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रुपये की ऐतिहासिक गिरावट और डाॅलर की मजबूती का यह हैं सच Attack News

नईदिल्ली 30 जून। रुपये की ऐतिहासिक गिरावट ने बाजार को सकते में डाला हुआ है. 28 जून को रुपया पहली बार डॉलर के मुकाबले 69.9 पर चला गया. बाजार के ´बिग डैडी´ के कब्जा बरकरार रखने की लड़ाई में, भारत समेत कई देश प्रभावित हो रहे हैं.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत अपने निम्न स्तर पर चली गई है. इससे पहले रिकॉर्ड 68.865 का था जो नवंबर 2016 में बना था. मौजूदा समय में रुपये की कीमत में गिरावट के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी जिम्मेदार है, इस सवाल का जवाब अमेरिकी डॉलर के पास है. दरअसल रुपया कमजोर तो हुआ ही है, साथ ही डॉलर भी मजबूत हो रहा है.

इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक और अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता ने कहा कि चूंकि अमेरिका का दुनिया के बाजार पर कब्जा है और उसने कर्ज, ड्यूटी समेत अन्य टैरिफ के रेट बढ़ा दिए हैं, जिससे अब देशों को अधिक से अधिक डॉलर खर्च करने की जरूरत पड़ रही है. अमेरिका और चीन के बीच बाजार पर कब्जा बढ़ाने की लड़ाई जिसे ट्रेड वॉर कहा जा रहा है, यह उसी का परिणाम है

हाल के दिनों में चीन की मुद्रा युआन पर इसका असर पड़ा है और कीमत प्रभावित हुई है जबकि चीन का चालू खाता सरप्लस में रहता है. इंडोनेशिया के रुपियाह और दक्षिण अफ्रीका के रैंड की वैल्यू भी घट रही है. इस गिरावट के लिए ठाकुरता कई कारणों को जिम्मेदार मानते हैं जिसमें से एक कारण डॉलर का मजबूत होना है. एशियाई बाजार में भारतीय मुद्रा का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है.

डॉलर के मजबूत होने से क्या है नुकसान:

भारत में सबसे ज्यादा आयात अमेरिका से होता है. उस आयात में कच्चे तेल की भी प्रमुख जगह है जिसका भुगतान डॉलर में होता है. हाल के दिनों में कच्चे तेल की कीमत बढ़ी है. ठाकुरता इसके लिए अमेरिकी कदम को जिम्मेदार मानते हैं. वे कहते हैं, “चूंकि अमेरिका ने भारत समेत कई देशों को ईरान से कच्चा तेल खरीदने से मना कर दिया है, इसलिए सभी पर इसका असर पड़ा है.” भारत कच्चे तेल का बड़ा हिस्सा ईरान से आयात करता है इसलिए देश की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ा है, क्योंकि अब उतना ही तेल खरीदने के लिए भारत को ज्यादा डॉलर की जरूरत पड़ रही है. ये भी रुपये के कमजोर पड़ने का एक कारण है.

अर्थशास्त्री ठाकुरता भारत के कमजोर हो रहे चालू खाते को विदेशी निवेश कम होने के लिए भी जिम्मेदार मानते हैं. अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रखा था, लेकिन अब वे हाथ पीछे खींच रहे हैं. 2018 में अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इंडियन मार्केट्स से 46,197 करोड़ रुपये निकाले हैं. इसके लिए अमेरिका का ब्याज दर बढ़ाना भी जिम्मेदार है. निवेशकों को अब अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से भारत में निवेश करना कम आकर्षक लग रहा है.

रुपये के टूटने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस ट्वीट की चर्चा तेज हो गई है जिसे उन्होंने 5 सितंबर, 2013 को लिखा था और कहा था कि रुपया आईसीयू में चला गया है. इसके अलावा कई ट्वीट्स आए जिसमें आजादी के वक्त भारतीय रुपये और अमेरिकी डॉलर की कीमत एक होने की बात कही थी. अब विपक्षी दल प्रधानमंत्री के इन्हीं ट्वीट्स को लेकर उन्हें घेरने की कोशिश कर रहे हैं और रुपये की हालिया गिरावट पर कोई टिप्पणी न आने की आलोचना कर रहे हैं.attacknews.in

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