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बैंकों के जमाकर्ताओं के खातों में रखे धन पर बीमा गारंटी की सीमा बढ़ाने जा रही है केंद्र सरकार attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 नवंबर ।सहकारी क्षेत्र के पीएमसी बैंक घोटाले से उठे विवादों के बीच केंद्र सरकार बैंक खातों में रखे धन पर बीमा गारंटी की सीमा बढ़ाने की तैयारी में है। इसके लिये संसद के शीतकालीन सत्र में संशोधन विधेयक रखा जा सकता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को यहां संवाददाताओं के साथ बातचीत में यह जानकारी दी।सीतारमण ने कहा कि बैंक जमा एवं रिण गारंटी निगम अधिनियम योजना के तहत मौजूदा संरक्षण को वर्तमान में एक लाख रुपये की सीमा से ऊपर किया जाएगा।

वित्त मंत्री ने यह नहीं बताया कि बैंक जामा पर बीमा सुरक्षा की नयी सीमा कितनी होगी। एक लाख रुपये की सीमा 1993 में तय की गयी थी जिसे महंगाई और आयकर छूट की सीमा में बढ़ेतरी आदि को देखते हुए बढ़ाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है।

उन्होंने कहा कि बहुराज्यीय सहकारी बैंकों को नियमन के दायरे में लाने के मामले में मंथन जारी है। सहकारी बैंकों को भी नियमन के लिहाज से बैंकिंग नियमन कानून के दायरे में लाया जा सकता है। इस संबंध में तमाम संबंधित कानूनों पर गौर किया जा रहा है और ‘‘उम्मीद है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल इस बारे में विधेयक को जल्द मंजूरी देगा और इसे संसद के आगामी सत्र में ही पेश किया जा सकेगा।’’

जमा बीमा और रिण गारंटी निगम कानून 1961 में अस्तित्व में आया। इसके तहत गठित निगम रिजर्व बैंक की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है। इसकी स्थापना जुलाई 1978 में हुई थी। किसी बैंक के धराशायी होने की स्थिति में यह निगम बैंकों के जमा धारकों को उनकी जमा राशि पर एक लाख रुपये तक की गारंटी देता है। 1993 में संशोधन के बाद जमा गारंटी राशि को बढ़ाकर एक लाख रुपये किया गया था।

गैर बैंकिग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंकों से नकदी उपलब्ध कराये जाने के संबंध में वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘अगले सप्ताह बैंकों के साथ बैठक बुलाई गई है। सभी बैंकों से आंकड़े मंगवाये गये हैं। रिजर्व बैंक से भी इस बारे में जानकारी मांगी गई है। तभी इस संबंध में स्पष्ट तौर पर जानकारी प्राप्त हो सकेगी।’’ वित्त मंत्री से पूछा गया था कि सरकार ने एनबीएफसी को बैंकों से तरलता उपलब्ध कराने की पहल की थी अब तक कितनी नकदी एनबीएफसी तक पहुंची है। ऐसी रिपोर्टें हैं कि ऊंची रेटिंग वाली एनबीएफसी को ही बैंकों से नकदी प्राप्त हो पाई है।

दूरसंचार कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर बढ़े दबाव के बाद किसी बैंक से उनके कर्ज की किस्त नहीं लौटाये जाने के बारे में शिकायत के बारे में पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा कि उनके समक्ष ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है। दूरसंचार क्षेत्र के वित्तीय संकट पर वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘हम नहीं चाहते कोई कंपनी अपना परिचालन बंद करे। हम चाहते हैं कि कोई भी कंपनी हो वह आगे बढ़े।’’

उल्लेखनीय है कि दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों वोडाफोन आइडिया और एयरटेल ने दूसरी तिमाही के परिणाम में भारी घाटा दिखाया है। वोडाफोन ने जहां दूसरी तिमाही में 50 हजार करोड़ रुपये से कारपोरेट इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा तिमाही घाटा दिखाया है वहीं एयरटेल ने इस दौरान 23 हजार करोड़ रुपये से अधिक का तिमाही घाटा बताया है। दोनों कंपनियों को कुल मिलाकर दूसरी तिमाही में 74,000 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ है।

विनिवेश के मुद्दे पर वित्त मंत्री ने कहा कि एयर इंडिया सहित विनिवेश की सभी योजनायें आगे बढ़ रही हैं। चीजें तेजी से आगे बढ़ रही हैं। अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ‘‘फिलहाल यही कहा जा सकता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं। कुछ समय बाद चीजें अधिक स्पष्ट हो सकेंगी।

वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि सरकार दूरसंचार क्षेत्र की चिंताओं को दूर करने की इच्छा रखती है। इस क्षेत्र में समायोजित सकल आय (एजीआर) पर उच्चतम न्यायालय के हाल के निर्णय के बाद कंपनियों पर पुराने सांविधिक बकाये के भुगतान का दबाव पैदा हो गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘ सिर्फ दूरसंचार क्षेत्र ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में सभी कंपनियां कारोबार करने में सक्षम हों। अपने बाजार में ग्राहकों को सेवाएं दें और कारोबार में बनी रहें। इसी धारणा के साथ वित्त मंत्रालय हमेशा बातचीत करता रहता है और दूरसंचार उद्योग के लिए भी हमारा यही दृष्टिकोण है।’’

बृहस्पतिवार को दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों वोडाफोन आइडिया और एयरटेल ने अपने दूसरी तिमाही के परिणामों में भारी घाटा दिखाया है।

पिछले महीने न्यायालय ने एजीआर की सरकार द्वारा तय परिभाषा को सही माना था। इसके तहत कंपनियों की दूरसंचार सेवाओं के इतर कारोबार से प्राप्त आय को भी उनकी समायोजित सकल आय का हिस्सा मान लिया गया है। एजीआर पर न्यायालय के फैसले के बाद वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल और अन्य दूरसंचार सेवा प्रदाताओं पर सरकार की कुल 1.4 लाख करोड़ रुपये की पुरानी सांविधिक देनदारी बनती है।

न्यायालय का निर्णय आने के कुछ दिन के भीतर ही सरकार ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक सचिवों की समिति गठित कर दी। इसे दूरसंचार उद्योग पर वित्तीय दबाव से निपटने के उपाय सुझाने के लिए कहा गया है।

सीतारमण ने कहा कि सरकार का इरादा उन सभी लोगों की चिंताओं का समाधान करने का है जो न्यायालय के निर्णय के बाद भारी संकट से गुजर रहे हैं और जिन्होंने सरकार से संपर्क किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम इस बात को लेकर भी सचेत हैं कि उच्चतम न्यायालय ने हमारे पक्ष में आदेश दिया है और ऐसे में दूरसंचार विभाग की चिंताओं पर भी विचार किया जाना है। इसलिए इस संबंध में सरकार की वित्तीय स्थिति और फैसले के दूरसंचार उद्योग के लिए निहितार्थों को समझकर निर्णय लेना होगा।’’

सचिवों की समिति के बारे में सीतारमण ने कहा, ‘‘अभी उसका फैसला लेना बाकी है।’’

उन्होंने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र पर बकाया को लेकर किसी भी बैंक ने वित्त मंत्रालय को अपनी चिंता जाहिर नहीं की है।

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