पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने कुलभूषण जाधव को अपील का अधिकार देने के लिए विधेयक पारित किया attacknews.in

इस्लामाबाद, 11 जून । पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने सरकार समर्थित एक विधेयक पारित किया है जो सजायाफ्ता भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव को अपील का अधिकार देगा। मीडिया में आई एक खबर में यह जानकारी सामने आई है।

‘डॉन’ समाचार-पत्र ने खबर दी कि नेशनल असेंबली ने अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (समीक्षा एवं पुनर्विचार) विधेयक, 2020 को बृहस्पतिवार को पारित किया जिसका लक्ष्य कथित भारतीय जासूस जाधव को अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) के फैसले के अनुरूप राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराना है।

भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी, 51 वर्षीय जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी एवं आतंकवाद के आरोपों में अप्रैल 2017 को दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी। भारत ने जाधव को राजनयिक पहुंच न देने और मौत की सजा को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ आईसीजे का रुख किया था।

द हेग स्थित आईसीजे ने जुलाई 2019 में फैसला दिया कि पाकिस्तान को जाधव को दोषी ठहराने और सजा सुनाने संबंधी फैसले की ‘‘प्रभावी समीक्षा एवं पुनर्विचार” करना चाहिए और बिना किसी देरी के भारत को जाधव के लिए राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराने देने का भी अवसर देना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अपने 2019 के फैसले में पाकिस्तान को, जाधव को दी गई सजा के खिलाफ अपील करने के लिए उचित मंच उपलब्ध कराने को कहा था।

विधेयक पारित होने के बाद, कानून मंत्री फरोग नसीम ने कहा कि अगर उन्होंने विधेयक पारित नहीं किया होता तो भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चला जाता और आईसीजे में पाकिस्तान के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर देता। नसीम ने कहा कि विधेयक आईसीजे के फैसले के मद्देनजर पारित किया गया है। उन्होंने कहा कि विधेयक पारित कर उन्होंने दुनिया को साबित कर दिया कि पाकिस्तान एक “जिम्मेदार राष्ट्र” है।

नेशनल असेंबली ने चुनाव (सुधार) विधेयक समेत 20 अन्य विधेयक भी पारित किए।

विपक्षी सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया और तीन बार कोरम (कार्यवाही के दौरान उपस्थित सदस्यों की तय से कम संख्या) की कमी की ओर इशारा किया लेकिन हर बार सदन के अध्यक्ष ने सदन में पर्याप्त संख्या घोषित की और काम-काज जारी रखा जिससे विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया।

विपक्षी सदस्य अध्यक्ष के आसन के सामने आ गए और नारेबाजी की।

सरकार के कदम की आलोचना करते हुए पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के सांसद एहसान इकबाल ने कहा कि इस कदम ने जाधव को राहत देने के लिए विधेयक को भारी विधायी एजेंडा में शामिल किया। इकबाल ने कहा कि यह व्यक्ति विशेष विधेयक था और जाधव का नाम विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में शामिल था। उन्होंने कहा कि जब देश का कानून उच्च न्यायालयों को सैन्य अदालतों द्वारा सुनाई गई सजा की समीक्षा का प्रावधान करता है तो इस विधेयक को लाने की क्या जरूरत थी।

जाधव के मामले में आईसीजे के फैसले के तुरंत बाद पिछले साल मई में सरकार ने अध्यादेश लाकर कानून को पहले ही अमल में ला दिया था।

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने सदन अध्यक्ष से सदस्यों को विधेयक का अध्ययन करने के लिए कुछ वक्त देने को कहा। उन्होंने, पहले अध्यादेश के माध्यम से विधेयक लाने और फिर विधेयक पारित कर जाधव को राहत देने के लिए सरकार की आलोचना की।

कानून मंत्री नसीम ने कहा कि वह विपक्ष का आचरण देख कर स्तब्ध रह गए और ऐसा लगता है कि विपक्ष ने आईसीजे का फैसला नहीं पढ़ा। उनके अनुसार, आईसीजे ने साफ कहा है कि पाकिस्तान जाधव को, फैसले की समीक्षा का उनका अधिकार देने के लिए एक प्रभावी कानून बनाए।

एम्स-आईएनआई सीईटी 2021 परीक्षा एक महीने के लिए स्थगित:32 राज्यों में परीक्षा की तैयारियां पूरी कर ली गयी attacknews.in

नयी दिल्ली, 11 जून । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को आईएनआई सीईटी 2021 परीक्षा एक महीने के लिए स्थगित करने का आदेश दिया।

यह परीक्षा पहले 16 जून का होने वाली थी। अब यह परीक्षा एक महीने बाद किसी भी दिन करायी जाने वाली थी।

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने 23 एमबीबीएस डाॅक्टरों के समूह, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, मेडिकल स्टूडेंट नेटवर्क (छत्तीसगढ़ चैप्टर) और कोविड मरीजों के उपचार में लगे 35 अन्य रेजीडेंट डाक्टरों की याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद यह आदेश दिया।

न्यायालय ने कहा, “ अभ्यर्थियों ने जिन केन्द्राें को चुना है, वे उनसे काफी दूर कोविड ड्यूटी कर रहे हैं। उन्हें तैयारी के पर्याप्त समय नहीं मिला है, इसके मद्देनजर हमारा मानना है कि 16 जून की तारीख परीक्षा के लिए निर्धारित करना मनमानी है। हम एम्स को निर्देश देते हैं कि वह इस परीक्षा को कम से कम एक महीने के स्थगित कर दे।”

याचिकाकर्ताओं ने 16 जून को परीक्षा करवाने को चुनौती देते हुए कहा कि अधिकतर डाॅक्टर विभिन्न अस्पतालों में कोविड ड्यूटी कर रहे हैं और उन्हें परीक्षा की तैयारी करने का पर्याप्त समय नहीं मिला है।

उन्होंने याचिका में पोस्ट ग्रेजुएट काेर्स में प्रवेश के लिए होने वाली इस परीक्षा को स्थगित किये जाने की मांग करते हुए इस बारे में निर्देश देने की गुहार लगायी है।

याचिकाकर्ताओं के वकील अरविंद दातार ने कहा कि जब मई में होने वाली नीट परीक्षायें अगस्त तक के लिए स्थगित की जा सकती हैं तो आईएनआई सीईटी की परीक्षा क्यों नहीं स्थगित की जा सकती।

एम्स के वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ से कहा कि मई में प्रॉस्पेक्टस जारी कर दिया था और एक मई को अभ्यर्थी को परीक्षा के बारे में अवगत किया गया था। अगर परीक्षा रोक दी गयी तो डाक्टरों की कमी हो जायेगी।

उन्होंने कहा कि देश के 32 राज्यों में परीक्षा की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं। देश के कई हिस्सों में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति में भी सुधार हो गया है।

न्यायालय ने हालांकि जाेर दिया कि परीक्षा कम से कम एक महीने के लिए स्थगित की जानी चाहिए। एम्स के वकील ने निर्देश लेने के लिए सोमवार तक का समय देने की मांग की लेकिन पीठ ने यह कहते हुए इससे इन्कार कर दिया कि परीक्षा की तिथि काफी नजदीक है।

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह की गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ आरोपों की CBI जांच की मांग यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि, पुलिस में सेवा करने वाला व्यक्ति अब कह रहा है कि उसे राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं attacknews.in

नयी दिल्ली, 11 जून । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ सभी मामलों को केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अथवा किसी अन्य राज्य को स्थानांतरित करने की मांग की थी।

अदालत ने कहा, “आपकोे अपने बलों (महाराष्ट्र पुलिस) पर संदेह नहीं होना चाहिए।”

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की अवकाशकालीन पीठ ने परम बीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे “चौंकाने वाला वाकिया” बताया कि महाराष्ट्र पुलिस बल में 30 साल से अधिक समय तक सेवा करने वाला व्यक्ति अब कह रहा है कि उसे राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं है।

पीठ ने कहा, “जिनके घर शीशे के हो वो दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते हैं।”

पीठ ने कहा कि इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।

पूर्व पुलिस आयुक्त सिंह ने महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख के बारे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और इसके बाद उन्होंने कहा था कि ऐसा खुलासा करने के बाद से ही राज्य पुलिस बल उनके पीछे पड़ गया है।

वर्चुअल सुनवाई के दौरान परम बीर सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं और उन्हें श्री देशमुख के संबंध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखने की सजा का सामना करना पड़ रहा है।

श्री जेठमलानी ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ दर्ज मामले के प्रभारी अधिकारी ने परम बीर सिंह पर पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया और उन्हें कई आपराधिक मामलों में फंसाने की धमकी दी गयी।

इस पर शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या डीजीपी रैंक का कोई अधिकारी दबाव के आगे झुक सकता है, तो पुलिस बल के अन्य लोगों की हालत क्या होगी।

गौरतलब है कि 20 मार्च को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस)के इस वरिष्ठ अधिकारी ने एक बहुत ही चौंकाने वाले पत्र में आरोप लगाया था कि तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख ने कथित तौर पर एक गिरफ्तार-निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाज़े को बार और हुक्का से प्रति माह 100 करोड़ रुपये वसूली करने के लिए कहा था।

बाद में श्री देशमुख ने श्री सिंह के आरोपों ‘को यह कहकर खारिज कर दिया था कि एंटीलिया बम मामले और ठाणे के व्यवसायी मनसुख हिरन की हत्या से खुद को बचाने की कोशिश” के तहत वह इस तरह की बातें कर रहे हैं।

शीर्ष अदालत ने भी उनकी पहले की याचिका पर भी विचार करने से इनकार कर दिया था और उनके आरोपों को ‘गंभीर प्रकृति’ का बताते हुए, उन्हें पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय में जाने का निर्देश दिया था।

झारखंड के राज्य सभा चुनाव 2016 हॉर्स ट्रेडिंग मामले में पीसी एक्ट जोड़ने का आवेदन विजिलेंस कोर्ट में ट्रांसफर,रघुवर दास की बढ़ सकती है मुश्किलें attacknews.in

रांची, 10 जून । झारखंड में राज्यसभा चुनाव 2016 में कथित हॉर्स ट्रेडिंग मामले में अनुसंधानकर्ता की ओर से पीसी एक्ट जोड़ने के आवेदन को रांची के ज्यूडिसियल कोर्ट ने विजिलेंस कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है।

विजिलेंस कोर्ट की ओर से यदि इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, एडीजी अनुराग गुप्ता और पूर्व मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रेस सलाहकार अजय कुमार के खिलाफ पीसी एक्ट की धारा जोड़ने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है, तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

रांची सिविल कोर्ट के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट चतुर्थ अनुज कुमार की अदालत ने इस मामले में सुनवाई के दौरान फैसला सुरक्षित रख लिया था और गुरुवार को अपने फैसले में इस मामले को विजिलेंस कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया।

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अपर लोक अभियोजक श्रद्धा जया टोपनो ने अपना पक्ष रखा।

गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, एडीजी अनुराग गुप्ता और पूर्व सीएम के सलाहकार अजय कुमार के खिलाफ पीसी एक्ट (प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट) के तहत केस चलाने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहले ही मंजूरी दे दी है, जिसके बाद अनुसंधानकर्ता की ओर से अदालत में आवेदन दिया गया था ।

बता दें कि 2016 के राज्यसभा चुनाव के दौरान एक राजनीतिक दल के पक्ष में खड़े प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने के लिए बड़कागांव के तत्कालीन विधायक निर्मला देवी को प्रलोभन दिया गया था। साथ ही उनके पति पूर्व मंत्री योगेंद्र साव को धमकी भी दी गई थी। इस घटना को लेकर 2018 में जगन्नाथपुर थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पीसी एक्ट जोड़ने की अनुमति के साथ ही केस एसीबी की विशेष अदालत में चला गया ।

बता दें कि इस मामले में चुनाव आयोग के निर्देश पर गृह विभाग के अवर सचिव ने जगन्नाथपुर थाना में प्राथमिकी दर्ज करायी थी. इसमें तत्कालीन सीएम रघुवर दास के सलाहकार अजय कुमार व एडीजी अनुराग गुप्ता को नामजद आरोपी बनाया गया था. मामले में अब हेमंत सरकार ने तीनों के खिलाफ पीसी एक्ट के तहत जांच करने का भी आदेश 25 मई को जारी किया है।

निजी विश्वविद्यालयों पर पैसों के बदले डिग्रियां बांटने का आरटीआई कार्यकर्ता का आरोप; विधायक के बाद जेल में बंद कैदी को जारी की गई मार्कशीट attacknews.in

रायपुर 10 जून।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के आरटीआई कार्यकर्ता संजीव अग्रवाल ने मध्य प्रदेश के एक निजी विश्वविद्यालय के द्वारा एक विधायक के नाम से पैसों के बदले डिग्री जारी करने के खुलासे के बाद अब छत्तीसगढ़ के निजी विश्वविद्यालय द्वारा एक सजा काट रहे कैदी के नाम पर डिग्री जारी करने का भी खुलासा किया है।

श्री अग्रवाल के मुताबिक छत्तीसगढ़ के एक निजी विश्वविद्यालय ने उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी बलराम साहू को 29 जनवरी 14 को सजा हुए थी और वह 14 अगस्त 19 को रिहा हुआ। जेल से बाहर आने से पहले ही विश्वविद्यालय द्वारा उसे डीसीए (डिप्लोमा ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन) का सर्टिफिकेट 29 अगस्त 18 को दे दिया। उसे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण घोषित किया गया है।

भोपाल की सर्वपल्ली राधाकृष्णन यूनिवर्सिटी से विधायक विनय जायसवाल की फर्जी डी सी ए की मार्कशीट के बाद छत्तीसगढ़ की आई एस बी एम यूनिवर्सिटी ने जेल में बंद कैदी की डीसीए की फर्जी मार्कशीट जारी की गई है । छत्तीसगढ़ में पैसों के बदले डिग्रियां बंट रही हैं ।

आरटीआई कार्यकर्ता और विसलब्लोअर संजीव अग्रवाल ने मध्य प्रदेश की एक नामी युनिवर्सिटी के द्वारा छत्तीसगढ़ के एक विधायक की पैसों के बदले डिग्री जारी करने के खुलासे के बाद छत्तीसगढ़ की एक युनिवर्सिटी द्वारा एक सजा काट रहे कैदी के नाम पर डिग्री जारी करने का भी खुलासा किया है।

शिक्षा विभाग में एक के बाद एक ऐसे खुलासों से देश में शिक्षा व्यवस्था और निजी विश्वविद्यालयों पर सवालिया निशान लग गया है।

पैसों के बदले डिग्रियां बांटने का ये गोरख धंधा केवल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चल रहा है।

प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों द्वारा डिग्री बांटने को लेकर चल रहे फर्जीवाड़ा

संजीव अग्रवाल के मुताबिक प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों द्वारा डिग्री बांटने को लेकर चल रहे फर्जीवाड़ा के बीच एक बड़ा खुलासा हुआ है। एक निजी विवि आईएसबीएम ने उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी बलराम साहू पिता चेतनराम साहू जिसको 29-01-2014 को सजा हुए थी और वह 14-08-2019 को रिहा हुआ। जेल से बाहर आने से पहले ही उस युनिवर्सिटी द्वारा उसे डीसीए (डिप्लोमा ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन) का सर्टिफिकेट 29-08-2018 दे दिया। उसे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण घोषित किया गया है।

आरटीआई एक्टिविस्ट संजीव अग्रवाल ने इस मामले में आरोप लगाया कि शिक्षा में सुधार के लिए निजी विश्वविद्यालयों को सरकार ने संचालन की अनुमति दी है, मगर निजी विश्वविद्यालयों ने इसे डिग्री बांटने का धंधा बना लिया है। मोटी रकम लेकर निजी विवि किसी को भी डिग्री दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि राज्य के उन युवाओं का नुकसान हो रहा है, जो कड़ी मेहनत कर नियमित क्लासेज अटेंड करते हैं और परीक्षा में सम्मिलित होते हैं। ताजा मामला यह दर्शाता है कि एक सजायाफ्ता कैदी को प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण की डिग्री मिल जाती है। इससे विवि की कार्यप्रणाली पर संदेह उठना लाजमी है।

संजीव अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ की 15 साल की भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह के राज में बहुत ही प्राइवेट यूनिवर्सिटी शुरू हुई लेकिन उन्होंने शिक्षा देने की बजाय शॉर्टकट में पैसे कमाना ज्यादा उचित समझा, जिसका परिणाम है कि आज प्रदेश में बहुत सी यूनिवर्सिटी डिग्री बांटने का गोरख धंधा कर रही हैं केवल पैसे बनाने के लिए।

संजीव अग्रवाल ने कहा कि अभी तो उन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की एक-एक यूनिवर्सिटी के बारे में खुलासा किया है उनके पास और भी यूनिवर्सिटी के दस्तावेज मौजूद हैं जो समय-समय पर वह मीडिया के समक्ष खुलासे करेंगे।

उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मांग की है कि वे सभी यूनिवर्सिटीज का जल्द से जल्द ऑडिट करवाने का आदेश जारी करें और यह सुनिश्चित करें कि किस यूनिवर्सिटी में पिछले 15 साल में कितने डिग्री आवंटित की हैं और क्या वह सरकारी मानकों के अनुसार सही है या नहीं, क्योंकि “भूपेश है तो भरोसा है।”

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत पर आधारित फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग को लेकर याचिका खारिज attacknews.in

नयी दिल्ली, 10 जून । दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत पर आधारित आने वाली फिल्म ‘न्याय:द जस्टिस’ की रिलीज पर राेक लगाने की मांग को लेकर प्रस्तुत याचिका गुरुवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति संजीव नरुला की एकलपीठ ने सुशांत के नाम ,जीवनी अथवा अन्य एकरुपता का फिल्मों में इस्तेमाल करने से फिल्म निर्माताओं पर रोक लगाने की मांग को लेकर प्रस्तुत याचिका सुनवाई के बाद खारिज कर दी।

न्यायालय ने हालांकि प्रतिवादियों (फिल्म निर्माताओं) को रॉयल्टी, लाइसेंसिंग, प्रो लाइसेंसिंग अथवा फिल्म से होने वाले मुनाफे का सभी ब्यौरा संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष पेश करने के आदेश दिये हैं।

सुशांत सिंह राजपूत के पिता कृष्ण किशोर सिंह ने इस वर्ष के प्रारंभ में सुशांत के जीवन पर प्रस्तावित फिल्मों के खिलाफ रोक लगाने की मांग करते हुए अपनी याचिका में कहा कि लोग उनके बेटे की मौत का अनुचित फायदा उठा रहे हैं।

याचिका में तर्क दिया गया कि फिल्म निर्माता परिस्थिति का लाभ उठाते हुए मौके को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं तथा इस तरह के फिल्म , नाटक , वेब-श्रृंखला, पुस्तक, साक्षात्कार अथवा अन्य सामग्रियों के प्रकाशन से उनके पुत्र की प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है।

याचिकाकर्ता ने प्रतिष्ठा को नुकसान और मानसिक आघात पहुंचाने के लिए दो करोड़ रूपये के हर्जाने की भी मांग की है। न्यायालय ने गत अप्रैल में विभिन्न फिल्म निर्माताओं से संबंधित याचिका पर अपना पक्ष रखने को कहा था।

याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि उनके मुवक्किल को डर है कि कुछ ऐसी फिल्में, वेब श्रृंखला, किताबें, साक्षात्कार अथवा अन्य सामग्री प्रदर्शित/प्रकाशित हो सकती है जो सुशांत और उनके परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचायेगी।

सुशांत राजपूत के जीवन पर आधारित अन्य आगामी फिल्मों में ‘सुसाइड या मर्डर: ए स्टार वाज लॉस्ट’, ‘शशांक’ और एक अनाम प्रोजेक्ट शामिल है।

उल्लेखनीय है कि 34 वर्षीय सुशांत पिछले वर्ष 15 जून को अपने मुंबई स्थित आवास पर मृत पाए गए थे। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) उनकी मौत की जांच कर रही है।

बलात्कार के आरोपी मेघालय राज्य के एनपीपी विधायक और मुख्यमंत्री के सलाहकार थामस संगमा की अग्रिम जमानत मंजूर attacknews.in

शिलाँग 09 जून । मेघालय की एक निचली अदालत ने सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के विधायक थॉमस संगमा की बलात्कार मामले में अग्रिम जमानत मंजूर कर ली है।

एक महिला द्वारा बलात्कार और धमकी देने को लेकर पुलिस में प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद श्री संगमा ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी।

श्री संगमा मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा के सलाहकार भी हैं।

श्री संगमा के अधिवक्ता कौस्तव पॉल ने बुधवार को कहा, “अदालत ने श्री संगमा की बिना पूर्व अनुमति के न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जाने और मामले की जांच में बाधा नहीं पहुंचाने की शर्त पर अंतरिम जमानत मंजूर की है।”

अदालत ने आरोपी विधायक को शिकायतकर्ता और अभियोजन पक्ष के गवाह से दूरी बनाए रखने और शिकायतकर्ता तथा अभियोजन पक्ष के गवाह को कोई प्रलोभन या धमकी नहीं देने का भी निर्देश दिया है।

इसके अलावा न्यायालय ने श्री संगमा को कथित बलात्कार मामले की जांच रहे पुलिस दल के साथ सहयोग करने का भी निर्देश दिया।

श्री संगमा के खिलाफ पिछले वर्ष जनवरी से कथित तौर पर यौन शोषण करने के आरोप में एक महिला ने पूर्वी खासी पर्वतीय जिले के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सुनारिया जेल से बार-बार पैरोल देने पर अंशुल छत्रपति ने लिखा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र attacknews.in

सिरसा, 09 जून । सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड व साध्वी बलात्कार मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सुनारिया जेल से बार-बार पैरोल व मेडिकल लीव जैसी छूट दिए जाने पर अंशुल छत्रपति ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है और जेल प्रशासन व हरियाणा सरकार पर सवाल उठाए हैं।

पत्र में मुख्य न्यायाधीश से गुजारिश की गई है कि वे उक्त मामले में पूर्व की भांति हस्तक्षेप कर हरियाणा सरकार व प्रशासन से जवाब तलबी करें।

श्री छत्रपति ने कहा कि अगस्त 2017 में सीबीआई अदालत के सजा सुनाए जाने के दौरान डेरा प्रमुख के इशारे पर पूरे हरियाणा व उत्तर भारत को हिंसा ग्रस्त करने की साजिश रची गई और उसके बाद पैदा हुए हालातों को नियंत्रित करने के लिए माननीय उच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा था।

हिंसा में 40 लोगों की जान चली गई अरबों करोड़ों की संपत्ति तहस-नहस हुई और मीडिया के बहुत सारे वाहनों व मीडिया हाउसेस की ओबी वैन को जलाकर राख कर दिया गया किया, उक्त मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने कई महीनों तक लगातार सुनवाई की हरियाणा सरकार और प्रशासन की नाकामी के लिए उन्हें कोसा और इन दंगों का जिम्मेदार डेरा सच्चा सौदा के साथ-साथ हरियाणा सरकार को भी ठहराया।

अंशुल छत्रपति ने कहा कि उच्च न्यायालय की इस सारी मशक्कत के कोई मायने नहीं रह जाएंगे यदि हरियाणा सरकार व प्रशासन दोबारा फिर से इस तरह की बदमाशी कर इस खतरनाक अपराधी को इसी तरीके से खुल्ला घुमाते रहेंगे और कभी मां की बीमारी व इलाज के बहाने, कभी फार्म हाउस की सैर तो कभी फाइव स्टार हॉस्पिटल में इलाज करवाने की छूट दी जाती रही तो वह दिन दूर नहीं कि अगस्त 2017 की तरह हिंसा दंगों की फिर से पुनरावृति हो।

उन्होंने कहा कि पंचकूला दंगों के दौरान पुलिस के आला अधिकारियों ने बार-बार मीडिया के सामने यह बात कबूली कि दंगे बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा थे, जिसकी सूत्रधार डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह के साथ साथ हनीप्रीत व डॉ आदित्य आदि भी थे और आरोप लगाया कि इस बार फिर सरकार की शह पर मेदांता अस्पताल व मानेसर फार्म हाउस में इस तरह की साजिश रचे जाने का खेल जारी है जिस पर माननीय अदालत रोक लगाए और सरकार और प्रशासन से जवाब तलबी करे।

उन्होंने कहा कि इससे पूर्व डेरा प्रमुख की बहुत सी याचिकाएं सिरसा जिला प्रशासन व रोहतक जिला प्रशासन की ओर से यह कहकर खारिज की गई कि उसके बाहर आने से लॉ एंड ऑर्डर की समस्या खड़ी हो सकती है।

उन्होंने कहा कि आज भी समस्या जस की तस है डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को किसी भी बहाने से जेल से बाहर नहीं निकाला जाना चाहिए ताकि प्रदेश का अमन-चैन फिर से खराब ना हो।

उन्होंने कहा कि माननीय अदालत डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को इलाज के बहाने मेदांता अस्पताल में रखे जाने वाले वार्ड की सीसीटीवी की मॉनिटरिंग करवाने का आदेश दे।

कर्नाटक में उद्योगपति भास्कर शेट्टी की हत्या पत्नी राजेश्वरी शेट्टी, पुत्र नवनीत शेट्टी ने करके लाश के टुकड़ें कर ज्योतिषी की मदद से, हवन कुंड में जला दिया था; कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा attacknews.in

उडुपी, 08 जून । कर्नाटक की एक स्थानीय अदालत ने 2016 के चर्चित भास्कर शेट्टी हत्याकांड के तीन आरोपियों को मंगलवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

न्यायाधीश जे ए सुब्रमण्यम ने उद्योगपति भास्कर शेट्टी की पत्नी राजेश्वरी शेट्टी, पुत्र नवनीत शेट्टी और ज्योतिषी निरंजन भट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। राघवेन्द्र को हालांकि अदालत ने बरी कर दिया है जिस पर इस मामले के साक्ष्य मिटाने के आरोप थे।

कर्नाटक के उडूपी जिले की एक अदालत ने प्रवासी भारतीय उद्योगपति भास्कर शेट्टी की 2016 में हुयी हत्या के मामले में उनकी पत्नी एवं बेटे समेत तीन मुख्य आरोपियों को दोषी करार देते हुये मंगलवार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है ।

उडूपी जिला एवं सत्र न्यायाधीश जे एन सुब्रमण्या ने शेट्टी की पत्नी राजेश्वरी शेट्टी, बेटे नवनीत शेट्टी एवं ज्योतिषी निरंजन भट को आजीवन कारावास की सजा सुनायी ।

उडूपी जिले के इंद्राली के रहने वाले प्रवासी भारतीय उद्योगपति शेट्टी (52) की 2016 में हत्या कर दी गयी थी और उनके शव को टुकड़ों में काट कर ज्योतिषी की मदद से, हवन कुंड में जला दिया गया था ।

अदालत ने मामले के एक अन्य आरोपी राघवेंद्र भट को बरी कर दिया। उस पर साक्ष्य नष्ट करने का आरोप था । निरंजन भट के पिता श्रीनिवास भट पर भी यही आरोप लगाये गये थे, और सुनवाई के दौरान उसकी मौत हो गयी ।

विशेष लोक अभियोजक शांताराम शेट्टी ने अभियोजन पक्ष की ओर से मामले की अदालत में पैरवी की । मुख्य अभियुक्त राजेश्वरी शेट्टी अभी जमानत पर बाहर है जबकि नवनीत शेट्टी एवं निरंजन भट बेंगलुरू की जेल में बंद है ।

इंद्राली स्थित शेट्टी के आवास पर 28 जुलाई 2016 को उनकी हत्या की गयी थी । उनके शव को बाद में टुकड़ों में काट कर भट के घर पर बने हवन कुंड में जला दिया गया था ।

भास्कर शेट्टी की मां ने इस मामले में 31 जुलाई को मणिपाल पुलिस थाने में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी थी।

राजस्थान सरकार ने संत आसाराम की अस्थायी जमानत मंजूर करने की मांग का विरोध किया, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली attacknews.in

नयी दिल्ली, 08 जून । उच्चतम न्यायालय ने इलाज कराने के लिए अस्थायी तौर पर सजा निलंबित करने को लेकर स्वयंभू तांत्रिक आसाराम की अपील की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी है।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन खंडपीठ ने मंगलवार को संबंधित पक्षों के वकीलों को बताया कि उन्हें राजस्थान सरकार की ओर से सुबह ही जवाब प्राप्त हुआ है, इसलिए मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित की जाती है। राजस्थान सरकार ने हालांकि आसाराम की अस्थायी जमानत मंजूर करने की मांग का विरोध किया।

इसी बीच, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को उस हलफनामे का जवाब देने की अनुमति प्रदान की।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने आसाराम को इलाज के लिए उसकी आजीवन कारावास की सजा अस्थायी तौर पर निलंबित करने की याचिका निरस्त कर दी थी, जिसे उसने शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।

आसाराम की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लुथरा ने कहा कि याचिकाकर्ता 83-84 वर्ष के वृद्ध हैं और उन्हें चिकित्सकीय सहायता की तत्काल जरूरत है। उन्हें जोधपुर के एम्स में दिया गया इलाज पर्याप्त नहीं है और उन्हें एक आयुर्वेदिक केंद्र में शिफ्ट किया जाना है। इससे पहले न्यायालय ने गत शुक्रवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था।

..थैंक यू योर ऑनर.. सीजेआई एन वी रमन के नाम छात्रा की पाती;कोरोना संकट में सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका द्वारा किये गये कार्यों की सराहना की attacknews.in

नयी दिल्ली, 08 जून । “…थैंक यू योर ऑनर.. आई फील प्राउड एंड हैप्पी..।”

केरल के त्रिशूर स्थित केंद्रीय विद्यालय की पांचवीं कक्षा की छात्रा लिडविना जोसेफ ने देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमन को एक पाती लिखकर कोरोना संकट में शीर्ष अदालत और न्यायपालिका द्वारा किये गये कार्यों की सराहना की है।

न्यायमूर्ति रमन ने इसके जवाब में समाज कल्याण के प्रति उस छात्रा की चिंता की सराहना करते हुए कहा, “मैं आपकी चहुंमुखी सफलता की कामना करता हूं और आशीर्वाद देता हूं।”

सीजेआई ने लिखा है, “मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि आप एक चौकस, जानकार और जिम्मेदार नागरिक बनेंगी और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान करेंगी।”

न्यायमूर्ति रमन ने लिडविना जोसेफ को प्रतीक के रूप में खुद की हस्तक्षारित संविधान की प्रति भी भेजी है।

उस छात्रा ने हस्तलिखित पाती में कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर से नागरिकों के दो-चार होने और उनकी मौतों पर न्यायपालिका ने प्रभावकारी तरीके से हस्तक्षेप किया।

उसने लिखा है कि न्यायपालिका ने ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर आदेश पारित किये और अनगिनत लोगों की जानें बचायीं।

शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप से कोविड-19 के कारण होने वाली मौतों में कमी लाने में मदद मिली।

छात्रा ने लिखा है, “आई थैंक यू योर ऑनर फॉर दिस, नाऊ आई फील वेरी प्राउड एंड हैप्पी…।

केरल हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा: हत्या के प्रयास के आरोपी अ भा हिन्दू परिषद के सदस्य कारा रतीश की जमानत बहाल की बहाल attacknews.in

नयी दिल्ली, 08 जून । उच्चतम न्यायालय ने दक्षिणपंथी संगठन अखिल भारतीय हिन्दू परिषद के सदस्य तथा हत्या के प्रयास के आरोपी कारा रतीश को जमानत पर रिहा करने का मंगलवार को आदेश दिया।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय के 18 मार्च 2021 के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसके तहत उसने रतीश को दी गयी जमानत निरस्त कर दी थी।

रतीश पर रितिन राजन की हत्या का प्रयास करने के लिए मार्च 2014 में मुकदमा शुरू किया गया था, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 31 अक्टूबर 2017 को रतीश को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी, जिसे उसने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने मार्च 2018 में निचली अदालत से मिली सजा पर रोक लगाते हुए उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था, साथ ही कुछ शर्तें भी लगायी थी।

रतीश एक बार फिर उस वक्त सुर्खियों में आया था जब एक फिल्म के सेट पर उग्र प्रदर्शन करने में उसका नाम भी शामिल किया गया।

उसके बाद राज्य सरकार और राजन ने जमानत निरस्त करने की अपील उच्च न्यायालय से की थी और गत 18 मार्च को उसकी जमानत निरस्त कर दी गयी थी, जिसे उसने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

शीर्ष अदालत की अवकाशकालीन खंडपीठ ने आज रतीश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत की दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया।

छठी जेपीएससीः झारखंड उच्च न्यायालय ने झारखंड लोक सेवा आयोग की मेरिट लिस्ट को किया रद्द, नई मेरिट लिस्ट जारी करने का दिया आदेश attacknews.in

रांची, 07 जून ।झारखंड उच्च न्यायालय ने छठी जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा मेरिट लिस्ट को रद्द करते हुए झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) को आठ हफ्तों के भीतर नयी मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसके द्विवेदी की अदालत में छठी जेपीएससी को लेकर 16 मामलों की सुनवाई हो रही थी। एकलपीठ सभी याचिकाओं को चार श्रेणियों में बांट कर सुनवाई कर रहा था और पिछले दिनों सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज फैसला सुनाया गया।

अधिवक्ता अतृतांश वत्स ने बताया कि अदालत में सुमित कुमार ने जेपीएससी के न्यूनतम अंक के बिन्दु पर चुनौती दी थी। उस मामले में हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए मेरिट लिस्ट को निरस्त कर दिया और जेपीएससी को 8 सप्ताह के अंदर फिर से रिजल्ट निकाल कर नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण करने का आदेश दिया। साथ ही अन्य कई याचिका दायर थी, जो बिन्दुओं को लेकर उठायी गयी थी,उसे भी निरस्त कर दिया गया।

हाईकोर्ट में रिजल्ट को लेकर कई प्रार्थियों की ओर से दायर याचिका में अलग-अलग बिन्दु उठाये गये हैं। इसमें कहा गया है कि जेपीएससी ने अंतिम रिजल्ट जारी करने में नियमों की अनदेखी की है।

क्वालिफाइंग मार्क्स में कुल प्राप्तांक को जोड़े जाने को गलत बताया। प्रार्थियों का कहना है कि छठी जेपीएससी परीक्षा के पेपर वन (हिन्दी-अंग्रेजी) के क्वालिफाइंग अंक को कुल प्राप्तांक में जोड़ दिया गया, जबकि विज्ञापन की शर्ता के अनुसार अभ्यर्थियों को पेपर वन में सिर्फ क्वालिफाइंग अंक लाना था और इसे कुल प्राप्तांक में नहीं जोड़ा जाना था। इसके अलावा आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को गलत कैडर देने के आरोप से जुड़ी याचिका भी कोर्ट में दाखिल की गयी थी। कुछ प्रार्थियों ने आरक्षण नियम के उल्लंघन का मामला भी उठाया था। पूर्व में सुनवाई के दौरान अदालत ने छठी जेपीएससी की मुख्य परीक्षा में शामिल सभी अभ्यर्थियों की उत्तरपुस्तिका को सुरक्षित रखने का आदेश दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थियों के अधिवक्ताओं ने जेपीएससी द्वारा जारी किये गये अंतिम परिणाम में कई खामियां बतायी थी, जबकि जेपीएससी के अधिवक्ता ने पूरी प्रक्रिया को नियमसंगत बताया था।
गौरतलब है कि छठी जेपीएससी परीक्षा का अंतिम रिजल्ट पिछले वर्ष अप्रैल में आया था और अधिकारियों की पोस्टिंग भी हो चुकी है।

आगामी कुछ माह में श्रम संहिताओं को लागू करने की तैयारी,कर्मचारियों के हाथ में आने वाले वेतन घटेगा, पीएफ बढ़ेगा attacknews.in

नयी दिल्ली, छह जून । आगामी कुछ माह में चारों श्रम संहिताएं लागू हो जाएंगी। केंद्र सरकार इन कानूनों के क्रियान्वयन पर आगे बढ़ने की तैयारी कर रही है। ये कानून लागू होने के बाद कर्मचारियों के हाथ में आने वाला वेतन (टेक होम) घट जाएगा, वहीं साथ ही कंपनियों की भविष्य निधि (पीएफ) की देनदारी बढ़ जाएगी।

वेतन संहिता लागू होने के बाद कर्मचारियों के मूल वेतन और भविष्य निधि की गणना के तरीके में उल्लेखनीय बदलाव आएगा।

श्रम मंत्रालय इन चार संहिताओं….औद्योगिक संबंध, वेतन, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक और स्वास्थ्य सुरक्षा तथा कार्यस्थिति को एक अप्रैल, 2021 से लागू करना चाहता था। इन चार श्रम संहिताओं से 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को सुसंगत किया जा सकेगा।

मंत्रालय ने इन चार संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप भी दे दिया था। लेकिन इनका क्रियान्वयन नहीं हो सका, क्योंकि कई राज्य अपने यहां संहिताओं के तहत इन नियमों को अधिसूचित करने की स्थिति में नहीं थे।

भारत के संविधान के तहत श्रम समवर्ती विषय है। ऐसे में इन चार संहिताओं के तहत केंद्र और राज्यों दोनों को इन नियमों को अधिसूचित करना होगा, तभी संबंधित राज्यों में ये कानून अस्तित्व में आएंगे।

एक सूत्र ने कहा, ‘‘कई प्रमुख राज्यों ने इन चार संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया है। कुछ राज्य इन कानूनों के क्रियान्वयन के लिए नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। केंद्र सरकार हमेशा इस बात का इंतजार नहीं कर सकती कि राज्य इन नियमों को अंतिम रूप दें। ऐसे में सरकार की योजना एक-दो माह में इन कानूनों के क्रियान्वयन की है क्योंकि कंपनियों और प्रतिष्ठानों को नए कानूनों से तालमेल बैठाने के लिए कुछ समय देना होगा।

सूत्र ने बताया कि कुछ राज्यों ने नियमों का मसौदा पहले ही जारी कर दिया है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, कर्नाटक और उत्तराखंड शामिल हैं।

नई वेतन संहिता के तहत भत्तों को 50 प्रतिशत पर सीमित रखा जाएगा। इसका मतलब है कि कर्मचारियों के कुल वेतन का 50 प्रतिशत मूल वेतन होगा। भविष्य निधि की गणना मूल वेतन के प्रतिशत के आधार पर की जाती है। इसमें मूल वेतन और महंगाई भत्ता शामिल रहता है।

अभी नियोक्ता वेतन को कई तरह के भत्तों में बांट देते हैं। इससे मूल वेतन कम रहता है, जिससे भविष्य निधि तथा आयकर में योगदान भी नीचे रहता है। नई वेतन संहिता में भविष्य निधि योगदान कुल वेतन के 50 प्रतिशत के हिसाब से तय किया जाएगा।

जमानत के लिए कोरोना संक्रमित की फर्जी रिपोर्ट देने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी, रिश्तेदारों, वकील, अस्पताल कर्मियों,पुलिस अधिकारी के खिलाफ दिए जांच के आदेश attacknews.in

नयी दिल्ली, चार जून । दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आपराधिक मामले में आरोपी द्वारा अंतरिम जमानत बढ़ाए जाने के लिए कोविड-19 से संक्रमित पाए जाने की फर्जी रिपोर्ट देने पर कड़ा रुख अपनाया है और आरोपी, उसके रिश्तेदारों, वकील, अस्पताल कर्मियों तथा पुलिस अधिकारी के खिलाफ न्यायिक जांच का आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि अदालत आने वाले सभी पक्षों को साफ रिकॉर्ड के साथ आना होता है खासतौर से महामारी के दौरान जब अदालतों की कोविड-19 से संक्रमित पाए जाने वाले लोगों के प्रति सहानुभूति रही है।

उन्होंने कहा कि इस सहानुभूति का फायदा उठाना और जाली रिपोर्ट पेश करना ‘‘बिल्कुल भी क्षमा योग्य नहीं’’ है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पंजीयक सतर्कता की जांच रिपोर्ट के नतीजे अत्यधिक संतोषजनक हैं। अगर ऐसे गैरकानूनी कृत्यों को माफ किया गया और अगर माफी स्वीकार कर ली गई तो आपराधिक न्याय प्रशासन गंभीर खतरे में पड़ जाएगा। अदालत का स्पष्ट रूप से मानना है कि इस मामले से संबंधित सभी लोगों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए।’’

न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में पैरवी करने वाले वकीलों की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि अदालत की मर्यादा कम न हो और फर्जी तथा जाली दस्तावेजों के आधार पर आदेश पारित करने में अदालतों को गुमराह न किया हो।’’

उच्च न्यायालय ने महापंजीयक को इस मामले को जांच के लिए संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजने का निर्देश दिया। साथ ही याचिकाकर्ता आरोपी नरेंद्र कसाना, उसके चार भतीजों, गाजियाबाद में जिला एमएमजी अस्पताल के नर्सिंग सहायक और वकील आनंद कटारिया के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।

यह मामला आरोपी नरेंद्र कसाना का है जिसे पिछले साल एक निचली अदालत से अंतरिम जमानत मिली थी। इसके बाद उसने जमानत अवधि बढ़ाए जाने का अनुरोध किया जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया। इस पर उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

उच्च न्यायालय ने कोविड-19 जांच रिपोर्ट के आधारवपर उसकी अंतरिम जमानत बढ़ा दी। रिपोर्ट में कहा गया था कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है। इसके बाद वह फरार हो गया और उच्च न्यायालय ने उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए तथा आखिरकार उसे गिरफ्तार कर लिया गया और अभी वह हिरासत में है।