झारखण्ड में महिला और उसके 3 बच्चों को जलाकर मार डालने के मामले में CID जांच के आदेश देकर हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के दिए निर्देश attacknews.in

रांची, 14 अक्टूबर । झारखंड उच्च न्यायालय ने गिरिडीह में एक महिला और उसके तीन नाबालिग बच्चों को जलाकर मार देने के मामले में बुधवार को अपराध अनुसंधान विभाग ( सीआईडी) को जांच का आदेश दिया है।

न्यायाधीश आनंद सेन की अदालत ने मामले ने मामले की सुनवाई करने के बाद यह आदेश दिया है। अदालत ने इस तरह के गंभीर मामले का अनुसंधान सही तरीके से नहीं करने के कारण मौजूदा अनुसंधानकर्ता और सुपरविजन करने वाले पुलिस पदाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है।

इससे पूर्व मृत महिला के पिता चंद्रिका यादव ने झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अनुसंधानकर्ता पुलिस पदाधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाया था कि उनकी बेटी और तीन नाबालिग बच्चों की हत्या के बाद भी आरोपियों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। इस मामले की जांच निष्पक्षता पूर्वक कराने का आदेश दिया जाए।

अदालत ने सुनवाई के दौरान केस डायरी की मांग की और गिरिडीह के पुलिस अधीक्षक से पूछा कि इस अपराध में अब तक नामित आरोपियों को क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया है। पुलिस क्यों नहीं कार्रवाई कर रही है।

पुलिस अधीक्षक ने अनुसंधान के क्रम में अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी द्वारा इकट्ठा किए गए तथ्यों को अदालत के समक्ष रखा। लेकिन, अदालत ने तथ्यों का मुख्य केस डायरी में उल्लेख नहीं किए जाने पर नाराजगी जाहिर करते हुए अनुसंधानकर्ता और सुपर विजन करने वाले पदाधिकारियों के खिलाफ अविलंब कार्रवाई करने का आदेश दिया।

वहीं, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने अदालत को आश्वस्त किया कि मामले की जांच सीआईडी से कराई जाएगी। डीजीपी के आश्वासन के बाद न्यायालय ने मामले की जांच सीआईडी से कराने का आदेश दिया।

फिल्मों में धूमधड़ाका करने वाले सुपरस्टार रजनीकांत की कोर्ट में हुई बोलती बंद; स्वयं के मेरिज हाल के लिए साढे 6 लाख रुपये की संपत्ति कर को चुनौती देने वाली याचिका खारिज attacknews.in

चेन्नई, 14 अक्टूबर ।मद्रास उच्च न्यायालय ने अभिनेता रजनीकांत की ओर से अपने मैरिज हॉल के लिए साढ़े छह लाख रूपयों की संपत्ति कर को चुनौती देने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति अनिता सुमंत ने मामले की सुनवाई के बाद अदालत का समय बर्बाद करने के लिए याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने तथा उनकी कर छूट याचिका पर विचार करने के लिए जल्दबाजी के लिए चेतावनी दी।

अभिनेता के वकील ने मामले को वापस लेने के लिए अर्जी दी थी , जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया और मामला वापस ले लिया गया। ।

रजनीकांत नें अपनी याचिका में कहा था कि वह कोडम्बकम इलाके में स्थित राघवेंद्र मैरिज हाल के संपत्ति कर का नियमित रूप से भुगतान करते रहे हैं तथा 14 फरवरी को अंतिम भुगतान किया गया था। इस बीच कोरोना महामारी के कारण केंद्र और राज्य सरकारों ने 24 मार्च से पूर्णबंदी लागू थी जिसके बाद जिसके बाद मैरिज हॉल खाली रहा और तब से किसी को किराए पर नहीं दिया गया। इसी दौरान 10 सितम्बर को ग्रेटर चेन्नई निगम से अप्रैल से सितम्बर तक की छह महीने की अवधि का साढ़े छह लाख रूपये संपत्ति का भुगतान का चालान मिला।

उन्होंने कहा कि 24 मार्च के बाद मैरिज हॉल के लिए सभी बुकिंग रद्द कर दी थी और सरकार की मंशा के अनुरूप अग्रिम राशि भी लौटा दी गयी , इसलिए वह इस संपत्ति कर छूट के पात्र हैं।

हाथरस कांड में उत्तरप्रदेश सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा:पीड़िता के परिजनों और गवाहों को दी गई  त्रिस्तरीय सुरक्षा; 15 अक्टूबर को सुनवाई attacknews.in

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर । उत्तर प्रदेश के हाथरस में कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म की शिकार युवती के परिजनों और गवाहों को त्रि-स्तरीय सुरक्षा दी गयी है, साथ ही गांव में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं।

राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर ताजा हलफनामा में कहा गया है कि पीड़ित परिवार और गवाहों को तीन स्तरीय सुरक्षा दी गई है, इसके लिए पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। साथ ही गांव की सीमा के साथ जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि पीड़िता (19)के हाथरस जिले के चंदपा में रहने वाले परिजनों को पर्याप्त सुरक्षा दी जा रही है। इन परिजनों में पीड़ता के माता-पिता के अलावा दो भाई, एक भाभी और दादी शामिल हैं।

राज्य के गृह विभाग के विशेष सचिव राजेन्द्र प्रताप सिंह की ओर से दायर हलफनामा में कहा गया है कि पीड़िता के गांव के मुहाने पर आठ सुरक्षाकर्मी तैनात किये गये हैं, जिनमें एक इंस्पेक्टर, एक हेड कांस्टेबल, चार कांस्टेबल और दो महिला कांस्टेबल शामिल हैं। इसी तरह का फॉर्मेशन पीड़िता के घर के पास किया गया है, जबकि पीड़िता के घर के प्रवेश द्वार पर चौबीसों घंटे और सातों दिन दो सबइंस्पेक्टर को ड्यूटी पर लगाया गया है। घर के बाहर 15 सुरक्षाकर्मी कैम्प लगाये हुए हैं।

हलफनामा में कहा गया है कि गवाहों के घर के बाहर पर दो पालियों में छह-छह सुरक्षाकर्मी तैनात किये गये हैं। पीड़िता के घर के आसपास आठ सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं। आसपास के इलाकों को प्रकाशमान करने के लिए 10 से 12 लाइटें लगायी गयीं हैं। ये लाइटें पहले से लगी लाइटों के अलावा हैं।

शीर्ष अदालत हाथरस मामले पर अगली सुनवाई 15 अक्तूबर यानी गुरुवार को करेगी।

गौरतलब है कि गत सुनवाई के दौरान न्यायालय ने राज्य सरकार से मुख्यतया तीन बातें पूछी थी, पहला- पीड़ित परिवार और गवाहों की सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए हैं? क्या पीड़ित परिवार के पास पैरवी के लिए कोई वकील है? और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमे की क्या स्थिति है?

हलफनामा में कहा गया है कि पीड़िता के परिजनों की ओर से सीमा कुशवाहा केस लड़ रही हैं और उन्हें सरकारी वकील भी मुहैया कराया जायेगा। साथ ही ,इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने हाथरस मामले में अगली सुनवाई दो नवम्बर तक टाल दी है।

हाथरस कांड में पुलिसकर्मियों, मेडिकल स्टाफ, सरकारी अधिकारियों के खिलाफ SC/ST कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराने के लिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर attacknews.in

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर । हाथरस में दलित लड़की से कथित बलात्कार और बाद में उसकी मृत्यु की घटना से जुड़े पुलिसकर्मियों, मेडिकल स्टाफ और दूसरे सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों से संरक्षण) कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराने के लिये उच्चतम न्यायालय में एक नयी जनहित याचिका दायर की गयी है। याचिका में सारे मामले की जांच के लिये विशेष कार्य रिपीट कार्य बल गठित करने का भी अनुरोध किया गया है।

यह जनहित याचिका महाराष्ट्र के दलित अधिकारों के कार्यकर्ता चेतन जनार्द्धन कांबले ने दायर की है। उन्होंने कहा कि उप्र सरकार द्वारा एक अन्य जनहित याचिका में दाखिल हलफनामे से ‘हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में गड़बड़ी करने और साक्ष्य नष्ट करने में शासकीय समर्थन’ के बारे में कुछ ज्वलंत तथ्य सामने आने के बाद वह यह जनहित याचिका दायर करने के लिये बाध्य हुये हैं।

याचिका में कहा गया है कि मीडिया की खबरों में जो अटकलें लगायी जा रही थी कि सरकारी अस्पतालों द्वारा तैयार मेडिकल रिपोर्ट में लीपा-पोती और आरोपी व्यक्तियों को संरक्षण देने के इरादे से पीड़ित के परिवार की आपत्तियों के बावजूद पुलिसकर्मियों द्वारा उसका रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया, अब उनका राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे और इसके साथ संलग्न दस्तावेजों से खुलासा हुआ है।

इस याचिका पर 15 अक्टूबर को सुनवाई होने की संभावना है।

अधिवक्ता विपिन नायर के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है कि, ‘‘किस तरह से सरकारी तंत्र ने आरोपियों के लिये पूरा संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये साक्ष्यों के साथ हेराफेरी की और उन्हें नष्ट करने सहित सभी तरह के प्रयासों का सहारा लिया, इसकी वजह उसे ही पता होगी।’’

याचिका के अनुसार, ‘‘तथ्यों से इस अपराध के संबंध में आरोपियों को बचाने और साक्ष्यों को नष्ट करने में उप्र पुलिस और राज्य सरकार की मशीनरी के कतिपय अधिकारियों की संलिप्तता और मिलीभगत के साफ संकेत मिलते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने हाथरस में एक दलित लड़की से कथित बलात्कार और बाद में उसकी मृत्यु की घटना को छह अक्टूबर को बेहद ‘लोमहर्षक’ और ‘हतप्रभ’ करने वाली बताते हुये कहा था कि वह इसकी सुचारू ढंग से जांच सुनिश्चित करेगा।

न्यायालय ने इसके साथ ही उप्र सरकार से आठ अक्टूबर तक हलफनामे पर यह जानना चाहा है कि घटना से संबंधित गवाहों का संरक्षण किस तरह हो रहा है

उप्र सरकार ने इस मामले में पहले दाखिल किये हलफनामे में इसकी जांच शीर्ष अदालत की निगरानी में केन्द्रीय एजेन्सी से कराने का आदेश देने का अनुरोध किया था।

केन्द्र ने इस घटना की जांच सीबीआई को सौंपने का उप्र सरकार का अनुरोध स्वीकार कर लिया था। इसके बाद सीबीआई ने नया मामला दर्ज करके अपनी जांच शुरू कर दी है।

हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से अगड़ी जाति के चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी थी।

पीड़ित की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गयी थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिये मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना था कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।

इस घटना को लेकर कई व्यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों और वकीलों ने न्यायालय में अनेक जनहित याचिकायें दायर कर इसकी निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया है। इस मामले में हस्तक्षेप के लिये भी कई आवेदन दाखिल किये गये हैं।

इस नयी याचिका में आरोप लगाया गया है कि अलीगढ़ स्थित सरकारी अस्पताल ने पीड़ित के स्वैब के नमूने नहीं लिये और न ही उसने पीड़िता के शरीर के जख्मों को देखने के बावजूद फटे हुये कपड़ों और अंत:वस्त्रों पर खून के निशान और उसके कपड़े बदले जाने के बाद ड्रापशीट को एकत्र किया । यही नहीं, अस्पताल ने इस घटना के बाद आठ दिन तक वीर्य के परीक्षण का इंतजार किया और उस समय तक कोई फारेंसिक साक्ष्य मिलने ही नहीं थे।

याचिका में कहा गया है कि इस मामले की जांच पूरी होने से पहले ही राज्य के उच्च स्तर के पुलिस अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों ने बलात्कार की संभावना से इंकार कर दिया और इस बारे में सार्वजनिक बयान भी दिये। इससे राज्य की पुलिस और आरोपियों के बीच सांठगांठ का साफ संकेत मिलता है।

याचिका में कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों ने जिस तरह रात के अंधेरे में पीड़ित के शव का अंतिम संस्कार किया उससे भी इस अपराध की जांच करने की बजाये इसे रफा दफा करने में उनकी संलिप्तता की बू आती है।

याचिका में सीबीआई और उप्र पुलिस को अलग रखते हुये इस घटना की विशेष कार्य बल से जांच कराने का निर्देश देने और पुलिस, अस्पताल के स्टाफ तथा सरकारी अधिकारियों के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

याचिका में केन्द्र और राज्य सरकार को पीड़ित और उसके रिश्तेदारों के 14 और 19 सितंबर को दर्ज बयानों की वीडियो रिकार्डिंग और सफदरजंग अस्पताल द्वारा पोस्टमार्टम के दौरान एकत्र साक्ष्यों सहित सारे साक्ष्य जमा कराने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि जमीन के भाग में बनी शाही मस्जिद को हटाने संबंधी मामले में वादकारियों से 16 अक्टूबर को साक्ष्य प्रस्तुत करने को अदालत का निर्देश attacknews.in

मथुरा 12 अक्टूबर । उत्तर प्रदेश में मथुरा की एक अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की जमीन के एक भाग में बनी शाही मस्जिद को हटाने संबंधी मामले में वादकारियों से 16 अक्टूबर को साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा है।

वादकारियों के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बताया कि जिला न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने उनसे निचली अदालत में प्रस्तुत किये गए साक्ष्य आदि को 16 अक्टूबर को प्रस्तुत करने को कहा है।

वादी रंजना अग्निहोत्री एवं अन्य के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बताया कि कोड आफ सिविल प्रोसीजर 1908 की धारा 96 के अन्तर्गत दायर अपील में कहा गया है कि निचली अदालत द्वारा दिया गया निर्णय त्रुटिपूर्ण, कानून एवं तथ्यों के विपरीत है। निर्णय भारतीय संविधान की आर्टिकल 25 में दिए ’’राइट टु रिलीजन’’ के विपरीत इसलिए है कि निचली अदालत ने कहा है कि हर भक्त को इस प्रकार का वाद दायर करने की इजाजत नही दी जा सकती।

अपील में 20 जुलाई 1973, 7 नवम्बर 1974 के निर्णय और सिविल जज द्वारा सिविल सूट नम्बर 43 सन 1967 पारित किये गए निर्णय को वादकारियों के पक्ष में निरस्त करने , वादकारियों पर लागू न होने, वादकारियों के पक्ष में मैन्डेटरी इन्जंक्शन देने, उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ के चेयरमैन, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी आफ मैनेजमेन्ट ट्रस्ट को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के एक भाग में बने निर्माण को हटाने व भूभाग को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को वापस करने, इस भू भाग पर सुन्नी वक्फ बोर्ड, शाही मस्जिद ईदगाह के अधिकारियों , कर्मचारियों, समर्थकों और उनके निर्देश पर काम करनेवाले हर व्यक्ति के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की गई है।

आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट जजों के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट की सीबीआई जांच के आदेश, CID ने नेताओं समेत 49 के खिलाफ दर्ज किया था मामला attacknews.in

विजयवाड़ा ,12 अक्टूबर । आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कुछ लोगों की न्यायाधीशों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियों को सोशल मीडिया में पोस्ट करने के मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) काे सोमवार को जांच करने का आदेश दिया।

उच्च न्यायालय राज्य पुलिस की अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) की जांच से संतुष्ट नहीं थे।

न्यायालय ने सीबीआई को जल्द इस मामले को अपने हाथों में लेने तथा आठ माह में अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

न्यायालय के तत्कालीन रजिस्ट्रार जनरल बी राजशेखर ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के खिलाफ 28 मई को पुलिस को एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। उच्च न्यायालय ने पुलिस से सवाल किया कि केवल नौ आरोपियों के खिलाफ ही मामले क्यों दर्ज किए गए।

न्यायालय ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान की जाँच के लिए पुलिस को कड़े कदम उठाने चाहिए।

सरकारी अधिवक्ता जनरल एस श्रीराम ने अदालत से कहा कि उन्हें सीबीआई को जांच सौंपने में कोई आपत्ति नहीं है।

न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक पोस्ट करने के लिए सीआईडी की साइबर क्राइम सेल ने 49 लोगों के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 6 के तहत तथा अन्य धाराओं के तहत मंगलागिरी थाना में एक मामला दर्ज कराया जिसमें कुछ सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के नाम भी शामिल थे।

अर्नब गोस्वामी ने परमबीर सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी याचिका,मुंबई पुलिस के समक्ष उपस्थित नहीं हुए रिपब्लिक टीवी के सीएफओ attacknews.in

मुंबई 10 अक्टूबर । रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) शिवा सुब्रमणियम सुंदरम ने टेलीविन रेटिंग प्वाइंट्स (टीआरपी) घोटाले की जांच के संदर्भ में शनिवार को मुंबई पुलिस के समक्ष यह कहते हुए उपस्थित नहीं हुए कि संबंधित मामले में उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की गयी और इस पर सुनवाई अभी लंबित है।

इससे पहले मुंबई पुलिस ने टीआरपी मामले में पूछताछ के लिए सुंदरम को समन जारी कर उपस्थित होने के निर्देश दिये थे।

अर्नब गोस्वामी ने मुंबई पुलिस प्रमुख के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी दी

इससे पहले 08 अक्टूबर को रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी ने कम से कम तीन टीवी चैनलों के टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स) आंकडों में हेरफेर करने के एक बड़े फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करने के मुंबई पुलिस के गुरूवार के दावे पर पलटवार करते कहा कि चैनल ने महाराष्ट्र में इससे पहले जो मामले उठाए हैं, उसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने चैनल को निशाने पर लिया है।

मुंबई पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा करने की धमकी देते हुए श्री गोस्वामी ने पुलिस प्रमुख पर रिपब्लिक टीवी के खिलाफ ‘झूठे आरोप’ लगाने की बात कही क्योंकि चैनल ने सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच में उनसे सवाल किए थे।

तीन चैनलों के टीआरपी डेटा में फर्जीवाड़ा, दो गिरफ्तार

इस घटनाक्रम में मुंबई पुलिस ने कम से कम तीन टीवी चैनलों टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स (टीआरपी) डेटा में हेरफेर करने के फर्जीवाड़े का गुरुवार को भंडाफोड़ किया और इस सिलसिले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है।

पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह ने मुंबई में यहां प्रेस कांफ्रेंस में यह जानकारी दी थी । उन्होंने बताया कि टीआरपी के कथित फर्जीबाड़े में शामिल टेलीविजन चैनलों में रिपब्लिक टीवी , फक्त मराठी और बॉक्स सिनेमा शामिल हैं। अपराध शाखा की ओर से हाल में दर्ज शिकायत के बाद इन चैनलों के खिलाफ यह कार्रवाई की गयी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला: सार्वजनिक स्थलों पर विरोध प्रदर्शन के लिये अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग मामले में हुआ attacknews.in

नयी दिल्ली, 07 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने शाहीन बाग प्रदर्शन मामले में बुधवार को कहा कि धरना और प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर अनिश्चित काल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे, रास्ते को प्रदर्शनकारियों ने ब्लॉक किया था, जो गलत है क्योंकि कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों एवम् सड़कों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्ज़ा नही किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि सड़क पर आवागमन का अधिकार अनिश्चित काल तक रोका नहीं जा सकता। न्यायालय ने कहा कि केवल निर्दिष्ट क्षेत्रों में ही विरोध प्रदर्शन किया जाना चाहिए।

खंडपीठ ने कहा, ” सार्वजनिक बैठकों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन उन्हें निर्दिष्ट क्षेत्रों में होना चाहिए। संविधान विरोध प्रदर्शन का अधिकार देता है लेकिन इसे समान कर्तव्यों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।”

न्यायालय ने इस मामले में मध्यस्थता के प्रयास विफल होने का भी जिक्र किया। खंडपीठ ने कहा, शाहीन बाग में मध्यस्थता के प्रयास सफल नहीं हुए, लेकिन हमें कोई पछतावा नहीं है।”

खंडपीठ ने ऐसे मामलों में निर्णय लेने में सरकार को इंतजार ना करने और न्यायालय के कंधे पर बंदूक ना रखने की भी नसीहत दी।

सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिये कब्जा स्वीकार्य नहीं:

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के लिये शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिये कब्जा स्वीकार्य नहीं है। शाहीन बाग में पिछले साल दिसंबर में संशोधित नागरिकता कानून को लेकर शुरू हुआ धरना प्रदर्शन काफी लंबा चला था।

न्यायालय ने कहा कि धरना प्रदर्शन एक निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए और विरोध प्रदर्शन के लिये सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर कब्जा करके बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा में डालने या उनके अधिकारों का हनन करने की कानून के तहत इजाजत नहीं है।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार और दूसरे लोगों के आने-जाने के अधिकार जैसे अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘लोकतंत्र और असहमति एक साथ चलते हैं।’’

पीठ ने कहा कि इसका तात्पर्य यह है कि आन्दोलन करने वाले लोगों को विरोध के लिये ऐसे तरीके अपनाने चाहिए जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनाये जाते थे।

पीठ ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर विरोध प्रदर्शन के लिये अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग मामले में हुआ।

न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पिछले साल दिसंबर से शाहीन बाग की सड़क को आन्दोलनकारियों द्वारा अवरूद्ध किये जाने को लेकर दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से फैसला सुनाते हुये पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस जैसे प्राधिकारियों को शाहीन बाग इलाके को प्रदर्शनकारियों से खाली कराने के लिये कार्रवाई करनी चाहिए थी।

न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारियों को खुद ही कार्रवाई करनी होगी और वे ऐसी स्थिति से निबटने के लिये अदालतों के पीछे पनाह नहीं ले सकते।

शाहीन बाग की सड़क से अवरोध हटाने और यातायात सुचारू करने के लिये अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका दायर की थी।

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 21 सितंबर को सुनवाई पूरी की थी। न्यायालय ने उस समय टिप्पणी की थी कि विरोध के अधिकार के लिये कोई एक समान नीति नहीं हो सकती है।

साहनी ने कालिन्दी कुंज-शाहीन बाग खंड पर यातायात सुगम बनाने का दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने स्थानीय प्राधिकारियों को कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुये इस स्थिति से निबटने का निर्देश दिया था।

इसके बाद, साहनी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। साहनी ने कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुये इस तरह के विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘इसे 100 दिन से भी ज्यादा दिन तक चलने दिया गया और लोगों को इससे बहुत तकलीफें हुयीं। इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए। हरियाणा में कल चक्का जाम था। उन्होंने 24-25 सितंबर को भारत बंद का भी आह्वाहन किया था।’’ भाजपा के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने अलग से अपनी याचिका दायर की थी, जिसमें प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग से हटाने का अनुरोध किया गया था।

हालांकि, कोविड-19 महामारी की आशंका और इस वजह से निर्धारित मानदंडों के पालन के दौरान शाहीन बाग क्षेत्र को खाली कराया गया और तब स्थिति सामान्य हुयी थी।

राजस्थान के अलवर में पति के सामने सामूहिक बलात्कार का शिकार पत्नी के बलात्कारियों को अदालत ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा attacknews.in

अलवर 06 अक्टूबर । राजस्थान के अलवर जिले में बहुचर्चित थानागाजी सामूहिक दुष्कर्म मामले में अदालत ने आज चार दोषियों को आजीवन कारावास तथा एक दोषी को पांच वर्ष की सजा सुनाई।

विशिष्ठ न्यायाधीश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण प्रकरण बृजेश कुमार की अदालत ने यह सजा इस मामले के दोषी इंद्रराज, हंसराज, अशोक एवं छोटेलाल को सुनाई। हंसराज को अंतिम सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई हैं। चारों दोषियों पर जुर्माना भी लगाया गया हैं।

इस मामले के अन्य दोषी मुकेश को आईटी एक्ट के तहत पांच वर्ष की सजा सुनाई गई तथा पचास हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। दोषियों पर लगाया गया जुर्माना पीड़िता को मिलेगा।

इससे पहले न्यायालय ने आज ही इन पांचों आरोपियों को दोषी करार दिया था। इस मामले में आरोपियों को जाति सूचक आरोप से मुक्त कर दिया गया। इस मामले में सुनवाई पूरी करने के बाद अदालत ने मंगलवार को फैसला सुनाए जाने की तारीख तय की थी।

इस मामले में इन पांच आरोपियों के अलावा एक बाल अपचारी भी आरोपी है, जिस पर किशोर न्याय बोर्ड में सुनवाई चल रही है।

उल्लेखनीय है कि 26 अप्रैल 2019 को थानागाजी के एक दंपति मोटरसाइकिल पर पर जा रहे थे कि इन लोगों ने उनका पीछा करके उन्हें रोक लिया। इसके बाद वे उन्हें जबरन जंगल में ले गए जहां महिला के साथ पति के सामने सामूहिक दुष्कर्म किया। आरोपियों ने इसका वीडियो भी बनाया। वीडियों वायरल होने के बाद मामला सामने आया और इसमें दो मई को एफआईआर दर्ज हुई।

सुदर्शन चैनल के “बिंदास बोल”कार्यक्रम में ” यूपीएससी जेहाद” के अगले एपिसोड प्रसारण के लिए एक और नोटिस जारी किए जाने के केंद्र के अनुरोध पर सुनवाई 26 अक्टूबर तक टली attacknews.in

नयी दिल्ली, 05 अक्टूबर । सुदर्शन न्यूज चैनल के ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम मामले में केंद्र सरकार के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय में सोमवार को सुनवाई टाल दी गयी। अब इस मामले में 26 अक्टूबर को सुनवाई होगी।

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि केंद्र सरकार की अंतर मंत्रालयी समिति ने ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम के आगे के एपिसोड के प्रसारण पर सलाह देते हुए अपनी सिफारिशें दी हैं। सुदर्शन न्यूज टीवी को समिति की सिफारिशों पर जवाब का अवसर दिया जाना चाहिए।

श्री मेहता ने कहा कि इस मामले में सुदर्शन न्यूज चैनल को एक और नोटिस जारी करने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया कि हालिया घटनाक्रमों और केंद्र सरकार के कदम को ध्यान में रखते हुए फिलहाल सुनवाई स्थगित कर दी जाये। इसके बाद खंडपीठ ने 26अक्टूबर तक मामले की सुनवाई टाल दी।

सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ के आगे के एपिसोड के प्रसारण पर 15 सितंबर को रोक लगा दी गई थी।

गौरतलब है कि सुदर्शन न्‍यूज ने इस शो में ‘सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों की घुसपैठ की साजिश’ के बड़े एक्‍सपोज का दावा किया था।

” ब्याज पर ब्याज ” पर रोक लगाई ,केंद्र सरकार के नये हलफनामे की प्रस्तुति के कारण ऋण मोरेटोरियम मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 13 अक्टूबर तक टली attacknews.in

नयी दिल्ली, 05 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने लॉकडाउन के मद्देनजर बैंक ऋण मोरेटोरियम मामले में केंद्र की ओर से अस्पष्ट हलफनामे के मद्देनजर एक सप्ताह के भीतर नया हलफनामा दायर करने का केंद्र सरकार तथा अन्य को सोमवार को निर्देश दिया और सुनवाई 13 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि ‘ब्याज पर ब्याज’ माफी को लेकर केंद्र द्वारा दाखिल किया गया हलफनामा संतोषजनक नहीं है।

खंडपीठ ने केंद्र सरकार और आरबीआई के अलावा इंडियन बैंक एसोसिएशन तथा निजी बैंकों को नया हलफनामा दायर करके संबंधित मामले में नीतिगत निर्णय, अंतिम अवधि, इससे जुड़े सर्कुलर आदि को स्पष्ट करने को कहा है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से खंडपीठ के समक्ष. यह दलील दी गयी कि केंद्र की ओर से दो अक्टूबर को दायर शपथपत्र में कई मुद्दों पर चुप्पी साधी गयी है। खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील का संज्ञान लिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव दत्ता ने कहा कि हलफनामा में दो करोड़ रुपये तक के ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज को माफ करने का सरकार ने जिक्र तो किया है, लेकिन इससे संबंधित किसी भी नीतिगत फैसले को रिकॉर्ड में अभी नहीं लाया गया है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने दो करोड़ रुपये तक के लोन पर ‘ब्याज पर ब्याज’ माफ करने को कहा था। इसका बोझ खुद केंद्र सरकार उठाएगी, जो अनुमानित तौर पर 5,000 से 7,000 करोड़ रुपये होगा।

इससे पहले सुनवाई के दौरान सरकार से कहा गया कि वह रियल एस्टेट और बिजली उत्पादकों को भी इसके दायरे में लायें। न्यायमूर्ति भूषण ने सरकार से कहा कि फैसले के ऐलान के बाद केंद्र या आरबीआई की तरफ से ‘कोई परिणामी आदेश या सकुर्लर’ नहीं जारी किया गया।

केंद्र सरकार ने गत शुक्रवार को शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर करके बताया था कि वह छोटे कारोबार, शिक्षा, हाउसिंग और क्रेडिट कार्ड समेत कुछ ऋणों के लिए मोरेटोरियम की अविध के दौरान लगने वाले चक्रवृद्धि ब्याज को माफ करेगी।

सुप्रीम कोर्ट का 31 मार्च 2021 तक एयर टिकटों के रिफंड का आदेश,DGCA की सिफारिशों को दी मंजूरी, एजेंट के माध्यम से खरीदें टिकटों का रिफंड एजेंट को ही मिलेगा attacknews.in

नयी दिल्ली, 01 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने लॉकडाउन के दौरान रद्द किये गये उनके एयर टिकट के रिफंड को लेकर नागरिक विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की नई सिफारिशों को गुरुवार को मंजूर कर लिया, साथ ही विमानन कंपनियों को 31 मार्च 2021 तक उन यात्रियों के रद्द टिकटों की राशि लौटाने का समय दिया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने प्रवासी लीगल सेल की याचिका का निपटारा करते हुए रिफंड को लेकर डीजीसीए की सभी सिफारिशें मान ली।

खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि जो टिकट एजेंट के माध्यम से खरीदे गए हैं उनके रिफंड एजेंट को किए जाएंगे ना कि विमान यात्रियों को।

शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह याचिका की सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था।
न्यायालय ने कहा कि सभी निजी विमानन कंपनियां डीजीसीए की सिफारिशों पर अमल करने के लिए बाध्य हैं।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस का 28 साल पुराने मामले का सीबीआई अदालत बुधवार को सुनायेगी फैसला,उमा भारती ने फांसी तक की सजा मंजूर करने की बात कही attacknews.in

लखनऊ 29 सितम्बर ।अयोध्या में बाबरी विध्वंस के करीब 28 साल पुराने मामले में सीबीआई की विशेष अदालत बुधवार को ऐतिहासिक फैसला सुनायेगी।

वर्ष 1992 में विवादित ढांचे के विध्वंस के मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, साध्वी ऋतंबरा,विनय कटियार,राम विलास वेंदाती के अलावा श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास समेत सभी 32 आरोपियों के बयान 31 अगस्त तक दर्ज किये जा चुके हैं। सभी आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताते हुये साजिश के तहत फंसाने की दलील दी है।

विशेष अदालत के न्यायाधीश एस के यादव इस मामले में फैसला सुनायेंगे। फैसले से पहले मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता उमाभारती और पूर्व सांसद डा रामविलास दास वेदांती ने कहा है कि अदालत अगर उम्रकैद या फांसी की सजा देती है तो उन्हें सहर्ष मंजूर होगी।

अदालत ने फैसले के समय सभी आरोपियों को उपस्थित रहने को कहा है हालांकि कोरोना संक्रमण से जूझ रही सुश्री उमा भारती इस मामले में सीबीआई अदालत के फैसले के समय मौजूद नहीं होंगी। उन्होने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिख कर कहा है “30 सितंबर को सीबीआई की विशेष अदालत मे मुझे फैसला सुनने के लिए पेश होना है। मैं कानून को वेद, अदालत को मंदिर और जज को भगवान मानती हूं, इसलिए अदालत का हर फैसला मेरे लिए भगवान का आशीर्वाद होगा।”

उन्होंने लिखा “ मैं नहीं जानती फैसला क्या होगा मगर मैं जमानत नहीं लूंगी। जमानत लेने से आंदोलन मे भागीदारी की गरिमा कलंकित होगी. ऐसे हालातों में आप नई टीम में रख पाते हैं कि नहीं इस पर विचार कर लीजिए। यह मैं आपके विवेक पर छोड़ती हूं। मैं हमेशा कहती आयी हूं कि अयोध्या के लिए मुझे फांसी भी मंजूर है।”

उधर डा वेंदाती ने कहा कि वर्ष 1968 में अयोध्या आने के बाद उन्होने विवादित परिसर में किसी को नमाज पढ़ते नहीं देखा। अदालत उन्हें उम्रकैद या फांसी की सजा देता है तो इससे बड़ा बड़ा सौभाग्य नहीं होगा।

गौरतलब है कि छह दिसंबर 1992 में राम जन्मभूमि परिसर में स्थित विवादित ढांचे को लाखों कारसेवकों ने ढहा दिया था। मंदिर निर्माण के लिए लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। बाबरी विध्वंस मामले को लेकर मुस्लिम पक्षकारों ने ढांचा गिराए जाने को लेकर याचिका दाखिल की।

इस आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले लोगों को आरोपी बनाया गया। लंबे समय तब चली सुनवाई के बाद यह मामला को सीबीआई की अदालत में पहुंचा। मामले में 13 लोगों को मुख्य आरोपी मानते हुए अंतिम सुनवाई के बाद 30 सितंबर को सीबीआई कोर्ट फैसला सुनाने जा रही है।

बाबरी विध्वंस का फैसला आने से पहले यूपी में हाई अलर्ट

छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराये जाने के मामले का कल बुधवार को जटिल फैसला आने से पहले अयोध्या समेत समूचे उत्तर प्रदेश में हाई अलर्ट कर दिया गया है।

सीबीआई के विशेष अदालत के न्यायाधीश एस के यादव 32 आरोपियाें के समक्ष सुबह दस बजे फैसला सुनायेंगे हालांकि कई आरोपी वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये अदालत में अपनी उपस्थिति दर्ज करायेंगे लेकिन इनमें से कुछ निजी तौर पर अदालत में मौजूद होंगे।

बाबरी मस्जिद विध्वंस संबंधी फैसले को लेकर तमिलनाडु में सुरक्षा कड़ी

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लखनऊ में
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबाीआई) की विशेष अदालत की ओर से मंगलवार को आने वाले फैसले के मद्देनजर तमिलनाडु में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।

त्रिपुरा में कोरोना महामारी के फैलते संक्रमण पर स्वयं संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को केंद्रीय टीम की सिफारिशों पर रिपोर्ट पेश करने के दिए निर्देश attacknews.in

अगरतला 29 सितंबर ।त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की स्थिति से निबटने के लिए केंद्रीय विशेषज्ञ टीम की सलाह के बाद किए गए उपायों के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने मिडिया रिपोर्ट्स के आधार पर राज्य में कोरोना के अचानक बढ़ते मामले और अस्पतालों के गहन चिकित्सा कक्ष में कथित तौर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने के कारण कोरोना मरीजों की मौत के मामले में स्वयं संज्ञान लिया था। इस पर सुनवाई में न्यायालय ने राज्य सरकार से केंद्रीय विशेषज्ञ टीम की सलाह के बाद किए गए उपायों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश अकिल कुरैशी और न्यायमूर्ति शुभाशीष तलपत्रा की खंडपीठ ने अगली सुनवाई के लिए पांच अक्टूबर की तारीख तय की है।

महाधिवक्ता अरुण कांति भौमिक ने मिडिया को बताया कि राज्य सरकार केंद्रीय मेडिकल टीम की सिफारिशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में कोर्ट में एक हलफनामा प्रस्तुत करेगी और प्राधिकारियों द्वारा कोरोना के प्रबंधन में सुधार के लिए उठाए गए कदमों के बारे में न्यायालय को बताएगी।

उल्लेखनीय है कि त्रिपुरा में कोरोना वायरस के प्रसार के कारण राज्य में संक्रमितों और मृतकों की संख्या तेजी से बढ़ने से सभी की चिंता बढ़ा दी है। कोविड अस्पतालों में कुप्रबंधन के आरोपों की रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने विशेषज्ञों की एक टीम को त्रिपुरा भी भेजा है।

त्रिपुरा में कोरोना से अबतक 25 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो गए हैं जबकि मृतकों की संख्या में भी वृद्धि हुई है और यह 274 हो गई है।

29 श्रम कानूनों को 4 संहिताओं में संसद ने किया पारित, इन संहिताओं में कौन कौन से हैं कानून और किये गये नये बदलावों के बारे में पढिए attacknews.in

नयी दिल्ली, 23 सितंबर ।संसद ने बुधवार को तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिनके तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को हटाने की अनुमति होगी।

राज्यसभा ने बुधवार को उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया।

इस दौरान आठ विपक्षी सांसदों के निलंबन के विरोध में कांग्रेस सहित विपक्ष के ज्यादातर सदस्यों ने सदन की कार्रवाई का बहिष्कार किया।

लोकसभा ने इन तीनों संहितों को मंगलवार को पारित किया था और अब इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने तीनों श्रम सुधार विधेयकों पर एक साथ हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा, ‘‘श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है।’’

उन्होंने यह भी बताया कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है।

गंगवार ने कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए, क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं।

उन्होंने सदन को बताया कि इस सीमा को बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ताओं को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा।

उन्होंने कहा कि ये विधेयक कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेंगे और भविष्य निधि संगठन तथा कर्मचारी राज्य निगम के दायरे में विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे।

सरकार ने 29 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में मिला दिया था और उनमें से एक संहिता (मजदूरी संहिता विधेयक, 2019) पहले ही पारित हो चुकी है।

चर्चा की शुरूआत करते हुए भाजपा के विवेक ठाकुर ने कहा कि स्थायी संसदीय समिति ने इन तीनों विधेयकों पर विस्तृत चर्चा की। बाद में श्रम मंत्रालय ने भी विभिन्न पक्षों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि एक बड़ा तबका इन विधेयकों के दायरे में आएगा। उद्योगों में श्रम की अहम भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे प्रगतिशील श्रम सुधार बताया।

ठाकुर ने कहा कि श्रमिक देश की आत्मा हैं और उनके योगदान के बिना उद्योग की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ये विधेयक लाए गए हैं। इसके प्रावधानों से कारोबार करने में आसानी होगी।

जद (यू) के आरसीपी सिंह ने तीनों विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक कदम है जिसमें 25 कानूनों को एक संहिता में समाहित किया गया है। उन्होंने कहा कि पहले सबकी अलग अलग परिभाषा, अलग प्राधिकार आदि होते थे लेकिन अब सबको समाहित किया जाएगा जिससे अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

भाजपा के राकेश सिन्हा ने भी इन विधेयकों को ऐतिहासिक बताया और कहा कि इससे सामाजिक समावेशीकरण को बढ़ावा मिलेगा और लैंगिक भेदभाव समाप्त होगा।

सिन्हा ने कहा कि कुल श्रमिकों में महिलाएं की भी खासी संख्या है अब उन्हें भी समान अधिकार, समान अवसर, समान पारिश्रमिक मिलेगा जिससे महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद मजछूरों को अब न्याय मिल रहा है जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि इन विधेयकों के प्रावधानों के तहत श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी, समय से मजदूरी की गारंटी होगी। इन विधेयकों के तहत श्रमिकों को वेतन, सामाजिक व स्वास्थ्य सुरक्षा मिल सकेगी। इसके अलावा महिलाओं और पुरुषों के बीच के भेद खत्म होगा और उन्हें समान वेतन मिल सकेगा।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने इन विधेयकों को क्रांतिकारी बताते हुए कहा कि इनसे श्रमिकों को न्याय मिल सकेगा जो अब तक उन्हें नहीं मिल सका है।

आठवले ने सुझाव दिया कि नियमित प्रकृति वाले काम में ठेके पर कर्मचारी नहीं रखे जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने भी इस संबंध में फैसला किया है। उन्होंने कहा कि ठेका पद्धति को समाप्त करने के लिए कानून लाना चाहिए।

चर्चा में बीजद के सुभाष चंद्र सिंह, अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम, तेदपा के के रवींद्र कुमार आदि ने भी भाग लिया और श्रमिकों के कल्याण की जरूरत पर बल दिया।

संसद द्वारा तीन ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाली श्रम संहिताओं को पारित किया गया

● इन श्रम संहिताओं में श्रम कल्याण उपबंधों से संबंधित कई ‘महत्वपूर्ण परिवर्तन‘ किए गए

● नई श्रम संहिताओं में 50 करोड़ से अधिक संगठित, असंगठित तथा स्व-नियोजित कामगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा आदि का प्रावधान किया गया

● ईएसआईसी और ईपीएफओ के सामाजिक सुरक्षा आवरण को और व्यापक बनाकर सभी कामगारों और स्व-नियोजित व्यक्तियों के लिए उपलब्ध कराया गया

● गिग तथा प्लेटफार्म कामगारों के साथ-साथ 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए “सामाजिक सुरक्षा निधि” की स्थापना से सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज को और व्यापक बनाने में सहायता मिलेगी

महिला कामगारों को पुरुष कामगारों की तुलना में वेतन की समानता

नियतकालिक कर्मचारी की सेवा शर्तें, उपदान, अवकाश और सामाजिक सुरक्षा नियमित कर्मचारी की तरह ही होंगी

दुर्घटना की स्थिति में जुर्माने का 50 प्रतिशत भाग कामगार को अन्य बकायों के साथ दिया जाएगा

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा संबंधी माहौल उपलब्ध कराने के लिए “राष्ट्रीय व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बोर्ड” की स्थापना की जाएगी

श्रमजीवी पत्रकारों की परिभाषा में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को शामिल किया जाएगा

गिग तथा प्लेटफार्म कामगारों के साथ-साथ बागान कामगार भी ईएसआईसी के लाभ प्राप्त करेंगे

● पूर्व में ठेकेदारों द्वारा नियुक्त किए गए कामगारों के बजाय अब सभी प्रवासी कामगारों को शामिल किया जाएगा

बेहतर लक्ष्य निर्धारण, स्किल मैपिंग और कामगारों द्वारा सरकारी योजनाओं के उपयोग में सहायता के लिए कानून के माध्यम से प्रवासी कामगारों पर डेटाबेस

प्रवासी कामगारों को वर्ष में एक बार अपने गृह नगर की यात्रा के लिए ‎नियोक्ता से यात्रा भत्ता प्राप्त होगा

प्रवासी कामगारों की शिकायतों का समाधान करने के लिए हेल्प लाइन की शुरुआत

इन संहिताओं से उत्पादकता में वृद्धि लाने तथा रोजगार के और अधिक अवसरों का सृजन करने के लिए सामंजस्य युक्त औद्योगिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा

इन श्रम संहिताओं से सभी संहिताओं के लिए एक पंजीकरण, एक लाइसेंस और एक विवरणी के प्रावधान से एक पारद‎र्शी, जवाबदेह और सरल कार्यतंत्र की स्थापना होगी

निरीक्षक को अब निरीक्षक-सह-सु‎विधा प्रदाता बनाया गया है तथा इंस्पेक्टर राज समाप्त करने के लिए यादृच्छिक (रैंडम) रूप से वेब आधारित निरीक्षण प्रणाली लागू करना

1.श्रम और रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), संतोष गंगवार ने कल लोक सभा में बहस का जवाब देते हुए कहा था कि देश में ऐतिहासिक श्रम सुधारों के लिए सदन में प्रस्तुत किए गए तीनों विधेयक देश के 50 करोड़ से अधिक संगठित और असंगठित कामगारों के लिए श्रम कल्याण सुधारों में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाले (गेम चेन्जर) साबित होंगे। इससे गिग और प्लेटफॉर्म कामगारों के साथ-साथ स्व-नियोजन क्षेत्र के कामगारों की सामाजिक सुरक्षा के लिए द्वार भी खुलेंगे।

2. संसद में पारित 3 विधेयक हैं: (i) औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (ii) व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता, 2020 तथा (iii) सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 । ये विधेयक देश में अति आवश्यक श्रम कल्याण सुधार लाने की सरकार की चाहत का भाग हैं जो पिछले 73 वर्षों में नहीं किए गए हैं। पिछले 6 वर्षों में, सभी हितधारकों अर्थात ट्रेड यूनियनों, नियोजकों, राज्य सरकारों और श्रम क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ अनेक बहु-हितधारक परामर्श किए गए थे। इनमें 9 त्रिपक्षीय परामर्श, उप-समिति की चार बैठकें, 10 क्षेत्रीय सम्मेलन, 10 अंतर-मंत्रालयी परामर्श तथा नागरिकों के मत भी शामिल हैं।

3. श्री गंगवार ने कहा कि दूरदर्शी प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में इस सरकार ने 2014 से बाबा साहेब अम्बेडकर के सपनों को पूरा करने के लिए अनेक कदम उठाएं हैं तथा ‘श्रमेव जयते’ तथा ‘सत्यमेव जयते’ दोनों को समान महत्व दिया। सरकार कामगारों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं से दु:खी है और इस कोविड-19 महामारी के दौरान सहित पिछले 6 वर्षों से मेरा मंत्रालय संगठित और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी उपायों का प्रावधान करने के लिए अथक रूप से कार्य कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हमारे यशस्वी प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा अभूतपूर्व कदम उठाए गए तथा हमारी बहनों के लिए प्रसूति अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने, प्रधान मंत्री प्रोत्साहन रोजगार योजना के अंतर्गत महिलाओं को खानों में कार्य करने की अनुमति देने जैसे बहुत से कल्याण उपाय प्रारम्भ किए। औपचारिक नियोजन से ईपीएफओ की सुवाह्यता (पोर्टेबिलिटी) में वृद्धि हुई है तथा हमारे साथी नागरिकों के लिए कल्याण योजनाओं तथा ईएसआईसी सुविधाओं का विस्तार होगा।

4. मंत्री ने लोक सभा के सदस्यों द्वारा उठाए गए मुद्दों का जवाब देते हुए, कहा कि विधेयकों में श्रमिक हित को सर्वोपरि मानते हुए देश के समग्र विकास को ध्यान में रखा गया है। उन्होंने कहा कि ये वे लोग हैं जो अधिक श्रम कानूनों के कारण प्रक्रियात्मक जटिलताओं से सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं तथा इस वजह से विभिन्न कल्याणकारी और सुरक्षा प्रावधानों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हुई।

उन्होंने आगे कहा कि 29 श्रम कानूनों को सरल, समझने में आसान तथा पारदर्शी 4 श्रम संहिताओं में सम्मिलित किया जा रहा है। 4 श्रम संहिताओं में से, मजदूरी संबंधी संहिता संसद में पहले ही पारित की जा चुकी है तथा इस देश का कानून बन चुकी है। सभी श्रम कानूनों (कुल 29) को 4 श्रम संहिताओं में आमेलित किया जा रहा है जो निम्नानुसार हैं:

A-संहिता का नाम, B-आमेलित कानूनों की संख्या और नाम

1-मजदूरी संहिता

4 कानून-

(i) मजदूरी संदाय अधिनियम, 1936

(ii) न्यूनतम मजदूरी अ‎धिनियम,1948

(iii) बोनस संदाय अधिनियम, 1965

(iv) समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976

2-औद्योगिक संबंध संहिता

3 कानून –

(i) ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926

(ii)औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अ‎धिनियम, 1946

(iii)औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947

3-ओएसएच संहिता

13 कानून –

(i) कारखाना अधिनियम, 1948

(ii)बागान श्रमिक अ‎धिनियम, 1951

(iii)खान अधिनियम, 1952

(iv)श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार-पत्र कर्मचारी (सेवा-शर्तें) एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1955

(v) श्रमजीवी पत्रकार (वेतन की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958

(vi) मोटर परिवहन कामगार अधिनियम, 1961

(vii)बीड़ी एवं सिगार कामगार (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966

(viii)ठेका श्रम (विनियमन एवं उत्सादन) अधिनियम, 1970

(ix)विक्रय संवर्धन कर्मचारी (सेवा-शर्तें) अधिनियम,1976

(x) अंतर-राज्यिक प्रवासी कामगार (रोजगार का विनियमन एवं सेवा-शर्तें) अधिनियम, 1979

(xi) सिने कामगार तथा सिनेमा थियेटर कामगार (रोजगार का विनियमन) अधिनियम, 1981

(xii) गोदी कामगार (सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कल्याण) अधिनियम, 1986

(xiii)भवन एवं अन्य सन्निर्माण कामगार (रोजगार का विनियमन एवं सेवा-शर्तें) अधिनियम, 1996

4-सामाजिक सुरक्षा संहिता

9 कानून –

(i) कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923

(ii)कर्मचारी राज्य बीमा अ‎धिनियम, 1948

(iii)कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952

(iv)रोजगार कार्यालय (रिक्तियों की अनिवार्य अधिसूचना) अधिनियम, 1959

(v) प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961

(vi) उपदान संदाय अधिनियम, 1972

(vii)सिने कामगार कल्याण निधि अधिनियम, 1981

(viii) भवन एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण उपकर अधिनियम, 1996

(ix)असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008

कुल 29 कानून

· 2014 के बाद से 12 श्रम अधिनियम पहले से ही निरस्त हैं

5. नई श्रम संहिताओं से होने वाले लाभों पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई, श्री गंगवार ने सदन को सूचित किया कि देश का समस्त कार्यबल अब विभिन्न संहिताओं के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने का पात्र होगा। मंत्री जी ने लोक सभा द्वारा पारित की गई 3 संहिताओं की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया:-

(क) सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020

ईएसआईसी की पहुंच का विस्तार करना: ईएसआईसी के अंतर्गत अधिकतम संभावित कामगारों को स्वास्थ्य सुरक्षा का अधिकार देने के प्रयास किए गए हैं:-

· ईएसआईसी की सुविधा अब सभी 740 जिलों में उपलब्ध कराई जाएगी। वर्तमान में, यह सुविधा केवल 566 जिलों में दी जा रही है।

· जोखिमकारी क्षेत्रों में कार्यरत प्रतिष्ठान अनिवार्य रूप से ईएसआईसी से संबद्ध किए जाएंगे, चाहे इनमें केवल एक ही कामगार हो।

· असंगठित क्षेत्र और गिग कामगारों को ईएसआईसी से संबद्ध करने के लिए योजना बनाने हेतु प्रावधान।

· बागान के मालिकों को बागानों में कार्यरत कामगारों को संबद्ध करने का विकल्प दिया जा रहा है।

· ईएसआईसी का सदस्य बनने का विकल्प 10 से कम कामगारों वाले प्रतिष्ठानों को भी दिया जा रहा है।

ईपीएफओ की पहुंच का विस्तार करना:

· ईपीएफओ की कवरेज 20 कामगारों वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होगी। वर्तमान में, यह केवल अनुसूची में शामिल प्रतिष्ठानों पर लागू थी।

· 20 से कम कामगारों वाले प्रतिष्ठानों को भी ईपीएफओ में शामिल होने का विकल्प दिया जा रहा है।

· ‘स्व-नियोजित’ वर्ग या किसी अन्य वर्ग के अंतर्गत आने वाले कामगारों को ईपीएफओ के तत्‍वावधान में शामिल करने के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी।

· असंगठित क्षेत्र के कामगारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न योजनाएं तैयार करने हेतु प्रावधान किया गया है। इन योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए वित्तीय पक्ष पर एक “सामाजिक सुरक्षा निधि” सृजित की जाएगी।

· “प्लेटफॉर्म कामगार या गिग कामगार” जैसी बदलती प्रौद्योगिकी के साथ सृजित रोजगार के नए स्वरूपों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने का कार्य सामाजिक सुरक्षा संहिता में किया गया है। भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां इस वर्ग के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत लाने का यह अप्रत्याशित कदम उठाया गया है।

· नियत कालिक कर्मचारी के लिए उपदान का प्रावधान किया गया है और इसके लिए न्यूनतम सेवा अवधि की कोई शर्त नहीं होगी। ऐसा पहली बार हुआ है कि अनुबंध पर किसी निर्धारित अवधि के लिए काम करने वाले किसी नियत कालिक कर्मचारी को नियमित कर्मचारी की तरह ही सामाजिक सुरक्षा का अधिकार दिया गया है।

· असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने के उद्देश्य से, इन सभी कामगारों का पंजीकरण एक ऑनलाइन पोर्टल पर किया जाएगा और यह पंजीकरण एक साधारण प्रक्रिया के माध्यम से स्व-प्रमाणन के आधार पर किया जाएगा। इससे यह लाभ होगा कि असंगठित क्षेत्र के लाभार्थियों को विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ आसानी से प्राप्त होगा। हम यह कह सकते हैं कि इस डेटाबेस की सहायता से हम असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा की “लक्षित प्रदायगी” में सफल होंगे।

· रोज़गार पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है रोज़गार के बारे में सूचना प्राप्त करना। इसी लक्ष्य से 20 या उससे अधिक कामगारों वाले सभी प्रतिष्ठानों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वे अपने प्रतिष्ठानों में रिक्त पदों की सूचना दें। यह सूचना ऑनलाइन पोर्टल पर दी जाएगी।

(ख) व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशा संहिता, 2020

· नियोक्ता द्वारा एक निर्धारित आयु से अधिक आयु वाले कामगारों के लिए वर्ष में एक बार निःशुल्क चिकित्सा जांच।

· पहली बार कामगारों को नियुक्ति पत्र प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दिया गया है।

· सिने कामगार को श्रव्य-दृश्य कामगार के रूप में नामित किया गया है, ताकि अधिक से अधिक कामगार ओएसएच संहिता के तहत कवर हो सकें। पहले यह सुरक्षा केवल फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों को दी जा रही थी।

(ग) औद्योगिक संबंध संहिता, 2020

सरकार द्वारा कामगारों के विवादों को शीघ्रता पूर्वक सुलझाने के लिए किए गए प्रयास:

· औद्योगिक अधिकरण में एक सदस्य के बजाय दो सदस्यों का प्रावधान। एक सदस्य के अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी कार्य सुचारू रूप से किया जा सकता है।

· समझौते के स्तर पर विवाद के न सुलझने की स्थिति में मामले को सीधे अधिकरण में ले जाने का प्रावधान है। वर्तमान में, मामले को समुचित सरकार द्वारा अधिकरण को भेजा जाता है।

· अधिकरण के निर्णय के बाद 30 दिनों के भीतर उस निर्णय का क्रियान्वयन।

· नियत कालिक रोज़गार की मान्यता के बाद कामगारों को ठेका श्रम के बजाय नियत कालिक रोज़गार का विकल्प प्राप्त होगा। इसके अंतर्गत उन्हें नियमित कर्मचारी के समान ही कार्य घंटे, वेतन सामाजिक सुरक्षा तथा अन्य कल्याणकारी लाभ प्राप्त होंगे।

(ड.) ट्रेड यूनियनों की बेहतर और प्रभावी भागीदारी के उद्देश्य से किसी विवाद पर विचार विमर्श करने के लिए वार्ताकार यूनियन और वार्ताकार परिषद् का प्रावधान किया गया है। इस मान्यता को प्रदान किए जाने से विवादों का बातचीत से समाधान करने को बढ़ावा मिलेगा और कामगार अपने अधिकारों को बेहतर तरीके से प्राप्त कर सकेंगे।

(च) ट्रेड यूनियनों के बीच उत्पन्न विवादों का समाधान करने के लिए अधिकरण में जाने की व्यवस्था की गई है। उनके विवादों का निपटान करने में कम समय लगेगा।

(छ) ट्रेड यूनियनों को केन्द्रीय और राज्य स्तर पर मान्यता प्रदान करने हेतु प्रावधान किए गए हैं। यह मान्यता श्रम कानूनों में पहली बार प्रदान की गई है और इस मान्यता के बाद ट्रेड यूनियनें केन्द्रीय और राज्य स्तर पर और अधिक सकरात्मक रूप से तथा और अधिक प्रभावी तरीके से योगदान करने में समर्थ होंगे।

(ज) पहली बार कानून में पुन: कौशल निधि का प्रावधान किया गया है । इसका उद्देश्य उन कामगारों को पुन: कौशल प्रदान करना है जिन्हें काम से निकाल दिया गया है और उन्हें पुन: आसानी से रोजगार मिल सके। इसके लिए कामगारों को 45 दिनों की अवधि के भीतर 15 दिनों का वेतन दिया जाएगा।

6. श्री गंगवार ने कहा कि हमने प्रवासी कामगारों की परिभाषा में विस्तार किया है ताकि अपने आप एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले प्रवासी कामगारों तथा ‎नियोक्ता द्वारा किसी भिन्न राज्य से नियुक्त किए गए प्रवासी कामगारों को भी ओएसएच संहिता के दायरे में लाया जा सके। वर्तमान में, केवल ठेकेदार द्वारा लाए गए प्रवासी कामगार इन उपबंधों से लाभान्वित हो रहे थे।

· प्रवासी कामगारों की समस्याओं के निपटान के लिए हेल्पलाइन की अनिवार्य सुविधा।

· प्रवासी कामगारों के लिए राष्ट्रीय डाटाबेस का निर्माण।

· प्रत्येक 20 कार्य दिवसों के लिए एक दिन का अवकाश संचय करने का प्रावधान, जब कार्य 240 दिनों के स्थान पर 180 दिन किया गया हो।

· महिलाओं के लिए प्रत्येक क्षेत्र में समानता: महिलाओं को प्रत्येक क्षेत्र में रात्रि में कार्य करने की अनुमति दी जानी है, परन्तु यह सुनिश्चित किया जाना है कि उनकी सुरक्षा की व्यवस्था नियोक्ता द्वारा की जाती है तथा रात्रि में उनके कार्य करने से पहले उनसे सहमति ली जाती है।

· कार्य स्थल पर दुर्घटना के कारण कामगार की मृत्यु होने अथवा चोट लगने के मामले में, शा‎स्ति का न्यूनतम 50 प्रतिशत हिस्सा दिया जाएगा। यह राशि कर्मचारी प्रतिपूर्ति के अतिरिक्त होगी।

· गिग तथा प्लेटफार्म कामगारों के साथ-साथ 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए “सामाजिक सुरक्षा निधि” की स्थापना से सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज में सहायता मिलेगी।

· महिला कामगारों को पुरूष कामगारों की तुलना में वेतन की समानता।

· व्यावसायिक सुरक्षा में अ ब आईटी तथा सेवा क्षेत्र के कामगारों को भी शामिल करना संभव होगा।

· हड़ताल के लिए 14 दिन का नोटिस ताकि इस अवधि ‎में सौहार्द्रपूर्ण समाधान निकल सके।

· श्रम न्यायधीकरणों द्वारा मामलों के त्वरित निपटान हेतु एक सशक्त तंत्र प्रस्तावित है क्योंकि “न्याय मिलने में देरी का अर्थ है न्याय न मिल पाना”

· संहिताओं से उच्चतर उत्पादकता तथा रोजगार सृजन के वृद्धि के लिए सौहार्द्रपूर्ण औद्योगिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा।

· श्रम संहिताओं से पूर्व के विभिन्न कानूनों के अंतर्गत पंजीकरण की आवश्यकता 8 से घटकर केवल 1 रह जाएगी; लाइसेंस की आवश्यकता भी 3 या 4 से घटकर केवल 1 रह जाएगी और 1 पारदर्शी, जवाबदेह और सरल कार्यतंत्र की स्थापना होगी।

· निरीक्षक को अब निरीक्षक-सह-सु‎विधा प्रदाता बनाया गया है तथा इंस्पेक्टर राज समाप्त करने के लिए यादृच्छिक(रैंडम) रूप से वेब आधारित निरीक्षण प्रणाली लागू करना।

· जूर्माना को कई गुना बढ़ा दिया गया है;ताकि वे निवारक के रूप में कार्य करे।

7. श्री गंगवार ने इस पर भी बल दिया कि श्रम कानूनों में परिवर्तन एवं सुधारों की परिकल्पना वर्षों से बदलते परिदृश्य को देखते हुए तथा उन्हें भविष्य के अनुकूल बनाने के लिए की गई है ताकि देश उन्नति के पथ पर तेजी से अग्रसर हो। इन बदलावों से देश में शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण औद्योगिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा जिसके परिणामस्वरूप उद्योग एवं रोजगार का विकास होगा, आय में वृद्धि के साथ-साथ संतुलित क्षेत्रीय विकास होगा तथा कामगारों के हाथों में खर्च करने के लिए और अधिक आय होगा। श्री गंगवार ने आगे उल्लेख किया कि ये ऐतिहासिक सुधार देश में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के साथ-साथ उद्य‎मियों से घरेलू निवेश को भी आकर्षित करेंगे तथा देश में ‘इंस्पेक्टर राज’ को समाप्त करके इस पद्धति में पूर्ण पारदर्शिता लाएंगे। उन्होने आगे कहा कि “भारत विश्व में पसंदीदा निवेश गंतव्य बन जाएगा”।

8. कामगार वर्ष में एक बार मुफ्त स्वास्थ्य जांच के हकदार होंगे और इसके साथ ही प्रवासी कामगारों को वर्ष में एक बार अपने गृह नगर की यात्रा करने के लिए भत्तों का भुगतान किया जाएगा। श्री गंगवार ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि “हमारी बहनों एवं पुत्रियों को सभी क्षेत्रों में आजादी मिलेगी और वे रात की पालियों में भी काम कर सकेंगी जिसके लिए उन्हें नियोक्ताओं द्वारा सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।”


सरकार ने श्रम संहिताओं में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के अधिकारों और दायित्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है : श्री गंगवार

श्री संतोष गंगवार ने 3 श्रम संहिताओं को परिवर्तनकारी मील का पत्थर बताते हुए लोकसभा में इन पर चर्चा की शुरुआत की

श्रम एवं रोजगार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने लोकसभा में 3 श्रम संहिताओं पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि देश में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के हितों, अधिकारों और दायित्वों के बीच संतुलन कायम करने के उद्देश्य से इन श्रम संहिताओं को लाया गया है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि ये श्रम संहिताएं श्रमिकों का कल्याण सुनिश्चित करने में एक बड़ा मील का पत्थर साबित होंगी। तीन श्रम संहिताओं में; (1) ओएसएच संहिता, (2) आईआर संहिता और (3) सामाजिक सुरक्षा संहिता शामिल हैं।

73 साल में पहली बार हुए कई प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इनमें नियुक्ति पत्र का अधिकार शामिल है, जिससे औपचारिक रोजगार को प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रवासी कामगारों की परिभाषा का विस्तार किया गया है, जिसमें ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो बिना ठेकेदार के काम के लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हैं। इससे उन्हें देश में कल्याणकारी योजनाओं के लिए सुरक्षित पात्रता और बेहतर लक्ष्य हासिल करने में सहायता मिलेगी।

इसी तरह श्री गंगवार ने बताया कि जिन श्रमिकों को काम से हटा दिया गया था उनको फिर से कौशल प्रदान करने के लिए एक तंत्र प्रस्तावित किया गया है। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, जीआईजी और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना शामिल है। श्री गंगवार ने कहा कि ट्रेड यूनियनों के महत्व को समझते हुए निपटारे के लिए तीन स्तरीय प्रक्रिया – एंटरप्राइज़ स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित की गई है ताकि श्रम संबंधी मुद्दों का त्वरित समाधान किया जा सके।

मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि तकनीक, कार्य पद्धतियों, कार्य-क्षेत्र की सुविधाओं और कार्यों की प्रकृति के संदर्भ में बीते 73 वर्षों के दौरान भारत जिस अभूतपूर्व परिवर्तन से गुजरा है उसे ध्यान में रखते हुए श्रम संहिता में परिवर्तन किए गए हैं। 70 साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि हम घर से भी काम कर सकते हैं। इसलिए वैश्विक परिदृश्य में बदलावों को स्वीकार करते हुए और भविष्य की कार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव की परिकल्पना की गई है। क्योंकि इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ही 4 ऐतिहासिक श्रम संहिताओं पर इस तरह का काम शुरू किया गया था।

श्री गंगवार ने आगे बताया कि कैसे 4 उप समितियों, 10 अंतर-मंत्रिस्तरीय चर्चाओं, व्यापार संघों, नियोक्ता संघों, राज्य सरकारों, विशेषज्ञों, अंतर्राष्ट्रीय निकायों समेत कई दायरों में इन श्रम संहिताओं पर व्यापक रूप से चर्चा की गई और उन्होंने इन्हें 3-4 महीनों के लिए सार्वजनिक दायरे में रखकर जनता के सुझावों/टिप्पणियों को भी आमंत्रित किया गया था ।