नई दिल्ली 1 नवम्बर । गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार तेजी है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों के लिए ही यह चुनाव खास महत्व रखता है। एक ओर भाजपा जहां पिछले 22 सालों (1995) से जारी अपना राज जारी रखना चाहती है, वहीं कांग्रेस इस मौके को किसी भी तरीके से खोना नहीं चाहती है। उसे लगता है कि भाजपा को हराने का यह बेहतरीन मौका है। जाहिर है, ऐसे में राज्य में सबसे ज्यादा ध्यान पटेल समुदाय पर हो गया है।
गुजरात में पटेल सबसे अहम समुदाय है। लगभग 20 प्रतिशत वोटर इस समुदाय से आते हैं। पटेल को भाजपा का समर्थक माना जाता है। लेकिन हाल में हार्दिक पटेल ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पास) के जरिए इस समीकरण को बदलने की कोशिश की है। हार्दिक पटेल समुदाय के लिए आरक्षण चाहते हैं। उनका मानना है कि छोटे और मंझोले उद्योगों में आई मंदी और बंदी के कारण उनके समुदाय को नौकरी नहीं मिल रही है। युवा काफी संख्या में बेरोजगार हो रहे हैं। वे शहरों से गांवों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं।
हार्दिक का तर्क है कि गांवों में भी अच्छी स्थिति नहीं है। गांवों की जमीनों को बड़े-बड़े उद्योगपति ले रहे हैं। इसलिए खेती के लिए भी जमीन घट रही है। ऐसे में पटेल युवाओं को आरक्षण नहीं मिला, तो वे भूखे मर जाएंगे। यही वजह है कि हार्दिक 2015 से ही अपने समुदाय को आरक्षण दिलाने के नाम पर आंदोलनरत हैं।
हार्दिक ने सार्वजनिक मंचों से घोषणा कर रखी है कि वे भाजपा को हराना चाहते हैं। हालांकि, खुलकर उन्होंने यह कभी नहीं कहा है कि वे कांग्रेस को समर्थन करते हैं। लेकिन गुजरात में मुख्य रूप से दो ही पार्टियां हैं, लिहाजा इसका क्या अर्थ हो सकता है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
वैसे, पटेल समुदाय को आरक्षण मिलेगा, इस विषय पर कांग्रेस भी चुप है। दरअसल, कांग्रेस जैसे ही आरक्षण की घोषणा करेगी, तो ओबीसी समुदाय बिदक सकता है। राज्य में 40 फीसदी ओबीसी हैं। आरक्षण जब भी मिलेगा, तो ओबीसी के कोटे से ही मिल सकता है। और ओबीसी समुदाय इसके लिए तैयार नहीं है।
राज्य में अभी ओबीसी रिजर्वेशन 27 प्रतिशत है। ओबीसी में कुल 146 कम्युनिटी सूचीबद्ध हैं।भारतीय जनता पार्टी के 40 विधायक और छह सांसद पटेल समुदाय से हैं।
यहां यह जानना जरूरी है कि मोदी से नाराज केशुभाई पटेल ने भाजपा से विद्रोह कर गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) बनाई थी। उन्हें लगा था कि गुजरात में पटेल समुदाय ही राज्य का नेतृत्व कर सकता है। मोदी पटेल समुदाय से नहीं आते हैं। लेकिन उन्हें 4 फीसदी से भी कम वोट मिले थे। दो सीटें विधानसभा में मिली थीं। बाद में वे फिर से भाजपा में शामिल हो गए।
70-80 के दशक में कांग्रेस सरकार ने आरक्षण को लेकर बड़ी राजनीति की थी। तब के सीएम माधव सिंह सोलंकी और कांग्रेस अध्यक्ष जीनाभाई दोरजी ने खाम (केएचएएम यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) की परिसंकल्पना की। उन्हें एक मंच पर लाया। तब इनका मुख्य जनाधार यही होता था। पटेल समुदाय अब तक कांग्रेस का पक्का समर्थक था।
लेकिन खाम समीकरण बनते ही पटेल समुदाय नाराज हो गया। तब से पटेल भाजपा के साथ रहा है। संभवतः यह पहली बार होगा, यदि पटेल समुदाय कोई और निर्णय लेता है। वैसे, पूरा समुदाय एक मुश्त वोट देगा, इसके बारे में कोई भी कुछ नहीं कह सकता है।attacknews
पीएम ने सूरत में रोड शो किया था। सूरत पटेल का गढ़ माना जाता है। 400 करोड़ की लागत से मल्टी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का उद्घाटन किया था। यह हॉस्पिटल पटेस समुदाय के ट्रस्ट से जुड़ा है।
आरक्षण को लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। पार्टी ने पूछा है कि वह कैसे आरक्षण देगी इसका खुलासा करे। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर से भाजपा ने पूछा है कि क्या वह अपने समुदाय के लिए आरक्षण की सीमा कम करने के लिए तैयार है। पीएम मोदी बार-बार सरदार पटेल का जिक्र कर भावना को कुरेद रहे हैं।
गुजरात में 7 फीसदी दलित, 11 फीसदी आदिवासी, 9 फीसदी मुस्लिम और 5 फीसदी में सामान्य जाति के ब्राह्मण, बनिया और अन्य जातियां शामिल हैं।