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प्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन नेता सुंदरलाल बहुगुणा की पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ गंगा किनारें की गई अंत्येष्टि;कोरोना संक्रमण से निधन attacknews.in

देहरादून, 21 मई ।प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा की शुक्रवार को पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ यहां गंगा किनारे पूर्णानन्द घाट पर अंत्येष्टि कर दी गई । कोरोना वायरस से संक्रमित बहुगुणा का आज दोपहर एम्स ऋषिकेश में निधन हो गया था ।

पद्मविभूषण से सम्मानित बहुगुणा के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेट कर घाट पर लाया गया जहां उत्तराखंड पुलिस ने उन्हें सशस्त्र सलामी दी ।

सरकार के प्रतिनिधि के रूप में देहरादून के जिलाधिकारी आशीष कुमार श्रीवास्तव व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक योगेंद्र रावत ने चिपको आंदोलन के नेता के पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी ।

बहुगुणा को उनके ज्येष्ठ पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने मुखाग्नि दी । अंतिम संस्कार के समय दिवंगत पर्यावरणविद की पत्नी विमला, पुत्री मधु समेत अन्य परिजन मौजूद थे ।

इस अवसर पर उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष प्रेम चन्द अग्रवाल व नगर निगम ऋषिकेश की मेयर अनीता ममगाईं भी मौजूद थी । ।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन नेता सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को एम्स, ऋषिकेश में कोविड-19 से निधन हो गया ।

वह 94 वर्ष के थे । उनके परिवार में पत्नी विमला, दो पुत्र और एक पुत्री है ।

एम्स प्रशासन ने बताया कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद आठ मई को बहुगुणा को एम्स में भर्ती कराया गया था । ऑक्सीजन स्तर कम होने के कारण उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी । चिकित्सकों की पूरी कोशिश के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका ।

नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है । उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी ।इसके तहत वृक्षों से चिपककर उन्हें बचाना था।

पद्मविभूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था । एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था ।

टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा । उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया । टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कडा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पडा । वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे ।

महात्मा गांधी के अनुयायी रहे बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई बार पदयात्राएं कीं । वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कट्टर विरोधी थे।

सुंदरलाल बहुगुणा का निधन ‘बहुत बड़ा’ नुकसान: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को प्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर शोक जताया और इसे देश के लिए ‘‘बहुत बड़ा नुकसान’’ बताया।

प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा, ‘‘सुंदरलाल बहुगुणाजी का निधन हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है। प्रकृति के साथ तालमेल कर रहने की हमारे सदियों पुराने लोकाचार का उन्होंने प्रकटीकरण किया। उनकी सदाशयता और जज्बे की भावना को कभी भूला नहीं जा सकता। मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ है।’’

बहुगुणा का शुक्रवार को ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे और पिछले दिनों कोविड-19 से संक्रमित हो गए थे।

नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता कहा जाता है । उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी।

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