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भारत के पहले लोकसभा चुनाव से ही रियासतों के राजा- महाराजाओं ने चुनाव लड़कर लोकतंत्र का भी राजा बनने की शुरुआत कर दी थी attacknews.in

नयी दिल्ली, 13 मार्च । सैकड़ों साल की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुये देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत 1951 में हुये पहले लोकसभा चुनाव में न केवल आजादी के दीवानों ने हिस्सा लिया बल्कि राजा-महाराजों ने भी अपने दांव आजमाये।

पहले आम चुनाव में लोकसभा की 489 सीटों के लिए चुनाव हुआ था जिसमें कुल 53 राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों ने अपनी चुनावी किस्मत आजमायी और चुनावी राजनीति के गूढ़ रहस्यों को जाना। इस चुनाव में कुल 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाता थे जिनमें से 10 करोड़ 59 लाख 50 हजार से अधिक मतदाताओं ने ढाई लाख मतदान केन्द्रों पर कुल 1874 उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य का फैसला किया। इस चुनाव में औसतन हर सीट पर चार-पांच उम्मीदवार खड़े हुये थे। पंजाब में एक सीट पर सर्वाधिक 14 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था।

चुनाव आयोग के दस्तावेजों के अनुसार राजनीति के इस कुंभ के दौरान 14 राष्ट्रीय राजनीतिक दलों तथा 39 राज्य स्तरीय दलों ने हिस्सा लिया था जिनमें कुछ पार्टियों का खाता भी नहीं खुल सका था। राष्ट्रीय पार्टियों में कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लाक (मार्कसिस्ट ग्रुप) फारवर्ड ब्लाक (रुईकार ग्रुप), अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, कृषिकर लोक पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी, रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद, रिवोल्यूशनरी सोसलिस्ट पार्टी, अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन और साेसलिस्ट पार्टी शामिल थी। रूस की राजनीति से प्रभावित कुछ लोगों ने तो बोलशेविक पार्टी आफ इंडिया का गठन किया था।

अन्य पार्टियों में प्रजा पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, जस्टिस पार्टी, केरल सोसलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर मंडल, आल पीपुल्स पार्टी, झारखंड पार्टी, कोचीन पार्टी, हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी, गांधी सेवक सेवा जैसी पार्टियां थी। पहले चुनाव के दौरान कुछ लोकसभा क्षेत्रों के नाम एक ही थे लेकिन उनमें दो से तीन सीटें तक थी।

इस चुनाव के लिए कांग्रेस ने सबसे अधिक 479 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। उनमें से 364 की जीत हुयी थी जबकि चार प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये थे। कांग्रेस को 44.99 प्रतिशत वोट मिला था और वह सत्तारूढ़ हुयी थी। इस चुनाव में 44.87 प्रतिशत मतदान हुआ था। सोसलिस्ट पार्टी ने 254 और किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 145 उम्मीदवारों को चुनाव लड़या था। सोसलिस्ट पार्टी के 12 और किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नौ प्रत्याशी चुनाव जीत गये थे।

सबसे बड़ी बात यह थी कि उस समय के वामपंथी आन्दोलन की अगुआ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व ने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए सिर्फ 49 सीटों पर चुनाव लड़ा और वह 16 सीटें जीत कर लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। उसे 3.29 प्रतिशत वोट ही मिला था और उसके आठ उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी। जनसंघ ने 94 उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया था जिनमें से तीन जीते तथा 49 की जमानत जब्त हो गयी थी। इस पार्टी को तीन प्रतिशत से कुछ अधिक वोट मिले थे।

इस चुनाव में कांग्रेस के नेता जवाहर लाल नेहरू (उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिला पूर्व सह जौनपुर जिला पश्चिम सीट), जगजीवन राम (बिहार के शाहाबाद दक्षिण), वी. वी. गिरि (मद्रास के पाटरपम्टनम), के कामराज नडार (श्रीविल्लीपुत्तुर), विजय लक्ष्मी पंडित (लखनऊ जिला केन्द्रीय), अब्दुल कलाम आजाद रामपुर जिला सह रायबरेली जिला पश्चिम) और फिरोज गांधी (प्रतापगढ़ जिला पश्चिम सह रायबरेली जिला पूर्व) सीट से निर्वाचित हुये थे।

जनसंघ की स्थापना करने वालों में शामिल श्यामा प्रसाद मुखर्जी कलकत्ता दक्षिण पूर्व सीट से विजयी हुये थे। उन्होंने 65 हजार से अधिक वोट लाकर कांग्रेस के मृगनका मोहन सूर को पराजित किया था। दिग्गज कम्युनिस्ट नेता हीरेन्द्र नाथ मुखर्जी कलकत्ता उत्तर पूर्व सीट पर कांग्रेस के बी. बी. मुखर्जी को भारी मतों के अंतर से हराया था। श्री हीरेन्द्रनाथ मुखर्जी को लगभग 72 हजार वोट तथा श्री मुखर्जी को 36 हजार से अधिक वोट मिले थे।

पहले लोकसभा चुनाव में बीकानेर चुरु सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी महाराजा कर्णी सिंह ने कांग्रेस के राजा कुशल सिंह को पराजित किया था। महाराजा कर्णी सिंह को उस जमाने में एक लाख 17 हजार से अधिक वोट मिले थे जबकि राजा कुशल सिंह 54 हजार से अधिक वोट लाने में सफल रहे थे। इस चुनाव में समाजवादी चिन्तक सुचेता कृपलानी नयी दिल्ली सीट से किसान मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुयी थी।

इस चुनाव में कुल 533 लोगों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था जिनमें से 37 निर्वाचित हुये थे। निर्दलीय प्रत्याशियों ने कुल मतदान का 15.90 प्रतिशत वोट हासिल किया था। संसाधनों कमी और प्रचार सामग्री के अभाव के कारण कुछ लोगों ने बैलगाड़ी और भोंपू के माध्यम से चुनाव प्रचार किया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दीवार लेखन पर अधिक जोर देती थी। राजा-महराजा का चुनाव प्रचार आकर्षण का केन्द्र होता था।

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