नयी दिल्ली 30 अक्टूबर । भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी के संबंधों का हवाला देते हुए विशेषज्ञों ने दोनों देशों से सीमा विवाद सहित अन्य मतभेदों को बातचीत के जरिये जल्द दूर कर संबंधों में सकारात्मक बदलाव लाने को कहा है।
दोनों देशों के विशेषज्ञों ने ‘नेपाल-भारत सामरिक समरूपता: साझेदारी को प्रगाढ बनाना’ विषय पर एक सामाजिक संस्थान द्वारा यहां आयोजित एक वेबिनार में ये विचार व्यक्त किये।
सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल शोकिन चौहान ने कहा कि भारत और नेपाल का इतिहास , भूगोल , संस्कृति और पानी एक समान है। सैन्य कूटनीति को द्विपक्षीय संबंधों की रीढ करार देते हुए उन्होंने कहा कि 1950 में कम्युनिस्ट चीन ने जब नेपाल की संप्रभुता पर निशाना साधते हुए उससे ‘मेनलैंड’में शामिल होने के लिए कहा तो भारतीय सेना ने नेपाली सेना को पुनगर्ठित करने में मदद की थी।
नेपाल दूतावास में रक्षा अताची रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल चौहान ने कहा ,“आप भले ही किसी भी रूप में हैं दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक ही भावना है। नेपाल में एक लाख 28 हजार सैन्य पेंशनधारी हैं जो देश की आबादी का बड़ा हिस्सा है। ”
उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की आगामी नेपाल यात्रा का सभी को उत्सुकता से इंतजार है क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधों पर ध्यान केन्द्रीत होता है।
दोनों देशों की ‘समान नियति’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल को भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है और इन चिंताओं का समाधान किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर यह कहना चाहिए , “ हम दोनों देशों को साथ रहने की जरूरत है। ”
नेपाल सरकार में मंत्री रह चुके और मौजूदा संसद के सदस्य डा मिनेन्द्र रिजल ने कहा कि भले ही नेपाल भारत और चीन दोनों से छोटा देश है लेकिन उसे अपने राजनयिक निर्णयों के परिणामों की समझ है।
उन्होंने माना कि भारत और नेपाल के बीच विशेष, गहरे और अथाह संबंध हैं जो बहुत कम देशों के बीच देखने को मिलेंगे।
भारत के आर्थिक विकास के बारे में नेपाल के दृष्टिकोण को रखते हुए उन्होंने कहा, “ भारत की आबादी नेपाल से 40 गुना अधिक है और इसकी अर्थव्यवस्था नेपाल की अर्थव्यवस्था से सौ गुना बड़ी है। आने वाले 20 से 25 वर्षों में भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। हमें इन तथ्यों का पता है। ”
उन्होंने कहा कि भविष्य में नेपाल निश्चित रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण साझीदार बन सकता है। दोनों देशों द्वारा जल संसाधान के प्रबंधन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। भारत नेपाल में पनबिजली से बहुत अधिक लाभ उठा सकता है। नेपाल की मदद से उत्तर भारत में पानी की कमी से निपटा जा सकता है।
लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी के बारे में उन्होंने कहा कि हमें अपने दावों के बारे में अच्छी तरह से पता है और पिछले 20 से 25 वर्षों में इसकी पहचान की गयी है। दोनों देश मिलकर बात करेंगे और मामले की मेरिट पर निर्णय करेंगे। इस पहलू के चलते हमें द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए।