नयी दिल्ली, 20 अप्रैल। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद उन्होंने शनिवार को उच्चतम न्यायालय में इस मामले की अप्रत्याशित सुनवाई की। सीजेआई गोगोई ने कहा कि शीर्ष अदालत की पूर्व महिला कर्मचारी के आरोप ‘‘अविश्वसनीय’’ हैं और यह सीजेआई कार्यालय को ‘‘निष्क्रिय’’ करने के लिए कुछ ‘‘बड़ी ताकतों’’ द्वारा रची गई साजिश का हिस्सा है।
दिल्ली में गोगोई के गृह कार्यालय में काम कर चुकी पूर्व महिला कर्मचारी द्वारा लगाए गए आरोपों ने न्यायपालिका को हैरान कर दिया। गोगोई ने कहा कि वह इन आरोपों का खंडन करने के लिये भी इतना नीचे नहीं गिरेंगे।
महिला के हलफनामे के आधार पर कुछ समाचार पोर्टलों द्वारा आरोप प्रकाशित करने के बाद अदालत कक्ष संख्या एक में जल्दबाजी में की गई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में संयम बरतने और जिम्मेदारी से काम करने का मुद्दा मीडिया के विवेक पर छोड़ रही है ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं हो। हालांकि अदालत ने सुनवाई के प्रकाशन-प्रसारण पर रोक का कोई आदेश जारी नहीं किया।
यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के हलफनामे की प्रतियां उच्चतम न्यायालय के 22 न्यायाधीशों के आवास पर भेजे जाने के बाद शनिवार को इसके सार्वजनिक होने पर न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय विशेष पीठ गठित की गयी।
सरकार या किसी प्रमुख राजनीतिक दल की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
विशेष पीठ ने करीब 30 मिनट तक इस मामले की सुनवाई की और इस दौरान गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ‘‘बहुत ही गंभीर खतरा’’ है और प्रधान न्यायाधीश पर ‘‘बेशर्मी’’ से यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये गये हैं क्योंकि कुछ ‘‘बड़ी ताकत’’ प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को ‘‘निष्क्रिय’’ करना चाहती है।
हालांकि गोगोई ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह किसे ‘‘बड़ी ताकत’’ बता रहे हैं।
सीजेआई ने कहा कि महिला की आपराधिक पृष्ठभूमि है और उनके खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज हैं।
सीजेआई ने सवाल किया, ‘‘जब उनके खिलाफ प्राथमिकी लंबित थी तो वह उच्चतम न्यायालय की कर्मचारी कैसे बन गईं?’’
उन्होंने कहा कि उनके पति के खिलाफ भी दो आपराधिक मामले लंबित हैं।
न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका को ‘‘बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता’’ और मीडिया को सच्चाई का पता लगाये बिना इस महिला की शिकायत का प्रकाशन नहीं करना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ को अगले सप्ताह ‘‘अनेक संवेदनशील मामलों की सुनवाई करनी है और यह देश में लोकसभा चुनावों का महीना भी है।’’
सीजेआई ने इनमें से किसी मामले का जिक्र नहीं किया।
पीठ में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल थे।
पीठ ने इस विवाद के पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ होने का इशारा किया जो न्यायिक व्यवस्था में जनता के विश्वास को डगमगाने में सक्षम है।
यद्यपि इस पीठ की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश कर रहे थे लेकिन उन्होंने न्यायिक आदेश पारित करने का काम न्यायमूर्ति मिश्रा पर छोड़ दिया था।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने आदेश लिखाते हुये कहा कि मामले पर विचार करने के बाद हम फिलहाल कोई भी न्यायिक आदेश पारित करने से गुरेज कर रहे हैं और इसे संयम बरतने तथा जिम्मेदारी से काम करने के लिये मीडिया के विवेक पर छोड रहे हैं जैसा उससे अपेक्षा है और तदनुसार ही निर्णय करे कि उसे क्या प्रकाशित करना है क्या नहीं करना है क्योंकि ये अनर्गल आरोप न्यायपालिका की गरिमा को अपूर्णनीय क्षति पहुंचाते हैं और इसकी स्वतंत्रता को नकारते हैं।
आदेश मे कहा गया कि इसलिए हम इस समय हम अनावश्यक सामग्री को अलग करने का काम मीडिया पर छोड़ रहे हैं ।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति गोगोई और शीर्ष अदालत के तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों ने 12 जनवरी 2018 को अभूतपूर्व संवाददाता सम्मेलन बुलाकर संवेदनशील मामलों के आवंटन क मुद्दे पर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ परोक्ष रूप से मोर्चा खोल दिया था।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उनके खिलाफ ‘‘अविश्वसनीय’’ आरोप लगाये गये हैं और ‘‘मैं नहीं समझता कि मुझे इन आरोपों का खंडन करने के लिये भी इतना नीचे आना चाहिए। हालांकि न्यायाधीश के रूप में 20 साल की नि:स्वार्थ सेवा के बाद यह (आरोप) सामने आया है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे कोई धन के मामले में पकड़ नहीं सकता। लोगों को कुछ और तलाशना था और उन्हें यह मिला है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि करीब दो दशक की सेवा के बाद उनके पास भविष्य निधि में करीब 40 लाख रूपए के अलावा बैंक में 6.80 लाख रूपए हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसके पीछे कोई न कोई बहुत बड़ी ताकत होगी। दो कार्यालय है–पहला प्रधान मंत्री का और दूसरी प्रधान न्यायाधीश का है। वे (इस विवाद के पीछे छिपे लोग) प्रधान न्यायाधीश कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं। 20 साल की सेवा के बाद प्रधान न्यायाधीश को यह पुरस्कार मिला है।’’
इन आरोपों से बेहद आहत और आक्रोशित न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, ‘‘इस देश की न्यायपालिका बहुत ही गंभीर खतरे में है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ मैं इसी कुर्सी पर बैठूंगा और बगैर किसी भय के अपने न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन करूंगा। मैं सात महीने (प्रधान न्यायाधीश के रूप में शेष कार्यकाल) में मुकदमों का फैसला करूंगा। मैं ऐसा करूंगा।’’
न्यामयूर्ति गोगोई ने तीन अक्टूबर, 2018 को प्रधान न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया था और इस साल 17 नवंबर को उनका कार्यकाल पूरा होगा।
प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने कहा कि किसी न्यायाधीश के पास सिर्फ उसकी ‘‘प्रतिष्ठा’’ ही होती है और यदि यौन उत्पीड़न जैसे निराधार आरोपों से उस पर हमला किया जाता है तो कोई भी ‘‘बुद्धिमान व्यक्ति’’ न्यायाधीश के पद के लिये आगे नहीं आयेगा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यदि इस तरह की बातें होंगी तो कोई भी न्यायाधीश मामलों का फैसला नहीं करेगा। वह (न्यायाधीश) कहेगा कि मुझे क्यों फैसला करना चाहिए। फिर मैं आऊंगा (न्यायालय में) और मामलों को स्थगित कर दूंगा। कोई भी विवेकशील व्यक्ति क्यों न्यायाधीश बनना चाहेगा? प्रतिष्ठा ही एकमात्र चीज है जो किसी न्यायाधीश के पास होती है।’’
उच्चतम न्यायालय के महासचिव संजीव सुधाकर कालगांवकर ने कई न्यायाधीशों को महिला का पत्र मिलने की बात की पुष्टि करते हुए कहा कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप द्वेषपूर्ण हैं और उनका कोई आधार नहीं है।
उन्होंने कहा कि शनिवार की सुबह करीब आठ-नौ बजे कई न्यूज पोर्टल पर खबर आई और उन्हें करीब नौ साढ़े नौ बजे इसकी जानकारी मिली।
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