नईदिल्ली 9 दिसम्बर ।नागरिकता संशोधन विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का पात्र बनाने का प्रावधान हे ।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ऐसे अवैध प्रवासियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, उन्हें अपनी नागरिकता संबंधी विषयों के लिए एक विशेष शासन व्यवस्था की जरूरत है ।
विधेयक में हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के प्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन करने से नहीं वंचित करने की बात कही गई है ।
इसमें कहा गया है कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति नागरिकता प्रदान करने की सभी शर्तो को पूरा करता है तब अधिनियम के अधीन निर्धारित किये जाने वाला सक्षम प्राधिकारी, अधिनियम की धारा 5 या धारा 6 के अधीन ऐसे व्यक्तियों के आवेदन पर विचार करते समय उनके विरूद्ध अवैध प्रवासी के रूप में उनकी परिस्थिति या उनकी नागरिकता संबंधी विषय पर विचार नहीं करेगा ।
भारतीय मूल के बहुत से व्यक्ति जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के उक्त अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्ति भी शामिल हैं, वे नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के अधीन नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। किंतु यदि वे अपने भारतीय मूल का सबूत देने में असमर्थ है, तो उन्हें उक्त अधिनियम की धारा 6 के तहत ‘‘देशीयकरण’’ द्वारा नागरिकता के लिये आवेदन करने को कहा जाता है । यह उनको बहुत से अवसरों एवं लाभों से वंचित करता है ।
इसमें कहा गया कि इसलिए अधिनियम की तीसरी अनुसूची का संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है जिसमें इन देशों के उक्त समुदायों के आवेदकों को ‘‘देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिये पात्र बनाया जा सके’’। इसके लिए ऐसे लोगों मौजूदा 11 वर्ष के स्थान पर पांच वर्षो के लिए अपनी निवास की अवधि को प्रमाणित करना होगा ।
इसमें वर्तमान में भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक के कार्ड को रद्दे करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है ।
विधेयक में संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों की स्थानीय आबादी को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी की संरक्षा करने और बंगाल पूर्वी सीमांत विनियम 1973 की ‘‘आंतरिक रेखा’’ प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को प्रदान किये गए कानूनी संरक्षण को बरकरार रखने के मकसद से है ।
इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से सीमापार लोगों का आना निरंतर होता रहा है । वर्ष 1947 में भारत का विभाजन होने के समय विभिन्न धर्मो से संबंध रखने वाले अविभाजित भारत के लाखों नागरिक पाकिस्तान सहित इन क्षेत्रों में ठहरे हुए थे । पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के संविधान में राज्य धर्म का उपबंध किया गया है । इसके परिणामस्वरूप हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के बहुत से व्यक्तियों ने इन देशों में धर्म के आधार पर अत्याचार का सामना किया । बहुत से ऐसे व्यक्ति भारत में शरण के लिये घुसे और ठहरे हुए हैं, भले ही उनके यात्रा दस्तावेज समाप्त हो गए हों।
ऐसे लोगों को अवैध प्रवासी समझा जाता है और वे अधिनियम की धारा 5 और 6 के अधीन भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन करने के लिये अपात्र हैं ।
भारी हंगामे के बीच नागरिकता संशोधन विधेयक हुआ लोकसभा में पेश:
विपक्ष के तीखे विरोध के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने लाेकसभा में आज नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पेश किया जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
हंगामें के बीच इस बिल के पेश होने के लिए जो वोटिंग हुई उसमें 293 हां के पक्ष में और 82 विरोध में वोट पड़े. लोकसभा में इस दौरान कुल 375 सांसदों ने वोट किया. वोटिंग के दौरान सबसे दिलचस्प बात यह रही कि शिवसेना ने बिल पेश करने के समर्थन में वोट किया. बता दें कि हाल में ही महाराष्ट्र में हुए सियासी उठापटक में शिवसेना ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था और NDA से अलग हो गई थी।
इसके बाद उसने महाराष्ट में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की मदद से गठबंधन की सरकार बनाई. जहां एक ओर कांग्रेस की अगुआई में अधिकांश विपक्षी दलों ने भी नागरिकता संशोधन बिल के वर्तमान स्वरूप को देश के लिए खतरनाक बताते हुई इसका विरोध किया तो वहीं शिवसेना ने इसका समर्थन कर दिया है।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग आदि विपक्षी दलों ने इस विधेयक को धार्मिक आधार पर नागरिकता तय करके संविधान की मूल भावना को आहत करने का आरोप लगाया और कहा कि इससे संविधान के अनुच्छेद पांच, दस, 14, 15, 25 एवं 26 का उल्लंघन होता है।
गृह मंत्री अमित शाह ने इसका जवाब देते हुए कहा कि इससे संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं हुआ है। इन तीन देशों में इस्लाम राज्य का धर्म है और धार्मिक उत्पीड़न गैर इस्लामिक समुदायों का ही होता आया है। इसलिए ऐसे छह समुदायों को ‘तर्कसंगत वर्गीकरण’ के अंतर्गत नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है जबकि मुस्लिम समुदाय के लोग वर्तमान नियमों के अनुसार ही नागरिकता का आवेदन कर सकेंगे और उन पर उसी के अनुरूप विचार भी किया जाएगा।
गृह मंत्री के जवाब से विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और उसने विधेयक पेश करने के प्रस्ताव पर मतविभाजन की मांग की जिसे 82 के मुकाबले 293 मतों से मंजूर कर लिया गया और श्री शाह ने विधेयक पेश किया।
नागरिकता संशोधन विधेयक के पेश जाने पर विपक्ष का हंगामा:
लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह नागरिकता संशोधन विधेयक को पेश किए जाने के दौरान विपक्षी सदस्यों ने संविधान की मूल भावना एवं देश के लोकतांत्रिक ढांचे को आहत करने वाला बताते हुए जमकर हंगामा किया और कहा कि यह इतिहास का काला दिन है और देश को मुस्लिम एवं गैर मुस्लिम में बांटने का प्रयास किया जा रहा है।
कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह विधेयक एक लक्षित विधेयक है जिसमें एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है और यह पंड़ित जवाहर लाल नेहरू और डा़ भीमराव अंबेडकर के सपनों का उल्लंघन हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 14 की आत्मा का उल्लंघन है और हमारे लोकतंत्र के ढांचे को बर्बाद करेगा। यह संविधान की प्रस्तावना पर हमला है।
रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि हम इस विधेयक की विधायिका क्षमता का विरोध कर रहे हैं और धर्म के अाधार पर बनाए गए इस विधेयक विरोध कर रहे हैं। यह अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन हैं जो प्रस्तावना के ढांचे पर हमला है और इसके कईं प्रावधान एक दूसरे के विरोधी है।
अाईयूएमएल के पीके कुनहालीकुट्टी ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है जिसे वापिस लिया जाना चाहिए और इसमें एक समुदाय का नाम लिया जा रहा है। पार्टी के सांसद ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा कि आज का दिन संसद के इतिहास का काला दिन है और इस विधेयक के जरिए लोगों को मुस्लिम और गैर मुस्लिम में बांटा जा रहा है।
तृणमूल के सौगत राय ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि गृह मंत्री अमित शाह को सदन के नियम कायदे कानून का पता नहीं है क्योंकि वह इस सदन में नए हैं। संविधान संकट में है और डां अंबेडकर ने जो प्रावधान किए थे भारतीय जनता पार्टी इस उल्लंघन हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं ।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा कि यह सदन के इतिहास का एक काला दिन है। देश को मुस्लिम एवं गैर मुस्लिम में बांटने का प्रयास किया जा रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि यह असम समझौते का उल्लंघन हैं।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि यह हमारे गणराज्य को विभाजित करने का प्रयास है और देश को धार्मिक अाधार पर बांटा जा रहा है और पंड़ित नेहरू तथा महात्मा गांधी ने जिस आधार पर भारत राष्ट्र का निर्माण किया था ,यह विधेयक उसके मूल ढांचे पर हमला है और हम इसकी विधाायिका क्षमता का विरोध करते हैं।
एआईआईएमएल नेता असददुीन औवेसी ने कहा कि यह देश के धर्मनिरपेक्षता के ढांचे पर हमला है और मूल ढांचे का उल्लंघन करता है । इस कानून के पारित हाेने से देश का नुकसान होगा।
अमित शाह ने कहा कि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है और मैं इस सदन और देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह यह समानता के अधिकार का विरोधी नहीं है और इससे समानता का अधिकार आहत नहीं होगा । लेकिन तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर कोई हमें कानून बनाने से नहीं रोक सकता है।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में बंगलादेश से आए लोगों को भारत में शरण दी थी और युगांडा से आए लोगों को भी कांग्रेस के शासनकाल में शरण दी गई थी। श्री राजीव गांधी ने असम समझौते में 1971 तक के लोगों काे ही स्वीकार किया था।
द्रमुक के टीआर बालू ने कहा कि वह इस विधेयक की उपयुक्तता पर चर्चा करना चाहते हैं और यह सदन की सक्षमता का सवाल है। इस दौरान सत्ता पक्ष और विपक्षी दलोें के सदस्यों ने जोरदार हंगामा शुरू कर दिया जिस पर लोकसभा अध्यक्ष आेम बिरला ने कहा कि हम सबकों सदन की मर्यादा का ध्यान रखना है और सबसे अपील है कि वे सदन की गरिमा को बनाए रखे।
उन्होंने कहा ‘मैं जहां भी विश्व के देशों के संसदीय सम्मेलनों में जाता हूं वहां सबको बताता हूं कि भारत एक मजबूत निर्णायक लोकतंत्र है और मैं सदन का संरक्षक हूं लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सदस्य एक दूसरे का सम्मान करें और एक दूसरे के प्रति अमर्यादित भाषा के इस्तेमाल से बचें।
कांग्रेस ने किया था धर्म के आधार पर देश का विभाजन : शाह
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी दल कांग्रेस पर धर्म के आधार पर देश के विभाजन का आरोप लगाते हुये सोमवार को लोकसभा में कहा कि यदि वह ऐसा नहीं करती तो सरकार को नागरिकता (संशोधन) विधेयक आज सदन में नहीं लाना पड़ता।
श्री शाह ने विधेयक सदन में पेश करने से पहले विपक्षी दलों की आपत्तियों को खारिज करते हुये कहा “जब आजादी मिली तब धर्म के आधार पर कांग्रेस पार्टी देश का विभाजन नहीं करती तो इस विधेयक की जरूरत नहीं होती।”
उनके इतना कहते कांग्रेस तथा कई अन्य दलों के सदस्य अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर जोर-जोर से कुछ बोलने लगे। इस पर श्री शाह ने अपना आरोप एक बार फिर दुहराते हुये कहा “हाँ, धर्म के आधार पर देश का विभाजन कांग्रेस पार्टी ने किया।”
उन्होंने कहा कि यह विधेयक तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर लाया गया है। इसमें पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई संप्रदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का विशेष प्रावधान इसलिए किया गया है क्योंकि ये तीनों देशों में संविधान के तहत इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म घोषित किया गया है और वहाँ अन्य संप्रदायों के लोगों को प्रताड़ित किया जाता है।
गृह मंत्री ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था जिसमें दोनों देशों ने अपने यहाँ अल्पसंख्यकों के संरक्षण का आश्वासन दिया था। हमारे यहाँ उसका पालन किया गया लेकिन पाकिस्तान और बाद में पाकिस्तान से बने बंगलादेश में उन पर अत्याचार किया गया।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बंगलादेश में आज भी धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। इसलिए “धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए” यह विधेयक लाया गया है।
श्री शाह ने सदन को आश्वस्त किया कि इन देशों के मुसलमान भी कानून के आधार पर नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं और उनके आवेदनों पर भी प्रक्रिया के तहत विचार किया जायेगा।
नागरिकता विधेयक: 2015 से पहले से भारत में रहने वालों को मिलेगी नागरिकता
सरकार द्वारा संसद में सोमवार को पेश नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 में वर्ष 2015 से पहले से अवैध रूप से देश में रह रहे पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई संप्रदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है।
गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सोमवार को लोकसभा में पेश विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में बताया गया है कि विधेयक के जरिये नागरिकता अधिनियम की अनुसूचि तीन में संशोधन कर इन तीनों देशों के उपरोक्त छह संप्रदायों के लोगों के लिए स्थायी नागरिकता के आवेदन की शर्तों को आसान बनाया गया है। पहले कम से कम 11 साल देश में रहने के बाद इन्हें नागरिकता के लिए आवेदन का अधिकार था। अब इस समय सीमा को घटाकर पाँच साल किया जा रहा है।
इसमें कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 तक बिना वैध दस्तावेजों के इन तीन देशों से भारत में प्रवेश करने वाले या इस तिथि से पहले वैध रूप से देश में प्रवेश करने और दस्तावेजों की अवधि चूक जाने के बाद भी अवैध रूप से यहीं रहने वाले छह संप्रदायों के लोग नागरिकता के आवेदन के पात्र होंगे।
साथ ही यह भी व्यवस्था की गयी है कि उनके विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई स्थायी नागरिकता के लिए उनकी पात्रता को प्रभावित नहीं करेगी तथा नागरिकता आवेदन पर विचार करने वाले अधिकारी इन मामलों पर ध्यान दिये बिना आवेदन पर विचार करेंगे।
इस विधेयक के जरिये ‘ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया’ (ओसीआई) कार्डधारकों द्वारा अधिनियम की शर्तों या किसी अन्य भारतीय नियम का उल्लंघन करने की स्थिति में उनका कार्ड रद्द करने का अधिकार केंद्र सरकार को मिल जायेगा। साथ ही कार्ड रद्द करने से पहले कार्डधारक को उसकी बात रखने का मौका देने का भी प्रस्ताव विधेयक में किया गया है।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में राष्ट्रीय धर्म है जिसे वहाँ के संविधान द्वारा मान्यता दी गयी है। इन देशों में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी एवं ईसाई धर्म के लोगों पर अत्याचार किया जाता है। इनमें से कई लोगों ने भारत आकर शरण ली है और लंबे समय से अवैध रूप से यहीं रह रहे हैं तथा उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है। अब उन्हें भारतीय नागरिकता के योग्य बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है।