अयोध्या में बाबरी मस्जिद के एवज में बनने वाली धन्नीपुर मस्जिद की जमीन पर दिल्ली की महिलाओं ने ठोका दावा attacknews.in

लखनऊ 03 फरवरी । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में बुधवार को एक रिट याचिका दाखिल कर अयोध्या के धन्नीपुर गांव में मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को आवंटित कुल 29 एकड़ जमीन में से पांच एकड़ को विवादित बताया गया है।

याचिका दिल्ली की रानी कपूर पंजाबी व रमा रानी पंजाबी की ओर से दाखिल की गई है। इस पर आठ फरवरी को सुनवाई संभावित है।

याचिका दायर कर दोनों महिलाओं ने आवंटित जमीन मे से पांच एकड़ पर अपना हक होने का दावा किया है। साथ ही यह भी कहा है कि उक्त पांच एकड़ की जमीन के संबंध में बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी के समक्ष एक मुकदमा विचाराधीन है।

याचियों का कहना है कि बंटवारे के समय उनके माता-पिता पाकिस्तान के पंजाब से आए थे। वे फैजाबाद (अब अयोध्या) जिले में ही बस गए। बाद में उन्हेंं नजूल विभाग में ऑक्शनिस्ट के पद पर नौकरी भी मिली। उनके पिता ज्ञान चंद्र पंजाबी को 1,560 रुपये में पांच साल के लिए ग्राम धन्नीपुर, परगना मगलसी, तहसील सोहावल, जिला फैजाबाद में लगभग 28 एकड़ जमीन का पट्टा दिया गया। पांच साल के पश्चात भी उक्त जमीन याचियों के परिवार के ही उपयोग में रही व याचियों के पिता का नाम आसामी के तौर पर उक्त जमीन से संबंधित राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हो गया। हालांकि, वर्ष 1998 में सोहावल एसडीएम द्वारा उनके पिता का नाम उक्त जमीन से संबंधित रिकॉर्ड से हटा दिया गया, जिसके विरुद्ध याचियों की मां ने अपर आयुक्त के यहां लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी व उनके पक्ष में फैसला हुआ।

उन्होने कहा कि अपर आयुक्त के आदेश के बाद भी चकबंदी के दौरान पुन: उक्त जमीन के राजस्व रिकॉर्ड को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ। तब चकबंदी अधिकारी के आदेश के विरुद्ध बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी के समक्ष मुकदमा दाखिल किया गया, जो अब तक विचाराधीन है।

याचियों का कहना है कि मुकदमा अब तक विचाराधीन होने के बावजूद राज्य सरकार द्वारा इसी जमीन में से पांच एकड़ भूमि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को आवंटित कर दी गई है। याचियों ने आवंटन व उसके पूर्व की संपूर्ण प्रक्रिया को चुनौती दी है।

उच्चतम न्यायालय ने किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा संबंधी याचिका पर सुनवाई से किया इनकार attacknews.in

नयी दिल्ली, तीन फरवरी । उच्चतम न्यायालय ने गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के मामले की जांच के लिए शीर्ष न्यायालय के किसी पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाला पैनल गठित करने संबंधी याचिका पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील विशाल तिवारी से आवश्यक कदम उठाने के लिए केंद्र सरकार को अभिवेदन देने को कहा।

न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन भी पीठ का हिस्सा थे।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें भरोसा है कि सरकार इसकी (हिंसा) जांच कर रही है। हमने प्रेस के समक्ष दिए गए प्रधानमंत्री के इस बयान को पढ़ा है कि कानून अपना काम करेगा। इसका अर्थ यह है कि वे इसकी जांच कर रहे हैं। हम इस चरण पर इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहते।’’

तिवारी ने इस हिंसा की जांच के लिए न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किए जाने का अनुरोध किया था।

न्यायालय ने ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा से जुड़ी इसी प्रकार की दो अन्य याचिकाओं पर सुनवाई से भी इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं ने सरकार को अभिवेदन देने को कहा।

तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में 26 जनवरी को की गई किसानों की ट्रैक्टर परेड में हजारों प्रदर्शनकारियों ने अवरोधक तोड़ दिए थे, पुलिस के साथ संघर्ष किया था, वाहनों को पलट दिया था और लाल किले की प्राचीर पर एक धार्मिक ध्वज फहराया था।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ( IJR) की रैंकिंग में न्याय प्रदान करने में महाराष्ट्र राज्य अव्वल,छोटे राज्यों में त्रिपुरा सबसे आगे :14 माह के शोध में आया यह परिणाम attacknews.in

नयी दिल्ली, 30 जनवरी । न्याय प्रदान करने के मापदंडों पर आधारित इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) के दूसरे संस्करण की रैंकिंग में एक बार फिर महाराष्ट्र राज्य अव्वल आया है। छोटे राज्यों की सूची में त्रिपुरा ने बाज़ी मारी है।

आईजेआर की गुरुवार को यहाँ जारी रिपोर्ट में लोगों को न्याय प्रदान करने में भारत के राज्यों को बेहतर प्रदर्शन के आधार पर रैंकिंग दी गयी है। रिपोर्ट में 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों और सात छोटे राज्यों की श्रेणी बनायी गयी थी।

चौदह महीनों के शोध के माध्यम से आईजेआर 2020 ने राज्यों द्वारा सभी को प्रभावकारी ढंग से न्याय सेवाएँ देने के अपने-अपने ढाँचों में की गयी प्रगति की समीक्षा की है। इसमें न्याय के चार स्तंभों – पुलिस, न्यायपालिका, कारागार और कानूनी सहायता पर आधिकारिक सरकारी स्रोतों के अलावा आंकड़ों को पेश किया गया है।

एक करोड़ से अधिक आबादी वाले राज्य में महाराष्ट्र के बाद तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब और केरल ने क्रमशः दूसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवाँ स्थान प्राप्त किया है।

दूसरी ओर सात छोटे राज्यों की सूची में शीर्ष पर त्रिपुरा के बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः सिक्किम और गोवा है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में कुल न्यायाधीशों में महिलाओं का अनुपात केवल 29 फीसदी है। देश के दो-तिहाई कैदी अभी विचाराधीन हैं। वर्ष 1995 के बाद पिछले 25 वर्षों में केवल डेढ़ करोड़ लोगों को कानूनी सहायता मिली है, जबकि देश की जनसंख्या की 80 फीसदी आबादी इसकी पात्र है।

आईजेआर टाटा ट्रस्ट्स की पहल है। इसकी पहली रिपोर्ट वर्ष 2019 में जारी की गई थी। वर्ष 1892 में संस्थापित टाटा ट्रस्ट्स भारत की सबसे पुरानी समाजसेवी संस्था है। यह स्वास्थ्य,शिक्षा, पोषण, जल, स्वच्छता, आजीविका, डिजिटल रूपांतरण, प्रवासन एवं शहरी आवासन, सामाजिक न्याय और समावेशन, पर्यावरण एवं ऊर्जा, कौशल विकास, खेल, तथा कला एवं संस्कृति के क्षेत्रों में काम करता है।

केरल के “सोलर सेक्स स्कैंडल” की जांच सीबीआई से कराने का फैसला;मुख्य आरोपी सरिता ने कहा था, ‘सेक्स के लिए सबने की मेरी मदद, सीएम की भी हो जांच’ attacknews.in

तिरुवनंतपुरम/नईदिल्ली/कोच्चि , 24 जनवरी । केरल सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री उम्मन चांडी और अन्य के खिलाफ सोलर सेक्स स्कैंडल मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने का निर्णय लिया है। इस घोटाले की मुख्य आरोपी सरिता ने खुलासा किया था कि नेता, मंत्री, सांसद, विधायक एवं प्राइवेट सेक्रेटरी केवल सेक्स की वजह से घोटालों में मदद किया करते थे।

वर्ष 2013 के इस मामले की आरोपी सरिता नायर ने इसकी जांच सीबीआई से कराने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को 20 जनवरी को एक पत्र लिखा था।

आधिकारिक सूत्रों ने रविवार को बताया कि मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश को राज्य सरकार जल्दी ही केन्द्र सरकार को भेजेगी।

Keral Solar Scam: ‘सेक्स के लिए सबने की मेरी मदद, सीएम की भी हो जांच’

यह घोटाला उजागर होने पर 22 मार्च 2016 को घोटाले की मुख्य आरोपी सरिता ने खुलासा किया था कि नेता, मंत्री, सांसद, विधायक एवं प्राइवेट सेक्रेटरी केवल सेक्स की वजह से घोटालों में मदद किया करते थे।

केरल के सोलर पैनल प्रोजेक्ट घोटाले की मुख्य आरोपी सरिता एस नायर ने 22 मार्च 2016 को यहां के कोच्चि हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके घोटाले में मुख्यमंत्री ओमन चांडी की कथित भूमिका की सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी। सरिता नायर के इस याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई भी हुई ।

सरिता ने याचिका में कहा था कि इस मामले में निष्पक्ष जांच की जरूरत है। सरिता नायर ने कहा था कि इस मामले की दोबारा से जांच होनी चाहिए। उनके मुताबिक पहले का किया हुआ जांच सत्य और निष्पक्ष नहीं थी।

प्रदेश कांग्रेस महासचिव को दिए 5 लाख

सरिता का नाम इस घोटाले में आने के बाद केरल की राजनीति में हंगामा मचा हुआ था । सरिता एस नायर ने कहा था कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव को मैंने 5 लाख रुपए कैश में पार्टी फंड के नाम पर दिए। उन्होंने कहा था कि अगर चुनाव के पहले जांच रिपोर्ट को पेश किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता। उन्होंने कहा था कि इस से लोगों को सच्चाई का पता चलता और उन्हें सही निर्णय लेने में मदद मिलती।

I Had Given Benny Behanan (Cong Leader) Rs 5 Lakh As Party Fund, I Gave Details Regarding That Matter Today: Saritha Nair,Solar Scam Accused

— ANI (@ANI_news) March 21, 2016

मुख्यमंत्री के भूमिका की हो जांच

सरिता ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल ने एक प्रमुख सोलर प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए कारोबारी एम श्रीधरन नायर को कथित रूप से राजी करने में केरल के मुख्यमंत्री की भूमिका की जांच नहीं की। विवादित प्राइवेट लिमिटेड कंपनी टीम सोलर रिन्यूएबल एनर्जी सोल्यूशंस की एक डायरेक्टर और इस मामले में आरोपी सरिता ने मुख्यमंत्री कार्यालय को कंपनी से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा था कि श्रीधरन नायर ने मुख्यमंत्री से मिलकर मेगा सौर परियोजना में 40 लाख रुपए की शुरुआत राशि का निवेश करने से पहले उनसे निजी आश्वासन पाया था।

सेक्स की वजह से करते थे मेरी मदद

36 साल की सरिता के कारण केरल में ओमन चांडी की कुर्सी पर खतरा बना रहा था। बता दें कि इसी दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके खुद सरिता ने खुलासा किया था कि नेता, मंत्री, सांसद, विधायक और उनके प्राइवेट सेक्रेटरी तक केवल सेक्स की वजह से घोटालों में उसकी मदद किया करते थे।

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर गठित समिति के सदस्यों पर आरोप लगाने पर किसान संगठनों को लगाई फटकार और ट्रैक्टर रैली रोकने के लिए सरकार को “पुलिस का विषय” बताया attacknews.in

नयी दिल्ली, 20 जनवरी । उच्चतम न्यायालय ने नये कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए गठित की गई समिति के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को नाराजगी जाहिर की। साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि उसने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, बल्कि यह शिकायतें सुनेगी तथा सिर्फ रिपोर्ट देगी।

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने 12 जनवरी को नये कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी तथा केंद्र और दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के बीच गतिरोध खत्म करने के सिलसिले में सिफारिशें करने के लिए चार सदस्यीय एक समिति गठित की थी।

इस बीच, राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश पाने की दिल्ली पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया। दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को (इस संबंध में दायर) याचिका वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि यह ‘‘पुलिस का विषय’’ है और ऐसा मुद्दा नहीं है कि जिस पर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़े।

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजस्थान के किसान संगठन किसान महापंचायत की एक अलग याचिका पर नोटिस जारी किया और अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल का जवाब मांगा। याचिका के जरिए शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त चार सदस्यीय समिति के शेष तीन सदस्यों को हटाने और समिति से खुद को अलग कर लेने वाले भूपिंदर सिंह मान की जगह किसी अन्य को नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है।

मान, भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

पीठ ने समिति के सदस्यों के बारे में एक वकील की दलील पर कहा, ‘‘आप बेवहज आक्षेप लगा रहे हैं। क्या अन्य संदर्भ में विचार प्रकट करने वाले लोगों को समिति से बाहर कर दिया जाए?’’

दरअसल, वकील ने यह दलील दी कि समिति के सदस्यों के बारे में राय नये कृषि कानून के समर्थन में उनके (सदस्यों के) विचारों के बारे में मीडिया में खबरों के आधार पर बनी है।

पीठ ने कहा, ‘‘हर किसी के अपने विचार हैं। यहां तक कि न्यायाधीशों के भी अपने-अपने विचार हैं। यह एक संस्कृति बन गई है। जिसे आप नहीं चाहते, उनका गलत चित्रण करना नियम बन गया है। हमने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है।’’

पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से से हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि समिति में सदस्यों की नियुक्ति नये कानूनों से प्रभावित हुए पक्षों की शिकायतों पर गौर करने के लिए की गई है तथा ‘‘हम कोई विशेषज्ञ नहीं हैं। ’’

नाराज नजर आ रहे सीजेआई ने टिप्पणी की, ‘‘ इसमें (समिति के सदस्यों के) पक्षपाती होने का प्रश्न ही कहां हैं? हमने समिति को फैसला सुनाने का अधिकार नहीं दिया है। आप पेश नहीं होना चाहते, इस बात को समझा जा सकता है, लेकिन किसी ने अपनी राय व्यक्त की थी केवल इसलिए उस पर आक्षेप लगाना उचित नहीं। आपको किसी का इस तरह से गलत चित्रण नहीं करना चाहिए।’’

गौरतलब है कि यह विवाद उस वक्त पैदा हुआ, जब न्यायालय ने चार सदस्यीय एक समिति गठित की। हालांकि, इसके कुछ सदस्यों ने पूर्व में विवादास्पद नये कृषि कानूनों का समर्थन किया था, जिसके बाद एक सदस्य (मान) ने इससे (समिति से) खुद को अलग कर लिया था।

एक किसान संगठन की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अयज चौधरी ने समिति के सदस्यों के विचारों के बारे में खबरों का हवाला दिया।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘क्या आपको लगता है कि हम अखबारों के मुताबिक चलें। जन विचार कोई आधार नहीं है। आप इस तरह से किसी की छवि को धूमिल कैसे कर सकते हैं? प्रेस में जिस तरह के विचार प्रकट किये जा रहे हैं उन्हें लेकर मुझे बहुत दुख है। ’’

कुछ किसान संगठनों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने एक रुख अख्तियार किया कि वे समिति की बैठकों में हिस्सा नहीं लेंगे क्योंकि वे चाहते हैं कि कृषि कानून रद्द किये जाएं । दरअसल, उनका यह दृढ़ता से मानना है कि ये कानून उनके हितों के खिलाफ हैं।

पीठ ने भूषण को किसानों को सलाह देने को कहा और टिप्पणी की, ‘‘मान लीजिए, हम कानून को कायम रख देते हैं तब भी आप प्रदर्शन करेंगे। आप उन्हें उचित सलाह दीजिए। एकमात्र र्श्त यह है कि दिल्ली में लोगों की शांति सुनिश्चित करें।’’

पीठ ने इस बात पर और याचिका पर कड़ा संज्ञान लिया कि समिति के सभी सदस्यों को बदल दिया जाए।

पीठ ने किसान संगठन के एक वकील से कहा, ‘‘आप कहते हैं कि सभी सदस्यों को हटा दिया जाए। ये चार लोग, जिन्होंने विचार प्रकट किये हैं वे आलोचकों से कहीं अधिक अनुभवी हैं। वे विशेषज हैं…।’’

उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। वे नये कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

ट्रैक्टर रैली रोक पर “सुप्रीम” झटका ‘क्या उच्चतम न्यायालय यह बताएगा कि पुलिस की क्या शक्तियां हैं और वह इनका इस्तेमाल कैसे करेगी? हम आपको यह नहीं बताने जा रहे कि आपको क्या करना चाहिए।’’ सुनवाई बुधवार के लिए टली attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 जनवरी । केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ ट्रैक्टर रैली पर रोक संबंधी याचिका की उच्चतम न्यायालय में सुनवाई बुधवार तक के लिए टल गयी है।

दिल्ली पुलिस की याचिका सोमवार को मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी, लेकिन न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि किसान आंदोलन की सुनवाई करने वाली बेंच ही इस मामले की सुनवाई करेगी। आज मुख्य न्यायाधीश के साथ दो अन्य न्यायाधीश बैठे थे।

न्यायमूर्ति बोबडे ने सुनवाई के दौरान कहा कि दिल्ली में प्रवेश का सवाल कानून-व्यवस्था की विषय है और दिल्ली में कौन आएगा या नहीं, इसे दिल्ली पुलिस को तय करना है।

न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि प्रशासन को क्या करना है और क्या नहीं करना है, न्यायालय नहीं तय करेगा।
अब इस मामले की सुनवाई 20 मार्च को होगी।

यह कानून-व्यवस्था का मामला है: ट्रैक्टर रैली रोकने संबंधी याचिका पर न्यायालय ने कहा

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि 26 जनवरी को किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली कानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला है और यह फैसला करने का पहला अधिकार पुलिस को है कि राष्ट्रीय राजधानी में किसे प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए।

प्रस्तावित ट्रैक्टर या ट्रॉली रैली अथवा गणतंत्र दिवस पर समारोहों एवं सभाओं को बाधित करने की कोशिश करने अन्य प्रकार के प्रदर्शनों पर रोक लगाने के लिये केंद्र की याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इस मामले से निपटने का पूरा अधिकार हैं।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान केन्द्र से कहा , ‘‘क्या उच्चतम न्यायालय यह बताएगा कि पुलिस की क्या शक्तियां हैं और वह इनका इस्तेमाल कैसे करेगी? हम आपको यह नहीं बताने जा रहे कि आपको क्या करना चाहिए।’’

पीठ ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि वह इस मामले में 20 जनवरी को आगे सुनवाई करेगी।

पीठ ने कहा, ‘‘दिल्ली में प्रवेश का मामला कानून व्यवस्था से जुड़ा है और पुलिस इस पर फैसला करेगी।’’

पीठ ने कहा, ‘‘अटॉर्नी जनरल, हम इस मामले की सुनवाई स्थगित कर रहे हैं और आपके पास इस मामले से निपटने का पूरा अधिकार है।’’

केंद्र ने दिल्ली पुलिस के जरिए दायर याचिका में कहा है कि गणतंत्र दिवस समारोहों को बाधित करने की कोशिश करने वाली कोई भी प्रस्तावित रैली या प्रदर्शन ‘‘देश के लिए शर्मिंदगी’’ का कारण बनेगा।

वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि दिल्ली में प्रवेश की अनुमति देने और नहीं देने के बारे में पुलिस को ही करना है क्योंकि न्यायालय प्रथम प्राधिकारी नहीं है।

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि शीर्ष अदालत कृषि कानूनों के मामले की सुनवाई कर रही है और ‘‘हमने पुलिस की शक्तियों के बारे में कुछ नहीं कहा है’’।

इसके साथ ही न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘क्या किसान संगठन आज पेश हो रहे हैं?’’

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि वह इस मामले में कुछ किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

एक किसान संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ए पी सिंह ने पीठ को बताया कि उन्होंने एक हलफनामा दाखिल किया है। इस हलफनामे में कृषि कानूनों के मामले को सुलझाने के लिए न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के शेष तीन सदस्यों को हटाने और ऐसे लोगों को चुनने का अनुरोध किया गया है जो ‘‘आपसी सद्भाव के आधार पर’’ काम कर सकें।

पीठ ने कहा, ‘‘हम उस दिन (सुनवाई की अगली तारीख) सभी की याचिका पर सुनवाई करेंगे।’’

न्यायालय ने 12 जनवरी को एक अंतरिम आदेश में अगले आदेश तक नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी और दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसान संगठनों एवं केंद्र के बीच गतिरोध के समाधान पर अनुशंसा करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था।

समिति में भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के दक्षिण एशिया के निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट को शामिल किया गया।

बाद में, मान ने खुद को समिति से अलग कर लिया था।

न्यायालय ने 12 जनवरी को कहा था कि इस मामले में आठ सप्ताह बाद आगे सुनवाई करेगा तब तक समिति इस गतिरोध को दूर करने के लिये अपने सुझाव दे देगी।

उल्लेखनीय है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों किसान पिछले एक महीने से भी अधिक समय से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश में आमने-सामने फिजिकल सुनवाई के लिए 18 जनवरी से खुल गई अदालतें attacknews.in

इंदौर, 18 जनवरी । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (एमपीएचसी) की इंदौर खंडपीठ और जिला न्यायालय सहित यहां के अन्य न्यायालय में कोरोना महामारी के चलते प्रभावित सुनवाई व्यवस्था आज से सामान्य होने जा रही हैं।

न्यायालय के सूत्रों ने बताया एमपीएचसी के मुख्य न्यायधीश के द्वारा सुनवाई के संबंध में निर्देश प्राप्त हुए हैं। आज से प्रारंभ की गई व्यवस्था के तहत यदि प्रकरण से जुड़े पक्ष सहमति से रूबरू सुनवाई चाहते हैं, तो आमने-सामने सुनवाई की जाएगी।

मार्च से बंद थीं अदालतें

23 मार्च 2020 के बाद से कोरोना संकट के दौरान प्रदेश भर की जिला अदालतें बंद थीं. न्याय सुचारू रूप से दिया जा सके इस मकसद को ध्यान में रखते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जिला अदालतों में सुनवाई की जा रही थी।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नये कृषि कानूनों पर नियुक्त समिति 19 जनवरी को करेगी पहली बैठक,भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान हो चुके हैं समिति से अलग attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 जनवरी । नये कृषि कानूनों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के यहां पूसा परिसर में 19 जनवरी को अपनी पहली बैठक करने का कार्यक्रम है। समिति के सदस्यों में शामिल अनिल घनवट ने रविवार को यह जानकारी दी।

शीर्ष न्यायालय ने केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर 11 जनवरी को अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी थी। साथ ही, न्यायालय ने गतिरोध का हल निकालने के लिए चार सदस्यीय एक समिति भी नियुक्त की थी।

हालांकि, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान पिछले हफ्ते समिति से अलग हो गये थे।

नये कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली की सीमाओं पर 50 से अधिक दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।

घनवट के अलावा, कृषि-अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी समिति के दो अन्य सदस्य हैं।

शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के प्रमुख घनवट ने पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘हम लोग पूसा परिसर में 19 जनवरी को बैठक कर रहे हैं। भविष्य की रणनीति पर फैसला करने के लिए सिर्फ सदस्य ही बैठक में शामिल होंगे। ’’

उन्होंने कहा कि समिति के चार सदस्यों में एक ने समिति छोड़ दी है। यदि शीर्ष न्यायालय कोई नया सदस्य नियुक्त नहीं करता है, तो मौजूदा सदस्य सौंपा गया कार्य जारी रखेंगे।

विवादास्पद कृषि कानूनों से जुड़ी याचिकाओं और किसानों के प्रदर्शन पर शीर्ष न्यायालय में सोमवार को सुनवाई होने का कार्यक्रम है। साथ ही, न्यायालय एक सदस्य के समिति से बाहर जाने के विषय पर भी उस दिन गौर कर सकता है।

उन्होंने कहा कि समिति को उसके कार्य क्षेत्र का विवरण प्राप्त हुआ है और 21 जनवरी से काम शुरू होगा।

शीर्ष न्यायालय द्वारा समिति गठित किये जाने के बाद सरकार द्वारा प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के साथ समानांतर वार्ता करने के बारे में पूछे जाने पर उन्होने कहा, ‘‘ हमारी समिति के जरिए या फिर प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के साथ सरकार की अलग वार्ताओं से (दोनों में से किसी की भी कोशिश से) यदि समाधान निकल जाता है और प्रदर्शन खत्म हो जाता है, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘ उन्हें (सरकार को) चर्चा जारी रखने दीजिए, हमें एक कार्य सौंपा गया है और हम उस पर पूरा ध्यान देंगे।’’

सरकार और प्रदर्शनकारी 41 किसान संगठनों के साथ अब तक नौ दौर की वार्ता हुई है लेकिन गतिरोध दूर नहीं हो सका है। दरअसल, आंदोलनरत किसान संगठन तीनों कानूनों को पूरी तरह रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

पिछली बैठक में केंद्र ने सुझाव दिया था कि प्रदर्शन को समाप्त करने को लेकर 19 जनवरी की बैठक के लिए किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों पर एक ठोस प्रस्ताव तैयार करने के लिए अपना अनौपचारिक समूह बनाएं।

शीर्ष न्यायालय सोमवार को केंद्र सरकार की याचिका पर भी सुनवाई करेगा, जो दिल्ली पुलिस के मार्फत दायर की गई है। याचिका के जरिए ,26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह में व्यवधान डाल सकने वाले किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली या इसी तरह के अन्य प्रदर्शन को रोकने के लिए न्यायालय से आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है।

‘स्टैंडअप कॉमेडियन’ मुन्नवर फारूकी की इंदौर उच्च न्यायालय में दायर जमानत याचिका पर सुनवाई आगे बढ़ी,जिला कोर्ट ने दो बार खारिज की थी जमानत याचिका attacknews.in

इंदौर, 16 जनवरी । मध्यप्रदेश की इंदौर पुलिस के द्वारा धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में गिरफ्तार किए गए ‘स्टैंडअप कॉमेडियन’ मुन्नवर फारूकी की यहाँ उच्च न्यायालय में दायर जमानत याचिका पर सुनवाई आगे बढ़ गई हैं।

अतिरिक्त महाधिवक्ता के अनुसार मुन्नवर फारूकी की ओर से उनके अधिवक्ता ने जमानती आवेदन दायर किया हैं, जिस पर एकलपीठ के न्यायाधीश रोहित आर्य ने शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान पुलिस के द्वारा प्रकरण के संबंध में केस डायरी प्रस्तुत नहीं की जा सकी, लिहाजा अदालत ने मामले की सुनवाई अगले सप्ताह पर मुल्तवी कर दी हैं।

जिला कोर्ट में हिंदू देवी-देवताओं के अपमान के आरोपी कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी को जमानत नहीं मिली थी, कोर्ट ने दूसरी बार खारिज की थी याचिका

जिला अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने फारुकी और यादव समेत मामले के पांच आरोपियों की जमानत अर्जियां दो जनवरी को खारिज कर दी थीं।

हास्य कार्यक्रम के दौरान कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणियों के मामले में गुजरात के स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और एक अन्य आरोपी को जमानत देने से इंदौर की सत्र न्यायालय ने इनकार कर दिया था । दोनों आरोपियों को भाजपा की एक स्थानीय विधायक के बेटे की शिकायत पर एक जनवरी को गिरफ्तार किया गया था।

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश यतींद्र कुमार गुरु ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद गुजरात के जूनागढ़ से ताल्लुक रखने वाले फारुकी और हास्य कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े इंदौर निवासी नलिन यादव की जमानत अर्जियां खारिज कर दीं थी। फारुकी और यादव के वकील अंशुमन श्रीवास्तव ने अदालत में बहस के दौरान कहा कि प्राथमिकी में उनके दोनों मुवक्किलों के खिलाफ लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं और यह मामला राजनीतिक दबाव में दर्ज कराया गया है।

श्रीवास्तव ने अपनी दलील में कहा था कि उनके दोनों मुवक्किल कलाकार हैं और उन्होंने शहर में नववर्ष पर आयोजित हास्य कार्यक्रम में ऐसी कोई भी टिप्पणी नहीं की गई थी जिससे किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाएं आहत होती हों।

उधर, अभियोजन के वकील विमल मिश्रा ने फारुकी और यादव की जमानत अर्जियों पर अदालत में जोरदार आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण काल में दोनों आरोपी शहर के 56 दुकान क्षेत्र के एक कैफे में आयोजित जिस हास्य कार्यक्रम में शामिल हुए, उसके लिए प्रशासन की अनुमति नहीं ली गई थी।

अभियोजन के वकील ने प्राथमिकी के इस आरोप पर खास जोर दिया कि इस कार्यक्रम में हिंदू देवी-देवताओं का भद्दा मजाक उड़ाया गया था और यह कार्यक्रम अश्लीलता से भरा था, जबकि इसके दर्शकों में नाबालिग लड़के-लड़कियां भी शामिल थे। इससे पहले, जिला अदालत के एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने फारुकी और यादव समेत मामले के पांच आरोपियों की जमानत अर्जियां दो जनवरी को खारिज कर दी थीं।

स्थानीय भाजपा विधायक के बेटे एकलव्य सिंह गौड़ ने फारुकी और हास्य कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े चार अन्य लोगों के खिलाफ तुकोगंज पुलिस थाने में एक जनवरी की रात मामला दर्ज कराया था। विधायक पुत्र का आरोप है कि इस कार्यक्रम में हिंदू देवी-देवताओं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और गोधरा कांड को लेकर अभद्र टिप्पणियां की गई थीं।

चश्मदीदों के मुताबिक एकलव्य अपने साथियों के साथ बतौर दर्शक इस कार्यक्रम में पहुंचे थे। उन्होंने कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों के विरोध में जमकर हंगामा किया और कार्यक्रम रुकवाने के बाद फारुकी समेत पांच लोगों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था।

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि विवादास्पद कार्यक्रम को लेकर पांचों लोगों को भारतीय दंड विधान की धारा 295-ए (किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जान-बूझकर किए गए विद्वेषपूर्ण कार्य), धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जान-बूझकर कहे गए शब्द) और अन्य सम्बद्ध प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था। बाद में इस कार्यक्रम के आयोजन में शामिल होने के आरोप में एक और व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल पर लगाई रोक, गतिरोध दूर करने के लिये गठित की समिति, एमएसपी जारी,किसानों की जमीन सुरक्षित रहेगी;आदेश के बाद किसानों ने समिति से अलग किया ,आन्दोलन जारी रहेगा attacknews.in

नयी दिल्ली, 12 जनवरी । उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण आदेश सुनाते हुए तीनों कृषि सुधार कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी तथा चार-सदस्यीय समिति का गठन किया। न्यायालय ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को जारी रखने का भी आदेश दिया।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद मौखिक आदेश जारी किया था और कहा था कि वह आज शाम तक विस्तृत आदेश जारी करेगी।

न्यायालय की ओर से देर शाम जारी आदेश में कहा कि तीनों कृषि सुधार कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगायी जाती है, जिसके फलस्वरूप एमएसपी कानूनों की पुरानी अवस्था में जारी रहेगी। इतना ही नहीं, किसानों की जमीन सुरक्षित रहेगी अर्थात् कृषि कानूनों के तहत की गयी कोई भी कार्रवाई के परिणामस्वरूप किसान अपनी भूमि से वंचित नहीं होगा।

न्यायालय की ओर से गठित चार-सदस्यीय समिति में कृषि अर्थशास्त्री एवं कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी, भारतीय किसान यूनियन तथा अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान, कृषि अर्थशास्त्री एवं अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के दक्षिण एशिया निदेशक प्रमोद जोशी और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवंत शामिल हैं।

किसानों ने समिति से अलग किया ,आन्दोलन जारी रहेगा

उधर किसान संगठनों ने किसानों की समस्याओं को लेकर उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित समिति से अपने को अलग करते हुए मंगलवार को कहा कि 26 जनवरी के बाद भी उनका आन्दोलन जारी रहेगा।

संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद किसान नेता दर्शन पाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने तीन कृषि सुधार कानूनों के लागू होने पर रोक लगा कर सरकार को झटका दिया है। किसानों का संघर्ष जारी है और आगे भी जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि समिति में जिन चार लाेगों के नाम का प्रस्ताव किया गया है, वे पहले से ही इस कानून के पक्ष में लेख लिखते रहे हैं।

किसान नेता बलवंत सिंह राजेवाल ने कहा कि समिति में जिन सदस्यों को शामिल किया गया है, वे सरकार के समर्थक रहे हैं और कानूनों को सही ठहराते रहे हैं। किसान नेता जगमोहन सिंह ने कहा कि किसानों के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने के लिए समिति का गठन किया गया है। उन्होंने कहा कि किसानों का आन्दोलन शांतिपूर्ण और अनिश्चितकालीन है।

किसान नेता रमिन्दर पटियाल ने कहा कि किसान संगठनों का 26 जनवरी का कार्यक्रम ऐतिहासिक होगा। उन्होंने कहा कि तीन कृषि सुधार कानूनों को संसद ने बनाया है, इसलिए इसे सरकार को वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों की लड़ाई सरकार से है।

एक अन्य किसान सुरजीत सिंह फूल ने कहा कि किसान समिति का हिस्सा नहीं होंगे। उन्होंने न्यायालय पर विश्वास जताते हुए कहा कि किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए गठित समिति पर उन्हें विश्वास नहीं है।

उल्लेखनीय है कि किसान संगठन तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमरओं पर पिछले 48 दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान संगठनों के साथ सरकार की आठ दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन उनकी मुख्य मांगों पर गतिरोध बना हुआ है।

ट्रैक्टर रैली पर रोक संबंधी याचिका पर किसान संघों को नोटिस

इसी बीच उच्चतम न्यायालय ने राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाने संबंधी पुलिस की याचिका पर किसान संगठनों को मंगलवार को नोटिस जारी किया।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस की याचिका की सुनवाई करते हुए कृषक संगठनों को नोटिस जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया:

उच्चतम न्यायालय ने तीन नये कृषि कानूनों को लेकर सरकार और दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे रहे किसानों की यूनियनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिये चार सदस्यीय समिति गठित कर दी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि वह इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक के लिये रोक लगा रही है और चार सदस्यीय समिति का गठन कर रही है।

पीठ ने इस समिति के लिये भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घन्वत, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के नामों की घोषणा की।

पीठ ने कहा कि इस बारे में विस्तृत आदेश पारित किया जायेगा।

जिन तीन नये कृषि कानूनों को लेकर किसान आन्दोलन कर रहे हैं, वे कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून हैं।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि कोई भी ताकत उसे इस तरह की समिति गठित करने से रोक नहीं सकती। साथ ही पीठ ने आन्दोलनरत किसान संगठनों से इस समिति के साथ सहयोग करने का अनुरोध भी किया।

न्यायालय द्वारा नियुक्त की जाने वाली समिति में आन्दोलनरत किसान संगठनों के शामिल नहीं होने संबंधी खबरों के परिप्रेक्ष्य में शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि जो वास्तव में इस समस्या का समाधान चाहते हैं वे समिति के साथ सहयोग करेंगे।

पीठ ने कहा कि हम देश के नागरिकों की जान माल की हिफाजत को लेकर चिंतित हैं और इस समस्या को हल करने का प्रयास कर रहे हैं।

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान न्यायपालिका और राजनीति में अंतर को भी स्पष्ट किया और किसानों से कहा कि यह राजनीति नहीं है।

न्यायालय ने साफ कहा कि किसानों को इस समिति के साथ सहयोग करना चाहिए।

पीठ को जब यह सूचित किया गया कि उसके समक्ष एक आवेदन दाखिल किया गया है जिसमे आन्दोलरत किसानों को एक प्रतिबंधित संगठन के समर्थन का आरोप लगाया गया है, पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से इस बारे में जानकारी मांगी।

वेणुगोपाल ने कहा कि किसानों के इस आन्दोलन में ‘खालिस्तानियों’ ने पैठ बना ली है। इस पर पीठ ने उनसे कहा कि इस संबंध में हलफनामा दाखिल किया जाये। वेणुगोपाल ने कहा कि वह बुधवार तक ऐसा कर देंगे।

शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही दिल्ली पुलिस के माध्यम से केन्द्र द्वारा दायर एक आवेदन पर भी नोटिस जारी किया। इस आवेदन में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर होने वाले आयोजन में व्यवधान डालने के लिये किसानों के प्रस्तावित ट्रैक्टर या ट्राली मार्च या किसी अन्य तरह के विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।

इस आवेदन में केन्द्र ने कहा है कि उसे सुरक्षा एजेन्सियों से जांनकारी मिली है कि विरोध करने वाले लोग छोटे छोटे समूहों में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर मार्च आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर सोमवार को केन्द्र को आड़े हाथ लिया था और किसानों के साथ हुयी उसकी बातचीत के तरीके पर गहरी निराशा व्यक्त की थी।

तीन कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र और किसान यूनियनों के बीच आठ दौर की बातचीत के बावजूद कोई रास्ता नहीं निकला है क्योंकि केन्द्र ने इन कानूनों को समाप्त करने की संभावना से इंकार कर दिया है जबकि किसान नेताओं का कहना है कि वे अंतिम सांस तक इसके लिये संघर्ष करने को तैयार हैं और ‘कानून वापसी’ के साथ ही उनकी ‘घर वापसी’ होगी।

मध्यप्रदेश में ‘लवजिहाद’ रोकने संबंधी मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 लागू ,अब प्रलोभन और भय के तहत धर्म परिवर्तन करने और कराने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी attacknews.in

भोपाल, 09 जनवरी । ‘लवजिहाद’ रोकने संबंधी मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 आज से इस राज्य में लागू कर दिया गया है और इसके तहत प्रलोभन और भय के तहत धर्म परिवर्तन करने और कराने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

गृह विभाग की ओर से मध्यप्रदेश के राजपत्र में आज धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 को अधिसूचित कर दिए जाने के साथ ही यह अध्यादेश लागू हो गया है। इस संबंध में गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा ने सभी कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को विधिवत पत्र खिलकर सूचना दे दी है।

लवजिहाद संबंधी अध्यादेश को राज्यपाल की मिली थी अनुमति

मध्यप्रदेश में लव जिहाद रोकने संबंधी धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 को राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद कल इसे राजपत्र में अधिसूचना के रूप में प्रकाशित करने के लिए भेज दिया गया था ।

गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा ने बताया था कि राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित होने के साथ ही यह अध्यादेश कानून का स्वरूप ले लेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने फारेस्ट रेंजरों को हथियार उपलब्ध करवाने का दिया आदेश दिया;वन्यजीवों के शिकारियों और तस्करों द्वारा हमले की घटनाओं पर जताई चिंता attacknews.in

नयी दिल्ली, आठ जनवरी ।उच्चतम न्यायालय ने वन्यजीवों के शिकारियों और तस्करों द्वारा फारेस्ट रेंजरों पर हमले की घटनाओं पर शुक्रवार को चिंता व्यक्त की और कहा कि वह इन अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये उन्हें हथियार, बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट उपलब्ध कराने के बारे में आदेश पारित कर सकता है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि वन अधिकारियों का मुकाबला बड़ी ताकतों से है और तस्करों द्वारा लाखों डालर हड़पे जा रहे हैं। पीठ 25 साल पुरानी टी एन गोदावर्मन तिरुमुल्पाद की जनहित याचिका में दाखिल एक अंतरिम आवेदन पर विचार कर रही थी।

पीठ ने कहा कि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय को शामिल किया जाना चाहिए। इसमें अलग से वन्यजीव प्रकोष्ठ होना चाहिए। यह सब अपराध से अर्जित धन है।

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान के इस कथन का संज्ञान लिया कि वन अधिकारियों पर होने वाले हमलों में भारत की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत है। उन्होंने राजस्थान, मप्र और महाराष्ट्र में वन अधिकारियों पर हमले की घटनाओं की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया।

दीवान ने कहा, ‘‘फारेस्ट रेंजरों पर बर्बरतापूर्ण हमले किये जा हैं। यही नहीं, ये लोग इन अधिकारियों के खिलाफ भी मामले दर्ज करा रहे हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम जब असम जाते हैं, तो (देखते हैं) उन्हें हथियार दिये गये हैं जबकि महाराष्ट्र में उनके पास सिर्फ ‘लाठी’ होती है।’’

पीठ ने कहा कि सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, श्याम दीवान और एडीएन राव द्वारा फारेस्ट रेंजरों की रक्षा के बारे में वक्त्व्य दिये जाने के बाद इस मामले में उचित आदेश पारित किया जायेगा।

आवेदन पर सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देंगे कि अधिकारियों को हथियार, बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट दिये जायें। कर्नाटक में वन अधिकारियों को ‘चप्पलों’ में ही घूमते देखा जा सकता है और वन्यजीवों के शिकार करने वाले उन्हें झापड़ तक मार देते हैं। हम चाहते हैं कि सुनवाई की अगली तारीख पर सालिसीटर जनरल वक्तव्य दें कि कर्मियों को हथियार दिये जायेंगे।’’

पीठ ने अपने आदेश में इस बात को दर्ज किया कि विभिन्न राज्यों में फारेस्ट रेंजरों पर हमले किये जा रहे हैं और उन्हें अपने कर्तव्य से विमुख करने के लिये उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए जा रहे हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इतने व्यापक भूक्षेत्र में गैरकानूनी गतिविधियां जारी रखने वाले इन शिकारियों से किस तरह वन अधिकारियों की रक्षा की जाये। घातक हथियारों से लैस शिकारियों की तुलना में निहत्थे वन अधिकारियों द्वारा किसी भी कानून को लागू करा पाना बहुत ही मुश्किल है।’’

पीठ ने इस मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिये स्थगित करते हुये कहा कि संबंधित अधिवक्ताओं के वक्तव्यों को ध्यान में रखते हुये उचित आदेश पारित किया जायेगाा।

पीठ ने कहा कि इन शिकारियों द्वारा वन अधिकारियों पर हमला किये जाने की स्थिति में ये अधिकारी जंगल में मदद के लिये किसी को बुला भी नहीं सकते हैं। पीठ ने कहा कि जिस तरह शहरों में मदद के लिये पुलिस को बुलाया जा सकता है, उसी तरह की कोई न कोई व्यवस्था वन अधिकारियों के लिये भी होनी चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ इस तरह के अपराधों पर अंकुश पाने की आवश्यकता है। पिछले महीने मैं महाराष्ट्र के जंगल में था और मैंने खुद देखा की वन अधिकारियों के पास हथियार तक नहीं थे। हमला होने की स्थिति में वे अपनी रक्षा किस तरह करेंगे। सालिसीटर जनरल, हम चाहते हैं कि आप सभी संभावनाओं को तलाशें। इस तरह के अपराधों पर अंकुश लगाने की जरूरत है।

दीवान ने कहा कि महाराष्ट्र और राजस्थान में वन अधिकारियों के खिलाफ मामले दर्ज कराये गये हैं और उन पर हमले भी हुये हैं। उन्होंने कहा कि इन राज्यों से पूछा जाना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं में क्या कार्रवाई की गई।

उत्तराखंड में हाथियों के लिए 6 जिलों में फैले संरक्षण क्षेत्र को हटाने के राज्य सरकार के निर्णय पर हाईकोर्ट ने शिवालिक एलीफेंट रिजर्व मामले में लगाई रोक attacknews.in

नैनीताल 08 जनवरी । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को अपने महत्वपूर्ण निर्णय में राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार को झटका देते हुए शिवालिक एलीफेंट रिजर्व की अधिसूचना रद्द (डिनोटिफाई) करने संबंधी कदम पर रोक लगा दी है। साथ ही केन्द्र एवं राज्य सरकारों के साथ साथ वन्य जीव बोर्ड तथा जैव विविधता बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है।

मुख्य न्यायाधीश आर एस चौहान और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की युगलपीठ ने देहरादून के पर्यावरण प्रेमी रेणु पाल की ओर से दायर जनहित की सुनवाई के बाद यह रोक लगायी है।

याचिकाकर्ता की ओर से एक जनहित याचिका दायर कर सरकार के 24 नवम्बर, 2020 के निर्णय को चुनौती दी गयी है।

याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि देश में वर्ष 1993 में प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत 11 एलीफेंट रिजर्व अधिसूचित (नोटिफाई) किये गये थे। जिनमें उत्तराखंड का शिवालिक एलीफेंट रिजर्व भी शामिल था। छह जिलों में फैले इस ऐलीफेंट रिजर्व को सरकार ने 24 नवम्बर, 2020 को डिनोटिफाई करने का निर्णय लिया है।

सरकार की ओर से कहा गया कि एलिफेंट टाइगर रिजर्व अधिसूचित करने के पीछे कोई विधिक प्रावधान नहीं था और राज्य में हाथियों की संख्या में वृद्धि हुई है।

याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए अदालत को बताया गया कि यह कदम गलत है। हाथी समूह में चलने और लम्बी दूरी तय करने वाले जानवर हैं। इसलिये एलीफेंट रिजर्व संबंधी अधिसूचना को रद्द करने का सरकार का निर्णय सही नहीं है।

याचिकाकर्ता की ओर से इस मामले में उच्चत न्यायालय के इसी साल 24 नवम्बर 2020 के आदेश का भी हवाला दिया गया जिसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली तीन जजो की पीठ ने हाथियों के संरक्षण पर जोर देने की बात कही है।

याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने बताया कि मामले को सुनने के बाद अदालत ने सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी है और सभी पक्षकारों से जवाब दाखिल करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में तब्लीगी जमात के मरकज़ से कोरोना फैलने की सुनवाई में किसानो के आंदोलन को निशाने पर लिया और आंदोलन में कोविड प्रोटोकॉल पालन कराने का केंद्र को दिये निर्देश attacknews.in

नयी दिल्ली, 07 जनवरी । उच्चतम न्यायालय ने राजधानी की सीमा पर एक महीने से अधिक समय से जारी किसान आंदोलन के कारण कोरोना महामारी का संक्रमण बढ़ने की आशंका को लेकर गुरुवार को चिंता जतायी।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह किसान आंदोलन में कोरोना महामारी से बचने के लिए नियमों का सख्ती से पालन कराये। न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, “हमें नहीं पता कि किसान कोविड-19 से सुरक्षित हैं या नहीं? लेकिन यदि नियमों का पालन नहीं किया गया तो तबलीगी जमात की तरह दिक्कत हो सकती है।”

न्यायमूर्ति बोबडे ने तबलीगी जमात से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, “पहले तबलीगी जमा हुए फिर अब किसान जमा हो गए। मुझे नहीं पता कि किसानों को कोविड से सुरक्षा के क्या उपाय किये गये हैं? हमें मुख्य समस्या पर बात करनी होगी।”

उन्होंने केंद्र से कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसान आंदोलन में कोविड प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वहां नियमों का पालन नहीं हो रहा है।

उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के बीच तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर बड़ी संख्या में किसानों के जमावड़े पर बृहस्पतिवार को चिंता व्यक्त करते हुये केन्द्र से जानना चाहा कि क्या वे कोरोना संक्रमण के प्रसार से सुरक्षित हैं।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे,न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने पिछले साल इस महामारी पर काबू पाने के लिये लागू हुये लाकडाउन के दौरान आनंद विहार बस अड्डे और निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात के आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने की घटना की सीबीआई जांच के लिये दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान किसानों की सुरक्षा को लेकर यह चिंता व्यक्त की।

पीठ ने कहा, ‘‘किसानों के आन्दोलन से वैसी ही समस्या पैदा होने जा रही है। हमें नही मालूम कि क्या किसान कोविड से सुरक्षित हैं। वही समस्या फिर पैदा होने जा रही है। ऐसा नहीं है कि सब कुछ बीत गया है।’’

न्यायालय ने केन्द्र की ओर से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि क्या विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान कोविड-19 से सुरक्षित हैं।

मेहता ने जवाब दिया, ‘‘निश्चित ही ऐसा नहीं है।’’

मेहता ने कहा कि वह दो सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट दाखिल करके बतायेंगे कि क्या किया गया है और क्या करने की जरूरत है।

यह याचिका अधिवक्ता सुप्रिय पंडिता ने दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दिल्ली पुलिस बड़ी संख्या में लोगों को एकत्र होने से नहीं रोक सकी और निजामुद्दीन मरकज का मुखिया मौलाना साद अभी तक गिरफ्तारी से बच रहा है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ओम प्रकाश परिहार ने कहा कि मौलाना साद के बारे में केन्द्र ने कोई बयान नहीं दिया है।

इस पर पीठ ने परिहार से सवाल किया, ‘‘आपकी दिलचस्पी एक व्यक्ति में क्यों हैं? हम कोविड के मुद्दे पर हैं। आप विवाद क्यों चाहते हैं? हम चाहते हैं कि कोविड दिशानिर्देशों का पालन होना चाहिए।’’

न्यायालय ने इस मामले में औपचारिक नोटिस जारी किया। इसके बाद, मेहता ने कहा कि वह इसमें अपना जवाब दाखिल करेंगे।

केन्द्र सरकार ने पिछले साल पांच जून को न्यायालय से कहा था कि लॉकडाउन के दौरान आनंद विहार बस अड्डे पर बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने और तबलीगी जमानत के कार्यक्रम के आयोजन की घटनाओं की दिल्ली पुलिस जांच कर रही है और इसमें सीबीआई जांच की आवश्यकता नहीं है।

“पूछता है भारत” अर्नब गोस्वामी अपनी पहचान के लिए कोर्ट क्यों नहीं गये:महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अदालत के समक्ष पेश नहीं हुए रिपब्लिक टीवी के पत्रकार अर्नब गोस्वामी attacknews.in

मुंबई, सात जनवरी । आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में आरोपी टेलीविजन पत्रकार अर्नब गोस्वामी बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की एक अदालत के समक्ष पेश नहीं हुए जिसके बाद अभियोजन पक्ष ने उनके खिलाफ वारंट जारी करने का अनुरोध किया।

अलीबाग पुलिस ने नवंबर 2020 में इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक की कथित आत्महत्या से संबंधित मामले में गोस्वामी और दो अन्य को गिरफ्तार किया था। उन्हें बाद में उच्चतम न्यायालय ने जमानत दी थी।

बृहस्पतिवार को जब मामला अलीबाग सत्र अदालत के समक्ष आया तो गोस्वामी के वकील ने पेशी से छूट मांगी। अदालत ने दिन के लिए छूट प्रदान कर दी। दो अन्य आरोपी फिरोज शेख और नीतीश सारदा भी पेश नहीं हुए।

विशेष लोक अभियोजक प्रदीप घरात ने इस पर कड़ी आपत्ति जतायी और कहा कि आरोपियों को पहचान के लिए पेश होना चाहिए था क्योंकि अदालत द्वारा आरोपपत्र का संज्ञान लेने के बाद यह पहली सुनवायी थी।

उन्होंने गोस्वामी और दो अन्य के खिलाफ वारंट जारी करने का भी अनुरोध किया।

अदालत ने घरात की अर्जी को लंबित रखते हुए कहा कि चूंकि कोरोना वायरस के चलते पाबंदियां 31 जनवरी तक लागू हैं, इसलिए ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।

मामले में अगली सुनवायी छह फरवरी को होगी।

अभियोजक ने कहा कि उस तिथि को आरोपियों को व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने की आवश्यकता होगी।

पुलिस के आरोपपत्र पर संज्ञान लेने के बाद अदालत ने सभी आरोपियों को सात जनवरी को पेश होने को कहा था। तीनों के खिलाफ भादंसं की धारा 306 और 109 के तहत मामला चल रहा है।

आरोपपत्र में दावा किया गया है कि नाइक ने अपनी मां की हत्या कर दी थी और मई 2018 में अपने अलीबाग स्थित घर में खुद को फांसी लगा ली थी क्योंकि तीनों आरोपियों की फर्मों द्वारा बकाये का भुगतान नहीं किए जाने के कारण वह तनाव में थे।

रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक गोस्वामी ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने वह मामला फिर से खोला है जो 2019 में बंद कर दिया गया था क्योंकि राज्य सरकार उन्हें परेशान करना चाहती है।