बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभिनेत्री कंगना रनौत के बंगले को तोड़ने के बीएमसी के आदेश को किया रद्द और कड़ी फटकार लगाते हुए मुआवजा देने का आदेश दिया attacknews.in

मुंबई, 27 नवंबर । बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत के बंगले को तोड़ने के बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आदेश को शुक्रवार को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति एस जे कथावाला और आर आई चागला की पीठ ने आज अपने आदेश में कहा कि बीएमसी का यह कदम प्रतिक्रियात्मक था।

कंगना के कार्यालय तोड़फोड़ पर बीएमसी को फटकार

मुंबई 27 नवंबर (वार्ता) फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के कार्यालय में तोड़फोड़ के मामले में शुक्रवार को बम्बई उच्च न्यायालय ने ब़हन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) को कड़ी फटकार लगाते हुए बीएमसी की नोटिस को रद्द कर दिया और मुआवजा देने का आदेश दिया।

खंडपीठ के न्यायाधीश एस जे काथावाला और न्यायमूर्ति आर आई छागला ने कहा कि सुश्री रानौत अपनी संपत्ति को नियमित करने के लिए कदम उठा सकती है। साथ ही क्षतिपूर्ति के लिए के लिए एक आंकलनकर्ता को नियुक्त कर सकती हैं।

न्यायाधीशों ने कहा कि बीएमसी इस मामले में गलत इरादे से आगे बढ़ी और नागरिकों के अधिकारों के खिलाफ जा कर तोड़फोड़ की।

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बंगले को तोड़ने के बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आदेश को रद्द कर दिया।

पीठ ने आज अपने आदेश में कहा कि बीएमसी का यह कदम प्रतिक्रियात्मक था।

गौरतलब है कि बीएमसी ने नौ सितंबर को कंगना के कार्यालय के कुछ हिस्से को अवैध बताते हुए तोड़फोड़ की थी। हालांकि बाद में अदालत ने बीएमसी की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी।

सुश्री कंगना ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताते हुए बम्बई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने साथ ही तोड़फोड़ के नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग की थी।

पाकिस्तान में बलात्कार की शिकार की सहमति से बलात्कारी को नपुंसक बनाने का कानून पारित attacknews.in

इस्लामाबाद, 27 नवंबर। पाकिस्तान की कैबिनेट ने शुक्रवार को बलात्कार विरोधी दो अध्यादेशों को मंजूरी दे दी है जिसमें दोषी की सहमति से बलात्कारियों को रासायनिक रूप से बधिया करने और बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन को मंजूरी दी गयी है। एक मीडिया रिपोर्ट से यह जानकारी मिली।

रासायनिक बधिया या केमिकल कास्ट्रेशन एक रासायनिक प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति के शरीर में रसायनों की मदद से एक निश्चित अवधि या हमेशा के लिए यौन उत्तेजना कम या खत्म की जा सकती है।

डॉन न्यूज की खबर के मुताबिक, बृहस्पतिवार को संघीय कानून मंत्री फारूक नसीम की अध्यक्षता में विधि मामलों पर कैबिनेट समिति की बैठक में बलात्कार विरोधी (जांच और सुनवाई) अध्यादेश 2020 और आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी गई। मंगलवार को संघीय कैबिनेट ने अध्यादेशों को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी थी।

पहली बार अपराध करने वाले या अपराध दोहराने वाले अपराधियों के लिए रासायनिक बधियाकरण को पुनर्वास के उपाय के तरह माना जाएगा और इसके लिए दोषी की सहमति ली जाएगी।

कानून मंत्री नसीम के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बधिया करने से पहले दोषी की सहमति लेना अनिवार्य है।

उन्होंने कहा कि यदि सहमति लिए बिना रासायनिक बधियाकरण का आदेश दिया जाता है तो दोषी आदेश को अदालत के समक्ष चुनौती दे सकता है।

मंत्री ने कहा कि अगर कोई दोषी बधिया करने के लिए सहमत नहीं होगा तो उस पर पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) के अनुसार कार्रवाई की जाएगी जिसके तहत अदालत उसे मौत की सजा, आजीवन कारावास या 25 साल की जेल की सजा दे सकती है।

उन्होंने कहा कि सजा का फैसला अदालत पर निर्भर करता है। न्यायाधीश रासायनिक बधियाकरण या पीपीसी के तहत सजा का आदेश दे सकते हैं।

नसीम ने कहा कि अदालत सीमित अवधि या जीवनकाल के लिए बधिया का आदेश दे सकती है ।

अध्यादेशों में बलात्कार के मामलों में सुनवाई कराने के लिए विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान है। विशेष अदालतों के लिए विशेष अभियोजकों की भी नियुक्ति की जाएगी।

प्रस्तावित कानूनों के अनुसार, एक आयुक्त या उपायुक्त की अध्यक्षता में बलात्कार विरोधी प्रकोष्ठों का गठन किया जाएगा ताकि प्राथमिकी, चिकित्सा जांच और फोरेंसिक जांच का शीघ्र पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके।

इसमें आरोपी द्वारा बलात्कार पीड़ित से जिरह पर भी रोक लगा दी गई है। केवल जज और आरोपी के वकील ही पीड़ित से जिरह कर सकेंगे।

राजकोट के कोविड अस्पताल में अग्निकांड का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर राज्य और केंद्र सरकार से रिपोर्ट तलब की, “यह हतप्रभ करने वाली घटना है,यह कोई पहली घटना नहीं है,हम इस घटना का स्वत: संज्ञान ले रहे हैं” attacknews.in

नयी दिल्ली/राजकोट , 27 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के राजकोट स्थित एक कोविड अस्पताल में आग लगने की घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और गुजरात सरकार से शुक्रवार को जवाब तलब किया।इस घटना में कई मरीजों की मौत हो गई है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने कोविड से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए राजकोट की घटना का स्वत: संज्ञान लिया। न्यायमूर्ति भूषण ने सुनवाई के दौरान कहा, “यह हतप्रभ करने वाली घटना है। यह कोई पहली घटना नहीं है। हम इस घटना का स्वत: संज्ञान ले रहे हैं।”

खंडपीठ ने कहा कि कोविड अस्पतालों में आग की घटना बार-बार हो रही है। इससे यह स्पष्ट है कि अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं पर रोक लगाने और इनसे निपटने के लिए उचित उपाय नहीं किये जा सके हैं।

न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से अगले मंगलवार तक अस्पतालों में आग की घटनाओं पर काबू के लिए उठाये गये कदमों को रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने गुजरात सरकार से भी रिपोर्ट तलब किया है।

केन्द्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय की पीठ को आश्वस्त किया कि केन्द्रीय गृह सचिव शनिवार तक बैठक आयोजित करेंगे और देश भर के सरकारी अस्पतालों के लिए अग्नि सुरक्षा निर्देश जारी करेंगे।

गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने बताया कि गुजरात के राजकोट जिले में निर्दिष्ट कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से संक्रमण के इलाज के लिए भर्ती पांच मरीजों की मौत हो गई।

उन्होंने यहां पत्रकारों को बताया कि उपचार के लिए भर्ती 26 अन्य मरीजों को सुरक्षित निकाल कर अन्य जगह स्थानांतरित किया गया है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण,न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने देश भर में संक्रमण के बढ़ते मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि राज्यों को हालात का मुकाबला करना होगा और कोविड-19 महामारी के हालात से निपटने के लिए राजनीति से ऊपर उठना होगा।

पीठ ने कहा कि अब वक्त आ गया है जब देश में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए नीतियां, दिशा निर्देश और मानक संचालन प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं।

मेहता ने पीठ से कहा कि कोविड-19 की मौजूदा लहर पहले से अधिक कठोर प्रतीत हो रही है और वर्तमान में कोरोना वायरस संक्रमण के 77 प्रतिशत मामले 10 राज्यों से हैं।

इस पर पीठ ने कहा कि हालात के निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए एक दिसंबर की तारीख मुकर्रर की।

राजकोट में कोविड अस्पताल में लगी भीषण आग में पांच की मौत, 28 झुलसे

आज गुजरात में राजकोट शहर के मालविया नगर क्षेत्र में गुरुवार मध्यरात्रि को एक कोविड अस्पताल में लगी भीषण आग में पांच लोगों की मौत हो गयी तथा अन्य 28 झुलस गये ।

थाना प्रभारी के. एन. भुकान ने बताया कि आनंद बंगला चौक के निकट स्थित तीन मंजिला उदय शिवानंद कोविड सेंटर नामके अस्पताल की पहली मंजिल पर अचानक आग लग गयी। अस्पताल में कुल 33 मरीज भर्ती थे। हादसे में आईसीयू में भर्ती 11 मरीजों में से पांच लोगों की मौत हो गयी जबकि अन्य आईसीयू के छह मरीजों सहित 28 लोग झुलस गए। झुलसे लोगों को अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। मृतकों की पहचान संजय अ. राठोड़ (57), रामसिंहभाई (65), नितिनभाई, केशुभाई ला. अकबरी (50) और रशिकलाल शां. अग्रावत (69) के रूप में हुयी है।

अग्निशमन विभाग के कर्मी ने बताया कि आग लगने की सूचना मिलते ही दमकल की छह गाड़ियों के साथ दमकल कर्मी मौके पर पहुंच गए। दमकल कर्मियों ने करीब छह घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आज सुबह आग पर काबू पा लिया। आग लगने के कारणों का पता लगाया जा रहा है ।

सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को महाराष्ट्र सरकार की राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग बताकर हाईकोर्ट के निर्णय तक जमानत देकर अर्नब के खिलाफ आरोप स्थापित नहीं होने का आदेश दिया attacknews.in

नयी दिल्ली, 27 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी के प्रमुख संपादक अर्नब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दी गई अंतरिम जमानत का विस्तृत कारण शुक्रवार को दिया, जिसके अनुसार महाराष्ट्र पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी का प्रथम दृष्टया मूल्यांकन उनके खिलाफ आरोप स्थापित नहीं करता है।

न्यायालय ने अपने 55 पन्नों के फैसले में स्पष्ट किया है कि अर्नब को मिली अंतरिम जमानत बॉम्बे उच्च न्यायालय में उनकी लंबित याचिका के निपटारे तक जारी रहेगी। इतना ही नहीं, यदि उच्च न्यायालय का फैसला अर्नब के विरुद्ध होता है तो भी उस फैसले के दिन से चार सप्ताह की अवधि तक उन्हें अंतरिम जमानत का संरक्षण जारी रहेगा।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने गत 11 नवंबर को अर्नब और दो अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा था कि वह अपने इस निर्णय को लेकर विस्तृत कारण बाद में जारी करेगी।

न्यायालय ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी का प्रथम दृष्टया मूल्यांकन उनके खिलाफ आरोप स्थापित नहीं करता है।

खंडपीठ ने आगे कहा कि पत्रकार अर्नब गोस्वामी की 2018 में आत्महत्या मामले में अंतरिम जमानत तब तक जारी रहेगी जब तक बॉम्बे उच्च न्यायालय उनकी याचिका का निपटारा नहीं कर देता। यदि फैसला अर्नब के विपरीत भी जाता है तो भी उन्हें उस फैसले के चार सप्ताह बाद तक संरक्षण प्राप्त होगा।

न्यायालय का कहना है कि उच्च न्यायालय और निचली अदालतों को राज्य द्वारा आपराधिक कानून का दुरुपयोग करने के खिलाफ जागरुक रहना चाहिए।

फैसले में कहा गया है कि इस अदालत के दरवाजे ऐसे नागरिकों के लिए बंद नहीं किए जा सकते हैं, जिनके खिलाफ प्रथम दृष्टया राज्य द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने के संकेत हों। खंडपीठ का यह भी कहना है कि अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपराधों के खिलाफ कानूनों को सताने का औजार न बनाया जाये।

सुप्रीम कोर्ट ने धोखा देने वाले उपकरण के कथित इस्तेमाल पर जर्मनी की नामी कार कंपनी स्कोडा फॉक्सवैगन को जिम्मेदार माना,उत्तरप्रदेश में दर्ज FIR को निरस्त करने से किया मना attacknews.in

नयी दिल्ली, 26 नवंबर । उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को जर्मन कार विनिर्माता स्कोडा ऑटो फॉक्सवैगन इंडिया की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक उपभोक्ता द्वारा उसकी डीजल कार में कथित रूप से ‘धोखा देने वाले उपकरण’ के इस्तेमाल पर उत्तर प्रदेश में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने यह फैसला सुनाया और ऑटोमोबाइल निर्माता की याचिका को खारिज कर दिया।

कंपनियां प्रदूषण उत्सर्जन परीक्षणों में हेरफेर करने के लिए सॉफ्टवेयर आधारित धोखा देने वाले उपकरण का इस्तेमाल करती हैं। फॉक्सवैगन पर कुछ साल पहले वैश्विक स्तर पर इस तरह के कदाचार का आरोप लगा था।

इससे पहले चार नवंबर को शीर्ष न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था कि मामले की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए।

सुनवाई के दौरान ऑटोमोबाइल विनिर्माता ने दलील दी कि इस बारे में दिसंबर 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में शिकायत की गई थी, और मार्च 2019 में उस पर जुर्माना लगाया गया, जिसे शीर्ष न्यायालय ने रोक दिया था।

इस संबंध में उत्तर प्रदेश में भी एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसे रद्द कराने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

उच्च न्यायालय ने एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए स्कोडा की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद कंपनी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की, जहां उसे कोई राहत नहीं मिल सकी।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने चार नवंबर को स्कोडा फॉक्सवैगन इंडिया की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कंपनी ने अपने खिलाफ उत्तर प्रदेश में एक ग्राहक की प्राथमिकी (एफआईआर) को चुनौती दी थी। ग्राहक ने कंपनी की डीजल कार में उत्सर्जन स्तर छिपाने के लिये ‘धोखाधड़ी वाले उपकरण’ के उपयोग के आरोप में यह प्राथमिकी दर्ज करायी है।

पिछली सुनवाई में पीठ ने कहा था कि प्रथम दृष्ट्या मामले में जांच जारी रहनी चाहिए।

न्यायालय ने कहा, ‘‘आपराधिक जांच से निपटने को लेकर कई रास्ते हैं… हम जानते हैं कि फॉक्सवैगन वाहन बनाने वाली नामी कंपनी है। हम उसके प्रशंसक हैं… लेकिन आप यहां आये हैं, इस समय यह गलत है।’’

स्कोडा की तरफ से पेश वरिठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शीर्ष अदालत से कहा था कि जब मामला एनजीटी और शीर्ष अदालत देख रही है, ऐसे में नया मामला कैसे शुरू किया जा सकता है। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि ये दोनों अलग-अलग मामले हैं।

सिंघवी ने कहा कि ग्राहक ने वाहन 2018 में खरीदा और कंपनी को कोई शिकायत नहीं की।

इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि वाहन धोखाधड़ी वाले उपकरण का उपयोग हुआ हो या नहीं, यह जांच का विषय है और अदालत उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश के गलत व्याख्या के आधार पर इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

अर्नब गोस्वामी तलोजा जेल से हुए रिहा:सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत देते हुए महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाये और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा attacknews.in

मुंबई,11 नवंबर ।एक इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोप में गिरफ्तार रिपब्लिक टेलीविजन के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी बुधवार शाम तलोजा जेल से रिहा कर दिया गया

उच्चतम न्यायालय ने आज दिन में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों नीतीश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह को 50-50 हजार रुपये के निजी बॉन्ड पर अंतरिम जमानत देते हुए तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था। इससे पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अर्णब की जमानत याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के पास जाने को कहा था।

श्री गोस्वामी जैसे ही सफेद कार में तलोजा जेल से बहार आये वहां मौजूद लोगों के हूजूम ने कार को घेर लिया।

उन्होंने कार की सनरुफ से बाहर निकलते हुए विक्ट्री का चिन्ह बनाया और ‘भारत माता की जय, वंदेमातरम’ का जयघोष किया।

श्री गोस्वामी ने कहा,“मैं सुप्रीम कोर्ट का आभारी हूं, ये देश के लोगों की जीत है।”

महाराष्ट्र पुलिस ने एक सप्ताह पहले अर्नब को गिरफ्तार किया था।

न्यायालय का अर्नब मामले में महा. सरकार से सवाल, कहा यह मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है:

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिये उकसाने के 2018 के मामले में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाये और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है।

पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र में असाधारण सहनशक्ति है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’’

पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे।

शीर्ष अदालत 2018 के एक इंटीरियर डिजायनर और उनकी मां को आत्महत्या के लिये कथित रूप से उकसाने के मामले में अंतरिम जमानत के लिये गोस्वामी की अपील पर सुनवाई कर रही है।

गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें और दो अन्य को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया था और उन्हें राहत के लिये निचली अदालत जाने का निर्देश दिया गया था।

अर्नब गोस्वामी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत के लिए निचली अदालत का दरवाजा खटखटाने को कहा, अंतरिम जमानत देने से इनकार attacknews.in

मुंबई, 09 नवंबर । इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में बाम्बे उच्च न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी चैनल के एडीटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी को सोमवार को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

उच्च न्यायालय ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि आरोपी (गोस्वामी) इसके लिए निचली अदालत में जा सकते हैं और संबद्ध अदालत निश्चित समय सीमा में उनकी अर्जी पर सुनवाई करेगी।

गोस्वामी को महाराष्ट्र पुलिस ने उसके आवास से चार नवंबर को गिरफ्तार किया था। यह मामला 2018 का है जिसमें एक इंटीरियर डिजाइनर ने गोस्वामी की ओर से बकाया राशि नहीं दिए जाने पर उसने और उसकी मां ने आत्महत्या कर ली थी। अर्नब को इस मामले में स्थानीय अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा था।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर आरोपी अपराध दंड संहिता की धारा 439 के तहत सत्र न्यायालय की शरण में जाता है तो इसे एक बाधा के रूप में नहीं लिया जाएगा।

अर्नब गोस्वामी द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर बाम्बे हाईकोर्ट ने बिना आगे की अगली तारीख तय किये अपना आदेश सुरक्षित रख लिया attacknews.in

मुंबई 07 नवंबर । बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शनिवार को 2018 के आत्महत्या के मामले में गिरफ्तार रिपब्लिक टीवी के प्रमुख संपादक अर्नब गोस्वामी को तत्काल राहत देने से इन्कार कर दिया लेकिन बिना आगे की अगली तारीख तय किये अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।

श्री अर्नब गोस्वामी के अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई के तीसरे दिन दलीलों को सुनने के बाद न्यायाधीश एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की एक खंडपीठ ने कहा वे बिना किसी नयी तारीख के बिना जल्द से जल्द आदेश पारित करेंगे

इससे पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गुरुवार की शाम रिपब्लिक टीवी के प्रमुख संपादक अर्नब गोस्वामी को राहत देने से इंकार करते हुए कहा धा कि अदालत मामले को विस्तार से सुनना चाहती है और इसके लिए शुक्रवार अपराह्न तीन बजे का समय दिया गया था जिसमें अदालत ने सुनवाई जारी रखी थी।

श्री गोस्वामी को बुधवार को, वर्ष 2018 में एक वास्तुकार और उसकी माँ की आत्महत्या के मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर अलीबाग के एक स्थानीय अदालत में पेश किया था जहां उन्हें 18 नवंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

अर्नब गोस्वामी को जिस मामले में गिरफ्तार किया उसमें आत्महत्या करने वाले इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक की कम्पनी के खाते में जुलाई 2019 में पूरी बकाया राशि जमा करा दी गई थी और मई 2018 में पुलिस ने सम्पूर्ण जांच के बाद ही मामला बंद करके कोर्ट को सूचित कर दिया था

रिपब्लिक टीवी’ के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपनी गिरफ्तारी को ‘‘गैरकानूनी’’ बताते हुए बंबई उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की थी।

उन्होंने महाराष्ट्र में अलीबाग पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने की अपील की ।

न्यायमूर्ति एस.एस. शिंदे और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की एक खंडपीठ बृहस्पतिवार दोपहर इस मामले पर सुनवाई की।

आर्किटेक्ट एवं इंटिरियर डिजाइनर अन्वय नाइक को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गोस्वामी को मुम्बई के लोअर परेल स्थित उनके घर से बुधवार को गिरफ्तार कर पड़ोसी रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस स्टेशन ले जाया गया था।

इसके बाद, अलीबाग की एक अदालत ने इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 18 नवम्बर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

गोस्वामी को एक स्थानीय स्कूल में रखा गया , जिसे अलीबाग कारागार का कोविड-19 केन्द्र बनाया गया है।

गोस्वामी ने याचिका में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए, उसे ‘‘गैरकानूनी’’ बताया और मामले की जांच पर तुंरत रोक लगाने के साथ ही, पुलिस को उन्हें तत्काल रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया।

याचिका में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की भी मांग की गई ।

उसमें यह भी आरोप लगाया कि बुधवार को पुलिस उनके घर में घुसी और पुलिस दल ने उन पर हमला भी किया।

याचिका में कहा, ‘‘ उन्हें एक प्रेरित, झूठे और बंद किए जा चुके मामले में गलत और गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया। यह याचिकाकर्ता और उनके चैनल की राजनीतिक रूप से छवि खराब करने और प्रतिशोध का मामला है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘ गिरफ्तारी याचिकाकर्ता (गोस्वामी) के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों और उनकी गरिमा का उल्लंघन करते हुए की गई । जब गोस्वामी को गिरफ्तार किया गया तो याचिकाकर्ता और उनके बेटे पर हमला किया गया और पुलिस वैन में धकेला गया।’’

याचिका के अनुसार, मामले की जांच पिछले साल ही बंद कर दी गई थी और उसकी रिपोर्ट दाखिल की गई थी, जिसे 16 अप्रैल, 2019 के एक आदेश द्वारा अलीबाग अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।

याचिका में कहा, ‘‘ यह चौंकाने वाली बात है, कि एक ऐसा मामला जो निर्णायक रूप से बंद कर दिया गया था, उसे शक्ति के दुरुपयोग, तथ्यों को मनमाने तरीके से पेश करने तथा प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता से महाराष्ट्र में सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करने वाली उनकी समाचार कवरेज का बदला लेने और उनकी गिरफ्तारी के लिए दोबारा खोला गया।’’

याचिका में दावा किया गया कि मई 2018 में पुलिस ने गोस्वामी और ‘रिपब्लिक टीवी’ के दो वरिष्ठ अधिकारियों के बयान दर्ज किए थे और सम्पूर्ण जांच के बाद ही मामला बंद किया गया था।

याचिका में कहा, ‘‘ याचिकाकर्ता ने उस समय मृतक की कम्पनी के साथ व्यापारिक लेनदेन के सभी दस्तावेज मुहैया कराए थे और मामले में पूरा सहयोग किया था।’’

उसने यह भी कहा कि गोस्वामी की कम्पनी ‘एआरजी आउटलियर प्राइवेट लिमिटेड’ ने अन्वय नाइक की कम्पनी ‘कॉनकॉर्ड डिज़ाइन्स’ को अनुबंध के तहत बकाया राशि का 90 प्रतिशत भुगतान कर दिया था।

याचिका में कहा, ‘‘ जुलाई 2019 में, नाइक की कम्पनी के खाते में पूरी बकाया राशि जमा करा दी गई थी, लेकिन खाते के निष्क्रिय होने की वजह से वह राशि हमारे खाते में वापस आ गई।’’

उसने कहा कि याचिकाकर्ता ने पूर्व में पुलिस के साथ पूरा सहयोग किया और आगे भी करते रहेंगे।

अर्नब गोस्वामी रातभर स्कूल में बनाए गए जेल कोविड-19 केन्द्र में रहे

अलीबाग (महाराष्ट्र) से खबर है कि, गिरफ्तार ‘रिपब्लिक टीवी’ के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को रात भर एक स्कूल में रखा गया जिसे अलीबाग जेल का कोविड-19 केन्द्र निर्दिष्ट किया गया है।

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित अलीबाग की एक अदालत ने इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 18 नवम्बर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

पुलिस ने गोस्वामी की 14 दिन की हिरासत का अनुरोध किया था, लेकिन अदालत ने कहा कि हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत नहीं है।

अधिकारी ने बृहस्पतिवार को बताया कि चिकित्सकीय जांच के लिए गोस्वामी को बुधवार रात एक सरकारी अस्पताल ले जाया गया।

उन्होंने बताया कि चिकित्सकीय जांच के बाद उन्हें अलीबाग नगर परिषद स्कूल ले जाया गया, जहां उन्होंने रात बिताई। इस स्कूल को अलीबाग जेल का कोविड-19 केन्द्र बनाया गया है।

आर्किटेक्ट एवं इंटिरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गोस्वामी और दो अन्य के खिलाफ भादंवि की धारा 306 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस ने बताया कि ‘कॉनकॉर्ड डिज़ाइन्स प्राइवेट लिमिटेड’ के मालिक अन्वय नाइक ने कथित ‘सुसाइड नोट’ में दावा किया था कि गोस्वामी, ‘आईकास्टएक्स/स्कीमीडिया’ के फिरोज मोहम्मद शेख और ‘स्मार्ट वर्क्स’ के नीतीश सारदा ने उनके बकाया रुपये का भुगतान नहीं किया जिसकी वजह से वह आत्महत्या कर रहे हैं।

शेख और सारदा को भी बुधवार को अलीबाग की अदालत में पेश किया गया और उन्हें भी 18 नवम्बर तक हिरासत में भेज दिया गया है। अदालत का फैसला रात्रि 11 बजे के तुरंत बाद आया।

नाइक के कथित ‘सुसाइड नोट’ को पुणे में एक हस्तलेखन विशेषज्ञ के पास भेजा गया है और उसकी रिपोर्ट का इंतजार है।

अधिकारी ने बताया कि गोस्वामी की जमानत याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई हुई ।

गोस्वामी ने मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने का अनुरोध करते हुए दो नवम्बर को बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया था।

अधिकारी ने बताया कि मुम्बई पुलिस ने ड्यूटी पर एक पुलिस अधिकारी के काम में ‘‘बाधा डालने, उस पर हमला करने, अभद्र शब्द कहने तथा धमकाने’’ और उनके घर पर ‘‘सरकारी दस्तावेजों’’ (जिसमें गिरफ्तारी की सूचना दी गई थी) को फाड़ने के मामले में गोस्वामी की पत्नी, उनके बेटे और दो अन्य के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कराई है।

उन्होंने बताया कि एन.एम. जोशी मार्ग पुलिस थाने में बुधवार को भादंवि की धारा 353, 504,506 और सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पुहंचाने से संबंधित अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।

अर्नब ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें एक मामले में गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार किया था जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।

गोस्वामी के वकील गौर पार्केर ने हिरासत का विरोध करते हुए अदालत में कहा कि उनके मुवक्किल के साथ दो पुलिस अधिकारियों ने मारपीट की और उनके घर को तीन घंटे के लिए घेर लिया गया। श्री पार्केर ने अदालत में अपने मुवक्किल गोस्वामी का पूरा घटनाक्रम बताया था ।

अर्नब गोस्वामी को डराने के मामले में महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय के सचिव को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जारी किया अदालत की अवमानना का नोटिस attacknews.in

नयी दिल्ली, 06 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन मामले में महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय के सचिव को शुक्रवार को नोटिस जारी करके पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाये।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने अवमानना नोटिस उस वक्त जारी किया, जब उसे अर्णब की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अवगत कराया कि सचिवालय के सचिव ने गत 30 अक्टूबर को अर्णब को पत्र लिखकर कहा है कि उन्होंने गोपनीयता की शर्त का उल्लंघन किया है।

श्री साल्वे के अनुसार, महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय के सचिव की तरफ से लिखी चिठ्ठी में कहा गया था कि अर्णब को बताया गया था कि कार्यवाही गोपनीय है, लेकिन उन्होंने (अर्णब ने) बिना विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति के उस बात की जानकारी शीर्ष अदालत को दे दी।

न्यायमूर्ति बोबडे ने सचिव के इस बात का संज्ञान लेते हुए पूछा, “संविधान का अनुच्छेद 32 किसलिए है? सचिव का यह पत्र एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन है, क्योंकि पत्र के जरिये संबंधित व्यक्ति को अदालत का दरवाजा खटखटाने पर डराने का प्रयास किया गया। यह अदालत की अवमानना की श्रेणी में आता है।”

इसके बाद न्यायालय ने एक नोटिस जारी करके पत्र लिखने वाले सचिव से पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की जाये। खंडपीठ ने नोटिस के जवाब के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।

इस बीच अर्णब इस मामले में गिरफ्तार नहीं किये जायेंगे। शीर्ष अदालत ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तार को न्याय मित्र बनाया है।

अर्नब गोस्वामी द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर बम्बई हाईकोर्ट शनिवार को भी सुनवाई जारी रखेगा,दर्ज होंगे महाराष्ट्र सरकार और अन्वया नाइक के बयान attacknews.in

मुंबई, 06 नवंबर ।बम्बई उच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्णब गोस्वामी को शुक्रवार को भी कोई राहत नहीं दी।

खंडपीठ के न्यायाधीश एस एस शिंदे और न्यायाधीश एम एस कार्णिक ने आज कहा,” इस मामले में शनिवार को भी सुनवाई जारी रहेगी और हम इस मामले में कल 12 बजे भी सुनवाई करेंगे।”

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार और शिकायतकर्ता अदन्या नाईक के पक्ष को कल सुना जायेगा। रायगढ़ की पुलिस ने सत्र अदालत के सामने चुनौती पेश की है और गोस्वामी ने अपनी गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताया है।

अर्नब ने गिरफ्तारी को ‘गैरकानूनी’ बताते हुए अदालत में चुनौती दी

रिपब्लिक टीवी’ के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपनी गिरफ्तारी को ‘‘गैरकानूनी’’ बताते हुए बंबई उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की है।

उन्होंने महाराष्ट्र में अलीबाग पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने की अपील की है।

न्यायमूर्ति एस.एस. शिंदे और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की एक खंडपीठ बृहस्पतिवार दोपहर इस मामले पर सुनवाई की और शुक्रवार को सुनवाई तय की थी।

आर्किटेक्ट एवं इंटिरियर डिजाइनर अन्वय नाइक को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गोस्वामी को मुम्बई के लोअर परेल स्थित उनके घर से बुधवार को गिरफ्तार कर पड़ोसी रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस स्टेशन ले जाया गया था।

इसके बाद, अलीबाग की एक अदालत ने इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 18 नवम्बर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

गोस्वामी को अभी एक स्थानीय स्कूल में रखा गया है, जिसे अलीबाग कारागार का कोविड-19 केन्द्र बनाया गया है।

गोस्वामी ने याचिका में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए, उसे ‘‘गैरकानूनी’’ बताया और मामले की जांच पर तुंरत रोक लगाने के साथ ही, पुलिस को उन्हें तत्काल रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

याचिका में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की भी मांग की गई है।

उसमें यह भी आरोप लगाया है कि बुधवार को पुलिस उनके घर में घुसी और पुलिस दल ने उन पर हमला भी किया।

याचिका में कहा, ‘‘ उन्हें एक प्रेरित, झूठे और बंद किए जा चुके मामले में गलत और गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया। यह याचिकाकर्ता और उनके चैनल की राजनीतिक रूप से छवि खराब करने और प्रतिशोध का मामला है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘ गिरफ्तारी याचिकाकर्ता (गोस्वामी) के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों और उनकी गरिमा का उल्लंघन करते हुए की गई । जब गोस्वामी को गिरफ्तार किया गया तो याचिकाकर्ता और उनके बेटे पर हमला किया गया और पुलिस वैन में धकेला गया।’’

याचिका के अनुसार, मामले की जांच पिछले साल ही बंद कर दी गई थी और उसकी रिपोर्ट दाखिल की गई थी, जिसे 16 अप्रैल, 2019 के एक आदेश द्वारा अलीबाग अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।

याचिका में कहा, ‘‘ यह चौंकाने वाली बात है, कि एक ऐसा मामला जो निर्णायक रूप से बंद कर दिया गया था, उसे शक्ति के दुरुपयोग, तथ्यों को मनमाने तरीके से पेश करने तथा प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता से महाराष्ट्र में सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करने वाली उनकी समाचार कवरेज का बदला लेने और उनकी गिरफ्तारी के लिए दोबारा खोला गया।’”

सुप्रीम कोर्ट का SC/ST एक्ट पर महत्वपूर्ण फैसला:कोई अपराध केवल इसलिए नहीं स्वीकार कर लिया जाएगा कि शिकायतकर्ता एससी/एसटी का सदस्य है attacknews.in

नयी दिल्ली, 06 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून (एससी/एसटी एक्ट) के तहत कोई अपराध केवल इसलिए नहीं स्वीकार कर लिया जाएगा कि शिकायतकर्ता एससी/एसटी का सदस्य है, बशर्ते यह साबित नहीं हो जाता कि आरोपी ने सोच-समझकर शिकायतकर्ता का उत्पीड़न उसकी जाति के कारण ही किया है।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि सामान्य वर्ग के किसी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके खिलाफ एससी/एसटी के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया है।

उच्च जाति के व्यक्ति के विरूद्ध सिर्फ इसलिए आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं हो हो सकता क्योंकि उस पर SC/ST वर्ग के किसी सदस्य ने आरोप लगाया है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि जब तक उत्पीड़न का कोई कार्य किसी की जाति के कारण सोच-विचार कर नहीं किया गया हो तब तक आरोपी पर एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

शिकायकर्ता के SC/St वर्ग से होने का मतलब नहीं कि उच्च जाति के व्यक्ति को अपराधी मान लिया जाए।

जाति के कारण SC/ST समुदाय के व्यक्ति की* *जान-बूझकर प्रताड़ना नहीं हो तो SC/ST ऐक्ट लागू नहीं होगा।

अगर चहारदिवारी के अंदर प्रताड़ित किया गया तो उच्च* *जाति के आरोपी पर SC/ST ऐक्ट नहीं लगाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि उच्च जाति के किसी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया है।

जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कोई अपराध इसलिए नहीं स्वीकार कर लिया जाएगा कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति का है, बशर्ते यह यह साबित नहीं हो जाए कि आरोपी ने सोच-समझकर शिकायतकर्ता का उत्पीड़न उसकी जाति के कारण ही किया हो।’

सोच-समझ कर नहीं किया उत्पीड़न तो SC/ST ऐक्ट लागू नहीं’

तीन सदस्यीय पीठ की तरफ से लिखे फैसले में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति को गाली भी दे दी हो तो भी उस पर एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है। हां, अगर उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को जान-बूझकर प्रताड़ित करने के लिए गाली दी हो तो उस पर एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई जरूर की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि जब तक उत्पीड़न का कोई कार्य किसी की जाति के कारण सोच-विचार कर नहीं किया गया हो तब तक आरोपी पर एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा निजी स्कूलों को कोरोना संक्रमण काल के दौरान छात्रों से सिर्फ शैक्षणिक शुल्क लेने और शिक्षक और कर्मचारियों को नियमित वेतन का भुगतान के आदेश जारी किए attacknews.in

जबलपुर, 05 नवंबर । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने निजी स्कूलों को कोरोना संक्रमण काल के दौरान छात्रों से सिर्फ शैक्षणिक शुल्क लेने के आदेश जारी किए हैं।

उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय यादव तथा न्यायाधीश राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ ने आदेश जारी किये है कि निजी स्कूल कोरोना काल में छात्रों से सिर्फ शैक्षणिक शुल्क लेंगे। इसके अलावा निजी स्कूल छात्रों से कोई अन्य शुल्क नहीं लेगे।

युगलपीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि निजी स्कूल अपने शिक्षक और कर्मचारियों को नियमित वेतन का भुगतान करेगे।

अर्नब गोस्वामी को जिस मामले में गिरफ्तार किया उसमें आत्महत्या करने वाले इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक की कम्पनी के खाते में जुलाई 2019 में पूरी बकाया राशि जमा करा दी गई थी और मई 2018 में पुलिस ने सम्पूर्ण जांच के बाद ही मामला बंद करके कोर्ट को सूचित कर दिया था attacknews.in

मुम्बई, पांच नवम्बर । ‘रिपब्लिक टीवी’ के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपनी गिरफ्तारी को ‘‘गैरकानूनी’’ बताते हुए बंबई उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की।

उन्होंने महाराष्ट्र में अलीबाग पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने की अपील की ।

न्यायमूर्ति एस.एस. शिंदे और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की एक खंडपीठ बृहस्पतिवार दोपहर इस मामले पर सुनवाई की।

आर्किटेक्ट एवं इंटिरियर डिजाइनर अन्वय नाइक को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गोस्वामी को मुम्बई के लोअर परेल स्थित उनके घर से बुधवार को गिरफ्तार कर पड़ोसी रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस स्टेशन ले जाया गया था।

इसके बाद, अलीबाग की एक अदालत ने इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 18 नवम्बर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

गोस्वामी को एक स्थानीय स्कूल में रखा गया , जिसे अलीबाग कारागार का कोविड-19 केन्द्र बनाया गया है।

गोस्वामी ने याचिका में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए, उसे ‘‘गैरकानूनी’’ बताया और मामले की जांच पर तुंरत रोक लगाने के साथ ही, पुलिस को उन्हें तत्काल रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया।

याचिका में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की भी मांग की गई ।

उसमें यह भी आरोप लगाया कि बुधवार को पुलिस उनके घर में घुसी और पुलिस दल ने उन पर हमला भी किया।

याचिका में कहा, ‘‘ उन्हें एक प्रेरित, झूठे और बंद किए जा चुके मामले में गलत और गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया। यह याचिकाकर्ता और उनके चैनल की राजनीतिक रूप से छवि खराब करने और प्रतिशोध का मामला है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘ गिरफ्तारी याचिकाकर्ता (गोस्वामी) के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों और उनकी गरिमा का उल्लंघन करते हुए की गई । जब गोस्वामी को गिरफ्तार किया गया तो याचिकाकर्ता और उनके बेटे पर हमला किया गया और पुलिस वैन में धकेला गया।’’

याचिका के अनुसार, मामले की जांच पिछले साल ही बंद कर दी गई थी और उसकी रिपोर्ट दाखिल की गई थी, जिसे 16 अप्रैल, 2019 के एक आदेश द्वारा अलीबाग अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।

याचिका में कहा, ‘‘ यह चौंकाने वाली बात है, कि एक ऐसा मामला जो निर्णायक रूप से बंद कर दिया गया था, उसे शक्ति के दुरुपयोग, तथ्यों को मनमाने तरीके से पेश करने तथा प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता से महाराष्ट्र में सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करने वाली उनकी समाचार कवरेज का बदला लेने और उनकी गिरफ्तारी के लिए दोबारा खोला गया।’’

याचिका में दावा किया गया कि मई 2018 में पुलिस ने गोस्वामी और ‘रिपब्लिक टीवी’ के दो वरिष्ठ अधिकारियों के बयान दर्ज किए थे और सम्पूर्ण जांच के बाद ही मामला बंद किया गया था।

याचिका में कहा, ‘‘ याचिकाकर्ता ने उस समय मृतक की कम्पनी के साथ व्यापारिक लेनदेन के सभी दस्तावेज मुहैया कराए थे और मामले में पूरा सहयोग किया था।’’

उसने यह भी कहा कि गोस्वामी की कम्पनी ‘एआरजी आउटलियर प्राइवेट लिमिटेड’ ने अन्वय नाइक की कम्पनी ‘कॉनकॉर्ड डिज़ाइन्स’ को अनुबंध के तहत बकाया राशि का 90 प्रतिशत भुगतान कर दिया था।

याचिका में कहा, ‘‘ जुलाई 2019 में, नाइक की कम्पनी के खाते में पूरी बकाया राशि जमा करा दी गई थी, लेकिन खाते के निष्क्रिय होने की वजह से वह राशि हमारे खाते में वापस आ गई।’’

उसने कहा कि याचिकाकर्ता ने पूर्व में पुलिस के साथ पूरा सहयोग किया और आगे भी करते रहेंगे।

अर्नब गोस्वामी रातभर स्कूल में बनाए गए जेल कोविड-19 केन्द्र में रहे

अलीबाग (महाराष्ट्र) से खबर है कि, गिरफ्तार ‘रिपब्लिक टीवी’ के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को रात भर एक स्कूल में रखा गया जिसे अलीबाग जेल का कोविड-19 केन्द्र निर्दिष्ट किया गया है।

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित अलीबाग की एक अदालत ने इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 18 नवम्बर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

पुलिस ने गोस्वामी की 14 दिन की हिरासत का अनुरोध किया था, लेकिन अदालत ने कहा कि हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत नहीं है।

अधिकारी ने बृहस्पतिवार को बताया कि चिकित्सकीय जांच के लिए गोस्वामी को बुधवार रात एक सरकारी अस्पताल ले जाया गया।

उन्होंने बताया कि चिकित्सकीय जांच के बाद उन्हें अलीबाग नगर परिषद स्कूल ले जाया गया, जहां उन्होंने रात बिताई। इस स्कूल को अलीबाग जेल का कोविड-19 केन्द्र बनाया गया है।

आर्किटेक्ट एवं इंटिरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गोस्वामी और दो अन्य के खिलाफ भादंवि की धारा 306 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस ने बताया कि ‘कॉनकॉर्ड डिज़ाइन्स प्राइवेट लिमिटेड’ के मालिक अन्वय नाइक ने कथित ‘सुसाइड नोट’ में दावा किया था कि गोस्वामी, ‘आईकास्टएक्स/स्कीमीडिया’ के फिरोज मोहम्मद शेख और ‘स्मार्ट वर्क्स’ के नीतीश सारदा ने उनके बकाया रुपये का भुगतान नहीं किया जिसकी वजह से वह आत्महत्या कर रहे हैं।

शेख और सारदा को भी बुधवार को अलीबाग की अदालत में पेश किया गया और उन्हें भी 18 नवम्बर तक हिरासत में भेज दिया गया है। अदालत का फैसला रात्रि 11 बजे के तुरंत बाद आया।

नाइक के कथित ‘सुसाइड नोट’ को पुणे में एक हस्तलेखन विशेषज्ञ के पास भेजा गया है और उसकी रिपोर्ट का इंतजार है।

अधिकारी ने बताया कि गोस्वामी की जमानत याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई हुई ।

गोस्वामी ने मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने का अनुरोध करते हुए दो नवम्बर को बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया था।

अधिकारी ने बताया कि मुम्बई पुलिस ने ड्यूटी पर एक पुलिस अधिकारी के काम में ‘‘बाधा डालने, उस पर हमला करने, अभद्र शब्द कहने तथा धमकाने’’ और उनके घर पर ‘‘सरकारी दस्तावेजों’’ (जिसमें गिरफ्तारी की सूचना दी गई थी) को फाड़ने के मामले में गोस्वामी की पत्नी, उनके बेटे और दो अन्य के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कराई है।

उन्होंने बताया कि एन.एम. जोशी मार्ग पुलिस थाने में बुधवार को भादंवि की धारा 353, 504,506 और सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पुहंचाने से संबंधित अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।

अर्नब ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें एक मामले में गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार किया था जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।

गोस्वामी के वकील गौर पार्केर ने हिरासत का विरोध करते हुए अदालत में कहा कि उनके मुवक्किल के साथ दो पुलिस अधिकारियों ने मारपीट की और उनके घर को तीन घंटे के लिए घेर लिया गया। श्री पार्केर ने अदालत में अपने मुवक्किल गोस्वामी के बाएं हाथ में चोट दिखाई।

सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 22 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिए जाने की याचिका पर सुनवाई बंद attacknews.in

नयी दिल्ली, 04 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 22 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिए जाने की याचिका का बुधवार को निपटारा कर दिया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने, हालांकि इस पर गहरी नाराजगी जतायी।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने जबलपुर के कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना की याचिका की सुनवाई यह कहते हुए बंद कर दी कि मध्य प्रदेश में विधायकों की अयोेग्यता का मामला अब निष्प्रभावी हो गयी है, क्योंकि उपचुनाव भी हो चुके हैं और नतीजे भी आने वाले हैं। ये सभी विधायक इस साल मार्च में इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे।

श्री सिब्बल ने इस पर नाराजगी जाहिर की तथा कहा कि अदालत द्वारा अयोग्यता के मामलों को प्राथमिकता के साथ उठाए जाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों तमिलनाडु, गोवा, कर्नाटक आदि में भी इस तरह के मामलों का यही हश्र हुआ क्योंकि वे शीर्ष अदालत में लंबे समय तक लंबित रहे।

सीए की आगामी परीक्षायें ऑनलाइन आयोजित करना संभव नहीं :आईसीएआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया,तीन घंटे की यह परीक्षा एक अलग तरह की होती है जिसमे निशान नहीं लगाने होते attacknews.in

नयी दिल्ली, चार नवंबर । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि सीए की आगामी परीक्षायें ऑनलाइन आयोजित करना संभव नहीं है। कुछ छात्रों ने सुझाव दिया था कि कोविड-19 के मद्देनजर ये परीक्षा ऑनलाइन करायी जाये क्योंकि इसमें परीक्षार्थियों की विश्लेषण करने की क्षमता को परखा जाता है।

आईसीएआई ने कहा कि उसकी तीन घंटे की यह परीक्षा एक अलग तरह की होती है जिसमे निशान नहीं लगाने होते बल्कि प्रश्नों के विस्तृत उत्तर लिखने होते हैं।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने आईसीएआई से कहा कि वह कोविड-19 को लेकर छात्रों के कल्याण के लिये उठाये गये कदमों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करें। पीठ ने इसके साथ ही सीए की आगामी परीक्षा के लिये निर्धारित मानकों की जानकारी के लिये दायर याचिका का निबटारा कर दिया।

चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट की परीक्षायें 21 नवंबर से 14 दिसंबर तक होनी हैं।

याचिका पर सुनवाई के दौरान आईसीएआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामजी श्रीनिवासन ने कहा कि उनके पास परीक्षा केन्द्रों के रूप में अलग से कमरा नहीं है और न ही चिकित्सकों की सुविधा है।

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देशानुसार याचिकाकर्ताओं की वकील बांसुरी स्वराज द्वारा दिये गये सारे सुझावों पर विचार किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह सुझाव दिया गया है कि हम यह परीक्षा ऑनलाइन कर सकते हैं। हमारी परीक्षा का स्वरूप भिन्न है और इसलिए हम ऑनलाइन परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस परीक्षा में छात्रों की विश्लेषण क्षमता परखी जाती है।

पीठ ने स्वराज से कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपनी मांगों के बारे में तर्कसंगत होने की आवश्यकता है और वह उनके रवैये से संतुष्ट नहीं है।

श्रीनिवासन ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यातायात और आवास की सुविधा मांगी है लेकिन यह संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि आईसीएआई ने गृह मंत्रालय से अनुरोध किया है कि कराने के लिये ई-प्रवेश पत्र से होटल बुक कराने की अनुमति दी जाये।

पीठ ने कहा कि यह पहले की तरह ही राज्य से जुड़ा मुद्दा है जब इसी तरह के सुझाव पर सरकार राजी हो गयी थी।

पीठ ने स्वराज से सवाल किया कि जब प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखने हैं तो ऑन लाइन परीक्षा कैसे हो सकती है। ऐसा कैसे हो सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? सिर्फ इसलिए कि न्यायालय ने कई बातों की अनुमति दी हैं, आप लगातार मांग नहीं कर सकते। अपनी मांगों के प्रति तर्कसंगत होइये।’’

पीठ ने आईसीएआई से कहा कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गयी समस्याओं के बारे में सारी सूचना वेबसाइट पर जारी करे। इसके साथ ही न्यायालय ने याचिका का निबटारा कर दिया।