बलात्कार के आरोपी पत्रकार की अग्रिम जमानत को चुनौती वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दी कि,एक पुरुष आग्रह करता है और महिला मान जाती है, क्या इस चरण में इससे आगे भी कुछ कहने की जरूरत है attacknews.in

नयी दिल्ली, 04 जून । उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार के एक मामले में मुंबई के टीवी पत्रकार वरुण हीरेमथ की अग्रिम जमानत को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।22 वर्षीय महिला ने पत्रकार के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया है।

मुंबई के टीवी पत्रकार वरुण पर आरोप है कि उसने एक मॉडल के साथ दिल्ली में बलात्कार किया था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत 13 मई को वरुण की अग्रिम जमानत याचिका मंजूर कर ली, जिसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गयी थी।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शिकायतकर्ता की अपील ठुकरा दी।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रमाकृष्णन ने दलील दी कि उच्च न्यायालय का आरोपी को अग्रिम जमानत देने का निर्णय त्रुटिपूर्ण है।

सुश्री रमाकृष्णन ने याचिका के समर्थन में कई तरह की दलीलें दी और कहा कि उनकी मुवक्किल ने कमरे के अंदर बार-बार यौन संबंध बनाने के लिए मना किया था।

खंडपीठ ने उनकी दलील और याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि एक पुरुष आग्रह करता है और महिला मान जाती है, क्या इस चरण में इससे आगे भी कुछ कहने की जरूरत है।

यह मामला चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन से जुड़ा है।
निचली अदालत ने पत्रकार की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने वरुण को राहत प्रदान करते हुए अग्रिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ ने शिकायतकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा, ‘‘हमें दखल देने की कोई वजह नजर नहीं आयी। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’’

उच्च न्यायालय ने इस मामले में पत्रकार वरुण हिरेमथ को 13 मई को अग्रिम जमानत दी थी।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने 20 फरवरी को चाणक्यपुरी में एक पांच सितारा होटल में उससे बलात्कार किया था।

हिरेमथ ने 12 मार्च को यहां एक निचली अदालत से अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।

महिला की शिकायत के आधार पर यहां चाणक्यपुरी पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाने के लिए सजा) और 509 (किसी महिला का शील भंग करने के इरादे वाला शब्द, भाव भंगिमा या कार्य करना) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील ने उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि आरोपी पहले 50 दिन तक फरार रहा था और उसने गैर जमानती वारंट भी नजरअंदाज किए थे।

शीर्ष न्यायालय में अपनी याचिका में महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने पुलिस जांच में सहयोग न करने के बावजूद एक दिन के लिए भी न्यायिक पूछताछ का सामना नहीं किया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा छह अप्रैल को आरोपी को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दिए जाने के बाद आरोपी जांच अधिकारियों के समक्ष पेश हुआ।

आरोपी की ओर से पेश वकील ने निचली अदालत में दावा किया था कि शिकायकर्ता और पत्रकार के बीच यौन संबंध रहे हैं।

आरोपी के वकील ने दोनों के बीच प्रेम प्रसंग दिखाने के लिए निचली अदालत में व्हाट्सऐप तथा इंस्टाग्राम पर उनकी चैट भी दिखाई।

निचली अदालत ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि शिकायकर्ता के आरोपी के साथ पूर्व के अनुभव सहमति के तौर पर नहीं माने जा सकते और अगर अदालत में महिला कहती है कि उसकी सहमति नहीं थी तो यह माना जायेगा कि उसकी रजामंदी नहीं थी।

पत्रकार विनोद दुआ को यह आदेश बचा ले गया: सुप्रीम कोर्ट ने 1962 के अपने फैसले में कहा था कि “सरकार के कार्यों की आलोचना के लिए एक नागरिक के खिलाफ राजद्रोह के आरोप नहीं लगाए जा सकते, क्योंकि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुरूप है” attacknews.in

नयी दिल्ली, तीन जून । उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार विनोद दुआ के यूट्यूब कार्यक्रम को लेकर उनके खिलाफ राजद्रोह के आरोप में हिमाचल प्रदेश के एक स्थानीय भाजपा नेता द्वारा दर्ज करायी गई प्राथमिकी बृहस्पतिवार को रद्द करते हुए कहा कि 1962 का फैसला प्रत्येक पत्रकार को सुरक्षा का अधिकार देता है।

न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने हालांकि दुआ का वह अनुरोध अस्वीकार कर दिया कि जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक एक समिति अनुमति नहीं दे देती, तब तक पत्रकारिता का 10 साल से अधिक का अनुभव रखने वाले किसी मीडिया कर्मी के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए।

पीठ ने कहा कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा।

मीडिया कर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पीठ ने कहा, ‘‘ केदार नाथ सिंह फैसले (भादंवि में राजद्रोह अपराध के दायरे पर 1962 का प्रसिद्ध आदेश) के तहत प्रत्येक पत्रकार सुरक्षा का हकदार है। ’’

भादंवि की धारा 124ए (देशद्रोह) की वैधता बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने 1962 के अपने फैसले में कहा था कि सरकार के कार्यों की आलोचना के लिए एक नागरिक के खिलाफ राजद्रोह के आरोप नहीं लगाए जा सकते, क्योंकि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुरूप है।

पीठ ने पिछले साल छह अक्टूबर को दुआ का पक्ष सुनने के बाद याचिका पर आदेश को सुरक्षित रख दिया था।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 20 जुलाई को मामले में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से दुआ को दिया गया संरक्षण अगले आदेश तक बढ़ा दिया था।

शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि दुआ को मामले के संबंध में हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा पूछे गए किसी अन्य पूरक प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है।

भाजपा नेता श्याम ने शिमला जिले के कुमारसैन थाने में पिछले साल छल मई को राजद्रोह, सार्वजनिक उपद्रव मचाने, मानहानिकारक सामग्री छापने आदि के आरोप में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दुआ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी और पत्रकार को जांच में शामिल होने को कहा गया था।

श्याम ने आरोप लगाया था कि दुआ ने अपने यूट्यूब कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पर कुछ आरोप लगाए थे।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष 14 जून को रविवार के दिन अप्रत्याशित सुनवाई करते हुए विनोद दुआ को अगले आदेश तक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया था, लेकिन उनके खिलाफ चल रही जांच पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।

दुआ ने न्यायालय से उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया था।

उन्होंने कहा है कि प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार है।

न्यायालय पत्रकार घटनाक्रम

उच्चतम न्यायालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपने यूट्यूब कार्यक्रम पर कथित रूप से टिप्पणी करने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले को रद्द करते हुए कहा कि 1962 का एक फैसला हर पत्रकार को सरंक्षण का हक देता है। इस मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है।

30 मार्च 2020: दुआ ने यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड करके 2019 में हुए पुलवामा हमले और 2020 में कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन को लेकर सरकार की आलोचना की।

छह मई: हिमाचल प्रदेश में दुआ के खिलाफ एक स्थानीय भाजपा नेता ने 36 दिन की देरी के बाद राजद्रोह और अन्य अपराधों का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई।

चार जून: दुआ के खिलाफ दिल्ली में भाजपा के एक प्रवक्ता ने एक और प्राथमिकी दर्ज कराई है।

10 जून: दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में दर्ज प्राथमिकी की जांच पर रोक लगा दी।

12 जून: हिमाचल प्रदेश पुलिस ने राजद्रोह मामले में दुआ को पूछताछ के लिए तलब किया।

13 जून: दुआ ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया।

14 जून: उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक हिमाचल प्रदेश पुलिस को दुआ को गिरफ्तार करने से रोक दिया, जांच रिपोर्ट मांगी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

सात जुलाई: उच्चतम न्यायालय ने मामले से संबंधित जांच रिपोर्ट दायर करने में विफल रहने पर हिमाचल प्रदेश पुलिस की खिंचाई की।

16 सितंबर: केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि दुआ के कार्यक्रम ने लोगों को महामारी के दौरान पलायन करने के लिए उकसाया।

सात अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।

तीन जून 2021: उच्चतम न्यायालय ने दुआ के खिलाफ राजद्रोह का मामला खारिज किया और कहा कि हर पत्रकार संरक्षण हकदार है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जूनियर डाक्टर की हड़ताल को अवैधानिक करार देते हुए सभी डाक्टरों को 24 घंटों में काम लौटने के आदेश दिये;सरकार ने भी जूनियर डॉक्टर्स को चेताया attacknews.in

 

जबलपुर/भोपाल , 03 जून । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने जूनियर डाक्टर की हड़ताल को अवैधानिक करार देते हुए सभी जूनियर डाक्टरों को 24 घंटों में काम लौटने के आदेश दिये हैं।

मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक तथा न्यायाधीश सुजय पाॅल की युगलपीठ ने प्रदेशव्यापी जूनियर डाॅक्टरों की हडताल को अवैध करार दिया है।

युगलपीठ ने जूनियर डाॅक्टरों को 24 घंटो में काम पर लौटने के आदेश दिये हैं।

निर्धारित समय सीमा पर जूनियर डाॅक्टर हड़ताल समाप्त कर काम पर नहीं लौटते है तो सरकार उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करें।

युगलपीठ ने कोरोना महामारी काल में जूनियर डाॅक्टर के हडताल पर कहा है कि विपत्तिकाल में जूनियर डाॅक्टर की हडताल को किसी प्रकार से प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है।

जबलपुर स्थित सिविल लाइन निवासी अधिवक्ता शैलेन्द्र सिंह ने जूनियर डाॅक्टर की प्रदेशव्यापी हडताल के खिलाफ याचिका दायर किया था।

आवेदन में कहा गया था कि चिकित्सा संघ द्वारा प्रदेशव्यापी हडताल के खिलाफ साल 2014 में उक्त याचिका दायर की थी।

जिसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 25 जुलाई 2018 को जारी अपने आदेश में चिकित्सा सेवा को अतिआवष्यक सेवा घोषित किया था।

अत्यावश्यक सेवा संधारण के तहत चिकित्सा सेवा के कर्मचारी सामुहिक अवकाश तथा हडताल पर नहीं जा सकते है।

उक्त आदेश के बाद भी प्रदेश के जूनियर डाॅक्टर 31 मई से हडताल पर है।

उन्होंने कोरोना वार्ड में भी अपनी सेवा प्रदान करना बंद कर दी है।

याचिका में बताया गया कि कोरोना महामारी में जूनियर डाॅक्टरों की हडताल के कारण स्वास्थ सेवाएं प्रभावित हो रही।

ऐसे में पूर्व में पारित आदेश का परिपालन नहीं करने पर हडतालरत जूनियर डाॅक्टरों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाये।

इसके अलावा उनके खिलाफ इंडियन मेडिकल काउसिंल रेगुलेशन 2002, आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाये।

सरकार को ओपीडी तथा स्वास्थ सेवा सुचारू रूप से संचालित करने के निर्देश दिये जाये।

याचिका पर आज हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने जूनियर डाॅक्टर मेडिकल एसोसिएशन को हड़ताल वापस लेने के लिए दोपहर ढाई बजे तक का समय प्रदान किया।

सुनवाई के बाद युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी किये।

सरकार ने एक तरह से चेताया जूनियर डॉक्टर्स को:

इधर मध्यप्रदेश में जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (जूडा) की हड़ताल के बीच आज यहां राज्य के चिकित्सा शिक्षा आयुक्त निशांत बरबड़े ने कहा कि आवश्यक सेवा अधिनियम (एस्मा) और आपदा प्रबंधन अधिनियम प्रत्येक नागरिक पर एकरूप में लागू होते हैं।

श्री बरबड़े ने यहां मीडिया से चर्चा में यह बात कही। उन्होंने कहा कि जूनियर डॉक्टर्स मुख्य रूप से छात्र हैं और स्नातकोत्तर की पढ़ाई करते हैं। साथ ही मरीजों को भी देखने का कार्य करते हैं। उन्होंने जूनियर डॉक्टर्स के हित में उठाए गए सरकारी कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि स्टाइपेंड में बढ़ोत्तरी के संबंध में भी सरकार आगे बढ़ रही है। उनकी चिकित्सा सुविधाएं बढ़ायी गयी हैं।

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार को कुछ शर्तों के साथ सवा लाख शिक्षकों की बहाली की इजाजत दी attacknews.in

पटना 03 जून।पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार को कुछ शर्तों के साथ सवा लाख शिक्षकों की बहाली की इजाजत दे दी है ।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने गुरुवार को नेशनल ब्लाइंड फेडरेशन और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार को कुछ शर्तों के साथ सवा लाख शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया शुरू करने की इजाजत दे दी ।

खण्डपीठ ने वैसे दिव्यांग शिक्षक अभ्यर्थियों को आवेदन करने की छूट दी है जो विज्ञापन की तिथि यानी वर्ष 2019 में विज्ञापन की तिथि को आवेदन करने के योग्य थे ।

ऐसे उम्मीदवार अब जारी होने वाली अधिसूचना की तिथि से पंद्रह दिनों के भीतर आवेदन कर सकते हैं।

इससे पूर्व राज्य के महाधिवक्ता ललित किशोर ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने नियुक्ति में चार प्रतिशत का लाभ दिव्यांग उम्मीदवारों को देने की याचिकाकर्ताओं की एक बड़ी मांग मान ली है ।

राज्य सरकार ने दिव्यांगों को चार फीसदी आरक्षण देने के संबंध में प्रावधानों का अनुपालन कर दिया है और उसी प्रकार से सारी चयन प्रक्रिया की जायेगी।

उच्च न्यायालय ने इसके बाद याचिकाओं का निष्पादन करते हुए शिक्षकों की बहाली पर लगाई गई रोक हटा दी ।

पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी में भारत से फरार आरोपी हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी की डोमिनिका में जमानत याचिका खारिज attacknews.in

नयी दिल्ली 03 जून। पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी में फरार आरोपी हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी की गुरुवार को डोमिनिका में जमानत याचिका खारिज हो गयी।

स्थानीय मीडिया ने यह जानकारी दी है। चोकसी अवैध रूप से कैबिरियाई देश में प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ है।

इससे पहले उच्च न्यायालय ने बुधवार को चोकसी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान उसे मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष पेश करने का आदेश दिया था।

चोकसी ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अवैध रूप से डोमिनिका में प्रवेश करने का दोषी नहीं है। उसने कहा है कि उसका अपहरण कर लिया गया था और पड़ोसी देश एंटीगुआ और बारबुडा से डोमिनिका लाया गया था।

डोमिनिका न्यूज ऑनलाइन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पीठासीन मजिस्ट्रेट कैंडिया कैरेट-जॉर्ज ने अपने आदेश में अभियोजक का पक्ष लिया और कहा कि मामले की ‘गंभीरता’ को देखते हुए, वह आश्वस्त नहीं है कि चोकसी अपने मुकदमे में भाग लेने के लिए डोमिनिका में रहेगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रोसेउ मजिस्ट्रेट कोर्ट में उसकी (चोकसी) जमानत याचिका खारिज हो गयी तथा मामले को 14 जून तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

उल्लेखनीय है कि चोकसी पर साढ़े 13 हजार करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाले का आरोप है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संदेह का लाभ देकर नाबालिग के साथ रेप और हत्या के आरोपी को फांसी की सजा से बरी किया attacknews.in

लखनऊ 02 जून । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने एक अहम फैसला देते हुए नाबालिग से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के आरोपी को सत्र अदालत से सुनाई गई फांसी की सजा से बरी कर दिया।

अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देकर उसकी अपील को मंजूर कर यह फैसला सुनाया है ।

पीठ ने कहा कि अभियोजन घटना को संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा इस आधार पर अदालत सजायाफ्ता को दोषमुक्त करार देकर उसे तत्काल रिहा किए जाने का आदेश दिया है ।

यह मामला बाराबंकी जिले के देवा थाने से सम्बंधित था।

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायामूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने यह अहम फैसला उभान यादव उर्फ अभय कुमार यादव की अपील पर दिया।

सत्र अदालत ने 12 साल की नाबालिग के साथ दुष्कर्म करके हत्या करने के आरोपी उभान को फांसी की सजा सुनाई थी।

इसकी पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को वर्ष 2014 में संदर्भ भेजा गया था और सजायाफ्ता की तरफ से अपील भी दायर की गयी थी।

अभियोजन के मुताबिक 30मार्च 2013 को 12 साल की बालिका के साथ दुष्कर्म के बाद गला दबाकर हत्या कर दी गई थी।

अदालत ने कहा “ हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि अभियोजन ने जिस तरीके से अपराध किए जाने को बताने की कोशिश की है वह संदेहास्पद है।

ऐसे में अभियोजन मामले को तर्क संगत संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा।

लिहाजा अपीलकर्ता संदेह का लाभ पाने का हकदार है और उसकी अपील मंजूर करने लायक है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी,व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये आयातित ऑक्सीजन सांद्रकों पर केंद्र के आईजीएसटी को असंवैधानिक करार दिया था attacknews.in

नयी दिल्ली, एक जून । उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस आदेश पर मंगलवार को रोक लगा दी, जिसमें व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये लोगों द्वारा आयातित ऑक्सीजन सांद्रकों पर केंद्र के लगाए एकीकृत माल एवं सेवा कर (आईजीएसटी) को असंवैधानिक करार दिया गया था।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की विशेष पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता को जवाब देने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘हम दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा रहे हैं।’’

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के 21 मई के आदेश के खिलाफ वित्त मंत्रालय (राजस्व विभाग) की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह रोक लगाई।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बताया कि जीएसटी परिषद की बैठक आठ जून को होगी और इसमें ऑक्सीजन सांद्रकों समेत कोविड-19 से संबंधित आवश्यक वस्तुओं को छूट देने पर विचार किया जाएगा।

वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस बात पर गौर नहीं किया कि ऑक्सीजन सांद्रकों के आयात पर राज्यों और अन्य सरकारी एजेंसियों को आईजीएसटी की छूट पहले ही दी जा चुकी है।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के अनुसार, यदि आप उन पर कर लगाते हैं, तो यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘पहले आईजीएसटी 77 प्रतिशत था। हमने इसे कम करके 28 प्रतिशत किया गया है। इसके बाद इसे और कम करके 12 प्रतिशत लाया गया, लेकिन वे अब भी कह रहे हैं कि अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है।’’

उन्होंने कहा कि 28 मई को फैसला किया गया था कि मंत्रियों का समूह कोविड-19 संबंधी आवश्यक उत्पादों के आयात पर दी जाने वाली कर संबंधी छूट को लेकर आठ जून को अपनी रिपोर्ट पेश करेगा।

शीर्ष कानूनी अधिकारी ने कहा कि अदालत का आदेश नीति संबंधी मामलों में दखल देता है और कोई निर्णय लेने से पहले ही जीएसटी परिषद के हाथ बांध देता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये आयातित ऑक्सीजन सांद्रकों पर आईजीएसटी लगाए जाने को 21 मई को असंवैधानिक करार दिया था। अदालत ने इस संदर्भ में एक मई को जारी वित्त मंत्रालय की अधिसूचना खारिज कर दी थी।

अधिसूचना में कहा गया था कि व्यक्तिगत उपयोग के लिये आयातित ऑक्सीजन सांद्रकों पर 12 प्रतिशत आईजीएसटी लगेगा, फिर चाहे वह उपहार के रूप में या अन्य किसी तरीके से आए हों।

अदालत ने साथ में यह भी निर्देश दिया था कि ऐसे लोगों को लिखित में देना होगा कि उन्होंने ऑक्सीजन सांद्रकों का आयात वाणिज्यिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत उपयोग के लिये किया है।

इससे पहले, अदालत ने मामले में निर्देश दिया था कि 85 साल के व्यक्ति द्वारा आयातित ऑक्सीजन सांद्रक को सीमा शुल्क अधिकारी उसे जारी करें। यह निर्देश इस शर्त पर दिया गया था कि व्यक्ति उस पर देय आईजीएसटी के बराबर राशि अदालत में जमा करे।

बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा था कि उसके रिश्तेदार ने अमेरिका से उपहारस्वरूप उसके लिये ऑक्सीजन सांद्रक भेजा है ताकि उसका इलाज बेहतर हो सके।

याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत उपयोग के लिये आयातित ऑक्सीजन सांद्रक पर आईजीएसटी लगाये जाने को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के दौरान इस जरूरी उपकरण की देश में पहले से कमी है, ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत उपयोग के लिये आयातित ऑक्सीजन सांद्रकों पर आईजीएसटी लगाना अनुचित है।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने से हाईकोर्ट ने किया इनकार;स्पष्ट किया कि इस प्रोजेक्ट पर रोक नहीं लगेगी और यह एक राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट है attacknews.in

नयी दिल्ली,31 मई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर जारी निमार्ण संबंधी गतिविधियों पर रोक लगाने का आग्रह किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी एन पटेल और न्यायाधीश ज्योति सिंह की खंडपीठ ने इस परियोजना पर रोक लगाने के लिए दायर एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि इस प्रोजेक्ट पर रोक नहीं लगेगी और यह एक राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट है।

खंडपीठ ने यह भी कहा कि इस प्रोजेक्ट से जुड़ी निर्माण संबंधी गतिविधियों को लेकर दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने कभी भी कोई सवालिया निशान नहीं लगाया और सरकार ने भी यह सुनिश्चित किया था कि इस कार्य में लगे मजदूर निर्माण स्थल पर सुरक्षित रहें और कोविड अनुकूल मानकों का पालन कर रहे हैं। खंडपीठ ने कहा “ निर्माण स्थल पर मजदूर रह रहे हैं तो कोविड को देखते हुए इस निर्माण संबंधी कार्य को रोके जाने का सवाल ही नहीं उठता है।”

न्यायालय ने कहा“ इस याचिका को लेकर याचिकाकर्ताओं की मंशा स्पष्ट नहीं हैं और यह सही मंशा को लेकर दायर नहीं की गई थी। इस याचिका को खारिज किया जाता है और याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया जाता है। यह प्रोजेक्ट राष्ट्रीय महत्व का आवश्यक प्रोजेक्ट है।”

गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट की वैधानिकता को भी उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा है और इस काम को नवंबर 2021 तक पूरा किया जाना है।

इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के लिए आन्या मल्होत्रा, अनुवादक और सोहेल हाशमी, इतिहासकार तथा डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता ने एक जनहित याचिका दायर की थी और यह भी कहा था कि कोरोना संक्रमण के इस समय में इस तरह के कार्य से कोरोना संक्रमण में बेतहाशा इजाफा हो सकता है।

याचिका में यह भी कहा गया था कि केन्द्र सरकार ने इसके निर्माण में दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उस आदेश का भी उल्लंघन किया था जिसमें कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान के केवल आपातकालीन और आवश्यक सेवाओं को ही अनुमति दी जाएगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि यह प्रोजेक्ट“ मौत का केन्द्रीय गढ़” है और इसके बारे में कोई भी जानकारी हासिल नहीं की जा सकती है तथा यह भी पता लगाना कठिन है कि केन्द्र सरकार ने जो आश्वासन दिए थे क्या उनकी दिशा में कोई कदम उठाए जा रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा था कि दिशानिर्देशों के मुताबिक जिस स्थान पर मजदूर रह रहे हैं उनके अलावा सभी निर्माण संबंधी गतिविधियों को रोका जाना है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को विदेश जाने वाले छात्रों, एनआरआई को टीकाकरण में प्राथमिकता देने संबंधी अभिवेदन पर फैसला करने को कहा attacknews.in

नयी दिल्ली, 31 मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सोमवार को निर्देश दिया कि वह शिक्षा प्राप्त करने विदेश जाने वाले छात्रों और प्रवासी भारतीयों को प्राथमिकता के आधार पर कोविड-19 टीका लगाए जाने संबंधी अभिवेदन पर ‘‘जल्द से जल्द’’ फैसला करे।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने कहा कि गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘प्रवासी लीगल सेल’ के 20 मई के अभिवेदन पर इस मामले संबंधी कानून, नियमों, विनियमों और सरकारी नीति के अनुसार फैसला किया जाए।

इसी निर्देश के साथ अदालत ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।

एनजीओ को अभिवेदन का जवाब नहीं मिला था, इसलिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

याचिका में विदेश जाने के इच्छुक लोगों के टीकाकरण प्रमाणपत्र पर पासपोर्ट संख्या भी लिखे जाने का अनुरोध किया गया था। इस संस्था का प्रतिनिधित्व वकील जोस अब्राहम कर रहे थे।

वकीलों एम पी श्रीविग्नेश, रॉबिन राजू और दीपा जोसेफ के जरिए दायर गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘प्रवासी लीगल सेल’ की याचिका में दावा किया गया था कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत आए प्रवासी भारतीयों को वापस अपने देश लौटना होगा, जहां वह निवास करते हैं या काम करते हैं। कई देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में कमी के बाद अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के संचालन को अनुमति दी गई है।

याचिका में कहा गया था कि अन्य देश केवल ऐसे लोगों को प्रवेश की अनुमति दे रहे हैं, जिनका टीकाकरण हो चुका है। ऐसी स्थिति में यदि छात्रों और प्रवासी भारतीयों को टीकाकरण में प्राथमिकता नहीं दी गई तो इसका उनके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

याचिका में यह भी दावा किया गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की आपात इस्तेमाल सूची में अभी तक कोवैक्सीन को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए इस टीके की दोनों खुराक ले चुके लोगों को विदेश यात्रा की अनुमति नहीं है।

उसने कहा था कि केंद्र को इस संबंध में उचित कदम उठाना चाहिए।

12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करने या नहीं करने के बारे में आगामी दो दिन में होगा अंतिम फैसला: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया attacknews.in

नयी दिल्ली, 31 मई । उच्चतम न्यायालय को सोमवार को बताया गया कि सरकार कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करने या नहीं करने के बारे में आगामी दो दिन में अंतिम फैसला करेगी।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ को यह जानकारी दी। पीठ ने कहा कि यदि केंद्र वैश्विक महामारी के कारण शेष बोर्ड परीक्षाएं रद्द करने की पिछले साल की नीति से अलग फैसला करता है, तो उसे इसका ठोस कारण देना होगा।

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, ‘‘कोई समस्या नहीं है। आप फैसला कीजिए। आपको ऐसा करने का अधिकार है। यदि आप पिछले साल की नीति से अलग फैसला करते हैं, तो आपको इसका ठोस कारण देना होगा।’’

उसने कहा कि पिछले साल सोच-समझकर निर्णय लिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यदि आप इस नीति से अलग फैसला करते हैं, तो कृपया हमें इसका ठोस कारण दीजिए, ताकि हम समीक्षा कर सकें।’’

पीठ मौजूदा हालात के मद्देनजर भारतीय विद्यालय प्रमाण-पत्र परीक्षा परिषद(सीआईएससीई) और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की 12वीं कक्षा की परीक्षाएं रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

शीर्ष अदालत ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण पिछले साल एक जुलाई से 15 जुलाई तक होने वाली बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करने के लिए सीबीएसई और सीआईएससीई की योजनाओं को 26 जून, 2020 को मंजूरी दे दी थी और परीक्षार्थियों के आकलन संबंधी फॉर्मूला को भी स्वीकृति दे दी थी।

शुरुआत में अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा, ‘‘सरकार आगामी दो दिन में अंतिम फैसला करेगी। हम उम्मीद करते हैं कि आप हमें बृहस्पतिवार (तीन जून) तक का समय देंगे, ताकि हम अंतिम आदेश के साथ पेश हो सकें।’’

वेणुगोपाल ने कहा कि पिछले साल मार्च 2020 में राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगाए जाने से पहले की कुछ विषयों की बोर्ड परीक्षा हो गई थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस चरण पर बारीकियों में नहीं जाना चाहते। आप फैसला कीजिए। याचिकाकर्ता ने उम्मीद जताई है कि पिछले साल की नीति इस साल भी अपनाई जा सकती है। यदि आप इस नीति से अलग फैसला करते हैं, तो आपके पास इसका ठोस आधार होना चाहिए।’’

इस पर वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘आपने जो कहा है, हम उसका ध्यान रखेंगे।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हमें कोई दिक्कत नहीं है। आप हालात के आधार पर उचित फैसला करें।’’

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ममता शर्मा ने परिणाम में देरी होने की स्थिति में उन छात्रों के सामने समस्या पैदा हो सकने का मामला उठाया, जो 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘उन्हें फैसला करने दीजिए। यदि पुरानी नीति से अलग फैसला होता है, तो हम गौर करेंगे। हम हमारे समक्ष सैद्धांतिक फैसला आने पर बृहस्पतिवार को इस पर विचार करेंगे।’’

उसने कहा, ‘‘सक्षम प्राधिकारी मामले संबंधी सभी पक्षों की समीक्षा कर रहे हैं और उनके सैद्धांतिक निर्णय लेने की संभावना है, जिसे न्यायालय में पेश किया जाएगा, इसलिए अटॉर्नी जनरल के अनुरोध के अनुसार मामले की आगे की सुनवाई बृहस्पतिवार तक के लिए स्थगित की जाए।’’

याचिका में एक निश्चित समय सीमा में 12वीं का परिणाम घोषित करने के लिए एक कार्यप्रणाली तैयार करने का भी निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने नारद स्टिंग टेप मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार पश्चिम बंगाल के दो मंत्रियों, टीएमसी विधायक और शहर के पूर्व महापौर को अंतरिम जमानत दी attacknews.in

कोलकाता, 28 मई । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नारद स्टिंग टेप मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए पश्चिम बंगाल के दो मंत्रियों – सुब्रत मुखर्जी और फरहाद हाकिम, टीएमसी विधायक मदन मित्रा और शहर के पूर्व महापौर सोवन चटर्जी को शुक्रवार को अंतरिम जमानत दे दी।

उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इन सभी को अंतरिम जमानत देते हुये कई शर्तें लगायीं हैं। पीठ ने चारों आरोपी नेताओं को दो-दो लाख रुपये का निजी मुचलका जमा कराने का निर्देश दिया है। ये सभी नजरबंद हैं।

पीठ ने उनसे मामले के संबंध में मीडिया में या सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी न करने का निर्देश दिया है।

अदालत ने आरोपियों को निर्देश दिया है कि जांच अधिकारियों द्वारा बुलाये जाने पर वे डिजिटल माध्यम से उनसे मुलाकात करें।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश पर नारद स्टिंग टेप मामले की जांच कर रही सीबीआई ने चारों नेताओं को 17 मई की सुबह को गिरफ्तार किया था।

सीबीआई की एक विशेष अदालत ने चारों आरोपियों को 17 मई को अंतरिम जमानत दी थी लेकिन उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंड पीठ ने बाद में फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके बाद इन नेताओं को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

पांच न्यायाधीशों की पीठ में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश जिंदल और न्यायमूर्ति आई पी मुखर्जी, न्यायमूर्ति हरीश टंडन, न्यायमूर्ति सोमेन सेन और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी शामिल थे।

दिल्ली हाईकोर्ट से ट्विटर को आईटी नियमों का पालन करने, शिकायत निवारण स्थानीय अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश देने का अनुरोध attacknews.in

नयी दिल्ली, 28 मई । दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में शुक्रवार को कहा गया है कि ट्विटर ने शिकायत निवारण स्थानीय अधिकारी नियुक्त करने संबंधी केंद्र के आईटी कानून के नियम का पालन नहीं किया है। इसमें अनुरोध किया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर को इस नियम का अविलंब पालन करने का निर्देश दिया जाए।

अधिवक्ता अमित आचार्य की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून 25 फरवरी को प्रभाव में आए तथा केंद्र ने ट्विटर समेत सभी सोशल मीडिया मंचों को इनका पालन करने के लिए तीन महीने का वक्त दिया था।

याचिका में कहा गया कि यह अवधि 25 मई को समाप्त हो गई लेकिन ट्विटर ने इस मंच पर ट्वीट से जुड़ी शिकायतों को देखने के लिए आज तक शिकायत निवारण स्थानीय अधिकारी की नियुक्ति नहीं।

आचार्य ने याचिका में कहा कि जब उन्होंने कुछ ट्वीट के बारे में शिकायत दर्ज करवाने का प्रयास किया तब उन्हें सरकारी नियमों का कथित अनुपालन नहीं किए जाने के बारे में पता चला।

याचिका में मांग की गई है कि ट्विटर को शिकायत निवारण स्थानीय अधिकारी की अविलंब नियुक्ति करने का निर्देश दिया जाए। इसमें केंद्र को भी निर्देश देने की मांग की गई कि वह आईटी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करे।

ट्विटर ने हाल में नए आईटी नियमों की आलोचना की थी और कहा था कि ये नियम ‘‘मुक्त और खुली सार्वजनिक बातचीत को रोकते हैं।’’

इस पर प्रतिक्रिया में केंद्र ने कहा था कि ट्विटर भारत को बदनाम करने के लिए निराधार और झूठे आरोप लगा रहा है।

फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सऐप ने भारत में लागू किए गए नए सोशल मीडिया नियमों पर सरकार के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की याचिका, इन नियमों में यह पता लगाना जरूरी है कि किसी संदेश की शुरुआत किसने की attacknews.in

 

नयी दिल्ली, 26 मई । फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सऐप ने नए सोशल मीडिया मध्यवर्ती नियमों पर सरकार के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसके तहत संदेश सेवाओं के लिए यह पता लगाना जरूरी है कि किसी संदेश की शुरुआत किसने की।

व्हाट्सऐप के एक प्रवक्ता ने पुष्टि की कि कंपनी ने हाल ही में लागू किए गए आईटी नियमों के खिलाफ 25 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

यह कदम ऐसे वक्त में उठाया गया है, जबकि नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021, के जरिए सोशल मीडिया कंपनियों को अधिक से अधिक जवाबदेह और जिम्मेदार बनाने की कवायद चल रही है।

व्हाट्सऐप के एक प्रवक्ता ने कहा कि मैसेजिंग ऐप के लिए चैट पर निगाह रखने की आवश्यकता, उन्हें व्हाट्सऐप पर भेजे गए हर एक संदेश का फिंगरप्रिंट रखने के लिए कहने के बराबर है।

प्रवक्ता ने कहा कि यह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ देगा और लोगों के निजता के अधिकार को कमजोर करेगा।

प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हम दुनिया भर में लगातार नागरिक समाज और विशेषज्ञों के साथ उन अनिवार्यताओं का विरोध कर रहे हैं, जो हमारे उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उल्लंघन करेंगे। इस बीच, हम लोगों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से व्यावहारिक समाधानों पर भारत सरकार के साथ बातचीत जारी रखेंगे।’’

नये सूचना प्रौद्योगिकी नियम बुधवार 26 मई से प्रभाव में आएंगे और इनकी घोषणा 25 फरवरी को की गयी थी। इस नए नियम के तहत ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी बड़े सोशल मीडिया मंचों को अतिरिक्त उपाय करने की जरूरत होगी। इसमें मुख्य अनुपालन अधिकारी, नोडल अधिकारी और शिकायत अधिकारी की नियुक्ति आदि शामिल हैं।

प्रमुख सोशल मीडिया मंचों को नये नियमों के अनुपालन के लिये तीन महीने का समय दिया गया था। इस श्रेणी में उन मंचों को रखा जाता है, जिनके पंजीकृत उपयोगकर्ताओं की संख्या 50 लाख से अधिक है।

नियमों का पालन न करने के परिणामस्वरूप इन सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी मध्यस्थ की स्थिति खोनी पड़ेगी। यह स्थिति उन्हें किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी और उनके द्वारा ‘होस्ट’ किए गए डाटा के लिए दायित्वों से छूट और सुरक्षा प्रदान करती है। दूसरे शब्दों में, उन पर कार्रवाई की जा सकती है।

फेसबुक के एक प्रवक्ता ने मंगलवार को कहा कि कंपनी परिचालन प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए काम कर रही है और इसका उद्देश्य आईटी नियमों के प्रावधानों का पालन करना है।

सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी ने कहा कि वह कुछ मुद्दों पर स्पष्टता को लेकर सरकार के लगातार संपर्क में है। फेसबुक के पास फोटो साझा करने का मंच इंस्टाग्राम भी है।

हालांकि, फेसबुक और गूगल दोनों ने मंगलवार तक अनुपालन के नए स्तर को पूरा करने के बारे में चीजें स्पष्ट नहीं की।

सुप्रीम कोर्ट ने प बंगाल में चुनाव-उपरांत हिंसा प्रभावित परिवारों का पलायन रोकने, मुआवजा दिलाने,उनके पुनर्वास संबंधी याचिका पर केंद्र और राज्य सरकार से जवाब तलब किया attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 मई ।उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में चुनाव-उपरांत हिंसा से प्रभावित परिवारों का पलायन रोकने, मुआवजा दिलाये जाने और उनके पुनर्वास संबंधी जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकार से मंगलवार को जवाब तलब किया।

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की अवकाशकालीन खंडपीठ ने अरुण मुखर्जी, देबजानी हलदर, प्रशांत दास, प्रमिता डे और भूपेन हलदर की याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी किये तथा मामले की सुनवाई सात जून को शुरू हो रहे सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।

श्री अरुण मुखर्जी और देबजानी हलदर सामाजिक कार्यकर्ता हैं, प्रशांत दास कूचबिहार जिले में हुई हिंसा से प्रभावित व्यक्ति हैं। प्रमिता डे और भूपेन हलदर वकील हैं, जिनके आवास और कार्यालय कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिये गये थे।

न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू), राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग तथा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया।
सुश्री आनंद ने दलील दी थी कि हिंसा से प्रभावित व्यक्तियों को राहत सुनिश्चित करने के लिए इन आयोगों की भी उपस्थिति अनिवार्य हैं।

उन्होंने कहा, “विभिन्न मानवाधिकार आयोगों ने इस हिंसा पर अपनी रिपोर्ट पेश की हैं। उन्हें रिपोर्ट के लिए कहा जाना चाहिए। ये रिपोर्ट मददगार साबित होंगी। एनसीडब्ल्यू ने विस्थापित महिलाओं की मदद की है। इन संगठनों को पक्षकार बनाया जाये।”
इस दलील को न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।

आंध्र प्रदेश में गिरोह सरगना अब्दुल सम्मद उर्फ मुन्ना समेत 12 अपराधियों को फांसी की सजा, सात को आजीवन कारावास;राजमार्ग पर करीब 27 लॉरी ड्राइवरों और क्लीनर को मार डाला attacknews.in

ओंगोल, 24 मई ।आंध्र प्रदेश में ओंगोल की एक अदालत ने सोमवार को यहां 12 कुख्यात अपराधियों को मृत्युदंड दिया और सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनायी।

आठवें अतिरिक्त सत्र अदालत के न्यायाधीश एम मनोहर रेड्डी ने गिरोह के सरगना अब्दुल सम्मद उर्फ मुन्ना समेत कुख्यात गिरोह के 12 सदस्यों को तीन अपराधों में मौत की सजा सुनाई।

अभियोजन पक्ष के अनुसार 12 सदस्यीय गिरोह ने 2008 में प्रकाशम जिले में चेन्नई-कोलकाता राजमार्ग पर कई लॉरी ड्राइवरों और क्लीनर को मार डाला। वे पहले लॉरी के साथ लूटा गया सामान बेचते थे। बाद में गिरोह मद्दीपाडु गांव में लॉरियों को तोड़कर कबाड़ के रूप में बेच देता था।

मुख्य आरोपी अब्दुल सम्मद खुद को पुलिस अधिकारी बताकर लॉरियों को रोकता था। गिरोह के सदस्य लॉरी के चालक और क्लीनर पर हमला करते थे, उन्हें मारते थे और पास के सुनसान इलाकों में दफना देते थे। गिरोह ने चालकों और क्लीनर की हत्या करने के बाद उनके शवों को अलग-अलग जगहों पर दफना दिया था।

पुलिस ने जांच के दौरान शवों को जमीन से बाहर निकाला। पुलिस ने बताया कि गिरोह ने 13 लॉरी चालकों और क्लीनर को मार डाला और गिरोह के खिलाफ 22 मामले दर्ज किए गए थे।

वर्ष 2008 में एक लॉरी मालिक वीरप्पन मुप्पू स्वामी की शिकायत मिलने पर प्रकाशम जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक वी. विनयचंद ने सिलसिलेवार हत्याओं की जांच के लिए विशेष टीमों का गठन किया और व्यक्तिगत रूप से जांच की निगरानी की। अदालत ने तीन जघन्य अपराधों में 19 आरोपियों को मौत की सजा और आजीवन कारावास की सजा सुनाई।