उतराखण्ड में कद्दावर नेताओं की नापसंद के बाद भी पुष्कर सिंह धामी को सबसे कम आयु का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने काफी सोच-समझकर चुनाव से ठीक पहले सिसासी दांव खेला attacknews.in

देहरादून, 04 जुलाई । उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा शासनकाल में तीन बार मुख्यमंत्री बनाये जाने से देश-विदेश में पार्टी के बड़े नेताओं की कार्यशैली पर भी उंगली उठने लगी हैं। राज्य में वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव होंगे।

वर्ष 2000 में गठित इस राज्य में अब तक कुल चार आम विधानसभा चुनाव हुए हैं। आम तौर पर प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा निर्वाचन के बाद एक मुख्यमंत्री पूरे पांच वर्ष अपना कार्य करता है, लेकिन उत्तराखंड में अभी तक एक ही मुख्यमंत्री ऐसा रहा, जिसने अपने कार्यकाल पूरा किया हो। वह मुख्यमंत्री विकास पुरुष के रूप में विख्यात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी रहे।

इसके विपरीत कांग्रेस की वर्ष 2012 में बनी सरकार में क्रमशः विजय बहुगुणा और हरीश रावत ने यह पद संभाला। भाजपा इनसे दो कदम आगे रही। उसके शासनकाल में हर बार तीन-तीन मुख्यमंत्री बनाये गये।
इस कालखण्ड में रविवार को एक बार फिर भाजपा के प्रचंड बहुमत वाली राज्य सरकार में पुष्कर सिंह धामी ने ग्यारहवें मुख्यमंत्री के तौर पर पद संभाला है। वह मात्र 45 वर्ष के हैं, साथ ही राज्य में अब तक बने सभी मुख्यमंत्रियों में सबसे कम आयु के हैं। बस यही बात भाजपा के राज्य स्तरीय बड़े और कद्दावर नेताओं को रास नहीं आ रही है।

श्री धामी का नाम विधान मंडल दल के नेता के रूप में जब शनिवार को तय हुआ तब किसी भी स्थानीय बड़े नेता ने खुलकर उनके नाम पर आपत्ति नहीं की। इसके बावजूद दिन निकलते-निकलते निवर्तमान मन्त्रिमण्डल के सदस्य बिशन सिंह चुफाल ने श्री धामी के नाम पर अपनी खिन्नता पार्टी अध्यक्ष से व्यक्त कर दी।

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, श्री चुफाल ने प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को फोन कर श्री धामी के नाम पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। उनके अलावा, कभी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले निवर्तमान कैबिनेट मंत्री हरक सिंह और सतपाल महाराज के भी नाखुश होने की अटकलें चलती रहीं। इसके बाद, श्री धामी द्वारा निवर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और भुवन चंद खण्डूरी के साथ सतपाल महाराज के घर जाकर उनसे आशीर्वाद लेने के साथ सभी अटकलों पर विराम लग गया। शाम को शपथ ग्रहण कार्यक्रम में मंत्रिमण्डल में सभी कथित असंतुष्टों के शपथ लेने के साथ सुबह से चल रही सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हो गईं।

धामी को कमान सौंपकर भाजपा ने साधे एक तीर से कई निशाने

उत्तराखंड की राजनीति के शिखर पर पहुंचे नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को यहां तक पहुंचने में अपनी मेहनत के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का विशेष वरदहस्त प्राप्त हुआ है।

महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं खांटी संघी भगत सिंह कोश्यारी का भी उन्हें बेहद करीबी माना जाता है और माना जा रहा है कि उन्हीं की कृपा से वे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हैं। भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) उनकी राजनीति की प्रथम पाठशाला रही है।

श्री धामी मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले में कनालीछीना के ग्राम सभा टुण्डी, तहसील डीडीहाट में जन्म 16 सितंबर 1975 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उधमसिंह नगर जिले के साथ ही लखनऊ में हुई है। यहीं से उनके जीवन में राजनीतिक सफर की शुरूआत हुई। इसी दौरान वह भाजपा के प्रखर नेता भगत सिंह कोश्यारी के सम्पर्क में आये और लगातार राजनीति की सीढ़ी चढ़ते गये। संघ से बेहद अच्छे रिश्ते रखने वाले श्री धामी (45) को केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का करीबी माना जाता है।

पुष्कर सिंह धामी को सत्ता की कमान सौंपने के फैसले से थोड़ी असहजता जरूर दिख रही है, लेकिन पार्टी ने काफी सोच-समझकर चुनाव से ठीक पहले यह सिसासी दांव खेला है।

चार महीने पहले तीरथ सिंह रावत को सत्ता की बागडोर सौंपने के बाद नए फैसले पर सवाल भले ही उठ रहे हों, लेकिन धामी पर बाजी लगाकर पार्टी ने प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की खेमेबाजी से निपटने की एक कोशिश जरूर की ही है, लगे हाथ विपक्षी कांग्रेस की राजनीति को भी हिलाने की चाल चल दी है। मोटे तौर पर देखें तो भाजपा नेतृत्व के इस फैसले के पीछे पांच तरह के गणित लग रहे हैं।

गढ़वाल और कुमाऊं की सियासत में संतुलन:

जानकारों की मानें तो पार्टी ने 21 साल के उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर सिंह धानी का नाम आगे बढ़ाकर प्रदेश की राजनीति के सबसे अहम फैक्टर गढ़वाल-कुमाऊं के बीच बैलेंस स्थापित करने की कोशिश की है। क्योंकि, निवर्तमान सीएम तीरथ सिंह रावत और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन सिंह कौशिक दोनों गढ़वाल से आते हैं। ऐसे में बीजेपी ने मुख्यमंत्री का पद कुमाऊं को देकर दोनों जगह अपनी राजनीतिक गोटी को सेट करने का प्रयास किया है। यह कुमाऊं के लोगों के लिए चुनाव से पहले एक बड़ा संदेश है, जिस क्षेत्र की 29 सीटों में से 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 23 सीटें जीती थी।

ठाकुर-ब्राह्मण की राजनीति में संतुलन:

उत्तरखंड की राजनीति में एक और फैक्टर महत्वपूर्ण है। ठाकुर और ब्राह्मण की राजनीति। प्रदेश अध्यक्ष की कमान पहले से ही कौशिक के पास है, जो कि ब्राह्मण हैं। इसलिए धामी को सीएम बनाकर भाजपा ने एक राजपूत की जगह सिर्फ दूसरे राजपूत का चेहरा भर बदला है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि ‘धामी को चुनने के पीछे निश्चित रूप से इस बात को ध्यान में रखा गया है कि वो ठाकुर हैं, जिससे ठाकुर मतदाताओं का बड़ा हिस्सा चुनाव से पहले नाखुश ना हो जाएं…’ क्योंकि, तीरथ सिंह रावत भी ठाकुर हैं।

भविष्य के लिए युवा नेतृत्व पर दांव

धामी को चेहरा बनाकर बीजेपी ने न केवल आज की राजनीति को साधने की कोशिश की है, बल्कि उसने आने वाले तीन दशकों की राजनीति का एक खाका तैयार करने की कोशिश की है। 16 सितंबर, 1975 को पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना गांव में जन्मे पुष्कर सिंह धामी को उनकी पार्टी ने राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री के तौर पर चुना है।

भाजपा ने राजनीति के लिए मोटे तौर पर 75 वर्ष की उम्र की जो एक सीमा तय कर रखी है, उसके मुताबिक धामी के पास अभी कम से कम 30 वर्षों का सियासी करियर बचा हुआ है। ऐसे में वो प्रदेश में पार्टी को लंबे समय तक नेतृत्व दे सकते हैं और इस एक स्टैंड से पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी से निपटने की भी चाल चली है। धामी शुरू में विधार्थी परिषद से भी जुड़े रह चुके हैं और भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं, इसलिए बीजेपो को उम्मीद है कि युवा वोटरों में उनकी अपील काफी मायने रखेगी।

कांग्रेस की राजनीति की धार कुंद करने की भी कोशिश

2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ लड़कर राज्य की 70 में से 57 सीटें जीत ली थीं। उस चुनाव में पूर्व सीएम हरीश सिंह रावत कांग्रेस के चेहरा थे और इस समय भी वही प्रदेश में पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। कांग्रेस की एक और कद्दावर नेता इंदिरा हृदयेश का पिछले महीने ही निधन हो चुका है। ये दोनों नेता कुमाऊं क्षेत्र से ही आते हैं, जहां से धामी आते हैं। वो ऊधम सिंह नगर की खटीमा विधानसभा सीट से लगातार दो बार चुनाव जीतकर आए हैं। इसलिए, जिस कुमाऊं मंडल में अबकी बार कांग्रेस भाजपा को घेरने की तैयारी में थी, वहां पार्टी ने उसके खिलाफ ऐसा तीर मारा है कि कांग्रेस को अपनी रणनीति फिर से दुरुस्त करनी पड़ेगी।

सेना से जुड़ा पारिवारिक बैकग्राउंड

उत्तराखंड देश का एक सीमावर्ती राज्य है, जहां के अधिकतर युवाओं के लिए सेना में जाना पहली पसंद होती है। इस राज्य में सेना के बैकग्राउंड से जुड़े परिवारों का अपना ही सम्मान है। गौर फरमाइए कि सीएम के तौर पर नाम घोषित होने के बाद धामी ने मीडिया से अपनी पहली ही टिप्पणी में क्या कहा है, ‘पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता हूं, एक सैनिक का बेटा हूं और पिथौरागढ़ के दूर-दराज बॉर्डर इलाके में पैदा हुआ हूं।’ यही नहीं, धामी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी आशीर्वाद प्राप्त है और पूर्व सीएम और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की नजदीकियों का भी फायदा मिलने की उम्मीद है। दिलचस्प तथ्य ये है कि कोश्यारी भी कुमाऊं के ही बागेश्वर से आते हैं।

वरिष्ठ भाजपा विधायकों की नाराजगी दूर करने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के सबसे युवा नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली

वरिष्ठ भाजपा विधायकों की नाराजगी दूर करने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली ।

यहां राजभवन में आयोजित एक समारोह में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई । धामी के शपथ लेने के बाद 11 अन्य कैबिनेट मंत्रियों ने भी शपथ ली जिनमें से कुछ शनिवार से नाराज चल रहे थे ।

उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री बने, उधमसिंह नगर जिले के खटीमा से विधायक 45 वर्षीय धामी उत्तराखंड के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं ।

शपथ ग्रहण समारोह से पहले दिन भर रूठे विधायकों को मनाने की कवायद चलती रही जिसमें धामी खुद सतपाल महाराज के यहां डालनवाला स्थित आवास पर जाकर मिले और उन्हें गुलदस्ता भेंट कर समय रहते मना लिया । माना जा रहा था कि महाराज शनिवार को हुए फैसले के बाद से नाराज चल रहे थे । हांलांकि, महाराज ने अपनी नाराजगी को लेकर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया ।

पार्टी मामलों के प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम प्रदेश पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ उनके यहां यमुना कॉलोनी स्थित आवास में कुछ अन्य विधायकों की नाराजगी दूर करने के प्रयास में लगे रहे जिससे शपथ ग्रहण समारोह में कोई विघ्न न आए ।

शपथ लेने के बाद संवाददाताओं द्वारा इस संबंध में पूछे जाने पर धामी ने कहा कि कहीं कोई नाराजगी नहीं है । उन्होंने उल्टा सवाल दागते हुए कहा, ‘आपको यहां कोई नाराज दिखा क्या ?’ तय समय से 10 मिनट देर से आरंभ हुए समारोह में धामी के साथ शपथ लेने वाले उनके मंत्रिमंडल में सभी पुराने चेहरों को बरकरार रखा गया है और इसमें एकमात्र परिवर्तन यही किया गया है कि सभी मंत्रियों को कैबिनेट दर्जा दिया गया है । धामी मंत्रिमंडल में कोई भी राज्य मंत्री नहीं है ।

त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल की तरह सतपाल महाराज को पुष्कर मंत्रिमंडल में भी नंबर दो पर रख गया है । अन्य मंत्रियों में डा. हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, यशपाल आर्य, बिशन सिंह चुफाल, बंशीधर भगत, रेखा आर्य, स्वामी यतीश्वरानंद, अरविंद पाण्डेय, गणेश जोशी और धनसिंह रावत शामिल हैं ।

धामी मंत्रिमंडल में रेखा आर्य, धनसिंह रावत और यतीश्वरानंद का कद बढाया गया है । पिछले मंत्रिमंडल में ये राज्य मंत्री थे । शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक, कई विधायकों और अधिकारियों के अलावा धामी की मां बिश्ना देवी और पत्नी गीता धामी सहित अन्य परिजन भी मौजूद थे ।

उल्लेखनीय है कि पौड़ी संसदीय क्षेत्र से सांसद और निवर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार देर रात्रि मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसका कारण उनको विधायक न होना था।

संवैधानिक कारणों से राज्य सरकार का कार्यकाल एक वर्ष से कम होने के कारण विधानसभा का उपचुनाव नहीं कराया जा सकता था। इससे पूर्व, 09 मार्च को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर श्री तीरथ मुख्यमंत्री बनाये गये थे।

उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से बनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार का कार्यकाल पूरा होने से लगभग आठ महीने पहले तीसरी बार नये मुख्यमंत्री के रूप में विधायक पुष्कर सिंह धामी को शनिवार को विधायक का चुन लिया गया।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम की उपस्थिति में अपराह्न तीन बजे विधानमंडल दल की बैठक पार्टी के प्रदेश कार्यालय में शुरू हुई। इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत सहित भाजपा सांसद और विधायक भी उपस्थित रहे।

लगभग तीस मिनट तक चली इस बैठक में खटीमा से विधायक धामी को विधायक दल का नेता सदन चुन लिया गया।

श्री तोमर ने बैठक कक्ष के बाहर एकत्रित संवाददाताओं को इसकी जानकारी दी। श्री धामी को नेता सदन चुने जाते ही फूल-मालाओं से लाद दिया गया।

उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट वितरण में एके शर्मा की होगी महत्वपूर्ण भूमिका, शेष बचे कुछ ही महीने को देखते हुए शुरू हुई प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया attacknews.in

मऊ 28 जून । भारतीय प्रशासनिक सेवा :आईएएस: जैसे प्रमुख पद के माध्यम से सेवा करते हुए नरेंद्र मोदी के खास चहेते बने एके शर्मा जहां पहले गुजरात प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय से संबद्ध रहे। वही नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से प्रधानमंत्री कार्यालय में भी अहम जिम्मेदारियां निभाते रहे हैं ।

पिछले जनवरी में नौकरी से स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति के मैदान में उतरे एके शर्मा को भाजपा ने सीधे विधान परिषद सदस्य बनाया। जो अब प्रदेश उपाध्यक्ष के जिम्मेदारी से भाजपा का संगठनात्मक व्यवस्था दुरुस्त करेंगे।

मऊ जनपद निवासी व प्रधानमंत्री के अति निकटस्थ माने जाने वाले पूर्व नौकरशाह पीएमओ के पूर्व सचिव ए के शर्मा जब स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर भाजपा के सदस्य बने उस वक्त से ही उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलने का अंदाजा लगाया जाने लगा था ।

कुछ खास उत्साहित समर्थकों द्वारा तो सोशल मीडिया पर पद की चर्चा करते हुए बधाई तक दी जाने लगी थी। उनके समर्थकों द्वारा उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाये जाने के साथ ही महत्वपूर्ण गृह विभाग की जिम्मेदारी दिए जाने की अटकलें लगाई जाने लगी थो। लगभग 6 माह अटकलों को विराम देते हुए भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में उन्हें उपाध्यक्ष बनाकर सभी अटकलों पर विराम लगा दिया।

एके शर्मा अब संगठन के कील काटे दुरुस्त करेंगे। जिससे कुछ महीनों बाद ही संपन्न होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में पार्टी की पुनः सरकार बनाई जा सके।

ए के शर्मा द्वारा स्वेच्छिक सेवानिवृत्त होकर सदस्यता ग्रहण करते ही एके शर्मा विधान परिषद सदस्य बने। कुछ ही दिन बाद मार्च माह में वैश्विक महामारी कोविड कोरोना कि दूसरी लहर में समूचा प्रदेश चपेट में आ गया। ऐसे में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और प्रशासनिक कार्यों का बड़ा अनुभव रखने वाले ए के शर्मा को कोविड से लड़ने की बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई। इसमें कहीं ना कहीं वो खरे उतरते भी नजर आए। उनके द्वारा लगातार अथक परिश्रम करते हुए वाराणसी को केंद्र बनाया गया। जहां से समूचे पूर्वांचल सहित पश्चिम तक के जनपदों में कोविड से बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर कदमताल करते नजर आए।

अब उन्हें भाजपा प्रदेश संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह से ए के शर्मा की निकटता के बाद उन्हें संगठन में मिली इस बड़ी जिम्मेदारी में भी पार्टी कार्यकर्ताओं को बड़े निहितार्थ नजर आने लगे हैं।

गौरतलब हो कि कुछ ही दिनों बाद देश के लिए प्रधानमंत्री का मार्ग प्रशस्त करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। जो आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।

संगठन के नियमों के अनुसार विधानसभा चुनाव टिकट वितरण में प्रदेश उपाध्यक्ष एके शर्मा की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ऐसे में विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। सम्भव है कि प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया अब शुरू भी हो चुकी हो। ऐसे में ऐन मौके पर शर्मा का संगठन में प्रवेश टिकट वितरण कार्यक्रम में बड़ी भूमिका साबित होगी।

लिहाजा अब यह तो स्पष्ट हो गया है कि एके शर्मा द्वारा अपने पूर्व के अनुभवों के आधार पर संगठनात्मक ढांचा का कील कांटे दुरुस्त किए जाएंगे। इसके साथ ही भाजपा को 2022 चुनाव में पुनः सफलता दिलाना बड़ा लक्ष्य बनेगा।

खामोश ¡ बिहारी बाबू कांग्रेस में नहीं खप पा रहे हैं: नरेंद्र मोदी के पक्ष में ट्वीट के बाद शत्रुघ्न सिन्हा की भाजपा में वापसी की अटकलें तेज attacknews.in

पटना 27 जून । कभी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेताओं में शुमार रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने बिना बात मोदी से खामखां दुखी रहने वालों को दुनिया के दुखियों का नया वेरिएंट बता कर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है ।

श्री सिन्हा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से रविवार को ट्वीट कर कहा कि दुनिया में 4 तरह के दुखी लोग होते हैं ।

कांग्रेस नेता शत्रुघ्‍न सिन्‍हा का मूड बदल रहा है। रविवार को शत्रुघ्‍न सिन्‍हा दुखी लोगों के नये वैरिएंट की जानकारी देकर चर्चा में हैं।उन्‍होंने ट्वीट किया, दुनिया में चार तरह के दुखी लोग होते हैं. इनमें से एक नया वेरिएंट है बिना बात मोदी से दुखी रहने वाला वेरिएंट।

कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्वीट कर लिखा

दुनिया में चार तरह के दुःखी लोग होते हैं..

१. अपने दु:खों से दु:खी,

२. दूसरों के दु:ख से दु:खी,

३. दूसरों के सुख से दु:खी,

और
New Variant
४. बिना बात खामखां मोदी से दु:खी!

दुनिया में चार तरह के दुःखी लोग होते हैं..

१. अपने दु:खों से दु:खी,

२. दूसरों के दु:ख से दु:खी,

३. दूसरों के सुख से दु:खी,

और
New Variant
४. बिना बात खामखां मोदी से दु:खी!

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— Shatrughan Sinha (@ShatruganSinha) June 27, 2021

उनके ट्वीट की आखिरी लाइन को प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ से जोड़कर देखा जा रहा है. सोशल मीडिया यूजर्स से उनसे पूछ रहे हैं कि क्या शत्रुघ्न दोबारा भाजपा में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं. कुछ कह रहे हैं कि ये घरवापसी की तैयारी है।

शत्रुघ्न सिन्हा ने सियासी करियर की शुरुआत भाजपा से की थी

बॉलीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा काफी लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए थे।लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अप्रैल में ही उन्होंने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था।

बता दें कि शत्रुघ्न भाजपा में रहते हुए पटना साहिब से दो बार सांसद रह चुके थे।वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें जगह नहीं मिली थी।इसके बाद से वह पीएम मोदी की खुलेआम आलोचना करते रहते थे।

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया

इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया।उस वक्त उनके जेडीयू से जुड़ने की अटकलें लगाई जाने लगीं। हालांकि बाद में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। कांग्रेस ने उन्हें बिहार की पटना साहिब सीट से उम्मीदवार भी बनाया था, लेकिन शत्रुघ्न भाजपा के रविशंकर प्रसाद से हार गये थे उसके बाद से शत्रुघ्न एक तरह से नेपथ्य में ही चले गये थे. ऐसे में उनके इस हालिया ट्वीट से कई तरह के संदेश निकाले जा रहे हैं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आर्थिक सलाहकार व पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम ने “पायलट” को जोकर बताकर अपमानित किया attacknews.in

जयपुर, 26 जून।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आर्थिक सलाहकार व पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम अपने ट्वीटर हैंडल पर एक कार्टून ‘पायलटों की भर्ती’ साझा करके आलोचकों के निशाने पर आ गए।

कुछ लोगों ने इसे ‘चाटुकारिता’ करार दिया तो मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान से जोड़ा।

कार्टून में कुछ लोगों को पायलटों की भर्ती के लिए एक व्यक्ति का साक्षात्कार करते हुए दिखाया गया है। वहीं इसकी कैप्शन में लिखा है,‘‘मेरे पास पायलट का लाइसेंस या उड़ान का अनुभव तो नहीं है। लेकिन मुझे रद्द की गई उड़ानों के लिए भर्ती कर लीजिए।’’ मायाराम ने इसके साथ लिखा है,’जोरदार मसखरी।’

उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने इसका जिक्र करते हुए लिखा,’ आर्थिक मामलों के सलाहकार अब राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं।’

वहीं मायाराम ने एक जवाब में लिखा,’ अगर आप आपने जीवन से हास्य व्यंग्य को तिलांजलि दे दें तो उसका दोष किसी और के सर पर तो नहीं मंढा जा सकता! कभी राजनीति, सत्ता की उछाड़ पछाड़ से मन को मुक्त कीजिए और ज़िंदगी के दूसरे रसों का भी स्वाद लीजिए। अच्छा लगेगा!’ साथ ही उन्होंने कहा,’ यह पोस्ट राजनीतिक नहीं है। यह तो एक करोड़ रोजगार समाप्त होने के साथ अर्थव्यवस्था की बदतर स्थिति का प्रतीक है।’

मायावती ने अखिलेश यादव पर किया कटाक्ष:सपा की हालत इस कदर खराब है कि उसे छोटे छोटे कार्यकर्ताओं और जनाधार खो चुके जनप्रतिनिधियों को अपने घर में जगह देनी पड़ रही है attacknews.in

लखनऊ 17 जून । अपनी पार्टी से बाहर किये गये विधायकों के समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल होने की अटकलो से आहत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने लगातार दूसरे दिन सपा पर हमले करना जारी रखा।

सुश्री मायावती ने गुरूवार को एक के बाद एक दो ट्वीट कर कहा कि सपा की हालत इस कदर खराब है कि उसे छोटे छोटे कार्यकर्ताओं और जनाधार खो चुके जनप्रतिनिधियों को अपने घर में जगह देनी पड़ रही है।

उन्होने कहा “ सपा की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई है कि अब आएदिन मीडिया में बने रहने के लिए दूसरी पार्टी से निष्कासित व अपने क्षेत्र में प्रभावहीन हो चुके पूर्व विधायकों व छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं आदि तक को भी सपा मुखिया को उन्हें कई-कई बार खुद पार्टी में शामिल कराना पड़ रहा है। ”

बसपा प्रमुख ने कहा “ ऐसा लगता है कि सपा मुखिया को अब अपने स्थानीय नेताओं पर भरोसा नहीं रहा है, जबकि अन्य पार्टियों के साथ-साथ खासकर सपा के ऐसे लोगों की छानबीन करके उनमें से केवल सही लोगों को बीएसपी के स्थानीय नेता आएदिन बीएसपी में शामिल कराते रहते है, जो यह सर्वविदित है।”

गौरतलब है कि मंगलवार को बसपा से निलंबित नौ विधायकों ने अलग अलग सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी हालांकि इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। सुश्री मायावती को यह नागवार गुजरा और उन्होने बुधवार को भी ट्वीट कर अपनी नाराजगी का इजहार किया और धमकी दी कि यदि सपा बागी विधायकों को जगह देती है तो इसका खामियाजा उठाने के लिये उसे तैयार रहना होगा।

ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना, बोलीं- उनकी सरकार के साथ भी Twitter जैसा व्यवहार किया जा रहा है attacknews.in

कोलकाता 17 जून ।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीटर को लेकर जारी विवाद पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है।

उन्होंने कहा कि केंद्र माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर को प्रभावित करने में असफल होने के बाद अब उसे प्रभावहीन करने का प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने अपनी सरकार से तुलना करते हुए कहा कि उनकी सरकार के साथ भी केंद्र ऐसा ही व्यवहार कर रहा है।

ममता बनर्जी ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि वे ट्विटर को नियंत्रित नहीं कर सकते तो अब उसे प्रभावहीन करने का प्रयास कर रहे हैं। केंद्र हर उस व्यक्ति के साथ यह कर रहे हैं जिसे अपने पक्ष में नहीं ला पा रहे हैं। वे मुझे नियंत्रित नहीं कर सकते, इसलिए मेरी सरकार को भी प्रभावहीन करने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक हिंसा जारी रहने के बीजेपी के आरोपों पर बनर्जी ने कहा कि यह भगवा पार्टी की ‘चाल’ है और उसके दावे पूरी तरह से ‘आधारहीन’ हैं। ‘राज्य में कोई राजनीतिक हिंसा नहीं हो रही है। एक-दो छिटपुट घटनाएं हो सकती हैं लेकिन उन पर राजनीतिक हिंसा का ठप्पा नहीं लगाया जा सकता।

ममता बनर्जी ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर निशाना साधते हुए कहा कि हमने तीन तीन बार पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी है कि राज्यपाल को वापस बुला लिया जाए. वो अमित शाह के आदमी हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल किससे मुलाकात करते हैं यह उनका व्यक्तिगत मामला है और राज्यपाल उनके ही लोग हैं तो मिलना तो होगा ही। बता दें कि राज्यपाल धनखड़ दिल्ली के दौरे पर हैं।

केंद्र ने मुकुल रॉय और उनके बेटे की VIPसुरक्षा वापस ली;भाजपा विधायक राय ने पत्र लिखकर सुरक्षा हटाने को कहा था,अब ममता बनर्जी रॉय और बेटे को पुलिस सुरक्षा दे रही है attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 जून ।पश्चिम बंगाल के नेता एवं विधायक मुकुल रॉय को प्रदत्त ‘जेड’ श्रेणी की वीआईपी सुरक्षा उनसे वापस ले ली गई है।

आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि रॉय कुछ दिन पहले भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में वापस आ गए थे।

सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को 67 वर्षीय रॉय की सुरक्षा में तैनात जवानों को वापस बुलाने का निर्देश दिया है।

रॉय और उनके पुत्र शुभ्रांशु पिछले हफ्ते कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी में शामिल हो गए।

सूत्रों ने बताया कि भाजपा के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव जीतने वाले रॉय ने केंद्र को पत्र लिखकर सुरक्षा हटाने को कहा था जिसके बाद यह फैसला लिया गया।

इससे पहले 2017 में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटाए जाने के बाद रॉय ने पार्टी छोड़ दी थी और नवंबर 2017 में भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद उन्हें केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल सीआरपीएफ की वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी जो इस साल मार्च-अप्रैल में पश्चिम बंगाल में विधानसभा से ठीक पहले बढ़ाकर जेड श्रेणी की कर दी गई थी।

रॉय जब भी पश्चिम बंगाल में कहीं जाते थे तो हर बार उनके साथ सीआरपीएफ के 22-24 सशस्त्र कमांडो का जत्था होता था।

सूत्रों ने बताया कि रॉय के पुत्र को सीआईएसएफ की कम श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी, वह भी वापस ले ली गई है। अब रॉय और उनके बेटे को राज्य पुलिस सुरक्षा दे रही है।

मायावती की अखिलेश यादव को चेतावनी यदि बसपा के निष्कासित विघायकों को लिया तो फिर समाजवादी पार्टी भी टूटेगी attacknews.in

लखनऊ 16 जून । बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष् मायावती ने आज अखिलेश यादव को पार्टी को चेतावनी दी कि यदि बसपा के निष्कासित विधायकों को शामिल कराया तो समाजवादी पार्टी में फूट पड़ेगी और पार्टी टूट जायेगी ।

बसपा से निष्कासित असलम राइनी,मुजतबा ,हाकिम लाल,हरगोविंद भार्गव और सुषमा पटेल के कल मंगलवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मुलाकात और बंद कमरे मे बातचीत के बाद घटे राजनीतिक घटनाक्रम में आज मायावती ने लगातार पांच ट्वीट किये ।

उन्होंने कहा कि यदि अखिलेश यादव ने बसपा के निष्कासित विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराया तो सपा में फूट होगी और उसके विधायक बसपा में शामिल होंगे । उन्होंने बिना किसी का नाम लिये कहा कि सपा के कुछ विधायक बसपा में आने को तैयार बैठे हैं ।

घृणित गठजोड़,द्वेष और जातिवादी आदि की संकीर्ण राजनीति में माहिर समाजवादी पार्टी द्वारा मीडिया के सहारे यह प्रकाशित करवाना कि बसपा के कुछ विधायक टूट कर सपा में आ रहे घोर छलावा है ।

उन्होंने कहा कि इन्हें काफी पहले ही सपा और एक उद्योगपति के बीच मिली भगत के कारण राज्यसभा के चुनाव में दलित के बेटे को हराने के प्रयास के कारण निलंबित किया जा चुका है । ससपा इन निलंबित विधायकों के प्रति थोड़ी भी इमानदार होती तो इन्हें अधर में नहीं लटकाये रखती ।

उन्होंने कहा कि सपा का चाल चरित्र चेहरा हमेशा से दलित विरोधी रहा है और वो सुधार के लिये कतई तैयार नहीं है । बसपा के कार्यकाल में भदोही का नाम संत रविदास नगर किया गया था जिसे सपा ने अपने कार्यकाल में फिर बदल कर भदोही कर दिया ।

बसपा में बगावत, पार्टी से निलंबित विधायकों ने की अखिलेश से मुलाकात, सपा में हो सकते हैं शामिल

यूपी की सियासत एक बार फिर गरमाने लगी है। पिछले साल बसपा द्वारा निलंबित किए गए कम से कम पांच विधायकों ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की, जिससे अटकलें तेज हो गईं कि वे उनकी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। माना जाता है कि इन विधायकों और अखिलेश के बीच यूपी विधानसभा चुनावों की चर्चा हुई।

जौनपुर जिले के मुंगरा बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुषमा पटेल ने कहा, “सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ 15-20 मिनट तक चली बैठक में आगामी यूपी विधानसभा चुनावों पर चर्चा हुई और यह एक अच्छी मुलाकात थी।” भविष्य की कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर, पटेल ने कहा, “व्यक्तिगत रूप से, मैंने समाजवादी पार्टी में शामिल होने का मन बना लिया है।”

यह पूछे जाने पर कि बसपा के निलंबित विधायकों ने अखिलेश यादव से मिलने के लिए क्या प्रेरित किया, पटेल ने कहा, “हमें अक्टूबर 2020 में राज्यसभा चुनाव के दौरान निलंबित कर दिया गया था, और हमें स्पष्ट रूप से बसपा के झंडे और बैनर का उपयोग नहीं करने और पार्टी की किसी भी बैठख में शामिल नहीं होने के लिए कहा गया था।”

उन्होंने कहा, “राज्यसभा चुनाव के समय, बसपा ने कोई व्हिप जारी नहीं किया था, न ही हमने क्रॉस वोटिंग की थी। हमें बिना किसी आधार के निलंबित कर दिया गया था क्योंकि हम अखिलेश यादव से मिलने गए थे।”

उन्होंने कहा, “अब, हमें विकल्प तलाशने होंगे और अब उनका बसपा से कोई लेना-देना नहीं है। सपा प्रमुख से मिलने वाले अन्य लोगों में मोहम्मद असलम रैनी, हकीमलाल बिंद, मुस्तफा सिद्दीकी और हरगोविंद भार्गव हैं।

वर्तमान में, 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 18 विधायक हैं। अक्टूबर 2020 में, बसपा के सात विधायकों को पार्टी अध्यक्ष मायावती ने निलंबित कर दिया था। उन्होंने राज्यसभा के चुनाव के लिए पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार रामजी गौतम के नामांकन का विरोध किया था। अखिलेश यादव से मिलने वाले पांचों के अलावा चौधरी असलम अली और वंदना सिंह को भी बसपा से निलंबित कर दिया गया था। मायावती ने इस महीने की शुरुआत में बसपा विधायक दल के नेता लालजी वर्मा और अकबरपुर विधायक राम अचल राजभर को निष्कासित कर दिया था।

साल 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को 47 सीटें मिली थीं। ऐसे में जब अगले विधानसभा चुनावों को एक साल भी नहीं रह गया, अगर ये एमएलए समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेते हैं तो समाजवादी पार्टी की स्थिति और मजबूत हो जाएगी।

चिराग पासवान ने कहा,”लोक जनशक्ति पार्टी संविधान के अनुसार उन्हें उनके पद से नहीं हटाया जा सकता”,चाचा के खिलाफ आर या पार के मूड में, राजू तिवारी को बनाया प्रदेश अध्यक्ष attacknews.in

पटना 16 जून ।बिहार में चाचा पशुपति कुमार पारस से मिल रही राजनीतिक चुनौती से निपटने के लिए लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के चिराग गुट ने पूर्व विधायक राजू तिवारी को कार्यकारी अध्यक्ष से अब पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है।

चिराग पासवान ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं अपने चचेरे भाई प्रिंस राज को कल ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण दल से निष्कासित कर दिया था। श्री तिवारी पूर्वी चंपारण जिले के गोविंद गंज से विधायक रह चुके हैं और श्री पासवान के करीबी माने जाते हैं।

तिवारी पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद हमेशा पार्टी के अहम पद पर रहे हैं।

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पर नियंत्रण को लेकर हो रहे प्रयासों के बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बुधवार को कहा कि पार्टी संविधान के अनुसार उन्हें उनके पद से नहीं हटाया जा सकता।

पासवान ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनके इस्तीफा देने के बाद ही दूसरे नेता को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी संसदीय बोर्ड ही संसदीय दल के नेता का चुनाव कर सकता है। पार्टी के सांसद संसदीय दल के नेता का चुनाव नहीं कर सकते हैं ।

श्री पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस लोजपा के छह सांसदों में से पांच के समर्थन से संसदीय दल का नेता बन गए हैं और लोकसभा अध्यक्ष ने इसे मंजूरी दे दी है ।

उन्होंने कहा कि उनके पिता राम विलास पासवान ने गरीबों और पिछड़ों की लड़ाई लड़ने के लिए पार्टी इस गठन किया था।

उन्होंने कहा कि कल पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गयी थी जिसमें लोजपा को और मजबूत करने का निर्णय किया गया। पार्टी ने श्री पासवान के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। बिहार में पार्टी को और मजबूत करने का प्रयास किया जाएगा।

पासवान ने कहा कि उन्होंने पार्टी और परिवार को एकजुट रखने का भरपूर प्रयास किया। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी उनके चाचा ने पूरा साथ नहीं दिया। पिता के निधन के बाद होली के दिन भी परिवार का कोई सदस्य उनके घर नहीं आया। इसके बाद उन्होंने चाचा को एक पत्र भेजा था और कहा था कि यदि कोई मामला है तो मिल बैठ कर उसका निदान कर लें।

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों वह बीमार हो गये थे, इसी दौरान पार्टी पर नियंत्रण का षड्यंत्र किया गया । उन्होंने कहा कि बिहार में चुनाव को लेकर कोई समस्या थी तो उसे उसी समय उठाया जाना चाहिए था ।

इस बीच श्री पासवान ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से श्री पारस को संसदीय दल का प्रमुख बनाने के पार्टी सांसदों के प्रस्ताव को मंजूरी देने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने तथा उन्हें संसदीय दल का नेता नियुक्त करने का आग्रह किया है ।

श्री पासवान ने श्री बिरला को पत्र लिख कर कहा है कि पार्टी संविधान के अनुसार संसदीय दल के नेता का चुनाव संसदीय बोर्ड करता है। श्री पारस को संसदीय बोर्ड ने नेता नहीं चुना है और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उन्हें दल से बाहर कर दिया है ।

उल्लेखनीय है कि लोजपा के छह सांसदों में से चार ने श्री पारस को संसदीय दल का नेता बनाने को लेकर श्री बिरला को पत्र लिखा था । बाद में श्री पारस को नेता नियुक्त कर दिया था ।

लोक जनशक्ति पार्टी के बगावती नेता पशुपति कुमार पारस के पटना पहुंचने पर हुआ जोरदार स्वागत; अब सूरजभान सिंह के घर होगी पार्टी की बैठक attacknews.in

पटना 16 जून। लोक जनशक्ति पार्टी(लोजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर लोकसभा में संसदीय दल का नेता बने बिहार के हाजीपुर से सांसद पशुपति कुमार पारस के आज यहां पहुंचने पर उनके समर्थकों ने जोरदार स्वागत किया।

श्री पारस के साथ पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं लोजपा पारस गुट के कार्यकारी अध्यक्ष सूरजभान सिंह और उनके भाई नवादा के सांसद चंदन सिंह भी यहां पहुंचे । सभी का पटना के जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा पर ढोल नगाड़े के साथ स्वागत किया गया। श्री पारस ने समर्थकों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया। यह शक्ति प्रदर्शन श्री पारस के दम की बजाय पूर्व सांसद श्री सिंह के बूते देखने को मिला।

हवाई अड्डा से निकलने के बाद श्री पारस और श्री सिंह अपने समर्थकों के साथ सीधे लोजपा प्रदेश कार्यालय के लिए रवाना हो गए । इस दौरान पारस समर्थकों को देखकर विरोध की मंशा पाले चिराग समर्थकों ने शांत रहना ही बेहतर समझा ।

बाद में चिराग समर्थकों ने श्री पारस को प्रदेश कार्यालय में प्रवेश करने से रोकने की योजना बनाई और रास्ता रोकने की कोशिश भी की, जिसमें दोनों तरफ के समर्थक उलझ गए।

लोजपा के बागी गुट की बैठक कल सूरजभान के आवास पर

चाचा -भतीजे खेमे में बटी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के पारस गुट की बैठक कल 17 जून को पार्टी के प्रदेश कार्यालय में नहीं बल्कि पूर्व सांसद सूरज भान सिंह के आवास पर होगी ।

बिहार के हाजीपुर (सु) से सांसद पशुपति कुमार पारस (चाचा) के नेतृत्व वाले पांच सांसदों के गुट की तरफ से गुरुवार को पटना में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई है। इसका फैसला कल ही ले लिया गया था।

ताजा सूचना के अनुसार लोजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के आवास पर यह बैठक आयोजित की जाएगी। पूर्व सांसद श्री सिंह के निर्देश पर ही कार्यकारिणी की बैठक बुलाने का निर्णय किया गया है।

लोजपा में टूट के बाद पारस गुट ने श्री सिंह को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है । उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कराएं । पार्टी के 5 सांसदों ने श्री पारस के भतीजा, लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जमुई से सांसद चिराग पासवान के खिलाफ जिस तरह से बगावत की, उसके बाद चिराग गुट ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर कल शाम ही पांचों सांसदों को पार्टी से निष्कासित कर दिया था।

पारस गुट ने कल की बैठक में लोजपा के सभी जिला अध्यक्षों के अलावा दलित सेना के भी जिला अध्यक्षों को आमंत्रित किया है। साथ ही विधानसभा का चुनाव लड़े प्रत्याशियों को भी बैठक में आने को कहा गया है। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य ही कर सकते हैं।

चिराग पासवान ने चाचा पशुपति कुमार पारस समेत बगावत करने वाले पांचों सांसद को पार्टी से निष्कासित किया attacknews.in

पटना/नई दिल्ली 15 जून ।लोक जनशक्ति पार्टी( लोजपा) में मचे राजनीतिक घमासान के बीच पार्टी संसदीय दल के नेता बने बिहार में हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस खेमे ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को जहां अध्यक्ष पद से हटा दिया है, वहीं चिराग खेमे ने श्री पारस समेत पांच सांसदों को तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया है।

श्री चिराग पासवान ने पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की वर्चुअल बैठक की, जिसमें कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष शामिल हुए ।

बैठक में सर्वसम्मत प्रस्ताव किया पारित कि जिन पांच सांसदों ने बगावत की है, उन्हें पार्टी से निष्कासित किया जाए। शेष सभी लोग संगठन में काम करते रहेंगे और संगठन को मजबूत करेंगे।

इसके बाद श्री पासवान ने श्री पारस समेत पांचों सांसदों को तत्काल पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा की। इन सभी सांसदों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने और राष्ट्रीय नेतृत्व के खिलाफ साजिश करने का दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की गई है।

इससे पूर्व श्री पारस ने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सूरजभान सिंह को अब कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है। श्री सिंह को जिम्मेवारी दी गई है कि वह पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव कराएंगे। इसके लिए 17 जून को पटना में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई जाएगी जिसमें नए अध्यक्ष का चुनाव होगा।

बिहार के मंत्री बृज बिहारी सिंह हत्याकांड के मुख्य आरोपी रहे सूरजभान सिंह को बनाया गया चिराग पासवान की जगह लोक जनशक्ति पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष,7 दिन बाद चुना जाएगा नया अध्यक्ष attacknews.in

पटना 15 जून ।लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) नेता और सांसद चिराग पासवान को अपनी हीं पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया है। सूरजभान सिंह को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। पार्टी ने उन्हीं के खिलाफ खेला कर दिया है। ये पूरा सियासी बवाल मंगलवार को हुआ । चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस के समर्थकों ने इसके लिए पार्टी के संविधान का इस्तेमाल किया ।

लोजपा के बागी गुटों ने बाहुबली नेता सूरजभान सिंह को नया कार्यकारी अध्‍यक्ष बनाने पर मुहर लगाई । इससे पहले चिराग ने खुद ही राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का पद छोड़ने का प्रस्‍ताव दिया था, लेकिन उन्‍होंने अपनी मां और दिवंगत नेता राम विलास पासवान की पत्‍नी रीना पासवान को राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बनाने की शर्त रखी थी। अब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के समर्थक नेताओं ने चिराग के साथ बड़ा दांव खेल दिया ।

वहीं, अगले पांच दिनों के अंदर नए राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का चुनाव कराने का ऐलान भी किया गया। यानि कि, एक सप्ताह के भीतर बिहार की राजनीति में और लोजपा के भीतर बड़ा बवाल होने वाला है।

दरअसल, सूरजभान सिंह की गिनती बाहुबली में होती है। सिंह लोजपा के पुराने साथी हैं, लेकिन लंबे समय से चुनावी राजनीति से बाहर हैं। हालांकि, इस बीच वे पार्टी के लिए रणनीति बनाने में हमेशा अहम भूमिका अदा करते रहे ।

1965 को पटना जिले के मोकामा दियारा में सूरजभान सिंह का जन्‍म हुआ । वे राम विलास के महत्‍वपूर्ण सहयोगियों में एक रहे। फिलहाल लोजपा के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष थे। अब बागी गुट ने उन्‍हें कार्यकारी अध्‍यक्ष बना दिया है।

विवाद और अपराध से पुराना नाता:

बिहार का बृज बिहारी कांड बड़ें अपराधिक मामलों में से एक माना जाता है। राबड़ी सरकार में मंत्री रहे बृज बिहारी सिंह को गोलियों से भून दिया गया था।

मामले में पुलिस ने सूरजभान सिंह को मुख्य आरोपी बनाया था। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। जिसके बाद सूरजभान समेत अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। लेकिन, उसके बाद सूरजभान सिंह को बरी कर दिया गया था।

चिराग के समर्थन में लोजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय में हंगामा किया

लोक जनशक्ति पार्टी(लोजपा) में टूट के बाद बिहार के जमुई से सांसद चिराग पासवान के बेकाबू हुए समर्थकों ने आज पार्टी के प्रदेश कार्यालय में हंगामा किया ।

श्री पासवान के चाचा और हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में हुई टूट का विरोध करते हुए नाराज कार्यकर्ताओं ने पार्टी के प्रधान कार्यालय के बाहर जमकर नारेबाजी की। इसके बाद कार्यकर्ताओं ने कार्यालय में प्रवेश कर हंगामा किया और फिर मुख्य प्रवेश द्वार पर लगे श्री पारस के नेम प्लेट पर कालिख लगा दी। कार्यकर्ता पारस मुर्दाबाद के नारे लगाते रहे।

बहनजी की बहुजन समाज पार्टी के होने वाले हैं टुकड़े-टुकड़े,11 बागी विधायकों को एक ओर विधायक का साथ मिलने के बाद नई पार्टी का गठन होने जा रहा है attacknews.in

लखनऊ 15 जून ।अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव के लिए बनते माहौल के बीच प्रदेश में राजनीतिक उठापटक का दौर जारी है। इस बीच मायावती की बसपा बड़ी टूट की तरफ है। बागी विधायको ने नई पार्टी बनाने की तैयारी कर ली है। फिलहाल 11 विधायकों का साथ मिल चुका है। एक और विधायक मिलते ही नई पार्टी बन जाएगी। वहीं, बसपा के कुछ निलंबित विधायकों ने अखिलेश यादव से मुलाकात की है जिससे उनके सपा में जाने को लेकर कयास शुरू हो गए।

पार्टी के बागी विधायक असलम राइनी के अनुसार बसपा के बागी विधायक नई पार्टी बनाएंगे।निष्कासित लालजी वर्मा नई पार्टी के नेता होंगे। नई पार्टी बनाने के लिए 12 विधायकों की जरूरत है।एक और विधायक का साथ मिलते ही नई पार्टी का ऐलान कर दिया जाएगा।

इससे पहले बसपा से बगावत करने वाले विधायकों ने मंगलवार की सुबह सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की तो विधायकों के सपा में जाने की चर्चा होने लगी। इनकी राह में दल बदल कानून का रोड़ा है। इसके लिए पहले विधानसभा अध्यक्ष को पत्र सौंपना पड़ेगा।

सपा के रणनीतिकार चाहते हैं कि विधान परिषद चुनाव से पहले किसी तरह की बाधा ना आए। संभावना है कि विधान परिषद चुनाव के बाद ही अगला कदम आगे बढ़ाएंगे। बसपा विधायकों का समर्थन मिलने के बाद समाजवादी पार्टी 3 विधान परिषद सदस्य आसानी से जिता लेगी।

मायावती ने अपने दो विधायकों राम अचल राजभर और लालजी वर्मा को पिछले हफ्ते पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इसी के बाद बागी विधायकों की गतिविधियां अचानक तेज हो गईं।

इन पर आरोप है कि पंचायत चुनावों के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे। दोनों ही बसपा सुप्रीमो मायावती के काफी करीबी थे। पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से अब तक मायावती 11 एमएलए पार्टी से निकाल चुकी हैं।

लोक जनशक्ति पार्टी में राजनीतिक घमासान के बीच चिराग पासवान ने चाचा पशुपति कुमार पारस पर आरोप लगाया,पिता रामविलास पासवान ICU में भर्ती थे तब भी वह साजिश रच रहे थे attacknews.in

पटना 15 जून। लोक जनशक्ति पार्टी(लोजपा) में चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच बिहार के जमुई से पार्टी के सांसद चिराग पासवान ने अपने चाचा एवं हाजीपुर से सांसद पशुपति कुमार पारस पर आज आरोप लगाया कि उनके पिता रामविलास पासवान जब आईसीयू में भर्ती थे तब भी वह (पारस) साजिश रच रहे थे।

श्री पासवान ने मंगलवार को सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर ट्वीट कर कहा कि उन्होंने पार्टी को अपने परिवार के साथ रखने की कोशिश की लेकिन असफल रहे ।

उन्होंने इसके साथ ही चाचा पारस को 29 मार्च 2021 को लिखे गए पत्र को भी सार्वजनिक किया है । पत्र के अनुसार उनके पिता रामविलास पासवान जब आईसीयू में भर्ती थे तभी श्री पारस साजिश रच रहे थे। श्री पासवान के निधन के बाद श्राद्ध के लिए भी उनकी मां रीना पासवान को 25 लाख रुपए देने पड़े थे और श्री पारस ने अपने पास से एक चवन्नी तक नहीं निकाली।

सांसद श्री पासवान ने होली के दिन यह पत्र लिखा था। पत्र की शुरुआत में उन्होंने लिखा है कि यह पहली होली है जब पापा (रामविलास पासवान) ही नहीं बल्कि परिवार भी साथ नहीं है।

उन्होंने लिखा कि पत्र लिखने के बजाय वह अपने चाचा (पारस) से मिलकर बात करना चाहते थे लेकिन उन्होंने बात करने तक से इंकार कर दिया। पार्टी के प्रधान महासचिव अब्दुल खालिक और सूरज भान सिंह ने भी बीच बचाव करने की कोशिश की लेकिन चाचा नहीं माने। लिहाजा मजबूरी में पत्र लिखना पड़ा।

श्री पासवान ने लिखा है कि उनके छोटे चाचा रामचंद्र पासवान के निधन के बाद से ही श्री पारस बदल गए। छोटे चाचा के निधन के बाद जब उनके पुत्र प्रिंस राज को सांसद बनाकर पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तब श्री पारस ने जमकर विरोध किया। श्री राज को औपचारिक बधाई तक नहीं दी। जिस दिन पार्टी की कमान उन्हें सौंपी गई उसके बाद श्री पारस उनके घर पर आना जाना कम कर दिया।

बिहार में बुझा रामविलास पासवान का चिराग; लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पशुपति कुमार पारस की होने जा रही है ताजपोशी attacknews.in

नयी दिल्ली 15 जून । लोक जनशक्ति पार्टी में तेज राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच सांसद चिराग पासवान को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने के प्रयास तेज हो गए हैं ।

पार्टी के संसदीय दल के प्रमुख चुने जाने के बाद श्री पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस अपने सभी सांसद समर्थको के साथ आज पटना जाने की संभावना हैं ।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने श्री पारस को संसदीय दल के प्रमुख बनाने के सांसदों के प्रस्ताव को कल ही मंजूरी दे दी थी । लोजपा के छह सांसदों में से चार ने श्री पारस को संसदीय दल का प्रमुख बनाने का पत्र लिखा था ।

पार्टी सूत्रों के अनुसार श्री पारस के साथ सांसद प्रिंस राज , चंदन सिंह, वीना देवी और महमूद अली कैसर पटना जायेंगे । लोजपा की वही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई जाएगी, जिसमे श्री पासवान को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिए जाने की संभावना है। श्री पारस को ही पार्टी का राष्टीय अध्यक्ष बनने के संकेत दिए गए हैं ।

श्री पारस ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सराहना की है और उन्हें विकास पुरुष बताया है। उनका मानना है कि पार्टी के अधिकांश नेता और कार्यकर्ता श्री पासवान की कार्यशैली से नाराज है।

पार्टी तोड़ी नहीं बल्कि लोजपा के अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूरी में लिया फैसला – पारस

इससे पहले लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में टूट के बाद स्व.रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने कहा कि उन्होंने पार्टी तोड़ी नहीं बल्कि उसके अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूरी में 6 में से 5 सांसदों ने बड़ा फैसला लिया है।

श्री पारस ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि रविवार को देर शाम लोजपा के 6 में से 5 सांसदों की बैठक हुई जिसमें उन्हें सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुना गया । इसके बाद सभी सांसद रात 8:30 बजे लोकसभा अध्यक्ष से मिले और उन्हें पत्र सौंपकर नए नेता चुने जाने के बारे में जानकारी दी ।

स्व.रामविलास पासवान के छोटे भाई ने कहा कि उन्होंने पार्टी तोड़ी नहीं बल्कि बचाई है । यह पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूरी में लिया गया फैसला है ।

लोजपा नेता ने कहा,” हम तीनों (रामविलास पासवान, पशुपति कुमार पारस, रामचंद्र पासवान) भाइयों में बहुत प्रेम था यह पूरी दुनिया जानती है । 28 नवंबर 2000 में लोजपा का गठन बड़े भाई रामविलास पासवान ने किया था तब से पार्टी बहुत अच्छे ढंग से चल रही थी । कहीं किसी को कोई शिकवा शिकायत नहीं थी लेकिन मेरा दुर्भाग्य था कि मेरे बड़े भाई और छोटे भाई दोनों हमको छोड़कर चले गए। मैं अकेला रह गया। बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं ।”