नयी दिल्ली, 20 मई । विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख गतिरोध का जिक्र करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि भारत और चीन के संबंध चौराहे पर हैं और इसकी दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि क्या पड़ोसी देश सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये विभिन्न समझौतों को पालन करता है।
जयशंकर ने कहा कि 1962 के संघर्ष के 26 वर्ष बाद 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए थे ताकि सीमा पर स्थिरता को लेकर सहमति बन सके । इसके बाद 1993 और 1996 में सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये दो महत्वपूर्ण समझौते हुए ।
समाचार पत्र फाइनेंशियल एक्सप्रेस और इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा पर स्थिरता के मद्देनजर कई क्षेत्रों में संबंधों में विस्तार हुआ लेकिन पूर्वी लद्दाख की घटना ने इस पर प्रतिकूल प्रभाव डाला ।
वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि क्षेत्र में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया जल्द पूरी होनी चाहिए तथा सीमावर्ती इलाकों में पूर्ण रूप से शांति बहाली से ही द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है ।
गौरतलब है कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच पैंगोंग सो इलाके में पिछले वर्ष हिंसक संघर्ष के बाद सीमा गतिरोध उत्पन्न हो गया था। इसके बाद दोनों पक्षों ने हजारों सैनिकों एवं भारी हथियारों की तैनाती की थी। सैन्य एवं राजनयिक स्तर की वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने इस वर्ष फरवरी में पैंगोंग सो के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से सैनिकों एवं हथियारों को पीछे हटा लिया था।
इस बीच, विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ मैं समझता हूं कि संबंध चौराहे पर हैं और इसकी दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या चीनी पक्ष सहमति का पालन करता है, क्या वह हमारे बीच हुए समझौतों का पालन करता है । पिछले वर्ष यह स्पष्ट हो गया कि अन्य क्षेत्रों में सहयोग, सीमा पर तनाव के साथ जारी नहीं रह सकता है । ’’
चीन द्वारा क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने एवं दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा के बारे में एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, ‘‘भारत प्रतिस्पर्धा करने को तैयार है और हमारी अंतर्निहित ताकत और प्रभाव है जो हिन्द प्रशांत से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक है । ’’
उन्होंने कहा, ‘‘ प्रतिस्पर्धा करना एक बात है लेकिन सीमा पर हिंसा करना दूसरी बात है । ’’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ मैं प्रतिस्पर्धा करने को तैयार हूं । यह मेरे लिये मुद्दा नहीं है । मेरे लिये मुद्दा यह है कि मैं संबंधों को किस आधार पर व्यवस्थित रखूं जब एक पक्ष इसका उल्लंघन कर रहा है।’’
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध 1980 और 1990 के दौरान सीमा पर स्थिरता के आधार पर संचालित रहे ।
जयशंकर ने कहा, ‘‘मेरे पास इस समय कोई स्पष्ट जवाब नहीं है लेकिन 1962 के संघर्ष के 26 वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए थे । 1988 में एक तरह की सहमति बनी जिससे सीमा पर स्थिरता कायम हुई ।’’
उन्होंने कहा कि इसके बाद 1993 और 1996 में सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये दो महत्वपूर्ण समझौते हुए ।
विदेश मंत्री ने कहा कि इस समझौतों में यह कहा गया था कि आप सीमा पर बड़ी सेना नहीं लायेंगे और वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान किया जायेगा और इसे बदलने का प्रयास नहीं होगा । लेकिन पिछले वर्ष चीन वास्तव में 1988 की सहमति से पीछे हट गया ।
उन्होंने कहा कि अगर सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं होगी तब निश्चित तौर पर इसका संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा ।
वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस वर्ष शुरू की गयी सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया के बारे में 30 अप्रैल को अपने चीनी समकक्ष के साथ चर्चा की थी और यह बताया था कि यह प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है तथा यह जरूरी है कि इसे जल्द पूरा किया जाना चाहिए ।
बागची ने कहा, ‘‘ इस संदर्भ में यह सहमति बनी कि वे जमीन पर स्थिरता बनाये रखेंगे और किसी नयी घटना से बचेंगे । ’’
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा,‘‘ हमें उम्मीद है कि कोई भी पक्ष ऐसा कोई कदम नहीं उठायेगा, जो इस समझ के अनुरूप नहीं हो ।’’
उन्होंने कहा कि सीमावर्ती इलाकों में पूर्ण रूप से शांति बहाली से ही द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति सुनिश्चित की जा सकती।