जयपुर, 03 जून । भारतीय सेना को राजस्थान में जोधपुर जिले के पोखरण में चल रहे देश में निर्मित 155 एमएम और 52 कैलिबर की एडवांस्ड टाऊड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) होवित्जर तोप का परीक्षण दो महीने में सफलतापूर्वक पूरा होने की उम्मीद है।
सूत्रों के अनुसार परीक्षण में यह तोप सफल होती है तो पूरी तरह से देश में विकसित पहली होवित्जर तोप के निर्माण का रास्ता खुल जायेगा।
भारतीय सेना को परीक्षण के लिये दो अलग तरह की तोपें सौंपी गयी हैं, जिनका निर्माण संयुक्त रूप से भारतीय रक्षा एवं अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ), और निजी क्षेत्र की कम्पनियां टाटा पावर एसईडी, भारत फोर्ज एवं कल्याणी स्ट्रैटेजिक सिस्टम्स ने किया है।
इन तोपों का पोखरण के रेगिस्तान में 24 मई से परीक्षण किया जा रहा है। टाटा पॉवर ने जी वन और भारत फोर्ज ने जी टू का प्रारूप परीक्षण के लिये सौंपा है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जुलाई तक ये परीक्षण पूरा हो जाने पर रक्षा मंत्रालय टाटा पावर और भारत फोर्ज को करीब 36 करोड़ 65 लाख रुपये की 150 तोपों की आपूर्ति का ऑर्डर जारी करेगा। रक्षा मंत्रालय ने अगस्त 2018 में एटीएजीएस तोपों की खरीद की मंजूरी दी थी।
टाटा पॉवर की जी वन या भारत फोर्ज की जी टू तोपों में से एक को उनके प्रदर्शन और न्यूनतम बोली के आधार पर चुना जायेगा। व्यवसायिक बोली में विजेता कम्पनी को 100 तोप बनाने का ठेका दिया जायेगा जबकि दूसरी कम्पनी को 50 तोपों की आपूर्ति करने की मंजूरी दी जायेगी। रक्षा के क्षेत्र में यह देश की पहली सरकारी एवं निजी क्षेत्र भागीदारी की रक्षा परियोजना होगी।
एटीएजीएस कार्यक्रम वर्ष 2013 में डीआरडीओ द्वारा सेना के तोपखाने को मजबूत करने के लिये शुरु किया गया था। सितम्बर 2017 में पहली तोप का पोखरण में परीक्षण किया गया। उस समय इससे उच्च विस्फोटक क्षमता के तीन गोले दागे गये थे, जिनकी मारक दूरी 47.2 किलोमीटर तक मापी गई थी।
एटीएजीएस देश की सबसे ताकतवर लम्बी दूरी की तोप होगी। 155 एमएम और 52 कैलिबर की यह तोप हालांकि अधिकतम 48.07 किलोमीटर दूरी तक गोला दाग सकती है, लेकिन औसतन 40 किलोमीटर दूरी का लक्ष्य सटीकता के साथ भेद सकती है। यह अत्याधुनिक संचार प्रणाली, अंधेरे में भी गोला दागने की क्षमता के साथ स्वचालित कमान एवं नियंत्रण प्रणाली से युक्त है। यह इस वर्ग की तोपों के मुकाबले दो टन हलकी है और यह 15 सेकेंड में तीन गोले दाग सकती है। एक घंटे में 30 गोले तक दागने की इसकी क्षमता है।
करीब 28 वर्षों से तोपों की कमी से जूझ रहे सेना के तोपखाने के वर्ष 2014 के बाद दिन फिर गये। 1980 के दशक में विवादास्पद बोफोर्स तोप के बाद भारतीय सेना में कोई तोप शामिल नहीं की गई, लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद सीमा की भौगोलिक स्थिति के मुताबिक तोपें खरीदने का निर्णय किया गया।
इसके तहत पहाड़ी क्षेत्रों के लिये जहां अमरीका से 155 एमएम की ही 145 अल्ट्रालाइट होवित्जर तोपों का सौदा किया गया, वहीं मैदानी क्षेत्र के लिये दक्षिण कोरिया से के-9 तोपें खरीदीं जा रही हैं। ये भी 155 एमएम की ही हैं।
इन दोनों तोपों के पहली खेप मिल चुकी है। उधर स्वदेशीकरण पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है। लिहाजा बोफोर्स तोपों को उन्नत बनाकर इनका देश में ही धनुष के नाम से निर्माण किया जा रहा है।
इसीलिये इसे देशी बोफोर्स भी कहा जाता है। पिछले महीने छह धनुष तोपें सेना को सौंपी गई, जिन्हें कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तैनात भी कर दिया गया है।
उधर सेना में 130 एमएम की रशियन तोपें हैं जिन्हें भी 155 एमएम की तोपों में बदला जा रहा है। केंद्र सरकार की सेना के तोपखाने को मजबूत बनाने की योजना के तहत अगले कुछ वर्षों में करीब साढ़े तीन हजार तोपें शामिल की जायेंगी।
इसमें 1500 से अधिक एटीएजीएस तोपें होंगी। इन तोपों के शामिल होने के बाद भारतीय सेना का तोपखाना दुनिया के ताकतवर तोपखानों में शामिल हो जायेगा। attacknews.in