इटावा,18 जून । उत्तर प्रदेश समेत तीन राज्यों का सफर तय करने वाली चंबल नदी इन दिनों डायनासोर प्रजाति के घड़ियालों से लबरेज है और वन्य जीव प्रेमियों के लिये आकर्षण का केन्द्र बनी हुयी है।
वन विभाग का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश और राजस्थान के 70 किमी के दायरे में करीब सात हजार घड़ियाल नदी में दिखायी दे रहे हैं। दुर्लभ प्रजाति के घड़ियाल देश दुनिया मे विलुप्त प्राय: है, ऐसे मे चंबल नदी मे इनकी अच्छी संख्या होना सुखद है ।
चंबल सेंचुरी के वन्य जीव प्रतिपालक दिवाकर श्रीवास्तव ने बताया कि चंबल नदी मे पहली बार हजारो की तादात मे घाडियाल के बच्चे प्रजनन के बाद जन्मे है । 2100 स्क्वायर मीटर में फैले नेशनल चंबल सेंचुरी में 1989 से घड़ियालों का संरक्षण करना शुरू हो गया था। संभवत: यह पहली बार है जब चंबल नदी मे इतनी बडी संख्या में घड़ियाल के बच्चे चंबल मे पानी मे नजर आ जा रहे है ।नन्हें मेहमानों की सुरक्षा के लिए वन विभाग ने राजस्थान से सटे रेहा से लेकर इटावा के भरेह तक निगरानी बढ़ा दी है।
इटावा रेंज के खेड़ा अजब सिंह और कसऊआ गांव में 34 घोसलों में से 14 की हैचिंग हो चुकी है । यहां पर लगभग 300 नन्हें घड़ियाल जन्म ले चुके हैं। पिनाहट रेंज के रेहा घाट पर 300 नन्हें घड़ियालों ने जन्म लिया है। विप्रावली में लगभग 200 घड़ियाल अंडों से निकल चुके हैं। इधर पिनाहट में दो दर्जन घड़ियाल हैचिंग कर चुके हैं। चंबल की रेतिया में 500 नन्हें घड़ियाल अटखेलियां करते नजर आ रहे हैं । ऐसे ही बाह के कैंजरा, हरलालपुरा और नंदगंवा में भी लगभग दो दर्जन घड़ियालों की हैचिंग अगले एक-दो दिन में होने की संभावना है। ऐसे में जल्द ही चंबल नदी के किनारे घड़ियालों की नयी फौज अटखेलियां करती दिख सकती है ।
एक अनुमान के मुताबिक तीन राज्यो मे पसरी चंबल नदी मे एक अनुमान के मुताबिक 7000 के आसपास घडियाल के छोटे छोटे बच्चे पानी मे तैरते हुए दिखलाई दे रहे है । उत्तर प्रदेश मध्यप्रदेश और राजस्थान मे प्रवाहित चंबल नदी मे दुर्लभ प्रजाति के घडियालो को संरक्षण के मददेनजर चंबल नदी को संरक्षित कर रखा गया है। बाह से इटावा तक करीब 70 किलोमीटर के दायरे मे इतनी बडी तादात मे इससे पहले घडियाल के बच्चो को प्रजनन के बाद नही देखा गया है।
कसाऔ मे चंबल नदी के किनारे एक ऐसा मनोरम दश्य देखने को मिला हुआ है जहाॅ पर एक विशालकाय घाडियाल अपनी पीठ पर सैकडो की तादात मे अपने मासूम बच्चो को बैठाये हुए है । उसे देखने के बाद इंसानी बच्चो के दुलार की याद आ जाती है । यह एक ऐसा घडियाल है जो बडे आराम से अपनी पीठ पर बच्चो को बैठाये रहता है जब कोई हरकत उसको सुनाई देती है तो वह अपने बच्चो को पीठ से उतारता है अन्यथा सभी बच्चे उसकी पीठ पर बैठ कर ही आंनद लेते रहते है । सुबह शाम यह दृश्य गांव वालो के लिए बडे ही आंनद का विषय इस समय बना हुआ है ।
इन बच्चो की रखवाली के लिए चंबल सेंचुरी की ओर से रखे गये घडियाल रक्षक सेवक गांव वालो की मदद से बच्चो की निगरानी करने मे लगे हुए है । गांव वालो का कहना है कि उनके लिए चंबल नदी ही चिडियाधर है क्यो कि इतनी बडी तादात मे घडियाल के बच्चे दिखलाई दे रहे है साथ ही घडियालो को भी पास से देखने का मौका मिल रहा है।
द्धकसौआ गांव के रहने वाले कुवंर सिंह का कहना है कि इन छोटे छोटे बच्चो को देखने के लिए दूर दराज के लोग आये दिन आते रहते है इन बच्चो को देखने के बाद लोग बेहद ही खुश होते है।
इससे पहले जब चंबल मे उत्तर प्रदेश के हिस्से मे घडियाल का प्रजनन नही हुआ करता था तब विभाग के अफसर राजस्थान से घडियाल के अंडे लेकर आया करते थे उसके बाद कुकरैल लेकर छोड कर आते थे उसके बाद जब बच्चे हो जाते थे तो उन बच्चो को चंबल मे ला कर छोडा जाता था।
साल 2007 से फरवरी 2008 तक जिस तेजी के साथ किसी अनजान बीमारी के कारण एक के बाद एक करके करीब सवा अधिक तादात में घडियालों की मौत हुई थी उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था । ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडियाल किसी किताब का हिस्सा न बनकर रह जाएं । घडियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस, अमेरिका सहित तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले। घडियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर क्लोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण की वजह से घडियालों की मौत को कारण माना । वहीं दबी जुबां से घडियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ संजीव चौहान बताते हैं कि पंद्रह जून तक घडियालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ-दस दिन पूर्व तक रहता है। घडियालों के प्रजनन का यह दौर ही घडियालों के बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घडियालों के बच्चे नदी के वेग में बहकर मर जाते हैं।
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के संरक्षण अधिकारी डा.राजीव चौहान ने कहा कि साल 2007 के आखिर मे चंबल मे अनजान बीमारी के कारण सवा सौ ऐसे घाडियालो की मौत हो गई थी जिनको संरक्षित करने मे चंबल सेंचुरी के अफसरो को एक दो नही नही कई साल लग गये थे । चंबल मे जितने घाडियालो की मौत अनजान बीमारी के कारण हुई उतने घाडियाल आज तक पूरी दुनिया मे कही भी नही मरे थे इसी वजह से दुनिया भर के घाडियाल विशेषज्ञो ने चंबल मे आ कर कई स्तर से अध्ययन किया गया लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंच सके।