नईदिल्ली 7 मई । राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आर्थिक स्तर पर नीचा दिखाने की शुरुआत कर दी है, राहुल गांधी इसके लिए भविष्य के एक बड़े एजेंडें पर काम कर रहे हैं जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम सरीखे वरिष्ठ नेता पर्दे के पीछे अपना सिर खपा रहे हैं और कांग्रेस विचारधारा से जुड़े अर्थशास्त्रियों और उद्योगपतियों को सामने लाने की मुहिम शुरू कर दी है ।
30 अप्रैल से कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी सरकार को असफल करार देने की मुहिम की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से जुड़े अर्थशास्त्रियों को सामने लाकर बयान दिलवाने से शुरु कर दी है ।
राहुल गांधी के साथ राजन ने सावधानी के साथ लॉकडाउन हटाने, गरीबों को मदद देने की पैरवी की
इसी कड़ी में सबसे पहले जाने-माने अर्थशास्त्री और भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बृहस्पतिवार को कहा कि लॉकडाउन (बंद) हमेशा के लिए जारी नहीं रखा जा सकता और अब आर्थिक गतिविधियों को सावधानीपूर्वक खोला जाना चाहिए ताकि लोग फिर से अपने काम-धंधे पर लौट सकें।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद में राजन ने कहा कि कोरोना संकट के कारण मुश्किल का सामना कर रहे गरीबों के खाते में सीधे वित्तीय मदद दी जानी चाहिये, इसमें कुल 65 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे।
आर्थिक गतिविधियां शुरू करने की पैरवी करते हुए राजन ने यह भी कहा कि हमारे पास करोड़ों की संख्या में लोगों की लंबे समय तक मदद करने की क्षमता नहीं है।
इस संवाद के दौरान गांधी और राजन देनों ने देश में सामाजिक सौहार्द को बरकरार रखने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि कोरोना महामारी जैसे बड़े संकट के समय भारतीय समाज विभाजन और नफरत का जोखिम मोल नहीं ले सकता।
दोनों ने दुनिया के कई हिस्सों में अधिनायकवादी मॉडल एवं व्यक्ति केन्द्रित रुझान को लेकर भी चिंता जताई।
लॉकडाउन के बाद की स्थिति से निपटने के संदर्भ में राजन ने कहा कि भारत तुलनात्मक रूप से एक गरीब देश है और इसके संसाधन सीमित हैं। इसलिए हम ज्यादा लंबे समय तक लोगों को बिठाकर खिला नहीं सकते। कोविड-19 से निपटने के लिए भारत जो भी कदम उठाएगा, उसके लिए बजट की एक सीमा है।
हालांकि, गांधी ने राजन से जब किसानों और प्रवासी श्रमिकों की समस्या पर सवाल किया तो राजन ने कहा कि यही वह क्षेत्र हैं जहां हमें अपनी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना का फायदा उठाना चाहिए। हमें संकट में पड़े किसानों और मजदूरों की मदद के लिए इस प्रणाली का उपयोग करना चाहिए।
इस पर आने वाले खर्च के संबंध में गांधी के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कोविड-19 संकट के दौरान देश में गरीबों की मदद के लिए 65,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। हम उसका प्रबंध कर सकते क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था 200 लाख करोड़ रुपये की है।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि गरीबों की जान बचाने के लिए हमें इतना खर्च करने की जरूरत है तो हमें करना चाहिए।’’
लॉकडाउन से जुड़े सवाल पर राजन ने कहा, ‘‘लॉकडाउन के दूसरे चरण को ही लीजिए तो आप अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने के प्रयास में पूरी तरह से सफल नहीं हुए हैं। हमें चीजों को खोलना होगा और स्थिति का प्रबंधन करना होगा। अगर कोराना संक्रमण का कोई मामला आता है तो उसे हम पृथक करें।’’
उन्होंने कहा कि भारत में मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के लिए अच्छे रोजगार के अवसर सृजित करना बहुत जरूरी है। यह काम अर्थव्यवस्था में ‘‘ बहुत बड़े पैमाने पर विस्तार के साथ ही किया जा सकता है।’’ पर उन्होंने साथ में यह भी जोड़ा कि कि ‘‘पिछले कुछ सालों से भारत की आर्थिक वृद्धि दर उत्तरोत्तर गिर रही है।’’
राजन ने कहा कि रोजगार के अच्छे अवसर निजी क्षेत्र में होने चाहिए, ताकि लोग सरकारी नौकरियों के मोह में ना बैठें। इसी संदर्भ में उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी आउटसोर्सिंग उद्योग का जिक्र किया करते हुये कहा कि किसी ने सोचा नहीं था कि यह इस तरह एक मजबूत उद्योग बनेगा। उन्होंने कहा कि ‘‘यह आउटसोर्सिंग क्षेत्र इस लिए पनप और बढ़ सका क्योंकि उसमें सरकार का दखल नहीं था।’’
गांधी ने राजन से एक सवाल किया था कि कोविड-19 भारत के लिए कुछ अवसर भी उपलब्ध कराता है। इसके जवाब में राजन ने कहा कि इतना बड़ा संकट किसी के लिए अच्छा नहीं हो सकता लेकिन कुछ तरीके सोचे जा सकते हैं। हमारा प्रयास नयी परिस्थितियों के साथ वैश्विक चर्चा को इस तरफ मोड़ने पर होना चाहिए जिसमें ज्यादा से ज्यादा देशों के फायदे की बात हो।
उन्होंने गांधी के इस बात को स्वीकार किया कि निर्णय लेने की शक्तियों का केंद्रीकरण उचित नहीं है। विकेंद्रीकृत और सहभागिता से किया गया निर्णय बेहतर होता है।
कांग्रेस नेता के एक प्रश्न के उत्तर में राजन ने कहा, ‘‘इन हालात में भारत अपने उद्योगों एवं आपूर्ति श्रृंखला के लिए अवसर हासिल कर सकता है। परंतु हमें इस बहुध्रवीय वैश्विक व्यवस्था में संवाद का प्रयास करना होगा।’’
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद भारत के संदर्भ में अब तक जो आंकड़े आए हैं वो चिंताजनक हैं।
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘‘अगर आप सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के आंकड़े को देखें तो कोविड-19 के कारण 10 करोड़ और लोगों से रोजगार छिन गया है। हमें अर्थव्यवस्था को इस तरह से खोलना होगा कि लोग फिर से काम पर लौट सकें।’’
राहुल गांधी ने कोरोना संकट में अपनी न्याय योजना के समर्थन में नोबेल अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी के मुंह से कहलवा दिया कि,भारत में मजबूत व्यक्ति ( नरेन्द्र मोदी) गलतफहमी में नहीं रहे
अभिजीत बनर्जी ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बड़े प्रोत्साहन पैकेज की पैरवी की
इसी तरह पांच मई को नोबेल पुरस्कार विजेता और जानेमाने अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने कोरोना संकट की मार झेल रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बड़े प्रोत्साहन पैकेज की जरूरत पर जोर देते हुए मंगलवार को कहा कि देश की आबादी के एक बड़े हिस्से के हाथों में पैसे भी पहुंचाने होंगे।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद के दौरान बनर्जी ने यह भी कहा कि जरूरतमंदों के लिए तीन महीने तक अस्थायी राशन कार्ड मुहैया कराने, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र की मदद करने और प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है।
इस संवाद के दौरान कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्यों को लॉकडाउन के संदर्भ में फैसले की छूट होनी चाहिए।
गांधी ने उनसे पूछा कि क्या ‘न्याय’ योजना की तर्ज पर लोगों को पैसे दिए जा सकते हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर।’’
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर हम निचले तबके की 60 फीसदी आबादी के हाथों में कुछ पैसे देते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। यह एक तरह का प्रोत्साहन होगा।
दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव के समय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘न्याय’ योजना का वादा किया था। इसके तहत देश के करीब पांच करोड़ गरीब परिवारों को,प्रति परिवार सालाना 72 हजार रुपये देने का वादा किया गया था।
मनरेगा और खाद्य सुरक्षा कानून जैसी संप्रग सरकार की योजनाओं पर बनर्जी ने कहा, ‘‘समस्या यह है कि संप्रग द्वारा लागू की गई ये अच्छी नीतियां भी वर्तमान समय में अपर्याप्त साबित हो रही हैं। सरकार ने उन्हें वैसा ही लागू कर रखा है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं था। यह बहुत स्पष्ट था कि संप्रग की नीतियों का आगे उपयोग किया जाएगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ यह सोचना होगा कि जो इन योजनाओं के तहत कवर नहीं हैं उनके लिए हम क्या कर सकते हैं। ऐसे बहुत लोग हैं- विशेष रूप से प्रवासी श्रमिक हैं…अगर आधार के माध्यम से पीडीएस का लाभ मिलता तो लोगों को हर जगह लाभ मिलता। मुंबई में मनरेगा नहीं है, इसलिए वो इसके पात्र नहीं हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें देश की समग्र आर्थिक समृद्धि की रक्षा के बारे में आशावादी होना चाहिए।’’
बड़े प्रोत्साहन पैकेज की जरूरत पर जोर देते हुए बनर्जी ने कहा कि अमेरिका, जापान, यूरोप यही कर रहे हैं। हमने बड़े प्रोत्साहन पैकेज पर निर्णय नहीं लिया है। हम अभी भी जीडीपी का एक फीसदी पर हैं, अमेरिका 10 फीसदी तक तक चला गया है। हमें एमएसएमई क्षेत्र के लिए ज्यादा करने की आवश्यकता है।
उनके मुताबिक प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे को राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसे द्विपक्षीय रूप से संभालना मुश्किल है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसका आप विकेंद्रीकरण नहीं करना चाहेंगे क्योंकि आप वास्तव में जानकारी एकत्र करना चाहते हैं।
बनर्जी ने कहा, ‘‘ यदि लोग संक्रमित हैं तो आप नहीं चाहते कि वे पूरे देश में घूमें। मुझे लगता है कि ट्रेन पकड़ने या यात्रा करने से पहले, सरकार को ऐसे लोगों की जांच करानी चाहिए। यह एक मुख्य सवाल है और जिसे केवल केंद्र सरकार सुलझा सकती है।’’
इस पर अलग राय जाहिर करते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘‘ बड़े फैसले राष्ट्रीय स्तर पर होने चाहिए। लेकिन लॉकडाउन के मामले में राज्यों को स्वतंत्रता देनी चाहिए। वर्तमान सरकार का दृष्टिकोण थोड़ा अलग है। वह इसे अपने नियंत्रण में रखना पसंद करती है। ये दो दृष्टिकोण हैं, जरूरी नहीं कि एक गलत और एक सही हो। मैं विकेंद्रीकरण पर जोर देता हूं।’’
बनर्जी ने यह भी कहा कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं उन्हें कम से कम तीन महीने के लिए अस्थायी राशन कार्ड जारी किए जाएं ताकि उन्हें अनाज मिल सके।
गांधी के एक सवाल के जवाब में उन्होंने यह भी कहा कि जरूरतमंद तक पैसे पहुंचाने के लिए राज्य सरकारों और गैर सरकारी संगठनों की मदद ली जा सकती है।
उन्होंने अमेरिका और ब्राजील के राष्ट्रपतियों का हवाला देते हुए कहा कि यह गलत धारणा है कि ऐसे संकट के समय ‘मजबूत व्यक्ति’ स्थिति से निपट सकता है।
बनर्जी ने कहा, ‘‘यह (मजबूत नेतृत्व की धारणा) विनाशकारी है। अमेरिका और ब्राजील दो ऐसे देश हैं, जहां स्थिति बुरी तरह गड़बड़ हो रही है। ये दो तथाकथित मजबूत नेता हैं, जो सब कुछ जानने का दिखावा करते हैं, लेकिन वे जो भी कहते हैं, वो हास्यास्पद होता है।’’
उन्होंने कहा कि अगर कोई “मजबूत व्यक्ति” के सिद्धांत पर विश्वास करता है तो यह समय अपने आप को इस गलतफहमी से बचाने का है।