नयी दिल्ली, 23 अप्रैल । भारत के निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने शुक्रवार को कहा कि वह प्रसन्नता, सद्भाव और बहुत अच्छी यादों के साथ उच्चतम न्यायालय से विदा ले रहे हैं और इस बात का संतोष है कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया है।
न्यायमूर्ति बोबडे को नवंबर 2019 में देश के 47वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई थी और वह आज सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
उन्होंने अपने कार्यकाल में अयोध्या जन्मभूमि के ऐतिहासिक फैसले समेत कई महत्वपूर्ण निर्णय किए।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कोरोना वायरस महामारी के अभूतपूर्व संकट के समय भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व किया और वीडियो कॉन्फ्रेंस से शीर्ष अदालत का कामकाज कराया।
शीर्ष अदालत में अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा, ‘‘आखिरी दिन मिली-जुली अनुभूति होती है, जिसे बयां करना मुश्किल है। मैं इस तरह के समारोहों में पहले भी शामिल हुआ हूं लेकिन कभी ऐसी मिली-जुली अनुभूति नहीं हुई इसीलिए तब मैं अपनी बातें स्पष्ट तौर पर कह सका।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं प्रसन्नता, सद्भाव के साथ और शानदार दलीलों, उत्कृष्ट प्रस्तुति, सद्व्यवहार तथा न केवल बार बल्कि सभी संबंधित पक्षों की ओर से न्याय की प्रतिबद्धता की बहुत अच्छी यादें इस अदालत से जा रहा हूं।’’
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि वह 21 साल तक न्यायाधीश के रूप में सेवाएं देने के बाद पद छोड़ रहे हैं और शीर्ष अदालत में उनका सबसे समृद्ध अनुभव रहा है तथा साथी न्यायाधीशों के साथ सौहार्द भी बहुत अच्छा रहा है।
उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में डिजिटल तरीके से काम करना रजिस्ट्री के बिना संभव नहीं होता। उन्होंने कहा कि डिजिटल सुनवाई के बारे में कई ऐसी असंतोषजनक बातें हैं जिन्हें दूर किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, ‘‘इस तरह की सुनवाई में फायदा यह हुआ कि इस दौरान मुझे वकीलों के पीछे पर्वत श्रृंखलायें और कलाकृतियां दिखाई दीं। कुछ वकीलों के पीछे बंदूक और पिस्तौल जैसी पेंटिंग भी दिखाई दीं। हालांकि एसजी मेहता के पीछे की पेंटिंग अब हटा ली गई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस संतोष के साथ यह पद छोड़ रहा हूं कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया। मैं अब कमान न्यायमूर्ति एन वी रमण के हाथों में सौंप रहा हूं, जो मुझे विश्वास है कि बहुत सक्षम तरीके से अदालत का नेतृत्व करेंगे।’’
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि किसी प्रधान न्यायाधीश का कार्यकाल कम से कम तीन वर्ष का होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘मार्च 2020 में दुनिया कोविड-19 से जूझ रही थी। उच्चतम न्यायालय को भी फैसला लेना था, बार ने सोचा कि अदालत बंद हो जाएगी।’’
वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘लेकिन प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने पहल की और डिजिटल सुनवाई शुरू की तथा लगभग 50,000 मामलों का निस्तारण किया गया। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।’’
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायमूर्ति बोबडे को न केवल ज्ञानी और बुद्धिमान न्यायाधीश के तौर पर जाना जाएगा बल्कि गजब के हास्यबोध के साथ स्नेह करने और ध्यान रखने वाले इंसान के तौर पर भी जाना जाएगा।
उच्चतम न्यायालय बार संघ के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह (65 साल) सेवानिवृत्ति की आयु नहीं है और न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन लाया जाना चाहिए।
महाराष्ट्र के नागपुर में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी किया। वह 1978 में महाराष्ट्र की बार काउंसिल में अधिवक्ता के तौर पर पंजीकृत हुए।
वह 29 मार्च 2000 को बंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 16 अक्टूबर 2012 को उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली। वह 12 अप्रैल 2013 उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश पद पर पदोन्नत हुए।