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केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच 6टें दौर की वार्ता में पराली जलाने संबंधी अध्यादेश और प्रस्तावित विद्युत कानून को लेकर आपसी सहमति बनी,अगली बैठक 4 जनवरी को होगी attacknews.in

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर । सरकार और किसान संगठनों के बीच बुधवार को पराली जलाने संबंधी अध्यादेश और प्रस्तावित विद्युत कानून को लेकर आपसी सहमति बन गयी।

कृषि सुधार कानून को लेकर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों और सरकार के बीच हुयी वार्ता में पराली जलाने को लेकर किसानों पर की जाने वाली कार्रवाई तथा प्रस्तावित विद्युत सुधार कानून में सब्सिडी को समाप्त करने की आशंका पर दोनों पक्षों के बीच सहमित बन गयी।

बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री पीयूष गोयल शामिल हुए। श्री तोमर ने बाद में संवाददाताओं को बताया कि पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई और प्रस्तावित बिजली सुधार कानून में सब्सिडी समाप्त करने की आशंकाओं को दूर कर लिया गया है और इस पर दोनों पक्ष सहमत हैं। किसान संगठन चाहते हैं कि कृषि के लिए मिलने वाली बिजली पर किसानों की सब्सिडी जारी रहे और पराली जलाने की घटनाओं में किसानों पर कार्रवाई नहीं की जाए।

श्री तोमर ने कहा कि किसान तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार उनकी कठिनाईओं पर विचार करने के लिये तैयार है।

उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी है और जारी रहेगा। सरकार इस पर लिखित में आश्वासन देने को तैयार है। किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं।

कृषि मंत्री ने कहा कि किसान संगठनों के साथ वार्ता अत्यंत सौहार्दपूर्ण माहाैल में हुयी और उन्हें विश्वास है कि अगली बैठक में किसानों की समस्याओं का समाधान कर लिया जाएगा। दाेनाें पक्षों के बीच अगली बैठक चार जनवरी को होगी।

उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने और कृषि के क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिये अभूतपूर्व कार्य कर रही है। किसानों के मुद्दों पर सरकार संवदेना से विचार कर रही है और उन्हें आशा है कि आगे की बैठक में इसका समाधान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि 86 प्रतिशत लघु और सीमांत किसान हैं जिनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के लिये सरकार हर संभव प्रयास कर रही है।

किसानों के मसले के हल के लिए समिति के गठन का प्रस्ताव

किसान संगठनों के साथ वार्ता के दौरान सरकार ने आंदोलनरत किसानों की मांगों को लेकर एक समिति के गठन का प्रस्ताव रखा और कहा कि इस मसले के हल के लिए बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा।

सूत्रों के अनुसार सरकार ने किसान नेताओं से छठे दौर की बातचीत में कहा कि किसानों की मांगों के बारे में ‘बीच का रास्ता’ निकालना पड़ेगा और एक समिति तीन कृषि सुधार कानूनों के बारे में उनकी मांग पर विचार करने के लिए गठित की जायेगी। सरकार की ओर से हालांकि इस बारे में अभी कोई बयान नहीं आया।

सरकार ने इससे पहले इस माह की शुरुआत में एक समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा था जिसे किसानों ने ठुकरा दिया था।

इस बैठक के शुरू होने से पहले हालांकि किसान नेताओं ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की बात पर अड़े रहते हुए कहा कि इससे कम उन्हें कुछ मंजूर नहीं है।

बैठक से पहले केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल और नरेन्द्र तोमर ने किसानों के साथ गुरुद्वारे से लाया गया लंगर खाया।

कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने के लिए किसान संगठनों के साथ केंद्र की वार्ता

इससे पहले कृषि कानूनों पर एक महीने से ज्यादा समय से चल रहे गतिरोध को खत्म करने के लिए प्रदर्शनकारी किसानों के संगठनों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच छठे दौर की वार्ता बुधवार दोपहर शुरू हुई।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने यहां विज्ञान भवन में 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा शुरू की।

कुछ दिनों के अंतराल के बाद दोनों पक्षों के बीच छठे दौर की वार्ता आरंभ हुई । पिछली बैठक पांच दिसंबर को हुई थी।

आंदोलन कर रहे किसान अपनी मांगों पर डटे रहे कि केवल तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की प्रक्रिया और एमएसपी पर कानूनी गारंटी प्रदान करने समेत अन्य मुद्दों पर ही चर्चा होगी।

केंद्र ने सितंबर में लागू तीनों नए कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने के लिए ‘‘खुले मन’’ से ‘‘तार्किक समाधान’’ तक पहुंचने के लिए यूनियनों को 30 दिसंबर को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था।

‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने मंगलवार को अपने पत्र में कहा था कि एजेंडा में तीनों विवादित कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी देने के विषय को शामिल करना चाहिए।

छठे दौर की वार्ता नौ दिसंबर को ही होने वाली थी लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूनियन के कुछ नेताओं के बीच बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकलने पर बैठक रद्द कर दी गयी थी।

शाह से मुलाकात के बाद सरकार ने किसान संगठनों को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें नए कानून में सात-आठ संशोधन करने और एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने की बात कही थी। सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने से इनकार कर दिया था।

कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से हजारों किसान राष्ट्रीय राजधानी की अलग-अलग सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन में ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान हैं।

सरकार ने कहा है कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र में सुधार होगा और किसानों की आमदनी बढ़ेगी लेकिन प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को आशंका है कि नए कानूनों से एमएसपी और मंडी की व्यवस्था ‘कमजोर’ होगी और किसान बड़े कारोबारी घरानों पर आश्रित हो जाएंगे।

कृषि कानूनों को वापस लेने से ही मसला सुलझेगा: टिकैत

वही कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे नेताओं ने बुधवार को सरकार के साथ शुरू हुई छठे दौर की बातचीत से पहले स्पष्ट तौर पर कहा कि इस मसले का हल तीनों कानूनों को रद्द करने से ही निकलेगा।

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान तीनों नये कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी जामा पहनाये जाने पर ही अपना आंदोलन समाप्त करने को राजी होंगे।

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