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भारत में विदेशी फलों की मांग और आवक दोनों बढीं, लोगों में यह स्टेटस सिंबल बन चुके हैं Attack News

नयी दिल्ली, दस अप्रैल। विदेशी या इम्पोर्टेड चीजों का मोह अब सिर्फ एसी, टीवी, फ्रिज, लैपटॉप, कार या मोबाइल तक सीमित नहीं रह गया है। इस फेहरिस्त में विदेशी या इम्पोर्टेड फलों का नाम भी जुड़ गया है और हाल के बरसों में भारत में विदेशी फलों की मांग में कई गुना का इजाफा हुआ है।

शादी-ब्याह में विदेशी फलों का स्टॉल लगाने का चलन तो तेजी से बढ़ा ही है। साथ ही बेहतर गुणवत्ता की वजह से भी आज उच्च मध्यम वर्ग देसी के बजाय विदेशी फल खाना पसंद करता है। दिलचस्प यह है कि विदेशी फल घर की सजावट का भी हिस्सा बन चुके हैं। उच्च मध्यम वर्ग द्वारा डाइनिंग रूप में डाइनिंग टेबल पर इम्पोर्टेड फल सजाकर रखना एक आम शगल हो गया है। डाइनिंग टेबल पर रखे विदेशी फलों पर उस देश का नाम होता है, जहां से इन्हें आयात किया गया है। इससे मेहमानों पर रौब गालिब किया जा सकता है।

राजधानी की थोक फल एवं सब्जी मंडी आजादपुर मंडी के व्यापारियों के अनुसार बाजार में दो दर्जन के करीब विदेशी फल आते हैं। न्यूजीलैंड से कीवी तो, अमेरिका और चीन से सेब का आयात होता है। इसके अलावा इमली, अमरूद, अंगूर, खरबूजा, नाशपति, चेरी, आम, खजूर का भी आयात होता है।

दिल्ली में विदेशी फल की दैनिक मांग तीन-चार ट्रक प्रतिदिन की है। एक ट्रक में नौ टन फल आते हैं। शादी ब्याह के सीजन में तो यह मांग आठ-दस ट्रकों तक पहुंच जाती है।

आजादपुर मंडी के पूर्व चेयरमैन तथा फेडरेशन आफ फ्रूट एंड वेजिटेबल ट्रेड एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा ने कहा कि आज सामर्थ्यवान लोग इम्पोर्टेड फल ही खाना पसंद करते हैं। इसकी वजह उनकी बेहतर गुणवत्ता है। इसके अलावा घर में विदेशी फल रखना आज स्टेटस सिंबल भी बन चुका है।

शर्मा कहते हैं कि आज शायद ही ऐसा कोई शादी-ब्याह का समारोह हो जिनमें इम्पोर्टेड फलों का स्टॉल न हो। लोग अपनी हैसियत के हिसाब से शादी-ब्याह में विदेशी फल रखते हैं।

एक अन्य फल व्यापारी हरजीत के अनुसार सिर्फ राजधानी ही नहीं, आसपास के अन्य राज्यों के लोग भी अब विदेशी फल खरीदने आने लगे हैं। वह कहते हैं, ‘‘इम्पोर्टेड फल खाने के साथ ‘दिखाने’ के भी काम आते हैं।

व्यापारियों के अनुसार, भारतीय की तुलना में विदेशी फल की कीमत आमतौर पर 70 से 150 रुपये प्रति किलो तक अधिक होती है। चीन और अमेरिका से आने वाले सेब की कीमत 250 रुपये से किलो से अधिक है। दक्षिण अफ्रीका की नाशपति भी 200 रुपये किलो से अधिक बिकती है। आयातित खजूर 400 से 800 रुपये किलो बिकता है।

व्यापारियों का कहना है कि विदेशी फलों की मांग का एक कारण यह भी कि इनकी पैकेजिंग काफी अच्छी होती है। पैकेजिंग के मामले में विदेशी फल भारतीय फलों को मात देते हैं। व्यापारी आयातित फलों को कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं और जरूरत के हिसाब से इनको बाहर निकालकर बेचा जाता है। हालांकि, आम मंडियों में तो विदेशी फल नहीं मिलता है, लेकिन बड़े-बड़े मॉल्स में इम्पोर्टेड फ्रूट्स की दुकानों से इन्हें खरीदा जा सकता है।

मंडी के व्यापारियों के अनुसार, इन फलों के साथ एक और खास बात यह है कि ये फल कंटेनर में आते हैं और इनका सैंपल देखकर ही ग्राहक बड़ा ऑर्डर दे सकता है, क्योंकि जो सैंपल में दिखाया जाएगा, वहीं फल बेचा भी जाता है। यानी उसमें किसी तरह का अंतर नहीं होता।

शर्मा कहते हैं कि अब देश में भी विदेशी फलों की गुणवत्ता वाले फलों का उत्पादन शुरू हो गया है। हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर कीवी का उत्पादन हो रहा है। यही नहीं विदेशी कृषि विशेषज्ञ भारत आकर खेती में मदद करते हैं। इससे भी फलों की गुणवत्ता को बेहतर किया जा रहा है।

आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो पिछले कुछ साल में विदेशी फल-सब्जियों का आयात कई गुना हो चुका है। 2011-12 में जहां 4,000 करोड़ रुपये के फल व सब्जियों का आयात हुआ था, वहीं 2016-17 में यह आंकड़ा 11,900 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।attacknews.in

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