नयी दिल्ली, सात अगस्त । केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने भ्रष्टाचार के उन मामलों में आरोपी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अपनी सलाह पर फिर से विचार करने के समय को घटाकर एक माह कर दिया है जहां संबंधित विभाग उसके द्वारा अनुशंसित सजा पर सख्त या नरम रुख अपनाना चाहता है। एक आधिकारिक आदेश में यह जानकारी दी गई।
यह कदम तब उठाया जा रहा है जब आयोग ने गौर किया कि ऐसे प्रस्ताव दो महीने की निर्धारित समयावधि में प्राप्त नहीं हो रहे हैं और जिसकी वजह से सतर्कता मामलों में आगे की कार्रवाई में देरी हो रही है।
सतर्कता के मामलों में सरकारी विभाग दो स्तर पर सीवीसी से परामर्श लेते हैं – पहली सलाह जांच रिपोर्टों पर ली जाती है और दूसरी सलाह भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के समापन पर अंतिम फैसला लिए जाने से पहले ली जाती है।
आयोग ने पूर्व के अपने दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी विभागों को सीवीसी का रुख उन मामलों में सलाह लेने के लिए करने की जरूरत होगी जहां वे सतर्कता के मामलों में आयोग द्वारा अनुशंसित कदम की बजाय सख्त या नरम रुख चाहते हों।
बृहस्पतिवार को जारी आदेश में कहा गया कि, यह भी निर्धारित किया गया था कि ऐसे पुनर्विचार वाले प्रस्ताव आयोग की सलाह की प्राप्ति से दो माह के भीतर भेज दिए जाने चाहिए।
इसमें कहा गया कि सतर्कता के मामलों को त्वरित गति से अंतिम रूप देने और इसके लिए समय-सीमा का पालन किए जाने की जरूरत को देखते हुए, आयोग ने मौजूदा समय-सीमा की समीक्षा करते हुए फैसला किया कि पहले चरण की सलाह पर पुनर्विचार का कोई भी प्रस्ताव इस चरण की सलाह की प्राप्ति के एक महीने के भीतर दे दिया जाना चाहिए।
सीवीसी ने कहा कि ऐसे पुनर्विचार वाले प्रस्तावों के लिए आयोग का रुख “केवल अपवाद वाले व्यक्तिगत मामलों में किया जाना चाहिए जिसमें अतिरिक्त या नये तथ्य” सामने आए हों।
केंद्र सरकार के सभी विभागों के सचिवों, सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकं के प्रमुखों और कंपनियों समेत अन्य को जारी आदेश में कहा गया, “आयोग प्रथम चरण की सलाह के लिए एक माह की संशोधित समय-सीमा से इतर प्राप्त ऐसे पुनर्विचार प्रस्तावों या अनुरोधों को स्वीकार नहीं करेगा।”
आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एक माह की संशोधित समय-सीमा से भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई में मदद मिलेगी।