नयी दिल्ली, 13 मई : कहने को वह तीन रंग का आयताकार कपड़ा है, लेकिन देशवासियों के लिए उसकी कीमत क्या है इसका अंदाजा लगाना है तो उस खिलाड़ी से पूछिए जो स्वर्ण पदक जीतने के बाद सबसे पहले तिरंगे को चूम लेता है, वह पर्वतारोही जो दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचकर वहां गर्व से तिरंगा फहरा देता है और या फिर देश पर जान लुटाने वाला वह सैनिक जिसके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा जाता है।
तिरंगा हमारे देश की एक ऐसी धरोहर है, जिसे देखकर मन में देशभक्ति का सागर हिलोरे लेने लगता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया। इसके बीचोंबीच अशोक चक्र है, जिसमें 24 तिल्लियां हैं।
राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य भी हैं जैसे संसद भवन देश का एकमात्र ऐसा भवन हैं जिस पर एक साथ 3 तिरंगे फहराए जाते हैं। इसी तरह रांची का पहाड़ी मंदिर भारत का अकेला ऐसा मंदिर हैं जहां तिरंगा फहराया जाता है। 493 मीटर की ऊंचाई पर देश का सबसे ऊंचा झंडा भी रांची में ही फहराया गया है।
केसरिया, सफ़ेद और हरे रंग के बने इस तिरंगे को आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकैया ने बनाया था। तिरंगे के स्वरूप का जिक्र करें तो यह हमेशा सूती, सिल्क या फिर खादी का ही होना चाहिए। प्लास्टिक का झंडा बनाने की मनाही है। तिरंगा आयताकार होना चाहिए, जिसका अनुपात 3:2 तय है। हालांकि तिरंगे के अशोक चक्र का कोई माप तय नही है। सिर्फ इसमें 24 तिल्लियां होनी आवश्यक हैं।
झंडे को लेकर अपनाए जाने वाले नियमों के अनुसार, इस पर कुछ भी बनाना या लिखना गैरकानूनी है और इसे किसी भी गाड़ी के पीछे, बोट या प्लेन में नहीं लगाया जा सकता और न ही इसका उपयोग किसी बिल्डिंग को ढकने के लिए किया जा सकता है। तिरंगे का जमीन पर लगना इसका अपमान होता है।
नियम यह भी कहते हैं कि किसी भी दूसरे झंडे को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा या ऊपर नहीं लगा सकते और न ही इसके बराबर रख सकते हैं।
देश में ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के नियम निर्धारित किए गए हैं। इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल भी हो सकती है।
कर्नाटक के हुबली शहर में स्थित बेंगेरी में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ खादी के तिरंगे बनाने वाली देश की एकमात्र संस्था है, जो भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों का पालन करते हुए पूरे देश के लिए झंडों का निर्माण और आपूर्ति करती है।
राष्ट्रीय ध्वज के संबंध में कुछ रोचक तथ्य यह हैं कि 29 मई 1953 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर यूनियन जैक तथा नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ लहराता नजर आया था। तब शेरपा तेनजिंग और एडमंड माउंट हिलेरी ने एवरेस्ट फतह की थी। इसी तरह राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में एक ऐसा लघु तिरंगा हैं, जिसे सोने के स्तंभ पर हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया है।
शोक के समय में भी झंडे के इस्तेमाल के नियम हैं। किसी राष्ट्र विभूति का निधन होने और राष्ट्रीय शोक घोषित होने पर कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाता है। देश के लिए जान देने वाले शहीदों और देश की महान शख्सियतों को तिरंगे में लपेटा जाता है। इस दौरान केसरिया पट्टी सिर की तरफ और हरी पट्टी पैरों की तरफ होनी चाहिए। समय के साथ पुराने हो जाने वाले कटे-फटे या रंग उड़े हुए तिरंगे को भी सम्मान के साथ वजन बांधकर किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
अब 15 अगस्त को प्रधानमंत्री जब लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे तो उसके मान सम्मान के साथ ही उससे जुड़े रोचक तथ्य और उसे फहराने के नियम आप को बेसाख्ता याद आ जाएंगे।attacknews.in