संघ लोक सेवा आयोग की मनमानी भर्ती प्रक्रिया पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और UPSC से स्पष्टीकरण मांगा attacknews.in

नयी दिल्ली, छह जनवरी । दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि पदों की संख्या विशेष रूप से दिव्यांगों के लिए रिक्तियां की घोषणा किए बिना अखिल भारतीय सिविल सेवा मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार के लिए अभ्यर्थियों का चयन करना ‘मनमानी’ है। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि यह कैसे तय होता है कि मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार के लिए कौन योग्य है।

मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने सिविल सेवा की परीक्षा लेने वाले संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से कहा, ‘‘ऐसे में जब आपकी रिक्तियां बदल रही हैं, आप मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार के लिए कितने लोगों को बुलाएंगे? अगर आपको रिक्तियां बताए बगैर कितनी भी संख्या में मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार के लिए अभ्यर्थियों को बुलाने का अधिकार है तो यह मनमानी कहा जाएगी।’’

पीठ ने यह भी जानना चाहा कि परीक्षा की अधिसूचना और याचिका दायर करने वाली संस्था संभावना के द्वारा लगाए गए गणित में आठ रिक्तियों का फर्क कैसे है।

संभावना के अनुसार, रिक्तियों की संख्या 32 होनी चाहिए जबकि परीक्षा के नोटिस में दिव्यांगों के लिए सिर्फ 24 रिक्तियां बतायी गयी हैं।

अदालत ने केन्द्र और यूपीएससी से कहा, ‘‘आपको इन दोनों पहलुओं पर स्पष्टीकरण देना होगा।’’ अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय की है।

अदालत दो संगठनों संभावना और एवारा फाउंडेशन की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। दोनों ने अपनी अर्जियों में सिविल सेवा परीक्षा की अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा है कि उसमें दिव्यांगों के लिए सिर्फ अनुमानित रिक्तियों का जिक्र है, अनिवार्य चार प्रतिशत आरक्षण का नहीं।

सुनवाई के दारान उन्होंने पीठसे अनुरोध किया कि वह 8 से 17 जनवरी तक होने वाली मुख्य परीक्षा को स्थगित करने का आदेश दे या केन्द्र को आदेश दे कि वह दोनों याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिव्यांगों के लिए अलग से परीक्षा की व्यवस्था करे।

अदालत ने हालांकि, इस संबंध में कोई अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया और कहा कि अगर याचिका दायर करने वाले परीक्षा में पास होते हैं तो बाद में उसके आधार पर राहत दी जा सकती है

सुप्रीम कोर्ट 11 जनवरी करेगा कृषि कानूनों के खिलाफ और किसान आन्दोलन संबंधी मामले की सुनवाई; कोर्ट ने टिप्पणी की- किसानों के आन्दोलन के मसले पर जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ attacknews.in

नयी दिल्ली, छह जनवरी । उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि तीन कृषि कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली और दिल्ली सीमा पर किसानों के आन्दोलन से संबंधित याचिकाओं पर11 जनवरी को सुनवाई की जायेगी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि किसानों के आन्दोलन के मसले पर जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है। केन्द्र ने पीठ को सूचित किया कि सरकार और किसानों के बीच इन मसलों पर ‘स्वस्थ विचार विमर्श’ जारी है।

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि निकट भविष्य में संबंधित पक्षों के किसी नतीजे पर पहुंचने की काफी उम्मीद है और नये कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र का जवाब दाखिल होने की स्थिति में किसानों और सरकार के बीच बातचीत बंद हो सकती है।

सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि सरकार और किसानों के बीच स्वस्थ वातावरण में बातचीत जारी है और इस मामले को आठ जनवरी को सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम स्थिति को समझते हैं और सलाह मशविरे को प्रोत्साहन देते हैं। अगर आप बातचीत की प्रक्रिया के बारे में कहते हैं तो हम इस मामले को सोमवार 11 जनवरी के लिये स्थगित कर सकते हैं।’’

शीर्ष अदालत अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शर्मा ने भी तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रखी है।

पीठ ने शर्मा की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। शर्मा का तर्क है कि केन्द्र को संविधान के तहत इन कानूनों को बनाने का अधिकार नहीं है।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘‘ये किसानों से संबंधित मामले हैं। दूसरे मामले कहां हैं? वे कब सूचीबद्ध हैं? हम सारे मामलों की एक साथ सुनवाई करेंगे।’’

पीठ ने मेहता से कहा कि दूसरे मामलों की स्थिति के बारे मे पता करें कि वे कब सूचीबद्ध हैं।

मेहता ने कहा कि इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिये पहले कोई निश्चित तारीख नहीं दी गयी थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस याचिका (शर्मा की) को शुक्रवार को सुनवाई के लिये रख रहे हैं और इस बीच संशोधित याचिका को रिकार्ड पर लेने की अनुमति दे रहे हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘एम एल शर्मा हमेशा ही चौंकाने वाली याचिकायें दायर करते हैं और वह कहते हैं कि केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार नहीं है। ’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस याचिका पर पहले से लंबित सारे मामलों के साथ विचार करेगी क्योंकि ‘‘हमे लगता है कि स्थिति में अभी कोई सुधार नहीं हुआ है।’’

मेहता ने जब यह कहा कि बातचीत स्वस्थ माहौल में हो रही है, पीठ ने कहा कि वह इन मामलों पर 11 जनवरी को सुनवाई करेगी।

शीर्ष अदालत ने नये कृषि कानूनों- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 अक्टूबर को केन्द्र को नोटिस जारी किया था।

न्यायालय ने पिछले साल 17 दिसंबर को दिल्ली की सीमा पर किसानों के आंदोलन को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा था कि किसानों के प्रदर्शन को ‘‘बिना किसी अवरोध’’ के जारी रखने देना चाहिए और शीर्ष अदालत इसमें ‘‘दखल’’ नहीं देगी क्योंकि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

न्यायालय ने किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन के अधिकार को स्वीकारते हुए कहा था कि उनके विरोध प्रकट करने के मौलिक अधिकार से दूसरे लोगों के निर्बाध तरीके से आवागमन और आवश्यक वस्तुयें प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए क्योंकि विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार का मतलब पूरे शहर को अवरूद्ध कर देना नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने लव जिहाद पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाए गए कानून पर रोक लगाने से किया इंकार;याचिका पर सरकारों को जारी किया नोटिस, कानूनों की वैधता पर करेगा विचार attacknews.in

नयी दिल्ली, 06 जनवरी । उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विवाह के लिये धर्मान्तरण( लव जेहाद) को रोकने के लिये बनाये गये कानूनों पर रोक लगाने से बुधवार को इंकार कर दिया। हालांकि, न्यायालय ने कानूनों की वैधानिकता को चुनौती दी जाने वाली याचिकाओं पर दोनों राज्य सरकारों से बुधवार को जवाब तलब किया।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने विशाल ठाकरे एवं अन्य तथा सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सितलवाड़ के गैर-सरकारी संगठन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड की सरकारों को नोटिस जारी किये।

न्यायालय ने, हालांकि संबंधित कानून के उन प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके तहत शादी के लिए धर्म परिवर्तन की पूर्व अनुमति को आवश्यक बनाया गया हे।

सुश्री सितलवाड़ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने दलील दी कि पूर्व अनुमति के प्रावधान दमनकारी हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के अध्यादेश के आधार पर पुलिस ने कथित लव जिहाद के मामले में निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया है।

सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति बोबडे ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित उच्च न्यायालय जाने को कहा, लेकिन श्री सिंह और वकील प्रदीप कुमार यादव की ओर से यह बताये जाने के बाद कि दो राज्यों में यह कानून लागू हुआ है और समाज में इससे व्यापक समस्या पैदा हो रही है।

वकीलों ने दलील दी कि मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे अन्य राज्य भी ऐसे ही कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई को लेकर हामी भरते हुए दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकारों का पक्ष सुने बगैर कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है।

अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अन्य तथा गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पहले से ही यह मामला लंबित है। इस पर पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि उसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय जाना चाहिए।

एक याचिकाकर्ता ने जब यह कहा कि शीर्ष अदालत को ही इन कानूनों की वैधता पर विचार करना चाहिए तो पीठ ने कहा कि यह स्थानांतरण याचिका नहीं है जिसमें कानून से जुड़े सारे मामले वह अपने यहां मंगा ले।

हालांकि, गैर सरकारी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी यू सिंह ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दीपक गुप्ता के एक फैसले का हवाला देते हुये कहा कि इसी तरह के कानून विभिन्न राज्यों में बनाये जा रहे हैं।

उन्होंने इस कानूनों के प्रावधानों पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुये कहा कि लोगों को शादी के बीच से उठाया जा रहा है।

सिंह ने कहा कि इस कानून के कुछ प्रावधान तो बेहद खतरनाक और दमनकारी किस्म के हैं और इनमें शादी से पहले सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता का प्रावधान भी है, जो सरासर बेतुका है।

पीठ ने कहा कि वह इन याचिकाओं पर नोटिस जारी करके दोनों राज्यों से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांग रही है।

सिंह ने जब कानून के प्रावधानों पर रोक लगाने पर जोर दिया तो पीठ ने कहा कि राज्यों का पक्ष सुने बगैर ही इसका अनुरोध किया जा रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने राज्य में कथित लव जिहाद की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 जारी किया था, जिसे राज्यपाल अनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को अपनी संस्तुति प्रदान की थी। इस कानून के तहत विधि विरुद्ध किया गया धर्म परिवर्तन गैर जमानती अपराध है।

यह कानून सिर्फ अंतर-धार्मिक विवाहों के बारे में है लेकिन इसमें किसी दूसरे धर्म को अंगीकार करने के बारे में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गयी है। इस कानून में विवाह के लिये छल कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण कराये जाने पर अधिकतम 10 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

इसी तरह, उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 में छल कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण कराने का दोषी पाये जाने पर दो साल की कैद का प्रावधान है।

ठाकरे और अन्य का कहना था कि वे उप्र सरकार के अध्यादेश से प्रभावित हैं क्योंकि यह संविधान में प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कम करता है।

इनकी याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा‘लव जिहाद’ के खिलाफ बनाये गये कानून और इसके तहत दंड को अवैध और अमान्य घोषित किया जाये क्योंकि यह संविधान के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करता है।

याचिका के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित अध्यादेश और उत्तराखंड का कानून आमतौर पर लोक नीति और समाज के विरुद्ध है।

गैर सरकारी संगठन ने अपनी याचिका में कहा है कि दोनों कानून संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ये राज्य को लोगों की व्यक्तिगत स्वतंतत्रा और अपनी इच्छा के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के अधिकार को दबाने का अधिकार प्रदान करता है।

इस संगठन के अनुसार उप्र का अध्यादेश स्थापित अपराध न्याय शास्त्र के विपरीत आरोपी पर ही साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी डालता है।

याचिका में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा बनाये गये इन कानूनों को संविधान के खिलाफ करार देने का अनुरोध किया गया है।

रिलायंस जियो के टावरों में तोड़फोड़ मामले पर पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा केंद्र और पंजाब सरकार को नोटिस,8 फरवरी तक मांगा जवाब attacknews.in

चंडीगढ़,05 जनवरी । केंद्र सरकार के कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन कानूनों के विरोध में रिलायंस जियो के टावर में तोड़फोड़ मामले पर पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने मंगलवार को नोटिस जारी करके आठ फरवरी तक केंद्र और पंजाब सरकार से जवाब मांगा है।

रिलायंस की तरफ से सोमवार को दायर याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने आज सुनवाई के दौरान केंद्र और पंजाब सरकार को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है। नोटिस का जबाव आठ फरवरी तक देना है।

रिलायंस की तरफ से हाजिर वरिष्ठ अधिवक्ता आशीष चोपड़ा ने कहा,“ किसान आंदोलन की आड़ में उपद्रवियों ने 1500 टावरों को नुकसान पहुचाया गया, जिससे एक करोड़ 40 लाख लोग प्रभावित हुए।

रिलायंस का आरोप है कि तोड़फोड़ के लिए इन उपद्रवियों को उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों ने अपने निहित स्वार्थ के कारण उकसाया। किसान आंदोलन को मोहरा बनाकर रिलायंस के खिलाफ लगातार एक कुटिल, दुर्भावनायुक्त और विद्वेषपूर्ण अभियान चलाया है। कृषि कानूनों से रिलायंस का नाम जोड़ने का एकमात्र उद्देश्य हमारे व्यवसायों को नुकसान पहुंचाना और हमारी प्रतिष्ठा को तहस-नहस करना है।”

पंजाब सरकार की तरफ से सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल अतुल नंदा ने न्यायालय में कहा कि राज्य सरकार ने 1019 गश्ती दल और सभी जिलों में 22 नोडल अधिकारी तैनात किए हैंं, जो रिलायंस की संपत्ति को हुए नुकसान का जायजा लेगें और आगे किसी तरह की कोई क्षति नहीं हो,इस पर निगरानी रखेंगे।

केंद्र की तरफ से अतिरिक्त सालिसिटर जरनल सत्यपाल जैन सुनवाई के दौरान न्यायालय में मौजूद थे।

एडवोकेट जरनल नंदा ने न्यायालय में कहा कि राज्य सरकार इस मामले में पूरी तरह गंभीर है। संपत्तियों को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हो इसका ध्यान रखा जायेगा और आरोपितों पर पूरी कार्रवाई की जा रही है।

दोनों पक्षों की दलीलों के बाद न्यायालय ने केंद्रीय गृह सचिव, राज्य के गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक और दूरसंचार विभाग को नोटिस जारी कर 08 फरवरी तक जवाब देने का निर्देश दिया।

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के दौरान पंजाब में रिलायंस जियो के डेढ़ हजार से अधिक टावरों में तोड़फोड़ की गई जिससे राज्य में दूरसंचार व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है।

सोमवार को रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपनी अनुषंगी जियो इन्फोकाम के मार्फत पंजाब एवं हरियाणा न्यायालय में याचिका दायर की थी। कंपनी ने उसके खिलाफ दुष्प्रचार करने और तोड़फोड़ की जांच तथा सपंति की सुरक्षा की मांग की है। याचिका में केंद्रीय गृह सचिव, दूरसंचार मंत्रालय और पंजाब के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को प्रतिवादी बनाया गया है।

याचिका में कहा गया था कि तीन नए कृषि कानूनों का कंपनी से कोई लेना-देना नहीं है, और न ही किसी भी तरह से उसे इनका कोई लाभ पहुंचता है। अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कोर्ट में रिलायंस ने कहा कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, रिलायंस रिटेल लिमिटेड (आरआरएल), रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड (आरजेआईएल) और रिलायंस से जुड़ी कोई भी अन्य कंपनी न तो कॉरपोरेट या कॉन्ट्रैक्ट खेती करती है और न ही करवाती है। और न ही इस बिजनेस में उतरने की कंपनी की कोई योजना है।

“कॉर्पोरेट” या “कॉन्ट्रैक्ट” खेती के लिये रिलायंस या रिलायंस की सहायक किसी भी कंपनी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खेती की कोई भी जमीन हरियाणा-पंजाब अथवा देश के किसी दूसरे हिस्से नहीं खरीदी है। न ही ऐसा करने की कोई योजना है। रिलायंस ने कोर्ट को यह भी बताया कि रिलायंस रिटेल संगठित रिटेल सेक्टर की कंपनी है और विभिन्न कंपनियों के अलग-अलग उत्पाद बेचती है पर कंपनी किसानों से सीधे खाद्यान्नों की खरीद नही करती और न ही किसानों के साथ कोई दीर्घकालीन खरीद अनुबंध में कंपनी शामिल है।

रिलायंस ने 130 करोड़ भारतीयों का पेट भरने वाले किसान को अन्नदाता बताया और किसान की समृद्धी और सशक्तिकरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। किसानों में फैली गलतफहमियां दूर करते हुए रिलायंस ने कोर्ट को बताया कि वह और उनके आपूर्तिकर्ता, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) या तयशुदा सरकारी मूल्य पर ही किसानों से खरीद पर जोर देंगे। ताकि किसान को उसकी उपज का बेहतरीन मूल्य मिल सके।

भारत के 75वां स्वतंत्रता दिवस 2022 तक 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की व्यवस्था वाले संसद भवन के निर्माण का रास्ता साफ सेंट्रल विस्टा परियोजना को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी attacknews.in

नयी दिल्ली, 05 जनवरी ।उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा’ योजना को मंगलवार को हरी झंडी दे दी,बहुमत से फैसला सुनाते हुए सेंट्रल विस्टा परियोजना की खातिर पर्यावरण मंजूरी और भूमि उपयोग में बदलाव की अधिसूचना को बरकरार रखा।

सेंट्रल विस्टा परियोजना की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी। इसके तहत त्रिकोण के आकार वाले नए संसद भवन का निर्माण किया जाएगा जिसमें 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसका निर्माण अगस्त 2022 तक पूरा होना है। उसी वर्ष भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा।

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि परियोजना के लिए जो पर्यावरण मंजूरी दी गई है तथा भूमि उपयोग में परिवर्तन के लिए जो अधिसूचना जारी की गई है वे वैध हैं।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने खुद की तथा न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की ओर से यह फैसला लिखा जिसमें सेंट्रल विस्टा परियोजना के प्रस्तावक को सभी निर्माण स्थलों पर स्मॉग टॉवर लगाने और एंटी-स्मॉग गन का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया गया है।

पीठ के तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने भी परियोजना को मंजूरी पर सहमति जताई हालांकि उन्होंने भूमि उपयोग में बदलाव संबंधी फैसले पर और परियोजना को पर्यावरण मंजूरी दिए जाने पर असहमति जताई।

बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय की ओर से दी गई हरी झंडी में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आती।

न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा भूमि उपयोग बदलने की अधिसूचना को भी सही ठहराया जबकि न्यायमूर्ति खन्ना ने इसपर अपनी असहमति जताई।

इस परियोजना के खिलाफ पांच याचिकाएं दायर की गई थी, जिनमें दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा भूमि उपयोग बदलने की अधिसूचना, पर्यावरण चिंताओं की अनदेखी आदि के मुद्दे शामिल थे।

न्यायालय ने लंबी सुनवाई के बाद गत वर्ष पांच नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

अनेक याचिकाओं पर शीर्ष अदालत का यह फैसला आया है जिनमें परियोजना को दी गई विभिन्न मंजूरियों पर आपत्ति जताई गई है, इनमें पर्यावरण मंजूरी दिए जाने और भूमि उपयोग के बदलाव की मंजूरी देने का भी विरोध किया गया है। इनमें से एक याचिका कार्यकर्ता राजीव सूरी की भी है।

गौरतलब है कि न्यायालय ने गत सात दिसंबर को नए संसद भवन के शिलान्यास को मंजूरी तो दे दी थी लेकिन मौजूदा ढांचे में किसी तरह के छेड़छाड़ से फैसला आने तक रोक दिया था।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने मामले का अंतिम निपटारा न होने के बावजूद निर्माण कार्य आगे बढ़ाने को लेकर गहरी नाराजगी जताई थी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था, “ कोई रोक नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर चीज के साथ आगे बढ़ सकते हैं। ”

पीठ की नाराजगी झेलते हुए सॉलिसिटर जनरल ने सरकार से निर्देश हासिल करने के लिए एक दिन का समय मांगा था, लेकिन न्यायालय ने उसी दिन सरकार से बातचीत करके वापस आने के लिए कहा था और थोड़ी देर के लिए सुनवाई रोक दी गई थी।

थोड़ी देर के बाद, श्री मेहता वापस आ गए थे और उन्होंने क्षमायाचना करते हुए न्यायालय को आश्वस्त किया था कि कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ों की कटाई नहीं होगी। नींव का पत्थर रखा जाएगा, लेकिन कोई और परिवर्तन नहीं होगा।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने श्री मेहता का बयान रिकॉर्ड पर लेते हुए आदेश दिया था कि 10 दिसंबर को होने वाला शिलान्यास कार्यक्रम जारी रहेगा, लेकिन कोई निर्माण कार्य नहीं होगा।

सेंट्रल विस्टा परियोजना मामले का घटनाक्रम

उच्चतम न्यायालय ने लुटियन्स दिल्ली में ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना को मिली पर्यावरण मंजूरी और भूमि उपयोग में बदलाव की अधिसूचना को मंगलवार को बरकरार रखा और राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर के क्षेत्र में प्रस्तावित इस महत्वाकांक्षी परियोजना का रास्ता साफ कर दिया।

इस परियोजना से जुड़े पूरे मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है:-

सितंबर, 2019: सेंट्रल विस्टा परियोजना की सितंबर 2019 में घोषणा की गई थी। इसके तहत त्रिकोण के आकार वाले नए संसद भवन का निर्माण किया जाएगा जिसमें 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसका निर्माण अगस्त 2022 तक पूरा होना है। उसी वर्ष भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा।

11 फरवरी, 2020: दिल्ली उच्च न्यायालय ने डीडीए से कहा कि वह परियोजना के साथ आगे बढ़ने से पहले मास्टर प्लान में किसी भी बदलाव को अधिसूचित करने से पहले अदालत का दरवाजा खटखटाए।

28 फरवरी: दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने डीडीए, केंद्र की एक अपील पर एकल न्यायाधीश की पीठ के आदेश पर रोक लगा दी।

17 जुलाई: उच्चतम न्यायालय ने परियोजना से संबंधित पर्यावरणीय मंजूरी और भूमि उपयोग सहित विभिन्न मुद्दों को उठाने वाली कई याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई शुरू की।

5 नवंबर: उच्चतम न्यायालय ने परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा।

7 दिसंबर: उच्चतम न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए शिलान्यास समारोह आयोजित करने की अनुमति दी, लेकिन निर्माण शुरू करने पर रोक लगा दी।

10 दिसंबर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परियोजना की आधारशिला रखी।

5 जनवरी, 2021: उच्चतम न्यायालय ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया।

रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा पंजाब और हरियाणा  हाईकोर्ट  में दायर याचिका में असामाजिक तत्वों  द्वारा टावरों की  तोड़-फोड़  की अवैधानिक गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिये राज्य सरकारों के तत्काल दखल की मांग की attacknews.in

रिलायंस ने कहा, कृषि कानूनों से उसका कोई लेना-देना नहीं

नयी दिल्ली, चार जनवरी । देश के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सोमवार को कहा कि वह न तो किसानों से खाद्यान्नों की सीधी खरीद करती है और न ही वह अनुबंध पर खेती के व्यवसाय में है।

कंपनी ने यह स्पष्टीकरण ऐसे समय में दिया है, जब वह देश में जारी किसान आंदोलन में निशाने पर है। प्रदर्शनकारी किसान रिलायंस इंडस्ट्रीज को नये कृषि कानूनों का लाभार्थी मान उसका विरोध कर रहे हैं।

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक बयान जारी कर कहा कि उसकी अनुषंगी रिलायंस जियो इंफोकॉम ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर असामाजिक तत्वों के द्वारा तोड़-फोड़ (टावरों के साथ) की अवैधानिक गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिये सरकारी प्राधिकरणों के तत्काल दखल की मांग की है।

कंपनी ने कहा कि देश में अभी जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर बहस चल रही है, उनके साथ उसका (कंपनी का) कोई लेना-देना नहीं है। कंपनी ने यह भी कहा कि उसे इन कानूनों से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हो रहा है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कहा, ‘‘रिलायंस का नाम इन तीन कानूनों के साथ जोड़ना सिर्फ और सिर्फ हमारे कारोबार को नुकसान पहुंचाने और हमें बदनाम करने का कुप्रयास है।’’

कंपनी ने कहा कि वह कॉरपोरेट या अनुबंध कृषि नहीं करती है। उसने कॉरपोरेट अथवा अनुबंध पर कृषि के लिये पंजाब या हरियाणा या देश के किसी भी हिस्से में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कृषि भूमि की खरीद नहीं की है। खाद्यान्न व मसाले, फल, सब्जियां तथा रोजाना इस्तेमाल की अन्य वस्तुओं का अपने स्टोर के जरिये बिक्री करने वाली उसकी खुदरा इकाई किसानों से सीधे तौर पर खाद्यान्नों की खरीद नहीं करती है।

कंपनी ने कहा, ‘‘किसानों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिये हमने कभी लंबी अवधि का खरीद अनुबंध नहीं किया है। हमने न ही कभी ऐसा प्रयास किया है कि हमारे आपूर्तिकर्ता किसानों से पारिश्रामिक मूल्य से कम पर खरीद करें। हम ऐसा कभी करेंगे भी नहीं।

एनआईए अदालत में हाजिर हुई भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कोर्ट का इस तरह करना पड़ा सामना attacknews.in

मुंबई, 04 जनवरी ।महाराष्ट्र के मालेगांव में वर्ष 2008 में हुए बम विस्फोट मामले की आरोपी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह सोमवार को यहां विशेष एनआईए अदालत में पेश हुईं और दैनिक पेशी से छूट मांगी।

उन्होंने अपनी बीमारी और सुरक्षा चिंताओं से अदालत को अवगत कराते हुए अदालत में उपस्थित रहने से छूट की मांग की। अदालत ने सुनवाई पांच जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी और कहा कि जब भी अदालत में उनकी जरूरत होगी उन्हें पेश होना होगा।

साध्वी और अन्य आरोपी अदालत में उपस्थित थे। पिछली सुनवाई के दौरान आरोपियों के हाजिर नहीं रहने से नाराज अदालत ने चार जनवरी को सभी सात आरोपियों को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था।

हाईकोर्ट ने केरल में अन्य राज्यों की लॉटरी की बिक्री को वैध किया;राज्य सरकार की ओर से अन्य राज्यों की लॉटरी की बिक्री पर अंकुश लगाने लाए गए संशोधन को रद्द किया attacknews.in

कोच्चि, 31 दिसंबर । केरल उच्च न्यायालय ने सरकार की ओर से अन्य राज्य लॉटरी की बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए लाए गए संशोधन को गुरुवार को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति मुहम्मद मुश्ताक ने कहा कि केवल केंद्र सरकार के पास ही इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है। न्यायमूर्ति मुश्ताक ने नागालैंड की बिक्री पर प्रतिबंध के संबंध में कोयम्बटूर स्थित फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनावाई करते हुए यह आदेश सुनाया।

अदालत ने नये आदेश में केरल में नागालैंड लॉटरी की बिक्री की अनुमति दी है।आदेश के तहत राज्य सरकारों के पास अन्य राज्यों की लॉटरी की बिक्री को प्रतिबंधित करने का अधिकार है,बशर्ते उस राज्य में लाॅटरी नहीं बेची जाती हो। अदालत ने कहा कि अगर किसी राज्य में अवैध तरीके से लॉटरी बेची जाती है ,तो केवल केन्द्र सरकार इसमें हस्तक्षेप कर सकती है।

अदालत ने साफ किया कि यदि केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन किए बिना नागालैंड लॉटरी की बिक्री की जाती है, तो केरल सरकार इसके खिलाफ केंद्र से कार्रवाई की मांग कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विभिन्न पीठ के समक्ष मुकदमों की सुनवाई के लिए नया रोस्टर जारी किया,यह 4 जनवरी से प्रभावी होगा attacknews.in

नयी दिल्ली, 28 दिसंबर ।उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न पीठ के समक्ष मुकदमे सूचीबद्ध करने के लिये सोमवार को नए रोस्टर की घोषणा की जोकि शीतकालीन अवकाश के बाद आगामी चार जनवरी से प्रभावी होगा।

नए रोस्टर के मुताबिक, प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और सात वरिष्ठ न्यायाधीश अब जनहित याचिकाओं, पत्र याचिकाओं और सामाजिक न्याय संबंधी मामलों की सुनवाई करेंगे।

प्रधान न्यायाधीश के अलावा वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव जनहित याचिकाओं और सामाजिक न्याय संबंधी मामलों की सुनवाई करेंगे।

जनहित याचिकाओं के अलावा प्रधान न्यायाधीश अवमानना के मामलों, बन्दी प्रत्यक्षीकरण, सामाजिक न्याय और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर से संबंधित मामले समेत अन्य मामलों की सुनवाई करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: न्यायालय कोई भी मामले का निपटारा वकील की उपस्थिति के बिना नहीं करें;वकील के जरिए प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा attacknews.in

नयी दिल्ली, 28 दिसंबर । उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी मामले में वकील के जरिए प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। इसी के साथ शीर्ष अदालत ने वह अपील खारिज करने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला रद्द कर दिया जिसे 1987 में एक शख्स की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने दायर की थी जिसमें उसने कहा था कि उसका वकील सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं था।

शीर्ष अदालत ने अपील बहाल करते हुए उच्च न्यायालय से कहा कि वह जल्दी किसी तारीख पर इसपर सुनवाई करने के लिए विचार करे। साथ में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय से यह भी कहा कि अगर मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधिनत्व कोई वकील नहीं कर रहा हो तो वह अपनी सहायता के लिए अदालत मित्र (एमीकस क्यूरी) नियुक्त कर सकता है।

न्यायमूर्ति यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “यह स्वीकार्य है कि वकील के जरिए प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार गारंटी को संदर्भित है।“

इस पीठ में न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट भी शामिल थे।

पीठ ने 18 दिसंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि मामले में आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रहा वकील किसी कारण से उपलब्ध नहीं है तो अदालत अपनी सहायता के लिए एमीकस क्यूरी नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन किसी भी मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए कि मामले का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा हो।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के अप्रैल 2017 में फैसले के खिलाफ दोषी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है। उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में दोषी को उम्र कैद की सज़ा सुनाए जाने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उसकी अपील खारिज कर दी थी।

उसने याचिकाकर्ता के वकील के इस अभिवेदन पर ध्यान दिया कि अपीलकर्ता की ओर से किसी भी प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति में उच्च न्यायालय ने अपील का निपटारा किया था।

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए भी मामले की सुनवाई की कि व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कोई वकील नहीं कर रहा था और निचली अदालत के नजरिया की पुष्टि कर दी।

शीर्ष अदालत ने कहा, “ ऐसी परिस्थिति में, हमारे पास उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को निरस्त करने और आपराधिक अपील को बहाल करने के सिवाए कोई विकल्प नहीं है… “

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय अपील का नए सिरे से निपटारा करे।

उच्चतम न्यायालय ने रेखांकित किया कि उच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने के दौरान व्यक्ति जमानत पर था लेकिन उसे हिरासत में ले लिया गया है।

पीठ ने कहा, “ ऐसी परिस्थिति में हम उच्च न्यायालय से आग्रह करते हैं कि वह आपराधिक अपील पर जल्दी किसी तारीख पर सुनवाई करने पर विचार करे और हम उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि वह अपील को निर्देशों के लिए 11 जनवरी 2021 को उचित अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करे।“

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने तक अपीलकर्ता को हिरासत में रखा जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने इसी के साथ उसकी अपील का निपटान कर दिया।

इस व्यक्ति को अन्य आरोपी के साथ हत्या के एक मामले में निचली अदालत ने उम्र कैद की सज़ा सुनाई है।

27 करोड़ रुपये का जुर्माने के सेबी के आदेश के खिलाफ एनडीटीवी के संस्थापक और प्रवर्तक प्रणय रॉय और राधिका रॉय अपील करेंगे attacknews.in

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर । एनडीटीवी के प्रवर्तक प्रणय और राधिका रॉय और प्रवर्तक समूह कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग्स प्रा. लि. पूंजी बाजार नियामक सेबी के आदेश के खिलाफ अपील करेंगे। सेबी ने उन पर कुछ कर्ज समझौतों के बारे में कथित तौर पर खुलासा नहीं किये जाने के कारण 27 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है।

सेबी ने कंपनी पर सूचीबद्धता और प्रतिभूतियों से जुड़े विभिन्न नियमों के उल्लंघन को लेकर यह जुर्माना लगाया है। इसमें कुछ कर्ज समझौतों के बारे में शेयरधारकों से जानकारी को छुपाने का भी आरोप है।

सेबी का कहना है कि कुछ रिण समझौतों में ऐसे प्रावधान हैं जिनका एनडीटीवी शेयरधारकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

एनडीटीवी ने बृहस्पतिवार शाम को शेयर बाजारों को भेजी गई सूचना में कहा है कि एनडीटीवी के संस्थापक और प्रवर्तक प्रणय रॉय और राधिका रॉय तथा कंपनी की प्रवर्तक कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग्स प्रा. लि. ने बार बार यह कहा है कि उन्होंने किसी भी लेनदेन अथवा समझौते के जरिये प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एनडीटीवी का नियंत्रण हस्तांतरित करने की अनुमति नहीं दी है।

दी गई सूचना में कहा गया है कि वह एनडीटीवी की चुकता शेयर पूंजी में अब भी 61.45 प्रतिशत हिस्सेदारी के धारक हैं।

सेबी के बृहस्पतिवार को पारित आदेश के बारे में इसमें कहा गया है कि कंपनी के प्रवर्तक और प्रवर्तक समूह कंपनी आदेश के खिलाफ ‘‘तुरंत अपील’’ करेगी।

सेबी का आदेश कंपनी के संस्थापकों और प्रवर्तक कंपनी समूह द्वारा 2008- 2010 के दौरान विश्वप्रधान कमर्शियल प्रा. लि. और आईसीआईसीआई बैंक के साथ किये गये कर्ज समझौतों के बारे में कथित तौर पर खुलासा नहीं किये जाने पर आधारित है।

एनडीटीवी द्वारा शेयर बाजारों को भेजी सूचना में यह भी कहा गया है कि कंपनी का नियंत्रण कथित तौर पर छोड़ दिये जाने का मामला अभी प्रतिभूति अपीलीय न्यायाध्याधिकरण में लंबित है। इस मामले में न्यायाध्याधिकरण ने 2019 में एनडीटीवी संस्थापकों के पक्ष में स्थगन दिया हुआ है। यह स्थगन अभी भी लागू है।

मध्यप्रदेश में ‘लवजिहाद’ रोकने संबंधी मप्र धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020 को राज्य मंत्रिपरिषद की मंजूरी,अधिनियम को कठोर बनाने के साथ कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो देश के किसी भी राज्य में अब तक नहीं हैं attacknews.in

भोपाल, 26 दिसंबर । मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरूआत के ठीक दो दिन पहले आज यहां राज्य मंत्रिपरिषद ने लवजिहाद और धर्म परिवर्तन रोकने संबंधी महत्वपूर्ण मप्र धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020 को स्वीकृति प्रदान कर दी।

राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद मीडिया को बताया कि इस विधेयक में धर्म परिवर्तन रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैं। इसमें सजा और दंड के बेहद सख्त प्रावधान किए गए हैं और अनेक प्रावधान देश में फिलहाल सिर्फ इसी राज्य में किए गए हैं।

श्री मिश्रा ने बताया कि यह विधेयक जब कानून का स्वरूप लेगा, तब 1968 वाला धर्म स्वातंत्र्य कानून समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि विधेयक को विधानसभा के सोमवार से प्रारंभ हो रहे शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।

श्री मिश्रा ने बताया कि विधेयक के कानून बन जाने के बाद कोई भी व्यक्ति दूसरे को प्रलोभन, धमकी, बल, दुष्प्रभाव, विवाह के नाम पर अथवा अन्य कपटपूर्ण तरीके से प्रत्यक्ष अथवा अन्य तरीके से उसका धर्म परिवर्तन या धर्म परिवर्तन का प्रयास नहीं कर सकेगा। कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन किए जाने का दुष्प्रेरण अथवा षड़यंत्र नहीं कर सकेगा।

श्री मिश्रा ने बताया कि किसी भी व्यक्ति के द्वारा इससे संबंधित अधिनियम का उल्लंघन करने पर एक साल से पांच साल तक के कारावास और 25 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा। नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति के मामले में दो से दस साल तक का कारावास और कम से कम 50 हजार रुपए का अर्थदंड लगाने का प्रावधान है।

उन्होंने कहा कि अपना धर्म छिपाकर (लवजिहाद) धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम का उल्लंघन करने पर तीन साल से दस साल तक के कारावास और 50 हजार रुपए अर्थदंड और सामूहिक धर्म परिवर्तन (दो या अधिक व्यक्ति का) का प्रयास करने पर 5 से 10 वर्ष के कारावास और एक लाख रुपए के अर्थदंड का प्रावधान किया गया है।

श्री मिश्रा ने कहा कि नए कानून में धर्म संपरिवर्तन (लवजिहाद) के आशय से किया गया विवाह शून्य घोषित करने के साथ महिला और उसके बच्चों के भरण पोषण का हकदार करने का प्रावधान भी किया गया है। ऐसे विवाह से जन्मे बच्चे माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे। धर्मांतरण के लिए होने वाली शादियों पर रोक लगाने के लिए प्रस्तावित धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम को कठोर बनाने के साथ कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो देश के किसी भी राज्य में अब तक नहीं हैं।

उन्होंने बताया कि धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम का उल्लंघन करने वाली संस्था और संगठन को भी अपराधी के समान सजा मिलेगी। धर्मांतरण नहीं किया गया है, यह आरोपी को ही साबित करना होगा। अपराध को संज्ञेय और गैर जमानती बनाने के साथ उप पुलिस निरीक्षक से कम श्रेणी का अधिकारी इसकी जांच नहीं कर सकेगा।

अमेजॉन को झटका,”Big Bazaar”के सौदे पर लगाई थीं आपत्ति;दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया-” फ्यूचर-रिलायंस रिटेल सौदे पर नियामक लें फैसला” attacknews.in

नयी दिल्ली, 21 दिसंबर । देश के सबसे बड़े रिटेल सौदे की राह में आ रही बाधाओं के दूर होने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है। सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने फ्यूचर ग्रुप और अमेजॉन विवाद मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए नियामकों को निर्देश दिया है कि वे फ्यूचर ग्रुप के आवेदन और आपत्तियों पर कानून के अनुसार निर्णय करें। न्यायालय ने हालांकि फ्यूचर रिटेल लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने गुहार लगाई थी कि अमेजॉन को नियामकों से बातचीत करने से रोका जाए।

न्यायाधीश मुक्ता गुप्ता ने आज फ्यूचर ग्रुप की वह याचिका तो खारिज कर दी जिसमें सौदे को लेकर अमेजाॅन को नियामकों से बातचीत नहीं करने के निर्देश का आग्रह किया गया था। न्यायाधीश सुश्री गुप्ता ने इसके साथ ही सौदे पर नियामकों से फ्यूचर ग्रुप की आपत्तियों और आवेदन के अनुसार निर्णय का निर्देश भी दिया।

इससे पहले 20 नवंबर की सुनवाई में न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। बीस नवंबर को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने दोनों पक्षों को अपनी दलीलें पेश करने का निर्देश दिया था।

इस सौदे पर 25 अक्तूबर को सिंगापुर की एक मध्यस्थता अदालत ने अंतरिम रोक लगा दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने नियामकों को इस विवाद पर निर्णय करने का आदेश दे कर सकेत दिया है कि मामले को भारतीय कानून व्यवस्था के तहत ही सुलझाया जाएगा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि रिलायंस को सौदे की मंजूरी देने वाला फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (एफआरएल) बोर्ड प्रस्ताव मान्य है और पहली नजर में वैधानिक प्रावधानों के अनुसार नजर आता है। एमेजॉन ने इसे अमान्य करार दिया था।

न्यायाधीश सुश्री गुप्ता ने 132 पन्नों के अपने आदेश में यह भी कहा कि एमेजॉन ने फेमा और एफडीआई के नियमों का उल्लधंन किया है। एमेजॉन ने विभिन्न समझौते करके एफआरएल पर नियंत्रण करने की कोशिश की जिसे सही नही ठहराया जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि अगर फ्यूचर और रिलायंस को एमेजॉन की वजह से नुकसान उठाना पड़ा है तो उस पर सिविल कार्रवाई भी हो सकती है।

अब यह मामला भारतीय प्रतिभूति नियामक आयोग (सेबी) नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) और अन्य नियामकों के पाले में आ गया है। उन्हें इस मामले पर फैसला लेने की हरी झंडी न्यायालय से मिल चुकी है।

इससे पहले, 20 नवंबर को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और फ्यूचर समूह के सौदे को मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद दोनों कंपनियां सौदे को अंतिम रूप देने में जुट गई हैं। सीसीआई के फैसले से भी अमेरिकी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन को तगड़ा झटका लगा था।

रिलायंस इंडस्ट्रीज की सब्सिडायरी कंपनी रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड (आरआरवीएल) ने इस साल अगस्त में फ्यूचर ग्रुप के रिटेल एंड होलसेल बिजनेस और लॉजिस्टिक्स एंड वेयरहाउसिंग बिजनेस के अधिग्रहण का एलान किया था। इस डील के बाद फ्यूचर ग्रुप के 420 शहरों में फैले हुए 1,800 से अधिक स्टोर्स तक रिलायंस की पहुंच बन जाती। यह डील 24713 करोड़ में फाइनल हुई थी।

ई-अदालत परियोजना को मिला डिजिटल इंडिया अवॉर्ड, ई-अदालत परियोजना मिशन के तहत पर पूरे देश में जिला अदालतों को डिजिटल किया जा रहा है attacknews.in

नयी दिल्ली, 20 दिसंबर । भारत सरकार के न्याय विभाग की ई-अदालत सेवा परियोजना ने इस साल का डिजिटल इंडिया पुरस्कार जीता है। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि परियोजना को यह पुरस्कार केंद्रीय मंत्रालय या विभाग में ‘डिजिटल शासन में उत्कृष्टता’ श्रेणी में मिला है। पुरस्कार वितरण समारोह 30 दिसंबर को होने की संभावना है।

उल्लेखनीय है कि ई-अदालत परियोजना की संकल्पना भारतीय न्यायपालिका में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी को लागू करने के लिए तैयार राष्ट्रीय नीति एंव कार्य योजना-2005के आधार पर बनायी गयी थी । उच्चतम न्यायालय की ई-समिति ने न्यायापलिका में बदलाव के विचार के साथ राष्ट्रीय नीति एंव कार्य योजना सौंपी थी।

ई-अदालत परियोजना मिशन के तहत पर पूरे देश में चलाई जा रही है और जिला अदालतों को डिजिटल करने की इस परियोजना की निगरानी एंव वित्तपोषण न्याय विभाग कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट करने , अवमानना मामले में काॅमेडियन कामरा और काॅमिक आर्टिस्ट तनेजा को कारण बताओ नोटिस जारी attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 दिसम्बर । उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत के खिलाफ कथित अवमाननाजनक ट्वीट करने के मामले में हास्य कलाकार कुणाल कामरा और कॉमिक आर्टिस्ट रचिता तनेजा को शुक्रवार को कारण बताओ नोटिस जारी किया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने दोनों को अलग-अलग नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया। हालांकि पीठ ने अवमानना के अन्य मामलों में दोनों को सुनवाई के दौरान पेश होने से छूट दे दी।

शीर्ष अदालत ने कथित अवमाननाजनक ट्वीट के मामले में कामरा और तनेजा के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करने के लिये दायर याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को फैसला सुरक्षित रखा था।

अटॉर्नी जनरल के. वेणुगोपाल ने कामरा के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने पर सहमति देते हुए कहा था कि ट्वीट ‘‘खराब भावना’’ के तहत किए गए थे और यह समय है जब लोग समझें कि शीर्ष अदालत पर ढिठाई से हमला करने पर अदालत अवमानना अधिनियम-1971 के तहत सजा हो सकती है।

इसी तरह, अटॉर्नी ने तनेजा के खिलाफ भी अवमानना की कार्यवाही शुरू करने पर सहमति दी थी। उन्होंने कहा था उच्चतम न्यायालय को बदनाम करने और न्यायपालिका के प्रति लोगों के भरोसे को कम करने के मकसद से इस तरह के ट्वीट किए गए।

उल्लेखनीय है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अदालत को अवमानना अधिनियम-1971 की धारा-15 के तहत अटॉर्नी जनरल या सॉलिसीटर जनरल की सहमति लेनी होती है।

उच्चतम न्यायालय की आपराधिक अवमानना के लिए 2,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और छह महीने तक की कैद हो सकती है।

हास्य कलाकार कुणाल कामरा पर अवमानना की कार्यवाही चलाने को लेकर न्यायालय ने रखा था फैसला सुरक्षित

कल उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि हास्य कलाकार कुणाल कामरा द्वारा कथित तौर पर शीर्ष अदालत के लिए अपमानजनक ट्वीट करने के मामले में अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर वह शुक्रवार को फैसला सुनाएगा।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष ये याचिकाएं सुनवाई के लिए आईं थी जिसमें एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता निशांत आर कटनेश्वर्कर ने दावा किया था कि कामरा ने न्यायपालिका के लिए अपमानजनक ट्वीट किए हैं।

न्यायमूर्ति आरएस रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष उन्होंने कहा, ‘‘ ये सभी ट्वीट अपमानजनक हैं और हमने इस मामले में अटॉर्नी जनरल से सहमति मांगी थी।’’

कटनेश्वर्कर ने अटॉर्नी जनरल के वेणुगोपाल का पत्र अदालत में पढ़ा जिसमें कामरा के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने को लेकर सहमति दी गई ।

इस पर अदालत ने वकील से कहा था कि वह हास्य कलाकार के कथित अवमानना करने वाले ट्वीट खुली अदालत में नहीं पढ़ें क्योंकि अदालत पहले ही वेणुगोपाल के पत्र को देख चुकी है।

उल्लेखनीय है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अदालत को अवमानना अधिनियम-1971 की धारा-15 के तहत अटॉर्नी जनरल या सॉलिसीटर जनरल की सहमति लेनी होती है।

कामरा के खिलाफ दायर याचिकाओं में एक याचिका विधि के छात्र श्रीरंग कटनेश्वर्कर ने दायर की है।

उल्लेखनीय है कि 11 नवंबर को कामरा ने ये ट्वीट तब किए जब वर्ष 2018 में आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने अग्रिम जमानत याचिका बंबई उच्च न्यायालय द्वारा खारिज करने के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी और शीर्ष अदालत में सुनवाई चल रही थी।