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लाखों परिवारों की जिंदगी बर्बाद करने वाले चिटफंड के लिए सरकार ने लोकसभा में संशोधन विधेयक पेश किया attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 नवंबर ।केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने सोमवार को लोकसभा में चिट फंड संशोधन विधेयक 2019 पेश किया जिसका उद्देश्य चिट फंड क्षेत्र का सुव्यवस्थित विकास करने के लिए इस उद्योग के समक्ष आ रही अड़चनों को दूर करना है।

सदन में विधेयक पेश करते हुए ठाकुर ने कहा कि चिट फंड सालों से छोटे कारोबारों और गरीब वर्ग के लोगों के लिए निवेश का स्रोत रहा है लेकिन कुछ पक्षकारों ने इसमें अनियमितताओं को लेकर चिंता जताई थी जिसके बाद सरकार ने एक परामर्श समूह बनाया।

उन्होंने कहा कि 1982 के मूल कानून को चिट फंड के विनियमन का उपबंध करने के लिए लाया गया था। संसदीय समिति की सिफारिश पर इसमें अब संशोधन के लिए विधेयक लाया गया है।

उक्त विधेयक पिछले लोकसभा सत्र में पेश किया गया था लेकिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही यह निष्प्रभावी हो गया।

विधेयक में व्यक्तियों की संकलित चिट रकम की अधिकतम सीमा को एक लाख रुपये से संशोधित करके तीन लाख रुपये करने का प्रावधान किया गया है। ठाकुर ने कहा कि चिट फंड को नकारात्मकता के साथ देखा जाता रहा है, इसलिए इसकी छवि सुधारने के लिए विधेयक में कुछ दूसरे नाम भी सुझाये गये हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘चिट फंड अवैध नहीं, वैध कारोबार है।’’ ठाकुर ने कहा कि राज्य चिट की सीमा निर्धारित कर सकते हैं।

विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के सप्तगिरि उलका ने कहा कि यह विधेयक असंगठित क्षेत्र के लिए पर्याप्त नहीं लगता।

उन्होंने कहा कि केवल नाम बदलने से समाधान नहीं निकलेगा, बल्कि इसका पूरी तरह से नियनम जरूरी है।

उलका ने कहा कि पहले से जो चिट फंड हैं, वह इस विधेयक के दायरे में नहीं आएंगे। सरकार इस संबंध में बताए कि क्या पहले से चालू चिट फंड इस विधेयक के दायरे में आ सकते हैं।

उन्होंने अपने गृह राज्य ओडिशा में चिट फंड के कथित घोटालों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार बताए कि राज्य में इस संबंध में सीबीआई जांच की क्या स्थिति है।

उलका ने कहा कि चिट फंड में कथित राजनीतिक संरक्षण भी होता है इसलिए सारे अधिकार राज्य सरकार को नहीं दिये जाने चाहिए।

उन्होंने विधेयक में और प्रावधान शामिल करने का सुझाव देते हुए इसे स्थाई समिति को भेजने की मांग की

चिट फंड में गरीब का पैसा नहीं डूबना चाहिए: विपक्ष

विपक्ष ने कहा है कि चिट फंड के माध्यम से गरीबों का पैसा मारा जाता है तथा ओडिशा में 20 लाख निवेशकों के हजारों करोड़ रुपए इसमें डूबे हैं और भविष्य में यह स्थिति पैदा नहीं हो इसलिए सख्त कानून बनाने के वास्ते इस संबंध में पेश विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजना चाहिए।

लोकसभा में चिट फंड (संशोधन) विधेयक 2019 पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के सप्तगिरि उल्का ने कहा कि ओडिशा में चिट फंड कंपनियों के कारण 20 लाख छोटे-छोटे गरीब निवेशकों के चिट फंड में दस हजार करोड़ रुपए डूबे हैं और इस घोटाले में अभी तक गरीबों काे न्याय नहीं मिला है। घोटाले में सबसे ज्यादा पैंसा गरीबों का डूबा है और उनके समक्ष जीवन मरण का सवाल खड़ा हुआ है।

बसपा के रीतेश पांडे ने विधयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि इस विधेयक में ‘‘वित्तीय साक्षरता’’ को नजरअंदाज किया गया है। साथ ही, चिट फंड पर नियम बनाने के लिये राज्य सरकार को भी अधिकार मिलना चाहिए। टीआरएस के के. पी. रेड्डी ने कहा कि लोग अधिक निवेश पाने के लिये चिटफंड में निवेश करते हैं। इसमें होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिये सख्त कानून की जरूरत है। पंजीकृत चिटफंड द्वारा खुद को दिवालिया घोषित किये जाने की स्थिति में ना तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और ना ही सरकार निवेशकों की कोई मदद कर सकती है। अभी देश में करीब 3,000 चिटफंड कंपनियां संचालित हो रही हैं।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा, ‘‘यदि सदन में देश की आर्थिक हालत और मंदी पर चर्चा की जाती तो मुझे कहीं अधिक खुशी होती।’’ उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में उपभोक्ता खर्च पिछले 40 साल में सबसे निचले स्तर पर है। देश में सबसे बड़ी समस्या का सामना ग्रामीण भारत कर रहा है।

उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार के इरादे पर संदेह नहीं है लेकिन सवाल यह है कि नये अधिनियम को किस तरह से क्रियान्वित किया जाता है क्योंकि यह गरीबों से जुड़ा मुद्दा है। ग्रामीण स्तर पर महिलाएं छोटे-छोटे समूह बना कर इस तरह से बचत करती हैं। उन्होंने पूछा, ‘‘आप उनका नियमन कैसे करेंगे।’’ सुले ने कहा, ‘‘यदि जनधन योजना ने अच्छे से काम किया होता तो लोगों को चिटफंड की जरूरत नहीं पड़ती।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें (चिटफंड धोखाधड़ी से बचने के लिये) वित्तीय साक्षरता की जरूरत है। शीर्ष स्तर से लेकर निचले स्तर तक वित्तीय साक्षरता की जरूरत है।’’

कांग्रेस के एच वसंत कुमार ने कहा कि चिट फंड में निवेश करने का रास्ता वे लोग चुनते हैं जिनकी औपचारिक बैंकिंग तक पहुंच नहीं है। कम और मध्य आय वर्ग के लोग यह रास्ता चुनते हैं। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘मुझे लगता है कि सरकार ने वित्त मामलों पर स्थायी समिति की सिफारिशों को इस विधेयक में शामिल नहीं किया है।’’ उन्होंने चिटफंड को जीएसटी में छूट देने या इसे 12 फीसदी से घटा कर पांच फीसदी करने की मांग की। भाजपा की लॉकेट चटर्जी ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि बंगाल में जिन चिटफंड कंपनियों ने लोगों से धोखाधड़ी की है उसके मालिकों की संपत्ति जब्त की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बंगाल में चिटफंड एक परिवार की कंपनी है। प्रधानमंत्री को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।

उन्होंने आरोप लगाया कि ‘‘पूरी तृणमूल कांग्रेस इसमें शामिल है। इस पार्टी के कार्यकर्ता चिटफंड के एजेंट हैं।’’ तेदपा के जयदेव गल्ला ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि चिटफंड कंपनियों को एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) के समान सुविधाएं नहीं देना भेदभावपूर्ण है।

आरएसपी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने भी विधेयक का समर्थन किया लेकिन इस पर कुछ आपत्तियां भी जताईं। उन्होंने पूछा कि जो कुछ स्थायी समिति ने या सलाहकार समिति ने सुझाव दिये थे, उन्हें क्या विधेयक में शामिल किया गया है। इस विधेयक के मूर्त रूप लेने पर ग्रामीण भारत में लोगों की बचत प्रभावित होगी। खास तौर पर वे महिलाएं, जो छोटे-छोटे समूह बना कर बचत करती हैं। भाजपा के दिलीप घोष ने अकेले पश्चिम बंगाल में 250 से अधिक चिटफंड कंपनियां होने का जिक्र करते हुए कहा कि चिटफंड से एकत्र धन कहां जाता है उसकी सीमा नहीं है। इसमें नेता, अभिनेता और उद्योगपति सभी शामिल हैं। यहां तक कि इस पैसे का इस्तेमाल चुनाव लड़ने में भी होता है। उन्होंने दावा किया, ‘‘इस पैसे से जीत कर कुछ लोग यहां भी पहुंचे हैं।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि चिटफंड के कारोबार में राज्य सरकार (पश्चिम बंगाल) के नेता, मंत्री भी शामिल हैं।

चिटफंड संशोधन विधेयक, 2019 पर चर्चा अधूरी रही।

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