नयी दिल्ली 30 दिसंबर । सरकार ने देश में पहली पीढ़ी (1 जी) के इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए अनाजों (चावल, गेंहू, जौ, मक्का और जवार), गन्ना, चुकन्दर आदि से इथेनॉल निकालने की क्षमता बढ़ाने के लिए एक संशोधित योजना को मंजूरी दे दी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति की आज हुयी बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। मिश्रण स्तर में वृद्धि से आयातित जैव ईंधन पर निर्भरता कम होगी और वायु प्रदूषण भी कम होगा। भट्टियों की क्षमता में वृद्धि/नयी भट्टियां लगाने से ग्रामीण इलाकों में नए रोजगार अवसरों का सृजन होगा और इस तरह आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार 2010-11 के चीनी सत्र से गन्ने की बेहतर किस्मों के आने के बाद देश में चीनी का अतिरिक्त उत्पादन हुआ है और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी यह रूख जारी रहेगा। सामान्य चीनी सत्र (अक्टूबर से सितम्बर) में करीब 320 लाख टन चीनी का उत्पादन होता है, जबकि घरेलू खपत करीब 260 लाख टन है। सामान्य चीनी सत्र में 60 लाख टन के इस अतिरिक्त उत्पादन से चीनी मिलों को अपनी कीमत तय करने में दबाव का सामना करना पड़ता है। 60 लाख मीट्रिक टन का यह अतिरिक्त भंडार बिक नहीं पाता और इस तरह चीनी मिलों का 19 हजार करोड़ रुपये की राशि फंस जाती है और उनकी पूंजी तरलता की स्थिति को प्रभावित करती है। परिणामस्वरूप वे गन्ना किसानों को उनके उत्पाद की बकाया राशि का भुगतान नहीं कर पाती। चीनी के इस अतिरिक्त भंडार से निपटने के लिए चीनी मिलें चीनी का निर्यात करती हैं और इसके लिए उन्हें सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है, लेकिन विश्व व्यापार संगठन की व्यवस्था के अनुरूप भारत, विकासशील देश होने के कारण सिर्फ 2023 तक ही चीनी के निर्यात के लिए वित्तीय सहायता दे सकता है।
अत: इस अतिरिक्त गन्ने और चीनी का इथेनॉल के उत्पादन के लिए उपयोग करना ही चीनी के अतिरिक्त भंडार से निपटने का सही रास्ता है। अतिरिक्त चीनी के इस उपयोग से मिलों द्वारा भुगतान किए जाने वाले चीनी के घरेलू मिल-मूल्य में स्थिरता आएगी और चीनी मिलों को इसके भंडारण की समस्या से निजात मिलेगी। इससे उनके पूंजी प्रवाह में सुधार होगा और उन्हें किसानों को उनके बकाया मूल्य का भुगतान करने में सुविधा होगी। इसके साथ ही इससे चीनी मिलों को आने वाले सालों में अपना कामकाज चलाने में भी मदद मिलेगी।
● मंत्रिमंडल ने देश में पहली पीढ़ी (1 जी) के इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए अनाजों (चावल, गेंहू, जौ, मक्का और जवार), गन्ना, चुकन्दर आदि से आसवन के जरिए इथेनॉल निकालने की क्षमता बढ़ाने के लिए एक संशोधित योजना को मंजूरी दी
2010-11 के चीनी सत्र से गन्ने की बेहतर किस्मों के आने के बाद देश में चीनी का अतिरिक्त उत्पादन हुआ है (2016-17 के चीनी सत्र में सूखे के कारण हुए कम उत्पादन को छोड़कर) और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी यह रूख जारी रहेगा। सामान्य चीनी सत्र (अक्टूबर से सितम्बर) में करीब 320 लाख मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन होता है, जबकि हमारी घरेलू खपत करीब 260 लाख मीट्रिक टन है। सामान्य चीनी सत्र में 60 लाख मीट्रिक टन के इस अतिरिक्त उत्पादन से चीनी मिलों को अपनी कीमत तय करने में दबाव का सामना करना पड़ता है। 60 लाख मीट्रिक टन का यह अतिरिक्त भंडार बिक नहीं पाता और इस तरह चीनी मिलों का 19 हजार करोड़ रुपये की राशि फंस जाती है और उनकी पूंजी तरलता की स्थिति को प्रभावित करती है
परिणामस्वरूप वे गन्ना किसानों को उनके उत्पाद की बकाया राशि का भुगतान नहीं कर पाती। चीनी के इस अतिरिक्त भंडार से निपटने के लिए चीनी मिलें चीनी का निर्यात करती हैं और इसके लिए उन्हें सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है, लेकिन विश्व व्यापार संगठन की व्यवस्था के अनुरूप भारत, विकासशील देश होने के कारण सिर्फ 2023 तक ही चीनी के निर्यात के लिए वित्तीय सहायता दे सकता है।
अत: इस अतिरिक्त गन्ने और चीनी का इथेनॉल के उत्पादन के लिए उपयोग करना ही चीनी के अतिरिक्त भंडार से निपटने का सही रास्ता है। अतिरिक्त चीनी के इस उपयोग से मिलों द्वारा भुगतान किए जाने वाले चीनी के घरेलू मिल-मूल्य में स्थिरता आएगी और चीनी मिलों को इसके भंडारण की समस्या से निजात मिलेगी। इससे उनके पूंजी प्रवाह में सुधार होगा और उन्हें किसानों को उनके बकाया मूल्य का भुगतान करने में सुविधा होगी। इसके साथ ही इससे चीनी मिलों को आने वाले सालों में अपना कामकाज चलाने में भी मदद मिलेगी।
□ सरकार ने 2022 तक पेट्रोल में 10 प्रतिशत और 2030 तक 20 प्रतिशत इथेनॉल का मिश्रण करने का लक्ष्य रखा है। चीनी क्षेत्र की सहायता के लिए और गन्ना किसानों के हित में सरकार ने बी-हैवी गन्ना शीरा, गन्ने के रस, शीरा और चीनी से इथेनॉल का उत्पादन करने की अनुमति दी है।
इसके अलावा, उसने इथेनॉल सत्र के दौरान सी-हैवी गुड़ शीरा और बी-हैवी गुड़ शीरा तथा गन्ने के रस/चीनी/शीरा से निकाले जाने वाले इथेनॉल के लिए लाभकारी मिल-मूल्य भी तय किया है। इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2020-21 के लिए सरकार ने अब विभिन्न अनाजों से निकाले जाने वाले इथेनॉल के मिल-मूल्य को भी बढ़ाया है।
□ ईंधन स्तर के इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार भट्टियों को भी भारतीय खाद्य निगम में उपलब्ध मक्का और चावल से इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। सरकार ने मक्का और चावल से निकाले जाने वाले इथेनॉल का लाभकारी मूल्य भी तय किया है।
□ सरकार पेट्रोल में इथेनॉल के 20 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य को भी घटाकर कम करने की योजना बना रही है। हालांकि देश में इस समय चीनी के अतिरिक्त भंडार से इथेनॉल निकालने और उसकी आपूर्ति तेल विपणन कंपनियों को करने की पर्याप्त क्षमता नहीं है, जबकि भारत सरकार ने तेल विपणन कंपनियों को पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण करने का तय लक्ष्य दिया हुआ है।
इसके अलावा, पेट्रोल और इथेनॉल के मिश्रण के लक्ष्य को सिर्फ गन्ने और चीनी से इथेनॉल का उत्पादन कर प्राप्त नहीं किया जा सकता तथा पहली पीढ़ी (1जी) के इथेनॉल का उत्पादन अन्य खाद्य वस्तुओं जैसे अनाज, चुकन्दर आदि से भी किए जाने की आवश्यकता होगी, जिसकी पर्याप्त क्षमता फिलहाल देश में नहीं है। अत: देश में पहली पीढ़ी के इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए अनाजों (चावल, गेंहू, जौ, मक्का और ज्वार) गन्ने और चुकन्दर आदि से इथेनॉल निकालने की क्षमता को बढ़ाने की बहुत जरूरत है।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने निम्नलिखित बिन्दुओं को मंजूरी दी :-
निम्न श्रेणियों को इथेनॉल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की एक संशोधित योजना लाई जाए :-
इथेनॉल उत्पादन के लिए अनाज आधारित भट्टियों की स्थापना करना/मौजूदा अनाज आधारित भट्टियों का विस्तार करना, लेकिन इस योजना के लाभ केवल उन्हीं भट्टियों को मिलेंगे, जो अनाजों की सूखी पिसाई की प्रक्रिया (dry milling process) का इस्तेमाल करेंगी।
इथेनॉल उत्पादन के लिए गुड़ शीरा आधारित नयी भट्टियों की स्थापना/मौजूदा भट्टियों का विस्तार (चाहे वे चीनी मिलों से संबद्ध हो या उनसे अलग हो) और चाहे केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा शून्य तरल डिस्चार्ज (जेडएलडी) को हासिल करने के लिए स्वीकृत कोई भी अन्य तरीका कायम करना हो।
इथेनॉल उत्पादन के लिए अनाज और शीरा दोनों का दोहरा इस्तेमाल करने वाली नयी भट्टियां स्थापित करना और पहले से संचालित भट्टियों का विस्तार करना।
मौजूदा गुड़ शीरा आधारित भट्टियों (चाहे चीनी मिलों से संबद्ध हो या पृथक हो) को दोहरे इस्तेमाल (गुड़ शीरा और अनाज/कोई भी अन्य खाद्यान्न) में बदलना और अनाज आधारित भट्टियों को भी दोहरे इस्तेमाल वाली भट्टियों में बदलना।
चुकन्दर, ज्वार और अनाज आदि जैसे अन्य खाद्यान्न से इथेनॉल निकालने के लिए नयी भट्टियां स्थापित करना/मौजूदा भट्टियों का विस्तार करना।
मौजूदा भट्टियों में संशोधित स्प्रिट को इथेनॉल में बदलने के लिए मॉलिक्यूलर सीव डीहाईड्रेशन (एमएसडीएच) कॉलम स्थापित करना।
सरकार परियोजना प्रस्तावकों द्वारा बैंकों से लिए जाने वाले ऋण के ब्याज का पांच साल तक वहन करेगी, जिसमें एक साल की मॉरिटोरियम अवधि भी शामिल होगी। यह राशि प्रतिवर्ष 6 प्रतिशत की दर से या बैंक द्वारा लिए जाने वाले ब्याज की दर का 50 प्रतिशत या जो भी कम हो, होगी।
यह लाभ सिर्फ उन्हीं भट्टियों को मिलेगा, जो अपनी बढ़ी हुई क्षमता के कम से कम 75 प्रतिशत उत्पादित इथेनॉल की आपूर्ति पेट्रोल में मिश्रण के लिए तेल विपणन कंपनियों को करेंगी।
इस प्रस्तावित कदम से विविध प्रकार के अनाजों से पहली पीढ़ी के इथेनॉल के उत्पादन में वृद्धि होगी, पेट्रोल में इथेनॉल के मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा और इथेनॉल को ऐसे ईंधन के तौर पर प्रोत्साहित किया जा सकेगा, जो स्वदेश में उत्पादित, गैर-प्रदूषणकारी और अक्षय होगा तथा जिससे पर्यावरण और इको-सिस्टम में सुधार होगा। इसके परिणामस्वरूप देश के तेल आयात व्यय की बचत की जा सकेगी। यह किसानों को उनके बकाये का समय पर भुगतान भी सुनिश्चित करेगा।
2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल के 20 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए और रसायन एवं अन्य क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए 1,400 करोड़ लीटर एल्कोहल/इथेनॉल की जरूरत होगी। इसमें से 1,000 करोड़ लीटर की जरूरत 20 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए और 400 करोड़ लीटर की जरूरत रसायन एवं अन्य क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए होगी। 1,400 करोड़ लीटर की कुल जरूरत में से 700 करोड़ लीटर की आपूर्ति चीनी उद्योग और 700 करोड़ लीटर की आपूर्ति अनाज आधारित भट्टियों को करनी होगी।
चीनी उद्योग द्वारा 700 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए करीब 60 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे अतिरिक्त चीनी भंडार की समस्या का समाधान होगा, अतिरिक्त चीनी के भंडारण की समस्या से चीनी उद्योग को निजात मिलेगी और चीनी मिलों की राजस्व वसूली बढ़ेगी। इससे वे गन्ना किसानों को उनके बकाये का समय पर भुगतान कर सकेंगी। करीब पांच करोड़ गन्ना किसान और उनके परिवार तथा चीनी मिलों और अन्य सहायक गतिविधियों में काम करने वाले 5 लाख कामगारों को इस कदम से लाभ होगा।
खाद्यान्न से 700 करोड़ लीटर इथेनॉल/एल्कोहल का उत्पादन करने के लिए करीब 175 लाख मीट्रिक टन अनाज का इस्तेमाल किया जाएगा। अतिरिक्त अनाज के इस उपयोग से अंतत: किसानों को लाभ होगा, क्योंकि उन्हें अपने उत्पाद का बेहतर मूल्य और निश्चित खरीदार मिलेंगे। इस तरह देश के करोड़ों किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
गन्ना और इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से तीन राज्यों – उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में होता है। इन तीन राज्यों से इथेनॉल को दूरदराज के अन्य राज्यों में ले जाने पर भारी परिवहन खर्च आता है। देशभर में नयी अनाज आधारित भट्टियां स्थापित करने से देश के अलग-अलग भागों में इथेनॉल का वितरण संभव हो सकेगा और इससे इसके परिवहन पर आने वाला भारी खर्च भी बचाया जा सकेगा। इस तरह न सिर्फ पेट्रोल में इथेनॉल के मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने में होने वाले विलंब से बचा जा सकेगा, बल्कि इससे देशभर के किसानों का भी लाभ होगा।
इथेनॉल निकालने की क्षमता और मिश्रण स्तर बढ़ाने में पिछले 6 साल में सरकार द्वारा हासिल की गईं उपलब्धियां :-
सरकार ने मोटर वाहन ईंधन में इथेनॉल का 2022 तक 10 प्रतिशत और 2030 तक 20 प्रतिशत मिश्रण करने का लक्ष्य तय किया है। वर्ष 2014 तक गुड़ शीरा आधारित भट्टियों की इथेनॉल निकालने की क्षमता 200 करोड़ लीटर से कम थी। पिछले 6 साल में गुड़ शीरा आधारित भट्टियों की यह क्षमता बढ़कर दोगुनी हो गई और इस समय यह 426 करोड़ लीटर हो गई है। मिश्रण लक्ष्यों के बारे में हम पाते है कि सरकार देश में 2024 तक इथेनॉल निकालने की क्षमता को बढ़ाकर दोगुना करने के लिए संगठित प्रयास कर रही है।
इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2013-14 में तेल विपणन कंपनियों को इथेनॉल की आपूर्ति 40 करोड़ लीटर से कम थी और मिश्रण स्तर सिर्फ 1.53 प्रतिशत था। हालांकि केन्द्र सरकार के संगठित प्रयासों के चलते ईंधन स्तर के इथेनॉल का उत्पादन और तेल विपणन कंपनियों को इसकी आपूर्ति पिछले 6 साल में चार गुना बढ़ी है। इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2018-19 में हमने ऐतिहासिक तौर पर करीब 189 करोड़ लीटर के उच्च आंकड़े और 5 प्रतिशत मिश्रण के स्तर को हासिल कर लिया है।
हालांकि महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में सूखे के कारण चीनी और गुड शीरा का उत्पादन 2019-20 के स्तर में कुछ कम रहा और इस वजह से भट्टियों ने करीब 172.50 करोड़ लीटर इथेनॉल की तेल विपणन कंपनियों को आपूर्ति की। इस तरह 2019-20 में 5 प्रतिशत मिश्रण के स्तर को हासिल किया गया। उम्मीद की जाती है कि मौजूदा इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2020-21 में तेल विपणन कंपनियों को करीब 325 करोड़ लीटर इथेनॉल की सप्लाई की जा सकेगी और 8.5 प्रतिशत के मिश्रण स्तर को हासिल किया जा सकेगा। संभव है कि हम 2022 तक 10 प्रतिशत मिश्रण के स्तर को हासिल कर लें।
मिश्रण स्तर में वृद्धि से आयातित जैव ईंधन पर निर्भरता कम होगी और वायु प्रदूषण भी कम होगा। भट्टियों की क्षमता में वृद्धि/नयी भट्टियां लगाने से ग्रामीण इलाकों में नए रोजगार अवसरों का सृजन होगा और इस तरह आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।