नईदिल्ली 15 नवम्बर । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पूर्व विधायक किशोर समरीते की शिकायत पर नकल के द्वारा पीएचडी किए जाने की जांच के चलते मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति बना दिए गये जयंत सोनवलकर द्वारा विश्वविद्यालय में फर्जीवाड़े की सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी है ।
इस संबंध में विश्वविद्यालय के कुलपति सोनवलकर द्वारा प्रस्तुत फर्जी प्रमाण दस्तावेजों को लेकर राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार को अभिलेखों की जांच कर कार्यवाही करने के निर्देश सचिव भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गये है।
पीएचडी थीसिस में 80% साहित्यिक चोरी पकड़ में आने के बावजूद कार्यवाही नहीं
जयंत सोनवलकर द्वारा पीएचडी उपाधि के लिए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में जमा की गई थीसिस में 80% साहित्यिक चोरी पकड़ में आने के बावजूद आज तक जांच होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई।
ज्ञात हो कि यूजीसी और राज्यपाल द्वारा शोधगंगा एवं उरकुण्ड से नकल न पाए जाने पर ही शोध प्रबंध मान्य किया जाता है। ज्ञात हो कि 2010 में ऐसा ही नकल प्रकारण पाए जाने पर भोज विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कमलाकर सिंह की बागसेवनिया थानें में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। जिसके बाद कमलाकर सिंह की पीएचडी निरस्त कर शासन ने उन्हें कुलपति पद निलंबित कर दिया था। जो 13 वर्षों तक निलंबित रहे। परंतु जयंत सोनवलकर के मामले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और बीजेपी युवा मोर्चा इंदौर के पदाधिकारियों के विरोध प्रदर्शन के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई।
जयंत सोनवलकर की अर्हता पर संदेह
जयंत सोनवलकर के पास कुलपति के लिए अनिवार्य 10 साल की अर्हता रखने पर संदेह है। सोनवलकर का मूल विषय मैनजमेंट/कॉमर्स/पत्रिकारिता/समाजशास्त्र/कम्प्यूटर-आईटी इनमें से क्या है आज तक किसी को समझ नहीं आया। ये अपने को प्रत्येक विषय का विभागाध्यक्ष और विद्वान बताते है, जबकि कोई प्राध्यापक किसी एक ही विषय का प्रकांड विद्वान होता है।
जयंत सोनवलकर की कुलपति पद पर नियुक्ति ही विवादों में रही क्योंकि नकल से पीएचडी करने के प्रमाण की जांच के चलते कुलपति बना दिए गये,जबकि नियम है कि,गंभीर जांच के दौरान इस तरह की नियुक्ति नहीं की जा सकती ।
इस नियुक्ति के बाद सोनवलकर ने विश्वविद्यालय को जमकर फर्जीवाड़ा और घोटालों की चरागाह बना दिया
जहां एक ओर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और राज्यपाल अच्छी शिक्षा और भ्रष्टाचार मुक्त विश्वविद्यालय परिसर की बात कर रहे हैं, वहीं भोपाल का भोज विश्वविद्यालय आज भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है।
कुलपति जयंत सोनवलकर के पिछले 3 साल के कार्यकाल में हुये षड्यंत्र पूर्वक वित्तीय अनियमितता, रुपये के गबन और अधिकारों के दुरुपयोग के कई मामले सामने आये है।
कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन काल के दौरान राज्यपाल महोदय से ऑनलाइन शिक्षण कराने के निर्देश प्राप्त हुए तो इसकी आड़ लेकर भोज विश्वविद्यालय के कुलपति जयंत सोनवलकर ने अपने इष्ट मित्रों को करोड़ों का भुगतान कर व्याख्यान करा डाला, जबकि इन व्याख्यानों की रिकार्डेड सीडी पहले से ही विश्वविद्यालय में मौजूद थी।
इसके अलावा दिल्ली की एक फर्म से उन पाठ्य सामग्री को तैयार कराकर क्रय किया गया जो विश्वविद्यालय में पूर्व से ही उपलब्ध है। ये सामग्री मात्र मुद्रण खर्च पर ही तैयार कराई जा सकती थी। हाल ही में जब प्रबंध बोर्ड की बैठक में इस तथ्य को उठाया गया तो कुलपति ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर रिश्वत लेने का आरोप लगाए। जिसके बाद अधिकारी बैठक छोड़कर चले गए जोकि विश्वविद्यालय में रिश्वतखोरी का खुला प्रमाण है।
इसी बीच विश्वविद्यालय की ऑडिट रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि भोज मुक्त विश्वविद्यालय में वर्ष 2017 से 2020 के बीच दो निजी सुरक्षा एजेंसियों को खुली निविदा के बिना ही कार्यादेश जारी कर करोड़ों का अवैध भुगतान किया गया । इसके अलावा सुरक्षा कंपनी के संचालकों ने ईपीएफ खाते में सुरक्षाकर्मियों का पैसा जमा नहीं किया। यह जानकारी होते हुए भी विश्वविद्यालय नें सुरक्षा एजेंसियों को दो करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। यह सीधे तौर पर षडयंत्र पूर्वक भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन और आर्थिक गबन है। जबकि पूर्व में ऑडिट विभाग ने यह आपत्ति लगाकर भुगतान पर रोक लगा रखी थी कि जब तक कर्मचारियों के ईपीएफ की राशि खाते में जमा नहीं होती तब तक निजी सुरक्षा एजेंसी को भुगतान न किया जाए। पिछले छः वर्षों से आज भी लगभग 150 कर्मचारियों के ईपीएफ खाते में राशि जमा नहीं है। इतना ही नहीं सुरक्षा एजेंसी के संचालकों ने विश्वविद्यालय के सामने फर्जी चालान प्रस्तुत कर दिया, जिसमें उल्लेख था कि सुरक्षाकर्मियों के ईपीएफ का पैसा ईपीएफओ में जमा करा दिया गया है। उक्त चालान के बाद जब विश्वविद्यालय ने पता लगाया तो खुलासा हुआ की एजेंसी संचालकों ने ईपीएफ का पैसा जमा नहीं किया और फर्जी चालान विश्वविद्यालय के सामने प्रस्तुत किया है। आर्थिक गबन का मामला उजागर होने के बाद कुलपति जयंत सोनवलकर के कहने पर मामले को दबा दिया गया।
ज्ञात हो कि इसी प्रकार वर्ष 2004-05 में भोज विश्वविद्यालय में बिना खुली निविदा के 2.50 करोड़ की पुस्तकें क्रय करने पर तत्कालीन कुलपति को राज्यपाल नें पद से बर्खास्त कर दिया था और ईओडब्लू में प्रकरण दर्ज कराया गया था। इस प्रकरण में भुगतान करने वालों पर आज भी कार्यवाही चल रही है। साथ ही विश्वविद्यालय ने खुली निविदा में हेर फेर होनें के कारण इसकी कार्यवाही निरस्त कर दी थी। परंतु 8 निविदा फर्मों की धरोहर राशि के ड्राफ्ट आज तक वापिस नहीं किये गए है क्योंकि ये ड्राफ्ट पूर्व कुलपति द्वारा गुम दिए गए है। इस संबंध में कुछ कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।
अवैध नियुक्तियों का हुआ था पर्दाफाश
भोज विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जयंत सोनवलकर द्वारा की गई अवैध नियुक्तियों की एक-एक परत खुल कर सामने आ रही है। कुछ समय पहले विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय में जिन शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति में रोस्टर के उल्लघंन का हवाला देकर याचिका लगाई थी, उसी रोस्टर के आधार पर चुनाव आचार संहिता की अवधि सहित लगभग 50 अवैध नियुक्तियां कर दी गई । इसके अलावा जयंत सोनवलकर नें अपने चहेते मित्र इंदौर के चार्टेड एकाउंटेंट को 30 हजार मासिक वेतन में रखकर गुपचुप तरीके से 50 हजार की वेतन वृद्धि के आदेश भी जारी कर दिए। भोपाल में सैकड़ों चार्टेड अकाउंटेंट होते हुए भी इंदौर के अपने चहेते को बिना विज्ञापन के नियुक्ति देना खुला गबन था। इसके साथ ही कुलपति सोनवलकर नें अपने परिचित एक अयोग्य सलाहकार को बिना प्रशासनिक एवं वित्तीय अनुमति के स्वयं ही विज्ञापन निकालकर यूजीसी के अनुसार योग्यता न होने पर भी नियुक्ति दे दी। सलाहकार की मेरिट स्वयं कुलपति ने बनाई और सेलेक्शन कमेटी में भी वही थे।
पूर्व कुलपति के भ्रष्टाचार के मामलों को दबा कर बैठे रहे सोनवलकर
पूर्व कुलपति के कार्यकाल में हुए घोटालों (जैसे खुली निविदाओं में नियमों का उल्लघंन कर निजी फर्मों को दिए गये आदेश एवं उनके भुगतानों की जांच) को कुलपति जयंत सोनवलकर ने रफा-दफा कर दिया। इस जांच में पाया गया था कि विश्वविद्यालय द्वारा पूर्व वर्षों में 5 रुपये में मुद्रित कराई गई अंकसूची के 100 रुपये और 3 रुपये की उत्तरपुस्तिका के मुद्रण एवं आपूर्ति के लिए 100 रुपये का भुगतान किया गया था। इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों को खुली निविदा के बिना भुगतान करने सहित एलएलएम का पुनर्मूल्यांकन घोटाला और बीएड (विशेष शिक्षा) का मूल्यांकन घोटाला शामिल है।
स्कॉलरशिप घोटाला: हजम कर ली छात्रवृत्ति की रकम
भोज मुक्त विश्वविद्यालय में एससी-एसटी छात्रवृत्ति में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है। एससी,एसटी विद्यार्थियों के लिए प्राप्त अनुदान को एससी-एसटी के विद्यार्थियों को भुगतान न कर कूटरचित उपयोगिता प्रमाणपत्र विश्वविद्यालय द्वारा शासन को भेज दिया गया। छात्रवृत्ति की इस राशि से कुलपति निवास में ऐशो आराम की सामग्री क्रय करने की शिकायत के बावजूद आज तक शासन द्वारा कोई जांच नहीं कराई गई।
कुलपति निवास में लाखों रुपयों के ऐसे विलासिता के सामान मौजूद है जो कि नहीं होने चाहिए। ये सामान रिश्वत के तौर पर लेकर उपयोग की जा रही है। इसकी सत्यता स्टॉक रजिस्टर और कोई क्रय वाउचर न होने से प्रमाणित की जा सकती है। यह लाखों की रिश्वत पूर्व कुलपति कान्हेरे के कार्यमुक्त होनें और वर्तमान कुलपति के कार्यभार ग्रहण करते समय संयुक्त रूप से ली गई थी। इसके प्रमाण अनेकों जगह हैं। जिन फर्मों ने रिश्वत दी थी उनका काम न होने पर वे फर्में समान वापसी अथवा समान का भुगतान प्राप्त न होने पर कानूनी कार्यवाही करने चली गई ।
बिना सत्यापन के लाखों का भुगतान
विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध चल रहे अनियमित भुगतान अब कुलपति जायंत सोनवलकर को भारी पड़ रहे है। ऑडिट विभाग ने इस विषय पर कड़ी आपत्ति ली है कि एक मंत्री कार्यालय के फर्जी सत्यापन के आधार पर ग्वालियर की एक ट्रेवल एजेंसी को 8 लाख का अवैध भुगतान कैसे और किसके कहने पर कर दिया।
प्राप्त दस्तावेजों से यह भी ज्ञात हुआ है कि जैम पोर्टल से क्रय किये गए कम्प्यूटरों के बदले नकली कम्प्यूटरों का प्रयोग होने की जांच भी रिश्वत लेकर रफ-दफा कर दी गई है। इसका प्रमाण जीरापुर के एक भौतिकी के लेक्चरर के फर्जी सत्यापन से हुआ है।
भोज विवि और ‘स्कूल गुरु’ का एमओयू अवैध
हाल ही में बिहार के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में स्कूल गुरु के साथ किया गया अनुबंध बिना खुली निविदा के कारण (स्कूल गुरु की एक ही निविदा होनें के कारण) निरस्त किया गया और स्कूल गुरु द्वारा कुलपति के निर्देश पर विद्यार्थियों से जबरिया वसूल की गई राशि वापस की गई। राज्यपाल द्वारा कराई गई जांच में कुलपति एवं सहयोगियों को दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया गया था। परंतु ऐसा ही अवैध अनुबंध मध्यप्रदेश के भोज विश्वविद्यालय और स्कूल गुरु के बीच हुआ। जिसकी शिकायत उच्च शिक्षा विभाग में होनें पर भी न तो आज तक जांच हुई और न ही दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही।
प्रबंध बोर्ड, वित्त समिति और उच्च शिक्षा विभाग के सुझावों को नहीं मानते कुलपति
प्रबंध बोर्ड और वित्त समिति को दरकिनार कर जयंत सोनवलकर अनाधिकृत निर्णय लेकर करोड़ों के अवैध भुगतान किए जा रहे है। कुलपति अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर शासन से प्रतिनियुक्ति पर आए तीन प्राध्यापकों का शासन द्वारा दो बार स्थानांतरण आदेश जारी होनें पर भी उनको आज तक कार्यमुक्त नहीं किया है। विश्वविद्यालय में शासन द्वारा नियुक्त दो कुलसचिव होने के बावजूद प्रतिनियुक्ति पर आये इन तीन प्राध्यापकों को परीक्षा नियंत्रक, प्रिंटिंग विभाग सहित भंडार विभाग आदि जैसे मलाईदार पद दे दिए गए ।
विश्वविद्यालय की पुताई का 1 करोड़ 80 लाख का ठेका प्रबंध बोर्ड द्वारा पीडब्लूडी से करने के निर्णय के बावजूद कुलपति नें अपने मित्र ऊर्जा विकास निगम के इंजीनियर से कम सेवा शुल्क का प्रस्ताव मंगाकर ये काम बीडीए से करने का आदेश दिया है, जबकि ये कार्य पिछले वर्ष में 60 लाख में कराया गया है।
चहेतों को दोगुना वेतनमान
जयंत सोनवलकर के राज में उनके चहेते कम्प्यूटर ऑपरेटरों को दुगना वेतनमान दिया जा रहा जबकि अन्य कम्प्यूटर ऑपरेटरों को शासकीय वेतनमान देकर दोहरी नीति अपनाई जा रही है और इनके बदले रिश्वत ली जा रही है।
कुलपति ने अपने बेटे की कंपनी को पहुंचाया लाभ,कोरोना संकट में भी चालू रहा भ्रष्टाचार
कुलपति जायंत सोनवलकर नें इंदौर स्थित अपने पुत्रों की मूल कंपनी से लाखों रुपये के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्रय कर भंडार नियमों का उल्लंघन किया । इसके अलावा हाल ही में लाखों रुपये की सामग्री बिना जैम पोर्टल के क्रय की गई है, जिसमे कोविड 19 की सुरक्षा सामग्री भी शामिल है। इनमें हजारों रुपये के सेनेटाइजर के नाम पर फर्जी बिलों का भुगतान का मामला सामने आया है। साथ ही मीडिया रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि विश्वविद्यालय के आवासों एवं अतिथि गृह में चहेतों को निःशुल्क आवास व्यवस्था कराकर कुलपति सोनवलकर ने शासकीय धन का गबन किया गया।
सोनवलकर के कहने पर डीएविवि नें विज्ञान भारती को भेजा था 45 लाख का बिल
वर्तमान कुलपति जयंत सोनवलकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी है, इनको कांग्रेसी राज्यपाल के समय भी कांग्रेसी नेताओं द्वारा कुलपति बनाने की अनुशंसाएं की गई थीं। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में रहते हुए वहां के पूर्व कांग्रेसी कुलपति अजीतसिंह के खास रहे जयंत सोनवलकर के कहने पर ही कुलपति ने वर्ष 2009 में विज्ञान भारती के “भारतीय विज्ञान सम्मेलन” को कराने से साफ इनकार कर दिया था। हालांकि बाद में सरकार के आदेश के बाद कार्यक्रम देवी अहिल्या विवि में ही हुआ। सम्मेलन के बाद कुलपति प्रो. सेहरावत ने जयंत सोनवलकर की सलाह पर विज्ञान भारती को 45 लाख रुपए का बिल भी भिजवाया था।
वहीं वर्ष 2010 में जयंत सोनवलकर के कहने पर तात्कालिक कुलपति अजीतसिंह सेहरावत नें विवि परिसर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का निःशुल्क कार्यक्रम कराया था। इसके कुछ माह बाद ही बीजेपी सरकार द्वारा धारा 52 लगाने के पहले कुलपति सेहरावत नें पद से इस्तीफा दे दिया था। परंतु जयंत सोनवलकर के रिश्ते ग्वालियर और भोपाल स्थित आरएसएस पदाधिकारियों से होने के कारण उन पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी थी।
कांग्रेस सरकार में सोनवलकर जमकर किया गबन और भ्रष्टाचार
प्रदेश में कमलनाध सरकार के सत्तासीन होते ही कांग्रेस सरकार में कुलपति जयंत सोनवलकर की अच्छी घुसपैठ रही। इसी कारण से भाजपाई राज्यपाल द्वारा बनाये गए कुलपति सोनवलकर को इतने घोटाले होने के बावजूद भी पद से नहीं हटाया गया। कांग्रेसी नेताओं के मार्गदर्शन में जयंत सोनवलकर ने भरपूर रिश्वतखोरी की जिसमें अवैध नियुक्तियां, रुके हुए अवैध भुगतान और टेंडर कार्यवाही की कूटरचना शामिल है।
भ्रष्टाचार से बचने अपने रिश्तेदारों के किया उपयोग
भ्रष्टाचार के कारण भविष्य में सरकार या राजभवन द्वारा कोई कार्यवाही न हो इससे बचने के लिए कुलपति जयंत सोनवलकर नें अपने ग्वालियर और भोपाल के आरएसएस से जुड़े रिश्तेदारों के उपयोग करके भारतीय शिक्षण मंडल में प्रांत उपाध्यक्ष बन गया।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति मामले में थी प्रमुख भूमिका
कांग्रेस शासनकाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रिकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बी. के. कुठियाला पर ईओडब्लू में केस रजिस्टर कराने में भी जयंत सोनवलकर की प्रमुख भूमिका रही । कुठियाला के खिलाफ ईओडब्लू में केस रजिस्टर होनें से पहले जयंत सोनवलकर के कांग्रेसी मित्रों ने सलाह ली थी।
पिछले दो वर्षों में कुलपति जयंत सोनवलकर नें किया लगभग 6 करोड़ का ईपीएफ और कर्मचारी बीमा का आर्थिक गबन
पिछले दो वर्षों से भोज विश्वविद्यालय में किये जा रहे आर्थिक घोटालों में 6 करोड़ का सुरक्षा एजेंसी घोटाला सामने आया है। विवि में कार्यरत लगभग 150 कर्मचारियों के हाथों में निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ईपीएफ और कर्मचारी बीमा राशि जमा नही करने पर भी सुरक्षा एजेंसियों को अवैध भुगतान कर दिया। जबकि पिछले पांच वर्षों के ऑडिट प्रतिवेदनों में अभी ये आपत्ति यथावत है कि कर्मचारियों के इन खातों में राशि जमा न होने पर निजी सुरक्षा एजेंसियों को भुगतान न किया जाए। परंतु रिश्वतखोरी के आधार पर निजी सुरक्षा एजेंसियों को रोकी गई राशि भुगतान की गई है। ये घोटाला पिछले पांच वर्षों में जिन कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान अकश्मिक मौतें और कुछ कर्मचारियों को गंभीर बीमारियां होने के कारण उनको ईएसआईसी द्वारा कोई बीमा राशि नहीं दी और इन कमर्चारियों के बीमा खातों में कोई राशि जमा होना ही नहीं पाई गई।
विश्वविद्यालय में कार्यरत एवं सेवा से बाहर किये गए कर्मचारियों ने कोरोना के दौरान आर्थिक तंगी के चलते जब ईपीएफ राशि प्राप्त करना चाही तो उनके खातों में ये राशि जमा ही नहीं पाई गई।
नियमानुसार भोज विश्वविद्यालय द्वारा इन निजी सुरक्षा एजेंसियों से किये गये अनुबंध में ये शर्त अनिवार्य थी कि निजी सुरक्षा एजेंसी अपने द्वारा उपलब्ध कराए गए कर्मचारियों को कलेक्टर दर से उनके बैंक खातों में वेतन राशि और 25.61% राशि उनके ईपीएफ खातों में और 2%राशि उनके बीमा खातों में जमा करेगी इन भुगतान की रशीदों के साथ प्रस्तुत देयकों पर भुगतान किया जाएगा । परंतु इन अभिलेखों की अनुपलब्धता के कारण ऑडिट द्वारा करोड़ों के भुगतान रोक दिए गए थे क्योंकि निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अनुबंध होनें के एक दो माह तक तो उक्त राशियां भुगतान की गई। परंतु कर्मचारियों को वेतन भुगतान उनके बैंक खातों में न करके निर्धारित राशि से कम राशियों का भुगतान किया गया और प्राप्त रशीद लगभग दुगनी राशि की प्राप्त की गई।
ये भी ज्ञातव्य है कि वर्ष 2017 से 19 के मध्य कई निजी सुरक्षा एजेंसियों को बिना खुली निविदा के करोड़ों का भुगतान किया गया। वर्ष 2018 में जिस खुली निविदा द्वारा सुरक्षा एजेंसी का चयन किया जाना था उसकी विज्ञापित धरोहर राशि 15 लाख से कुलपति द्वारा डेढ लाख कर दी गई थी और अन्य निविदाकारों की धरोहर राशि के बैंक ड्राफ्ट गुमा दिए गए थे इस संबंध में एक कनिष्ठ कर्मचारी पर आरोप लगाकर निलंबित किया जाता उसके पूर्व ही एक अन्य निविदाकार के उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने पर उक्त कार्यवाही निरस्त हो गई। और कुलपति ने बिना खुली निविदा के ही किसी अपनी परिचित निजी सुरक्षा एजेंसी को आदेश दे दिया।
भुगतान के समय निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उक्त ईपीएफ राशि बैंक चालान से ईपीएफ कार्यालय में जमा होना बताया गया है।जबकि ईपीएफ कार्यालय द्वारा ऐसी कोई राशि ईपीएफ कार्यालय में जमा नही होनें से कर्मचारियों के खातें में जमा नही होना बताया गया । अतः निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जमा कराई गई राशि के अभिलेखों की प्रमाणिकता कुलपति अथवा उनके सहयोगी अधिकारियों और भुगतान पारित करने वाले ऑडिट सम्परिक्षकों नें किस तरह कराई ये भविष्य के गर्त में है।
इन अनियमितताओं के संबंध में विश्वविद्यालय प्रबंध बोर्ड की स्वीकृति बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। यदि उक्त प्रकरणों की जांच हो जाये तो आर्थिक अनियमितताएं और रिश्वतखोरी स्वतः सामनें आ जाएंगी। उक्त घोटालों की जांच कुलपति सोनवलकर द्वारा रिश्वत कें अलावा और कोई आधार पर नही रोकी जा सकती।
भोज विवि में फर्जी प्रतिनुक्ति के पद पर नियमित संस्कृत से पढ़ा पंडित सनद पांडेय को बनाया लेखपाल।
1, इस मामले में कुलपति ने की फर्जी पोस्टिंग
2 बनाया गया लेखापाल पर महिला से छेड़छाड़ के आरोप में थाना चूनाभट्टी में प्रकरण दर्ज हैं, चालन की कार्यबाही लम्बित हैं।
3 जिस विषय में योग्यता नही उसमे कार्य करने की मंजूरी कुलपति ने दी ।
4 कार्यमुक्त को कैसे बनाया लेखपाल इस बारे में गंभीर जांच सामने आई।
5 लेखापाल विशाल की हटाने का कारण कुलपति के काले भुकतान नही हो रहे थे
6 विशाल 20 साल से एक ही पद पर लेखपाल था।
7 प्रतिनुक्ति के पद और नियमित जॉच, रोस्टर का खुला उल्लंघन किया गया हैं
8 नियुक्त लेखापाल की प्रथम नियुक्ति फर्जी चपरासी पद पर थी, लिपिक कैसे बना, अब लेखपाल बना दिया गया ।
9 विवि में है 300 करोड की एफ डी है।