नयी दिल्ली, 22 अक्तूबर । सरकार ने स्थायी न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति के लिये नामों की अनुशंसा करते वक्त अतिरिक्त न्यायाधीशों के पेशेवर मूल्यांकन की व्यवस्था को खत्म करने के उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के फैसले का विरोध किया है।
कॉलेजियम के फैसले और उसके बाद कानून मंत्रालय द्वारा इसका विरोध करने से कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच फिर से टकराव शुरू हो सकता है।
वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि सरकार ने कॉलेजियम से कहा है कि वह उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के पद पर अतिरिक्त न्यायाधीश के नाम पर विचार करने की अनुशंसा करने से पहले उनके पेशेवर प्रदर्शन के मूल्यांकन की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले से सहमत नहीं है। कॉलेजियम भारत के प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाले उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की व्यवस्था है।
फैसलों का मूल्यांकन करने वाली समिति हाल तक अतिरिक्त न्यायाधीशों के न्यायिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करती थी। सरकार ने कॉलेजियम से अतिरिक्त न्यायाधीशों के न्यायिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करने की व्यवस्था को खत्म करने के उसके फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है।
मार्च में भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को सूचित किया था कि उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने यह व्यवस्था खत्म करने का फैसला लिया है।
उन्होंने उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1981 के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि अतिरिक्त न्यायाधीशों के न्यायिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करने की व्यवस्था उस आदेश के विपरीत है।
न्यायमूर्ति खेहर ने कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को भी इस व्यवस्था को खत्म करने के फैसले के बारे में सूचित किया था।
यह मूल्यांकन अक्तूबर 2010 में भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाड़िया द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का हिस्सा था।