जन्‍मे भय्यूजी महाराज संत बनने से पहले मॉडल के रूप में ग्‍लैमर जगत का हिस्‍सा रहे थे. इंदौर में उनका शानदार आश्रम है. सफेद मर्सिडीज एसयूवी में सफर करने वाले भैय्यू महाराज वैभवपूर्ण जीवनशैली के लिए जाने जाते थे. सियाराम शूटिंग के लिए उन्‍होंने मॉडलिंग की थी.

भय्यू महाराज से जुड़ी 5 बातें . -:

1. भैय्यूजी महाराज मॉडल रह चुके हैं. मॉडलिंग का करियर छोड़कर उन्होंने आध्यात्म का रास्ता चुना था . वे सियाराम शूटिंग के मॉडल रह चुके हैं.

2. वह दूसरे आध्यात्मिक गुरु से बिल्कुल अलग थे. वह कभी खेतों की जुताई करते देखे जाते, तो कभी क्रिकेट खेलते हुए. घुड़सवारी और तलवारबाजी में भी वे पारंगत थे.

3. 29 अप्रैल 1968 में मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर में जन्मे भय्यूजी के चहेतों के बीच धारणा है कि उन्हें भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वाद हासिल है. महाराष्ट्र में उन्हें राष्ट्र संत का दर्जा मिला हुआ थे. वह सूर्य की उपासना करते थे. घंटों जल समाधि करने का उनका अनुभव थे.

4. भैय्यूजी महाराज के ससुर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं. केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख से उनके करीबी संबंध थे. बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उनके भक्तों की सूची में हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता था.

5. भय्यूजी महाराज ग्लोबल वॉर्मिंग से भी चिंतित थे, इसीलिए गुरु दक्षिणा के नाम पर एक पेड़ लगवाते थे. 18 लाख पेड़ उन्होंने लगवाए थे. आदिवासी जिलों देवास और धार में उन्होंने करीब एक हजार तालाब खुदवाए थे. वह नारियल, शॉल, फूलमाला भी नहीं स्वीकारते.

उनकी राजनेताओं और बिजनेसमैन के बीच जबर्दस्‍त फॉलोअिंग थी. इसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि 2011 में समाजसेवी अन्‍ना हजारे ने जब दिल्‍ली में लोकपाल के मसले पर अनशन किया था तो उसको समाप्‍त कराने में भय्यूजी महाराज ने ही मध्‍यस्‍थता की थी.

एक आध्‍यात्मिक गुरु की जो छवि हमारे जेहन में उभरती है, वह उससे काफी हद तक अलग थे. वह क्रिकेट खेलते, खेतों की जुताई करते देखे जा सकते थे. घुड़सवारी और तलवारबाजी में भी वे पारंगत थे.

नरेंद्र मोदी जब 26 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो उनके 4,000 वीआइपी मेहमानों में उदय सिंह देशमुख (भय्यूजी महाराज) भी तशरीफ लाए थे. आम तौर पर बाबा लोग किसी मठ-मंदिर या श्रृद्धालु के घर टिकते हैं, लेकिन भय्यूजी दक्षिण दिल्ली के एंबेसडर होटल में ठहरे थे और कुछ चुनिंदा लोगों से मुलाकात के बाद अगले दिन इंदौर लौट गए. इस बार दिल्ली ने इस शख्स पर बहुत गौर नहीं किया, लेकिन जब पिछली बार 2011 में वे रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने आए थे तो सबकी नजर उन पर थी.

यही नहीं, उस समय जेडी (यू) अध्यक्ष शरद यादव ने लोकसभा में जब अन्ना आंदोलन पर अपनी भड़ास निकाली तो भय्यूजी को भी खूब लपेटा था. उस समय लोगों ने पहली बार एक गोरे-चिट्टे, ऊंचे-पूरे हीरो की तरह दिखने वाले शख्स को एक साधु के रूप में देखा था. यह भारतीय आध्यात्मिक जगत का बिल्कुल नया कलेवर था. तलवारबाजी और घुड़सवारी में निपुण मराठा ने तब की यूपीए सरकार के एक मंत्री के बुलावे पर अण्णा को मनाने की कोशिश की थी.

गुजरात में संत नगरी बनाने का प्रस्ताव

और अब वे जिस तरह से गुजरात में ‘संत नगरी’ बना रहे थे, उससे लगता है कि नई सरकार में इस नए दौर के ‘महाराज’ की पूछ परख बढऩे जा रही थी.

नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी, 2011 को संत नगरी परियोजना की घोषणा की थी. इस परियोजना में भारत के सभी धर्मों के 2,700 से ज्यादा संत-महात्माओं की मूर्तियां और इतिहास संजोया जाएगा, ताकि नई पीढ़ी भारत की आध्यात्मिक विरासत से रू-ब-रू हो सके.

मां जीजाबाई की उंगली पकड़कर खड़े बाल शिवाजी के चित्र और भगवान गणेश के सुंदर विग्रहों से सजी इंदौर की अपनी बैठक में ‘संत नगरी’ के बारे में साइंस ग्रेजुएट संत ने कहा, ”यहां भारत के सभी धर्मों के गुरुओं की मूर्तियां और विचार उद्धृत किए जाएंगे.” दरअसल उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को संत नगरी का प्रस्ताव भेजा था, जिसे उन्होंने हाथोंहाथ स्वीकार कर लिया था.

देश के बदले हुए राजनैतिक माहौल में इस तरह की परियोजनाएं धर्म के साथ ही राजनैतिक रिश्तों को भी नए सिरे से परिभाषित कर सकती हैं. यह बात भी ध्यान देने की है कि 2011 में मोदी जब अहमदाबाद में सद्भावना उपवास पर बैठे थे—यह उपवास उस समय विवाद में आ गया था जब मोदी ने मुस्लिम टोपी पहनने से मना कर दिया था—उस वक्त दूसरे संतों के साथ भय्यूजी भी वहां मौजूद थे. और वे उन लोगों में से थे जिन्होंने गुजरात के विकास का हवाला देते हुए मोदी का पक्ष लिया था.

बहरहाल, अपने आश्रम में लगे चित्र में भारत माता के हाथ में हल थमाने वाला संत बड़े चाव से बताता है कि कैसे उसने महाराष्ट्र में पारदी समाज की महिलाओं को वेश्यावृत्ति से निकालने के लिए काम किया है और कैसे उनका ‘श्री सद्गुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट’ अब तक 7,709 कन्याओं का विवाह करा चुका है. वे सियाराम सूटिंग के लिए मॉडलिंग कर चुके ऐसे अध्यात्मिक गुरु हैं जो महंगी गाडिय़ों से परहेज नहीं करते, लेकिन ट्रस्ट के खाते में कितने पैसे हैं, इसे उंगलियों पर गिनाने के लिए तैयार रहते हैं. जब आप उनसे धार्मिक कार्यों के बारे में पूछते हैं तो वे सामाजिक कार्यों का ब्यौरा देते थे.

जैसे वे बड़े लगाव से बताते थे कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में वे सैकड़ों तालाबों का पुनर्निर्माण करा चुके थे. देशभर में उन्होंने 19.39 लाख पौधे लगवाए हैं और लोकतंत्र में लोगों का भरोसा जगाने के लिए उनका ट्रस्ट अब तक संविधान की साढ़े 15 लाख प्रतियां बांट चुका है. दरअसल, उनका मानना है कि अध्यात्म से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी समाज के प्रति बाकी लोगों से कहीं ज्यादा है और धर्म से जुड़े लोग अगर अपने प्रभाव का सही इस्तेमाल करें तो समाज के लिए ज्यादा काम कर सकते हैं

नए जमाने के डिजिटल बाबा

वे एक नए किस्म के कर्मयोगी की छवि गढऩे में जुटे थे. वे विवाहित थे. उनकी एक बेटी है. और वे आम गृहस्थ की तरह इसी 2 मई को अपने पिताजी के निधन से पहले तक माता-पिता के साथ घर में रह रहे थे. उनकी मानें तो वे हर रोज कई सौ किमी की यात्रा करते हैं, ताकि जो सामाजिक कार्य वे कर रहे हैं, उन पर उनकी नजर रहे. वे फेसबुक, ट्विटर पर सक्रिय हैं औैर अपना ब्लॉग भी चलाते थे.

उनके ब्लॉग के विषय धर्म, सामाजिक कार्य से लेकर स्कित्सोफ्रीनिया (एक किस्म की मानसिक बीमारी) तक हो सकते हैं. साधु-महात्माओं की पुरातन शैली की बजाए वे आकर्षक पहनावे और नई जबान को तरजीह देते हैं. आशीर्वाद देने वाले महात्माओं की जगह वे स्वयंसेवक किस्म के साधु की परिभाषा गढ़ना चाहते हैं, जो काम करने के लिए सक्षम व्यक्ति को आशीष देने की जगह खुद ही काम करना चाहता है.

शायद इसीलिए प्रतिभा पाटील, नरेंद्र मोदी, नितिन गडकरी, स्मृति ईरानी, शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह, उद्धव ठाकरे, पृथ्वीराज चौहान जैसे बहुत से नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें आपको देखने को मिल जाएंगी. पहले यही लगता था कि कांग्रेस के नेता उनके ज्यादा करीब हैं, लेकिन अगर उनसे रिश्ता रखने वाले बीजेपी नेताओं की पड़ताल करें तो भी वैसी ही बात नजर आती है. उद्धव ठाकरे को बहुत अच्छा नेता मानने वाले भय्यूजी नरेंद्र मोदी की इस बात के कायल हैं कि मोदी अच्छे प्रस्तावों को बड़ी तेजी से पहचान लेते हैं और उन पर काम करते हैं.

राजनीति में आने को लेकर दिया था बयान

इन राजनैतिक संबंधों के बावजूद वे मानते थे कि सरकारें बहुत कुछ नहीं कर सकतीं. समाज उद्धार का काम समाज को ही करना होगा. और फिर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों को गहराई से आपकी आंखों में डालते हुए समाज और सरकार, दोनों पर सवाल उठाते हैं, ”काले हिरण का शिकार करने वाले को पद्मश्री क्यों मिलना चाहिए? जो लोग 500 रु. फिल्म देखने पर खर्च कर सकते हैं, उन्हें महंगाई का रोना रोने का क्या हक है? समाज अगर गलत लोगों को अपना आदर्श बनाएगा तो खुद भी गलत दिशा में जाएगा.”

तो क्या आप खुद भी राजनीति में आ सकते हैं? इस सवाल पर सीधा जवाब, ”कभी नहीं.” तो क्या बाबा रामदेव की तरह की प्रकारांतर राजनीति करेंगे? इस पर भी मिलता-जुलता जवाब, ”किसी से तुलना करना उचित नहीं है.” लेकिन वे इतना जरूर कहते हैं कि काम इसी समाज में करना है, इसलिए सबका सहयोग लेना पड़ेगा. नेता और राजनीति से परहेज करने का कोई तुक नहीं है. अब आपको यह तय करना है कि इस सहयोग से आप अपने बड़े मठ बनाएंगे या इसे जनता पर ही खर्च कर देंगे.

यानि भय्यूजी में वे सारे लक्षण दिखाई दे रहे थे जो अब तक तेजतर्रार सामाजिक कार्यकर्ताओं में देखे गए हैं. जैसे तालाब खुदवाने का काम कराने का उनका तरीका बहुत सीधा है. आश्रम में सालभर भंडारे का संचालन करने वाले भय्यूजी का सुझाव है, ”या तो मैं भक्तों से सोने-चांदी के सिंहासन बनवा लूं या फिर उनसे समाज के काम करा लूं. किसी के पास जेसीबी मशीन है, तो कोई बड़ा ठेकेदार है, कोई पत्थर तुड़ाई का काम कर रहा है.

मैं उनसे कहता हूं कि अमुक काम के लिए अपने संसाधन लगा दो और वे लगा देते हैं.” साथ में वे यह कहना नहीं भूलते कि भक्त परमार्थ के लिए काम नहीं करते बल्कि उन सब के अपने-अपने स्वार्थ हैं. वे तो यह काम इसलिए करते हैं कि ईश्वर उनके स्वार्थ पूरा करेगा. लेकिन ऐसा करके भय्यूजी किसी भी तरह के आर्थिक घोटालों या धन्ना सेठ महाराज कहलाने से बच जाते हैं, क्योंकि काम तो हो रहा है लेकिन पैसे का लेन-देन उनके ट्रस्ट के हाथ से नहीं हो रहा.

महाराष्ट्र और गुजरात तक थे भक्त

लंबे समय तक महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में काम करने के बाद अब वे अपने काम का दायरा देश के बाकी हिस्सों में ले जाने को उत्सुक थे. उनके भक्तों में बड़ी संख्या महाराष्ट्र के लोगों की है, लेकिन उनकी परियोजनाओं का दायरा गुजरात तक पहुंच चुका है. ब्रह्ममुहूर्त से साधना में रत होने के बावजूद वे दिन में बड़े-बड़े सामाजिक और राजनैतिक मामलों में मध्यस्थ के तौर पर उपलब्ध रहते रहे हैं.

जमींदार परिवार के लड़के से साधक, फिर साधक से मॉडल, और फिर मॉडल से गृहस्थ संत बनने के बाद भय्यूजी महाराज का क्षितिज अब किस तरफ विस्तार पाएगा, कहना आसान नहीं है.

लेकिन अगर भारत के धार्मिक जगत का 30-40 साल का इतिहास देखें तो यहां राजनैतिक सत्ता के समांतर उभरने, चमकने और फिर स्थिर हो जाने वाले साधु-महात्माओं की लंबी जमात है. इन सब में जिस तरह की आक्रामकता, आध्यात्मिकता और राजनैतिक रिश्ते पाए गए हैं, वे काफी हद तक भय्यूजी में भी दिखाई देते थे.

अपने माता-पिता को ही अपना सबसे बड़ा ईश्वर मानने वाले भय्यूजी फिलहाल समाजसेवा पर ध्यान लगा रहे हैं. लेकिन इतना तय जानिए कि मालवा की जमीन से अध्यात्म और राजनीति के बीच सेतु बनाने वाला नया धूमकेतु उठ रहा था.attacknews.in

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