कोलंबो, 17 नवंबर ।श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में विजेता बने गोटबाया राजपक्षे वह व्यक्ति हैं जिन्हें ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (एलटीटीई) के साथ तीन दशक से चल रहे गृहयुद्ध को निर्दयतापूर्ण तरीके से खत्म करने का श्रेय जाता है। गोटबाया की द्विपीय देश में विवादित एवं नायक दोनों की छवि है।
बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध उन्हें ‘युद्ध नायक’ मानते हैं वहीं अधिकतर तमिल अल्पसंख्यक उन्हें अविश्वास की नजर से देखते हैं।
गोटबाया 70 वर्षीय नेता हैं जिन्होंने 1980 के दशक में भारत के पूर्वोत्तर स्थित ‘काउंटर इंसर्जेंसी एंड जंगल वारफेयर स्कूल’ में प्रशिक्षण लिया था। बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति रहने के दौरान उन्होंने वर्ष 2005 से 2014 में रक्षा सचिव की जिम्मेदारी निभाई थी।
वर्ष 1983 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। गोटबाया वर्ष 2012 और 2013 में रक्षा सचिव रहते भारत के दौरे पर आए थे।
तमिल मूल के परिवार जिनके अपने गृहयुद्ध के दौरान मारे गए या लापता हो गए हैं वे गोटबाया पर युद्ध अपराध का आरोप लगाते हैं। सिंहली बौद्धों में गोटबाया की लोकप्रियता से मुस्लिम भी डरे हैं। उन्हें आशंका है कि ईस्टर के मौके पर इस्लामी आतंकवादियों के गिरजाघरों पर किए गए हमले के बाद दोनों समुदायों में पैदा हुई खाई और चौड़ी होगी।
हिंदू और मुस्लिम की संयुक्त रूप से श्रीलंका की कुल आबादी में 20 फीसदी हिस्सेदारी है।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी)का प्रत्याशी नामित होने के बाद अक्टूबर में पहली बार मीडिया से बातचीत करते हुए गोटबाया ने कहा था कि अगर वह जीतते हैं तो युद्ध समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (यूएनएचआरसी) के समक्ष जताई गई प्रतिबद्धता या मेलमिलाप का सम्मान नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘हम संयुक्त राष्ट्र के साथ हमेशा काम करेंगे लेकिन पिछली सरकार के दौरान उनके (संयुक्त राष्ट्र) के साथ किए गए करार का सम्मान नहीं करेंगे।’’
उल्लेखनीय है कि सितंबर 2015 में यूएनएचआरसी की ओर से पारित प्रस्ताव का श्रीलंका सह प्रायोजक है जिसमें मानवाधिकार, जवादेही और परिवर्ती न्याय को लेकर प्रतिबद्धता जताई गई है। 47 सदस्यीय परिषद् में भारत सहित 25 देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया।
गोटबाया पर उनकी देखरेख में नागरिकों और विद्रोही तमिलों को यातना दिये जाने और अंधाधुध हत्या तथा बाद में राजनीतिक हत्याओं को अंजाम दिये जाने आरोप है।
एलटीटीई के निशाने पर रहे गोटबाया 2006 में संगठन के आत्मघाती हमले में बाल-बाल बचे थे। माना जाता है कि उनका झुकाव चीन की ओर अधिक है। गोटबाया के भाई के शासन में चीन ने बड़े पैमाने पर श्रीलंका की आधारभूत परियोजनाओं में निवेश किया था।
चुनाव से पहले विपक्षी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी)ने गोटबाया पर अमेरिकी नागरिकता रखने का आरोप लगाया था और दावा किया था कि उन्होंने दस साल तक अमेरिका में निवास किया है। इसपर गोटबाया ने सफाई दी कि चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने इस साल अमेरिका की दोहरी नागरिकता छोड़ दी थी। उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर में उनकी नागरिकता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी और सारे आरोपों से उन्हें बरी कर दिया था।
गोटबाया का जन्म 20 जून 1949 में मतारा जिले के पलाटुवा में एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार में हुआ था। वह नौ भाई बहनों में पांचवें स्थान पर हैं। उनके पिता डी ए राजपक्षे 1960 के दशक में विजयानंद दहानायके सरकार में प्रमुख नेता थे और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के संस्थापक सदस्य थे।
गोटबाया ने अपनी स्कूली पढ़ाई आनंद कॉलेज, कोलंबो से पूरी की और 1992 में कोलंबो विश्वविद्यालय से सूचना प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। वह वर्ष 1971 में सीलोन (श्रीलंका का पुराना नाम) सेना में अधिकारी कैडेट के रूप में शामिल हुए। वर्ष 1991 में गोटबाया सर जॉन कोटेलवाला रक्षा अकादमी के उप कमांडेंट नियुक्त किए और 1992 में सेना से सेवानिवृत्त होने तक इस पद पर बने रहे।
अपने 20 वर्ष के सैन्य सेवाकाल में गोटबाया ने तीन राष्ट्रपतियों जे आर जयवर्धने, रणसिंघे प्रेमदासा और डीबी विजेतुंगा से वीरता पुरस्कार हासिल किया।
सेवानिवृत्ति के बाद गोटबाया ने कोलंबो विश्वविद्यालय से सूचना प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा की पढ़ाई की। उसके बाद वह कोलंबो की कंपनी से मार्केटिंग प्रबंधक के तौर जुड़े। वर्ष 1998 में वह अमेरिका चले गए और वहां पर सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवर के तौर पर लॉस एंजिलिस स्थित लोयला लॉ स्कूल में काम किया।
गोटबाया वर्ष 2005 में भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में मदद करने के लिए स्वदेश लौटे और श्रीलंका की दोहरी नागरिकता ली।
गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की: आधिकारिक परिणाम
श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान विवादित रक्षा सचिव रहे गोटबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की। उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार सजीत प्रेमदास को 13 लाख से अधिक मतों से पराजित किया।
गोटबाया की जीत राजपक्षे परिवार को फिर से देश की सत्ता में ले आई है।
आधिकारिक परिणामों के अनुसार राजपक्षे को 52.25 प्रतिशत (6,924,255) मत मिले जबकि प्रेमदास को 41.99 प्रतिशत (5,564,239) वोट प्राप्त हुए।
चुनाव आयोग ने बताया कि अन्य उम्मीदवारों को 5.76 प्रतिशत वोट मिले।
राजपक्षे (70) ने अपने समर्थकों से शांतिपूर्ण ढंग से जीत का जश्न मनाने की अपील की है।
प्रेमदास (52) ने निर्वाचन सचिवालय की ओर से परिणाम की आधिकारिक घोषणा से भी पहले चुनाव में हार स्वीकार करते हुए यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के उपनेता के पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया था।
श्रीलंका में इस चुनाव से सात महीने पहले हुए आत्मघाती बम हमलों में 269 लोगों की मौत हो गई थी। इससे पर्यटन उद्योग को भी खासा नुकसान हुआ था। इस हमले ने देश में सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए थे।
राष्ट्रपति पद के चुनाव में प्रेमदास ने राजपक्षे से हार स्वीकार की
श्रीलंका की सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार सजीत प्रेमदास ने देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली और अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी एवं पूर्व रक्षा सचिव गोटबाया राजपक्षे को बधाई दी।
प्रेमदास ने कहा, ‘‘लोगों के निर्णय का सम्मान करना और श्रीलंका के सातवें राष्ट्रपति के तौर पर चुने जाने के लिए गोटबाया राजपक्षे को बधाई देना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।’’
प्रेमदास के बयान से पूर्व राजपक्षे के प्रवक्ता ने चुनाव परिणाम की आधिकारिक घोषणा से पहले दावा किया कि 70 वर्षीय सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल ने शनिवार को हुए चुनाव में जीत दर्ज की।