उत्तराखंड के हिमालय पर्वत पर स्थित भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम के कपाट सोमवार सुबह वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य अगले छह माह के लिये खोले गये attacknews.in

केदारनाथ धाम, 17 मई उत्तराखंड के हिमालय पर्वत पर स्थित भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम के कपाट सोमवार सुबह वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य अगले छह माह के लिये खोले गये। मन्दिर में पहला रुद्राभिषेक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से विश्व शांति की कामना के साथ हुआ।

कोरोना संक्रमण के कारण सीमित संख्या में मन्दिर के प्रतिनिधियों, चारधाम देवस्थानम परिषद के अधिकारियों और जिला अधिकारी की उपस्थिति में सुबज पांच बजे ग्रीष्मकाल के लिये कपाट खोले गये।

कपाट खुलने की प्रक्रिया सुबह तीन बजे से प्रारम्भ हुई। रावल भीमाशंकर एवं मुख्य पुजारी बागेश लिंग तथा देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी. सिंह एवं जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग मनुज गोयल ने पूरब द्वार से मंदिर के मुख्य प्रांगण में प्रवेश किया।

इसके बाद मुख्य द्वार पर पूजा अर्चना की मन्त्रोच्चारण के पश्चात ठीक पांच बजे मेष लग्न, पुनर्वसु नक्षत्र में भगवान केदार धाम के कपाट खोल दिये गए।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने अपने छोटू महंत स्वामी आनंद गिरी को संत परंपरा का उल्लंघन करने पर किया निष्कासित attacknews.in

प्रयागराज 15 मई । अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने अपने शिष्य और प्रयागराज संगम स्थित बड़े हनुमान मंदिर के छोटे महंत स्वामी आनन्द गिरी को पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी से निष्कासित कर दिया है।

उन पर आरोप है कि संन्यास धारण करने के बावजूद उन्होने अपने परिवार से संबंध रखा जो संत पंरपरा के विपरीत है। महंत नरेन्द्र गिरि ने पत्र में लिखा कि आनन्द गिरि हरिद्वार कुंभ के दौरान अपने मकान में परिवार के सदस्यों के साथ रहे और उन्होेने संत परंपरा का उल्लघंन किया। इसकी सूचना मिलने पर उन्होने तथ्यों की जांच करायी और सत्य जानने के बाद उनके बहिष्कार का निर्णय लिया गया।

महंत गिरि के अनुसार उन्होने अपने शिष्य आनंद गिरि को पहले भी समझाया था जब उन्होने उज्जैन और नासिक मेले मे अपने कैंप में परिवार के सदस्यों को जगह दी थी मगर उनकी दी गयी चेतावनी को उन्होने नजरअंदाज कर दिया था जिसके चलते उन्हे यह फैसला लेना पड़ा।

मां यमुनोत्री धाम के कपाट ग्रीष्मकालीन दर्शनों के लिये खुले,बाबा केदार की पंचमुखी डोली केदारनाथ धाम को रवाना attacknews.in

यमुनोत्री धाम/उखीमठ/रुद्रप्रयाग, 14 मई । उत्तराखंड स्थित विश्व प्रसिद्ध मां यमुनोत्री धाम के कपाट शुक्रवार को अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर अपराह्न 12:15 बजे अभिजीत मुहूर्त में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए।

कोविड-19 संक्रमण के दृष्टिगत, राज्य सरकार द्वारा चारधाम यात्रा प्रतिबंधित किये के कारण बिना श्रद्धालुओं के धाम के कपाट खोले गए। कोविड मानकों का पालन करते हुए सीमित संख्या में उपस्थित मन्दिर प्रशासन और पुरोहितों की उपस्थिति में शीतकालीन निवास स्थल खुशीमठ (खरसाली) में मां यमुना की विदाई हुई, जो 11 बजे यमुनोत्री धाम पहुंची।

बाबा केदार की पंचमुखी डोली केदारनाथ धाम को रवाना

उखीमठ/रुद्रप्रयाग, से खबर है कि देवभूमि उत्तराखंड स्थित ग्याहरवें ज्योतिर्लिंग भगवान बाबा केदारनाथ की पंचमुखी डोली शुक्रवार अक्षय तृतीया के पवित्र नक्षत्र में श्री ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ से सादगीपूर्वक केदारनाथ धाम को प्रस्थान हो गई। डोली शनिवार को केदारनाथ पहुंचेगी।

देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डाॅ. हरीश गौड़ ने बताया कि 17 मई को प्रात: पांच बजे श्रीकेदारनाथ धाम के कपाट खुलेंगे। कोरोना संक्रमण के कारण चारधाम यात्रा स्थगित है, इसलिए मंदिरों के मात्र कपाट खुल रहे है।

उन्होंने बताया कि पूजापाठ से जुड़े कुछ ही लोगों को धामों में जाने की अनुमति दी गयी है। आज दिन में 12.15 बजे श्री यमुनोत्री धाम के कपाट खुलें। जबकि शनिवार 15 मई को गंगोत्री धाम एवं 18 मई प्रात: को श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुल रहे है।

आज डोली प्रस्थान के अवसर पर रावल भीमाशंकर लिंग, पुजारी बागेश लिंग, देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी. सिंह, कार्याधिकारी एनपी जमलोकी, डोली प्रभारी यदुवीर पुष्पवान सहित प्रशासन के अधिकारी मौजूद रहे।

श्री बदरी नाथ धाम बनेगा स्मार्ट आध्यात्मिक शहर, सौ करोड़ के समझौते पर करार:स्मार्ट हिल टाउन के रूप में निर्माण,पुर्नविकास के लिए तेल और गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों ने समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए attacknews.in

देहरादून, 07मई । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत एवं केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की उपस्थिति में गुरुवार को श्री केदारनाथ उत्थान ट्रस्ट तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की पब्लिक सेक्टर कंपनियों के मध्य श्री बद्रीनाथ धाम को स्मार्ट आध्यात्मिक शहर के रूप में विकसित करने के लिये लगभग 100 करोड़ के कार्यों के समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए। इस पर पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से सचिव तन्नू कपूर एवं उत्तराखंड की ओर से पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने हस्ताक्षर किए।

सचिवालय में वर्चुअल रूप से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री तीरथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद पुनर्निर्माण के कार्य शुरू हुए थे, जो कि अब अपने अंतिम चरणों में हैं। उन्होंने कहा कि इसी कड़ी में प्रधानमंत्री ने बदरीनाथ धाम के कायाकल्प का भी निर्णय लिया। यहां आगामी 100 वर्षों की आवश्यकताओं के मद्देनजर सुविधाओं का विकास कुल 85 हेक्टेयर भूमि में चरणबद्ध तरीके से कार्य किये जाने हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बदरीनाथ धाम में यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ाने के विशेष प्रयास किये जा रहे हैं।
इसी के साथ यहां पर व्यास गुफा, गणेश गुफा एवं चरण पादुका आदि का भी पुनर्विकास किया जाना है।

उन्होंने कहा कि बदरीनाथ धाम के विकास में तेल कंपनियों का योगदान सराहनीय है।

श्री तीरथ ने कहा कि राज्य सरकार का ध्यान क्षेत्र में होमस्टे को बढ़ावा देने पर है ताकि श्रद्धालुओं को यहां आने पर सस्ती सुविधाएं उपलब्ध हो सकें।

उन्होंने कहा कि आगामी तीन वर्षों में बदरीनाथ धाम के कायाकल्प के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। उन्होंने बदरीनाथ धाम में किये जा रहे कार्यों के लिए विशेष तौर पर प्रधानमंत्री एवं पेट्रोलियम मंत्री का विशेष आभार जताया।

इस अवसर पर श्री प्रधान ने कहा कि उत्तराखण्ड के चार धामों का विशेष महत्त्व है। बदरीनाथ धाम के कायाकल्प को लेकर तेल कंपनियां प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में बदरीनाथ एवं केदारनाथ धामों की भांति ही उत्तरकाशी में गंगोत्री एवं यमनोत्री धामों के लिए भी कुछ कार्य कराए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि बदरीनाथ धाम को प्रधानमंत्री मोदी के विज़न के अनुरूप स्मार्ट आध्यात्मिक शहर के रूप में विकसित किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि यहां पर अलकनंदा नदी के तटबंध कार्यों के अलावा प्लाजा, जल निकासी, सीवेज, लाइट, सीसीटीवी, पीए सिस्टम, शौचालय, पुल आदि के सौंदर्यीकरण एवं पुनर्निर्माण के कार्य होने प्रस्तावित हैं।

प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम का धार्मिक के साथ ही आर्थिक महत्व भी है। यहां से हजारों लोगों को रोजगार भी मिलता है। उन्होंने कहा कि पुनर्निर्माण कार्यो के दौरान हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि यहां पर पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे।

उन्होंने कहा कि प्रथम चरण में यहां पर अस्पताल के विस्तारीकरण का कार्य प्रस्तावित है। इसके अलावा रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, तटबंधों में सुदृढ़ीकरण, लैंड स्केपिंग, भीड़ होने पर होल्डिंग एरिया, पुलों की रेट्रोफिटिंग आदि कार्य होने हैं।

इस अवसर पर पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से एक वीडियो भी दिखाया गया जिसमें यहां होने वाले विभिन्न कार्यों के बारे में बताया गया।

श्री बद्रीनाथ धाम के स्मार्ट हिल टाउन के रूप में निर्माण और पुनर्विकास के लिए तेल और गैस क्षेत्र के सार्वजनिक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों – इंडियन आयल, बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओएनजीसी तथा गेल और बद्रीनाथ उत्थान धर्मार्थ न्यास के बीच आज समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए।

समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत, केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान, उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज, तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव श्री तरूण कपूर, उत्तराखंड के मुख्य सचिव श्री ओम प्रकाश तथा तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, उत्तराखंड सरकार तथा तेल और गैस क्षेत्र की सार्वजनिक कंपिनयों के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थित में किए गए।

समझौता ज्ञापनों के अनुसार तेल और प्राकृतिक गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठान पहले चरण की विकास गतिविधियों में 99.60 करोड़ रुपए का योगदान करेंगे। इन गतिविधियों में नदी तटबंध कार्य, सभी क्षेत्रीय वाहन मार्ग बनाना, वर्तमान सेतुओं को सुंदर बनाना, आवासीय सुविधा सहित गुरुकुल स्थापित करना, शौचालय तथा पेयजल सुविधा का निर्माण करना, स्ट्रीट लाइट लगाना और भित्ति- चित्र बनाना शामिल है।

इस अवसर पर श्री प्रधान ने कहा कि चार धाम आध्यात्मिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक कारणों से लाखों लोगों के हृदय के निकट है। उन्होंने कहा कि तेल और गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठान न केवल बद्रीनाथ का विकास कार्य करेंगे बल्कि केदारनाथ, उत्तरकाशी, यमुनोत्री तथा गंगोत्री के विकास का हिस्सा भी हैं।

उन्होंने कहा कि समझौता ज्ञापनों पर आज किए गए हस्ताक्षर माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बद्रीनाथ तीर्थ स्थान को मिनी स्मार्ट तथा आध्यात्मिक नगर के रूप में क्षेत्र की धार्मिक पवित्रता और पौराणिक महत्व से समझौता किए बिना विकसित करने के विजन की दिशा में मील के पत्थर हैं।

सुविधाओं के विकास में तेल और गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के प्रयासों की सराहना करते हुए श्री प्रधान ने कहा, “मुझे प्रसन्नता है कि देश के तेल और गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठान बद्रीनाथ धाम को स्मार्ट आध्यात्मिक नगर के रूप में विकसित करने के विजन को साकार करने के लिए आगे आए हैं। पर्यटन प्रमुख उद्योग है, जो राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बद्रीनाथ जैसे स्थलों के विकास से और अधिक संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।”

इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री तीरथ सिंह रावत ने कहा, “इस नेक प्रयास में समर्थन के लिए मैं केंद्रीय मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान तथा तेल और गैस क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों को बधाई देता हूं। इस देश के लोगों के हृदय में श्री बद्रीनाथधाम का विशेष स्थान है। इसे देश के सर्वाधिक पवित्र स्थलों में एक माना जाता है और देश भर के श्रद्धालुओं को बेहतरीन सुविधाएं प्रदान करने के लिए विकास गतिविधियां आवश्यक हैं। हमें आशा है कि उत्तराखंड सरकार और तेल तथा गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के संयुक्त प्रयासों से तीन वर्ष की अवधि में श्री बद्रीनाथधाम के उत्थान का कार्य पूरा कर लिया जाएगा।”

कोविड को देखते हुए अगले माह से शुरू होने वाली चारधाम यात्रा स्थगित attacknews.in

देहरादून, 29 अप्रैल । कोविड मामलों में जबरदस्त उछाल के चलते अगले माह शुरू होने वाली चारधाम यात्रा को स्थगित कर दिया गया है ।

यहां बृहस्पतिवार को संवाददाताओं से बातचीत करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि महामारी की स्थिति के बीच यात्रा का संचालन संभव नहीं है ।

उन्होंने हालांकि, कहा कि चारधाम के नाम से मशहूर चारों हिमालयी धामों के कपाट अपने नियत समय पर ही खुलेंगे लेकिन वहां केवल तीर्थ पुरोहित ही नियमित पूजा करेंगे ।

रावत ने कहा, ‘ ‘तेजी से बढ रहे कोविड मामलों को देखते हुए चारधाम यात्रा को फिलहाल स्थगित किया जाता है । वहां केवल पुजारी ही पूजा पाठ करेंगे, बाकी लोगों के लिए यात्रा बंद रहेगी ।’’ देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखंड में भी कोविड मामलों में जबरदस्त वृद्धि हुई है । बुधवार को भी उत्तराखंड में रिकार्ड 6054 मरीजों में कोविड की पुष्टि हुई जबकि 108 अन्य ने महामारी से अपनी जान गंवा दी ।

चौदह मई को अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे । रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ के कपाट 17 मई को जबकि चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ के कपाट उसके एक दिन बाद 18 मई को खोले जाएंगे ।

चैत्र पूर्णिमा पर हरिद्वार महाकुंभ का आखिरी शाही स्नान फीका रहा,सभी 13 अखाडों के करीब 2000 साधु—संतों ने प्रतीकात्मक हर की पैडी पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई attacknews.in

देहरादून/ऋषिकेश, 27 अप्रैल । देश भर में कोविड मामलों में हो रही बेतहाशा वृद्धि के कारण मंगलवार को चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर हरिद्वार महाकुंभ का आखिरी शाही स्नान फीका रहा जहां सभी 13 अखाडों के करीब 2000 साधु—संतों ने प्रतीकात्मक रूप से हर की पैडी पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई ।

अधिकारियों ने बताया कि कुंभ के चौथे और आखिरी शाही स्नान में सभी 13 अखाडों के करीब 2000 संतों ने मुख्य स्नान घाट हर की पैडी मोक्षदायिनी गंगा नदी में डुबकी लगाई ।

कोरोनावायरस संक्रमण का खौफ घाट पर एक दूसरे से दूरी बनाकर स्नान कर रहे साधुओं को देखकर साफ नजर आ रहा था । हर की पैडी का मुख्य स्नान घाट शाही स्नान के कारण केवल अखाडे के साधुओं के लिए आरक्षित था ।

चौदह अप्रैल को मेष संक्रांति और बैसाखी पर हुए पिछले शाही स्नान के बाद 17 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ को बाकी अवधि के लिए ‘प्रतीकात्मक’ रखने का अनुरोध किया था जिसे संतों ने स्वीकार कर लिया था ।

हरिद्वार के विभिन्न स्नान घाटों पर पिछले शाही स्नान के बाद से ही भीड में काफी कमी आ गई थी । कोरोनावायरस संक्रमण के मामलों में हो रही वृद्धि का हवाला देते हुए कई प्रमुख अखाडों ने कुंभ से लौटना शुरू कर दिया था ।

कोविड संक्रमण के कारण कुंभ की अवधि एक अप्रैल से 30 अप्रैल निर्धारित की गई थी लेकिन इससे काफी पहले ही हरिद्वार का कुंभ क्षेत्र वीरान सा हो गया था । उत्तराखंड में मंगलवार को रिकार्ड 5703 मरीजों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई जबकि रिकार्ड 96 मौतें भी दर्ज की गयीं ।

हरिद्वार की जोनल अधिकारी (अभिसूचना) सुनीता वर्मा ने बताया कि जूना, अग्नि, आवाहन, किन्नर, निरंजनी, आनंद, बडा उदासीन, निर्मल, नया उदासीन सहित सभी 13 अखाडों से जुडे करीब 2000 साधुओं ने गंगा स्नान किया ।

इससे पहले सुबह शाही स्नान शुरू होने से पूर्व कुंभ मेलाधिकारी दीपक रावत, मेला पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल और कुंभ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जन्मेजय खंडूरी ने हर की पैडी पर व्यवस्था का जायजा लिया ।

बाद में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए मेलाधिकारी दीपक रावत ने साधु संतों का आभार जताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री की अपील के बाद शाही स्नान को सीमित रखा ।

हरिद्वार में रहने वाले लगभग दो हजार पंडों के पास कई पीढ़ियों से अपने यजमानो के वंशवृक्ष मौजूद:गूगल को मात देते पंडों के बही-खाते attacknews.in

कुम्भ क्षेत्र (हरिद्वार) 02 अप्रैल । उत्तराखंड की कुम्भ नगरी हरिद्वार के विश्वविख्यात हर की पौड़ी के पास कुशाघाट के आसपास पुराने घरों में पंडों की अलमारियों में करीने से रखे गए सैकड़ों साल पुरानी बहीखातों में दर्ज वंशावली या सूचना क्रांति के आधुनिक टूल गूगल को भी मात देते हैं।

हरिद्वार में रहने वाले लगभग दो हजार पंडों के पास कई पीढ़ियों से अपने यजमानो के वंशवृक्ष मौजूद हैं।

अपने मृतक परिजनों के क्रियाकर्म करने जो भी लोग यहां आते हैं अपने पुरोहितों की बही में अपने पूर्वजों के साथ अपना नाम भी दर्ज करवा लेते हैं।

यह परंपरा तब से चल रही है जब से कागज अस्तित्व में आए।

उससे पहले भोजपत्र पर भी वंशवृक्ष के लिपिबद्ध होने का जिक्र है।

पर वह अब लुप्त से हो गए हैं।

यहां के प्रतिष्ठित पुरोहित पंडित कौशल सिखौला के अनुसार,“यहां के पंडे हरिद्वार के ही मूल निवासी हैं।

वह बताते हैं कि कागज के पहले उनके पूर्वज पंडो को अपने लाखों यजमानो के नाम वंश, व क्षेत्र तक जुबानी याद रखते थे।

जिन्हें वह अपने बाद अपनी आगामी पीढी को बता देते थे।

” यहां के पंडो में यजमान, गांव, जिला तथा राज्यों के आधार पर बनते हैं।

किसी भी पंडे के पास जाने पर वह यथासंभव जानकारी दे देते हैं कि उनके वंश के कौन-कौन हैं।

कई बार किसी व्यक्ति की मौत पर उसकी संपत्ति संबंधी परिवारों के आपसी विवादों में वंशावलीयों का निर्णय उन्हीं बहीयों की मदद से होता है।

इन बहियों को देखने बाकायदा अदालत के लोग यहां आते हैं, जिसके अनुसार अदालतें अपना निर्णय करती है।

इन बही खातों में पुराने राजा महाराजाओं से लेकर आम आदमी की वंशावली दर्ज है।

पंडित कौशल सिखौला का कहना है कि कंप्यूटर युग में भी इन प्राचीन बहीखातों की उपयोगिता कम नहीं हुई है।

क्योंकि इन बहीखातों में उनके पूर्वजों की हस्तलिखित बातें और हस्ताक्षर दर्ज होते हैं, जिनकी महत्ता किसी भी व्यक्ति के लिए कंप्यूटर के निर्जीव प्रिंट आउट से निश्चित ही अधिक होती है।

उनका कहना है कि जहां उनकी आने वाली पीढ़ियां पढ़ लिखकर अन्य व्यवसाय में जा रही है वहीं कुछ पढ़े-लिखे युवा व सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारी अपनी परंपरागत गद्दी संभाल रहे हैं।

हरिद्वार;वैदिक शास्त्रों के अनुसार गंगा यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश को स्पर्श करती हुई धरती पर उतरी,ब्रह्मकुंड में ब्रह्मा जी तो हर की पौड़ी पर भतृहरी ने की थी तपस्या attacknews.in

हरिद्वार 02 अप्रैल । महान सांस्कृतिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की धरोहरों को खुद में समेटे हुए उत्तराखंड के प्रवेश द्वार पर स्थित है पौराणिक नगर हरिद्वार।

हरिद्वार के शाब्दिक अर्थ की बात की जाय तो इसे दो तरह उच्चारित किया जाता है।

हरिद्वार से तात्पर्य है भगवान विष्णु का द्वार, अर्थात उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम जाने वाला द्वार।

जबकि कुछ लोग इस नगरी को हरद्वार कहकर पुकारते हैं।

यहां पर हर का अर्थ भगवान शिव से है।

हरिद्वार यानी भगवान शिव के धाम केदारनाथ के धाम जाने का द्वार।

वैदिक शास्त्रों के अनुसार गंगा यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश को स्पर्श करती हुई धरती पर उतरी है।

अर्थात साक्षात ईश्वरीय या तत्व युक्ता गंगा यहीं पर गंगा का वास्तविक रूप धारण करती है।

वैदिक संस्कृति वाला एक पौराणिक नगर हरिद्वार मूलतः हिंदू धार्मिक संस्कृति का केंद्र है।

पौराणिक और वैदिक ग्रंथ कहते हैं कि हरिद्वार स्वयं सृष्टी के रचयिता जी की तपस्थली रही है।

हरिद्वार में हर की पैड़ी के मुख्य कुण्ड ब्रह्मकुंड से है।

इसका अर्थ उस स्थान से है जहां ब्रह्मा जी द्वारा तपस्या का विवरण आता है।

यहीं पर हरि पादुकाई बनी हुई है।

जिसे इस कथानक का प्रतीक माना जाता है।

भगवान शिव के ससुराल यानी शिव की पहली पत्नी देवी सती के पिता दक्ष के यज्ञ के विध्वंस के बाद दक्ष को पुनर्जीवन देकर दक्षेश्वर महादेव की स्थापना का प्रश्न यहां सदा सर्वदा प्रसांगिक है।

क्योंकि आज भी हिंदू धार्मिक आस्था के प्रतीक दक्षेश्वर महादेव को हरिद्वार का अधिष्ठात्री कहा जाता है।

स्कंद पुराण के केदारखंड में तो यहां तक लिखा है कि कनखल में दक्षेश्वर और माया देवी मंदिर के दर्शन के बिना तीर्थाटन निष्फल होता है।

भगवान राम के सूर्यवंशी पूर्वज राजा भागीरथ से जुड़ा गंगा का प्रसंग हो या रावण के वध के बाद भगवान राम द्वारा हरिद्वार सहित कई धर्म स्थलों पर पंडा परंपरा की स्थापना करना ऐसी पौराणिक कथाएं हैं।

जो हरिद्वार की पौराणिकता को स्पष्ट करती है।

इतना ही नहीं भगवान कृष्ण, अर्जुन और पांडवों से जुड़ी सैकड़ों कहानियों के संदर्भ इधर उधर उपलब्ध हैं।

ऐसा नहीं कि हरिद्वार सिर्फ हिंदू धर्म अवतारों और मान्यताओं से जुड़ा है।

सिख धर्म के कई पातशाहियों के हरिद्वार आने और धार्मिक आयोजनों के प्रश्न भी साक्ष्य सहित उपलब्ध हैं।

वस्तुत पौराणिक नगरी हरिद्वार को इतिहास के लंबे सफर का एहसास भी है।

उत्खनन में मौर्य काल के कुछ साक्ष्य पाए जाने के कारण यह माना जाता है कि हरिद्वार एक समय चंद्रगुप्त मौर्य शासन का हिस्सा रहा।

इस बात का आधार जनपद देहरादून के कालसी और खिजराबाद, ग्राम टोपरा से प्राप्त शिलालेखों को माना जाता है।

कथानक कहते हैं कि 38 ईसा पूर्व विक्रम संवत के संस्थापक उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भतृहरी ने अपने गृहस्थ जीवन से विमुख होकर हरिद्वार में कई जगह पर तपस्या की, उन जगहों में प्रमुख रूप से हर की पैड़ी और गुरु गोरखनाथ की गुफा है।

अपने बड़े भाई भतृहरि की स्मृति में राजा विक्रमादित्य द्वारा गंगा के किनारे बनवाई गई कक्रीट की सीढ़ियों को नाम दिया गया था भतृहरी की पैड़ी।

जो कालांतर में उच्चारण के भ्रंश होने से हर की पैड़ी हो गया।

यानि यह हरिद्वार नगर में संभवत पहला सार्वजनिक कंस्ट्रक्शन माना जाता है।

राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार का विस्तृत वर्णन किया है।

चंद्रबरदाई के पृथ्वीराज रासो से लेकर आईने अकबरी में अबुल्फजल ने अकबर काल के वृतान्त में हरिद्वार का विस्तृत वर्णन किया है।

ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल पुरातत्व वेता अलक्जेंडर कंनिगम ने हरिद्वार आकर कई सर्वे किए।

उनके यात्रा वृतांत के अनुसार यह कहा जाता है कि हरिद्वार पौराणिक काल ही नहीं ऐतिहासिक काल में भी दुनिया के आकर्षण का केंद्र रहा है।

हरिद्वार में कई ख्याति प्राप्त राजाओं और धनी-रईसों ने यहां धर्मशालाएं बनवाई।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि कई छोटे-बड़े धार्मिक पर्व और मेलों का शहर भी हरिद्वार को माना जाता है।

विश्व के सबसे बड़े मेले कुंभ मेले का केंद्र होने के कारण सामाजिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्तर पर विश्व की हर सभ्यता से जुड़ने का ऐसा मंच भी हरिद्वार बना रहा है।

हरिद्वार में लगने वाले कुंभ मेले ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़ी भूमिका अदा की है।

1857 के कुंभ मेले के दौरान स्वामी दयानंद के बुलावे पर तात्या टोपे, अजीमुल्ला खां, नाना साहेब, बालासाहेब और बाबू कुंवर सिंह हरिद्वार आकर एकजुट हुए।

इन क्रांतिकारियों ने आजादी के संग्राम की प्रथम रूपरेखा भी यहीं तय की है।

इस तरह आजादी की क्रांति की ज्वाला भी पूरे देश में फैल गई।

हरिद्वार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के काल में भारतीय व्यापारियों के साथ पर्शीया, नेपाल, श्रीलंका, लाहौर, तांतार, कबूल आदि देशों से व्यापारी आकर राजा और धनपतियों को घोड़े, सांड, हाथी, ऊंट बेचते थे।

दस्तावेज कहते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी सेना के लिए भी घोड़े हरिद्वार की मंडी से ही खरीदते थे।

आज भी हरिद्वार में घोड़ा मंडी नामक जगह हर की पैड़ी के पास मौजूद है।

वर्ष 1837 में हरिद्वार में भीषण अकाल पड़ा।

इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गंगाजल को उपयोगी बनाने की योजना बनाई और कर्नल प्राची काटले के नेतृत्व में सन 1848 में गंगा की एक धारा को सिंचाई की दृष्टि से नहर बांधने का काम शुरू किया।

6 साल की लंबी अवधि में नहर बनकर तैयार हो गई, जिसका लोकार्पण वर्ष 1854 के आठ अप्रैल को गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने किया।

जिससे पूरे उत्तर प्रदेश को खेती के लिए पानी उपलब्ध हुआ।

वर्ष 1868 में हरिद्वार नगर पालिका का गठन होने से शहर की सफाई, पीने का पानी, पथ प्रकाश मिला।

इस तरह वर्ष 1900 में शिक्षा के नए आयाम के लिए गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना हुई।

1964-65 में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल के रूप में रोजगार के अवसर हरिद्वार को मिल गए।

पहले तहसील बाद में जिला बनने के कारण हरिद्वार के पास आज हर आधुनिक सुविधा और विकास के अवसर हैं।

आज हरिद्वार उत्तराखंड राज्य का महत्वपूर्ण जिला है और अपने गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को हरिद्वार विस्तार दे रहा है।

हरिद्वार की खासियत यह रही है कि एक धर्म नगरी होने के बाद भी हरिद्वार से धर्मांधता हमेशा कोसों दूर रही है

हरिद्वार में महकुंभ मेले की हुई शुरुआत;30 अप्रैल तक चलने वाले मेले में 3 शाही स्नान में सभी 13 अखाड़े, नागा साधु,महामंडलेश्वर मुख्य घाट हर की पैड़ी पर लगायेंगे डुबकी attacknews.in

हरिद्वार, एक अप्रैल । कोविड-19 महामारी के बीच बृहस्पतिवार से हरिद्वार में औपचारिक रूप से महाकुंभ मेले की शुरुआत हो गई।

एक माह तक चलने वाले इस धार्मिक आयोजन के शुरू होने के मौके पर मेलाधिकारी दीपक रावत, पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल और हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जन्मेजय खंडूरी ने हरकी पैड़ी पर मां गंगा, नौ ग्रहों एवं अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर महाकुंभ मेले के निर्विघ्न सम्पन्न होने की कामना की।

तीस अप्रैल तक चलने वाले महाकुंभ मेले में तीन शाही स्नान होंगे जिसमें सभी 13 अखाड़े, नागा साधु और महामंडलेश्वर मुख्य घाट हर की पैड़ी पर ब्रह्मकुंड में मोक्ष और कल्याण की डुबकी लगायेंगे।

सुरक्षा और व्यवस्था की दृष्टि से संपूर्ण मेला क्षेत्र को 23 सेक्टर में विभाजित किया गया है। मेला अधिकारी रावत ने बताया, ‘‘प्रत्येक सेक्टर में सेक्टर मजिस्ट्रेट, स्वास्थ अधिकारी व पुलिस बल की तैनाती की गई हैं।’’

उन्होंने बताया कि 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या, 14 अप्रैल को बैसाखी स्नान और 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा पर होने वाले शाही स्नान दिवसों पर सभी 13 अखाड़े लाखों श्रद्धालुओं के साथ स्नान करेंगे।

पुलिस महानिरीक्षक गुंज्याल ने बताया, ‘‘सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए गए हैं और पूरे कुंभ क्षेत्र में दस हजार पुलिसकर्मी मेला क्षेत्र में तैनात हैं। हरिद्वार से देवप्रयाग तक करीब 670 हेक्टेअर क्षेत्र को महाकुंभ मेले के तहत अधिसूचित किया गया है।’’

कोरोना काल में हो रहे महाकुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए उत्तराखंड सरकार ने दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनमें पंजीकरण के साथ ही उन्हें 72 घंटे पूर्व की कोविड-19 संबंधी जांच रिपोर्ट अनिवार्य रूप से लानी होगी, जिसमें संक्रमण की पुष्टि नहीं की गयी हो। कोविड-19 महामारी के कारण महाकुंभ मेला अवधि को पहले ही सीमित कर दिया गया है।

अधिकारियों ने बताया कि महाकुंभ हरिद्वार में आने वाले प्रत्येक यात्री को महाकुंभ मेला—2021 के वेब पोर्टल पर अपना पंजीकरण करवाना अनिवार्य होगा। केवल पंजीकृत लोगों को ही मेला क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति मिलेगी।

महाकुंभ मेले के दौरान संपूर्ण मेला क्षेत्र में किसी भी स्थान पर संगठित रूप से धार्मिक अनुष्ठान, भजन गायन, कथा और भंडारे के आयोजन पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ रूडकी के नारसन और उधमसिंह नगर जिले के काशीपुर में लगने वाली सीमाओं पर जांच बढ़ा दी गयी है।

इस संबंध में बुधवार को दिए अपने आदेश में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा था कि महाकुंभ मेले में आने के लिए कोराना टीके की पहली खुराक ले चुके श्रद्धालुओं के लिए भी जांच रिपोर्ट लाना अनिवार्य होगा।

आदेश में कहा गया कि कोविड-19 टीकाकरण पूरा करवा चुके श्रद्धालुओं को भी अपने प्रमाणपत्र दिखाने होंगे तथा कुंभ क्षेत्र में मास्क पहनने, सामाजिक दूरी रखने तथा हाथों को बार—बार धोने जैसे सभी दिशानिर्देशों का अनुपालन करना होगा।

उच्च न्यायालय ने हरिद्वार में स्वास्थ्य अधिकारियों को कोविड-19 जांच की संख्या वर्तमान पांच हजार प्रतिदिन से बढ़ाकर 50,000 प्रतिदिन करने को भी कहा है।

हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर 12 साल में होने वाले इस वृहद धार्मिक आयोजन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब महामारी के कारण इसकी अवधि घटाकर इसे केवल एक माह का किया गया।

सामान्य परिस्थितियों में महाकुंभ मेला करीब चार माह का होता है जो 14 जनवरी को मकर संक्रांति के पर्व से शुरू होकर अप्रैल के आखिर तक चलता रहता है।

मथुरा के फालेन गांव में होली की लपटों के बीच से निकले दैवीय साधक मोनू पंडा;पहले कई घंटे तक हवन किया तथा पास में रखे दीपक की लौ पर हथेली रखकर दीपक की गर्मी का अहसास किया attacknews.in

मथुरा, 29 मार्च । उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के फालेन गांव में आज तड़के होली की लपटों के बीच से जब माेनू पंडा निकला तो वहां मौजूद देश-विदेश से आये दर्शकों ने दांतो तले उंगली दबा ली।

पिछले 40 दिन से मन्दिर में साधना कर रहे मोनू पंडा ने सोमवार तड़के करीब चार बजे होली की लपटों के बीच से निकलने के पहले कई घंटे तक हवन किया तथा पास में रखे दीपक की लौ पर हथेली रखकर दीपक की गर्मी का अहसास किया ।

सुबह लगभग पौने चार बजे जब पंडे को दीपक की लौ शीतल महसूस होने लगी तथा लगातार अपनी हथेली को दीपक की लौ पर रखने के बावजूद उसकी गर्मी को उसने महसूस नहीं किया तो उसने होली में आग लगाने का आदेश दिया और खुद पास के प्रहलाद कुण्ड में स्नान करने चला गया ।

इसी बीच उसकी बहन ने प्रहलाद कुंड से होली तक के मार्ग पर करूए से पानी डालकर पंडे के होली से निकलने का मार्ग बनाया और इसी बीच पलक झपकते ही पंडा होली की लपटों से निकल गया।

गोपाल मन्दिर फालेन के महन्त बालकदास ने बताया कि पंडा कुशल से है तथा होली की लपटों से निकलने के बाद उसे किसी प्रकार की परेशानी नही हुई है।

उधर कोसी थाने की पुलिस ने भी पंडे के होली से सकुशल निकलनेे की पुष्टि की है।

झाबुआ जिले मेें धुलेंडी के दिन आदिवासियों ने अपना परंपरागत त्यौहार गल और चूल का पर्व मना कर मनौतियां पूरी की attacknews.in

झाबुआ, 29 मार्च । मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल्य झाबुआ जिले मेें आज धुलेंडी के दिन आदिवासियों ने अपना परंपरागत त्यौहार गल और चूल मना कर मनौतियां पूरी की। जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों में इन पर्वो का आयोजन किया गया और आदिवासियों ने अपनी मन्नते उतारी। इस दौरान मुर्गो और बकरों की बलियां भी दी गई, त्यौहार मनाने के स्थानों पर भारी भीड जुटी और मेले भरें।

होली जलने के दूसरे दिन अर्थात धुलेंडी की शाम को आदिवासी समाज में गल घुमने की प्रथा है, जिसके तहत आदिवासी मन्नतधारी व्यक्ति एक सप्ताह पूर्व से व्रत रखता है और अपने शरीर पर हल्दी लगाकर लाल वस्त्र पहनता है और सिर पर सफेद पगडी। उसके हाथों में नारियल और कांच रहता है और गाल पर काला निशान। ये आदिवासी धुलेंडी के दिन गल देवरा घूमते है। गल एक लकडी का 20 से 25 फिट उंचा मचान होता है, जोकि गेरू से लाल कलर का पुता होता है। यह अक्सर गांव और फलिये के बाहर स्थित रहता है।

इस मचान पर एक लंबा लकडी का मजबूत डंडा बाहर निकला होता है, जिस पर मन्नतधारी व्यक्ति को लटका कर बांधा जाता है और फिर नीचे से उसे रस्सी से चारों और घुमाया जाता है।ऐसा चार से पांच बार किया जाता है।

गल देवरा के नीचे पुजारी, बडवा बकरे की बलि देता है और दारू की धार गल देवता को दी जाती है।इस दौरान भारी आदिवासियों की भीड इकडा होती है।

कई जगहों पर झूले, चकरी भी लगते है, आदिवासी लोग ढोल बजाते है, नाचते गाते हैं।बकरे का सिर पुजारी लेता है और धड मन्नत धारी का परिवार ले जाता है।फिर गांव में खाने पीने की दावत होती है।

माना जाता है कि घर में किसी प्रकार की बीमारी न हो और देवता गांव आैर परिवार पर प्रसन्न रहे, इसलिये इस पर्व को मनाया जाता है।

जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों में गल के साथ ही चूल भी वनवासी चलते है, जिसके तहत दहकते अंगारों पर महिला, पुरूष, बच्चे नंगे पांव चलते हैं।चूल चलने के पीछे भी मान्यता है की ऐसा करने से बिमारियां दूर रहती है।

जिले भर में आज गल और चूल का पर्व धूमधाम से मनाया गया।

वहीं, आज धुलेंडी होने पर लोगों ने एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर होली की बधाईयां भी दी।हालांकि कोरोना काल के चलते रंग का पर्व फीका ही रहा।

होली के जुलूस में जूते खाते हुए निकले “लाट साहब”, पुलिस ने दी सलामी,22 थानों के साथ पुलिस लाइन के बल के अलावा 1 RAF,2 PAC कंपनी के साथ 225 मजिस्ट्रेट,प्रशासनिक अधिकारी समेत डेढ़ हजार पुलिसकर्मी रहे तैनात attacknews.in

शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश), 29 मार्च । शाहजहांपुर जिले में होली पर्व पर निकलने वाला ‘लाट साहब’ का जुलूस सोमवार को परम्परागत तरीके से निकाला गया।

पुलिस सूत्रों ने बताया कि शहर कोतवाली क्षेत्र से निकला बड़े लाट साहब का जुलूस सबसे पहले फूलमती मंदिर पहुंचा जहां लाट साहब ने पूजा-अर्चना की। उसके बाद यह जुलूस कोतवाली पहुंच गया जहां परंपरा के तहत कोतवाल ने लाट साहब को सलामी दी। सलामी लेने के बाद लाट साहब ने कोतवाल प्रवेश सिंह से साल भर हुए अपराधों का ब्योरा मांगने की रिवायत पूरी की। उसके बाद कोतवाल ने परम्परा के अनुसार लाट साहब को शराब की बोतल और नकद धनराशि दी।

कोतवाली से जुलूस निकलकर चार खंबा और केरूगंज होते हुए कचहरी मार्ग से विश्वनाथ मंदिर पहुंचा, जहां फिर लाट साहब ने पूजा अर्चना की। उसके बाद घंटाघर होते हुए यह जुलूस बंगला के नीचे सम्पन्न हो गया।

जुलूस के दौरान लाट साहब को एक बैलगाड़ी पर तख्त के ऊपर कुर्सी डालकर बैठाया गया था। उन्हें चोट ना लगे, इसलिए हेलमेट भी लगाया गया था। उनके सेवक बने दो होरियारे झाड़ू से हवा करते रहे एवं जूतों की माला पहने लाट साहब पर होरियारे ‘होलिका माता की जय’ बोलते हुए जूते बरसाते नजर आये।

पुलिस अधीक्षक एस. आनंद ने बताया कि जुलूस को सकुशल संपन्न कराने के लिए पूरे जिले के 22 थानों से तथा पुलिस लाइन से पुलिस बल के अलावा एक कंपनी आरएएफ तथा दो कंपनी पीएसी के साथ 225 मजिस्ट्रेट तथा प्रशासनिक अधिकारी एवं पुलिस बल समेत डेढ़ हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था।

इस बीच, अपर पुलिस अधीक्षक (नगर) संजय कुमार ने बताया कि होली पर शहर में निकलने वाले छोटे लाट साहब के आठ और जुलूस शांतिपूर्वक संपन्न हो गए। इन जुलूसों में भी मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई थी।

आयोजन समिति के एक सदस्य ने बताया कि इस बार दिल्ली से आ रहे लाट साहब को रोककर मुरादाबाद से लाट साहब को बुलाया गया था। लाट साहब बनाए जाने वाले व्यक्ति को एक निश्चित धनराशि तो दी ही जाती है साथ ही आयोजन समिति के सदस्य भी इनाम के तौर पर हजारों रुपए देते हैं।

उन्होंने बताया कि लाट साहब की पहचान छिपाने के लिए चेहरा हाथ पर कालिख लगाई जाती है तथा हेलमेट पहनाया जाता है। जुलूस के पूरे मार्ग पर होरियारे ‘लाट साहब की जय’, ‘होलिका माता की जय’ बोलते हुए लाट साहब को जूते मारते हैं।

स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज में इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने लाट साहब के जुलूस की परंपरा के बारे में बताया कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक लड़ाई के चलते फर्रुखाबाद चले गए और वर्ष 1729 में 21 वर्ष की आयु में वापस शाहजहांपुर आए।

उन्होंने बताया कि नवाब हिंदू मुसलमानों के बड़े प्रिय थे। एक बार होली का त्यौहार हुआ तब दोनों समुदायों के लोग उनसे मिलने के लिए घर के बाहर खड़े हो गए और जब नवाब साहब बाहर आए तब लोगों ने होली खेली। बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर शहर का एक चक्कर लगाया गया। इसके बाद से यह परंपरा बन गई।

खुराना ने बताया कि शुरू में बेहद सद्भाव पूर्ण रही इस परंपरा का स्वरूप बाद में बिगड़ता ही चला गया और लाट साहब को जूते मारने का रिवाज शुरू कर दिया गया। इस पर आपत्ति भी दर्ज कराई गई और मामला अदालत में भी पहुंचा लेकिन न्यायालय ने इसे पुरानी परंपरा बताते हुए इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

उतराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने हरिद्वार कुंभ मेला में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा स्नान करने पर आगामी स्नानों में सीमित संख्या को विस्तार देने की दी हरी झंडी attacknews.in

हरिद्वार/देहरादून, 14 मार्च । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने रविवार को कहा कि 12 साल में एक बार आने वाला कुम्भ केवल प्रदेश ही नहीं, देश और दुनिया का कुंभ है। इसको भव्य बनाने के लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध है।

श्री तीरथ ने कहा कि कोविड की गाइडलाइन का भी पालन करना है, लेकिन किसी तरह की असुविधा नहीं होने दी जाएगी।उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अदभुत कार्यशैली से लाकडाउन में भी लोगों का ध्यान सरकार ने रखा। उन्होंने ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें किसी को कुंभ में स्नान से वंचित नहीं रखना है।

श्री तीरथ आज यहां समदृष्टि, क्षमता विकास एवं अनुसंधान मंडल (सक्षम) की ओर से आयोजित नेत्र कुंभ का उद्घाटन करने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम दिव्य भव्य कुंभ का आयोजन कराने को तत्पर हैं। इसलिए शाही स्नान के दिन संत समाज के ऊपर हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत अभिनंदन किया। हरकी पौड़ी पर संतजनों और मां गंगा का आशीर्वाद लिया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हरिद्वार में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान किया। साधु संत, आमजन के साथ ही व्यापारी वर्ग भी खुश हैं। आगामी स्नानों में इसको और विस्तार दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि लाकडाउन के दौरान जिन साढ़े चार हजार लोगों पर आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत दर्ज मुकदमें वापस करने का आदेश जारी कर दिया है। उन्होंने कहा कि कोविड गाइडलाइंस का पालन भी हमें करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि कुंभ में बसों की संख्या बढ़ाई जाएगी। विशेष ट्रेनों के लिए भी उनका प्रयास रहेगा। उन्होंने कहा कि नर सेवा ही नारायण सेवा है। आने वाले समय में पूरे विश्व में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जय जयकार होती रहेगी।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि सेवाभाव के कार्यो में सहयोग करना भी एक पुनीत कार्य है। हमें इस दुनिया से जाने से पहले नेत्रदान का पुण्य कार्य अवश्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुंभ को लेकर मुख्यमंत्री ने ऐतिहासिक निर्णय लिया है। सरकार को आगे भी आस्था के इस हरिद्वार कुंभ को प्रयागराज से बेहतर कराने के लिए कार्य करना चाहिए।

जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि गीता की शुरूआत धृतराष्ट्र से हुई। संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। उन्होंने कहा कि हम जो कुछ करते हैं वही हमें देखने को मिलता है। दुनिया देखने के लिए नेत्र ज्योति बहुत महत्वपूर्ण है।

पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि सेवा परम धर्म है। उन्होंने कहा कि वह सक्षम संस्थान के इस सेवा कार्य को नमन करते हैं। कहा नेत्र विकार को दूर करने के क्षेत्र में हंस फाउंडेशन की माता मंगला जी का कार्य भी सराहनीय है। उन्होंने कहा कि पतंजलि की ओर से भी ऐसे नेक कार्य में पूरा सहयोग मिलेगा।

सक्षम के राष्ट्रीय अध्यक्ष दयाल सिंह पंवार ने कहा कि नेत्र कुंभ का नारा जीते जीते रक्तदान, जाते जाते नेत्रदान है।

हंस फाउंडेशन की माता मंगला ने भी अपने संबोधन में कहा कि हंस फाउंडेशन नेत्र कुंभ में पूरा सहयोग प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि हरिद्वार में फाउंडेशन की दो यूनिट नेत्र रोगियो की सेवा कर रही है। उन्होंने कहा कि इस नेत्र कुंभ में आने वाले नेत्रहीनों को दृष्टि का प्रसाद मिलेगा।

इसके पहले सभी अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित किया। वेद विद्यालय कनखल के 11 विद्यार्थियों ने सरस्वती वाचन और वैदिक मंत्रोच्चार किया। स्वागत समिति के अध्यक्ष उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति डा सुनील जोशी ने उन्हें अंगवस्त्र देकर सम्मान किया। उद्योगपति जेसी जैन, अरूण सारस्वत, शिवालिक नगर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष राजीव शर्मा, मोनू त्यागी, जगदीश लाल पाहवा आदि का मुख्यमंत्री ने उनके सामाजिक कार्यों के लिए अभिनंदन किया। वीडियो के माध्यम से नेत्र कुंभ के आयोजन के उद्देश्य और सक्षम संस्थान के कार्य पर प्रकाश डाला गया।

मंच संचालन अमित चौहान ने किया। इस मौके पर महामंडलेश्वर ललितानंद गिरि, जिलाधिकारी सी. रविशंकर, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबूदई कृष्णराज एस, एम्स ऋषिकेश के डायरेक्टर डा. रविकांत, डा. यतीन्द्र नाग्नयाल, आरएसएस के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख राजकुमार मटाले, आरआरएस के प्रांत प्रचारक युद्धवीर आदि मौजूद थे।

मुख्यमंत्री इसके बाद कनखल के हरिहर आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से मुलाकात की। इसके बाद मुख्यमंत्री निरंजनी अखाड़ा पहुंचे। जहां उनका आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि, निरंजनी अखाड़ा के सचिव रविन्द्र पुरी महाराज, बालकानंद गिरि आदि ने स्वागत किया। श्री तीरथ ने अखाड़े में भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना भी की।

पूजा-अर्चना के बीच तीरथ ने संभाली सीएम की कुर्सी

इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने रविवार को सपत्नीक पहली बार सचिवालय स्थित अपने कार्यालय पहुंचकर पूजा-अर्चना के बीच अपनी कुर्सी को नमन कर, सम्भाल ली।

श्री तीरथ ने कुर्सी पर बैठने से पहले सभी का अभिवादन स्वीकार करते हुए, कार्यालय में मत्था टेका। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के सूत्र वाक्य पर आगे बढ़ेगी और जनभावनाओं का सम्मान किया जाएगा। उन्होंने सभी स्टाफ को ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा से काम करने की सलाह भी दी।

इससे पूर्व, मुख्यमंत्री ने अपने निजी आवास पर बच्चों के साथ राज्य का प्रमुख त्योहार फूलदेई मनाया। उन्होंने कहा कि वसंत ऋतु का यह त्योहार सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए। उन्होंने कहा कि यह प्रकृति के सरंक्षण एवं हमारी संस्कृति का प्रतीक है।

वाराणसी में राष्ट्रपति कोविंद ने लगायी बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी, की गंगा आरती attacknews.in

वाराणसी, 13 मार्च । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शनिवार को यहां श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में सपरिवार पूजा-अर्चना की तथा दशाश्वमेध घाट पर प्रसिद्ध गंगा आरती में शामिल हुये।

पूर्वांचल के तीन दिवसीय दौरे के पहले दिन राष्ट्रपति ने पत्नी सविता कोविंद के साथ विधि-विधान के साथ दुग्धाभिषेक कर बाबा भोले की पूजा-अर्चना की। इसके बाद उन्होंने मंदिर परिसर से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण कार्य देखा।

बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद उन्होंने मंदिर से चंद कदमों की दूरी पर स्थित दशाश्वमेध घाट पहुंचे, जहां उन्होंने शाम की विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती में शामिल हुए तथा मां गंगा की पूजा की।

राष्ट्रपति के साथ उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश के मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी एवं रविंद्र जायसवाल समेत अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे।

श्री कोविंद के राष्ट्रपति के तौर पर गंगा आरती में प्रथम आगमन पर दशाश्वमेध घाट को विशेष तौर पर फूलों एवं रोशनी से आकर्षक तरीके से सजाया गया। हर-हर महादेव के जयकारे, शंख, डमरू एवं घंटों की ध्वनि के बीच श्री कोविंद एवं अन्य अतिथि गंगा तट पर अद्भुत भक्तिमय नज़ारे को निहारते रहे। कोरोना के कारण आरती में चुनिंदा लोगों आरती में शामिल होने का मौका मिला।

इससे पहले, राष्ट्रपति के अपने तय कार्यक्रम पर बाबतपुर के लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर श्रीमती पटेल एवं श्री योगी ने उन्हें शॉल एवं पुष्प गुच्छ भेंटकर उनकी आगवानी की। इस अवसर पर प्रदेश के मंत्री डॉ तिवारी एवं श्री जायसवाल, सांसद बी पी सरोज, मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल एवं आईजी विजय सिंह मीणा मौजूद थे।

आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली कुरान की 26 आयतों को हटाने की याचिका पर मुस्लिम धर्मगुरूओं ने वसीम रिजवी को इस्माल विरोधी लोगों के एजेंट करार दिया attacknews.in

लखनऊ 13 मार्च । उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी के कुरान की 26 आयतों को हटाने को लेकर उच्चतम न्यायालय में दायर की गई याचिका पर विवाद बढ़ गया है तथा शिया समुदाय ने उनके खिलाफ रविवार को रैली निकालने का ऐलान किया है ।

वसीम रिजवी ने दायर याचिका में कहा है कि कुरान की ये 26 आयतें मानवता के खिलाफ हैं जो आदमी आदमी में फर्क पैदा करती हैं ।

शिया धर्म गुरू कल्वे जव्वाद ने कहा कि वसीम रिजवी का इस्लाम और शिया समुदाय से कोई लेना देना नहीं है। वो चरमपंथी और इस्माल विरोधी लोगों के एजेंट हैं। उनके बयान से सभी उलेमाओं को एक हो उनकी गिरफ्तारी की मांग करनी चाहिये। शिया कुरान की किसी आयत को हटाने की बात तो दूर उसमें थोड़ा भी संशोधन करने तक को तैयार नहीं हैं।

ईदगाह के इमाम खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि जो लोग कुरान की आयतें हटाने की मांग कर रहे हैं वो इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मन हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कहा कि वसीम रिजवी की उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका का अध्ययन किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय में इसका माकूल जवाब दिया जायेगा ।