उज्जैन 25 मार्च । मित्र भारत संस्था के द्वारा क्षिप्रा नदी के बिगड़ते स्वास्थ्य की स्थिति जानने के लिए जल का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। संस्था के सदस्यों ने विभिन्न स्थानों से जल के नमूनों को जुटाए और जल की वैज्ञानिक पध्दति से जांच की।
इस परीक्षण का उद्देश्य क्षिप्रा नदी का जल और अन्य स्त्रोतों का जल मिलने के बाद नदी के जल की स्थिति, नदी की सेहत पर पड़ रहा प्रभाव और यह जल तटीय आबादी को किस तरह प्रभावित कर रहा है, पता लगाना था।
नदी के जल परीक्षण प्रतिवेदन को संस्था के अध्यक्ष प्रो. रामराजेश मिश्र व सचिव डॉ. दिनेश जैन ने संस्था सदस्य व मूल्यांकन दल की उपस्थिति में जारी किया। इस प्रतिवेदन के आधार पर क्षिप्रा नदी के संरक्षण व जागरूकता अभियान की भावी योजना तैयार की जाएगी।
प्रो. रामराजेश मिश्र व डॉ. दिनेश जैन के अनुसार क्षिप्रा वैदिक नदी है, इसका जल पौराणिकता एवं कल्याणकारी महत्वों के रूप में जाना जाता है। यह नदी भारतीय जनमानस में पवित्रता के रूप में स्थापित है। इसलिए निश्चित रूप से नदी के तटीय क्षेत्र में बसाहट और लोक जीवन के सरोकारों के कारण इसकी जलीय उपयोगिता महत्वपूर्ण है। क्षिप्रा के इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण नदी का जलीय स्वास्थ्य का वैज्ञानिक परीक्षण संस्था द्वारा किया गया। इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है।
इसके लिए क्षिप्रा नदी के उद्गम स्थल से रामघाट तक प्रवाह जल के नमूने प्रत्येक 20 किलोमीटर पर वर्ष प्रतिपदा के दिन सुबह 8 से 10 बजे के मध्य संग्रहित किए गए। नमूनों को ठंडे बॉक्स में रखा गया। उक्त जल का संग्रहण दृष्टि उत्थान संस्था के अध्यक्ष भानू भदौरिया के नेतृत्व में किया गया। जल संग्रहण के लिए पांच स्थल निर्धारित किए गए थे।
इसमें उद्गम स्थल, सेमनिया चाउ, क्षिप्रा गांव, चीमली, त्रिवेणी से 5 किलोमीटर पूर्व व पश्चात का स्थल शामिल है। इस जल संग्रहण में सेमलिया चाउ के पश्चात नर्मदा जल मौजूद रहा। वहीं त्रिवेदी के पश्चात कान्ह नदी का मिश्रण होता है।
जल की जांच जैव वैज्ञानिक डॉ. हरीश व्यास व शोधार्थियों द्वारा की गई। इसमें कालिदास महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने सक्रिय भूमिका निभाई। नदी के जल की जांच में रंग, टर्बिडिटी, पीएच, चालकता, घुलित ऑक्सीजन एवं कोलिफार्म का परीक्षण किया गया।
उद्गम के बाद निरंतर प्रदूषित होती रही क्षिप्रा
उपरोक्त पैरामीट के विश्लेषण पर जो परिणाम सामने आए उसके अनुसार प्रशांतिधाम के पूर्व चार स्थलों पर जल तुलनात्मक साफ पाया गया। सभी पांच स्थानों पर पीएच की 7.2 से 7.9 रहा, यह सामान्य है। वहीं टर्बिडिटी की बात करें तो प्रशांतिधाम के बाद यह काफी अधिक मिली। क्षिप्रा जल में घुलित ऑक्सीजन 7 से 9 पीजीएम होनी चाहिये, लेकिन यह 5 पीजीएम पाई गई। यह अधिक प्रदूषण को दर्शाता है। कोलीफार्म जीवाणु की जल में उपस्थिति नदी के अलग-अलग भागों में सीवेज प्रदूषण को दर्शाता है। महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि उद्गम स्थल से लेकर प्रशांतिधाम स्टेशन के मध्यम चालकता निरंतर बढ़ती पाई गई। यानि प्रदूषण की मात्रा में निरंतर बढ़ोत्तरी रिकॉर्ड की गई है।
क्षिप्रा का जल कृषि के लिए श्रेष्ठ, पीने की गुणवत्ता कम
क्षिप्रा पवित्र नदी है जबकि इसका जल सीधे पीने की गुणवत्ता कम रखता है। इस जल का उपयोग कृषि और वनस्पति उत्पादन में श्रेष्ठ है। जन-जीवन के स्वास्थ्य के लिए पेयजल हेतु उपचार के सामान्य तरीके जैसे क्लोरिन मिश्रण, फिटकरी, छोटे और सस्ते जल उपचार संयंत्र के साथ नदी की स्वच्छता, पवित्रता को व्यापक जन अभियानों के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है। ताकि तटीय ग्रामीण क्षेत्रों के रहवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खराब प्रभाव को रोका जा सके और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके।
ग्रामीणों के मध्य चलाएंगे जनजागरूकता अभियान
इसके आगामी चरण में ग्रामीणों के मध्य जनजागरूकता अभियान चलाकर नदी के स्वास्थ्य के साथ स्वस्थ आबादी की संकल्पित योजना से जोड़ा जायेगा।
प्रतिवेदन को जारी करते समय शिक्षाविद् प्रो. सुरेन्द्र गुप्ता, क्षिप्रा यात्री डॉ. राजेश रावल, संदीप सृजन, संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. रमेश जाटवा, दृष्टि उत्थान के भानु भदौरिया व मूल्यांकन दल के शोधार्थी उपस्थित रहे। प्रतिवेदन निर्माण व सहयोग के लिए संस्था सचिव डॉ. दिनेश जैन ने सभी का आभार माना।attacknews.in