इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव ड्यूटी में मृत कर्मियों के परिजनों को मुआवजा राशि पर फिर से विचार करने का निर्देश सरकार को दिया attacknews.in

प्रयागराज, 12 मई । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पंचायत चुनाव में जान गंवाने वाले मतदान अधिकारियों के परिवार की मुआवजा राशि पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान वकीलों ने कहा कि सरकार को चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमण के खतरे की जानकारी थी। किसी ने स्वेच्छा से चुनाव ड्यूटी नहीं की बल्कि शिक्षकों, अनुदेशकों और शिक्षामित्रों से जबरदस्ती चुनाव ड्यूटी कराई गई इसलिए सरकार को कोराना से मरने वाले मतदान अधिकारियों को एक करोड़ रुपये मुआवजा देना चाहिए।

कोर्ट ने सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को मुआवजे की राशि पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने पिछले निर्देशों के पालन में अपर सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत हलफनामे को असंतोषजनक करार देते हुए कहा कि कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अस्पतालों द्वारा मेडिकल बुलेटिन जारी करने, ऑक्सीजन व जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता से संबं‌धित जान‌कारियां हलफनामे में नहीं दी गई हैं।

कोर्ट ने कोविड मरीजों को अस्पतालों में उपलब्ध कराए जा रहे पौष्टिक आहार और कोर्ट ने कोरोना से हुई मौतों का तारीखवार ब्योरा उपलब्ध न कराने पर भी नाराजगी जताई है।

अदालत ने कहा कि सरकार के हलफनामें में जो आंकड़े दिए गए हैं, वे आश्चर्यजनक रूप से यह बताते हैं कि परीक्षण की संख्या धीरे-धीरे कम हो गई है। 22 अस्पतालों में ऑक्सीजन उत्पादन के बारे में भी जानकारी नहीं दी गई। राज्य में जिलों की संख्या को देखते हुए एम्बुलेंस भी बहुत कम हैं। लेवल -1, लेवल -2 और लेवल -3 श्रेणी के अस्पतालों को दिए जाने वाले भोजन के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है। केवल यह बताया गया है कि लेवल -1 अस्पताल में प्रति रोगी 100 रुपये का आवंटन किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि कोविड रोगी को अत्यधिक पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है, जिसमें फल व दूध शामिल करना चाहिए और न्यायालय यह समझ नहीं पा रहा है कि कैसे प्रति व्यक्ति बजट में 100 रुपये के साथ सरकार लेवल -1 श्रेणी में तीन बार भोजन का प्रबंध कर रही है वह भी 2100 आवश्यक कैलोरी के साथ।

मेरठ में ऑक्सीजन की कमी से 20 मौतों के मामले में डीएम मेरठ की जांच रिपोर्ट पर कोर्ट ने असंतोष जताया है। मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल की सफाई पर भी असंतोष जताया। प्राचार्य का कहना था कि जो मौतें हुई हैं, वे संदिग्ध कोरोना मरीजों की हैं क्योंकि उनकी एनटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि संदिग्ध मरीजों की मौत के बाद उनका शव परिजनों को सौंपना उचित कदम नहीं है। यदि किसी भी मरीज की मौत टेस्ट रिपोर्ट आने से पहले हो जाती है और उसे इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण हैं तो संदिग्ध कोरोना मौत मानकर ही प्रोटोकॉल के तहत उसका अंति‌म संस्कार किया जाए।

गृह सचिव ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि पांच मई से ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू किए गए सर्वे के तहत दो लाख 92 हजार से ‌अधिक घरों का सर्वे किया गया है। 4,24,631 लोगों में कोरोना जैसे लक्षण पाए गए हैं। उन्हें दवा की ‌किट मुहैया कराई गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज की attacknews.in

नयी दिल्ली, 12 मई । उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका बुधवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की एक पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ नवलखा कि याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने मामले में नवलखा को जमानत देने से इनकार कर दिया था।

न्यायमूर्मि जोसेफ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत नवलखा कि याचिका खारिज कर रही है।

शीर्ष अदालत ने नवलखा की जमानत याचिका पर 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था।

उच्चतम न्यायालय ने तीन मार्च को नवलखा की उस जमानत याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा था, जिसमें दावा किया गया था कि मामले में आरोपपत्र तय समयसीमा में दायर नहीं किया गया और इसलिए वह जमानत के हकदार हैं।

नवलखा के खिलाफ जनवरी 2020 को दोबारा प्राथमिकी दर्ज की गई थी और पिछले साल 14 अप्रैल को ही उन्होंने एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। वह 25 अप्रैल तक 11 दिन के लिए एनआईए की हिरासत में रहे और उसके बाद से ही नवी मुंबई के तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में हैं।

पुलिस के अनुसार, कुछ कार्यकर्ताओं ने 31 दिसम्बर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में कथित रूप से उत्तेजक और भड़काऊ भाषण दिया था, जिससे अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़की थी।

यह भी आरोप है कि इस कार्यक्रम को कुछ मओवादी संगठनों का समर्थन प्राप्त था।

उच्च न्यायालय ने आठ फरवरी को यह कहते हुए नवलखा की याचिका खारिज कर दी थी कि ‘‘ उसे विशेष अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नजर नहीं आता, जो पहले ही जमानत याचिका खारिज कर चुका है।’’

नवलखा ने उनकी जमानत याचिका खारिज करने के 12 जुलाई, 2020 के एनआईए अदालत के आदेश को पिछले साल उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने पिछले साल 16 दिसम्बर को नवलखा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें इस आधार पर वैधानिक जमानत मांगी गयी थी कि वह 90 दिनों से ज्यादा समय से हिरासत में हैं लेकिन अभियोजन पक्ष इस दौरान आरोपपत्र दाखिल नहीं कर पाया।

एनआईए ने दलील दी थी कि यह याचिका विचार योग्य नहीं है तथा उसने आरोपपत्र दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की थी।

इसके बाद, विशेष अदालत ने नवलखा तथा उनके सह आरोपी डॉ. आनंद तेलतुम्बडे के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल करने के लिए समयावधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने का एनआईए का अनुरोध स्वीकार कर लिया था।

दिल्ली हाईकोर्ट को केंद्र सरकार ने बताया;लॉकडाउन में मध्य दिल्ली राजपथ और इसके आस पास हो रहा निर्माण सेंट्रल विस्टा के लिए नहीं बल्कि जन सुविधाओं के वास्ते हो रहा है attacknews.in

नयी दिल्ली, 11 मई । केंद्र सरकार ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान मध्य दिल्ली राजपथ और इसके आस पास हो रहा निर्माण सेंट्रल विस्टा के लिए नहीं बल्कि शौचालय ब्लॉक, पार्किंग स्थल तथा राहगीरों के अंडरपास जैसी जन सुविधाओं के वास्ते हो रहा है।

न्यायालय कोविड-19 महामारी के बढ़ते मामलों के बीच सेंट्रल विस्टा के सभी निर्माण कार्याें पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा है।

केंद्र के हलफनामे में कहा गया है,“ परियोजना के लिए कार्य का दायरा वह नहीं है जिसे बोलचाल की भाषा में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट कहा जाता है।”

याचिकाकर्ता अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के परिपत्र का उल्लंघन किया गया है क्योंकि केवल आपातकाल या आवश्यक सेवाओं को लॉकडाउन के दौरान अनुमति दी जाती है।

इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी निर्माण गतिविधियों को बंद करना होगा सिवाय उन सभी को छोड़कर जहां मजदूर कार्यस्थल पर रहते हैं।

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि करोल बाग, कीर्ति नगर और सराय काले खां से बस के जरिए विस्टा परियोजनाओं के मजदूरों को लाया और वापस भेजा जाता है।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने मामले को बुधवार के लिए स्थगित कर दिया क्योंकि केंद्र सरकार का जवाब रिकॉर्ड नहीं हो सका था।

अदालत ने इससे पहले कोई आदेश पारित किए सुनवाई के लिए 17 मई की तारीख मुकर्रर की थी। इसके बाद याचिकाकर्ताआें ने उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई थी।

शीर्ष अदालत ने हालांकि हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष इस मामले की जल्द सुनवाई के लिए आग्रह करने का छूट दी थी।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत एक नया संसद भवन, एक नया आवासीय परिसर, जिसमें प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के निवास शामिल होंगे, कई कार्यालयों के सरकारी भवन और मंत्रालय के कार्यालयों को समायोजित करने के लिए एक केंद्रीय सचिवालय, राजपथ क्षेत्र और उसके आसपास के इलाकों में पुनर्निर्माण किया जाएगा।

शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने पांच जनवरी को परियोजना को हरी झंडी दी थी। इसके साथ ही भूमि के उपयोग और पर्यावरण नियमों के कथित उल्लंघन का हवाला देते हुए परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कहा टीकाकरण की रणनीति न्यायसंगत है, ‘‘अत्यधिक’’ हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं attacknews.in

नयी दिल्ली, 10 मई । केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए ‘‘न्यायसंगत और भेदभाव रहित’’ टीकाकरण रणनीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के ‘‘अत्यधिक’’न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से उठाए गए कुछ बिंदुओं का जवाब देते हुए एक शपथपत्र दायर किया । इस शपथ पत्र में केन्द्र ने कहा कि वैश्विक महामारी के अचानक तेजी से फैलने और टीकों की खुराकों की सीमित उपलब्धता के कारण पूरे देश का एक बार में टीकाकरण संभव नहीं है।

न्यायालय ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान आवश्यक सामग्रियों एवं सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के संबंध में स्वत: संज्ञान लिया था और इसी मामले में केंद्र ने यह शपथ पत्र दाखिल किया है।

केंद्र सरकार ने कहा कि टीकाकरण नीति अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के जनादेश के अनुरूप है और इसे विशेषज्ञों के साथ कई दौर की वार्ता और विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है।

उसने कहा कि राज्य सरकारों एवं टीका विनिर्माताओं के काम में शीर्ष अदालत को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

केंद्र ने 200 पृष्ठ के शपथपत्र में कहा, ‘‘विशेषज्ञों की सलाह या प्रशासनिक अनुभव के अभाव में अत्यधिक न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं, भले ही यह हस्तक्षेप नेकनीयत से किया गया हो। इसके कारण चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों एवं कार्यपालिका के पास इस मामले पर नवोन्मेषी समाधान खोजने के लिए खास गुंजाइश नहीं बचेगी।’’

उसने कहा, ‘‘कार्यकारी नीति के रूप में जिन अप्रत्याशित एवं विशेष परिस्थितियों में टीकाकरण मुहिम शुरू की गई है, उसे देखते हुए कार्यपालिका पर भरोसा किया जाना चाहिए।’’

केंद्र ने कहा कि टीकों की कीमत संबंधी कारक का अंतिम लाभार्थी यानी टीकाकरण के लिए पात्र व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने पहले ही अपनी नीति संबंधी घोषणा कर दी है कि हर राज्य अपने निवासियों का नि:शुल्क टीकाकरण करेगा।

उसने कहा कि न्यायालय ने अपने कई फैसलों में कार्यकारी नीतियों की न्यायिक समीक्षा के लिए मापदंड बनाए हैं और इन नीतियों के मनमाना प्रतीत होने पर ही इन्हें खारिज किया जा सकता है या हस्तक्षेप किया जा सकता है। इसी कारण कार्यपालिका को संवैधानिक जनादेश के अनुसार काम करने के लिए पर्याप्त आजादी मिलती है।

टीकों एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पेटेंट कानून के तहत अनिवार्य लाइसेंस प्रावधान को लागू करने के मामले पर सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुख्य बाधा कच्चे माल एवं आवश्यक सामग्री की उपलब्धता से जुड़ी है और इसलिए कोई भी और अनुमति या लाइसेंस को लागू करने से तत्काल उत्पादन संभवत: नहीं बढ़ेगा।

शपथपत्र में कहा गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय उत्पादन और आयात बढ़ाकर रेमडेसिविर की उपलब्धता बढ़ाने के हर प्रयास कर रहा है।

उसने कहा, ‘‘हालांकि, कच्चे माल और अन्य आवश्यक सामग्रियों की उपलब्धता में मौजूदा बाधाओं के मद्देनजर केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाने से आपूर्ति बढ़ाने संबंधी इच्छित परिणाम नहीं मिल सकते।’’

केंद्र ने कहा, ‘‘पेटेंट कानून 1970 , ट्रिप्स समझौते और दोहा घोषणा के साथ पढ़ा जाए, के तहत या फिर किसी अन्य तरीके से कानूनी शक्तियां इस्तेमाल करने से इस चरण पर केवल नुकसान होगा। केंद्र सरकार भारत के सर्वश्रेष्ठ हित में समाधान खोजने के लिए राजनयिक स्तर पर वैश्विक संगठनों से संवाद कर रही है।’’

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय कार्यबल गठित करने का ‘सुप्रीम’ आदेश दिया;टास्क फोर्स में शामिल नाम भी घोषित किए attacknews.in

नयी दिल्ली, 08 मई । उच्चतम न्याायालय ने कोरोना महामारी के प्रबंधन के लिए शोध करने के वास्ते एक राष्ट्रीय कार्य बल (टास्क फोर्स) गठित करने का केंद्र सरकार को आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने इस बाबत एक आदेश जारी किया है, जिसे शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।

इस कार्यबल में पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसेज के पूर्व कुलपति डा. भाबातोष बिस्वास, दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के बोर्ड आफ मैनेजमेंट के चेयरपर्सन डा. देवेंद्र सिंह राणा, नारायणा हेल्थकेयर, बेंगलुरू के कार्यकारी निदेशक डॉ. देवी प्रसाद शेट्‌टी, तमिलनाडु के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग एवं कॉलेज के निदेशक डॉ. जे वी पीटर, गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल के प्रबंध निदेशक डॉ. नरेश त्रेहन, महाराष्ट्र के फोर्टिज अस्पताल के निदेशक डॉ. राहुल पंडित, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली से डा. सुमित्रा रावत, इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बाइलरी साइंसेज, दिल्ली के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. शिव कुमार सरीन, महाराष्ट्र के हिंदुजा अस्पताल और ब्रीच कैंडी अस्पताल, डॉ. जरीफ एफ उडवाडिया, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव शामिल होंगे।

खंडपीठ ने कहा कि कार्य बल महामारी से निपटने के तरीकों का सुझाव एवं इनपुट देगा। राष्ट्रीय कार्यबल महामारी प्रबंधन को लेकर शोध करेगा और आवश्यक दवाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा।

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि हर राज्य में ऑक्सीजन की खपत का ऑडिट करने के लिए उपसमिति बनाने का निर्देश भी दिया है। इसके लिए कार्यबल सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में ऑक्सीजन आवंटन के लिए एक कार्यप्रणाली तैयार करेगा।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय कार्य बल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऑक्सीजन आवंटन के लिए एक कार्यप्रणाली तैयार करेगा। कार्यबल द्वारा यह देखा जाएगा कि किस राज्य को वैज्ञानिक, तर्कसंगत और न्यायसंगत आधार पर कितनी ऑक्सीजन की जरूरत है और उसी क्रम के अनुसार ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को अगले आदेश तक दिल्ली को रोजाना 700 मी टन ऑक्सीजन की आपूर्ति पर अमल करने का निर्देश देते हुए कहा कि,इसके अनुपालन में कोताही उसे “सख्ती” करने पर मजबूर करेगी attacknews.in

नयी दिल्ली, सात मई । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र को स्पष्ट कर दिया कि उसे शीर्ष अदालत के अगले आदेश तक रोजाना दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति जारी रखनी होगी । साथ ही न्यायालय ने कहा कि इसपर अमल होना ही चाहिए तथा इसके अनुपालन में कोताही उसे “सख्ती” करने पर मजबूर करेगी।

दो दिन पहले, शीर्ष अदालत ने दिल्ली को कोविड के मरीजों के लिए 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति के निर्देश का अनुपालन नहीं करने पर केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा शुरू की गई अवमानना की कार्यवाही पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि ‘‘अधिकारियों को जेल में डालने से” ऑक्सीजन नहीं आएगी और प्रयास जिंदगियों को बचाने के लिए किए जाने चाहिए।

हालांकि, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि केंद्र को राष्ट्रीय राजधानी को हर दिन 700 मीट्रिक टन तरल चिकित्सीय ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई कार्यवाही में दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने शुक्रवार को पीठ को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी को “आज सुबह नौ बजे तक 86 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिली और 16 मीट्रिक टन मार्ग में है।”

पीठ ने कहा, “हम चाहते हैं कि दिल्ली को हर दिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाए और यह होना ही चाहिए, हमें उस स्थिति में आने पर मजबूर न करें जहां हमें सख्त होना पड़े।”

साथ ही कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक दिन के लिए आपूर्ति की गई और फिर “टैंकर नहीं हैं” और परिवहन में दिक्कतें हैं जैसे कई विरोध-पत्र दायर किए जा रहे हैं।

पीठ के लिए न्यायमू्र्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने शुक्रवार को सुनवाई से पहले मुद्दे पर न्यायमूर्ति शाह से विचार-विमर्श किया है और दिल्ली को हर दिन 700 मीट्रिक टन एलएमओ दिए जाने को लेकर सर्वसम्मति बनी है।

पीठ ने कहा, “हम चाहते हैं कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन एलएमओ दी जाए और हमारा मतलब है कि यह निश्चित तौर पर होना चाहिए। इसकी आपूर्ति करनी ही होगी और हम दंडात्मक कार्रवाई नहीं करना चाहते। हमारे आदेश को अपलोड होने में दोपहर तीन बजेंगे लेकिन आप काम पर लगें और ऑक्सीज का प्रबंध करें।’’

इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह पूरे भारत में वैश्विक महामारी की स्थिति है और हमें राष्ट्रीय राजधानी को ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने के तरीके तलाश करने होंगे।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कोरोना संबंधी मामलों में ऑक्सीजन की कमी व रेमडेसीवर इंजेक्शन को लेकर पूर्व में जारी आदेश का अक्षश: पालन करने के आदेश सरकार को दिये attacknews.in

जबलपुर, 06 मई । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कोरोना संबंधी मामलों में ऑक्सीजन की कमी व रेमडेसीवर इंजेक्शन को लेकर पूर्व में जारी आदेश का अक्षश: पालन करने के आदेश सरकार को दिये है।

मुख्य न्यायाधीश मो. रफीक व जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने सरकार की ओर से पेश की गई एक्शन टेकन रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद उस पर असंतुष्टि जाहिर करते हुए ऑक्सीजन व रेमडेसीवर इंजेक्शन के लिये अलग-अलग पॉलिसी अपनाये जाने को भी आड़े हाथों लिया।

युगलपीठ ने कहा इसके लिये एकसी पॉलिसी होनी चाहिये, इस संबंध में सरकार को एफीडेविट पेश करने के निर्देश दिये है। इसके साथ ही कोरोना टेस्टिंग रिपोर्ट पर लगने वाले समय को कम किये जाने के सरकार के जवाब पर न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि हरहाल में 36 घंटे में रिपोर्ट पेश की जाये।

युगलपीठ ने 19 अप्रैल को जारी आदेशों का अक्षश: पालन करने के निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 17 मई को निर्धारित की है।

उल्लेखनीय है कि अस्पताल में बिल राशि का भुगतान नहीं होने पर एक वृद्ध मरीज को बंधक बनाये जाने के मामले में संज्ञान याचिका के साथ अन्य कोरोना संबंधी मामलों की हाईकोर्ट में सुनवाई हो रहीं है।

न्यायालय आज सुनवाई दौरान सरकार की ओर से पेश की गई कम्पलाईज रिपोर्ट पर असंतुष्टि जाहिर करते हुए विगत 19 अप्रैल को जारी किये गये 19 बिंदुवार आदेश का अक्षश: पालन करने के निर्देश दिये है। इसके साथ ही कोरोना टेस्टिंग रिपोर्ट हरहाल में 36 घंटे में उपलब्ध कराना सुनिश्चित कराने के निर्देश भी सरकार को दिये है।
मामले की सुनवाई दौरान आरोप लगाया गया कि निजी अस्पतालों को ऑक्सीजन व रेमडेसीवर इंजेक्शन कम उपलब्ध कराकर सरकारी अस्पतालों को अधिक दिये जा रहे है। जिस पर सरकार ने उक्त आरोप को निराधार बताया। सरकार की ओर से कहा गया कि जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन व इंजेक्शन की उपलब्धता सुनिश्चित करायी जा रहीं है। जिस पर न्यायालय ने व्यवस्थाएं और दुरुस्त करने के निर्देश दिये।

सुप्रीम कोर्ट का कोरोना मामले बढ़ने के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने की मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियां हटाने से इनकार और मीडिया को न्यायिक कार्यवाही की टिप्पणियों की रिपोर्टिंग रोकने का अनुरोध ठुकराया attacknews.in

नयी दिल्ली, छह मई । उच्चतम न्यायालय ने देश में कोविड-19 के मामले बढ़ने के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने वाली मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को हटाने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया और साथ ही मीडिया को न्यायिक कार्यवाही के दौरान टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोकने का अनुरोध भी ठुकरा दिया। न्यायालय ने कहा कि यह एक ‘‘प्रतिगामी’’ कदम होगा।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने हालांकि माना कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियां ‘‘कठोर’’ थी लेकिन उन्हें हटाने से इनकार करते हुए कहा कि यह न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि मीडिया को अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिं करने का अधिकार है। उसने कहा, ‘‘बिना सोचे-समझे की गई टिप्पणियों की गलत व्याख्या किए जाने की आशंका होती है।’’

शीर्ष अदालत ने कोविड-19 के दौरान सराहनीय काम करने के लिए उच्च न्यायालयों की प्रशंसा की और कहा कि वे महामारी प्रबंधन पर प्रभावी रूप से नजर रख रहे हैं।

पीठ ने कहा कि मीडिया को सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोका नहीं जा सकता।

उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों को टिप्पणियां करने और मीडिया को टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोकना प्रतिगामी कदम होगा।’’

पीठ ने कहा कि अदालतों को मीडिया की बदलती प्रौद्योगिकी को लेकर सजग रहना होगा। उसने कहा कि यह अच्छी बात नहीं है कि उसे न्यायिक कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने से रोका जाए।

यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणी के खिलाफ निर्वाचन आयोग की एक अपील पर आया है।

उच्च न्यायालय ने कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान संक्रमण के मामले बढ़ने के लिए 26 अप्रैल को चुनाव आयोग की आलोचना करते हुए उसे इस संक्रामक रोग के फैलने के लिए जिम्मेदार बताया था और उसे ‘‘सबसे गैरजिम्मेदार संस्थान’’ बताया और यहां तक कि यह भी कहा था कि उसके अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने फेसबुक, व्हाट्सऐप की अपील पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग से मांगा जवाब जिसमें मैसेजिंग ऐप ने आयोग के 24 मार्च के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें नयी गोपनीयता नीति की जांच का निर्देश दिया गया attacknews.in

नयी दिल्ली, छह मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) से फेसबुक और व्हाट्सऐप की उन अपील पर जवाब मांगा जिसमें मैसेजिंग ऐप की नयी गोपनीयता नीति की जांच का आदेश देने के खिलाफ उनकी याचिकाओं को खारिज करने के एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई है।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने जांच का आदेश देने वाले सीसीआई को नोटिस जारी किया और उससे 21 मई को अगली सुनवाई तक जवाब मांगा।

एकल पीठ ने 22 अप्रैल को अपने आदेश में कहा था कि हालांकि सीसीआई के लिए व्हाट्सऐप की नयी गोपनीयता नीति के खिलाफ उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं पर आने वाले फैसलों की प्रतीक्षा करना “विवेकपूर्ण” होगा लेकिन ऐसा नहीं करने से नियामक का आदेश “त्रृटिपूर्ण” या “अधिकार क्षेत्र को कम करने वाला” नहीं होगा।

अदालत ने कहा कि उसे फेसबुक और व्हाट्सऐप की याचिका में ऐसा कोई गुण नहीं दिखाई देता जिसके आधार पर सीसीआई के जांच के निर्देश में हस्तक्षेप किया जाए।

सीसीआई ने एकल पीठ के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह कथित रूप से व्यक्ति की निजता के हनन की जांच नहीं कर रहा है जिस मामले को उच्चतम न्यायालय देख रहा है।

सीसीआई ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि व्हाट्सऐप की नयी नीति से भारी मात्रा में उपयोगकर्ताओं की सूचना एकत्र की जाएगी और अधिक उपयोगकर्ताओं को जोड़ने के उद्देश्य से लक्षित विज्ञापन के लिए उनकी ‘चुपके से निगरानी’ की जाएगी और इस तरह से यह प्रभावशाली स्थिति का कथित रूप से दुरुपयोग होगा।

नियामक ने कहा, ‘‘न्यायाधिकार क्षेत्र के सवाल पर कोई त्रृटि नहीं हुई है। सीसीआई ने व्हाट्सऐप और फेसबुक की याचिका का भी विरोध किया जिसमें उन्होंने फैसले को ‘ अक्षम और गलत’ बताया था।

उल्लेखनीय है कि व्हाट्सऐप और फेसबुक ने सीसीआई के 24 मार्च के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें नयी गोपनीयता नीति की जांच का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में ऑक्सीजन आपूर्ति के आदेश के अनुपालन में कोताही के कारण दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जारी अवमानना नोटिस के खिलाफ केन्द्र सरकार की याचिका पर सुनवाई को सहमत attacknews.in

नयी दिल्ली, पांच मई । उच्चतम न्यायालय राजधानी में ऑक्सीजन की आपूर्ति के आदेश के अनुपालन में कोताही के कारण दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी अवमानना नोटिस के खिलाफ दायर केन्द्र सरकार की याचिका पर बुधवार को सुनवाई के लिये सहमत हो गया।

इस याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा केंद्र के अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति के निर्देश को भी चुनौती दी गई है।

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति के बारे में उसके आदेश का अनुपालन करने में विफल रहने पर उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं की जाए।

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता यह मामला प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उठाया क्योंकि देश में कोविड-19 प्रबंधन पर स्वतं: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ बुधवार को उपलब्ध नहीं थी।

मेहता ने कहा, “मैंने इस मामले का उल्लेख मामले सूचीबद्ध करने वाले रजिस्ट्रार के समक्ष किया था। इसमें कुछ अत्यावश्यक है। इसे आज ही सुने जाने की जरूरत है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन मुद्दे के संबंध में कल आदेश पारित किया था। उच्च न्यायालय ने….केंद्र सरकार के अधिकारियों से अवमानना के लिए व्यक्तिगत तौर पर मौजूद रहने को कहा था।”

प्रधान न्यायाधीश नीत पीठ ने कहा, “हम क्या कर सकते हैं” और मामले की तत्कालिकता के बारे में दोबारा बताए जाने पर पीठ ने कहा कि इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी।

शीर्ष अदालत ने 30 अप्रैल को पारित आदेश में केंद्र को दिल्ली में तीन मई की मध्यरात्रि तक ऑक्सीजन की कमी संबंधी स्थिति को दुरुस्त करने का निर्देश दिया था और इसका अनुपालन नहीं करने पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को मंगलवार को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

उच्च न्यायालय ने कहा था, “इसलिए हम, केंद्र सरकार को कारण बताने का निर्देश देते हैं कि हमारे मई के और उच्चतम न्यायालय के 30 अप्रैल के आदेश का अनुपालन नहीं करने के लिए अवमाना की कार्रवाई क्यों न की जाए। उक्त नोटिस का जवाब देने के लिए, हम पीयूष गोयल और सुमित्रा दावरा (केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी) की कल मौजूदगी का निर्देश देते हैं।”

अदालत ने कहा, “आप शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना सिर छिपा सकते हैं, हम नहीं।” साथ ही कहा उच्चतम न्यायालय पहले ही निर्देश दे चुका है कि केंद्र को किसी भी तरीके से दिल्ली को रोजाना 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन रोजाना उपलब्ध करानी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र का कानून निरस्त किया attacknews.in

नयी दिल्ली, पांच मई । उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र की शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी राज्य के कानून को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए बुधवार को इसे खारिज कर दिया।

न्यायालय ने कहा कि 1992 में मंडल फैसले के तहत निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के उल्लंघन के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है।

न्यायालय ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले (इंदिरा साहनी फैसले) को पुनर्विचार के लिए वृहद पीठ के पास भेजने से भी इनकार कर दिया और कहा कि विभिन्न फैसलों में इसे कई बार बरकरार रखा है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान तैयार तीन बड़े मामलों पर सहमति जताई और कहा कि मराठा समुदाय के आरक्षण की आधार एम सी गायकवाड़ आयोग रिपोर्ट में समुदाय को आरक्षण देने के लिए किसी असाधारण परिस्थिति को रेखांकित नहीं किया गया है।

पीठ ने चार फैसले दिए और मराठा समुदाय को आरक्षण देने को अवैध करार देने समेत तीन बड़े मामलों पर सर्वसम्मति जताई।

संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एल एन राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने 102वें संशोधन की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने को लेकर न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर के साथ सहमति जताई, लेकिन कहा कि राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची पर फैसला नहीं कर सकते और केवल राष्ट्रपति के पास ही इसे अधिसूचित करने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर ने अल्पमत के फैसले में कहा कि केंद्र एवं राज्य के पास एसईबीसी की सूची पर फैसला करने का अधिकार है।

इस संबंध में बहुमत के आधार पर लिए गए फैसले में केंद्र को एसईबीसी की एक ताजा सूची अधिसूचित करने का निर्देश दिया गया और कहा गया कि अधिसूचना जारी किए जाने तक मौजूदा सूची बरकरार रहेगी।

शीर्ष अदालत ने राज्य को असाधारण परिस्थितियों में आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा तोड़ने की अनुमति देने समेत विभिन्न मामलों पर पुनर्विचार के लिए मंडल फैसला बृहद पीठ को भेजने से सर्वसम्मति से इनकार कर दिया।

पीठ ने यह भी कहा कि आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के शीर्ष अदालत के नौ सितंबर, 2020 के आदेश और मराठा आरक्षण को बरकरार रखने के 2019 के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकारी नौकरियों में की गई नियुक्तियां एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में किए गए दाखिले प्रभावित नहीं होंगे।

शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था।

2018 के 102वें संविधान संशोधन कानून से अनुच्छेद 338बी और अनुच्छेद 342ए को शामिल किया गया है। अनुच्छेद 338बी में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों एवं शक्तियों का जिक्र किया गया है और अनुच्छेद 342ए एसईबीसी के तौर पर किसी विशेष जाति को अधिसूचित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से जुड़ा है।

शीर्ष अदालत ने आठ मार्च को छह प्रश्न बनाए थे, जिन पर फैसला किया जाना था और उसने 102वें संविधान संशोधन की व्याख्या के मामले को अति महत्वपूर्ण बताया था।

पीठ ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए कहा था कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि क्या इंदिरा साहनी मामले में 1992 में आए ऐतिहासिक फैसले, जिसे ‘मंडल फैसला’ के नाम से जाना जाता है, उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

उच्चतम न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने पांच फरवरी को कहा था कि शिक्षा एवं नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के 2018 के कानून को लेकर दाखिल याचिकाओं पर वह आठ मार्च से अदालत कक्ष के साथ ही ऑनलाइन सुनवाई शुरू करेगा।

मामले की सुनवाई की तारीख तय करने वाली पीठ ने कहा था कि वह 18 मार्च को मामले की सुनवाई पूरी कर लेगी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण से मौतें होने की जानकारी देना नकारात्मक खबरें नहीं माना attacknews.in

नयी दिल्ली, 03 मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली मौतों की खबरें समाचार चैनलों पर प्रसारित करने पर रोक लगाने से जुड़ी याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

ललित वालेचा ने न्यायालय में एक याचिका पेश करके कहा था कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर जब से आयी है तब से समाचार चैनल न्यूज आर्टिकल और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से बहुत नकारात्मक चित्र और खबरें अत्यंत गैरजिम्मेदाराना तरीके से प्रसारित कर रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत ने कहा कि कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली मौतों की जनता को जानकारी देना नकारात्मक खबरें नहीं है।इसके बाद दोनों ने यह याचिका खारिज कर दी।

न्यायालय ने कहा कि जब खबरें सही होंगी तो उन पर कोई रोक नहीं लगायी जा सकती।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा:अस्पताल बनाने में सेना की मदद के आग्रह पर दिल्ली सरकार के पत्र का जवाब दे केंद्र;ऑक्सीजन के लिए क्रायोजेनिक टैंकर की आपूर्ति करने का भी सरकार का आग्रह attacknews.in

नयी दिल्ली, तीन मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि केंद्रीय रक्षा मंत्री से आप सरकार के आग्रह पर निर्देश प्राप्त करें। आम आदमी पार्टी की सरकार ने केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से आग्रह किया है कि वह सेना के सहयोग से अस्पताल निर्मित करवाएं जिसमें ऑक्सीजन युक्त बिस्तर और आईसीयू बिस्तर हों ताकि कोविड-19 रोगियों का इलाज किया जा सके। साथ ही सरकार ने सिंह से ऑक्सीजन के लिए क्रायोजेनिक टैंकर की आपूर्ति करने का भी आग्रह किया है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ को दिल्ली सरकार के वकील ने सूचना दी कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को रविवार को पत्र लिखकर सेना के सहयोग का आग्रह किया है और इस पर अमल करने में एक-दो दिनों का वक्त लग जाएगा।

दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने केंद्र से आग्रह किया कि हम आभारी होंगे यदि सशस्त्र बल कोविड-19 रोगियों के लिए दस हजार बिस्तर वाले अस्पताल का संचालन करें और सशस्त्र बलों से आग्रह किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए क्रायोजेनिक टैंकर मुहैया कराए जाएं।

केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने निर्देश प्राप्त करने और अदालत को सूचित करने के लिए समय मांगा।

पीठ ने कहा, ‘‘हम केंद्र को निर्देश देते हैं कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री द्वारा रक्षा मंत्री को लिखे गए पत्र के बारे में निर्देशों से अवगत कराएं।’’

इससे पहले अदालत ने वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल के सुझाव पर दिल्ली सरकार से कहा था कि वर्तमान परिस्थितियों में सशस्त्र बलों की सेवा लेने पर विचार करें क्योंकि वे अस्पताल बना सकते हैं, जहां राष्ट्रीय राजधानी में काफी संख्या में कोविड-19 रोगियों का इलाज किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को अदालतों की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से रोकने से मना किया और चुनाव आयोग से कहा:सख्त टिप्पणियों को कड़वी घूंट की तरह लेना चाहिए attacknews.in

नयी दिल्ली, 03 मई । उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अदालतों में मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से मीडिया को नहीं रोका जा सकता क्योंकि ये न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और जनहित में हैं, साथ ही अदालतों की सख्त टिप्पणियों को ‘कड़वी दवा की घूंट’ की तरह लेना चाहिए।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय की हाल की टिप्पणियों के खिलाफ चुनाव आयोग की याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। न्यायालय ने मामले में फैसला भी सुरक्षित रख लिया।

मद्रास उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों टिप्पणी की थी कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए खुद आयोग जिम्मेदार है और उसके अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हम समझते हैं कि हत्या का आरोप लगाने से आप परेशान हैं। मैं अपनी बात करूं तो मैं ऐसी टिप्पणी नहीं करता, लेकिन उच्च न्यायालय की लोगों के अधिकार सुरक्षित रखने में एक बड़ी भूमिका है।”

न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणी को उसी तरह लेना चाहिए, जैसे डॉक्टर की कड़वी दवाई को लिया जाता है।

केन्द्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय से ऑक्सीजन आपूर्ति पर उसका आदेश वापस लेने का अनुरोध किया जिसमें आवंटित 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आपूर्ति करने या फिर अवमानना का सामना करने के लिये तैयार रहने को कहा हैं attacknews.in

नयी दिल्ली, दो मई । केन्द्र सरकार ने रविवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर उससे राष्ट्रीय राजधानी को आवंटित 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति करने या फिर अवमानना का सामना करने के लिये तैयार रहने से संबंधित आदेश वापस लेने का अनुरोध किया।

केन्द्र सरकार ने अपनी याचिका में अदालत से एक मई के आदेश को वापस लेने की अपील करते हुए कहा कि उसके अधिकारी कड़ी मेहनत कर रहे हैं और ऐसे आदेशों से उनके मनोबल पर गलत प्रभाव पड़ेगा।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ से कहा कि दिल्ली सरकार उसे आवंटित की गई ऑक्सीजन की ढुलाई के लिये कुछ टैंकरों को छोड़कर बाकी का प्रबंध करने में पूरी तरह नाकाम रही है।

अदालत ने शनिवार को दिल्ली के बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते डॉक्टर समेत आठ रोगियों की मौत पर नाराजगी जताते हुए केन्द्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि राष्ट्रीय राजधानी को प्रतिदिन के हिसाब से आवंटित 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिले। अदालत ने कहा था कि अब बहुत हो चुका और पानी सिर से ऊपर जा चुका है।

पीठ ने कहा कि केन्द्र यह सुनिश्चित करे कि दिल्ली को ‘किसी भी माध्यम से’ आवंटित ऑक्सीजन मिले। अदालत ने कहा था कि ऐसा न करने पर अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है।

केन्द्र ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि दिल्ली को जितनी ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है, उसका भी सही ढंग से वितरण या इस्तेमाल नहीं किया जा रहा, जिसके चलते दिल्ली के निवासियों की जान पर खतरा पैदा हो गया है।