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उतराखण्ड की सबसे चुनौतीपूर्ण संसदीय सीट अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ में चुनावी नजारा भी केवल कांग्रेस और भाजपा के बीच वर्चस्व का होगा attacknews.in

नैनीताल, 23  मार्च । उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की अल्मोड़ा – पिथौरागढ़ सीट के अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटी होने तथा इस क्षेत्र में सैनिक पृष्ठभूमि के लोगों की बहुलता के चलते के चुनाव में राष्ट्रवाद अन्य मुद्दों पर हावी रहता है लेकिन बहुद्देश्यीय पंचेश्वर बांध परियोजना को लेकर उपजे स्वर यहां की फिजां में तैर रहे हैं जिससे यहां का राजनीतिक गणित काफी दिलचस्प हो गया है।

अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 1957 में हुए परिसीमन के चलते पहली बार अस्तित्व में आया। इसमें अल्मोडा़, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत समेत चार जनपद शामिल हैं तथा इन चार जिलों की 14 विधानसभायें इसमें समाहित हैं। इन 14 सीटों में से 11 पर भाजपा का कब्जा है। यह लोकसभा सीट 2009 में आरक्षित हुई और तब से लेकर आज तक अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व करती आ रही है। इस निर्वाचन क्षेत्र की 89 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है। मात्र 11 प्रतिशत क्षेत्र ही शहरी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सीट पर चुनौतियां भी अधिक हैं।

इस लोकसभा सीट की सीमा तिब्बत और नेपाल से लगी हुई है। कैलाश मानसरोवर यात्रा यहीं से होकर गुजरती है। चीन से सटे होने के चलते इस क्षेत्र का सामरिक महत्व अधिक है। उच्च हिमालयी क्षेत्र से होकर गुजरने वाले खूबसूरत दर्रे, घाटियां, बर्फ के पठार तथा सदानीरा नदियां भी इस निर्वाचन क्षेत्र की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। यह क्षेत्र पर्यटन, तीर्थाटन और ट्रैकिंग के लिये बेहद मुफीद है। यहां साहसिक पर्यटन की संभावनायें बेहद अधिक हैं। खासकर सीमांत पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में।

इस सीट की खासियत इसमें दो सबसे कम जनसंख्या वाले चंपावत अौर बागेश्वर जनपद का भी शामिल होना है। इन जनपदों में मात्र दो-दो विधानसभा सीटें हैं। यहां की संस्कृति और सभ्यता पड़ोसी देश नेपाल से मिलती-जुलती है। नेपाल से रोटी-बेटी का संबंध दशकों पुराना है। इस निर्वाचन क्षेत्र का अधिकांश भूभाग पहाड़ी है। यहां सैनिक पृष्ठभूमि के लोगों की बहुलता है। इसीलिये राष्ट्रवाद के मुद्दे यहां के लोगों अधिक प्रभावित करते हैं।

जहां तक राजनीतिक पृष्ठभूमि का सवाल है इस सीट पर भाजपा और कांग्र्रेस दोनों का ही वर्चस्व रहा है। यहां कभी भी किसी तीसरे विकल्प को राजनीतिक रूप से तरजीह नहीं मिली है। स्थानीय स्तर पर कुछ हद तक उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) जैसे क्षेत्रीय दल को मान्यता मिली लेकिन लोगों ने उतना ही जल्दी उन्हें नकार भी दिया। इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व 1977 में मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज भी कर चुके हैं। कांग्रेस से हरीश रावत और भाजपा से बच्ची सिंह रावत यहां से तीन-तीन बार लोकसभा की सीढ़ी चढ़ चुके हैं। भाजपा के जीवन शर्मा भी यहां से एक बार सांसद रहे।

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते यह सीट भाजपा के खाते में आ गयी। भाजपा के अजय टमटा ने कांग्रेस के प्रदीप टमटा को 95690 मतों से शिकस्त दी। भाजपा को 27 प्रतिशत वोट मिले जबकि कांग्रेस को मात्र 20 प्रशित वोट से ही संतोष करना पड़ा। इससे पहले 2009 में यह सीट कांग्रेस के पास थी। तब प्रदीप टमटा ने अजय टमटा को 6523 मतों के मामूली अंतर से हराया था।
चालीस हजार करोड़ की लागत से नेपाल और भारत के बीच बनने वाली पंचेश्वर बहुद्देशीय बांध परियोजना यहां की राजनीतिक दिशा और दशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है। अल्मोड़ा, पिथौरागढ व चंपावत जिलों के डूब क्षेत्र में आने वाले 100 से अधिक गांवों की जनता में इसे लेकर नाराजगी है। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में इस नाराजगी को भुनाने की कोशिश की थी लेकिन उसे अधिक सफलता हाथ नहीं लगी। इस क्षेत्र में बेरोजगारी, पलायन, स्वास्थ्य सुविधा, जंगली जानवरों का आतंक के अलावा सड़क, शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे आज भी हाशिये पर हैं।

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