परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख की CBI जांच कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका वापस ली attacknews.in

नयी दिल्ली, 24 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह को बुधवार को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख के कथित भ्रष्टाचार एवं कचादार की सीबीआई से ‘ निष्पक्ष एवं पारदर्शी ’ जांच कराने का अनुरोध किया था।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति आरएस रेड्डी की पीठ ने हालांकि सिंह को अपनी शिकायत को लेकर बंबई उच्च न्यायालय जाने की छूट प्रदान कर दी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि यह मामला ‘ काफी गंभीर’ है लेकिन याचिकाकर्ता को बंबई उच्च न्यायालय जाना चाहिए।

सिंह का पक्ष रखने के लिए अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह आज ही उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1988 बैच के अधिकारी सिंह ने अदालत से मुंबई के पुलिस आयुक्त पद से हटाने के आदेश को भी रद्द करने का भी अनुरोध किया था। उनका आरोप है कि यह आदेश ‘ मनमाना’ और ‘गैर कानूनी’ है।

सिंह ने आरोप लगाया है कि देशमुख ने पुलिस के लिए मुंबई में हर महीने 100 करोड़ रुपये की वसूली करने का लक्ष्य तय किया था।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा राज्य की विभिन्न कोर्ट के 129 व्यवहार न्यायधीशों के तबादले करके पदस्थापना आदेश जारी किए attacknews.in

 

जबलपुर, 24 मार्च । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 129 व्यवहार न्यायधीश की नवीन पदस्थाना की है।
नई पदस्थापना के आदेश रजिस्ट्रार जनरल राजेन्द्र कुमार वाणी की ओर से जारी किये गये है।

जिसमें मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कार्य एवं अधोसंरचना रजिस्ट्रार सनत कुमार कश्यप को सागर कुटुम्ब न्यायालय का प्रधान न्यायधीश नियुक्त किया गया है।

इसके अलावा उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के सह सचिव रजिस्ट्रार राजीव कुमार कर्महे को बैतूल कुटुक्ब न्यायालय का प्रधान न्यायधीश नियुक्त किया गया है।

इसी प्रकार दिलीप कुमार नागले विशेष न्यायधीश एसटीएसटी सागर को सीधी कुटुम्ब न्यायालय का प्रधान न्यायधीश नियुक्त किया गया।

वहीं संजय कुमार जोशी को हरदा से भोपाल स्थानातंरित किया गया है।

दमोह जिला सत्र न्यायधीश अनुराधा शुक्ला को जबलपुर, ममता जैन विशेष न्यायधीश एसटीएससी को जबलपुर उच्च न्यायालय विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी के पद पर पदस्थ किया गया है।

दतिया जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से दिनेश कुमार खटीक जबलपुर उच्च न्यायालय विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी, मोहित दीवान को लखनादौन से जबलपुर, महेश कुमार शर्मा को झाबुआ से इंदौर पदस्थ किया गया है।

वहीं अजय कुमार गर्ग सागर कुटुम्ब न्यायालय के प्रधान न्यायधीश को भिंड स्थानातंरित किया गया है।

इसके साथ ही रूपेन्द्र सिंह मड़ावी सिवनी से चैरई छिंदवाड़ा, श्रीमती पल्लवी रतलाम से बड़वाह मण्डेलेश्वर, प्रियंका मालपाणी राठी, रतलाम से मनावर धार, सुश्री राखी साहू रीवा से मैहर सतना, विनायक गुप्ता ग्वालियर से उज्जैन, महेन्द्रर सैनी सनावद से ग्वालियर, देवकुमार डिंडौरी से पिपरिया होशंगाबाद, बिंदिया पाठक डिंडौरी से पिपरिया होशंगाबाद, बार्बी जुनेजा अग्रवाल विदिशा से रतलाम, सुरेश यादव मैहर से इंदौर, जितेन्द्र कुमार शर्मा कोलारस से ग्वालियर, वंदना सिंह पन्ना से रेहली सागर, सुश्री नुरन निसा अंसारी जबलपुर से मुरैना, निशांत मिश्रा व्यौहारी से गुना,, सुश्री अनुदिता चैरसिया नरसिंहपुर से लखनादौन सिवनी, यश कुमार सिंह पिपरिया से इंदौर, पदमिनी सिंह जबलपुर से हनुमना रीवा, सुश्री नेहा अग्रवाल उज्जैन से खरगौन मण्डलेश्चवर, अनुपम तिवारी रीवा से वियरराघौगढ़ कटनी, तनवीर खान गुना से अशोकनगर, प्रीति चैतन्य चैबे छतरपुर से वारासिवनी बालाघाट स्थानांतरित किया गया है।

इसी प्रकार भरत सिंह रघुवंशी इछावर से भोपाल, सुश्री अंकिता श्रीवास्तव बंडा से भोपाल, सुश्री अनुप्रिया पाराशर इंदौर से विदिशा, शरद जयसवाल भिंड से नौगांव छतरपुर, सुश्री संजना मालवीय रेहली से जबलपुर, सुश्री रेनू खान शहडोल से बण्डा सागर, अंजली पटेल मनावर से खरगौन मण्लेश्वर, रोहित कुमार खुरई से नरसिंहपुर, जितेन्द्र सिंह परमार बड़वाहा से इछावर सीहोर, रामअवतार पटेल हनुमना से अनूपपुर, सुश्री सोनम शर्मा गाडरवारा से ब्यौहारी शहडोल, गौरव चैरसिया नौगांव से विदिशा, सचिन साहू विजयराघौगढ़ से रीवा, सुश्री आरती आर्या विदिशा से खुरई सागर, सुश्री विजयश्री सूर्यवंशी भोपाल से शहडोल, राहुल सोलंकी वारासिवनी से मंदसौर, सचेन्द्र कुमार मुरैना से हरदा, सुश्री सपना कनौजिया पिपरिया से जबलपुर स्थानांतरित किया गया है।

इसके अलावा राधा उइके सिवनी से बैतूल, निर्मला वास्कले मंदसौर से आलोट रतलाम, सुश्री नेहा प्रधान चाचैड़ा से शिवपुरी, ज्योति राठौर भोपाल से रतलाम स्थानातंरित की गई है।

सुश्री वर्षा भलावी इंदौर से कोतमा अनूपपुर, सुश्री संगीता पेन्द्राम वारासिवनी से सिवनी, सुश्री भानू पंडवार चैरई से गाडरवारा नरसिंहपुर, पूजा पाठक सागर से भोपाल, चैतन्य अनुभव चैबे छतरपुर से वारासिवनी बालाघाट, राकेश भिड़े ग्वालियर से कसरावद मण्डलेश्वर, सुश्री मयूरी गुप्ता कसरावद से ग्वालियर, राजू सिंह डाबर खरगौन से छतरपुर, सुश्री अंजना यादव डिंडौरी से चाचैड़ा गुना, सुश्री आरती रतौनिया अनूपपुर से कोलारस शिवपुरी, श्वेता खरे बैतूल से टॉकखुर्द देवास, सविता वर्मा सीधी से नरसिंहपुर, नेहा परस्ते नरसिंहपुर से देवास, ज्योति मरावी शहडोल से टिमरनी हरदा, शिखा लोकेश दुबे कोतमा से इंदौर, सुश्री मिताली पाठक रतलाम से श्योपुर, सुश्री ज्योति सिंह तेकाम सहित करीब 129 व्यवहार न्यायधीश व जेएमएफसी के स्थानातंरण किये गये है।

इंदौर हाईकोर्ट ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आयोजित होने वाले पारंपरिक भगोरिया उत्सव के आयोजन कराये जाने का निर्णय मध्यप्रदेश शासन की जिम्मेदारी पर छोड़ा attacknews.in

इंदौर, 19 मार्च । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने आज राज्य शासन को कोरोना महामारी के आवश्यक प्रोटोकॉल का पालन कराये जाने के निर्देश देते हुए उस जनहित याचिका का निराकरण कर दिया जिसमे राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आयोजित होने वाले पारंपरिक भगोरिया उत्सव पर रोक लगाने की मांग की गयी थी।

प्रशासनिक न्यायाधीश सुजॉय पॉल और न्यायाधीश विवेक रूसिया की युगलपीठ ने आज इस जनहित याचिका का निराकरण कर दिया है।

बीते 15 मार्च को गजानंद ब्राहम्ण निवासी देवझिरी कालोनी जिला बड़वानी के द्वारा इस याचिका को दायर किया गया था।

याचिका में कहा गया था कि महामारी कोरोना के चलते 22 दिवसीय इस आयोजन के लोक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल आसार पड़ने की प्रबल संभावनाएं है।

याचिका में कहा गया था कि भगोरिया का आयोजन राज्य के झाबुआ, आलीराजपुर, धार, खरगोन और बड़वानी जिलों में होता है और इस उत्सव में चार से पांच लाख लोग जुटते हैं।

याचिका में कहा है कि आदिवासी इलाकों में शारीरिक दूरी के नियम और मास्क पहनने की अनिवार्यता लागू नहीं की जा सकती।

युगलपीठ के समक्ष अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क देते हुए कहा कि इस संबंध में स्थानीय जिला प्रशासन एहतियातन सभी आवश्यक कदम उठाए जाने के लिए प्रतिबद्ध है।

इस पर अदालत ने याची के द्वारा उठाये गए मुद्दों की रोकथाम और महामारी के फैलाव को रोकने की दिशा में उचित निर्णय लेने के निर्देश राज्य शासन को देते हुए याचिका का निराकरण कर दिया है।

मनी लान्ड्रिंग मामले में महबूबा मुफ्ती को जारी ईडी के समनों पर रोक लगाने से उच्च न्यायालय का इनकार attacknews.in

नयी दिल्ली, 19 मार्च । दिल्ली उच्च न्यायालय ने धनशोधन मामले में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को जारी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समनों पर रोक लगाने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने पीडीपी नेता मुफ्ती को राहत देने से इनकार कर दिया।

अदालत ने ईडी को 16 अप्रैल से पहले उनके द्वारा दिए गए निर्णयों के संकलन के साथ एक संक्षिप्त नोट दाखिल करने को कहा।

ईडी की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुफ्ती को अधिकारियों के समक्ष पेश होना ही चाहिये।

ईडी ने इससे पहले मुफ्ती को 15 मार्च को पेश होने के लिये समन जारी किया था। अब उन्हें 22 मार्च को पेश होने के लिये कहा गया है।

मुफ्ती की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामाकृष्णन ने अदालत से ईडी को यह निर्देश देने का आग्रह किया कि वह पहले की तरह महबूबा पर व्यक्तिगत रूप से पेश होने का जोर न डाले।

इसपर अदालत ने कहा, ‘हम समन पर रोक नहीं लगा रहे। कोई राहत नहीं दी जा रही है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने अनुपस्थित मतदाताओं के लिए निर्वाचन आयोग की पोस्टल बैलेट सुविधा को वैध ठहराया attacknews.in

चेन्नई 18 मार्च ।माननीय मद्रास उच्च न्यायालय, ने 17.03.2021 को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 60 (सी) तथा तदनुरूप बने नियमों को चुनौती देने वाली याचिका (2020 की डब्ल्यूपीनंबर 20027) को खारिज कर दिया। सेक्शन 60(सी) तथा तदनुरूप नियमों में 80 वर्ष से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों, कोविड-19 प्रभावित/संदिग्ध तथा आवश्यक सेवाओँ में शामिल मतदाताओं को डाक मतपत्र से मतदान की सुविधा दी गई है।

माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा किः

“56. यह स्वीकार करना होगा कि निर्वाचन आयोग ने यहां जो कुछ किया है वह समावेशी होना चाहिए तथा मताधिकार से वंचित रह जाने की संभावना वाले व्यक्तियों के निश्चित वर्ग को पोस्टल बैलेट के इस्तेमाल के अधिकार की अनुमति देना और लोकतंत्र के उत्सव में शामिल होना चाहिए। एस. रघबीर सिंह गिल मामले के निर्णय में बैलेट की गोपनीयता और निष्पक्ष चुनाव कराए जाने को पूरक रूप में देखा गया है। यह विनम्रता के साथ कहा जा सकता है कि मतपत्र की गोपनीयता या चुनाव कराने में निष्पक्षता से समझौता किए बिना यदि प्रक्रिया को समावेशी बनाया जाता है तो यह उत्सव का बड़ा कारण और चुनाव कराने वाली संस्था की सराहना होगी।”

न्यायालय ने पोस्टल बैलेट से मतदान करने वाले व्यक्तियों के 1961 के नियमों द्वारा वर्गीकृत करने के कार्य में किसी तरह की मनमानी नहीं देखी।

“60. समान रूप से 1961 के नियमों द्वारा पोस्टल बैलेट से मतदान करने के लिए अनुमति प्राप्त व्यक्तियों के वर्गीकरण में किसी तरह की मनमानी नहीं दिखती। विचार उन लोगों के बारे में है जो मतदान करने के लिए शारीरिक रूप से मतदान केंद्र नहीं जा सकते। यदि ऐसा विचार है तो 2019 तथा 2020 के संशोधनों द्वारा व्यक्तियों के वर्गीकरण में कोई मनमानी नहीं है, क्योंकि यह उद्देश्य दिखाता है कि ऐसे वर्गों के व्यक्तियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के उनके बुनियादी अधिकार को देखना है।”

उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की कि चुनाव संपन्न कराने के लिए आयोग द्वारा दिशा-निर्देश जारी करना आयोग की सामान्य शक्तियों के अंतर्गत हैः

“62. अंतिम रूप से याचिकाकर्ता की यह दलील की दिशा-निर्देश जारी करने का क्षेत्राधिकार निर्वाचन आयोग को नहीं है, ठीक नहीं लगती, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा आयोग को सामान्य अधिकार दिए गए हैं। ए.सी. जोस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि जहां कोई संसदीय कानून नहीं है या उक्त कानून के अंतर्गत कोई नियम नहीं बनाया गया है वहां चुनाव संपन्न कराने के मामले में किसी तरह का आदेश पारित करने का अधिकार निर्वाचन आयोग को है। अनुच्छे 324 द्वारा अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण के मामले में कानून के पूरक के रूप में आयोग के लिए नियमों में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, वहां भी ऐसा अधिकार देखा गया है… इसके अतिरिक्त निर्णय ने माना की चुनाव संपन्न कराने के मामले में किसी तरह का निर्देश देने का सामान्य अधिकार आयोग को है।”

झारखंड में 2019 के चुनावों के बाद से आयोग ने कुछ श्रेणियों के लिए वैकल्पिक पोस्टल बैलेट की सुविधा प्रारंभ की। 2020 के बिहार के आम चुनाव में इन सभी श्रेणियों के लिए पोस्टल बैलेट का विकल्प किया गया और इसका उपयोग 52,000 से अधिक ऐसे मतदाताओं ने किया। कराए जा रहे चुनाव तथा उप-चुनाव में ऐसी श्रेणी के मतदाताओं को पोस्टल बैलेट विकल्प के लिए पहले ही दिशा-निर्देश निर्धारित किया है ताकि चुनाव को “कोई मतदाता पीछे न छूटे” के नारे के अनुरूप समावेशी बनाया जा सके।

यह सुविधा प्रदान करने के पीछे का उद्देश्य यह है कि जो मतदाता 80 वर्ष या या उससे अधिक उम्र के हैं और शारीरिक रूप से मतदान केंद्र तक आने में सक्षम नहीं हैं, वह घर बैठे पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान की सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। इस सुविधा ने बड़ी संख्या में ऐसे मतदाताओं को लाभान्वित किया है। आयोग ने मतदान केंद्रों को पीडब्ल्यूडी मतदाताओं या वरिष्ठ नागरिकों के लिए पूरी तरह से सुलभ बनाया है। ऐसे मतदाताओं के लिए नि:शुल्क परिवहन सुविधा भी अब प्रदान की जाती है।

चित्रकूट में पढ़ाई के बहाने नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण करने वाले कुतुबुद्दीन शाह को अदालत ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा attacknews.in

चित्रकूट,18 मार्च । उत्तर प्रदेश में चित्रकूट के अपर जिला न्यायाधीश प्रदीप कुमार मिश्रा ने मिशन शक्ति के तहत पूर्व से चिन्हित अभियोग़ मे पढ़ाई के बहाने नाबालिग लड़कियों से यौन शोषण करने वाले अभियुक्त को आजीवन कारावास के अलावा एक लाख पांच हजार रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया है।

न्यायालय में लम्बित चल रहे मुकदमों में पुलिस की प्रभावी पैरवी के चलते अपराधियों को सजा दिलाने के उद्देश्य से नियमित रुप से गवाहों को पेश कराने के लिए स्पष्ट निर्देश के अनुपालन में प्रभारी निरीक्षक बरगढ़ पैरोकार आरक्षी शिकन्दर चौहान ने कड़ी मेहनत कर समय से गवाहों की पेशी करायी गयी। अभियोजन अधिकारी ने प्रभावी प्रस्तुति एवं प्रभावी बहस की गयी।

अपर सत्र न्यायाधीश (विशेष पॉक्सो ) प्रदीप कुमार मिश्रा ने अभियुक्त कुतुबुद्दीन शाह को आज आजीवन कारावास (जीवन के शेष काल के लिये) एवं 01 लाख पांच हजार रुपये दण्डित किया गया। यह मुकदमा मिशन शक्ति अभियान के तहत चिन्हित था।

19 फरवरी को 5 साल की मासूम के साथ बलात्कार करने वाले बलात्कारी को पाॅक्सो अदालत ने 26 दिनों में सुनाई फांसी ;पुलिस ने 9 दिन में चालान पेश किया और अदालत ने 15 दिनों में फैसला सुनाया attacknews.in

झुंझुनू, 17 मार्च । राजस्थान में झुंझुनू जिले के विशिष्ठ पॉक्सो न्यायालय ने पांच वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म के आरोपी को आज फांसी की सजा सुनाई।

पॉक्सो न्यायालय के विशिष्ट न्यायाधीश सुकेश कुमार जैन ने घटना के 26 दिन में आरोपी सुनील कुमार काे दोषी करार देते हुये उसे मौत की सजा सुनाई है। विशिष्ट लोक अभियोजक लोकेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि दरिंदगी की यह घटना गत 19 फरवरी को हुई थी।

पुलिस ने इस मामले में घटना के नौ दिन में चालान पेश कर दिया था तथा न्यायालय ने इस मामले में चालान पेश होने के 15 दिन में फैसला सुना दिया है।

इस मामले में पुलिस की तरफ से 27 गवाह पेश किए।

मामले में सोमवार को बहस पूरी हो गई थी तथा फैसला सुरक्षित कर लिया था।

गौरतलब है कि निवासी श्योराणों की ढाणी थाना पिलानी निवासी आरोपी सुनील कुमार गांव में खेल रही पांच साल की मासूम का अपहरण कर ले गया था।

जिसने करीब 40 किमी दूर ले जाकर गाड़ाखेड़ा में दुष्कर्म किया।

इसके बाद वह मासूम को गांव के समीप छोड़ कर भाग गया था।

पुलिस ने सूचना के महज पांच घंटे में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था।

कोर्ट ने कहा कि इतना जघन्य अपराध करने के बावजूद दोषी के दिल में पश्चाताप का एक बार भी नहीं आया। ऐसे वहशी दरिंदे को फांसी ही दी जानी चाहिए।

40 गवाह और 250 दस्तावेज

इन दिनोें अपने कुकृत्यों से सवालों के घेरे में आने वाली पुलिस ने इस मामले में काबिले तारीफ काम किया। दुष्कर्म की वारदात 19 फरवरी को हुई और पुलिस ने नौ दिन में ही कोर्ट में चालान पेश कर दिया।

पुलिस ने दुष्कर्मी के खिलाफ मजबूत केस बनाया, जिसके चलते उसे फांसी की सजा मिली. इतनी कम अवधि में पुलिस ने 40 गवाह और करीब 250 दस्तावेज सुबूत के तौर पर पेश किए।

नौ दिन में चालान पेश

मासूम से दुष्कर्म का यह केस पिलानी थाने के तहत श्योराणों की ढाणी का है. खेत में खेल रही पांच साल की मासूम को स्कूटी पर आए आरोपी सुनील कुमार ने बहला-फुसलाकर अपने साथ ले लिया।

मासूम के भाई-बहनों ने आरोपी का पीछा भी किया था, लेकिन वे उसे नहीं पकड़ पाए।पुलिस को सूचना के बाद SP मनीष त्रिपाठी के निर्देश पर पुलिस ने तुरंत नाकाबंदी की. इस बीच रात करीब 8 बजे मासूम गाड़ाखेड़ा गांव में लहूलुहान स्थिति में मिली थी।

गाड़ाखेड़ा चौकी प्रभारी शेरसिंह तुरंत मौके पर पहुंचे और मासूम को अस्पताल पहुंचाया।हालत गंभीर होने पर उसे जयपुर रैफर किया गया था।घटना के पांच घंटे बाद ही पुलिस ने शाहपुर निवासी आरोपी सुनील को गिरफ्तार कर लिया।एसपी ने टीम का गठन का जल्द से जल्द चालान पेश करने को कहा।आरोपी के खिलाफ 9वें दिन ही 1 मार्च को चालान पेश कर दिया. तब से मामले की नियमित सुनवाई हो रही थी. बुधवार को पॉक्सो कोर्ट के जज सुकेश कुमार जैन ने आरोपी सुनील को फांसी की सजा सुनाई।

पॉक्सो एक्ट: झुंझुनूं में फांसी का दूसरा केस

इस मामले में 40 से अधिक गवाह जुटाए और साथ ही करीब 250 दस्तावेज बतौर सबूत रखे. जल्द से जल्द चालान पेश करने के लिए पुलिस ने इस मामले में रोजाना 12 से 13 घंटे काम किया. पॉक्सो एक्ट लागू होने के बाद मासूम से रेप को फांसी का यह झुंझुनूं का दूसरा मामला है. इससे पूर्व तीन साल पहले ऐसे ही एक मामले में आरोपी विनोद कुमार को फांसी की सजा सुनाई गई थी. यह फैसला घटना के 29 दिन में आया था।

गया में डाक्टर को बांधकर आंखों के सामने पत्नी और नाबालिग बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार मामले में कोर्ट ने सुनाई नौ बलात्कारियों को आजीवन कारावास attacknews.in

गया, 17 मार्च । बिहार में गया जिले की एक अदालत ने बुधवार को मां-बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में नौ लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी।

गया व्यवहार न्यायालय के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (सप्तम) सह लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (पास्को) के विशेष न्यायाधीश नीरज कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मां-बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में नौ दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। साथ ही सभी लोगों पर अलग-अलग धाराओं के तहत अर्थदंड भी लगाया गया है।

12 मार्च को मां व बेटी के साथ हुए दुष्कर्म के आरोपियों की सजा के बिंदु पर हुई थो सुनवाई

12 मार्च को गया जिले के कोंच प्रखंड के सोनडीहा गांव में मां व बेटी के साथ हुए दुष्कर्म के मामले के आरोपियों पर सजा की सुनवाई हुई। जिसमें 9 लोगों को दोषी पाया गया। उक्त सभी दोषियों को 17 मार्च को सजा सुनाए जाने का आदेश माननीय न्यायालय ने दिया था ।

इस संबंध में एपीपी सुनील कुमार ने बताया था कि सोनडीहा गांव के 13 लोगों पर मां-बेटी के साथ हुए दुष्कर्म के मामले में मुकदमा किया गया था। जिसमें 4 लोगों को निर्दोष होने के कारण बरी कर दिया गया। जबकि 9 लोगों को दोषी पाया गया है।

उन्होंने कहा कि स्पेशल पास्को एडीजी-7 के न्यायालय में सजा की बिंदु पर सुनवाई हुई। जिसमें 9 लोगों को दोषी पाया गया है। सभी आरोपियों को 17 मार्च को सजा सुनाई जाएगी।

गौरतलब है कि 13 जून वर्ष 2018 की रात्रि जिले के कोंच प्रखंड में एक ग्रामीण चिकित्सक अपनी पत्नी व बच्ची के साथ बाइक से घर लौट रहे थे। इसी बीच रात्रि में कुछ लोगों ने उन्हें जबरन रुकवा दिया। इसके बाद पिता के हाथ-पैर बांध दिए। इसके बाद पत्नी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, जबकि उनकी नाबालिग बच्ची के साथ भी एक व्यक्ति ने दुष्कर्म किया। इसके बाद सोनडीहा गांव के 13 लोगों पर नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई थी। तब से यह मामला गया व्यवहार न्यायालय में चल रहा था। 2 वर्ष बाद सजा के बिंदु पर सुनवाई हुई और 9 लोगों को दोषी पाया गया। जिसके बाद आगामी 17 मार्च को सभी को सजा सुनाई गई ।

मणिपुर मुठभेड़ों की जांच से SIT से पुलिस अधिकारी को मुक्त किया:सुप्रीम कोर्ट ने ही 2017 में मणिपुर में 1,528 हत्याओं की जांच के लिए SIT गठित करके दिए थे जांच के आदेश attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच कर रही एसआईटी से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महेश भारद्वाज को मुक्त करने की बुधवार को अनुमति दे दी।

भारद्वाज को उनके मूल एजीएमयू काडर में डीआईजी के तौर पर पदोन्नत किया गया है।

न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें वरिष्ठ अधिकारी को मुक्त करने का अनुरोध किया गया था। पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह आयोग को एक उपयुक्त अधिकारी शीघ्र मुहैया कराए।

पीठ ने कहा कि अधिकारी को मुक्त करने संबंधी याचिका के अलावा उसके समक्ष कोई अन्य वादकालीन अर्जी नहीं है।

उसने कहा कि पिछली बार सुनवाई के दौरान न्यायमित्र एवं वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी को इस मामले पर कुछ कहना था।

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायमित्र की यह निर्णय लेने में कोई भूमिका नहीं है कि सीबीआई को क्या करना चाहिए और न्यायमित्र केवल कानून के संबंध मदद कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि न्यायालय को इस प्रकार के मामलों में न्यायमित्र की भूमिका तय करनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्या न्यायमित्र सीबीआई से किसी व्यक्ति से स्थानांतरण और किसी अन्य अधिकारी को जांच सौंपने के बारे में कह सकती हैं।

मेहता ने कहा कि ये चीजें हर मामले में हो रही हैं और न्यायमित्र केवल कानून के सवाल पर सहायता कर सकती हैं, इससे अधिक कुछ नहीं।

पीठ ने मेहता से कहा, ‘‘आप एक वरिष्ठ अधिकारी और सॉलिसिटर जनरल हैं। हम जानते हैं कि न्यायमित्र का क्या काम है। चलिए, इस पर बात नहीं करते हैं। हमें बताइए कि आप अधिकारी की जगह किसे तैनात करेंगे।’’

मेहता ने कहा कि वह एक सूची जमा कराएंगे, जिसमें से न्यायमित्र चयन कर सकती हैं।

एनएचआरसी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील वासव पाटिल ने कहा कि यह अधिकारी एसआईटी के साथ थे और अब उन्हें उनके मूल काडर में डीआईजी के तौर पर पदोन्नति दे दी गई है तथा न्यायालय को इस पदोन्नति को प्रभावी बनाने की अनुमति देनी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 10 मार्च को कहा था कि वह अधिकारी को मुक्त करने की एनएचआरसी की यााचिका पर सुनवाई करेगी।

गुरुस्वामी ने पीठ से कहा था कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भी अपने अधिकारियों को एसआईटी से मुक्त करने के लिये दो आवेदन दायर कर रखे हैं लेकिन इनमें से कोई भी आवेदन उन्हें नहीं मिला है।

उन्होंने मानवाधिकार आयोग और सीबीआई की तरफ से दायर आवेदनों पर जवाब देने के लिए समय मांगा था।

मणिपुर में कथित तौर पर 1,528 न्यायेत्तर हत्याओं की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ ने 14 जुलाई 2017 को एसआईटी का गठन किया था और इनमें से कई मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने एवं जांच करने के आदेश दिए थे।

भारद्वाज सहित एनएचआरसी के दो अधिकारियों को जुलाई 2018 में एसआईटी में शामिल किया गया था।

लखनऊ हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला: वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए सीटों के आवंटन पर आरक्षण लागू किया जाए और यह प्रक्रिया 25 मार्च तक पूरी की जाय attacknews.in

लखनऊ,15 मार्च । उत्तर प्रदेश पंचायत चुनावों में सीटों पर आरक्षण व्यवस्था को लेकर उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए सीटों के आवंटन पर आरक्षण लागू किया जाए और यह प्रक्रिया 25 मार्च तक पूरी की जाय।

इसके पूर्व, राज्य सरकार ने स्वयं कहा कि वह वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए तैयार है। इस पर न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने 25 मई तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न कराने के आदेश पारित किए हैं।

हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 को आधार मानते हुए सीटों पर आरक्षण लागू किया जाए। इसके पूर्व राज्य सरकार ने कहा कि वह वर्ष 2015 को आधार मानकर आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए तैयार है। इस पर न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने 25 मई तक यूपी पंचायत चुनाव संपन्न कराने के आदेश दिया है।

आपको बता दें कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका देकर 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू किए जाने सम्बंधी नियमावली के नियम 4 के तहत जिला पंचायत, सेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत की सीटों पर आरक्षण लागू किया जाता है।

कहा गया कि आरक्षण लागू किए जाने के सम्बंध में वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानते हुए 1995, 2000, 2005 व 2010 के चुनाव सम्पन्न कराए गए।

याचिका में आगे कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 को एक शासनादेश जारी करते हुए वर्ष 1995 के बजाय वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए आरक्षण लागू किए जाने को कहा गया।

उक्त शासनादेश में ही कहा गया कि वर्ष 2001 व 2011 के जनगणना के अनुसार अब बड़ी मात्रा में डेमोग्राफिक बदलाव हो चुका है। लिहाजा वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर आरक्षण लागू किया जाना उचित नहीं होगा।

कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 के उक्त शासनादेश को नजरंदाज करते हुए, 11 फरवरी 2021 का शासनादेश लागू कर दिया गया। जिसमें वर्ष 1995 को ही मूल वर्ष माना गया है। यह भी कहा गया कि वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव भी 16 सितम्बर 2015 के शासनादेश के ही अनुसार सम्पन्न हुए थे।

बाटला हाउस मामले में आरिज खान को फांसी की सजा:मुठभेड़ में पुलिस टीम के चीफ इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की हत्या को कोर्ट ने’रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मानते हुए फैसला सुनाया attacknews.in

नयी दिल्ली 15 मार्च । दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने बाटला हाउस मुठभेड़ केस में आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) के सदस्य आरिज खान को सोमवार को मौत की सजा सुनाई।

बाटला हाउस एनकाउंटर में दोषी आरिज को दिल्ली की कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है। कोर्ट ने मामले को ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मानते हुए फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आठ मार्च को अपने फैसले में कहा था कि एनकाउंटर के वक्‍त आरिज खान मौके पर ही था और वह पुलिस की पकड़ से भाग निकला था। गत आठ मार्च को कोर्ट ने आरिज को पुलिस पर फायरिंग का दोषी माना था।

अदालत ने कहा कि उसने भागने से पहले पुलिसवालों पर फायरिंग की थी। कोर्ट ने कहा कि बाटला हाउस एनकाउंटर में पुलिस टीम के चीफ इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा पर भी आरिज ने गोलियां चलाई थीं, जिससे उनकी मौत हो गई थी।

दिल्ली पुलिस ने अदालत से आरिज खान को फांसी की सजा दिए जाने का मांग की थी। दिल्ली पुलिस का पक्ष रख रहे सीनियर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर एटी अंसारी ने कहा था कि कानून का अनुपालन करवाने वाले अधिकारी जो न्याय का संरक्षक था, उनकी हत्या की गई है। वो अपनी ड्यूटी पर थे। इसलिए मामले में कड़ा कदम उठाने की दरकार है।

कोर्ट ने कहा था कि आरिज खान को आईपीसी की धारा 186, 333, 353, 302, 307, 174A, 34 के तहत दोषी पाया गया है। उसे आर्म्‍स ऐक्‍ट की धारा 27 के तहत भी दोषी करार दिया गया है। एक दशक तक कथित तौर पर फरार रहने के बाद फरवरी 2018 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे गिरफ्तार किया था।

अदालत ने कहा कि यह साबित हो चुका है कि आरिज खान और उसके सहयोगियों ने जान-बूझकर पुलिसवालों को चोट पहुंचाई थी।

अदालत ने यह भी कहा कि खान ने इंस्‍पेक्‍टर एमसी शर्मा पर गोली चलाई जिससे उनकी जान गई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने पर्याप्त सबूत पेश किए जिनपर कोई संदेह नहीं किया जा सकता है।

गत 13 सितंबर 2008 को करोल बाग, कनॉट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में सीरियल बम धमाके हुए थे जिनमें 26 लोग मारे गए थे, जबकि 133 घायल हुए थे।

दिल्ली पुलिस ने जांच में पाया था कि बम ब्लास्ट को आतंकी गुट आईएम ने अंजाम दिया है। इसमें लीड मिली गुजरात में हुए ब्लास्ट से।

दरअसल, गुजरात में 26 जुलाई 2008 को ब्लास्ट हुआ था। गुजरात पुलिस ने जांच की और उससे जो लीड मिली वे उन्होंने इंटेलिजेंस एजेंसियों के अलावा सभी राज्यों की पुलिस से भी शेयर की थी। जानकारी दिल्ली पुलिस से भी शेयर की गई थी। जब उन लीड्स को डिवेलप किया गया तो उसी के आधार पर बटला हाउस में सर्च ऑपरेशन अंजाम दिया गया था।

आईएम के पांच आतंकी बटला हाउस स्थित एक मकान में मौजूद थे। 21 सितंबर 2008 को पुलिस ने कहा कि उसने आईएम के तीन आतंकियों और बटला हाउस के एल-18 मकान की देखभाल करने वाले शख्स को गिरफ्तार किया। दिल्ली में हुए विस्फोटों के आरोप में पुलिस ने कुल 14 लोग गिरफ्तार किए थे। ये गिरफ्तारियां दिल्ली और उत्तर प्रदेश से की गई थीं। आरिज घटना के 10 साल तक फरार रहा और उसे 14 फरवरी, 2018 को गिरफ्तार किया जा सका।

बाटला हाउस एनकाउंटर पर कांग्रेस नेताओं ने मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का खुला खेल खेला था। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने एनकाउंटर को फर्जी बताकर सवाल उठाए थे। वहीं, एक अन्य बड़े नेता सलमान खुर्शीद ने तो यहां तक दावा कर दिया था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एनकाउंटर में मारे गए मुस्लिम लड़कों की तस्वीरें देखकर रो पड़ी थीं।

इस पर भाजपा ने सवाल पूछे थे कि श्रीमती सोनिया आतंकवादियों के मारे जाने से आहत हुईं, लेकिन दिल्ली पुलिस के इंसपेक्टर मोहन लाल शर्मा की शहादत पर उनका दिल क्यों नहीं पसीजा?

दरअसल, भाजपा ने हमेशा कहा कि एनकाउंटर सही था और वहां मारे गए सभी आतंकवादी ही थे, कोई बेकसूर नहीं था। आरिज खान को जब अदालत ने दोषी करार दिया तो भी बीजेपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिग्विजय और सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं से जवाब मांगे। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा था कि बाटला हाउस एनकाउंटर सही निकला तो वो राजनीति छोड़ देंगी, अब जब आरिज खान दोषी साबित हो गया तो ममता क्या करेंगी?

बटला हाउस मुठभेड़ मामले से जुड़े घटनाक्रम

दिल्ली की एक अदालत ने साल 2008 में बटला हाउस मुठभेड़ के दौरान हुई पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा की हत्या के दोषी आरिज खान को सोमवार को मौत की सजा सुनाई।

बटला हाउस मुठभेड़ मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है:- – 13 सितम्बर, 2008: सिलसिलेवार धमाकों से दिल्ली दहल गई, जिसमें 39 लोग मारे गए थे और 159 लोग घायल हुए थे।

  • 19 सितंबर, 2008: पुलिस और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई; प्राथमिकी दर्ज की गई।
  • 3 जुलाई, 2009: आरिज खान और शहजाद अहमद को न्यायालय ने भगोड़ा अपराधी घोषित किया।

  • 2 फरवरी, 2010: शहजाद अहमद लखनऊ से गिरफ्तार।

  • 1 अक्टूबर, 2010: मामले की जांच दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को हस्तांतरित की गई।

  • 30 जुलाई, 2013: इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी और सह-अभियुक्त शहजाद अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

  • 14 फरवरी, 2018: 10 साल तक फरार रहने के बाद आरिज खान को गिरफ्तार किया गया।

  • आठ मार्च, 2021: आरिज खान को हत्या और अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया।

  • 15 मार्च, 2021: अदालत ने आरिज खान को मृत्युदंड दिया, 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

बटला हाउस मुठभेड़: दिल्ली अदालत ने आरिज खान की सजा पर सुबह रख लिया था फैसला सुरक्षित

दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा की हत्या और 2008 बटला हाउस मुठभेड़ से जुड़े अन्य मामलों के दोषी आरिज खान की सजा पर अपना फैसला सोमवार सुबह सुरक्षित रख लिया था ।

पुलिस ने आतंकवादी संगठन ‘इंडियन मुजाहिदीन’ से कथित रूप से जुड़े खान को मौत की सजा दिए जाने का अनुरोध किया और कहा कि यह केवल हत्या का मामला नहीं है, बल्कि न्याय की रक्षा करने वाले कानून प्रवर्तन अधिकारी की हत्या का मामला है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने अपराह्न चार बजे के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया।

पुलिस की ओर से पेश हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक ए टी अंसारी ने कहा कि इस मामले में ऐसी सजा दिए जाने की आवश्यकता है, जिससे अन्य लोगों को भी सीख मिले और यह सजा मृत्युदंड होनी चाहिए।

खान के वकील ने मृत्युदंड का विरोध किया।

दिल्ली की एक अदालत ने 2008 में बटला हाउस मुठभेड़ के दौरान हुई शर्मा की हत्या और अन्य अपराधों के लिए आरिज खान को आठ मार्च को दोषी ठहराया था।

अदालत ने कहा था कि यह साबित होता है कि आरिज खान और उसके साथियों ने पुलिस अधिकारी पर गोली चलाई और उनकी हत्या की ।

दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर इलाके में 2008 में बटला हाउस मुठभेड़ के दौरान दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के निरीक्षक शर्मा की हत्या कर दी गई थी।

इस मामले के संबंध में जुलाई 2013 में एक अदालत ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी शहजाद अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

इस फैसले के विरुद्ध अहमद की अपील उच्च न्यायालय में लंबित है।

आरिज खान घटनास्थल से भाग निकला था और उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था। खान को 14 फरवरी 2018 को पकड़ा गया और तब से उस पर मुकदमा चल रहा है।

ग्वालियर के बाद इंदौर हाईकोर्ट ने भी मध्यप्रदेश में प्रतीक्षित नगर निगमोंऔर परिषदों के निर्वाचन में आरक्षण की अधिसूचना पर लगायी अंतरिम रोक attacknews.in

इंदौर, 15 मार्च । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ के बाद आज इंदौर खंडपीठ ने भी राज्य में प्रतीक्षित निगम और परिषद के निर्वाचन के मद्देनजर जारी आरक्षण अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी।

प्रशासनिक न्यायाधीश सुजॉय पॉल और न्यायाधीश शैलेन्द्र शुक्ला ने उक्त रोक आज उस जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए लगाई जिसमे बीते 10 दिसंबर 2020 को राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा जारी एक अधिसूचना को चुनौती दी गई है।

इस अधिसूचना में राज्य में निगम और परिषद के निर्वाचन के लिए विभिन्न पदों पर उम्मीदवारों को जाति वर्ग के आधार पर आरक्षण निर्धारित किया गया है।

अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने बताया याचिकाकर्ता उक्त अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा कि इससे पहले सम्पन्न हुए कई निर्वाचनों में राज्य की निगम और परिषदों की कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर जाति वर्ग के आधार पर विभाजित आरक्षण श्रेणियों उम्मीदवार को पात्रता दी जा रही है।

इस तरह रोटेशन न होने से इन क्षेत्रों एक अन्य वर्गों के इच्छुक उम्मीदवारों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है।

याचिका में मांग की गई है कि प्रतीक्षित निगम और परिषदों के पदों पर होने वाले निर्वाचन में आरक्षण तय करने के पहले इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि जिन सीटों पर पूर्व में जिस वर्ग को आरक्षण का लाभ मिल चुका है।

उन वर्गों के अलावा अन्य जाति, समुदाय आधारित वर्गों, महिला पुरुष श्रेणियों को अवसर प्रदान किया जाये।

न्यायालय ने याचिका में राज्य शासन के मुख्य सचिव समेत एक अन्य और राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त से एक सप्ताह में अपना पक्ष इस मामले में स्पष्ट करने के आदेश दिए हैं।

इंदौर के हातोद निवासी दो पूर्व पार्षदों के द्वारा दायर इस याचिका की आगामी सुनवाई 31 मार्च 2021 को हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आरक्षण पर पुनर्विचार सुनवाई शुरू की:1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने यह तय करने के लिए सोमवार को सुनवाई शुरू की कि आरक्षण से संबंधित मंडल प्रकरण नाम से चर्चित इंदिरा साहनी मामले पर एक वृहद पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए या नहीं।

न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति आर रवीन्द्र भट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कुछ राज्यों ने अभिवेदन के संक्षित नोट दाखिल करने के लिए समय मांगा था। पीठ ने सभी राज्यों को इसके लिए एक सप्ताह का समय दिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने 1992 के फैसले पर बृहद पीठ के पुनर्विचार करने के सवाल पर दलीलें पेश करते हुए कहा कि इंदिरा साहनी फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है।

दातार ने तर्क दिया कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय करने समेत कई मामलों से जुड़े इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए 11 सदस्यीय पीठ के गठन की आवश्यकता होगी, जो अनावश्यक है।

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की स्थापना के बाद केवल पांच बार ऐसा हुआ है, जब 11 न्यायाधीशों की पीठ गठित की गई है और ऐसा अद्वितीय एवं संविधानिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण मामलों की समीक्षा के लिए किया गया है।

दातार ने कहा कि मामले में केवल यह प्रश्न उठाया गया है कि क्या आरक्षण की 50 प्रतिशत की अधिकतम तय सीमा का उल्लंघन किया जा सकता है। इसमें 1992 के फैसले से जुड़े अन्य मामलों को नहीं उठाया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘इंदिरा साहनी फैसला काफी विचार-विमर्श के बाद सुनाया गया था और मेरे विचार से उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि फैसले के बाद से ही 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को स्वीकार कर लिया गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘विभिन्न राज्यों के वकीलों के अनुरोध पर हम लिखित अभिवेदन के संक्षिप्त नोट दाखिल करने के लिए उन्हें एक सप्ताह का समय देते हैं।’’

सुनवाई की शुरुआत में केरल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने राज्य में विधानसभा चुनाव के मद्दनेजर सुनवाई स्थगित किए जाने का अनुरोध किया, जिसे पीठ ने खारिज करते हुए कहा, ‘‘हम चुनाव के कारण इस मामले की सुनवाई स्थगित नहीं कर सकते।’’

पीठ ने कहा कि संविधान के 102वें संधोशन के मामले पर निर्णय लेने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे हर राज्य प्रभावित होता है।

तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने कहा कि न्यायालय को उन विशेष परिस्थितियों पर गौर करना होगा, जिनमें 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण दिया गया है।

नफडे और गुप्ता ने कहा कि आरक्षण नीति संबंधी मामला है, इसलिए चुनावों के कारण इस मामले की सुनवाई स्थगित की जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि वह तथ्यात्मक पहलुओं पर फैसला नहीं कर रही और वह कानूनी पक्ष पर विचार करेगी।

शीर्ष अदालत ने आठ मार्च को संविधान पीठ के समक्ष उठाए जाने वाले पांच प्रश्न तैयार किए थे, जिनमें मंडल फैसले के पुनर्विचार का प्रश्न भी शामिल है।

उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों से इस ‘अति महत्वपूर्ण’ मुद्दे पर जवाब मांगा था कि क्या संविधान का 102वां संशोधन राज्य विधायिकाओं को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने को लेकर कानून बनाने और अपनी शक्तियों के तहत उन्हें लाभ प्रदान करने से वंचित करता है।

संविधान में किये गए 102 वें संशोधन अधिनियम के जरिये अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन, उसके कार्यों और शक्तियों से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 342 ए किसी खास जाति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिसूचित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव करने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी 2018 महाराष्ट्र कानून से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही पीठ के समक्ष इस संविधान संशोधन की व्याख्या का मामला उठा था।

मध्यप्रदेश में वर्ष 2021 में चार नेशनल लोक अदालत होगी आयोजित,राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर ने आदेश जारी किए attacknews.in

भोपाल, 14 मार्च । मध्यप्रदेश के जिला मुख्यालय सहित तहसीलों में वर्ष 2021 में 4 नेशनल लोक अदालत आयोजित की जाएंगी।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार इस संबंध में मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर ने आदेश जारी कर दिए है।

पहली लोक अदालत 10 अप्रैल को आयोजित होगी। दूसरी अदालत 10 जुलाई को, तीसरी 11 सितंबर और चौथी 11 दिसंबर को आयोजित होगी।

इन नेशनल लोक अदालतों में आपराधिक, सिविल, विद्युत अधिनियम, मोटर दुर्घटना दावा, चेक बाउंस, कुटुम्ब न्यायालय तथा प्रीलिटिगेशन के तहत बैंक, विद्युत, नगरपालिका के वसूली प्रकरणों का निराकरण किया जाएगा।

देशभर की अदालतों में 35 लाख से ज्यादा”चेक बाउंस” के लंबित मामलों के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गठित की कमेटी और 3 माह में मांगी रिपोर्ट attacknews.in

नयी दिल्ली, 10 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने चेक बाउंस के लंबित मामलों को शीघ्रता से निपटाने के तरीके सुझाने के लिये बंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश न्यामूर्ति आर सी चवान की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है।

समिति में विभिन्न सरकारी विभागों, भारतीय रिजर्व बैंक और बैंकों के फोरम आईबीए तथा कुछ अन्य संगठनों के प्रतिनिधि सदस्य के रूप में शामिल होंगे। सरकार को सदस्यों के नाम 12 मार्च तक देने को कहा गया है।

समिति इस मामले में विभिन्न सुझावों पर विचार करेगी और तीन माह में रिपोर्ट देगी।

मुख्य न्यायधीश एस.ए. बोवडे की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीश की पीठ को सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि केन्द्र सरकार चेक बाउंस के मामलों से निपटने के तौर-तरीके तय हो जाने के बाद ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए अतिरिक्त अदालतें बनाने की आवश्यकता को ‘‘सैद्धांतिक’’ तौर पर स्वीकार कर लिया है।

चेक बाउंस के 35 लाख से अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं। शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह भारी संख्या ऐसे मामलों के लंबित होने को ‘‘विचित्र’’ स्थिति बताया।

न्यायालय ने केन्द्र सरकार को चेक बाउंस के लंबित मामलों के निनटान के लिए एक निश्चित समयावधि के लिये अतिरिक्त अदालतें बनाने का सुझाव दिया।

न्यायालय ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 247 के तहत संसद को अधिकार है कि वह केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले किसी मामले में अपने बनाए कानून या पहले से चले आ रहे किसी कानून के बेहतर प्रबंधन एवं प्रशासन के लिये कुछ अतिरिक्त अदालतों की स्थापना कर सकती है। अदालत ने कहा कि केंद्र चेक बाउंस मालों को परक्राम्य लिखत एक्ट 1881 के तहत निपटान के लिए अतिरिक्त आदालतें स्थापित कर सकता है।

शीर्ष अदालत चेक बाउंस के बढ़ते मामलों को लेकर स्वत: संज्ञान वाले एक मामले पर सुनवाई कर रही है। न्यायालय ने ऐसे मामलों में जल्द न्याय के लिये कोई प्रणाली तैयार किये जाने पर गौर किया ताकि कानून के तहत दिये गये अधिकार को पूरा किया जा सके और ऐसे लंबित मामलों की संख्या कम की जा सके।

मुख्य न्यायधीश एस ए बोवडे की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूति एल नागेश्वर राव, बी आर गवई, ए एस बोपन्ना और एस रविन्द्र भट भी शामिल हैं। पीठ ने कहा इस संबंध में उन्हें कई सुझाव प्राप्त हुये हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘परक्राम्य लिखत अधिनियम (एनआई एक्ट) के बेहतर संचालन प्रशासन को लेकर अतिरिक्त अदालतों की स्थापना के बारे में दिये गये अदालत के सुझाव पर केन्द्र सरकार ने सकारात्मक रुख दिखाया है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘ऐसे में हम समझते हैं कि एक समिति का गठन किया जाना उचित होगा जो कि जो कि दिये गये सुझावों पर विचार करेगी और एनआई कानून के तहत लंबित मामलों के त्वरित निपटारे के लिये उठाये जाने वाले कदमों के बारे में स्पष्ट सुझावों के साथ रिपोर्ट देगी।’’

पीठ ने कहा कि बांबे उच्च न्यायलय के पूर्व न्यायधीश न्यामूर्ति आर सी चवान इस समिति के चेयरमैन होंगे। समिति के अन्य सदस्यों में वित्तीय सेवाओं के विभाग, न्याय विभाग, कंपनी मामलों के विभाग, व्यय विभाग और गृह मंत्रालय के अधिकारी होंगे जो अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे के नहीं होंगे। इसके अलावा इसमें भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के चेयरमैन के नामित प्रतिनिधि भी होंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) और सालिसिटर जनरल अथवा उनके प्रतिनिधि भी इस समिति में शामिल होंगे।

पीठ ने कहा कि केन्द्र समिति को सचिवालय की सुविधा प्रदान करेगा। उसने कहा कि समिति को विभिन्न पर्टियों द्वारा दिये गये सुझावों को समिति को उपलब्ध कराया जायेगा। समिति इस मामले में विशेषज्ञों से भी विचार विमर्श कर सकेगी।

पीठ ने मेहता से कहा कि वह 12 मार्च तक अन्य सदस्यों के नामों को सौंप दें।