रायगढ़ 24 मार्च । छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में एक महत्वपूर्ण सीट रायगढ़ से स्थानीय जिले के नेताओं की बजाय पड़ोसी जिलों के नेता संसद में प्रतिनिधत्व करते रहे हैं और देखना है कि यह सिलसिला इस बार टूटता है या नहीं।
पिछले 20 साल से रायगढ़ सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कमल खिला रहा है । पड़ोसी जिले जशपुर के श्री विष्णुदेव साय (वर्तमान में केंद्रीय राज्य मंत्री) ने लगातार चार बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं । आम जनमानस के मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न कौंध रहा कि पांच महीने पहले संपन्न राज्य विधानसभा चुनाव में रायगढ़ लोकसभा की सातों विधानसभा सीटें कांग्रेस ने अपने खाते में डाली है और कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल में श्री साय क्या अपना जलवा बरकरार रख पायेंगे ।
राजा-महाराजाओं की रियासत रहे रायगढ़ के राजपरिवार के सदस्यों की महत्वपूर्ण राजनीतिक भागीदारी भी रही है। सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र कुछ दिनों तक अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और उनकी पुत्री पुष्पा देवी सिंह ने कांग्रेस की ओर से तीन बार रायगढ़ का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया था। राजपरिवार की राजनीतिक भागीदारी में जशपुर के राजा दिलीप सिंह जूदेव के परिवार का भी नाम उल्लेखनीय है । दिवंगत नेता श्री जूदेव के भतीजे रणविजय सिंह जूदेव वर्तमान में भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं ।
छत्तीसगढ़ की संस्कृतिधानी माने जाने वाला रायगढ़ 1952 से 1961 तक लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में नहीं था । वर्ष 1962 में यहां पहला आम चुनाव हुआ , जिसमें अखिल भारतीय रामराज्य परिषद के उम्मीदवार विजयभूषण सिंहदेव निर्वाचित हुए। इसके बाद 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपनी जड़ें जमाई और सुश्री रजनी देवी ने चुनाव जीता। श्री उम्मेद सिंह राठिया ने 1971 का चुनाव जीतकर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा । आपातकाल विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी का अभ्युदय हुआ और 1977 के आम चुनाव में इसके उम्मीदवार नरहरि प्रसाद ने चुनाव जीत लिया।
अस्सी और नब्बे के दशक में हुए चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल एक के बाद एक जीत-हार का स्वाद चखते रहे । वर्ष 1980 में कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह और 1989 में भाजपा के नंदकुमार साय ने चुनाव जीता। सुश्री पुष्पा और श्री साय ने क्रमशः 1991 और 1996 के आम चुनाव में जीत हासिल की।
वर्ष 1998 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजीत जोगी ने रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सेंध लगाई और चुनाव जीता। इसके एक साल बाद ही फिर चुनाव हुए और तब भाजपा ने विष्णुदेव साय को चुनाव मैदान में उतारा । श्री साय ने इस चुनाव में यह सीट एक बार फिर भाजपा की झोली में डाल दी। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2004 , 2009 और 2014 में तीन आम चुनाव हुए और इसके परिणाम भी भाजपा के ही पक्ष में गये ।
ऐतिहासिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में जशपुर और पत्थलगांव का एक अहम स्थान है। जशपुर जिले के कुनकुरी में ईसाई धर्मावलंबियों का एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च हैं । इसके साथ ही यहां सुरम्य पहाड़ियों और घाटियों के बीच स्थित पंंडारापाठा को छत्तीसगढ़ का मसूरी भी कहा जाता है। पत्थलगांव एक बहुत बड़ा टमाटर उत्पादक क्षेत्र है , जहां से देश के विभिन्न हिस्सों में टमाटर की आपूर्ति की जाती है। इसके बावजूद यहां के टमाटर उत्पादक किसानों को फसल का समुचित मूल्य न मिल पाने के कारण उनकी माली हालत दयनीय है।
जिंदल स्ट्रीप आयरन प्लांट तथा उद्योगों की वजह से रायगढ़ को औद्योगिक नगरी का भी दर्जा है । छत्तीसगढ़ के कोरबा से रायगढ़ होते हुए झारखंड के रांची तक रेलमार्ग क्षेत्र के वाशिंदों की प्रमुख मांग है । प्रस्तावित रेलमार्ग के लिए कई बार सर्वे के बाद भी इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं हुयी है।
रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें है जिनमें पांच सुरक्षित और दो सामान्य सीट है। विधानसभा सीटों में जशपुर, पत्थलगांव, लैलूंगा, सारंगढ़ और धर्मजयगढ़ (सभी सुरक्षित) तथा रायगढ़ और खरसिया(दोनों सामान्य) शामिल है। इन सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है ।
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