नयी दिल्ली,15 जनवरी । तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी दर्जा देने की मांग को लेकर किसान संगठनों और सरकार के बीच शुक्रवार को हुई नौंवे दौर की बातचीत में भी कोई निर्णय नहीं हो सका।
लगभग पांच घंटे तक चली बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आज की वार्ता निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंची। सरकार खुले मन से किसानों की समस्याओं पर बातचीत करना चाहती है और उन्हें उम्मीद है कि किसान संगठन बातचीत को आगे बढ़ाएंगे।
उन्होंने कहा कि बैठक साैहार्दपूर्ण माहौल में हुई और उन्हें उम्मीद है कि किसान आंदोलन समाप्त करेंगे। इस समय पड़ रही कड़ाके की ठंड को लेकर सरकार अधिक चिंतित है।
श्री तोमर ने किसानों की समस्याओं को लेकर गठित समिति के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि समिति यदि सरकार को बुलाएगी तो वह अपना पक्ष वहां रखेगी।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय सर्वाेच्च न्यायिक संस्था है और उसके प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। किसानों और सरकार के बीच अगली बैठक 19 जनवरी को होगी।
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि किसानों की समस्याओं को लेकर दो-तीन राज्यों के किसान आंदोलन कर रहे हैं। वह इन आंदोलनकारियों को किसानों का प्रतिनिधि मानते हैं और इसी को ध्यान में रख कर वार्ता की जा रही है।
उन्होंने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि कांग्रेस ने वर्ष 2019 के चुनावी घोषणापत्र में कृषि सुधार की बात कही थी और उसे अपने रुख पर कायम रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि न्यायालय के आदेश का सभी को सम्मान करना चाहिए।
किसान नेताओं ने बताया कि सरकार तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है। किसान नेता हन्नान मोल्ला ने सरकार और किसान संगठनों के बीच आज हुई बातचीत को समय नष्ट करने वाला बताया और कहा कि बैठक में कोई ठाेस निर्णय नहीं हो सका। सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है और वह कृषि सुधार कानूनों में संशोधन पर जोर दे रही है, जबकि किसान इन कानूनों को वापस लेने की अपनी मंशा बार-बार जता चुके हैं।
श्री मोल्ला ने कहा कि सरकार के साथ हो रही बातचीत से किसान संगठनों को कोई उम्मीद नहीं है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की ओर से समस्याओं के समधान को लेकर गठित समिति के संबंध में बैठक के दौरान कोई बातचीत नहीं हुई।
किसान नेता दर्शनपाल ने भी बैठक को निरर्थक बताया और कहा कि यह भी बेनतीजा रही। एक अन्य किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति के समक्ष नहीं जाएंगे और सरकार के साथ बातचीत करेंगे।
उन्होंने कहा कि किसान तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिए जाने की अपनी मांग पर अडिग हैं। किसान संगठन पिछले 51 दिनों से राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने अपने आंदोलन को और तेज करने की घोषणा की है।
कृषि कानूनों पर किसान यूनियनों के साथ केंद्रीय मंत्रियों की नौवें दौर की वार्ता हुई शुरू
तीन नये कृषि कानूनों पर एक महीने से अधिक समय से जारी गतिरोध को दूर करने के लिए प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच नौंवे दौर की वार्ता शुक्रवार को दोपहर में शुरू हुई।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य एवं खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री तथा पंजाब से सांसद सोम प्रकाश करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विज्ञान भवन में यह वार्ता शुरू हुई ।
इससे पहले, आठ जनवरी को हुई वार्ता बेनतीजा रही थी । पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं के पास पिछले एक महीने से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं ।
बृहस्पतिवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि किसान यूनियनों के साथ सरकार की नौवें दौर की वार्ता निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होगी और केंद्र सरकार को सकारात्मक चर्चा की उम्मीद है ।
तोमर ने संवाददाताओं से कहा था, ‘‘सरकार, किसान नेताओं के साथ खुले मन से बातचीत करने को तैयार है । ’’ इससे पहले 11 जनवरी को उच्चतम न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी । शीर्ष अदालत ने इस मामले में गतिरोध को समाप्त करने के लिये चार सदस्यीय समितिका गठन किया था । हालांकि, समिति के सदस्य और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान ने समिति से अपने को अलग कर लिया था ।
आठ जनवरी की बैठक में कोई नतीजा नहीं निकल सका था क्योंकि केंद्र सरकार ने तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया और दावा किया कि इन सुधारों को देशव्यापी समर्थन प्राप्त है । वहीं किसान नेताओं ने कहा कि वह अंत तक लड़ाई के लिये तैयार है और कानूनी वापसी के बिना घर वापसी नहीं होगी ।
किसान संगठनों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में दो मांगों पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और बिजली पर सब्सिडी जारी रखने को लेकर सहमति बनी थी। ।