साध्वी प्राची ने कहा:मुसलमानों का अब अली पर विश्वास नहीं ,बैठना चाहते हैं बजरंग बली की गोद मे ;लव जेहाद हिंदुस्तान में एक सोची समझी साज़िश,इसके लिये विदेशो से फंडिंग,मदरसों में लव जेहाद की तालीम attacknews.in

बदायूँ/मुरादाबाद 09 नवम्बर । अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाली फायर ब्रांड हिंदूवादी नेत्री साध्वी प्राची ने आज यहां कहा कि मुसलमानों का अली से विश्वास उठ गया है ओर अब वे बजरंगबली की गोद में बैठना चाहते हैं ।

बदायूं के बिसौली में एक निजी कार्यक्रम में पहुची साध्वी प्राची ने मीडिया से वृंदावन के नंद बाबा मंदिर में मुस्लिम युवकों द्वारा नमाज़ पढ़ने पर कहा कि मुसलमान बजरंगबली की गोद मे बैठना चाहते हैं । वहां के पुजारी ने बताया पहले युवक आये ,अच्छी अच्छी बातें की उसके बाद मौका देख कर नमाज़ पढ़ी। मुसलमान अगर सभी मस्जिदों में बजरंगबली को विराजमान करने के बाद नमाज़ पढ़े तो कोई आपत्ति नही है।

साध्वी बोली,लव जेहाद हिंदी फिल्म उद्योग की देन:

फायर ब्रांड हिंदुवादी नेता साध्वी प्राची ने देश में लव जिहाद के लिये मुंबइया फिल्म को जिम्मेदार ठहराते हुए आज कहा कि दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्मी पैटर्न का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।इसका समय रहते हल नहीं निकाले जाने के भयावह परिणाम सामने आएंगे।

उन्होंने कहा कि देश की बरबादी का रास्ता मुंबइया फिल्मी पैटर्न से होकर जाता है। लव जेहाद हिंदुस्तान में एक सोची समझी साज़िश के तहत चल रहा हैं और इसके लिये विदेशो से फंडिंग हो रही है1मदरसों में लव जेहाद की तालीम दी जा रही है,जिसमें हिन्दू धर्म की युवती को फंसाने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है,यह स्थिति चिंताजनक है।

उन्होंने आरोप दावा किया कि ब्राह्मण समाज की लड़की के लिए 25 लाख मिलते है,जबकि क्षत्रिय समाज की लड़की के लिए 20 लाख ,वही वैश्य की लड़की के लिए 15 लाख रुपये ,और शुद्र की लड़की के लिए 10 लाख रुपया दिया जा रहा है ।

लव-जिहाद के खिलाफ बनने वाले कानून पर पूछे गए सवाल पर कहा कि ऐसा करने वालों को सरेआम चौराहे पर फांसी की सज़ा देने का कानून बनना चाहिए।

साध्वी प्राची ने देश मे बढ़ रही जनसंख्या पर कानून बनाने की तरफदारी की और कहा कि देश में दो बच्चों के कानून को लागू करने की आवश्यकता है । दो बच्चों का कानून बनना जरूरी है।

अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने के लिए महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि रिपब्लिक भारत के एडिटर अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी सच को दबाने की कोशिश कभी कामयाब नहीं होंगी। देश में आपातकाल लगाकर सच को दबाने का काम कांग्रेस की फ़ितरत में पहले से है और ये सब नेहरू की देन है। सच की आवाज़ को नही दबाया जा सकता।

मथुरा के मंदिर में नमाज पढ़ने के मामले में जवाब देते हुए साध्वी प्राची ने कहा कि भाईचारा गैंग हिंदुस्तान में काम कर रहा है1 अगर इतना ही भाई चारा दिखाने का शैाक है तो हिंदुस्तान की सारी मस्ज़िद तोड़कर मन्दिर बनाना चाहिए,क्योकि वो सब पहले भी मंदिर ही थे। उन्होंने कहा कि वो शीघ्र ही लखनऊ पहुँच रही है जहां मस्जिद में करेंगी हवन।

बहुत ही खास है इस साल का करवा चौथ,4 नवंबर को चतुर्थी तिथि भोर 3 बजकर 24 मिनट से अगले दिन 5 नवम्बर को 5 बजकर 14 मिनट तक, चंद्रोदय का समय रात 8 बजकर 15 मिनट पर ;आईटी युग में भी कम नहीं हुआ है करवा चौथ का क्रेज attacknews.in

बस्ती/ प्रयागराज 03 नवम्बर ।उत्तर भारत में पति की लंबी उम्र के लिये मनाया जाने वाला करवा चौथ त्योहार कोरोना कालखंड में कुछ खास माना जा रहा है।

सनातन धर्म के प्रकांड विद्वानो के मुताबिक निर्जला व्रतधारी विवाहिताओं के लिये इस साल यह पर्व इसलिये खास है क्योकि यह व्रत बुधवार को पड़ रहा है और बुध के कारक देवता विघ्न विनाशक श्री गणेश जी माने जाते हैं वहीं इस व्रत में भी श्री गणेश का विशेष महत्व माना गया है।

पंडित हरीश प्रसाद दूबे ने बताया कि इस बार ये व्रत चार नवंबर को चतुर्थी तिथि भोर तीन बजकर 24 मिनट से अगले दिन पांच नवम्बर को पांच बजकर 14 मिनट तक रहेगी। करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय रात आठ बजकर 15 मिनट पर है।

उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है जिसमें मुख्य रूप से सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियां द्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं। व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

श्री दूबे ने बताया कि सौभाग्यवती (सुहागिन) सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफाई करें फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें,यह व्रत उनको संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए। संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए खास मिट्टी के कलश) रखें,पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे,चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए।

उन्होने एक कथा का वर्णन करते हुए बताया कि करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी।सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला – व्रत तोड़ लोय चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला।

शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया,जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया ।

आईटी युग में भी कम नहीं हुआ है करवा चौथ का क्रेज

पाश्चात्य जीवनशैली को अपनाने की होड़ और मोबाइल इंटरनेट की दुनिया में गोते लगाती जिंदगी ने पारंपरिक त्योहारों का आकर्षण भले ही प्रभावित किया हो लेकिन पौराणिक काल से ही पति पत्नी के बीच असीम प्रेम के प्रतीक रहे ‘करवा चौथ’ के पर्व का क्रेज दिनो दिन बढ़ता जा रहा है।

सुहागिन स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिये निर्जला व्रत और फिर चांद देखकर व्रत तोड़ने की परम्परा में अब पति भी बराबर के भागीदार बन रहे है और खुशहाल दाम्पत्य जीवन की कामना के साथ कई पुरूष भी अपनी जीवन संगिनी के साथ व्रत रखते है। उत्तर प्रदेश समेत विशेषकर उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में बुधवार को करवाचौथ का त्योहार मनाया जायेगा।

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवाचौथ पर्व पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था लेकिन आज यह पति.पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक दौर भी इस परंपरा को डिगा नहीं सका है बल्कि इसमें अब ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति की गहराई दिखाई देती है।

करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा यानी मिट्टी का बरतन और चौथ यानि चतुर्थी। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। इस व्रत में भगवान शिव शंकर माता पार्वती कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। माना जाता है करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है! उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति.पत्नी के मजबूत रिश्तेए प्यार और विश्वास का प्रतीक है।

सामाजिक कार्यो में विशेष रूचि रखने वाली डा रश्मि सिंह ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से करवाचौथ का त्योहार का भी ग्लोबलाइजेशन हो गया है और अब करवा चौथ देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। विदेशों में ‘‘देसी वाइफ इंग्लिश लाइफ” के बीच भी महिलाएं बखूबी संतुलन बनायी हैं। पश्चिमी परिधानों की आदी हो चुकी ये महिलाएं जब भी धार्मिक और सांस्कृतिक सभ्यता की बात आती है तो उनका देशी लुक पूर्ण रूप से भारतीय हो जाता है।

करवा चौथ पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत अन्य कई प्रदेशों के साथ इंग्लैंड अमेरिका, यूरोप, कैनेडा और सूरीनाम आदि देशों में रहने वाले भारतीय परंपरागत ढंग से मनाते हैं।

उन्होने बताया कि इस पर्व को पहले पत्नियां ही करती थी लेकिन बदलते परिवेश में पति भी अपने सफल दाम्पत्य जीवन के लिए पत्नी के साथ निर्जला व्रत का पालन करने लगे है। मोबाइल फोन और इंटरनेट के दौर में करवा चौथ के प्रति महिलाओं में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आयी बल्कि इसमें और आकर्षण बढ़ा है। टीवी धारावाहिकों और फिल्मों से इसको अधिक बल मिला है। करवा चौथ भावना के अलावा रचनात्मकताए कुछ.कुछ प्रदर्शन और आधुनिकता का भी पर्याय बन चुका है।

डा सिंह ने बताया कि इस पर्व की महत्ता न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरूषों के लिए भी है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और फिर पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं। उन्हाेने बताया कि इस व्रत में चन्द्रमा को छलनी में देखने का विधान इस बात की ओर इंगित करता है कि पतिण्पत्नी एक दूसरे के दोष को छानकार सिर्फ गुणों को देखें जिससे दाम्पत्य के रिश्ते प्यार और विश्वास की डोर से मजबूती के साथ बंधे रहे। पति और पत्नि गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिया हैं। किसी एक के भी बिखरने से पूरी गृहस्थी टूट जाती है।

डा सिंह ने बताया कि पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। यह पर्व पति-पत्नी का बन चुका है क्योंकि दोनों गृहस्थी रुपी गाड़ी के दो पहिए है। निष्ठा की धुरी से जुड़े हैं इसलिए संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए दोनों ही व्रत करते हैं।

उन्होने बताया कि बदलाव आधुनिकता का जरूर है लेकिन संस्कृति और परंपराओं के निभाने की पूरी ललक विवाहिताओं में साफ दिखाई दे रही है। आजकल के मॉडर्न जमाने में भी करवा चौथ त्योहार मनाने को लेकर पीढ़ी अंतराल के बावजूद कोई खास बदलाव नहीं आया है। रिश्तों और पुरानी परंपराओं को सहेजने में नई पीढ़ी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। करवाचौथ को अधिक बल फिल्मों और टीवी धारावाहिकों से मिला है।

करवाचौथ के व्रत का अरम्भ कब से शुरू हुआ इसकी सटीक विवरण उपलब्ध नहीं है। इसका विवरण शास्त्रों, पुराणों और महाभारत में मिलता है। श्वामन पुराण में भी करवा चौथ व्रत का वर्णन मिलता है। करवा चौथ से जुड़ी अनेक कथायें भी प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और दानवों के साथ युद्ध से भी जुड़ा है इसका इतिहास। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने.अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

ब्रह्मदेव ने वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।

कान्हानगरी मथुरा में लंकेश रावण का गुणगान किया गया और की गई पूजा,लंकेश का विशाल भव्य मन्दिर बनवाने की भी घोषणा की गई attacknews.in

मथुरा 25 अक्टूबर । उत्तर प्रदेश की कान्हानगरी मथुरा में लंकेश भक्त मंडल ने रविवार को यमुना तट पर स्थित शिव मन्दिर में घंटे, घड़ियाल, शंख ध्वनि एवं वैदिक मंत्रो के बीचय विधि विधान से रावण की पूजा की। इस अवसर पर मथुरा में लंकेश का विशाल भव्य मन्दिर बनवाने की भी घोषणा की गई।

रावण की भूमिका निभा रहे कुलदीप अवस्थी एवं अन्य द्वारा सबसे पहले भगवान शिव की पूजा अर्चना की गई और उन लोगों को सदबुद्धि देने की प्रार्थना की गई जो हर साल रावण के पुतले का दहन करते हैं और खुश होते हैं। विधिविधान से कई घंटे तक चले पूजन के बाद भावमय वातावरण में रावण की आरती की गई और सबसे अंत में उपस्थित जन समुदाय में प्रसाद वितरित किया गया । प्रसाद वितरण के दौरान बीच बीच में ‘जय लंकेश’ के गगनभेदी नारे भी लगाए गए।

इस अवसर पर लंकेश भक्त मंडल के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने कहा कि पुतला दहन की परंपरा को शास्त्र और संविधान अनुमति नहीं देता। धार्मिक ग्रंथों में पुतला दहन का कोई प्रसंग नहीं है। वैसे भी किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद बार-बार उसका पुतला दहन की कोई परंपरा नही है। कुछ लोगों के द्वारा प्रतिवर्ष पुतला दहन की जो परंपरा चलाई जा रही है वह एक कुप्रथा है इसे सभी को मिलकर दूर करना चाहिए। रावण के पुतला दहन से न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है बल्कि आनेवाली पीढ़ी को गलत संदेश दिया जाता है।

उनका कहना था कि रावण प्रकाण्ड विद्वान और संस्कारी था। उसकी अच्छाइयों से सीख लेनी चाहिए तथा उनकी तपस्या उनकी शक्ति से प्रेरणा लेनी चाहिए। रामेश्वरम मे हिन्द महासागर पर सेतु का निर्माण शुरू होने के पहले उसने सीता के साथ राम से पूजन ही नही कराया था बल्कि स्वयं पर विजय पाने का आशीर्वाद भी श्रीराम को दिया था। चूंकि सनातन धर्म में विवाहित व्यक्ति द्वारा किसी शुभ कार्य के पहले सपत्नीक ही पूजन किया जाता है इसलिए रावण लंका से सीता को अपने साथ ले गया था तथा पूजन कराने के बाद पुनः अशोक वाटिका में सीता को छोड़ दिया था। वह कभी भी सीता से मिलने अकेले नही गया। ऐसे उ़़च्च चरित्र के संस्कारी महामानव के पुतले का हर साल दहन नई पीढ़ी में कुसंस्कार पैदा करना है।

मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम रावण की विद्वता से प्रभावित थे तभी तो रावण के जीवन की अंतिम यात्रा के समय उन्होंने लक्ष्मण को रावण से शिक्षा लेने के लिए भेजा था।

कार्यक्रम के अन्त में उपस्थित समुदाय ने शपथ ली कि वह रावण का पुतला दहन न करने के लिए जनजागरण करेंगे।इस अवसर पर लंकेश मन्दिर बनाने की घोषणा का करतलध्वनि से स्वागत किया गया।

उत्तराखंड स्थित भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ, भगवान विष्णु के धाम बद्रीनाथ, मां गंगा के गंगोत्री और मां यमुना के धाम यमुनोत्री के कपाट शीतकाल के लिये बन्द करने की तिथियां घोषित attacknews.in

देहरादून, 25 अक्टूबर । उत्तराखंड स्थित भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ, भगवान विष्णु के धाम बद्रीनाथ, मां गंगा के गंगोत्री और मां यमुना के धाम यमुनोत्री के कपाट शीतकाल के लिये बन्द करने की तिथियां रविवार को निश्चित कर दी गईं। साथ ही, उच्च पर्वत श्रंखलाओं पर स्थित बाबा तुंगनाथ और मद्महेश्वर धाम के कपाट बंद होने की भी तिथियां घोषित कर दी गईं।

विजयादशमी पर आयोजित सभी मंदिर समितियों की आयोजित बैठकों में आज यह निर्णय लिया गया।

गंगोत्री मंदिर समिति की बैठक में धाम के कपाट अन्नकूट के अवसर पर 15 नवंबर को दोपहर 12:15 बजे बंद किए जाएंगे।

मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल ने बताया कि दोपहर 12:30 बजे मां गंगा की डोली मुखबा के लिए रवाना होगी तथा भैया दूज पर 16 नवंबर को मुखबा स्थित गंगा मंदिर में मां गंगा की मूर्ति को स्थापित किया जाएगा।

यमुनोत्री धाम के कपाट 16 नवंबर को भैयादूज पर दोपहर सवा बारह बजे अभिजीत लग्न पर शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे

“मक्का” में कोरोना साया के बीच पाबंदियों के ढील के साथ “उमरा” करने की अनुमति सीमित संख्या और सीमित समय के साथ आन-लाइन दी जाना शुरू attacknews.in

रियाद, चार अक्टूबर (एपी) कोरोना वायरस की महामारी की वजह से महीनों से लागू पांबदियों में ढील देने के साथ रविवार को इस्लाम के सबसे पवित्र स्थान मक्का में उमरा करने पारंपरिक सफेद लिबास में लोगों का एक छोटा जत्था पहुंचा।

उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब ने मार्च की शुरुआत में कोविड-19 महामारी के चलते मक्का में उमरा करने पर रोक लगा दी थी जिसमें शामिल होने दुनिया भर के लाखों मुसलमान हर साल मक्का पहुंचते हैं।

हालांकि, सऊदी अरब ने अब इन पाबंदियों में ढील दी है और रविवार से रोजाना अधिकतम 6,000 लोगों को मक्का की विशाल मस्जिद में इबादत करने की अनुमति दी।

सऊदी अरब सरकार ने पहले चरण में केवल सऊदी नागरिकों को ही मक्का की विशाल मस्जिद में इबादत करने की अनुमति दी है और प्रत्येक व्यक्ति केवल तीन घंटे ही परिसर में रह सकता है।

मक्का की मस्जिद में कोविड-19 के मद्देनजर सभी एहतियात बरते जा रहे हैं। दिन में कई बार परिसर को रोगाणु मुक्त किया जा रहा है और मस्जिद आने से पहले यात्री को ऑनलाइन आवेदन कर समय लेना होगा।

इटावा की 164 साल पुरानी लोकप्रिय विश्वविख्यात रामलीला पर पड़ा कोरोना का साया,आयोजकों ने अनुमति मिलने पर ही आयोजन करने की ठानी attacknews.in

इटावा, 28 सितम्बर । उत्तर प्रदेश में इटावा के जसवंतनगर में सैकडों सालों से आयोजित होने वाली विश्वविख्यात रामलीला वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की भेंट चढती दिखाई दे रही है।

रामलीला कमेटी के व्यवस्था प्रभारी अजेंद्र सिंह गौर ने रविवार को बताया कि रामलीला कमेटी प्रंबध तंत्र की हुई बैठक मे निर्णय लिया गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित एवं युद्ध प्रदर्शन की प्रधानता वाली रामलीला आयोजन के लिए अगर पूर्व की तरह अनुमति मिलेगी तो आयोजन किया जायेगा अन्यथा औपचारिकता निभाने के लिए रस्म अदायी करने के बजाय रद्द करना अधिक बेहतर होगा।

शासन.प्रशासन की ओर से अनुमति न मिलने के कारण मैदानी रामलीला के मंचन पर संकट के बादल दिखाई दे रहे हैं। रामलीला के आयोजन की शुरुआत होने में अब एक माह से भी कम समय बचा है । इसकी अभी तक ना तो इसके लिए कोई तैयारी शुरू हुई है लेकिन एक रामलीला समिति के सदस्यो ने अपनी बैठक मे तय किया है कि अगर पूर्व की भंति रामलीला आयोजन की अनुमति मिलेगी तो ही करना संभव होगा अन्यथा केवल औपचारिकता का कोई उद्देश्य नहीं है।

श्री गौर ने बताया कि माॅरीशस, त्रिनिदाद, थाईलैंड, इंडोनेशिया जैसे देशों के रामलीला प्रेमी जसवंतनगर शैली की रामलीला के बड़े मुरीद हैं। यहां लीलाओं का प्रदर्शन अपनी विशेष शैली के अनुरूप किया जाता है यहां के पात्रों की पोशाकों से लेकर युद्ध प्रदर्शन में प्रयुक्त किए जाने वाले असली ढाल, तलवारों, बरछी, भालों, आसमानी वाणों आदि का आकर्षण देखने के लिए दर्शकों को खींच लाता है।

कुछ वर्षों पूर्व जब दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियन देश त्रिनिदाद , क्रिकेट की शब्दावली में वेस्टइंडीज का एक देश से रामलीला पर शोध कर रही डा इंद्राणी रामप्रसाद जब यहां का रामलीला का प्रदर्शन देखने जसवंतनगर आई तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई की रामलीला का प्रदर्शन इस तरह भी हो सकता है। बाद में दुनिया की 400 रामलीलाओं का अध्ययन करने के बाद उन्होंने जब अपनी थीसिस लिखी तो उसमें जसवंतनगर की मैदानी रामलीलाओं को उन्होंने दुनिया की सबसे बेहतरीन रामलीला बताते हुए विभिन्न रामलीलाओं का वर्णन किया ।

डा इंद्राणी रामप्रसाद को त्रिनिनाद विश्वविद्यालय से रामलीला के प्रदर्शन विषय पर डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने इसके बाद पूरी दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदू समुदाय के लोगों तक इस रामलीला की खूबियों और आकर्षण को पहुंचाने का काम किया । इसके बाद ही लोग समझ सके कि जसवंतनगर की रामलीला दुनिया में बेजोड़ है।

दुनिया भर मे जहां-जहां रामलीलाएं होती है, इस तरह की रामलीला कहीं भर भी नही होती है। इसी कारण साल 2010 मे यूनेस्को की ओर से रामलीलाओ के बारे जारी की गई रिर्पोट मे भी इस रामलीला को जगह दी जा चुकी है। 164 साल से अधिक का वक्त बीत चुकी इस रामलीला का आयोजन दक्षिण भारतीय तर्ज पर मुखोटो को लगाकर खुले मैदान मे किया जाता है । त्रिनिदाद की शोधार्थी इंद्राणी रामप्रसाद करीब 400 से अधिक रामलीलाओ पर शोध कर चुकी हैं लेकिन उनको जसवंतनगर जैसी होने वाली रामलीला कही पर भी देखने को नही मिली है।

यहाँ की रामलीला का इतिहास करीब 164 वर्ष पुराना है और ये खुले मैदान में होती है। यहाँ रावण की आरती उतारी जाती है और उसकी पूजा होती है। हालाँकि ये परंपरा दक्षिण भारत की है लेकिन फिर भी उत्तर भारत के कस्बे जसवंतनगर ने इसे खुद में क्यों समेटा हुआ है ये अपने आप में ही एक अनोखा प्रश्न है। जानकार बताते है कि रामलीला की शुरुआत यहाँ 1855 मे हुई थी लेकिन 1857 के गदर ने इसको रोका फिर 1859 से यह लगातार जारी है।

विश्व धरोहर में शामिल जमीनी रामलीला के पात्रों से लेकर उनकी वेशभूषा तक सभी के लिए आकर्षक का केन्द्र होती है । भाव भंगिमाओ के साथ प्रदर्शित होने वाली देश की एकमात्र अनूठी रामलीला में कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे प्राचीन तथा देखने में अत्यंत आकर्षक प्रतीत होते हैं । इनमें रावण का मुखौटा सबसे बड़ा होता है तथा उसमें दस सिर जुड़े होते हैं।
ये मुखौटे विभिन्न धातुओं के बने होते हैं तथा इन्हें लगा कर पात्र मैदान में युद्ध लीला का प्रदर्शन करते है । इनकी विशेष बात यह है कि इन्हें धातुओं से निर्मित किया जाता है तथा इनको प्राकृतिक रंगों से रंगा गया है। सैकड़ों वर्षों बाद भी इनकी चमक और इनका आकर्षण लोगों को आकर्षित करता है ।

मुसलमानों के खिलाफ नॉर्डिक देशों में तेजी से फैल रही है नफरत की आग,एक के बाद एक कुरान जलाने की घटनाएं आई सामने attacknews.in

स्टाॅकहोम 13 सितम्बर । स्वीडन और नॉर्वे जैसे नॉर्डिक देशों में एक के बाद एक मुस्लिम-विरोधी भावनाएं भड़काने और कुरान जलाने की घटनाएं सामने आई हैं. मुसलमानों की धार्मिक पुस्तक कुरान का अपमान कर धुर दक्षिणपंथी आखिर दंगे क्यों भड़का रहे हैं,इसे लेकर अलग रूप में विकसित हो रहे कट्टरपंथी विचार इसे आग में घी डालने का काम कर रहे हैं ।

स्वीडन के दक्षिणी शहर मालमो में बीते हफ्ते विरोध प्रदर्शन करने इकट्ठा हुए 300 से भी अधिक धुर-दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने कुरान को आग लगा दी, जिसके बाद वहां दंगे भड़क उठे. पुलिस ने बताया कि इससे नाराज लोगों ने शहर में जगह जगह संपत्ति को आग लगाई और पुलिस और बचाव दल के लोगों पर हमला किया. इसमें कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए और दंगा फैलाने के आरोप में 15 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया।

मालमो स्वीडन का तीसरा सबसे बड़ा शहर है जिसके 320,000 निवासियों में से करीब 40 फीसदी विदेशी मूल के हैं. प्रवासी-बहुल शहर मालमो के निवासी शाहेद ने स्थानीय समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा, “यह सही नहीं हुआ… लेकिन ऐसी नौबत ही नहीं आती अगर उन लोगों ने कुरान नहीं जलाई होती.”

पुलिस का मानना है कि मुस्लिम प्रवासी बहुल इलाके में मुसलमानों की सबसे पवित्र किताब कुरान को जलाकर उसका अपमान करने और उन्हें भड़काने की जानबूझ कर कोशिश की गई. स्थानीय समाचारपत्रों में छपी खबरों में बताया गया कि धुर दक्षिणपंथियों ने इसीलिए मालमो में कुरान को जलाने की योजना बनाई थी. घटना के बाद पुलिस ने ऐसे तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया जिन पर जानबूझ कर एक समुदाय विशेष के खिलाफ घृणा फैलाने का संदेह था।

एक विवादित नेता से जुड़े हैं तार

शुक्रवार को मुसलमानों की नमाज के दिन ही एक अन्य पड़ोसी नॉर्डिक देश डेनमार्क में आप्रवासी-विरोधी पार्टी ‘स्ट्रीम कुर्स’ के एक नेता रासमुस पालुदान स्वीडन के इस शहर में आकर भाषण देने वाले थे. हालांकि अशांति फैलने की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने पालुदान पर अगले दो साल तक स्वीडन में कहीं भी प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया. पुलिस ने बाद में इस नेता को मालमो के पास से ही गिरफ्तार किया. पुलिस के प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें संदेह था कि वह “स्वीडन में कानून को तोड़ने जा रहे हैं और उनकी हरकत से समाज को खतरा हो सकता है.”

यूट्यूब और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर काफी सक्रिय इस नेता और वकील पर लगे इस प्रतिबंध को लेकर उनके समर्थक काफी नाराज हुए. पालुदान ने फेसबुक पर लिखा था, “वापस लौटा दिया गया और दो साल के लिए स्वीडन से बैन कर दिया गया. जबकि बलात्कारियों और हत्यारों का हमेशा स्वागत है!”

शनिवार को भी स्वीडन की नॉर्वे से लगी सीमा पर एक समूह ने मुसलमान-विरोधी प्रदर्शन किए. इस प्रदर्शन के दौरान भी एक महिला ने कुरान का अपमान किया.

घृणा फैलाने की कार्रवाई पर प्रतिक्रिया

इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र के एलायंस ऑफ सिविलाइजेशंस के प्रमुख की ओर से उनकी प्रवक्ता ने बयान दिया कि “वह दक्षिण चरमपंथियों द्वारा कुरान को जलाने की साफ तौर पर निंदा करते हैं और यह घृणित और पूरी तरह अस्वीकार्य है.”

संस्था के प्रमुख मिगेल मोरातिनोस की ओर से प्रवक्ता निहाल साद ने कहा कि वे सभी धर्म के नेताओं का आह्वान करते हैं कि वे धर्म के आधार पर हिंसा ना करें और समझे कि “ऐसी घटिया हरकतें नफरत फैलाने वाले और कट्टरपंथी समूह करते हैं जिससे समाज की बुनावट को उधेड़ा जा सके.” यूएन की यह संस्था धर्मों और संस्कृतियों के बीच बातचीत और समझ को बढ़ाने के प्रयास करती है।

धार्मिक समुदायों से जुड़ी स्वीडन की एजेंसी देश में मुसलमानों की संख्या चार लाख से ऊपर बताती है. लेकिन साथ ही साथ बीते सालों में स्वीडन में दक्षिणपंथी भी काफी मजबूत हुए हैं. नॉर्डिक देशों से ऐसी हिंसा के तार 15 साल पहले की घटना से जुड़े दिखते हैं, जब सितंबर 2005 में डेनमार्क के एक अखबार ने मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद साहब के विवादित कार्टून छापे थे. इसकी पूरे विश्व से प्रतिक्रिया देखने को मिली थी और उन पर आतंकी हमला कराए जाने तक की धमकियां मिली थीं. उसके बाद से इस डेनिश अखबार ने फिर कभी ऐसे कार्टून प्रकाशित नहीं किए।

सुरक्षा कारणों के मद्देनजर, डेनमार्क के इस अखबार ‘जीलैंड्स-पोस्टेन’ ने 2015 में शार्ली एब्दो के कार्टून छापने से भी इनकार कर दिया था. 2015 में फ्रांस की पत्रिका शार्ली एब्दो के पेरिस दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें पैगंबर मोहम्मद का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट और दूसरे कर्मचारियों की हत्या कर दी गई.

शिया और सुन्नी मुसलमान आपस में क्यों झगड़ते हैं? शुरू से गहराये मतभेद आज भी कायम है और सत्ता संघर्ष की चुनौती के रूप मे खड़े है attacknews.in

नईदिल्ली 13 सितम्बर । सम्पूर्ण विश्व में शिया और सुन्नी मुसलमानों के विवाद सर्वविदित है और यह विवाद केवल धर्म की सत्ता को लेकर चुनौती देते हुए शुरू हुआ और आज वर्गों में बंट गया । जानिए संक्षिप्त में इसकी जानकारी:

विवाद की शुरुआत

इस विवाद की शुरुआत 632 ईसवी में पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद हुई. उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किए बिना की दुनिया को अलविदा कह दिया था. इसलिए सवाल खड़ा हुआ कि तेजी से फैलते धर्म का नेतृत्व कौन करेगा।

उत्तराधिकार पर झगड़ा

कुछ लोगों का ख्याल था कि नेता आम राय से चुना जाए जबकि दूसरे चाहते थे कि पैगंबर के किसी वंशज को ही खलीफा बनाया जाए. खलीफा का पद पैगंबर मोहम्मद के ससुर और विश्वासपात्र रहे अबु बकर को मिला जबकि कुछ लोग उनके चचेरे भाई और दामाद अली को नेतृत्व सौंपने के हक में थे।

मतभेद गहराए

अबु बकर और उनके दो उत्तराधिकारियों की मौत के बाद अली को खलीफा बनाया गया था. लेकिन तब तक दोनों धड़ों में मतभेद बहुत गहरा चुके थे. लेकिन फिर कुफा की मस्जिद में अली को जहर से बुझी तलवार से कत्ल कर दिया गया. यह जगह मौजूदा इराक में है।

सत्ता संघर्ष

अली की मौत के बाद उनके बेटे हसन खलीफा बने. लेकिन जल्द ही उन्होंने विरोधी धड़े के नेता माविया के लिए खलीफा का पद छोड़ दिया. सत्ता संघर्ष में हसन के भाई हुसैन और उनके बहुत से रिश्तेदारों को 680 में इराक के करबला में कत्ल कर दिया गया था।

मातम

हुसैन की शहादत उनके अनुयायी का मुख्य सिद्धांत बन गई. हर साल मोहर्रम के महीने में शिया लोग मातमी जुलूस निकालते हैं और उस घटना पर शोक जताते हैं. जुलूस में शामिल लोग अपने आपको कष्ट देते हुए और विलाप करते हुए सड़कों से गुजरते हैं।

कब खत्म हुई खिलाफत

सुन्नी मानते हैं कि अली से पहले पद संभालने वाले तीनों खलीफा सही और पैगंबर की सुन्नाह यानी परंपरा के सच्चे अनुयायी थे. अब्दुलमेजीद द्वितीय आखिरी खलीफा थे. पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोमान साम्राज्य के पतन के साथ ही खिलाफत भी समाप्त हो गई।

कैसे पड़े नाम

सुन्नाह यानी परंपरा को मानने वाले सुन्नी कहलाए जबकि शियाओं को उनका नाम “शियान अली” से मिला, जिसका अर्थ होता अली के अनुयायी. इस तरह दोनों की धड़ों का मूल एक ही है. लेकिन पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकार और विरासत पर उनके रास्ते जुदा हो गए।

कितने शिया और कितने सुन्नी

दुनिया में अब 1.5 अरब से ज्यादा मुसलमान हैं. इनमें 85 से 90 फीसदी संख्या सुन्नी हैं जबकि 10 प्रतिशत शिया हैं. संख्या से हिसाब से देखा जाए तो दुनिया भर में सवा अरब से ज्यादा सुन्नी हैं, वहीं शियाओं की तादाद 15 से 20 करोड़ मानी जाती है।

भेदभाव, शोषण, शिकायतें

सऊदी अरब, मिस्र और जॉर्डन समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से में सुन्नी मुसलमान रहते हैं. वहीं ईरान, इराक, बहरीन, अजरबैजान और यमन में शिया बहुसंख्यक हैं. सुन्नी शासन वाले देशों में शिया अकसर भेदभाव और शोषण की शिकायत करते हैं।

प्रतिद्वंद्वी

ईरान 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद एक अहम शिया ताकत के तौर पर उभरा है जिसे सुन्नी सरकारें और खास कर खाड़ी देशों की सरकारें अपने लिए चुनौती समझती हैं. मध्य पूर्व में ईरान और सऊदी अरब को एक दूसरे का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।

सियात की धुरी

मध्य पूर्व के देशों के बीच अकसर शिया सुन्नी विवाद सियासत की धुरी होता है. ईरान जहां शिया विद्रोहियों और शासकों का समर्थन करता है, वहीं सऊदी अरब सुन्नी धड़े के साथ मजबूत से खड़ा रहता है. ईरान और यमन के संकट इसकी एक मिसाल हैं।

टकराव

ईरान के साथ जब पश्चिमी देशों ने परमाणु समझौते पर डील की तो सऊदी अरब उसका बड़ा आलोचक था. ईरान और सऊदी अरब आए दिन एक दूसरे पर बयान दागते रहते हैं. कूटनीतिक तनाव के बीच सऊदी अरब ने 2016 में ईरानी लोगों को अपने यहां हज पर भी नहीं आने दिया था।

पितृपक्ष में पितरों की शांति में इसकी हैं खास उपयोगिता:श्राद्ध करने वालों के लिए पितरों के पिण्डदान में हैं काला तिल और कुश का सर्वाधिक महत्व attacknews.in

प्रयागराज,11 सितंबर । पितरों को तृप्त करने तथा देवताओं और ऋषियों को काले तिल, अक्षत मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण में काला तिल और कुश का बहुत महत्व होता है।
पितरों के तर्पण में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध करने वालों को पितृकर्म में काले तिल के साथ कुशा का उपयोग महत्वपूर्ण है।

मान्यता है कि तर्पण के दौरान काले तिल से पिंडदान करने से मृतक को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि तिल भगवान के पसीने से और कुशा रोम से उत्पन्न है इसलिए श्राद्ध कार्य में इसका होना बहुत जरूरी होता है।

प्रयागराज स्थित श्री देवरहवा बाबा सेवाश्रम पीठ के वाचस्पति प्रपन्नाचार्य ने शास्त्रों का हवाला देते हुए बताया कि तर्पण में तिल व कुशा का विशेष महत्व है। वायु पुराण के अनुसार तिल और कुशा के साथ श्रद्धा से जो कुछ पितरों को अर्पित किया जाता है वह अमृत रूप होकर उन्हे प्राप्त होता है। पितर किसी भी योनि में हों उन्हें वह सब उसी रूप में प्राप्त होता है।

उन्होंने बताया कि पितृपक्ष के दौरान पितरों की सद्गति के लिए पिण्डदान और तर्पण के लिए काले तिल और कुश का उपयोग किया जाता है। तिल और कुश दोनों ही भगवान विष्णु के शरीर से निकले हैं और पितरों को भी भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है।

उन्होने गरुण पुराण का हवाला देते हुए बताया कि तिल तीन प्रकार के श्वेत, भूरा व काला जो क्रमश: देवता, मनुष्य व पितरों को तृप्त करने वाला होता हैं ।

प्रपन्नाचार्य ने बताया कि दान करते समय भी हाथ में काला तिल जरूर रखना चाहिए इससे दान का फल पितरों एवं दानकर्ता दोनों को प्राप्त होता है। इसके अलावा शहद, गंगाजल, जौ, दूध और घृत,काला तिल और कुश सात पदार्थ को श्राद्धकर्म के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।

शंख स्मृति के चौदहवें अध्याय के अनुसार गया धाम में जो कुछ भी पितरों को अर्पित किया जाता है उससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। वाल्मिकी रामायण में भी गया तीर्थ की महत्ता को बताया गया है। वायपुराण में भी गया श्राद्ध की चर्चा है। ज्यादातर पिंडदानी जौ का आटा, काला तिल, खोवा से बने पिंड से पिंडदान करते हैं।

पितृ पक्ष के बाद राम मंदिर के भव्य निर्माण के लिए 100 फिट नीचे 1200 स्थानों पर नींव भराई का काम हो जाएगा शुरू attacknews.in

अयोध्या 05 सितम्बर ।अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर बनने जा रहे भव्य मंदिर के आधार का निर्माण 17 सितम्बर को पितृ पक्ष खत्म होने के बाद शुरू होगा ।

राम जन्मभूमि में विराजमान राम लला के मंदिर निर्माण की नींव डालने के लिये नक्शे में दर्शाये गये 13 हजार वर्ग मीटर के सौ फिट नीचे तक बारह सौ जगहों पर कुयें की तरह पाइलिंग कर चट्टान की तरह आधारशिला तैयार की जायेगी । फिर उस पर नक्शे के अनुसार आधारशिला खड़ी होगी और मंदिर के धरातल का निर्माण किया जायेगा ।

राम मंदिर का सौंपा था नक्शा

इधर 03 सितम्बर को  अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिये अयोध्या विकास प्राधिकरण ने राम मंदिर परिसर का लेआउट एवं राम मंदिर का नक्शा/मानचित्र श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को पास करके सौंप दिया है।

अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष डॉ. नीरज शुक्ल ने  यहां यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिये राम मंदिर परिसर का लेआउट व राम मंदिर का नक्शा/मानचित्र श्रीरामजन्मभूमि के ट्रस्ट के महामंत्री चम्पत राय और सदस्य डॉ. अनिल मिश्रा,सदस्य विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र को सौंप दिया गया।

इस बीच अयोध्या विकास प्राधिकरण अयोध्या के सचिव आर.पी. सिंह ने बताया कि श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिये जो मंदिर का नक्शा पास हुआ है, उसमें बड़ी बारीकी से सभी विभागों से नोड्यूज की प्रक्रिया भी ली गयी है।

उन्होंने कहा कि हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं जो भगवान श्रीराम के मंदिर का नक्शा पास करके दिया है।

उन्होंने कहा कि इधर कई दिनों से पूरा विकास प्राधिकरण इस नक्शे को बारीकी से जांच परख करके ही पास किया है।

गौरतलब है कि अयोध्या विकास प्राधिकरण अयोध्या के अध्यक्ष एवं मंडलायुक्त एम.पी. अग्रवाल की अध्यक्षता में कल देर करीब तीन घंटे चली बैठक में श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का नक्शा पास किया गया था।

मिली जानकारी के अनुसार दो लाख चौहत्तर हजार एक सौ दस वर्ग मीटर ओपेन एरिया का लेआउट व 12879 वर्ग मीटर राम मंदिर का नक्शा पास हुआ है, जिसमें लगभग 13 हजार कवर्ड एरिया में राम मंदिर बनेगा।

अयोध्या विकास प्राधिकरण ने किया राम मंदिर का नक्शा पास,274110 वर्ग मीटर ओपेन एरिया का नक्शा पास हुआ जिसमें करीब 13 हजार कवर एरिया में राम मंदिर बनेगा attacknews.in

अयोध्या, 02 सितम्बर । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिये अयोध्या विकास प्राधिकरण अयोध्या द्वारा राम मंदिर परिसर का लेआउट व राम मंदिर का नक्शा पास कर दिया गया है।

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को दो करोड़ 11 लाख 33 हजार एक सौ 84 रुपये जमा करने होंगे जिसमें विकास शुल्क एक करोड़ 79 लाख 35 हजार चार सौ 70 रुपया, विकास अनुज्ञा शुल्क एक लाख 50 हजार, भवन निर्माण अनुज्ञा शुल्क 64 हजार चार सौ रुपया व पर्यवक्षेण शुल्क 19 लाख 73 हजार तीन सौ सात रुपये जमा करने होंगे। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसके पहले नक्शा जमा करते समय अयोध्या-फैजाबाद विकास प्राधिकरण में 65 हजार रुपये मैप के आवेदन के समय ही जमा कर चुका है।

अयोध्या विकास प्राधिकरण से मिली जानकारी के अनुसार 274110 वर्ग मीटर ओपेन एरिया का नक्शा पास हुआ है जिसमें करीब 13 हजार कवर एरिया में राम मंदिर बनेगा और इसका शुल्क रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को दो करोड़ 11 लाख 33 हजार एक सौ 84 रुपये जमा करने होंगे। इसके अतिरिक्त लेबर सेस के रूप में 15 लाख तीन सौ 63 रुपया भी जमा करने होंगे। डेवलपमेंट शुल्क जमा होने के बाद राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के वरिष्ठ सदस्य डॉ. अनिल मिश्रा ने बताया कि भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण के लिये जो नक्शा अयोध्या विकास प्राधिकरण को बना करके सौंपा गया था वह आज अयोध्या विकास प्राधिकरण की बैठक में पास कर दिया गया है और मुझे डेवलपमेंट शुल्क जमा करने की अयोध्या विकास प्राधिकरण से पत्र भी मिल गया है।

अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने को लेकर CBI अदालत ने लिखना शुरू किया फैसला,कभी भी किया जा सकता है ऐलान attacknews.in

लखनऊ 02 सितम्बर।अयेध्या में 6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा गिराये जाने के आपराधिक मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो :सीबीआई: की विशेष अदालत ने आज से फैसला लिखाना शुरू कर दिया है ।

सीबीआई की विशेष अदालत में इस मामले की सुनवाई बचाव और अभियोजन पक्ष की तीन साल से चल रही जिरह कल मंगलवार को पूरी हो गयी ।

बाबरी मामला : बचाव पक्ष की लिखित बहस दाखिल

इससे पहले अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में सोमवार को बचाव पक्ष द्वारा लिखित बहस दाखिल की गयी।

इस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती व साक्षी महाराज सहित 32 आरोपी हैं।

विशेष न्यायधीश एस के यादव ने बचाव पक्ष के वकील से कहा कि अगर वह मौखिक रूप से कुछ कहना चाहते हैं तो मंगलवार तक कह सकते है, वरना उनके अवसर समाप्त हो जायेंगे ।

इससे पहले अदालत ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि बार बार समय दिये जाने के बाद भी बचाव पक्ष लिखित बहस दाखिल नही कर रहा है ।

सीबीआई की विशेष अदालत को उच्चतम न्यायालय ने सितम्बर महीने तक मामले की सुनवाई पूरी करने व निर्णय करने को कहा है।

अदालत को फैसला करने में सीबीआई के 351 गवाहों और अन्य दस्तावेजों पर गौर करना है ।

सीबीआई पहले ही 400 पृष्ठों की लिखित बहस दाखिल कर चुकी है।