सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को कोविड-19 अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा जांच करने और चार सप्ताह में अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र नवीकरण कराने का दिया निर्देश, ऐसा ना करने पर होगी दंडात्मक कार्रवाई attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों को शुक्रवार को निर्देश दिया कि वे कोविड-19 समर्पित अस्पतालों में आग से सुरक्षा की जांच करें ताकि देश में अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं को रोका जा सके।

उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 समर्पित अस्पतालों को चार सप्ताह के अंदर अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र का नवीकरण कराने का निर्देश देते हुए कहा कि ऐसा ना करने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली एक पीठ ने कहा कि जिन अस्पतालों के अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र की समय सीमा खत्म हो चुकी है, उन्हें चार सप्ताह के अंदर इसे हासिल करना होगा।

न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी इस पीठ में शामिल थे। पीठ ने कहा कि राजनीतिक रैलियों और कोविड-19 से जुड़े निर्देशों के पालन के मुद्दे को निर्वाचन आयोग देखेगा।

उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के राजकोट के एक कोविड-19 अस्पताल में आग लगने की घटना के बाद संज्ञान लिया था। इस घटना में कई मरीजों की मौत हो गई थी। न्यायालय ने कहा कि जिन अस्पतालों ने अब तक अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल नहीं किया है, वे जल्द से जल्द इसे हासिल करें।

न्यायालय ने कहा कि राजकोट और अहमदाबाद के अस्पताल में आग लगने की जो घटना हुई, वह कहीं और न हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक राज्य इस संबंध में नोडल अधिकारी नियुक्त करने के लिए बाध्य है।

उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे चार सप्ताह के भीतर अनुपालन का हलफनामा दाखिल करें। पीठ ने कहा कि अगर कोविड-19 अस्पतालों में आग से संबंधित सुरक्षा नहीं है तो राज्य सरकार इस पर कार्रवाई करेगी।

कोविड-19 मरीजों के उचित इलाज और अस्पतालों में कोविड-19 से मरने वाले मरीजों के शवों के सम्मानजनक तरीके से रखे जाने के मामले में स्वत: संज्ञान लिया था और इसकी सुनवाई के दौरान ही राजकोट अस्पताल में आग का मामला भी आया। 15 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने केंद्र सरकार से कहा था कि पिछले सात-आठ महीने से कोविड-19 ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों को छुट्टी की मंजूरी पर विचार करें। अदालत का कहना था कि लगातार काम करने से डॉक्टरों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली बार्डरों से कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनकारी किसानों को हटाने संबंधी याचिका पर केन्द्र और राज्यों से मांगा जवाब attacknews.in

नयी दिल्ली, 16 दिसंबर(भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों को हटाने के लिये दायर याचिकाओं पर बुधवार को केन्द्र और अन्य राज्यों से जवाब मांगा।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सुनवाई के दौरान संकेत दिया कि न्यायालय इस विवाद का समाधान खोजने के लिये एक समिति गठित कर सकता है। इस समिति में सरकार और देश भर की किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे विरोध प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों को भी इसमें पक्षकार बनायें। न्यायालय इस मामले में बृहस्पतिवार को आगे सुनवाई करेगा।

पीठ ने केन्द्र से कहा, ‘‘आप विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों से बातचीत कर रहे हैं लेकिन अभी तक इसका कोई हल नहीं निकला है।’’

केन्द की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जो किसानों के हितों के विरुद्ध हो।

दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को तुरंत हटाने के लिये न्यायालय में कई याचिकायें दायर की गयी हैं। इनमें कहा गया है कि इन किसानों ने दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं अवरूद्ध कर रखी हैं जिसकी वजह से आने जाने वालों को बहुत परेशानी हो रही है और इतने बड़े जमावड़े की वजह से कोविड-19 के मामलों में वृद्धि का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को कोरोना महामारी के दौरान परिवारों को सौंपे गए, बाल संरक्षण गृहों के बच्चों को शिक्षा के लिये हर महीने दो-दो हजार रूपए देंने के दिए निर्देश attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे कोविड-19 महामारी के दौरान परिवारों को सौंपे गए, बाल देखभाल संस्थानों के बच्चों को, उनकी शिक्षा के लिये हर महीने दो-दो हजार रूपए दें।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बाल देखभाल केन्द्रों में रहने वाले बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिये राज्य सरकारों को, जिला बाल संरक्षण इकाई से सिफारिश मिलने के 30 दिन के भीतर, इन संस्थानों को किताबें और स्टेशनरी सहित बुनियादी सामग्री उपलब्ध करानी चाहिए।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों को पढ़ाने के लिये जरूरी संख्या में शिक्षक उपलब्ध कराये जायें।

पीठ को बताया गया कि कोविड-19 महामारी शुरू होते वक्त बाल देखभाल संस्थानों में 2,27,518 बच्चे थे और इनमें से 1,45,788 बच्चों को उनके माता पिता या अभिभावकों को सौंपा जा चुका है।

पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें दो हजार रूपए प्रति माह प्रत्येक बच्चे की शिक्षा के लिये देंगी और यह धनराशि बच्चे के परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जिला बाल संरक्षण इकाई की सिफारिश पर दी जायेगी।

परिवारों को सौंपे गये बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर देते हुये पीठ ने जिला बाल संरक्षण इकाईयों को निर्देश दिया कि वे इस मामले में समन्वय करें और इसमें प्रगति की निगरानी करें।

न्यायालय ने निर्देश दिया कि बाल संरक्षण इकाईयां बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों की सुविधाओं के मामले में प्रगति की जानकारी से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अवगत करायेंगी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि शिक्षकों को इन बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि महामारी की वजह से मार्च से ही सामान्य जीवन प्रभावित हुआ है और बच्चों को कक्षा में आने का मौका नहीं मिला है।

पीठ ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान देश के बाल सुधार गृहों और बाल देखभाल संस्थाओं में बच्चों की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लिये गये मामले में यह आदेश पारित किया।

इससे पहले, न्यायालय ने इन बच्चों के संरक्षण के लिये राज्य सरकारों और दूसरे प्राधिकारियों को अनेक निर्देश दिये थे।

इस मामले की वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने महामारी के दौरान बाल देखभाल संस्थानों में रह रहे बच्चों, और माता-पिता तथा अभिभावकों को सौंपे गये बच्चों की संख्या के बारे में पीठ को अवगत कराया।

उन्होंने कहा कि बाल देखभाल संस्थानों की किशोर न्याय बोर्ड को सहायता करनी चाहिए और कोविड-19 के दिशा निर्देशों का पालन करते हुये छात्रों के लिये शिक्षक उपलब्ध कराने चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘ हम उच्चतम न्यायालय से यह निर्देश चाहते हैं कि उन्हें बाल देखभाल गृहों में शिक्षा की सुविधायें उपलब्ध करानी चाहिए ओर राज्य सरकार को इसके लिये बुनियादी संरचना और उपकरण मुहैया कराने चाहिए। ’’

अग्रवाल ने कहा कि इन बाल देखभाल संस्थाओं में पिछले पांच महीने में बच्चों की शिक्षा में हुयी प्रगति की जानकारी प्राप्त करने का काम शिक्षकों को सौपा जाये।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्याय मित्र के सुझावों पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून के एक प्रावधान का जिक्र करते हुये मेहता ने कहा, ‘‘हम बाल देखभाल गृहों के निरीक्षण की एक व्यवस्था बना रहे है। हम यह निर्देश चाहते हैं कि राज्य सरकारें इन देखभाल गृहों के निरीक्षण के काम में आयोग के साथ सहयोग करें।’’

इस पर पीठ ने मेहता से कहा, ‘‘बाल देखभाल गृहों में बच्चों के विकास और उनके कल्याण की गतिविधियों की निगरानी का काम आप क्यों नही करते? आप आयोग की ओर से राज्यों को निर्देश दे सकते हैं।’’

पीठ ने मेहता से सवाल किया, ‘‘आप क्या चाहते हैं? क्या हमें निर्देश देने चाहिए या आप उन्हें निर्देश देना चाहते हैं?’’

मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत से जारी निर्देशों का ज्यादा महत्व होगा और आयोग इन पर अमल सुनिश्चित करने के लिये उचित कदम उठायेगा।

पीठ ने कहा कि कानून का पालन सुनिश्चित करना बाल अधिकार आयोग का कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम न्याय मित्र के सुझाव स्वीकार करेंगे और निर्देश जारी करेंगे जिनका राज्यों के बाल देखभाल गृहों में पूरी ईमानदारी से पालन करना होगा।’’ पीठ ने कहा कि इन निर्देशों को राज्यों, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य आयोगों के माध्यम से लागू करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 की ड्यूटी कर रहे चिकित्सकों को अवकाश देने पर केंद्र सरकार से विचार करने का सुझाव दिया attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केन्द्र से कहा कि पिछले सात आठ महीने से कोविड-19 की ड्यूटी में लगे चिकित्सकों को अवकाश देने पर विचार किया जाये क्योंकि लगातार काम करते रहने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों के ठीक से इलाज और शवों के साथ गरिमामय व्यवहार को लेकर स्वत: की जा रही सुनवाई के दौरान केन्द्र से कहा कि वह इस बारे में विचार करे।

पीठ ने सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि चिकित्सकों को अवकाश दिये जाने के सुझाव पर विचार किया जाये।

मेहता ने पीठ को आश्वासन दिया कि सरकार कोविड-19 ड्यूटी में लगे स्वास्थ्य कर्मियों को कुछ अवकाश देने के पीठ के सुझाव पर विचार करेगी।

पीठ ने मेहता से कहा, ‘‘इन चिकित्सकों को पिछले सात आठ महीने से एक भी ब्रेक नहीं दिया गया है और वे लगातार काम कर रहे हैं। आप निर्देश प्राप्त कीजिये और उन्हें कुछ ब्रेक देने के बारे में सोचिए। यह बहुत ही कष्ठप्रद होगा और इससे उनका मानसिक स्वास्थ भी प्रभावित हो सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि गुजरात सररकार ने मास्क नहीं पहनने पर 90 करोड़ रूपए जुर्माना लगाया लेकिन कोविड-19 में उचित आचरण के बारे में दिशा निर्देशों को लागू नहीं करा सकी।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ अमेरिका में दर्ज दस करोड़ डॉलर का मुकदमा खारिज: ‘कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट’ ने अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दायर की थी याचिका attacknews.in

वाशिंगटन, 15 दिसंबर ।अमेरिका की एक अदालत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ दर्ज कराए गए दस करोड़ डॉलर के एक मुकदमे को खारिज कर दिया है।

यह मुकदमा एक अलगाववादी कश्मीर-खालिस्तान गुट और दो अन्य व्यक्तियों द्वारा दर्ज कराया गया था।

याचिकाकर्ता, सुनवाई की दो तारीखों पर उपस्थित नहीं हो सके जिसके बाद मामला खारिज कर दिया गया।

टेक्सास के ह्यूस्टन में 19 सितंबर, 2019 को आयोजित हुए “हाउडी मोदी” कार्यक्रम के बाद मुकदमा दर्ज कराया गया था।

याचिका में भारत की संसद के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी जिसके तहत जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया था।

याचिकाकर्ताओं ने मोदी, शाह और लेफ्टिनेंट जनरल कंवल जीत सिंह ढिल्लों से मुआवजे के तौर पर दस करोड़ डॉलर की मांग की थी।

ढिल्लों, वर्तमान में ‘डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी’ के महानिदेशक हैं और प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) के अधीन ‘इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ’ के उप प्रमुख हैं।

अमेरिका के दक्षिणी टेक्सास डिस्ट्रिक्ट की अदालत के न्यायाधीश फ्रांसेस एच स्टेसी ने छह अक्टूबर को दिए अपने आदेश में कहा था कि ‘कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट’ ने इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया और सुनवाई के लिए दो बार तय की गई तारीख पर भी उपस्थित नहीं हुए।

इसके साथ ही न्यायाधीश ने मामला खारिज कर दिया।

टेक्सास डिस्ट्रिक्ट अदालत में न्यायाधीश एंड्र्यू हनेन ने 22 अक्टूबर को मामले को समाप्त कर दिया।

‘कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट’ के अलावा अन्य दो याचिकाकर्ताओं की पहचान नहीं हो सकी है।

1975 के आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट,केंद्र सरकार को नोटिस जारी attacknews.in

नयी दिल्ली, 14 दिसम्बर । उच्चतम न्यायालय ने 1975 के आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने संबंधी याचिका के कुछ सीमित बिंदुओं पर विचार करने पर सोमवार को सहमति जता दी।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने 94-वर्षीया विधवा की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया तथा याचिकाकर्ता को याचिका में संशोधन की अनुमति दे दी।

न्यायालय ने कहा कि वह इस बात पर विचार करेगा कि क्या इतना लंबा समय बीत जाने के बाद न्यायालय आपातकाल की घोषणा की वैधता की जांच कर सकता है?

याचिकाकर्ता ने 1975 में आपातकाल की घोषणा को असंवैधानिक करार दिये जाने और इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकारियों से मुआवजा के तौर पर 25 करोड़ रुपये दिलाये जाने की मांग को लेकर शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

न्यायालय ने केंद्र को उस वक्त नोटिस जारी किया, जब याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि यह अदालत आपातकाल की घोषणा की वैधता की जांच के लिए अधिकृत है।

याचिका में कहा गया है कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दफन सबसे काले अध्याय ‘आपातकाल’ के दौरान अधिकारियों के हाथों अत्याचार की शिकार हुई इस याचिकाकर्ता को अभी तक राहत प्रदान नहीं की जा सकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने बेनामी’ संपत्ति, बेहिसाबी संपत्ति और काला धन जब्त करने के लिये कानून बनाने को लेकर केंद्र सरकार को निर्देश देने वाली याचिका पर सुनवाई से किया इंकार attacknews.in

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने ‘बेनामी’ संपत्ति, बेहिसाबी संपत्ति और काला धन जब्त करने का कानून बनाने की संभावना तलाशने का केन्द्र को निर्देश देने के लिये दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को विचार करने से इंकार कर दिया और कहा कि न्यायपालिका से विधायिका और कार्यपालिका की भूमिका निभाने के लिये नहीं कहा जा सकता।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय को इस बारे में विधि आयोग को प्रतिवेदन देने की अनुमति दे दी। प्रतिवेदन में विधि आयोग से वर्तमान कानूनों में संशोधन करने या कानून बनाकर रिश्वत और काला धन अर्जित करने के अपराध में उम्र कैद की सजा का प्रावधान करने की संभावना तलाशने का अनुरोध किया जा सकता है।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, ‘‘मुझे आपसे दो बातें कहनीं हैं। विधायिका है और कार्यपालिका काम करती है और इसकी निगरानी के लिये न्यायपालिका है। आय न्यायपालिका से यह नहीं कह सकते कि वह सारी भूमिकायें अपने हाथ में ले लें। संविधान में भी इसकी परिकल्पना नहीं की गयी है।’’

पीठ ने जनहित के मामले में याचिका दायर करने के उपाध्याय के अच्छे काम की सराहना की और यह भी कहा कि यह अब ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटीगेशन’ बनता जा रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘ खेद है, यह पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटीगेशन बन रहा है। याचिकाकर्ता ने कुछ अच्छे काम भी किये हैं लेकिन इस पर हम विचार नहीं कर सकते।’’

सुनवाई शुरू होते ही उपाध्याय की ओर से शंकरनारायणन ने काला धन और बेनामी संपत्ति के मुद्दों का जिक्र किया और कहा कि स्वर्गीय राम जेठमलानी ने भी कुछ साल पहले शीर्ष अदालत में इसी तरह के मुद्दे उठाये थे।

उन्होंने कहा, ‘‘पूरी तरह से इच्छा शक्ति का अभाव है। कोयला आबंटन घोटाला एक लाख करोड़ रूपए से ज्यादा का था, लेकिन तीन साल की सजा दी गयी।’’

पीठ ने कहा, ‘‘कानून बनाना संसद का काम है। हम संसद को कानून बनाने के लिये परमादेश नहीं जारी कर सकते ।’’ पीठ ने कहा कि यचिकाकर्ता को जन प्रतिनिधियों को इस बारे में कानून बनाने के लिये तैयार करना चाहिए।

पीठ ने उपाध्याय को यह जनहित याचिका वापस लेने और विधि आयोग के यहां प्रतिवेदन देने की अनुमति दे दी।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पीठ ने समाज में सोचने के तरीके मे बदलाव पर जोर दिया और कहा , ‘‘पैसा लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये पैसा बांटने वाला भी एक व्यक्ति है।

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े जमीन घोटाले वाले रोशनी कानून रद्द करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 21 दिसंबर को फैसला करने का हाईकोर्ट को दिया आदेश attacknews.in

नयी दिल्ली, 10 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय को राज्य की भूमि का अधिकार उसके निवासियो को प्रदान करने वाले रोशनी कानून को निरस्त करने के आदेश को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिकाओं पर 21 दिसंबर को फैसला करने के लिए कहा है।

न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह उच्च न्यायालय के नौ अक्टूबर के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जनवरी के अंतिम सप्ताह में सुनवाई करेगा।

न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के मौखिक आश्वासन पर गौर किया कि मामले में शीर्ष अदालत का रूख करने वाले याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि ‘‘वे भूमि हड़पने वाले या अनधिकृत लोग नहीं हैं।’’

मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र-शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर पहले ही उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुका है और कहा कि प्राधिकार ‘‘योग्य और आम लोगों के खिलाफ नहीं है जो भूमि हड़़पने वाले नहीं हैं।’’

पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस भी थे। पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में याचिकाओं के लंबित रहने से उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई में कोई असर नहीं पड़ेगा।

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने नौ अक्टूबर को रोशनी कानून को गैर कानूनी और असंवैधानिक बताया था और सीबीआई को इस कानून के तहत भूमि आवंटन की जांच करने का आदेश दिया था।

रोशनी कानून को 2001 में लागू किया गया था। इसका मकसद ऊर्जा परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाना और राज्य की भूमि पर बसे लोगों को उसका मालिकाना हक हस्तांतरित करना था।

जम्मू- कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी खंडपीठ को भरोसा दिलाया कि जब तक जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय मामले का फैसला नहीं करता, तब तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कब्जा खाली कराने की कार्रवाई नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने “सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट ” के तहत बनने वाले नये संसद भवन के लिए 10 दिसम्बर को शिलान्यास की अनुमति तो दी लेकिन फिलहाल कोई निर्माण की अनुमति नहीं दी attacknews.in

नयी दिल्ली 07 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले नये संसद भवन के शिलान्यास को सोमवार को हरी झंडी तो दे दी, लेकिन वहां फिलहाल कोई भी निर्माण कार्य शुरू नहीं करने का निर्देश दिया। परियोजना’ का विरोध करने वाली लंबित याचिकाओं पर कोई फैसला आने तक निर्माण कार्य या इमारतों को गिराने जैसा कोई काम ना करने का आश्वासन मिलने के बाद केन्द्र को इसकी आधारशिला रखने का कार्यक्रम आयोजित करने की सोमवार को मंजूरी दी।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने थोड़े अंतराल पर दो बार हुई सुनवाई के बाद कहा, ”केंद्र सरकार को इस महत्वाकांक्षी परियोजना की कागजी कार्रवाई और 10 दिसंबर को प्रस्तावित नए संसद भवन के शिलान्यास समारोह की अनुमति होगी लेकिन वह निर्माण या तोड़फोड़ संबंधी कार्यों को अंजाम नहीं दे सकती।’

न्यायालय ने कहा कि उसने कुछ गतिविधियों का संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई के लिए स्वत: संज्ञान लिया है। न्यायमूर्ति खानविलकर ने मामले का अंतिम निपटारा न होने के बावजूद निर्माण कार्य आगे बढ़ाने को लेकर गहरी नाराजगी जतायी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘कोई रोक नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर चीज के साथ आगे बढ़ सकते हैं।”

पीठ की नाराजगी झेलते हुए सॉलिसिटर जनरल ने सरकार से निर्देश हासिल करने के लिए कल तक का समय मांगा, लेकिन न्यायालय ने आज ही सरकार से बातचीत करके वापस आने के लिए कहा और थोड़ी देर के लिए सुनवाई रोक दी गई।

थोड़ी देर के बाद, श्री मेहता वापस आ गए और उन्होंने क्षमायाचना करते हुए न्यायालय को आश्वस्त किया कि कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ों की कटाई नहीं होगी। नींव का पत्थर रखा जाएगा लेकिन, कोई और परिवर्तन नहीं होगा।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने श्री मेहता का बयान रिकॉर्ड पर लेते हुए आदेश किया कि 10 दिसंबर को होने वाला शिलान्यास कार्यक्रम जारी रहेगा, लेकिन कोई निर्माण कार्य नहीं होगा।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर के नेतृत्व वाली एक पीठ को कहा कि केवल आधारशिला रखने का कार्यक्रम किया जाएगा, वहां कोई निर्माण कार्य, इमारतों को गिराने या पेड़ कांटने जैसा कोई काम नहीं होगा।

इस परियोजना की घोषणा पिछले वर्ष सितम्बर में हुई थी, जिसमें एक नये त्रिकोणाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है। इसमें 900 से 1200 सांसदों के बैठने की क्षमता होगी। इसके निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक है, जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा।

साझा केन्द्रीय सचिवालय के 2024 तक बनने का अनुमान है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पांच दिसम्बर को कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 10 दिसम्बर को नए संसद भवन की आधारशिला रखेंगे। इसका निर्माण कार्य 2022 तक पूरा होने की संभावना है, जिसमें 971 करोड़ रुपये का खर्चा आ सकता है।

याचिकाएं भूमि उपयोग बदलाव सहित विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की गई हैं। ये सभी अभी शीर्ष अदालत में विचाराधीन हैं।

मामले में सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए की गई सुनवाई में पीठ ने मेहता को परियोजना के निर्माण को लेकर सरकार के विचारों की जानकारी देने के लिए पांच मिनट का समय दिया।

उच्चतम न्यायालय ने पांच नवम्बर को उन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी, जिनमें केन्द्र की महत्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना पर सवाल उठाए गए हैं। यह योजना लुटियंस दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे दायरे में फैली हुई है।

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पहले शीर्ष अदालत में तर्क दिया था कि परियोजना से उस ‘‘धन की बचत’’ होगी, जिसका भुगतान राष्ट्रीय राजधानी में केन्द्र सरकार के मंत्रालयों के लिए किराये पर घर लेने के लिए किया जाता है।

मेहता ने यह भी कहा था कि नए संसद भवन का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया और परियोजन के लिए किसी भी तरह से किसी भी नियम या कानून का कोई उल्लंघन नहीं किया गया।

केन्द्र ने यह भी कहा था कि परियोजना के लिए सलाहकार का चयन करने में कोई मनमानी या पक्षपात नहीं किया गया और इस दलील के आधार पर परियोजना को रद्द नहीं किया जा सकता कि सरकार इसके लिए बेहतर प्रक्रिया अपना सकती थी।

गुजरात स्थित आर्किटेक्चर कम्पनी ‘एचसीपी डिज़ाइन्स’ ने ‘सेंट्रल विस्टा’ के पुनर्विकास के लिए परियोजना के लिए परामर्शी बोली जीती है।

अदालत इस मुद्दे पर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें से एक याचिका कार्यकर्ता राजीव सूरी ने परियोजना को भूमि उपयोग बदलाव सहित विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की है।

मध्यप्रदेश में धर्म परिवर्तन को अपराध बनाने वाला कानून गैर जमानती और कठोर सजा वाला किया गया प्रस्तावित;शिवराज सिंह चौहान ने विस्तार से जानकारी दी attacknews.in

भोपाल, 05 दिसंबर । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश में कोई भी व्यक्ति अब किसी को बहला-फुसलाकर, डरा-धमका कर विवाह के माध्यम से अथवा अन्य किसी कपटपूर्ण साधन से प्रत्यक्ष अथवा अन्यथा धर्म परिवर्तन नहीं करा पाएगा।

श्री चौहान आज यहां मंत्रालय में उच्च स्तरीय अधिकारियों की बैठक में धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम – 2020 के प्रारूप पर चर्चा कर रहे थे।

बैठक में मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, अपर मुख्य सचिव गृह डॉ. राजेश राजौरा, प्रमुख सचिव विधि आदि उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा प्रयास करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी। मध्यप्रदेश सरकार इस संबंध में ‘म.प्र. धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 2020’ लाने वाली है।

प्रस्तावित अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा धर्म परिवर्तन कराने संबंधी प्रयास किए जाने पर प्रभावित व्यक्ति स्वयं, उसके माता-पिता अथवा रक्त संबंधी इसके विरुद्ध शिकायत कर सकेंगे। यह अपराध संज्ञेय, गैर जमानती तथा सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होगा। उप पुलिस निरीक्षक से कम श्रेणी का पुलिस अधिकारी इसका अन्वेषण नहीं कर सकेगा। धर्मान्तरण नहीं किया गया है यह साबित करने का भार अभियुक्त पर होगा।
जो विवाह धर्म परिवर्तन की नियत से किया गया होगा वह अकृत एवं शून्य होगा। इस प्रयोजन के लिए कुटुम्ब न्यायालय अथवा कुटुम्ब न्यायालय की अधिकारिता में आवेदन करना होगा। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति द्वारा अधिनियम की धारा 03 का उल्लंघन करने पर 01 वर्ष से 05 वर्ष का कारावास व कम से कम 25 हजार रूपए का अर्थदण्ड होगा। नाबालिग, महिला, अ.जा, अ.ज.जा के प्रकरण में 02 से 10 वर्ष के कारावास तथा कम से कम 50 हजार रूपए अर्थदण्ड प्रस्तावित किया गया है।

इसी प्रकार अपना धर्म छुपाकर ऐसा प्रयास करने पर 03 वर्ष से 10 वर्ष का कारावास एवं कम से कम 50 हजार रूपए अर्थदण्ड होगा। सामूहिक धर्म परिवर्तन (02 या अधिक व्यक्ति का) का प्रयास करने पर 05 से 10 वर्ष के कारावास एवं कम से कम 01 लाख रूपए के अर्थदण्ड का प्रावधान किया जा रहा है। प्रस्तावित ‘म.प्र. धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम’ की धारा 03 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति दूसरे को दिगभ्रमित कर, प्रलोभन, धमकी, बल, दुष्प्रभाव, विवाह के नाम पर अथवा अन्य कपटपूर्ण तरीके से प्रत्यक्ष अथवा अन्यथा उसका धर्म परिवर्तन अथवा धर्म परिवर्तन का प्रयास नहीं कर सकेगा।

प्रस्तावित अधिनियम के अनुसार स्वतंत्र इच्छा से धर्म परिवर्तन की दशा में धर्म परिवर्तन की वांछा रखने वाले व्यक्ति तथा धार्मिक पुजारी या व्यक्ति जो धर्म परिवर्तन आयोजित करने का आशय रखता हो को, उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट को जहाँ धर्म परिवर्तन संपादित किया जाना हो, एक माह पूर्व घोषणा पत्र/सूचना पत्र देना बंधनकारी होगा।

मालेगांव विस्फोट मामले की सुनवाई फिर से शुरू , बचाव पक्ष के वकीलों ने उन गवाहों से जिरह की जो पंचनामे के समय मौके पर मौजूद थे जिन्होंने दो मोटरसाइकिलों तथा पांच साइकिलों की पहचान की थी attacknews.in

मुंबई, चार दिसम्बर । मालेगांव विस्फोट मामले में शुक्रवार को सुनवाई फिर से शुरू हुई और बचाव पक्ष के वकीलों ने उन गवाहों से जिरह की जो पंचनामे के समय मौके पर मौजूद थे और जिन्होंने वहां से बरामद दो मोटरसाइकिलों तथा पांच साइकिलों की पहचान की थी।

उन्होंने पिछले साल जुलाई में विशेष अदालत के समक्ष अपनी गवाही दर्ज की थी और तब से उनकी जिरह लंबित थी।

उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के निकट एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटकों में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हो गये थे।

पुलिस के अनुसार मौके से बरामद बाइकों में से एक भोपाल से भाजपा सांसद एवं आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पंजीकृत थी। ठाकुर इस समय जमानत पर हैं।

शुक्रवार को सुनवाई शुरू होने पर ठाकुर और रमेश उपाध्याय के वकीलों ने गवाहों से जिरह की।

मामले में 400 गवाहों में से लगभग 140 की गवाही हो चुकी है। मामले की अगली सुनवाई की तिथि सात दिसम्बर तय की गई।

कोरोना वायरस महामारी के कारण मार्च में इस मामले की सुनवाई को रोक दिया गया था।

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), भारतीय दंड संहिता और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के तहत ठाकुर समेत सात आरोपी मुकदमे का सामना कर रहे हैं।

कुलभूषण जाधव के मामले को भारत द्वारा अधिकृत किए पाकिस्तानी वकील ने पाकिस्तान सरकार की भाषा बोलकर  केस को बिगाड़ने पर आमादा है पाकिस्तान attacknews.in

नयी दिल्ली 03 दिसंबर । पाकिस्तान में कैद भारतीय नाैसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव के मुकदमे को एक अन्य कैदी के मामले के साथ जोड़ने और केस बिगाड़ने का प्रयास कर रहा है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यहां नियमित ब्रीफिंग में एक सवाल के जवाब में बताया कि पाकिस्तान जाधव के मामले को किसी अन्य कैदी के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहा है।

उन्होंने कहा कि नियमित राजनयिक व्यवहार के तहत भारतीय उच्चायोग ने पाकिस्तान में सजा काटने के बाद भी कैद भारतीय कैदी मोहम्मद इस्माइल की रिहाई एवं स्वदेश वापसी के लिए एक स्थानीय वकील शाहनवाज नून को अनुबंधित किया था।

प्रवक्ता ने बताया कि मोहम्मद इस्माइल के मुकदमे के दौरान ही पाकिस्तानी अटॉर्नी जनरल ने श्री जाधव के केस को भी उठाया जबकि दोनों मामलों का आपस में कोई संबंध नहीं है।

बताया गया है कि इस पर श्री नून ने जो बयान दिये, वे सत्य से परे थे और भारत के पक्ष को प्रतिबिंबित नहीं करते थे। ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह पाकिस्तानी शासन के दबाव में अनधिकृत बयान दे रहा है।

श्री श्रीवास्तव ने कहा कि श्री नून ने भारतीय उच्चायोग के रुख को गलत ढंग से पेश किया। इसके बाद भारतीय उच्चायोग की ओर से स्पष्ट रूप से बताया गया कि श्री नून को भारत सरकार अथवा कुलभूषण जाधव को गलत ढंग से उद्धृत करने का कोई अधिकार नहीं है।

प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के आदेश के अनुरूप श्री कुलभूषण जाधव को निर्बाध राजनयिक संपर्क सुलभ कराने तथ मुकदमे से जुड़े सभी दस्तावेज सुलभ कराने में पूरी तरह से विफल रहा है।

मालेगांव विस्फोट मामले में मुकदमे की सुनवाई के पहले दिन साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मुंबई अदालत में पेश नहीं हुई attacknews.in

मुंबई, 03 दिसंबर । भोपाल से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मालेगांव विस्फोट मामले में मुकदमे की सुनवाई के पहले दिन गुरुवार को अदालत में पेश नहीं हुई। सुश्री ठाकुर ने महामारी के मद्दनेजर दिल्ली से मुंबई जाने के लिए कम समय होने का हवाला दिया।

अदालत ने एक दिसंबर को इस मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया और सभी सातों आरोपियों को तीन दिसंबर को अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया था।

वकीलों से आहत सुप्रीम कोर्ट:चाहे जैसी ड्रेस में पैरवी करने पर अबकी बार वीडियो कांफ्रेंसिंग में बिना कमीज पेश होने वाले वकील को फटकारा attacknews.in

नयी दिल्ली, 01 दिसम्बर । उच्चतम न्यायालय मंगलवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हो रही सुनवाई के दौरान बिना कमीज पहने पेश हुए वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई होते सात-आठ माह बीत चुके हैं और अब भी वकील इतने धृष्ट और लापरवाह हैं।

यह वाकया उस वक्त हुआ जब न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ बाल संरक्षण गृहों में कोरोना संक्रमण के प्रसार के मद्देनजर स्वत: संज्ञान लिये गये मामले की सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति राव ने संबंधित वकील को कड़ी फटकार लगायी और आश्चर्य जताते हुए कहा, “यह क्या है? सात – आठ माह बाद भी आप इतने धृष्ट, लापरवाह कैसे हो सकते हैं?”

पिछले दो माह के भीतर शीर्ष अदालत के समक्ष अनुचित पोशाक पहनकर पेश होने का यह दूसरा वाकया है। अक्टूबर 2020 में न्यायालय उस वक्त हतप्रभ रह गया था जब वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के दौरान एक वकील उसके समक्ष कमीज पहने बिना पेश हुआ था।

उस वक्त बेंच की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने वकील की इस तरह की हरकत पर नाराजगी जतायी थी और कहा था कि कुछ शिष्टता तो दिखायी जानी चाहिए।

ICICI बैंक MD और CEO चंदा कोचर को बर्खास्तगी आदेश में हाईकोर्ट के निर्णय में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार attacknews.in

नयी दिल्ली, 01 दिसम्बर । उच्चतम न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदा कोचर को बड़ा झटका देते हुए बर्खास्तगी आदेश में दखल देने से मंगलवार को इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के पांच मार्च के फैसले के खिलाफ श्रीमती कोचर की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने चंदा कोचर की उस याचिका को खारिज किया जिसमें उन्होंने बैंक से उन्हें बर्खास्त करने के खिलाफ दायर अर्जी को बंबई उच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकार किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘ माफ कीजिए, हम उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने को इच्छुक नहीं हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह मामला निजी बैंक और कर्मचारी के बीच का है।’’

पीठ चंदा कोचर की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय द्वारा पांच मार्च को दिए आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक के प्रबंधक निदेशक और सीईओ पद से बर्खास्त करने के खिलाफ अर्जी खारिज कर दी थी और साथ ही रेखांकित किया था कि विवाद कार्मिक सेवा की संविदा से उत्पन्न हुआ है।