दिल्ली में CAA के विरोध में भड़के दंगों में निजी स्कूल को दंगाईयों के लिए इस्तेमाल करवाने वाले मालिक फैसल फारूक की जमानत याचिका खारिज attacknews.in

दिल्ली, 03 नवंबर । दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा मामले में एक निजी स्कूल के मालिक फैसल फारुक की जमानत याचिका खारिज कर दी है।

फरवरी में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए)-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुये थे।

फैसल के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा, “फैसल राजधानी पब्लिक स्कूल और विक्टोरिया पब्लिक स्कूल जैसे विभिन्न स्कूलों का प्रबंधन करता है जिसमें सभी वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। फैसल का कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है।”

उन्होंने कहा, “पुलिस ने फैसल को फंसाया है जबकि वह दंगों के समय मौजूद भी नहीं था। किसी ने भी यह गवाही नहीं दी है कि फैसल दंगे के समय मौके पर मौजूद था।”

पुलिस ने कहा, “जांच से खुलासा हुआ है कि फैसल राजधानी पब्लकि स्कूल का मालिक है और इलाके का प्रभावशाली व्यक्ति है। फारुक ने दंगे के दौरान अपने स्कूल में दंगाइयों को प्रवेश करने की अनुमति दी जिसके बाद दंगाइयों ने राजधानी पब्लकि स्कूल की छत से दंगे किये।”

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने जमानत याचिका का विरोध करते हुये कहा, “फैसल को संबंधित घटना का मास्टरमाइंड पाया गया है। उसने जानबूझकर स्कूल के मुख्य द्वार से दंगाइयों को प्रवेश करने दिया। दंगाइयों ने राजधानी पब्लिक स्कूल की छत से डीआरपी के स्कूल में घुसकर व्यस्थित तरीके से तबाही मचाई। यह सब सुनियोजित प्रतीत होता है।”

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने मामले में सभी की दलीले सुनने के बाद कहा, “ऐसा लगता है कि दंगे को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था। पथराव करने और पेट्रोल बम फेंकने के लिए अभियुक्त के स्कूल के छत पर बड़े आकार के लोहे के उपकरण रखे गये थे। इस तरह के उपकरण का निर्माण तुरंत नहीं किया जा सकता।”

न्यायमूर्ति कैत ने जमानत याचिका खारिज करते हुये कहा, “इस बात को ध्यान में रखा जा रहा है कि अभियुक्त धनी है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा है। चूंकि मामले की जांच अभी पूरी नहीं हुई है इसलिए अभियुक्त गवाहों को प्रभावित कर सकता और जांच में बाधा डाल सकता है।”

भारत सरकार वोडाफोन दूरसंचार कंपनी से 22 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कर वसूली के लिए किया गया दावा हारी,पुराने नियमों के कारण उलझ गई सरकार ,मध्यस्थता निर्णय के खिलाफ अपील करने के लिये दिसंबर तक का समय attacknews.in

नयी दिल्ली, तीन नवंबर । भारत सरकार के पास वोडाफोन मामले में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील करने को लेकर दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक का समय है। न्यायाधिकरण ने ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन समूह से भारतीय आयकर कानून में पिछली तिथि से प्रभावी एक संशोधन के तहत 22,100 करोड़ रुपये की वसूली के दावे को खारिज कर दिया है।

वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने कहा कि सरकार निर्णय के खिलाफ अपील करने से पहले सभी पहलुओं पर गौर कर रही है। उन्होंने पूर्व वित्त मंत्री अरूण जेटली के उस वादे पर कुछ कहने से इनकार किया कि पूर्व की तिथि से संबंधित मामलों में सरकार मध्यस्थता मंचों के निर्णयों का सम्मान करेगी।

पांडे ने कहा, ‘‘हम विभिन्न पहलुओं पर अभी गौर कर रहे हैं और उचित समय पर निर्णय किया जाएगा।’’

अपील करने की समय सीमा के सावाल पर उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक मध्यस्थता आदेश में अपील करने के लिये 90 दिनों का समय होता है। इसीलिए हमारे पास निर्णय लेने के लिये समय है। हम उपयुक्त समय पर निर्णय करेंगे।’’

नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे दिवंगत अरूण जेटली ने कई मौकों पर कहा था कि भाजपा सरकार पूर्व की तिथि से कर कानून का उपयोग कर कोई नई मांग नहीं करेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि उन मामलों में मध्यस्थता निर्णय का सम्मान किया जाएगा जहां कंपनियों ने पहले की तिथि से कर कानून के जरिये कर मांग के पिछली सरकार के आदेश को चुनौती दी है।

वोडाफोन ने भारतीय आयकर कानून में 2012 के पूर्वक से प्रभावी संशोधन के जरिये भारत में अपने निवेश पर कर की मांग को मध्यस्थता न्यायाधिकरण में चुनौती दी थी। इस कानून से सरकार को पूर्व की तथि से कर लगाने का अधिकार मिला था। इसके तहत वोडाफोन के हच्चिसन व्हामपोआ के 2007 में मोबाइल फोन कारोबार में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी 11 अरब डॉलर में अधिग्रहण सौदे को लेकर कर की मांग की गयी थी।

कंपनी ने नीदरलैंड-भारत द्वपिक्षीय निवेश संधि (बीआईटी)के तहत 7,990 करोड़ रुपये पूंजी लाभ कर (ब्याज और जुर्माना समेत 22,100 करोड़ रुपये) की मांग को चुनौती दी थी।

मध्यस्थ्ता न्यायाधिकरण ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद भारत का वोडाफोन से कर की मांग करना द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधि के तहत निष्पक्ष और समान व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन है।

निर्णय के तहत सरकार को वोडाफोन को कानूनी खर्चे का 60 प्रतिशत और मध्यस्थ नियुक्त करने पर खर्च 6,000 यूरो में से आधे का भुगतान करना होगा।

सूत्रों के अनुसार कानूनी खर्च के मामले में सरकार को करीब 75 करोड़ रुपये देने पड़ सकते हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस कांड में फैसला सुरक्षित रखा,कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने पर चिंता जताई,25 नवम्बर तक का दिया समय attacknews.in

लखनऊ, दो नवंबर । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सोमवार को हाथरस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए जांच की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर चिंता जाहिर की।

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 25 नवंबर नियत करते हुए उस दिन सीबीआई से इस मामले में अपनी जांच की स्थिति रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है।

हाथरस मामले कि पीड़िता का कथित रूप से जबरन अंतिम संस्कार करने के मुद्दे का स्वत: संज्ञान लेने वाली न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की पीठ ने इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

पीठ ने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए हाथरस के जिला अधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर चिंता व्यक्त की।

हालांकि राज्य सरकार ने अपने वकील के माध्यम से अदालत को भरोसा दिलाया कि वह इस सिलसिले में 25 नवंबर तक कोई फैसला लेगी।

अदालत ने बंद कमरे में हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा कि उसने पूर्व में दिए गए आदेश पर हाथरस के जिला अधिकारी के बारे में क्या निर्णय लिया। इस पर सरकार के वकील ने यह कहते हुए जिलाधिकारी का बचाव किया कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था। जहां तक हाथरस के पुलिस अधीक्षक के निलंबन का सवाल है तो उनके खिलाफ यह कार्यवाही कथित सामूहिक बलात्कार मामले में समुचित कार्रवाई करने में लापरवाही के आरोप में की गई थी, ना कि अंतिम संस्कार के मामले को लेकर।

इसके पूर्व, राज्य सरकार, जिलाधिकारी लक्षकार और हाथरस के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर ने अदालत में अपने-अपने हलफनामे दाखिल किए।

अपर महाधिवक्ता ने वीके साही ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार के हलफनामे में हाथरस जैसी स्थिति में अंत्येष्टि से संबंधित दिशानिर्देशों का एक मसविदा शामिल किया गया है।

वहीं, जिलाधिकारी और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने अपने पुराने रुख को दोहराते हुए कहा कि तात्कालिक परिस्थितियों के मद्देनजर मृतका का अंतिम संस्कार किया गया था और दाह संस्कार में केरोसिन का इस्तेमााल नहीं हुआ था।

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार, गृह सचिव तरूण गाबा और हाथरस के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर मौजूद थे।

सुनवाई के दौरान अदालत ने सीबीआई के वकील अनुराग सिंह से मामले की अगली सुनवाई पर एजेंसी द्वारा की जा रही जांच की स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा।

हाथरस मामले में गिरफ्तार चार अभियुक्तों के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से गुजारिश की कि वह अपने आदेश में ऐसी कोई टिप्पणी न करें जिससे जांच प्रभावित होने की आशंका पैदा हो।

इस बीच, पीड़िता की वकील सीमा कुशवाहा ने मामले की जांच को उत्तर प्रदेश के बाहर स्थानांतरित करने की मांग दोहराई।

यौन हिंसा के अपराधी को राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मप्र हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट सख्त,सुनवाई के साथ कहा: ‘‘लैंगिक संवेदनशीलता हमारे आदेश का हिस्सा होगी।’’ attacknews.in

नयी दिल्ली, दो नवंबर । अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि यौन हिंसा के मामलों में आरोपी को पीड़ित से ‘राखी’ बंधवाने का आदेश सिर्फ ड्रामा है। अटार्नी जनरल ने न्यायाधीशों को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने और जमानत की शर्ते निर्धारित करते समय तथ्यों पर केन्द्रित रहने की आवश्यकता पर जोर दिया।

वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से कहा कि न्यायाधीशों में लैंगिक संवेदनशीलता होनी चाहिए तो पीठ ने कहा, ‘‘लैंगिक संवेदनशीलता हमारे आदेश का हिस्सा होगी।’’

वेणुगोपाल यौन उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी को कथित पीड़िता से ‘राखी’ बांधने का अनुरोध करने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान दलीलें पेश कर रहे थे।

अटार्नी जनरल ने पीठ से कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य अकादमियों को इस बारे में शिक्षा देनी चाहिए कि इसकी इजाजत नहीं है। न्यायाधीश भर्ती परीक्षा में भी लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में एक हिस्सा होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘यौन हिंसा के मामलों के आदेशों में आरोपी से यह कहना कि वह पीड़ित से राखी बंधवाये ड्रामा है।’’उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को पेश मामले के तथ्यों पर केन्द्रित रहने की आवश्यकता है।

मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश के खिलाफ नौ महिला अधिवक्ताओं ने यह अपील दायर कर इस पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। इस अपील में कहा गया है कि देश भर की अदालतों को इस तरह की शर्ते लगाने से रोका जाना चाहिए क्योकि यह कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में आरोपी को जमानत देते हुये यह शर्त लगायी थी कि वह अपनी पत्नी के साथ पीड़ित के घर जायेगा और उससे अपने हाथ पर राखी बंधवानें का अनुरोध करते हुये हमेशा उसकी सुरक्षा करने का वायदा करेगा।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्मय से इस मामले की सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के आदेश का जिक्र किया और कहा, ‘‘जहां तक पेश मामले का संबंध है तो ऐसा लगता है कि वे भावावेष में आ गये। पहले से ही इस बारे में न्यायालय के फैसले हैं कि न्यायाधीशों को पेश मामले, विशेषकर जमानत की शर्तो के बारे मे, खुद को तथ्यों तक सीमित रखना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायिक अकादमी में शीर्ष अदालत के फैसले पढ़ाये जाने चाहिएं और उन्हें निचली अदालतों तथा उच्च न्यायालयों के समक्ष रखा जाना चाहिए ताकि न्यायाधीशों को पता रहे कि क्या करने की आवश्कता है।’’

पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि क्या वह इस बारे में एक संक्षिप्त नोट दे सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘जमानत की शर्तो में विवेकाधिकार में यह देखने की आवश्यकता है कि किस बात की अनुमति है और किसकी नहीं है। यह काम करने का एक तरीका है। फैसले में हम कह सकते हैं कि क्या करने की आवश्यकता है।’’

अधिवक्ता अपर्णा भट सहित याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि अटार्नी जनरल के सुझाव के अनुरूप वे अपना नोट दे सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘एक नोट दीजिये कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं। अटार्नी जनरल, याचिकाकर्ता और हस्तक्षेप के आवेदनकर्ता नोट दाखिल कर सकते हैं। इसे तीन सप्ताह बाद 27 नवंबर को सूचीबद्ध किया जाये।

न्यायालय ने 16 अक्टूबर को अटॉर्नी जनरल से इस मामले में सहयोग करने का अनुरोध किया था जिसमे छेड़छाड़ के एक मामले में आरोपी को शिकायकर्ता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मप्र उच्च न्यायालय के 30 जुलाई के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में कहा गया था कि देश भर की अदालतों पर इस प्रकार की शर्तें लगाने पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि यह ‘‘कानून के सिद्धांतों के खिलाफ’’ हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने पीठ को बताया कि याचिका ‘‘अभूतपूर्व परिस्थितियों’’ में दाखिल की गई हैं।

पारिख ने पीठ से कहा था,‘‘ इस प्रकार की शर्तों से पीड़ित की परेशानी महत्वहीन बन जाती है।’’

तेज होने लगी लव जेहाद पर कानून बनाने की मांग, योगी आदित्यनाथ ने किया हैं वादा”उप्र में लव जिहाद करने वालों के खिलाफ बनेगा कानून”,और “धर्म परिवर्तन मामले में हाईकोर्ट के आदेश का होगा कड़ाई से पालन ” attacknews.in

मुरादाबाद,01नवंबर।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आपरेशन ‘शक्ति’के जरिए बहन, बेटियों के साथ नाम व पहचान छिपाकर परेशान करने वालों के खिलाफ प्रभावी कानून बना कर लव जिहाद को सख्ती से रोकने के संकल्प को संत-महात्माओं का भरपूर समर्थन मिल रहा है तथा इस संवेदनशील मुद्दे पर कानून बनाने की मांग जोर पकडऩे लगी है।

रविवार को मुरादाबाद प्रवास पर काली सिद्धि पीठ के महामंडेलश्वर स्वामी नंद ब्रह्मचारी ने लव-जेहाद पर कानून बनाने की मांग करते हुए कहा है की हरियाणा के बल्लभगढ़ में हुई निकिता तोमर को जिस प्रकार से मारा गया है वो घोर अपराध है। कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो उसे छोड़ना नही चाहिए। ऐसे लोगों के लिये फांसी की सजा भी कम है।

उप्र में लव जिहाद करने वालों के खिलाफ बनेगा कानून: योगी आदित्यनाथ

कल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया है कि लव जेहाद के खिलाफ कानून बनेगा और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जायेगी।

श्री योगी ने शनिवार को यहां आयोजित चुनावी सभा में कहा कि प्रदेश सरकार महिलाओं की रक्षा के लिये मिशन शक्ति की शुरूआत कर चुकी है और यह आगे आपरेशन शक्ति में बदलेगा। महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ अब पहले से भी अधिक सख्त कार्रवाई की जायेगी और अब लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाया जायेगा।

धर्म परिवर्तन मामले में हाईकोर्ट के आदेश का होगा कड़ाई से पालन : योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज साफ शब्दों ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन अवैध है का कड़ाई से पालन किया जाएगा और शीघ्र ही इसके लिए प्रभावी कानून बनाया जाएगा ।

योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को जौनपुर जिले में मल्हनी विधानसभा उपचुनाव में पार्टी के प्रत्याशी मनोज सिंह के समर्थन में सिकरारा चौराहे के पास बगीचे में एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन को अवैध करार कर दिया है। अब इसका पालन कड़ाई से कराया जाएगा और इसके लिए शीघ्र ही प्रभावी कानून बनाया जाएगा ।

सपा उप्र में शुरू करना चाहती है दंगों की एक नई श्रंखला: योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी (सपा) पर आरोप लगाया है कि सपा प्रदेश के अन्दर दंगों की एक नई श्रंखला शुरू करना चाहती हैं।

श्री योगी ने शनिवार को देवरिया में पार्टी प्रत्याशी डाॅ0 सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी के समर्थन में एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि सपा में तो अब राजनीतिक क्षमता का अकाल पड़ता दिख रहा है। अब उनमें क्षमता तो नहीं है, लेकिन प्रदेश के अन्दर षंडयंत्र का सलाह देकर दंगा कराना चाहती है।

उन्होंने कहा कि हम लोगों ने भी तय किया है कि प्रदेश में दंगाईयों की जगह जेल या कहीं और होगी। प्रदेश के साढ़े तीन साल के शासन काल में एक भी दंगे नहीं हुए।

लव जेहाद का खेल खेलने वालो का होगा ‘राम नाम सत्य’: गिरी

प्रयागराजसे खबर है कि,उत्तर प्रदेश में लव जेहाद के खिलाफ कानून बनाने को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान का साधु संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने स्वागत करते हुए कहा कि लव जेहाद का खेल खेलने वालो का “राम नाम सत्य होगा।

परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने रविवार को कहा कि लव जेहाद के विषय को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि यह अपराध की श्रेणी में आता है। अब समय आ गया है जब तथाकथित लव जेहादियों का “राम नाम सत्य” हो जाना चाहिए।

उन्होंने कहा है कि लव जिहादियों को ऐसा दंड मिले कि उनकी आने वाली पीढ़ियां उसे याद कर कांप जाएं और दोबारा ऐसा दुस्साहस करने की हिमाकत नहीं करें।

महंत गिरी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने भी हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है और यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आएगा।

श्री गिरी ने कहा कि यदि साधु-संतो की राय ली जाए तो लव‌ जेहादियों को बीच चौराहे पर जनता के बीच फांसी पर लटका देना चाहिए। लव जेहाद की बढ़ रही घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं एक संगठित गिरोह काम कर रहा है। इसमें मुस्लिम धर्मगुरु और मौलाना भी शामिल होते हैं। उन्होंने कहा है कि लव जेहादियों का संगठित गिरोह है और निश्चित तौर पर इन्हें फंडिंग भी की जाती है। इसलिए लव जेहादियों पर रोक लगाने के लिए पहले इनकी फंडिंग को रोकना जरूरी है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं माना attacknews.in

प्रयागराज, 30 अक्टूबर । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है।

विपरीत धर्म के जोडे की याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने याचियो को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होकर अपना बयान दर्ज कराने की छूट दी है।

याची ने परिवार वालो को उनके शांति पूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने की उच्च न्यायालय से मांग की थी। न्यायालय ने इस याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस कांड में सीबीआई जांच सहित सभी पहलुओं की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट को सौंपी ,सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर कराने के मुद्दे पर सीबीआई की जांच पूरी होने के बाद किया जायेगा विचार attacknews.in

नयी दिल्ली 27 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की एक दलित लड़की के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत के मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो करेगा और इलाहाबाद उच्च न्यायालय इसकी निगरानी करेगा।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुये कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय पीड़ित परिवार के सदस्यों और गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने और इसकी सीबीआई जांच की निगरानी सहित सभी पहलुओं पर विचार करेगा।

पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर कराने के मुद्दे पर सीबीआई की जांच पूरी होने के बाद ही विचार किया जायेगा।

शीर्ष अदालत ने हाथरस की घटना को लेकर गैर सरकारी संगठन, अधिवक्ताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा दायर कई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इन याचिकाओं में दावा किया गया था कि उप्र में इस मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है क्योंकि जांच को पहले ही कुंद कर दिया गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई अपनी जांच की प्रगति रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पेश करेगी।

पीठ ने उप्र सरकार के अनुरोध पर विचार किया और उच्च न्यायालय से कहा कि वह लंबित जनहित याचिका में दिये गये अपने आदेशों में से एक से पीड़ित का नाम हटाये।

हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से अगड़ी जाति के चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी थी।

पीड़ित की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गयी थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिये मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना था कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।

न्यायालय ने 15 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि इस मामले की निगरानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय को करने को दी जाएगी।

हालांकि पीड़ित परिवार के वकील ने अपनी आशंका व्यक्त करते हुये न्यायालय से कहा था कि इस मामले की जांच पूरी होने के बाद ही इसे उप्र से बाहर स्थानांतरित किया जाये।

पीठ ने इस आशंका को दूर करते हुये कहा, ‘‘उच्च न्यायालय को इसे देखने दिया जाये। अगर कोई समस्या होगी तो हम यहां पर हैं ही।’’

सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी उप्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे का जिक्र किया था जिसमे पीड़ित के परिवार और गवाहों को प्रदान की गयी सुरक्षा और संरक्षण का विवरण दिया गया था। राज्य सरकार ने न्यायालय के निर्देश पर ऐसा किया था।

इससे पहले ही उत्तर प्रदेश ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी और उसने शीर्ष अदालत की निगरानी में इसकी जांच पर भी सहमति दे दी थी।

मेहता ने न्यायालय को सूचित किया था कि पीड़ित के परिवार ने एक अधिवक्ता की सेवायें ली हैं और उसने उनकी ओर से इस मामले को आगे बढ़ाने के लिये सरकारी वकील उपलब्ध कराने का भी अनुरोध किया है।

SC ने मांगी थी परिवार की सुरक्षा की जानकारी

पिछली बार मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने यूपी सरकार से पीड़ित परिवार को दी गई सुरक्षा पर जानकारी मांगी थी.

इसका जवाब देते हुए यूपी सरकार ने बताया था कि गांव के बाहर, गांव के भीतर और पीड़ित परिवार के घर के बाहर, पुलिस और राज्य सैनिक बल के जवान बड़ी संख्या में तैनात किए गए हैं. परिवार के सभी सदस्यों को निजी सुरक्षाकर्मी भी दिए गए हैं. घर के बाहर 8 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के मौजूदा या रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में SIT के गठन की भी मांग उठी. जवाब में यूपी सरकार ने कहा कि उसकी सिफारिश पर CBI ने जांच का ज़िम्मा संभाल लिया है. कोर्ट अगर किसी SIT का गठन करना चाहता है, तो इस पर भी राज्य सरकार को कोई आपत्ति नहीं है.

पीड़ित परिवार की मांग- दिल्ली ट्रांसफर हो केस

पीड़ित परिवार की वकील सीमा कुशवाहा ने मुकदमे को दिल्ली ट्रांसफर करने और सीबीआई जांच की सुप्रीम कोर्ट से मॉनिटरिंग की मांग की थी. यूपी सरकार के लिए पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह मामले की जांच की निगरानी करे. उसे समय सीमा में पूरा करने को लेकर आदेश दे.

क्या है हाथरस कांड ?

यूपी के हाथरस जिले के एक गांव में 14 सितंबर को 19 साल की एक दलित लड़की के साथ चार युवकों ने कथित तौर पर गैंगरेप किया था. इसके कई दिनों बाद दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता ने दम तोड़ दिया. प्रशासन ने 30 सितंबर को पीड़िता के घर के नजदीक ही उसकी रातों-रात अंत्येष्टि कर दी थी. पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया था कि स्थानीय पुलिस ने उनकी इच्छा के पूछे बिना ही अंतिम संस्कार कर दिया. शव को देखने तक नहीं दिया. वहीं पुलिस का कहना है कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया. योगी आदित्यनाथ सरकार ने पहले इस मामले की जांच एसआईटी को सौंपी थी. बाद में राज्य सरकार ने मामले की सीबीआई से जांच की सिफारिश की।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा सांसदों व विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सूची दो सप्ताह में पेश करने का निर्देश attacknews.in

जबलपुर, 24 अक्टूबर । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने रजिस्ट्रार जनरल को पूर्व एवं मौजूदा सांसदों व विधायकों के खिलाफ अदालतों में चल रहे आपराधिक मामलों की सूची दो सप्ताह के अंदर प्रस्तुत करने के निर्देश दिये हैं।

सहायक सॉलिसिटर जनरल जे के जैन ने बताया कि कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति सुजॉय पाल की पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल को दो सप्ताह के अंदर पूर्व एवं वर्तमान सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों विशेष कर ऐसे मामले जिनमें स्थगन आदेश दिया गया है, की सूची प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

उन्होंने बताया कि अदालत ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के 16 सितंबर के आदेश के अनुपालन में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यह निर्देश जारी किया।

शीर्ष अदालत ने राज्यों से पूर्व और वर्तमान सांसदों तथा विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुक़द्दमों की प्रगति की निगरानी के लिये कहा था। उच्चतम न्यायालय ने अश्विनी कुमार उपाध्याय व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य के एक मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया था।

“मीडिया ट्रायल” पर बाम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी:मीडिया का ‘‘अत्यधिक ध्रुवीकरण’’ हो गया, समय के साथ बदल गया जबकि पत्रकार अतीत में ‘‘तटस्थ’’ हुआ करते थे attacknews.in

मुंबई, 23 अक्टूबर । बम्बई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मीडिया का ‘‘अत्यधिक ध्रुवीकरण’’ हो गया है और समय के साथ बदल गया है जबकि पत्रकार अतीत में ‘‘तटस्थ’’ हुआ करते थे।

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले की रिपोर्टिंग में ‘‘मीडिया ट्रायल’’ का आरोप लगाने वाली जनहित याचिकाओं (पीआईएल) की सुनवाई करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि यह नियंत्रण का नहीं बल्कि काम में संतुलन कायम करने का सवाल है।

सुनवाई के दौरान मामले की जांच कर रहे केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने उच्च न्यायालय को बताया कि उसने मामले से जुड़ी कोई भी जानकारी मीडिया में लीक नहीं की थी।

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि जून में अभिनेता की मौत से संबंधित मामलों की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय और स्वापक नियंत्रण ब्यूरो ने भी कोई सूचना लीक नहीं की थी।

उन्होंने कहा कि सभी तीनों केन्द्रीय एजेंसियों ने अदालत में हलफनामे दायर किये थे जिनमें कहा गया था कि उन्होंने जांच-संबंधी किसी भी जानकारी को लीक नहीं किया है।

सिंह ने कहा, ‘‘हम अपनी जिम्मेदारियों को जानते हैं और किसी भी एजेंसी द्वारा जानकारी लीक करने का कोई सवाल ही नहीं है।’’

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में मीडिया को अभिनेता की मौत मामले की जांच से संबंधित कवरेज में संयम बरतने के निर्देश दिये जाने का अनुरोध किया गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘मीडिया तब (अतीत में) तटस्थ था। मीडिया का अब अत्यधिक ‘‘ध्रुवीकरण’’ हो गया है…और नियंत्रण का नहीं बल्कि काम में संतुलन कायम करने का सवाल है। लोग भूल जाते हैं कि रेखाएं कहां खींचनी हैं। सीमाओं में रहकर इसे करें।’’

अदालत ने कहा, ‘‘आप सरकार की आलोचना करना चाहते हैं, करें। मुद्दा यह है कि किसी की मौत हो गई है और आरोप है कि आप हस्तक्षेप कर रहे हैं।’’

सुनवाई अगले सप्ताह भी जारी रहेगी।

इससे पूर्व की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि समाचार चैनल संवेदनशील जानकारी प्रसारित कर रहे हैं। इन याचिकाकर्ताओं में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों का एक समूह भी शामिल है।

याचिकाकर्ताओं ने पूछा था कि चैनलों को इस तरह की जानकारी कैसे मिल रही है। उन्होंने आरोप लगाया था कि जांच एजेंसियां उनकी स्रोत रही होंगी।

मामले में पक्षकार बनाये गये केन्द्र सरकार, राष्ट्रीय प्रसारण मानक प्राधिकरण और समाचार चैनलों ने उच्च न्यायालय को बताया कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक स्व-नियामक तंत्र है।

मप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सचिव के खिलाफ SC/ST कानून में दर्ज पुलिस प्रकरण को खारिज करने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया,मामला भील समुदाय को लेकर पूछे गए प्रश्नों से जुड़ा था attacknews.in

इंदौर, 23 अक्टूबर । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने राज्य लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) के अध्यक्ष सहित तीन पदाधिकारियों के खिलाफ यहां कुछ माह पहले अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किये गए एक प्रकरण को ख़ारिज करने के आदेश दिए हैं।

राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि एमपीपीएससी के अध्यक्ष डॉ भास्कर चौबे, तत्कालीन सचिव रेणु पंत और एक अन्य की ओर से उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर की गई थी। इस पर सुनवाई पूरी कर न्यायाधीश एस सी शर्मा ने कल अपना फैसला सुनाया।

अदालत ने अपने फैसले में अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण थाना इंदौर उप पुलिस अधीक्षक के द्वारा इन तीनों आवेदकों के विरुद्ध अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत 15 जनवरी 2020 को दर्ज प्रकरण को ख़ारिज करने के आदेश दिए हैं।

आयोग की ओर से आयोजित राज्य प्रारम्भिक परीक्षा 2019 के दौरान भील समुदाय को लेकर प्रश्न पूछा गया था। इस मामले को लेकर हुए विवाद के बीच तीनों के खिलाफ इस अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था।

जनवरी 2020 में आयोग ने राज्य प्रारम्भिक परीक्षा 2019 आयोजित की थी। इसी परीक्षा का दूसरा प्रश्नपत्र 12 जनवरी को आयोजित हुआ था, जिसमें भील समुदाय को लेकर प्रश्न किया गया था।

अनेक सामाजिक संगठनों के विरोध के बीच कुछ लोगों की शिकायत पर पुलिस ने आयोग के तीनों पदाधिकारियों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया था।

अदालत ने अपने आदेश में माना कि भील समुदाय की भावनाओं का पूरा सम्मान है, लेकिन इस मामले में अपराध दर्ज करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
मामले में चौतरफा विरोध के चलते आयोग ने पांचों विवादित प्रश्नों को विलोपित कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने बीमा पॉलिसी धारकों को बीमा लेने से पूर्व कोई भी वास्तविकता नहीं छुपाने की हिदायत देते हुए बीमा कंपनी के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश निरस्त किया attacknews.in

नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय का कहना है कि बीमा अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है। ऐसे में जीवन बीमा लेने के इच्छुक लोगों के लिये हर वैसी जानकारियों का खुलासा करना उनका दायित्व हो जाता है, जिनका संबंधित मुद्दों पर किसी प्रकार का असर हो सकता है।

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के इस साल मार्च के एक फैसले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की। एक बीमा कंपनी ने मृतक की माता को ब्याज के साथ दावे की पूरी राशि का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ आयोग में याचिका दायर की थी, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया था।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रस्ताव के फॉर्म में पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके।

इस पीठ में न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी भी शामिल रहीं।

पीठ ने कहा, ‘‘बीमे का अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है। यह बीमा लेने के इच्छुक हर व्यक्ति का दायित्व हो जाता है कि वह संबंधित मुद्दे को प्रभावित करने वाली सारी जानकारियों का खुलासा करे, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर किसी विवेकपूर्ण निर्णय पर पहुंच सके।’’

बीमा कंपनी ने आयोग के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी। राष्ट्रीय आयोग ने संबंधित मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बीमा लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारियों का खुलासा नहीं किया था। उसने यह भी नहीं बताया था कि बीमा लेने के महज एक महीने पहले उसे खून की उल्टियां हुई थीं।

पीठ ने कहा, ‘‘बीमा कंपनी के द्वारा की गयी जांच में पता चला है कि बीमा धारक पुरानी बीमारियों से जूझ रहा था, जो लंबे समय तक शराब का सेवन करने के कारण उसे हुई थीं। उसने उन तथ्यों की भी जानकारी बीमा कंपनी को नहीं दी थी, जिनके बारे में वह अच्छे से अवगत था।’’

अदालत ने CAA के विरोध में दिल्ली में भड़के दंगों को राष्ट्रीय राजधानी में ‘‘विभाजन के बाद सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे थे’’ बताकर यह ‘‘प्रमुख वैश्विक शक्ति’’ बनने की आकांक्षा रखने वाले राष्ट्र की अंतरात्मा में एक ‘‘घाव’’ बताया attacknews.in

नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर । दिल्ली की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को कहा कि इस साल फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे राष्ट्रीय राजधानी में ‘‘विभाजन के बाद सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे थे’’ और यह ‘‘प्रमुख वैश्विक शक्ति’’ बनने की आकांक्षा रखने वाले राष्ट्र की अंतरात्मा में एक ‘‘घाव’’ था।

अदालत ने आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के तीन मामलों में जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणियां की। हुसैन पर सांप्रदायिक हिंसा के भड़काने के लिए कथित तौर पर अपने राजनीतिक दबदबे का दुरुपयोग करने का आरोप है।

अदालत ने कहा, ‘‘यह सामान्य जानकारी है कि 24 फरवरी, 2020 के दिन उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई हिस्सें सांप्रदायिक उन्माद की चपेट में आ गये, जिसने विभाजन के दिनों में हुए नरसंहार की याद दिला दी। दंगे जल्द ही जंगल की आग की तरह राजधानी के नये भागों में फैल गये और अधिक से अधिक निर्दोष लोग इसकी चपेट में आ गये।’’

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा, ‘‘दिल्ली दंगे 2020 एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा रखने वाले राष्ट्र की अंतरात्मा पर एक घाव है और दिल्ली में हुए ये दंगे ‘‘विभाजन के बाद सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे थे।’’

अदालत ने कहा कि इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर दंगे फैलाना “पूर्व-नियोजित साजिश” के बिना संभव नहीं है।

पहला मामला दयालपुर इलाके में हुए दंगों के दौरान हुसैन के घर की छत पर पेट्रोल बम के साथ 100 लोगों की कथित मौजूदगी और उन्हें दूसरे समुदाय से जुड़े लोगों पर बम फेंकने से जुड़ा है।

दूसरा मामला क्षेत्र में एक दुकान में लूटपाट से जुड़ा है जिसके कारण दुकान के मालिक को लगभग 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ जबकि तीसरा मामला एक दुकान में लूटपाट और जलाने से संबंधित है जिसमें दुकान के मालिक को 17 से 18 लाख रुपये का नुकसान हुआ।

न्यायाधीश ने कहा कि यह मानने के लिए रिकॉर्ड में पर्याप्त सामग्री है कि हुसैन अपराध के स्थान पर मौजूद थे और एक विशेष समुदाय के दंगाइयों को उकसा रहे थे। न्यायाधीश ने कहा कि हुसैन के खिलाफ गंभीर प्रकृति के आरोप है।

अदालत ने कहा कि तीनों मामलों में सरकारी गवाह उसी क्षेत्र के निवासी हैं और यदि उसे जमानत पर रिहा किया गया तो हुसैन द्वारा इन गवाहों को धमकी देने या भयभीत करने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।

हुसैन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के के मेनन ने दावा किया था कि कानून की मशीनरी का दुरुपयोग करके उसे परेशान करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ पुलिस और उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है।

विशेष लोक अभियोजक मनोज चौधरी ने कहा कि हुसैन मामलों में मुख्य साजिशकर्ता है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रमण ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा सरकार गिराने के लगाएं आरोपों का दिया जवाब:न्यायाधीशों को निडर होकर लेने चाहिए निर्णय attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन.वी. रमण ने कहा कि न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत उसमें जनता का भरोसा है और न्यायाधीशों को ‘‘अपने सिद्धांतों के प्रति अटल’’ रहना चाहिए तथा सभी दबावों और प्रतिकूलताओं के बावजूद ‘‘निडर होकर निर्णय’’ लेने चाहिए।

दरसअल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए हाल में भारत के प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे को पत्र लिख न्यायमूर्ति रमण पर आरोप लगाए हैं। इस पृष्ठभूमि में न्यायमूर्ति रमण की टिप्पणियां खास मायने रखती हैं।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.आर. लक्ष्मणन की शोक सभा में शनिवार को न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘न्यायपालिका की सबसे बड़ी शक्ति है लोगों का इसमें विश्वास। निष्ठा, विश्वास और स्वीकार्यता को अर्जित करना पड़ता है।’’

पूर्व न्यायमूर्ति ए.आर. लक्ष्मणन का 27 अगस्त को निधन हो गया था।

रेड्डी के पत्र लिखने से शुरू हुए विवाद के बाद पहली बार न्यायमूर्ति रमण ने किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में टिप्पणी की है।

उन्होंने कहा, ‘‘एक न्यायाधीश के लिए जरूरी है कि वह अपने सिद्धांतों पर अटल रहे और निर्भय होकर फैसले ले। किसी भी न्यायाधीश की यह विशेषता होनी चाहिए कि वह सभी अवरोधकों के खिलाफ और सभी दबावों तथा प्रतिकूलताओं के बावजूद साहस से खड़ा हो सके।’’

पूर्व न्यायाधीश को याद करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि हम सभी को उनके शब्दों से प्रेरणा लेनी चाहिए और न्यायपालिका की स्वतंत्र को कायम रखने के लिए प्रयास करने चाहिए, जिसकी आज के दौर में बहुत जरूरत है।

रेड्डी ने छह अक्टूबर को प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एस. ए. बोबडे को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय का इस्तेमाल ‘‘मेरी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर एवं अपदस्थ करने में किया जा रहा है।’’

रेड्डी ने सीजेआई से मामले पर गौर करने का आग्रह किया और ‘‘राज्य न्यायपालिका की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने’’ पर विचार करने के लिए कहा।

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश की तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू से नजदीकी है और ‘‘माननीय उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश इस तथ्य को सामने लाए।’’

हाथरस मामला हाईकोर्ट भेजने के संकेत के साथ सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने हाथरस के कथित सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने के संकेत के साथ गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने विभिन्न पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता, राज्य पुलिस महानिदेशक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, आरोपियों में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, पीड़िता के परिजनों की ओर से सीमा कुशवाहा और एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वकील इंदिरा जयसिंह ने खंडपीठ के समक्ष दलीलें पेश की।

सुनवाई के शुरू में श्री मेहता ने पीड़िता के परिजनों एवं गवाहों को दी जाने वाली सुरक्षा का ब्योरा पेश किया, जो कल राज्य सरकार के हलफनामा में भी कहा गया था।

इसके बाद पीड़िता के परिजनों की ओर से पेश सीमा कुशवाहा ने मुकदमे को दिल्ली स्थानांतरित करने की वकालत की। साथ ही मामले की सीबीआई जांच की अदालत से निगरानी का भी अनुरोध किया।

इस बीच सुश्री जयसिंह ने दलील दी कि मुकदमा कहां चले, यह न्यायालय खुद तय करे और यदि दिल्ली में मुकदमा चलता है तो शीर्ष अदालत खुद या दिल्ली उच्च न्यायालय उसकी निगरानी करे। उन्होंने पीड़ित परिवार को उत्तर प्रदेश पुलिस के बजाय केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की सुरक्षा देने की मांग की।

टीआरपी घोटाले मामले में रिपब्लिक टीवी को हाईकोर्ट जाने की ‘सुप्रीम’ सलाह,मुंबई पुलिस आयुक्त की प्रेस कांफ्रेंस को कोर्ट ने गंभीर मामला बताया attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर । उच्चतम नयायालय ने टीआरपी घोटाला मामले में दर्ज प्राथमिकी पर मुंबई पुलिस की ओर से जारी समन आदेश के खिलाफ रिपब्लिक टीवी की याचिका पर सुनवाई से गुरुवार को इनकार कर दिया।

न्यायालय ने, हालांकि मुंबई पुलिस आयुक्त द्वारा प्रेस में बयान दिये जाने को लेकर भी गम्भीर चिंता जतायी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचुड़, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष जाने को कहा।

न्यायमूर्ति चंद्रचुड़ ने कहा, “हमें अपने उच्च न्यायालयों पर भरोसा रखना चाहिए। उच्च न्यायालयों के हस्तक्षेप के बिना सुनवाई से एक खराब संदेश जाता है।’’

न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 226 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। उसके बाद याचिकाकर्ता एआरजी आउटलेयर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने याचिका वापस ले ली ।

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मुंबई पुलिस आयुक्त द्वारा प्रेस को दिये गये साक्षात्कार पर चिंता जतायी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “जिस तरह से पुलिस आयुक्त इन दिनों प्रेस को साक्षात्कार दे रहे हैं, उससे वाकई हम भी चिंतित हैं।”

इससे पहले मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले में चैनल के खिलाफ मुंबई पुलिस की जांच को चुनौती देने वाली रिपब्लिक टीवी की याचिका पर शीर्ष अदालत के समक्ष एक हलफनामा दायर कर इसे अनुकरणीय जुर्माने के साथ खारिज करने का आग्रह किया है।

मुंबई पुलिस ने दलील दी है कि एक कथित अपराध की जांच को अनुच्छेद 19 (1) (ए) के उल्लंघन की आड़ में नहीं टाला जा सकता है।

रिपब्लिक टीवी ने अपने सीएफओ और दूसरे अधिकारियों को मुंबई पुलिस द्वारा समन किए जाने को चुनौती दी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमें उच्च न्यायालयों में भरोसा रखना चाहिए।’’

न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी उच्च न्यायालय काम करता रहा है और मीडिया समूह को वहां जाना चाहिए।

इस मीडिया हाउस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने इस मामले में चल रही जांच को लेकर आशंका व्यक्त की।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आपके मुवक्किल का वर्ली (मुंबई) में कार्यालय है? आप बंबई उच्च न्यायालय जा सकते हैं। उच्च न्यायालय द्वारा मामले को सुने बगैर ही इस तरह से याचिका पर विचार करने से भी संदेश जाता है। उच्च न्यायालय महामारी के दौरान भी काम कर रहा है।’’

उसने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि हाल के समय में पुलिस आयुक्तों के इंटरव्यू देने का चलन हो गया है।

साल्वे ने इस पर उच्च न्यायालय जाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस ले ली।

मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले में एक मामला दर्ज किया है और उसने रिपब्लिक टीवी के मुख्य वित्त अधिकारी एस सुन्दरम को जांच के लिये तलब किया है।

मुंबई के पुलिस आयुक्त ने दावा किया था कि रिपब्लिक टीवी सहित तीन चैनलों ने टीआरपी के साथ हेराफेरी की।

पुलिस के अनुसार यह गोरखधंधा उस समय सामने आया जब टीआरपी का आकलन करने वाले संगठन बार्क ने हंसा रिसर्च समूह के माध्यम से इस बारे में एक शिकायत दर्ज करायी।

शीर्ष अदालत में यह याचिका रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के स्वामित्व वाली आर्ग आउटलायर मीडिया प्रा लि ने दायर की थी और इसमें पुलिस द्वारा जारी सम्मन निरस्त करने का अनुरोध किया गया था।

इससे पहले, मुंबई पुलिस ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दाखिल करके रिपब्लिक मीडिया समूह की याचिका खारिज करने का अनुरोध किया था।

मुंबई पुलिस ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ता कथित टीआरपी रेटिंग्स के साथ हेराफेरी की जांच निरस्त कराने के लिये संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) का सहारा नहीं ले सकते हैं। पुलिस का कहना था कि कानून के तहत किसी भी अपराध की जांच के मामले में इस अनुच्छेद की आड़ नहीं ली जा सकती है।

पुलिस का कहना था कि उसके द्वारा दर्ज प्राथमिकी में अगर कोई मामला बनता है तो उस पर इस समय फैसला नहीं किया जा सकता है।

पुलिस के अनुसार इस मामले में जांच अभी जारी है और ऐसी कोई विशेष परिस्थिति पैदा नहीं हुयी है कि इस न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इसमें हस्तक्षेप करना पड़े।