नई दिल्ली 13 अक्टूबर। चुनाव आयोग ने दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि वह राजनीतिक दलों के खर्च एवं उन्हें मिलने वाले धन को लेकर पारदर्शिता लाने के नियम पर विचार कर रहा है।
चुनाव आयोग ने कार्यकारी मुख्य न्यायाधीन गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ से यह कहा। पीठ ने गत तीन मई को चुनाव आयोग से अपने सामने नियम पेश करने को कहा था।
चुनाव आयोग के वकील पी आर चोपड़ा ने अदालत से कहा कि दलों को मिलने वाले धन तथा उनके चुनाव खर्च पर उचित प्राधिकरण विचार कर रहा है और अदालत के समक्ष पेश किए जाने से पहले उन्हें इस काम के लिए कुछ समय चाहिए।
चुनाव आयोग के अनुरोध को मंजूर करते हुए पीठ ने उसे सुनवाई की अगली तारीख, आठ फरवरी, 2018 तक यह बताने का निर्देश दिया कि क्या दल उन्हें मिलने वाले धन तथा उनके चुनाव खर्च में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को लेकर दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं।
अदालत एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें विधि आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन करने की मांग की गयी है। ये सिफारिशें चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले खर्च की निगरानी एवं विनियमन के लिए एक प्रावधान बनाने से संबंधित हैं।
याचिकाकर्ता एसोसियेशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने कहा कि दिशानिर्देशों के होने के बावजूद राजनीतिक दल उनका पालन नहीं कर रहे। याचिका में कहा गया कि विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च की निगरानी के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम एवं चुनाव नियमों में कोई प्रावधान नहीं है।
इसमें कहा गया कि ऐसा ‘‘जानबूझकर’’ किया गया है जबकि उच्चतम न्यायालय यह कह चुका है कि चुनाव आयोग के पास विधि आयोग की सिफारिशों को प्रभाव में लाने का अधिकार है।
एडीआर ने आरोप लगाया कि चूंकि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था ‘‘गैरकानूनी माध्यमों तथा साथ ही निहित स्वार्थ वाले लोगों एवं कॉरपोरेट एजेंसियों से धन हासिल करती है, वह (राजनीतिक व्यवस्था) विधि आयोग की सिफारिशों को प्रभाव में लाने की इच्छुक नहीं दिखती।’’