नयी दिल्ली, 18 मार्च। राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर चिंता जताते हुए दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि न्यायपालिका को पीछा करने के मामलों पर कड़ाई बरतनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं करने पर व्यक्ति समय के साथ खतरनाक हो जाता है और महिलाओं के जीवन के लिए खतरा बन जाता है।
उसने कहा कि भारतीय समाज पीछा करने के अपराध से निजात पाने के तरीके खोज रहा है, लेकिन मौजूदा कानून में कई खामियां हैं। न्यायाधीश ने कहा कि पीछा करने वाले शख्स को स्वच्छंद तरीके से घूमने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि उसकी गतिविधयां दूसरों के लिए खतरा बन सकती हैं। पीछा करने को वर्ष2013 में अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया था।
पीछा करने के मामले में दोषी दो लोगों की याचिकाएं खारिज कर उनकी छह माह कारावास की सजा बरकरार रखते हुए विशेष न्यायाधीश कामिनी लाऊ ने खेद जताया कि समाज हमेशा महिलाओं को दोष देने हुए कहता है कि उन्होंने‘‘ ढंग के कपड़े’’ नहीं पहने थे। हालांकि, यह देखा गया है कि‘‘ समाज जिन कपड़ों को अच्छे बताता है’’ उन्हें पहनने वाले भी छेड़खानी से नहीं बचते हैं, बल्कि उन्हें और ज्यादा परेशान किया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ छेड़खानी को पुरूषों को अपने मानदंडों पर नहीं देखना चाहिए बल्कि महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में समझना चाहिए कि उन्हें कैसा महसूस होता है। किसी गंदे दिमाग वाले व्यक्ति के लिए यह मायने नहीं रखता है कि महिला ने ढंग के कपड़े पहने हैं या नहीं, उसकी उम्र कितनी है, वह कितनी सुन्दर है, वह किसी सार्वजनिक परिवहन में है या फिर किसी अस्पताल आदि में।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ सार्वजनिक परिवहनों और सार्वजनिक स्थानों में छेड़खानी ने संस्थागत रूप ले लिया है, और गंदी सोच वाले यह लोग आसान और कमजोर शिकार खोजते हैं ताकि पकड़े ना जा सकें।’’attacknews.in