हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि, कोविड संबंधी दवाएं, उपकरण अधिकतम खुदरा मूल्य से ज्यादा पर न बेचे जाएं attacknews.in

नयी दिल्ली, दो मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने रविवार को दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए जरूरी ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन सांद्रक और जरूरी दवाएं अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) से अधिक दाम पर न बेची जाएं।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने दिल्ली सरकार से यह भी कहा कि कोविड-19 से संबंधित दवाओं और उपकरणों की जमाखोरी तथा कालाबाजारी में शामिल पाए गए लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाएं। साथ ही अवमानना कार्रवाई के अलग मामले का सामना करने के लिये उन्हें अदालत के समक्ष पेश किया जाए।

कुछ वकीलों ने अदालत को बताया था कि दवाओं और उपकरणों के लिये अधिक रकम वसूली जा रही है, जिसके बाद अदालत ने ये निर्देश जारी किये हैं।

इसके बाद दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने अदालत को बताया कि दिल्ली पुलिस ने एंबुलेंस के लिये ज्यादा किराया वसूलने, दवाओं, उपकरणों की कालाबाजारी जैसे मामलों के बारे में शिकायत दर्ज कराने के लिये एक हेल्पलाइन नंबर- 33469900 – जारी किया है।

उन्होंने अदालत से अनुरोध किया का वह निर्देश दे कि इस हेल्पलाइन का ज्यादा से ज्यादा प्रचार किया जाए जिससे लोग ऐसे गलत गतिविधियों के बारे में अधिकारियों को सूचित कर सकें और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो सके।

इस पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (जीएनसीटीडी) और पुलिस को निर्देश दिया कि वो इस हेल्पलाइन का व्यापक प्रचार करें।

ज्यादा किराया वसूले जाने, कोविड-19 के उपचार से जुड़ी दवाओं और उपकरणों की जमाखोरी व कालाबाजारी का मुद्दा पीठ के संज्ञान में केंद्र द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान लाया गया। केंद्र ने याचिका में अदालत से उसके एक मई के उस आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था जिसमें उसने दिल्ली को आवंटित ऑक्सीजन की पूरी आपूर्ति करने का निर्देश दिया था।

अदालत ने ऑक्सीजन की आपूर्ति न होने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दी थी और केंद्र चाहता था कि अदालत इस निर्देश को भी वापस ले ले।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कोरोना मामलों में फिर आदेश पारित किया;आक्सीजन व रेमडेसीवर इंजेक्शन की निरंतर आपूर्ति की जाये,दवा वितरण नीति युक्तिसंगत बनाएं,अस्पतालों को स्वयं के आक्सीजन प्लांट के लिये वित्तीय मदद दे और टेस्टिंग रिपोर्ट-36 घंटे में मिले attacknews.in

जबलपुर, 01 मई । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कोरोना संबंधी मामलों में ऑक्सीजन की कमी व रेमडेसीवर इंजेक्शन को लेकर पूर्व में जारी आदेश का अक्षश: पालन न होने पर चिंता जाहिर की है।

चीफ जस्टिस मो. रफीक व जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने सरकार की ओर से पेश की गई एक्शन टेकन रिपोर्ट का अवलोकन करने व हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से उठायी गई आपत्तियों को गंभीरता से लेते हुए मामले में विस्तृत आदेश जारी किये है।

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि बिना आक्सीजन जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। राज्य का संवैधानिक दायित्व है कि जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चि कराये।

इसके साथ ही न्यायालय ने आयुष्मान, सीजीएचएस व बीपीएल कैशलेस कार्ड धारियों का उपचार करने से अस्पताल इंकार नहीं कर सकते यदि ऐसा किया जाता है तो सरकार उचित कार्रवाई करे।

युगलपीठ ने अंतरिम आवेदनों का निराकरण करते हुए उक्त निर्देश देते हुए मूल मामले की अगली सुनवाई 6 मई को निर्धारित की है।

उल्लेखनीय है कि अस्पताल में बिल राशि का भुगतान नहीं होने पर एक वृद्ध मरीज को बंधक बनाये जाने के मामले में संज्ञान याचिका के साथ अन्य कोरोना संबंधी मामलों की हाईकोर्ट में सुनवाई हो रहीं है। जिसमें विगत 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अवकाश के दिन मामले की सुनवाई करते हुए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे।

इसके बाद मामले में इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने एक आवेदन दायर कर कहा था कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने कहा था, लेकिन इसके बावजूद भी आपूर्ति नहीं की जा रहीं है। आवेदन में अनुरोध किया गया था ऑक्सीजन व रेमडेसीवर की आपूर्ति की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट द्धारा की जाये।

वहीं हाईकोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसियेशन की ओर से भी एक आवेदन पेश कर कहा गया कि बोकारों से एक ऑक्सीजन टैंकर सागर भेजा गया था, लेकिन यूपी में उसे रास्तें में रोक लिया गया, जिसे बाद में रिलीज किया गया। जबकि सागर सहित अन्य जिलों में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौते हो रहीं है। टेस्टिंग बढ़ायी जाये, 36 घंटे में मिले।

मामले की सुनवाई दौरान कोर्ट मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ व अधिवक्ता जुबीन प्रसाद ने पक्ष रखते हुए बताया कि कोविड-19 की दूसरी बेव के हिसाब से स्टेट की तैयारी दुरुस्त नहीं है। प्राइवेट लैबों में टेस्टिंग के लिये कई जगह इंकार किया जा रहा है, जिससे स्थिति और भयावह होती जा रहीं है। वहीं सरकार की ओर से प्राइबेट लैबों में कहा और कितने टेस्ट हुए इसकी जानकारी स्पष्ट नहीं है। जिस पर न्यायालय ने टेस्टिंग बढ़ाना सुनिश्चित करने के साथ ही रोगियों की रिपोर्ट 36 घंटे पर मिले यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी सरकार को दिये है।

सरकार की ओर से मामले में कहा गया कि ऑक्सीजन व रेमडेसीवर इंजेक्शन सहित अन्य जरूरी दवाएं जरूरतमंदों को निरंतर उपलब्ध करायी जा रहीं है। वहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी मोह. सुलेमान व छबि भारद्धाज की ओर से कहा गया कि बेड व आक्सीजन उपलब्ध करायी जा रहीं है, इसके साथ ही उनकी सुनिश्चिता निरंतर की जा रहीं है। ट्रेन व वायु मार्ग से भी रेमडेसीवर इंजेक्शन अस्पतालों को सीधे पहुंचाये जा रहे है।

मामले में जीवन रक्षक दवाईयों व रेमडेसीवर इंजेक्शन की हो रहीं कालाबाजारी का मुद्दा भी उठा। जिस पर न्यायालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कालाबाजारी करने वालों पर अति आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई के निर्देश दिये।

वहीं सरकार की ओर से कहा गया कि कालाबाजाी करने वालों पर कार्रवाई की जा रही है और उन्हें हिरासत में लिया जा रहा है।

मामले में सरकार की ओर से जानकारी दी गई कि 8 जिलों में पीएसए आक्सीजन जेनरेशन प्लांट में से पीएम केयर्स फंड से 6 पहले बन चुके है, 30 अप्रैल तक दो शेष का काम शुरु हो जायेगा, इसके लिये सरकार की ओर से आदेश जारी किये जा चुके है। इसके साथ ही भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, रीवा व शहडोल में 650 एलपीएम पीएसए संयत्रों की स्थापना 20 मई तक हो जायेगी, इसके लिये स्वास्थ निर्देशालय ने आदेश जारी कर दिये है।

स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त सचिव मोह. सुलेमान ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों में से 5 से 6 फीसदी को ही रेमडेसीवर इंजेक्शन दिया जा रहा है, जबकि निजी अस्पतालों में अंधाधुंध तरीके से उक्त इंजेक्शन की सलाह दी जा रही है, जिससे उक्त दवा की मांग बढ़ती जा रहीं है।

2- हाईकोर्ट ने ये निर्देश दिये आक्सीजन व रेमडेसीवर इंजेक्शन की निरंतर आपूर्ति की जाये, इस संबंध में 19 अप्रैल को ही आदेश जारी किये गये थे। कालाबाजारी फल-फूल रहीं है, ऐसे में अस्पतालों में स्थिति अराजक हो सकती है, कानून व्यवस्था बिगडऩे की भी आशंका है, ऐसे राज्य को दवा वितरण नीति को फिर से ध्यान देकर युक्तिसंगत बनाना चाहिये।

अस्पतालों के स्वयं के आक्सीजन प्लांट के लिये वित्तीय मदद मिले और ऋण आसानी से उपलब्ध हो सके, सरकार भी सब्सिडी पर विचार करे, ताकि अस्पतालों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

इसके अलावा टेस्टिंग रिपोर्ट-36 घंटे पर मिले, इसके साथ ही तकनीशियनों, विशेषज्ञों व लैब अटेंडेंट की संख्या बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। कैशलेस कार्ड धारियों के उपचार से अस्पताल इंकार नहीं कर सकते। यदि वह ऐसा करते है तो सरकार शिकायत प्राप्त होने पर उचित कार्रवाई करे। बीएसएल 37 प्रमाणित लैब है, जिन्हें बढ़ाये जाने के भी निर्देश दिये है।

वहीं ऑक्सीजन आवंटन पर भी सरकार को जवाब पेश करने के निर्देश दिये है। ग्रामीणों इलाकों में भी स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाने के भी निर्देश दिये है।

इसके साथ बायोमेडीकल डिस्पोजल खुले में पड़े होने के मुद्दे को भी गंभीरता से लेते हुए न्यायालय ने पीसीबी व सरकार को उसके निपटान के लिये आवश्यक कार्रवाई के निर्देश देते हुए परिपालन रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिये है।

ऑक्सीजन टैंकरों के लिये परिवहन व पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया है वे टैंकरों के लिये ग्रीन कॉरीडोर प्रदान करे, ताकि समय पर ऑक्सीजन संबंधित स्थानों पर पहुंच सके और मानव जीवन बचाया जा सके। इसके साथ ही ऑक्सीजन टैंकर व अन्य जीवन रक्षक दवाओं को न रोका सके, यह सुनिश्चित करे। केन्द्र व राज्य सरकार जीवन रक्षक दवाओं व ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करे।

सुप्रीम कोर्ट में निर्धारित समय से एक सप्ताह पहले ग्रीष्मावकाश की घोषणा,गर्मी की छुट्टी 10 मई से ही शुरू किये जाने की घोषणा की attacknews.in

नयी दिल्ली, 01 मई । कोरोना महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्धारित समय से एक सप्ताह पहले ही ग्रीष्मावकाश की घोषणा कर दी है।

न्यायालय की ओर से शनिवार को जारी सर्कुलर के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन ने शीर्ष अदालत में गर्मी की छुट्टी 10 मई से ही शुरू किये जाने की घोषणा की है।

सर्कुलर के अनुसार, गर्मी के बाद न्यायालय में पूर्व के निर्धारित समय से पहले ही (28 जून से) कामकाज शुरू हो जायेगा।

अतिरिक्त रजिस्ट्रार महेश टी पाटनकर की ओर से जारी सर्कुलर में बताया गया है कि इस साल 13 नवम्बर को शनिवार होने के बावजूद अदालती कामकाज होगा। शीर्ष अदालत में शनिवार और रविवार को सप्ताहांत की छुट्टी होती है।

गौरतलब है कि भारतीय विधिज्ञ परिषद, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) के प्रतिनिधियों ने न्यायमूर्ति रमना से मुलाकात की थी और उनसे कोरोना के मद्देनजर गर्मी की छुट्टी निर्धारित समय से पहले शुरू करने का अनुरोध किया था।

बहुचर्चित चारा घोटाले मामले में दिसंबर 2017 में जेल भेजे गए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की सवा तीन साल बाद जेल से रिहा,परिवार ने उन्हें अभी एम्स में ही रखने का मन बनाया attacknews.in

 

रांची, 30 अप्रैल। अविभाजित बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले मामले में दिसंबर 2017 में जेल भेजे गए राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद आखिरकार सवा तीन साल बाद रिहा हो गए।

उनकी रिहाई के ऑर्डर गुरुवार को ही दिल्ली एम्स भेज दिए गए थे, जहां उनका इलाज चल रहा है। अब एम्स को रिहाई के ऑर्डर की हार्ड कॉपी भी मिल गई है। अब लालू कैद से आजाद हैं, लेकिन परिवार ने उन्हें फिलहाल ।एम्स में ही रखने का फैसला लिया है। उनकी तबीयत खराब है। लगातार डॉक्टरी देखभाल की जरूरत है। आगे डॉक्टरों की सलाह पर ही उन्हें अस्पताल से बाहर लाया जाएगा।

वैसे लालू प्रसाद के रिहा होने के बाद उन्हें राज्यसभा सांसद बेटी मीसा भारती के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर रखने की व्यवस्था पूरी कर ली गई है। एम्स में 25 जनवरी से लालू का इलाज चल रहा है। परिवार ने बताया कि अभी राजद प्रमुख को पटना नहीं भेजा जाएगा। उनकी तबीयत लगातार खराब रही है और कोरोना की स्थिति को देखते हुए कोई जोखिम नहीं उठाया जा सकता है।

परिवार का कहना है कि दिल्ली में चिकित्सा व्यवस्था बेहतर है। लालू को डॉक्टर की देख-रेख में रहना है। ऐसे में दिल्ली ही उनके लिए बेहतर है। डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक ही परिवार फैसला लेगा। डॉक्टरों की मंजूरी के बाद ही लालू को घर ले जाया जाएगा।

दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों और उनके परिजनों के लिए पंच सितारा होटल में कोरोना उपचार सुविधा संबंधी आदेश वापस लिया attacknews.in

नयी दिल्ली, 29 अप्रैल । दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को दिल्ली सरकार की ओर से न्यायाधीशों और उनके परिजनों को कोरोना संबंधी सुविधाएं पांच सितारा अशोका होटल में दिये जाने संबंधी आदेश वापस लेने की जानकारी देने पर न्यायालय ने स्वत: संज्ञान के तहत शुरू की गयी कार्यवाही बंद कर दी।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और रेखा पल्ली की खंडपीठ ने मीडिया रिपोर्ट और मामले का संज्ञान लेते हुए शुरू की गयी कार्यवाही बंद कर दी।

पीठ ने कहा, “ एक संस्था के रूप में क्या हम अपने लिए विशेष सुविधा ले सकते हैं, क्या यह साफ तौर भेदभावपूर्ण नहीं होगा जब आम लोगों को उपचार नहीं मिला रहा है और हमारे लिए पांच सितारा सुविधाएं हों।

” पीठ ने कहा, “ यह सोचा भी नहीं जा सकता कि हम एक संस्थान के रूप में बेहतर उपचार चाहते हैं।”

अधिवक्ता संतोष कुमार ने उच्च न्यायालय को बताया कि दिल्ली सरकार का न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए अशोका होटल में 100 बिस्तर स्थापित करने का आदेश वापस ले लिया है।

एसडीएम गीता ग्रोवर ने 28 अप्रैल को बताया कि दिल्ली सरकार ने न्यायाधीशों के लिए अशोका होटल के 100 कमरों में कोविड-19 के उपचार की सुविधाएं मुहैया कराने संबंधी आदेश तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने अशोका होटल में न्यायाधीशों और अधिकारियों के लिए कोविड सेंटर शुरू करने का आदेश देने के बाद क्यों लिया वापस जबकि मजिस्ट्रेट गीता ग्रोवर ने कहा था कि दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश दिया, हफ्तेभर के अंदर यह सुविधा शुरू हो जाएगी attacknews.in

नयी दिल्ली 28 अप्रैल। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों और अधिकारियों के लिए फाइव स्टॉर कोविड देखभाल केंद्र की सुविधा के लिए दिल्ली सरकार को कभी नहीं कहा गया तथा सरकार को तत्काल उस आदेश में सुधार करने को कहा जिसमें अशोका होटल में बेड की व्यवस्था करने को कहा गया था।

इस बीच उच्च न्यायालय की फटकार के बाद दिल्ली सरकार ने फाइव स्टार होटल में जजों के लिए 100 बिस्तरों का विशेष कोविड देखभाल केंद्र बनाने के फैसले को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने लाइवलॉ का हवाला देते हुए कहा, “ यह बहुत भ्रामक है। उच्च न्यायालय ने इस संबंध में ऐसा कोई अनुरोध किया और न ही कोई संवाद किया है।”

न्यायालय ने इस मामले में दिल्ली सरकार से जवाब प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है।

दिल्ली सरकार ने अशोका होटल को दिया जजों और उनके परिवारों के लिए कोरोना स्वास्थ्य केंद्र बनाने का आदेश

इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट के अनुरोध पर दिल्ली सरकार ने पांच सितारा अशोका होटल को जजों, न्यायलय अधिकारी और उनके परिवारों के लिए 100 कमरों का कोविड स्वास्थ्य केंद्र बनाने का आदेश दिया।

इस सुविधा को दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित प्राइमस हॉस्पिटल से जोड़ा जाएगा। इस बाबत एक आदेश रविवार को चाणक्यपुरी उप-मंडल की मजिस्ट्रेट गीता ग्रोवर द्वारा पारित किया गया था ।

यह आदेश ऐसे समय में दिया गया जब दिल्ली में कोरोना वायरस के बढ़ते केसों के बीच स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराती हुई दिखाई दे रही है। दिल्ली के ज्यादातर अस्पताल बेडों, वेंटिलेटरों और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। आम लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। उच्च न्यायालय ने कोरोना को लेकर सुनवाइयों के दौरान स्वयं इस मुद्दे पर केंद्र और दिल्ली सरकार की आलोचना की है।

22 अप्रैल को अस्पतालों में बेडों की कमी के मुद्दे को लेकर जस्टिस विपिन सांघी ने कहा, ‘कोरोना के केसों में चार गुना वृद्धि हुई है। लोगों को बेड नहीं मिल रहे हैं। आम आदमी को छोड़ दीजिए। अगर उनकी जगह आज में होता तो मुझे भी आसानी से बेड नहीं मिलता।’

सोमवार को दिल्ली में कोरोना के 20,201 नए मामले सामने आए थे, जबकि इस दौरान 380 लोगों की मौत हो गई। राजधानी में कोरोना का पॉजिटिविटी रेट बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया है।

वहीं अशोका होटल में न्यायाधीशों व उनके परिवारों के लिए 100 कमरों की कोरोना स्वास्थ्य सुविधा को लेकर मजिस्ट्रेट गीता ग्रोवर ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर न्यायाधीशों, जजों और उनके परिवारों के लिए अशोका होटल को 100 कमरों का कोरोना स्वास्थ्य केंद्र बनाने का आदेश दे दिया गया है और हफ्तेभर के अंदर यह सुविधा शुरू हो जाएगी।

मालूम हो कि अशोका होटल भारत सरकार के उपक्रम पर्यटन विकास निगम लिमिटेड के आधीन संचालित है। इससे पहले शहर के 22 होटलों को कोरोना मरीजों के लिए बेड की सुविधा मुहैया कराने के लिए अस्पतालों से जोड़ा गया था। हालांकि इसके लिए शुल्क लिया जाएगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा रविवार को जारी किए गए आदेश के अनुसार होटल के स्टाफ को सुरक्षा के साधन मुहैया कराए जाएंगे और उन्हें एक ट्रेनिंग भी दी जाएगी। मरीज को खाना, साफ सफाई, कीटाणुशोधन जैसी सभी सुविधाएं होटल की तरफ से दी जाएंगी। इसके लिए मरीजों से संबंधित अस्पताल शुक्ल वसूलेगा और बाद में होटल को उसका खर्चा दिया जायेगा। वहीं, प्राइमस अस्पताल अपने खर्चे पर होटल में मरीजों की देखभाल के लिए डॉक्टरों और नर्सों की तैनाती करेगा। पिछले आदेश के अनुसार हॉस्पिटल मरीज से प्रति दिन 5 हजार रुपए से ज्यादा रुपए नहीं वसूल सकते। अधिकारियों ने कहा कि अशोका होटल पर भी यही सब आदेश लागू होंगे।

देश में सुप्रीम कोर्ट संकट के समय मूक दर्शक नहीं रह सकता,स्वत: संज्ञान मामले में जयदीप गुप्ता, मीनाक्षी अरोड़ा न्याय मित्र नामित attacknews.in

नयी दिल्ली, 27 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के बढ़ते संक्रमण के मद्देनजर स्वत: संज्ञान मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता और मीनाक्षी अरोड़ा को न्याय मित्र बनाया है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि कोरोना मामले में स्वत: संज्ञान लेने का उसका उद्देश्य उच्च न्यायालयों से काम अपने हाथ में लेना नहीं है।

शीर्ष अदालत देश में संकट के समय मूक दर्शक नहीं रह सकता।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के न्याय मित्र की जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद श्री गुप्ता और सुश्री अरोड़ा को यह जिम्मेदारी सौंपी है।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने श्री साल्वे को गत शुक्रवार को न्याय मित्र की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था और इस मामले को आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया था।

श्री साल्वे ने न्याय मित्र की जिम्मेदारी से मुक्त होने की इच्छा उस वक्त जतायी थी जब कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा उनकी आलोचना की गयी थी।

उन्होंने कहा था, “मैं नहीं चाहता कि यह मामला इस आरोप के साये में सुना जाये कि मुख्य न्यायाधीश (अब सेवानिवृत्त) के साथ दोस्ती होने के नाते ही मेरी नियुक्ति न्याय मित्र के तौर पर हुई है।

” इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के प्रकाशित बयानों को लेकर न्यायमूर्ति बोबडे ने भी नाराजगी जतायी थी।

इन अधिवक्ताओं ने श्री साल्वे को न्याय मित्र बनाये जाने की आलोचना की थी।

न्यायालय ने कोरोना महामारी के भीषण संक्रमण के मद्देनजर ऑक्सीजन और दवा की आपूर्ति, टीकाकरण नीति और लॉकडाउन लगाने के राज्य सरकारों के अधिकारों के मामले का स्वत: संज्ञान लिया है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आज स्पष्ट किया कि कोरोना मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही का उद्देश्य उच्च न्यायालयों के वजूद को कम करना या उच्च न्यायालयों से सुनवाई को अपने पास लेना नहीं है।

तमिलनाडु के वेदांता संयंत्र से ऑक्सीजन उत्पादन की ‘सुप्रीम’ अनुमति,इस आदेश का असर वेदांता के मूल मुकदमे पर नहीं पड़ेगा attacknews.in

नयी दिल्ली, 27 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के वेदांता ताम्र संयंत्र को ऑक्सीजन उत्पादन के लिए खोले जाने की मंगलवार को अनुमति दे दी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह आदेश उस वक्त दिया जब उसे अवगत कराया गया कि तमिलनाडु सरकार ने सर्वदलीय बैठक में संयंत्र को ऑक्सीजन उत्पादन के लिए चार महीने खोलने का निर्णय लिया है।

न्यायालय का यह आदेश कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर के कारण पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए आया है।

न्यायालय ने कहा, “ वेदांता केवल मेडिकल श्रेणी के ऑक्सीजन उत्पादन के लिए अपना संयंत्र खोल सकता है, लेकिन इस आदेश का असर वेदांता के मूल मुकदमे पर नहीं पड़ेगा।”

खंडपीठ ने वेदांता में उत्पादन संबंधी गतिविधियों की निगरानी को लेकर एक समिति भी गठित की है, जिसमें तूतीकोरिन के जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, जिला पर्यावरण अभियंता, सब-कलेक्टर तथा संबंधित मामलों की जानकारी रखने वाले दो सरकारी अधिकारी शामिल होंगे।समिति यह निर्णय करेगी कि संयंत्र में कितने आदमी प्रवेश करेंगे।

पिछली सुनवाई को न्यायालय ने कहा था कि जब ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोग मर रहे हैं, तो तमिलनाडु सरकार बंद पड़ी वेदांता के स्टरलाइट तांबा संयंत्र इकाई से ऑक्सीजन का उत्पादन क्यों नहीं करती।

न्यायालय ने कहा था कि उसकी दिलचस्पी वेदांता या किसी कंपनी के चलाने में नहीं है, बल्कि संकट के समय में ऑक्सीजन उत्पादन से है।

तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए कहा था कि जिला कलेक्टर ने स्थानीय लोगों से इस मसले पर बात की है।

इस प्लांट को लेकर लोगों में अविश्वास का माहौल है।

श्री वैद्यनाथन ने कहा था कि वह ऑक्सीजन उत्पादन के लिए संयंत्र को खोलने या न खोलने के बारे में राज्य सरकार से मशविरा करके सोमवार तक अदालत को अवगत करायेंगे।

तूतीकोरिन के प्रभावित परिवारों के संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विज ने कहा था कि यदि तमिलनाडु सरकार इस संयंत्र को अपने हाथ में लेकर ऑक्सीजन का उत्पादन करती है तो लोगों के ह केहितों ह ।। ई दिक्कत नहीं है।
गौरतलब है कि संयंत्र के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन के बाद 21 और 22 मई 2018 को पुलिस गोलीबारी में 13 लोगों की मौत के बाद इसे बंद कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर तथा न्यायमूर्ति एस रविन्द्र भट की पीठ ने कहा कि इस आदेश की आड़ में वेदांता को तांबा गलाने वाले संयंत्र में प्रवेश और उसके संचालन की अनुमति नहीं दी गई है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वेदांता द्वारा ऑक्सीजन उत्पादन को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिये क्योंकि इस समय राष्ट्र संकट का सामना कर रहा है।

न्यायालय ने कहा कि वेदांता को ऑक्सीजन संयंत्र के संचालन की अनुमति देने का आदेश किसी भी तरह से कंपनी के हित में किसी प्रकार का सृजन नहीं माना जाएगा।

न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को ऑक्सीजन संयंत्र में गतिविधियों पर नजर रखने के लिये जिला कलेक्टर और तूतीकोरिन के पुलिस अधीक्षक, जिला पर्यावरण इंजीनियर, तूतीकोरिन उप कलेक्टर और दो सरकारी अधिकारियों को शामिल कर एक समिति गठित करने का निर्देश दिया।

पीठ ने वेदांता को ऑक्सीजन संयंत्र के संचालन के लिये जरूरी तकनीकी और गैर-तकनीकी कर्मियों की सूची समिति को सौंपने का भी निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वेदांता को 31 जुलाई 2021 तक ऑक्सीजन संयंत्र के संचालन की अनुमति दी गई है, जिसके बाद कोविड-19 महामारी से उपजे जमीनी हालात की समीक्षा की जाएगी।

संयंत्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चिंताओं को लेकर अदालत ने कहा, ‘फिलहाल हम राष्ट्रीय संकट से गुजर रहे हैं और एक अदालत के रूप में हमें राष्ट्र को सहयोग देना है। यह राष्ट्रीय आपदा है।’

न्यायालय ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तमिलनाडु के पर्यावरण विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति गठित करने का भी निर्देश दिया है।

पीठ ने कहा, ‘वेदांता संकट से पीड़ित भी अपने दो सदस्यों का चुनाव कर समिति को सकते हैं। यदि पीड़ित 48 घंटे में चुनाव नहीं कर पाते हैं तो राज्य इन सदस्यों को चयन कर सकता है। ‘

सुनवाई की शुरुआत में तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने पीठ को बताया कि सरकार ने सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक की और उन्होंने राज्य में कोविड -19 के व्यापक प्रकोप के मद्देनजर वेदांता के बंद पड़े स्टरलाइट कॉपर प्लांट में मेडिकल ऑक्सीजन उत्पादन फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि ऑक्सीजन आपूर्ति के संदर्भ में राज्य सरकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और अन्य राज्यों को बची हुई ऑक्सीजन दी जा सकती है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उनकी इस दलील का विरोध किया और कहा कि ऑक्सीजन के आवंटन की शक्ति केंद्र के पास है।

मेहता ने कहा, “मैं राज्य और वेदांता के बीच विवाद को लेकर चिंतित नहीं हूं। एक सुविधा उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल किया जाना है। ऑक्सीजन का उत्पादन स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिए होना चाहिए और इसे केंद्र के जरिये हर राज्य को आवंटित किया जाना चाहिए।’

उन्होंने कहा, “अगर किसी राज्य में अधिक मामले आते हैं, तो हमें उस विशेष राज्य में थोड़ी अधिक ऑक्सीजन भेजनी पड़ सकती है। ऑक्सीजन के राज्यवार आवंटन का जिम्मा केंद्र को दिया जाए।’
पीड़ित परिवारों के संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि उन्हें ऑक्सीजन के उत्पादन पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मुकदमेबाजी के इतिहास से पता चलता है कि वेदांता ने संयंत्र को फिर से शुरू करने और लोगों को उसमें प्रवेश देने की कई बार कोशिश की है।

शीर्ष अदालत ने 23 अप्रैल को कहा था कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोग मर रहे हैं। उसने तमिलनाडु सरकार से पूछा था कि वह ऑक्सीजन उत्पादन के लिये तूतीकोरिन में वेदांता के स्टरलाइट तांबा इकाई को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं ले लेती, जो प्रदूषण चिंताओं को लेकर मई 2018 से बंद है।

वेदांता ने टीएनपीसीबी के 23 मई, 2018 के आदेश के बाद बंद किये गए स्टरलाइट संयंत्र को फिर से खोलने की अपील करते हुए फरवरी 2019 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जहां उसे निराशा हाथ लगी थी। प्लांट के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों के बाद 21 और 22 मई को पुलिस की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई थी

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी के मद्देनज़र अदालतों और न्यायाधिकरणों में मामलों की अपील की सीमा अवधि 14 मार्च के बाद अगले आदेश तक बढ़ाई attacknews.in

नयी दिल्ली, 27 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के मद्देनज़र अदालतों और न्यायाधिकरणों में मामलों की अपील की सीमा अवधि 14 मार्च के बाद अगले आदेश तक बढ़ा दी है।

मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर की वजह से स्थिति खतरनाक हो चुकी है। इसलिए अपील के लिए 14 मार्च 2021 तक समाप्त हो चुकी समय सीमा को अगले आदेश तक बढ़ाया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत में 60 बेड का अस्थाई कोविड केयर सेंटर जल्द शुरू करने की मंजूरी चीफ जस्टिस एनवी रमन ने दी attacknews.in

नयी दिल्ली, 26 अप्रैल ।कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के भीषण प्रकोप को देखते हुए उच्चतम न्यायालय में न केवल अस्थाई कोविड केयर सेंटर खोलने बल्कि गर्मी की छुट्टी को समय से पहले शुरू करने का भी निर्णय लिया गया है।

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के उस प्रस्ताव को मंजूर करने का सोमवार को निर्णय लिया जिसमें न्यायालय की नई इमारत में वकीलों के खाली पड़े चैंबर ब्लाक को अस्थाई तौर पर कोविड केयर सेंटर में तब्दील करने की मंजूरी मांगी गई थी।

मद्रास हाईकोर्ट ने विधानसभा चुनाव की मतगणना सुरक्षित कराने की सुनवाई में निर्वाचन आयोग की तीखी आलोचना करके देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिये ‘अकेले’ जिम्मेदार ठहराया,आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में भी मामला दर्ज किया जा सकता है attacknews.in

चेन्नई, 26 अप्रैल । मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार को निर्वाचन आयोग की तीखी आलोचना करते हुए उसे देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिये ‘अकेले’ जिम्मेदार करार दिया और ‘सबसे गैर जिम्मेदार संस्था’ बताया।

अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में भी मामला दर्ज किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को रैलियां और सभाएं करने की अनुमति देकर महामारी को फैलने के मौका दिया।

मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी तथा न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने छह अप्रैल को हुए विधानसभा चुनाव में करूर से अन्नाद्रमुक उम्मीदवार तथा राज्य के परिवहन मंत्री एम आर विजयभास्कर की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस याचिका में अधिकारियों को कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए दो मई को करूर में निष्पक्ष मतगणना सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि करूर निर्वाचन क्षेत्र में हुए चुनाव में 77 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई है, ऐसे में उनके एजेंट को मतगणना कक्ष में जगह देना काफी मुश्किल होगा। इससे नियमों के पालन पर असर पड़ सकता है।

निर्वाचन आयोग के वकील ने जब न्यायाधीशों को बताया कि सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं तो पीठ ने कहा कि उसने राजनीतिक दलों को रैलियां और सभाएं करने की अनुमति देकर उसने (आयोग ने) कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रकोप का रास्ता साफ कर दिया था।

निर्वाचन आयोग के वकील की इस टिप्पणी पर नाराजगी जतायी कि मतदान केन्द्रों पर सभी तरह के ऐहतियाती कदम उठाए जाएंगे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि देश में महामारी की दूसरी लहर फैलने के लिये निर्वाचन आयोग ‘अकेले’ जिम्मेदार है।

न्यायाधीशों ने मौखिक रूप से चेतावनी दी कि वे दो मई को मतगणना रोकने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।

तमिलनाडु में रविवार को कोरोना वायरस संक्रमण के 15 हजार नए मामले सामने आने के बाद उपचाराधीन रोगियों की कुल संख्या बढ़कर एक लाख से अधिक हो गई।

तीन राज्यों तमिलनाडु, केरल, असम तथा केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए हैं जबकि पश्चिम बंगाल में दो चरणों का मतदान बाकी है। इन राज्यों के चुनावों की मतगणना दो मई को होगी।

हाईकोर्ट का आदेश:व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन पर ग्रुप के किसी सदस्य द्वारा ग्रुप में आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती attacknews.in

मुंबई, 26 अप्रैल। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने कहा है कि व्हाट्सऐप समूह के संचालक पर समूह के दूसरे सदस्य द्वारा किए गए आपत्तिजनक पोस्ट के लिए आपराधिक कार्यवाही नहीं हो सकती। इसके साथ ही अदालत ने 33 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ दर्ज यौन उत्पीड़न के मामले को खारिज कर दिया।

आदेश पिछले महीने जारी हुआ था और इसकी प्रति 22 अपैल को उपलब्ध हुई।

न्यायमूर्ति जेड ए हक और न्यायमूर्ति ए बी बोरकर की पीठ ने कहा कि व्हाट्सऐप के एडमिनिस्ट्रेटर के पास केवल समूह के सदस्यों को जोड़ने या हटाने का अधिकार होता है और समूह में डाले गए किसी पोस्ट या विषयवस्तु को नियंत्रित करने या रोकने की क्षमता नहीं होती है।

अदालत ने व्हाट्सऐप के एक समूह के संचालक याचिकाकर्ता किशोर तरोने (33) द्वारा दाखिल याचिका पर यह आदेश सुनाया।

तरोने ने गोंदिया जिले में अपने खिलाफ 2016 में भारतीय दंड संहिता की धारा 354-ए (1) (4) (अश्लील टिप्पणी), 509 (महिला की गरिमा भंग करना) और 107 (उकसाने) और सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में आपत्तिजनक सामग्री का प्रकाशन) के तहत दर्ज मामलों को खारिज करने का अनुरोध किया था।

अभियोजन के मुताबिक तरोने अपने व्हाट्सऐप समूह के उस सदस्य के खिलाफ कदम उठाने में नाकाम रहे जिसने समूह में एक महिला सदस्य के खिलाफ अश्लील और अमर्यादित टिप्पणी की थी।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मामले का सार यह है कि क्या किसी व्हाट्सऐप समूह के संचालक पर समूह के किसी सदस्य द्वारा किए गए आपत्तिजनक पोस्ट के लिए आपराधिक कार्यवाही चलाई जा सकती है।

उच्च न्यायालय ने तरोने के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और इसके बाद दाखिल आरोपपत्र को खारिज कर दिया।

भारत के 48वें चीफ जस्टिस की शपथ लेने वाले न्यायमूर्ति एन वेंकट रमण 26 अगस्त, 2022 तक सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे attacknews.in

नयी दिल्ली, 24 अप्रैल । न्यायमूर्ति एन वेंकट रमण ने देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शनिवार को शपथ ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद की शपथ दिलाई।

न्यायमूर्ति रमण ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में शपथ ग्रहण की।

समारोह में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद उपस्थित थे।

न्यायमूर्ति रमण ने ईश्वर को साक्षी मानकर अंग्रेजी में पद की शपथ ली।

शपथ ग्रहण के बाद, राष्ट्रपति कोविंद ने न्यायमूर्ति रमण को बधाई दी और सफल कार्यकाल की शुभकामनाएं दीं।

न्यायमूर्ति रमण को छह अप्रैल को देश का प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किया गया था।

आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पूनावरम गांव में 27 अगस्त, 1957 को जन्मे, न्यायमूर्ति रमण 10 फरवरी,1983 को अधिवक्ता के तौर पर पंजीकृत हुए थे।

उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया और वह 10 मार्च, 2013 से 20 मई, 2013 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर कार्यरत रहे।

उन्हें दो सितंबर, 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया और 17 फरवरी, 2014 को उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

उनका कार्यकाल 26 अगस्त, 2022 को समाप्त होगा।

न्यायमूर्ति रमण ने न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की जगह ली है जिन्होंने शुक्रवार को सीजेआई के पद से अवकाश प्राप्त किया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा: ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित करने वाले को “हम लटका देंगे” attacknews.in

नयी दिल्ली, 24 अप्रैल । दिल्ली उच्च न्यायालय ने शनिवार को कहा कि अगर केंद्र, राज्य या स्थानीय प्रशासन का कोई अधिकारी ऑक्सीजन की आपूर्ति में अड़चन पैदा कर रहा है तो ‘हम उस व्यक्ति को लटका देंगे।”

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ की ओर से उक्त टिप्पणी महाराजा अग्रसेन अस्पताल की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आई है। अस्पताल ने गंभीर रूप से बीमार कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी को लेकर उच्च न्यायालय का रुख किया है।

अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह बताए कि कौन ऑक्सीजन की आपूर्ति को बाधित कर रहा है। पीठ ने कहा, “ हम उस व्यक्ति को लटका देंगे। हम किसी को भी नहीं बख्शेंगे।”

अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह स्थानीय प्रशासन के ऐसे अधिकारियों के बारे में केंद्र को भी बताए ताकि वह उनके खिलाफ कार्रवाई कर सके।

उच्च न्यायालय ने केंद्र से भी सवाल किया कि दिल्ली के लिए आवंटित प्रतिदिन 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उसे कब मिलेगी?

अदालत ने कहा, “ आपने (केंद्र ने) हमें (21 अप्रैल को) आश्वस्त किया था कि दिल्ली में प्रतिदिन 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन पहुंचेगी। हमें बताएं कि यह कब आएगी?”

दिल्ली सरकार ने अदालत को सूचित किया कि उसे पिछले कुछ दिनों से रोजाना सिर्फ 380 मीट्रिक टन ऑक्सीजन ही मिल रही है और शुक्रवार को उसे करीब 300 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिली थी। इसके बाद अदालत ने केंद्र से सवाल किया।

अपना सर्वश्रेष्ठ काम करके देश के 47वें चीफ जस्टिस पद से सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे attacknews.in

नयी दिल्ली, 23 अप्रैल । भारत के निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने शुक्रवार को कहा कि वह प्रसन्नता, सद्भाव और बहुत अच्छी यादों के साथ उच्चतम न्यायालय से विदा ले रहे हैं और इस बात का संतोष है कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया है।

न्यायमूर्ति बोबडे को नवंबर 2019 में देश के 47वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई थी और वह आज सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

उन्होंने अपने कार्यकाल में अयोध्या जन्मभूमि के ऐतिहासिक फैसले समेत कई महत्वपूर्ण निर्णय किए।

न्यायमूर्ति बोबडे ने कोरोना वायरस महामारी के अभूतपूर्व संकट के समय भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व किया और वीडियो कॉन्फ्रेंस से शीर्ष अदालत का कामकाज कराया।

शीर्ष अदालत में अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा, ‘‘आखिरी दिन मिली-जुली अनुभूति होती है, जिसे बयां करना मुश्किल है। मैं इस तरह के समारोहों में पहले भी शामिल हुआ हूं लेकिन कभी ऐसी मिली-जुली अनुभूति नहीं हुई इसीलिए तब मैं अपनी बातें स्पष्ट तौर पर कह सका।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं प्रसन्नता, सद्भाव के साथ और शानदार दलीलों, उत्कृष्ट प्रस्तुति, सद्व्यवहार तथा न केवल बार बल्कि सभी संबंधित पक्षों की ओर से न्याय की प्रतिबद्धता की बहुत अच्छी यादें इस अदालत से जा रहा हूं।’’

न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि वह 21 साल तक न्यायाधीश के रूप में सेवाएं देने के बाद पद छोड़ रहे हैं और शीर्ष अदालत में उनका सबसे समृद्ध अनुभव रहा है तथा साथी न्यायाधीशों के साथ सौहार्द भी बहुत अच्छा रहा है।

उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में डिजिटल तरीके से काम करना रजिस्ट्री के बिना संभव नहीं होता। उन्होंने कहा कि डिजिटल सुनवाई के बारे में कई ऐसी असंतोषजनक बातें हैं जिन्हें दूर किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, ‘‘इस तरह की सुनवाई में फायदा यह हुआ कि इस दौरान मुझे वकीलों के पीछे पर्वत श्रृंखलायें और कलाकृतियां दिखाई दीं। कुछ वकीलों के पीछे बंदूक और पिस्तौल जैसी पेंटिंग भी दिखाई दीं। हालांकि एसजी मेहता के पीछे की पेंटिंग अब हटा ली गई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस संतोष के साथ यह पद छोड़ रहा हूं कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया। मैं अब कमान न्यायमूर्ति एन वी रमण के हाथों में सौंप रहा हूं, जो मुझे विश्वास है कि बहुत सक्षम तरीके से अदालत का नेतृत्व करेंगे।’’

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि किसी प्रधान न्यायाधीश का कार्यकाल कम से कम तीन वर्ष का होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘मार्च 2020 में दुनिया कोविड-19 से जूझ रही थी। उच्चतम न्यायालय को भी फैसला लेना था, बार ने सोचा कि अदालत बंद हो जाएगी।’’

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘लेकिन प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने पहल की और डिजिटल सुनवाई शुरू की तथा लगभग 50,000 मामलों का निस्तारण किया गया। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।’’

सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायमूर्ति बोबडे को न केवल ज्ञानी और बुद्धिमान न्यायाधीश के तौर पर जाना जाएगा बल्कि गजब के हास्यबोध के साथ स्नेह करने और ध्यान रखने वाले इंसान के तौर पर भी जाना जाएगा।

उच्चतम न्यायालय बार संघ के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह (65 साल) सेवानिवृत्ति की आयु नहीं है और न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन लाया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र के नागपुर में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी किया। वह 1978 में महाराष्ट्र की बार काउंसिल में अधिवक्ता के तौर पर पंजीकृत हुए।

वह 29 मार्च 2000 को बंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 16 अक्टूबर 2012 को उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली। वह 12 अप्रैल 2013 उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश पद पर पदोन्नत हुए।